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प्रवेश की अनुमति

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प्रवेश की अनुमति या प्रवेश की इजाज़त, एक विशेष वाक्यांश है जिसे शिया तीर्थ स्थलों में प्रवेश करते समय और अपने बुजुर्गों की क़ब्रों पर जाते समय (ज़ियारत के समय) पढ़ते हैं। इस वाक्यांश का अर्थ है क़ब्र के मालिक से प्रवेश की अनुमति माँगना।

प्रवेश की अनुमति सामाजिक मेलजोल (किसी के घर या उसकी संपत्ति में प्रवेश करते समय अनुमति लेना) के क्षेत्र में एक इस्लामी शिष्टाचार भी है।

तीर्थयात्रा शिष्टाचार

प्रवेश की अनुमति एक वाक्यांश है जिसे शिया आमतौर पर बुजुर्गों के रौज़ों, विशेष रूप से चौदह मासूमीन (अ) के मज़ारों में प्रवेश करते समय पढ़ते हैं।[] प्रार्थना और तीर्थयात्रा की पुस्तकों में, प्रवेश की अनुमति को धार्मिक बुजुर्गों की ज़ियारत के शिष्टाचारों में से एक के रूप में वर्णित किया गया है। शेख़ अब्बास क़ुम्मी ने किताब मफ़ातीह अल-जेनान में शेख़ कफ़अमी[] और अल्लामा मुहम्मद बाक़िर मजलिसी[] द्वारा उद्धृत प्रार्थनाओं को शामिल किया है।[]

प्रवेश की अनुमति के रूप में जाने जाने वाले वाक्यांशों में, तीर्थयात्री ईश्वर, पैग़म्बर (स), इमामों, फ़रिश्तों और क़ब्र के मालिक से अनुमति मांगता है। ये वाक्यांश आमतौर पर क़ब्रों के प्रवेश द्वार पर उत्कीर्ण या स्थापित किए जाते हैं, और इन्हें पढ़ने के बाद मक़बरा में प्रवेश करते हैं।

वाक्यांश और अनुवाद
हिन्दी उच्चारण अनुवाद अरबी उच्चारण
अल्लाहुम्मा इन्नी वक़फ़्तो अला बाबिन मिन अब्वाबे बोयूते, सलवातोका अलैहे व आलेही, व क़द मनअतो अल नासा अन यदख़ोलू इल्ला बे इज़्नेही, फ़क़ुल्तो: या अय्योहल लज़ीना आमनू ला तदख़ोलू बोयूता अल नबीये इल्ला अन यूज़ना लकुम

अल्लाहुम्मा इन्नी आतक़ेदो हुर्मता साहेबे हाज़ल मशहदिश शरीफ़े फ़ी ग़ैबतेही, कमा आतकेदोहा फ़ी हज़रतेही, व आलमो अन्ना रसूलका व ख़ोलफ़ाअका अलैहिमुस सलामो, अहयाउन युरज़क़ून, यरवोना मक़ामी, व यस्मऊना कलामी, व यरुद्दूना सलामी, व अन्नका हजबता अन समई कलामहुम, व तहता बाबा फ़हमी बे लज़ीज़े मुनाजातेहिम,

व इन्नी अस्ताज़ेनोका या रब्बे अव्वलन, व अस्ताज़ेनो रसूलका सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही सानियन, व अस्ताज़ेनो ख़लीफ़तकल इमामल मफ़रूज़ा अलय्या ताअतोहु, फ़ोलान बिन फ़ालोन (फ़लां इब्ने फ़लां के स्थान पर साहिबे क़ब्र का नाम लें)

वल मलाएकतल मोवक्कलीना, बे हाज़ेहिल बुकअतिल मुबारकते सालेसन, आ अदखोलो या रसूलल्लाहे? आ अदखोलो या हुज्जतल्लाहे? आ अदखोलो या मलाएकतल्लाहिल मुक़र्रबीना, अल मुक़ीमीना फ़ी हाज़ल मशहद? फ़ाज़न ली मौलाया फ़िद दोखूले, अफ़ज़ला मा अज़ेनत ले अहदिन मिन औलेयाएका, फ़ इन लम अकुन अहलन लेज़ालेका, फ़अन्ता अहलुन ले ज़ालेका

उसके बाद मक़बरे को चूमो और प्रवेश करो और कहो: बिस्मिल्लाहे व बिल्लाहे, व फ़ी सबीलिल्लाहे, व अला मिल्लते रसूलिल्लाहे सलल्लाहो अलैहे व आलेही, अल्लाहुम्मा इग़्फ़िर ली वरहमनी, व तुब अलय्या, इन्नका अन्ता अल तव्वाबो अल रहीम।

ऐ अल्लाह, मैं तेरे नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम) के घरों में से एक के दरवाज़े पर खड़ा हूँ। तूने लोगों को उनकी इजाज़त के बिना अंदर जाने से मना किया है। तूने क़ुरआन में कहा है: "ऐ ईमान वालों! नबी के घरों में तब तक न जाओ जब तक वह तुम्हें इजाज़त न दें।

" ऐ अल्लाह, मैं इस नेक दरगाह के मालिक के सम्मान में उनकी अनुपस्थिति में भी उतना ही विश्वास रखता हूँ जितना मैं उनकी मौजूदगी में रखता हूँ, और मैं जानता हूँ कि तेरे रसूल (स) और तेरे उत्तराधिकारी (अ) हमेशा ज़िंदा हैं और तू ही उन्हें रोज़ी देता है। वे देखते हैं कि मैं कहाँ खड़ा हूँ, मेरी बातें सुनते हैं और मेरे सलाम का जवाब देते हैं, लेकिन तूने मेरे कानों पर पर्दा डाल दिया है ताकि मैं उनकी बातें न सुन सकूँ और उनकी दुआओं का मज़ा चख सकूँ।

ऐ मेरे रब, मैं सबसे पहले तुझसे इजाज़त माँगता हूँ, फिर तेरे नबी से इजाज़त माँगता हूँ, और फिर तेरे खलीफ़ा, इमाम से, जिनकी आज्ञा मानना ​​तूने मुझ पर अनिवार्य किया है;

और फिर इस मुबारक जगह पर नियुक्त फ़रिश्तों से इजाज़त चाहता हूँ, क्या मैं अंदर जा सकता हूँ, ऐ अल्लाह के रसूल? क्या मैं अंदर जा सकता हूँ, ऐ अल्लाह की हुज्जत? क्या मैं अंदर जा सकता हूँ, ऐ अल्लाह के क़रीबी फ़रिश्तों, जो इस तीर्थस्थल में रहते हैं? तो, ऐ मेरे रब, मुझे उस बेहतरीन इजाज़त के साथ अंदर जाने की इजाज़त दे जो तूने अपने किसी दोस्त को दी है, हालाँकि मैं उस इजाज़त के लायक़ नहीं हूँ, लेकिन तू उसके लायक़ है।

अल्लाह के नाम पर, और अल्लाह के नाम से, और अल्लाह के लिए, और अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व आलिह व सल्लम) के धर्म पर, ऐ अल्लाह, मुझे माफ़ कर और मुझ पर रहम कर और मेरी तौबा क़बूल कर, क्योंकि तू बहुत तौबा क़बूल करने वाला, सबसे अधिक रहम करने वाला है।[]

اللَّهُمَّ إِنِّي وَقَفْتُ عَلَى بَابٍ مِنْ أَبْوَابِ بُيُوتِ نَبِيِّكَ، صَلَوَاتُكَ عَلَيْهِ وَ آلِهِ، وَ قَدْ مَنَعْتَ النَّاسَ أَنْ يَدْخُلُوا إِلا بِإِذْنِهِ، فَقُلْتَ: يٰا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لاٰ تَدْخُلُوا بُيُوتَ النَّبِيِّ إِلاّٰ أَنْ يُؤْذَنَ لَكُمْ

اللَّهُمَّ إِنِّي أَعْتَقِدُ حُرْمَةَ صَاحِبِ هَذَا الْمَشْهَدِ الشَّرِيفِ فِي غَيْبَتِهِ، كَمَا أَعْتَقِدُهَا فِي حَضْرَتِهِ، وَ أَعْلَمُ أَنَّ رَسُولَكَ وَ خُلَفَاءَكَ عَلَيْهِمُ السَّلامُ، أَحْيَاءٌ عِنْدَكَ يُرْزَقُونَ، يَرَوْنَ مَقَامِي، وَ يَسْمَعُونَ كَلامِي، وَ يَرُدُّونَ سَلامِي، وَ أَنَّكَ حَجَبْتَ عَنْ سَمْعِي كَلامَهُمْ، وَ فَتَحْتَ بَابَ فَهْمِي بِلَذِيذِ مُنَاجَاتِهِمْ،

وَ إِنِّي أَسْتَأْذِنُكَ يَا رَبِّ أَوَّلا، وَ أَسْتَأْذِنُ رَسُولَكَ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَ آلِهِ ثَانِيا، وَ أَسْتَأْذِنُ خَلِيفَتَكَ الْإِمَامَ الْمَفْرُوضَ عَلَيَّ طَاعَتُهُ، فُلانَ بْنَ فُلانٍ؛

وَ الْمَلائِكَةَ الْمُوَكَّلِينَ، بِهَذِهِ الْبُقْعَةِ الْمُبَارَكَةِ ثَالِثا، أَ أَدْخُلُ يَا رَسُولَ اللَّهِ؟ أَ أَدْخُلُ يَا حُجَّةَ اللَّهِ؟ أَ أَدْخُلُ يَا مَلائِكَةَ اللَّهِ الْمُقَرَّبِينَ، الْمُقِيمِينَ فِي هَذَا الْمَشْهَدِ؟ فَأْذَنْ لِي يَا مَوْلايَ فِي الدُّخُولِ، أَفْضَلَ مَا أَذِنْتَ لِأَحَدٍ مِنْ أَوْلِيَائِكَ، فَإِنْ لَمْ أَكُنْ أَهْلا لِذَلِكَ، فَأَنْتَ أَهْلٌ لِذَلِكَ.

بِسْمِ اللَّهِ وَ بِاللَّهِ، وَ فِي سَبِيلِ اللَّهِ، وَ عَلَى مِلَّةِ رَسُولِ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَ آلِهِ، اللَّهُمَّ اغْفِرْ لِي وَ ارْحَمْنِي، وَ تُبْ عَلَيَّ، إِنَّكَ أَنْتَ التَّوَّابُ الرَّحِيمُ.

शिष्टाचार

इज़्न-ए-दुख़ूल का अर्थ, किसी दूसरे व्यक्ति की संपत्ति में प्रवेश करने से पहले अनुमति माँगना शिष्टाचार में से है। सूरह नूर में बिना अनुमति के दूसरों के घरों में प्रवेश करने से मना किया गया है।[] इसी तरह से क़ुरआन में बिना अनुमति के पैग़म्बर (सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम) के घर में प्रवेश करने से मना किया गया है।[] ऐसा कहा गया है कि पैग़म्बर (स) से मिलने के लिये, जिबरईल उनके घर (पैग़म्बर की मस्जिद के बाब जिबरईल) के दरवाज़े पर रुकते थे और उनसे प्रवेश करने की अनुमति मांगते थे।[]

फ़ुटनोट

  1. कफ़अमी, अल-मिस्बाह, 1405 हिजरी, पेज 472-473।
  2. कफ़अमी, अल-मिस्बाह, 1405 एएच, पेज 472-473।
  3. मजलिसी, बेहार अल-अनवार, 1403 एएच, खंड 97, पृ. 371.
  4. मुहद्दिस क़ुम्मी, मफ़ातिह अल-जेनान, 1385 शम्सी, अध्याय 3 (ज़ियारत), पेज 465-467।
  5. कफ़अमी, अल-मिस्बाह, 1405 एएच, पीपी. 472-473; मुहद्दिस क़ुम्मी, मफ़ातिह अल-जेनान, 1385 शम्सी, अध्याय 3 (ज़ियारत), पेज 465.
  6. सूरह-नूर, आयत 26-28।
  7. सूरह-अहज़ाब, आयत 53।
  8. इज़्ने दोख़ूल, हौज़ा सूचना आधार

स्रोत

  • क़ुम्मी, अब्बास, मफ़ातिह अल-जिनान, अंसारियान फाउंडेशन, अहल अल-बैत की विश्व असेंबली के लिए मुद्रण और प्रकाशन केंद्र, 1385 शम्सी/1427 हिजरी।
  • कफ़अमी, इब्राहिम बिन अली, अल-मिस्बाह, क़ुम, दार अल-रज़ी, 1405 एएच।
  • मजलिसी, मुहम्मद बाक़िर, बेरूत, दार इह्या अल-तुरास अल-अरब, 1403 एएच।
  • इज़ने दुख़ूल, फ़रहंगे अल-ज़ियारत पत्रिका, फ़रवर्दीन 1388, नंबर 1, प्रकाशित: 5 उर्दीबहिश्त 1394 शम्सी, संशोधित: 26 उर्दीबहिश्त 1396 शम्सी।