जिहाद का हुक्म
जिहाद का हुक्म या जिहाद का फ़तवा (अरबीःحكم الجهاد أو فتوى الجهاد ) उस आदेश को कहते हैं, जो शरई हाकिम दुश्मनों के खिलाफ जिहाद करने और उसकी विशेषताओं को तय करने के लिए देता है। ग़ैबत के दौर में जिहाद का हुक्म जारी होना, शिया मरजअ के प्रभाव और ताकत को दिखाता है और इस्लामी समाज की सुरक्षा और धर्म की हिफाज़त के लिए जरूरी माना जाता है। इस्लामी कानून के अनुसार, जब जिहाद का हुक्म जारी हो जाए, तो हर ऐसा मुसलमान जो रक्षा करने में सक्षम हो, उसे दुश्मन से जिहाद करना चाहिए। यह हुक्म तब जारी किया जाता है जब इस्लामी देश पर हमला हो, धर्म को खतरा हो, या मुसलमानों की इज्जत और आज़ादी को खतरा हो, और इसे योग्य मुज्तहिद जारी करता है।
शिया फकीहों ने इतिहास के अलग-अलग दौरों में जिहाद के फ़तवे जारी किए हैं। सन 1241 से 1243 हिजरी के बीच, शिया विद्वानों जैसे कि जाफ़र काशिफ उल ग़िता, सययद अली तबातबाई, मिर्ज़ा क़ुम्मी, मुल्ला अहमद नराक़ी और सय्यद मोहम्मद मुजाहिद ने क़ाजार हुकूमत का समर्थन करने और ईरान के मुसलमानों की रक्षा के लिए रूस की सेना के खिलाफ जिहाद का फतवा दिया था। कुछ लोगों ने फतवो को, इमामिया फ़िक़्ह के इतिहास में जिहाद का पहला हुक्म माना है।
इराक़ में भी, 1337 हिजरी में मुहम्मद तक़ी शिराज़ी ने जिहाद का फतवा जारी किया, तो "सौरतुल इशरीन आंदोलन" अंग्रेज़ों के उपनिवेश और सेना के खिलाफ, खासतौर पर शिया इलाकों में शुरू हुआ। अब्दुलकरीम ज़ंजानी, चौदहवीं सदी हिजरी के शिया विद्वान ने 1948 ईस्वी में इज़राइल के खिलाफ जिहाद का फ़तवा दिया था। साल 2014 में सय्यद अली सीस्तानी ने इराक में आईएसआईएस की बढ़त को रोकने के लिए जिहाद का हुक्म जारी किया।
"रसाइल व फतावाए जिहादी" नामक किताब, जो मोहम्मद हसन रजब़ी की रचना है, इसमें 95 ऐसी रचनाएँ और फतवे शामिल हैं, जिन्हें शिया फकीहों ने 1200 से 1338 हिजरी के बीच जारी किया था।
महत्व और स्थान
जिहाद का हुक्म शरई हाकिम द्वारा दुश्मनों के खिलाफ जिहाद करने और उसकी विशेषताओं को निर्धारित करने का आदेश है।[१] ग़ैबत के दौरान जिहाद के फ़रमान जारी करना शिया फ़क़ीहो के फतवों की प्रभावशीलता और शक्ति और मुसलमानों के जीवन और संपत्ति की रक्षा और दुश्मनों के खिलाफ उनकी भूमि की स्वतंत्रता के महत्व का संकेत माना जाता है।[२] यह कहा गया है कि इस तरह का फतवा, ग़ैबत के दौरान रक्षात्मक जिहाद की तरह, धर्म को संरक्षित करने और हमलावरों के खिलाफ इस्लामी समुदाय की सुरक्षा के लिए काम करता है।[३]
कई अवसरों पर, शिया न्यायविदों ने जिहाद का फ़रमान जारी किया है, जिसमें लोगों को इस्लामी भूमि पर आक्रमण से खतरा महसूस होने पर या जब वे मुसलमानों के धर्म, सम्मान और स्वतंत्रता के लिए खतरा महसूस करते हैं, तो दुश्मन से बचाव और विरोध करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।[४] उदाहरण के लिए, 1337 हिजरी में मुहम्मद तकी शिराज़ी द्वारा जिहाद का फ़तवा जारी करने के साथ, उपनिवेशवाद और ब्रिटिश सेना के खिलाफ सौरतुल इशरीन आंदोलन का सशस्त्र विद्रोह पूरे इराक़ में, विशेष रूप से शिया आबादी वाले क्षेत्रों में आकार लेने लगा।[५]
शिया फ़क़ीह रक्षात्मक जिहाद को इमाम (अ) या उनके विशेष प्रतिनिधि की उपस्थिति या अनुमति पर सशर्त नहीं मानते हैं।[६]
हालांकि, 13वीं शताब्दी हिजरी में शिया फ़क़ीह जाफ़र काशिफ उल ग़िता के अनुसार, ग़ैबत ए कुबरा के दौरान कमांडर और संगठन के साथ रक्षात्मक जिहाद के लिए एक योग्य मुजतहिद की अनुमति की आवश्यकता होती है।[७] हुसैन अली मुंतज़री ऐसी शर्त को रक्षात्मक जिहाद की वैधता के लिए शर्त नहीं मानते हैं, बल्कि रक्षात्मक जिहाद की प्राप्ति के लिए वली फ़क़ीह के फैसले को उनकी पर्यवेक्षी शर्त के रूप में बताते हैं। मुंतज़री के अनुसार, रक्षात्मक जिहाद सभी मुसलमानों पर बिना शर्त वाजिब है।[८]
प्रसिद्ध जिहादी फ़त्वे

- मुख्य लेखः जिहादी फ़तवो की सूचि
जिहाद के दायित्व के संबंध में विभिन्न ऐतिहासिक अवधियों में शिया फ़क़ीहो और मराज ए तक़लीद द्वारा जारी किए गए सबसे महत्वपूर्ण फ़तवों के उदाहरण इस प्रकार हैं:
- 1241-1243 हिजरी में रूसी सेना के ईरान पर आक्रमण और उसके कुछ हिस्सों पर कब्जे के साथ, कुछ शिया फ़क़ीहो जैसे जाफ़र काशिफ उल ग़िता, सय्यद अली तबातबाई, मिर्ज़ा क़ुमी, मुल्ला अहमद नारक़ी और सय्यद मुहम्मद मुजाहिद ने क़ाजार सरकार का समर्थन करने और ईरान के मुस्लिम लोगों की रक्षा के लिए रूसी सेना के आक्रमण का मुकाबला करने और बचाव के लिए जिहाद के फतवे जारी किए।[९] ये फतवे, जिहाद के अहकाम पर रिसालो के साथ, फतह अली शाह के बेटे और क्राउन प्रिंस अब्बास मिर्ज़ा के आदेश से और मिर्ज़ा ईसा क़ायम मक़ाम फ़राहानी द्वारा अहकाम उल जिहाद व अस्बाब उर रेशाद नामक संग्रह में संकलित किए गए थे।[१०] इस फतवे को शिया इतिहास में जिहाद का पहला हुक्म कहा जाता है।[११]
- जिहाद पर मुहम्मद तकी शिराज़ी का फ़तवा 20 रबी उल अव्वल 1337 हिजरी मे इराक में ब्रिटिश वर्चस्व और प्रभाव के खिलाफ जारी किए गए प्रभावशाली फ़तवों में से एक था।[१२] फ़तवे का पाठ इस प्रकार है: "इराकियों के लिए अधिकारों की मांग करना उनके लिए वाजिब और उन पर वाजिब है कि वे अपने अनुरोधों में शांति और सुरक्षा के लिए सम्मान प्रदर्शित करें, और यदि इंग्लैंड उनके अनुरोधों को स्वीकार करने से इनकार करता है, तो उनके लिए रक्षात्मक बल का सहारा लेना जायज़ है।"[१३]
- लीबिया पर हमले में इटली के खिलाफ जिहाद का फ़तवा; आखूंद खुरासानी ने सय्यद इस्माईल सद्र, शेख अब्दुल्लाह माज़ंदरानी और शेख अल शरिया इस्फ़हानी के साथ एक बयान जारी कर मुसलमानों से इस्लामी देशों की रक्षा के लिए उठ खड़े होने का आह्वान किया।[१४] फ़रमान के पाठ में कहा गया है: “ईरान पर रूसी हमला और त्रिपोली पर इटली का हमला इस्लाम की विदाई और शरिया और क़ुरआन को नष्ट कर देगा। सभी मुसलमानों के लिए यह वाजिब है कि वे एकत्र हों और अपनी-अपनी सरकारों से रूस और इटली के अवैध आक्रमणों को हटाने की मांग करें। जब तक यह बड़ी बाधा दूर नहीं हो जाती, खुद पर आराम और स्थिरता को हराम और वे इस इस्लामी आंदोलन को अल्लाह के मार्ग में बद्र और हुनैन के मुजाहिदीन जैसे जिहाद के रूप में मान्यता देते हैं।”[१५]
- प्रथम विश्व युद्ध (1293-1297 शम्सी) मे सय्यद अब्दुल हुसैन मूसवी लारी ने कश्काई जनजाति के सरदार सौलतुत दौला को आदेश जारी कर अंग्रेजों के खिलाफ जिहाद करने का आग्रह किया। उनके संदेश में कहा गया है: "मैं, जो एक मुज्तहिद और इस्लाम के पैग़म्बर (स) का उत्तराधिकारी हूं, यह फ़तवा जारी करता हूं कि इन कुफ्फारे हरबी अंग्रेजों के खिलाफ जिहाद वाजिब है।"[१६]
- मजारों पर वहाबी हमले का मुकाबला करने के लिए जिहाद का फ़तवा: ऐतिहासिक रिपोर्टों के अनुसार, शेख जाफ़र काशिफ उल ग़िता के फ़तवे ने दो सौ फ़क़ीहो और सेनानियों के साथ मिलकर 1217 हिजरी में नजफ़ और कर्बला पर वहाबी हमलों के दौरान वहाबियों को भगाने में सफलता प्राप्त की।[१७]

- इज़रायल के खिलाफ जिहाद का फतवा: मुहम्मद हुसैन काशिफ उल ग़िता,[१८] सय्यद हुसैन बुरूजर्दी[१९] और इमाम खुमैनी[२०] जैसे फ़क़ीहो ने फिलिस्तीन के लोगों की रक्षा करने के दायित्व पर फ़तवा जारी किया है। 14वीं शताब्दी के शिया न्यायविद अब्दुल करीम ज़ंजानी ने 1948 ई में इज़रायल राज्य के अस्तित्व की घोषणा और अरबों के साथ इज़रायल के युद्ध के बाद इज़रायल के खिलाफ जिहाद का फ़तवा जारी किया।[२१]
- 2014 में जब आईएसआईएस ने पश्चिमी और उत्तरी इराक के कुछ हिस्सों पर नियंत्रण हासिल कर लिया और अन्य क्षेत्रों की ओर बढ़ रहा था, तो सय्यद अली सिस्तानी ने आईएसआईएस की बढ़त का मुकाबला करने के लिए जिहाद का फ़तवा जारी किया।[२२] इस फ़तवे के अनुसार, जो इराकी नागरिक हथियार रखने और आतंकवादियों से लड़ने में सक्षम थे, उन पर देश, राष्ट्र और पवित्र स्थानों की रक्षा करना और सैन्य बलों में शामिल होना वाजिब किफ़ाई था।[२३]
मोनोग्राफ़ी
"रसाइल व फ़तावा ए जिहादी: औपनिवेशिक शक्तियों के साथ जिहाद में इस्लामी विद्वानों के रसाइल और फ़तवे" पुस्तक में 1200 और 1338 हिजरी के बीच मुस्लिम न्यायविदों द्वारा जारी किए गए 95 रसाइल और फतवे शामिल हैं। इस संग्रह को मुहम्मद हसन रजबी द्वारा एक खंड में संकलित किया गया था और 1378 में संस्कृति और इस्लामी मार्गदर्शन मंत्रालय (वज़ारत फ़रहंग व इरशाद इस्लामी) द्वारा प्रकाशित किया गया था।[२४]
क़ाजार काल और ईरान-रूस युद्धों के दौरान, जिहादिया नाम से कई किताबें प्रकाशित हुईं, जिनमें जिहादी फ़तवे शामिल थे और रूसी सेनाओं के खिलाफ जिहाद की आवश्यकता बताई गई थी।[२५] सय्यद मुहम्मद मुजाहिद की किताब जिहाद अल-अब्बासिया और मिर्ज़ा कुमी की किताब जामे उश-शत्तात इन जिहादियाओं में से हैं।[२६]
संबंधित लेख
फ़ुटनोट
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- ↑ दो फ़त्वा जिहाद, पाएगाह इत्तेला रसानी हौज़ा
- ↑ रब्बानी व हुसैनी, जाएगाह इज़्न वली फ़क़ीह दर जिहाद, पेज 32
- ↑ सलीमी व दिगरान, बर्रसी इख़्तियारात हाकिम इस्लामी दर हुक्म जिहाद देफ़ाई अज़ मंज़रे फ़िक्ह इमामिया, पेज 113-115
- ↑ यक क़र्न हमराही दो मिल्लत ईरान व इराक़ दर मुबारज़े बा इस्तिकबार, साइट मरकज असनाद इंक़ेलाब इस्लामी
- ↑ अल्लामा हिल्ली, तज़्केरतुल फ़ुक़्हा, 1414 हिजरी, भाग 9, पेज 37 शहीद सानी, मसालिक उल इफ़हाम, 1413 हिजी, भाग 3, पेज 8 तबातबाई, रियाज़ उल मसाइल, 1418 हिजरी, भाग 8, पेज 14 रब्बानी व हुसैनी, जाएगाह इज़्न वली फ़क़ीह दर जिहाद, पेज 50
- ↑ रब्बानी व हुसैनी, जाएगाह इज़्न वली फ़क़ीह दर जिहाद, पेज 53
- ↑ मुंतज़री, पासुख बे पुरसिशहाए पैरामीन मजाज़ात हाए इस्लामी व हुक़ूक़ी बशर, 1387 शम्सी, पेज 93
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- ↑ फ़त्वा ए जिहाद दर सीमा ए तारीख़, खबरगुजारी ईमना
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- ↑ तुर्कमान, असनादी दर बारा ए हुजूम इंगलीसी व रूस बे ईरान, दफ़्तर मुतालेआत सियासी व बैनुल मिल्ली, पेज 486
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स्रोत
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- जाफ़रयान, रसूल, दीन व सियासत दर दौरा ए सफ़वी, क़ुम, अंसारियान, 1370 शम्सी
- हत्ताब, जवाद काज़िम, तौज़ीफ़ अल हश्दुश्शाबी फ़िल मदरकिस सियासी अल इराक़ी, दर मजल्ला हमूराबी, सातवां साल, क्रमांक 29, ज़मिस्तान, 2019 ई
- दो फ़त्वा ज़िहाद, वेबगाह पाएगाह इत्तेला रसानी हौज़ा, प्रविष्ट की तारीख 25 उर्दिबहिश्त 1389 शम्सी, वीजिच की तारीख 15 शहरीवर, 1403 शम्सी
- रब्बानी, महदी व सय्यद इब्राहीम हुसैनी, जाएगाह इज़्न वली फ़क़ीह दर जिहाद, दर मजल्ला हुकूमत इस्लामी, क्रमांक 90, ज़मिस्तान 1390 शम्सी
- रज्बी, मुहम्मद मोहसिन, रसाइल व फ़त्वा ए जिहादी शामिल रेसालेहा व फ़त्वा हाए उल्मा ए इस्लामी दर जिहाद बा क़ुदरत हाए इस्तेअमार, तेहरान, वज़ारत फ़रहंग व इरशाद इस्लामी, 1387 शम्सी
- रंजबर, मोहसि, सैरी दर ज़िंदगी, फ़आलियतहा व अंदेशा ए सिया, सय्यद अब्दुल हुसैन मूसवी लारी, दर मजल्ला आमूज़ेह, क्रमांक 3, ताबिस्तान 1382 शम्सी
- सलीमी, अली रज़ा व दिगरान, बर्रसी इख़्तियारात हाकिम इस्लामी दर हुक्म देफ़ाई अज़ मंज़र ए फ़िक़्ह इमामिया, दर मजल्ला मुतालेआत देफ़ाअ ए मुक़द्दस, क्रमांक 26, ताबिस्तान 1400 शम्सी
- ज़रगरी निज़ाद, ग़ुलाम हुसैन, बर्रसी अहकाम अल जेहाद व अस्बाब अल रेशाद, नुख़ुस्तीन असर दर अदबयात तकवीन अदबयात जिहादी तारीख मआसिर ईरान, दर मजल्ला दानिशकदेह अदबयात व उलूम इंसानी, क्रमांक 155, साल 1379 शम्सी
- शहीद सानी, जैनुद्दीन बिन अली, मसालिक उल इफ़हाम इला तंक़ीह शराए अल इस्लाम, मोअस्सेसा अल मआरिफ़ अल इस्लामीया, 1413 हिजरी
- ज़िद्दे सहयोनीस्म, मुदाफ़ेअ फ़िलिस्तीन मुख्तसरी अज़ अल्लामा काशिफ़ अल ग़िता, दर मजल्ला अल इलैक्ट्रोनिकी उखूव्वत इस्लामी, प्रविष्ट की तारीख 3 ख़ुरदाद 1397 शम्सी, वीजिट की तारीख 18 शहरीवर 1403 शम्सी
- तबातबाई करबलाई, सय्यद अली, रियाज़ उल मसाइल फ़ी बयान अल अहकाम बिद दलाइल, क़ुम मोअस्सेसा आले अल बैत (अ), 1418 हिजरी
- अल्लामा हिल्ली, हसन बिन युसूफ़, तज़्केरतुल फ़ुक़्हा, क़ुम, मोअस्सेसा आले अलबैत (अ), 1414 हिजरी
- ग़ज्ज़ा मुक़ावेमत कुन। बूई हुक्म ए जिहाद मी आयद ... साइट रोज़नामा इक़्तिसाद सर आमद, प्रविष्ट की तारीख 27 मेहेर 1402 शम्सी, वीजिट की तारीख 12 शहरीवर 1403 शम्सी
- सरहदी, रज़ा, उलमा ई के निसबत बे मस्अले फ़िलिस्तीन वाकनुश निशान दादंद, वेबगाह पुजूहिशकदेह तारीख मआसिर, प्रविष्ट की तारीख 13 दी 1400 शम्सी, वीजीट की तारीख 9 शहरीवर 1403 शम्सी
- जाफ़री, अली अकबर, फ़त्वा ए जिहाद दर सीमा ए तारीख, वेबगाह खबरगुज़ारी ईमना, प्रकाशन की तारीख 5 उर्दिबहिश्त 1401 शम्सी, वीजीट की तारीख 7 शहरीवर 1403 शम्सी
- मकारिम शिराजडी, नासिर, दाएरतुल मआरिफ़ फ़िक़्ह मुक़ारन, क़ुम, मदरसा अल इमाम अली बिन अबि तालिब (अ), पहला संस्करण 1427 हिजरी
- मुंतज़री, हुसैन अली, पासुख बे पुरसिशहाए पैरामून मज़ाजातहाए इस्लामी व हुक़ूक़ बशर, अर्ग़वान दानिश, 1387 शम्सी
- यक क़र्न हमराही दो मिल्लत ईरान व इराक़ दर मुबारज़ेह बा इस्तिकबार, वेबगाह मरकज़ अनाद इंक़ेलाब इस्लामी, प्रविष्ट की तारीख 5 बहमन 1398 शम्सी, वीज़िट की तारीख 10 शहरीवर 1403 शम्सी