विलायते फ़क़ीह
- यह लेख एक राजनीतिक सिद्धांत के रूप में विलायते-फ़क़ीह के बारे में लिखा गया है। विलायते फ़क़ीह के सामान्य अर्थ से परिचित होने के लिए फ़क़ीह जामे अल-शराइत वाले लेख का अध्ययन करें।
विलायते फ़क़ीह (अरबीः ولاية الفقيه) शिया न्यायशास्त्र में एक सिद्धांत है जिसके अनुसार, इमाम ज़माना (अ) की अनुपस्थिति के दौरान सरकार जामेअ शराइत (व्यापक) फ़क़ीह की ज़िम्मेदारी है। शेख मुफ़ीद और मुहक़्क़िक़ करकी जैसे न्यायविदों ने न्यायविदो (फ़क़ीहो) की सरकारी शक्तियों के बारे में चर्चा की है, लेकिन मुल्ला अहमद नराक़ी को पहला न्यायविद् (फ़क़ीह) माना जाता है जिन्होंने फ़क़ीह की सभी शक्तियों और कर्तव्यों को विलायते फ़क़ीह के अधिकार के शीर्षक के तहत एकत्रित किया।
विलायते फ़क़ीह के सिद्धांत के अनुसार, इस्लामी समाज के सभी मामलों का अधिकार विलायते फ़क़ीह के हाथों में है। काशिफ़ अल-ग़ेता, मुहम्मद हसन नजफी और इमाम खुमैनी इस दृष्टिकोण के समर्थकों में से हैं और शेख़ अंसारी, आख़ूंद खोरासानी और आयतुल्लाह ख़ूई इसके विरोधियों में से हैं।
मकबूला ए उमर बिन हंज़ला विलायते फकीह सिद्धांत के समर्थकों की नक़ली (क़ुरआन व हदीस) दलील मे से है। इस हदीस के अनुसार, विवादों में मध्यस्थ के रूप में उसी व्यक्ति को चुना जाना चाहिए जो अहले-बैत (अ) से हदीस बयान करता हो और इस्लामी फैसलों से परिचित हो। समाज में ईश्वरीय आदेशों को लागू करने के लिए एक बुद्धिमान और न्यायप्रिय शासक की आवश्यकता भी विलायते फ़कीह के समर्थकों के लिए तर्कसंगतो में से एक है।
विलायते फ़क़ीह के बारे में कई किताबें और लेख लिखे गए हैं। इमाम खुमैनी द्वारा लिखित किताब विलायते फ़क़ीह और जवादी आमोली द्वारा लिखित किताब विलायते फ़क़ीह, विलायते फ़क़ाहत व अदालत उन्ही मे से है हैं।
परिभाषा
विलायते फ़क़ीह- न्यायविदों द्वारा प्रदान की गई परिभाषाओं के आधार पर- का अर्थ है दूसरों के मामलों में मुजतहिद जामे शराइत की संरक्षकता, स्वामित्व और तसर्रुफ़[१] और दूसरे शब्दों में इस्लामी समाज का प्रबंधन इस्लामी नियमों को लागू करना और धार्मिक मूल्यों को महसूस करना है।[२]
विलायते फ़क़ीह शिया राजनीतिक न्यायशास्त्र में एक सिद्धांत है, जिसके अनुसार इमाम ज़मान (अ) की अनुपस्थिति के दौरान सरकार जामे शराइत फ़क़ीह की ज़िम्मेदारी है।[३]
इतिहास
कुछ लेखकों ने मुल्ला अहमद नराक़ी (मृत्यु 1245 हिजरी) को पहला न्यायविद माना है, जिन्होंने विलायते फ़क़ीह के सभी अधिकार को एक न्यायशास्त्रीय मुद्दे (फ़िक़्ही मसअले) के रूप में समझाया और इसे साबित करने के लिए नक़ली और अक़ली दलीलो का इस्तेमाल किया।[४] उन्होंने इस्लामी शासक और विलायते फ़क़ीह के अधिकार को एक साथ किताब अवाइद अल अय्याम मे एकत्र किया।[५] हालांकि मुल्ला अहमद नराक़ी से पहले कुछ शिया विद्वानों ने इमामों के अधिकार फ़कीहों के पास होने के बारे में चर्चा की थी। चौथी और पांचवीं शताब्दी के विद्वानों में शेख मुफ़ीद ने अपनी पुस्तक अल-मुक्नेआ में लिखा है: शिया इमामों ने हुदुद के कार्यान्वयन को शिया न्यायविदों को सौंप दिया है।[६] इसी प्रकार इतिहासकार रसूल जाफ़रयान, दसवी शताबादी के विद्वान मुहक़्क़िक़ करकी इस बात को स्वीकार करते है कि फ़कीह मासूम इमामो की सरकारी शक्तियों के प्रभारी हैं।[७]
मुल्ला अहमद नराक़ी के बाद जाफ़र काशिफ़ अल-ग़ेता[८] और उनके छात्र मुहम्मद हसन नजफ़ी ने भी फ़ुक्हा की नियुक्ति और उनके अधिकार के सिद्धांत को समझाया है।[९] वे न्यायविदों (फ़ुक़्हा) की अनुमति के बिना किसी राजा या सुल्तान के शासन को वैध नहीं मानते थे और उनका मानना था कि यदि किसी न्यायविद् (फ़क़ीह) के लिए परिस्थितियाँ तैयार हो, तो फ़क़ीह पर सरकार बनाना अनिवार्य (वाजिब) है।[१०]
शेख मुर्तजा अंसारी (1214-1281 हिजरी) की ओर से न्यायविदो (फ़ुक़्हा) के लिए राजनीतिक संरक्षकता के बारे में संदेह के बाद न्यायविदों की संरक्षता (फ़ुक़्हा की विलायत) और अधिकार के बारे में बहस का विकास रुक गया;[११] 1969 ई मे इमाम खुमैनी ने हौज़ा ए इल्मीया नजफ़ मे अपने फ़िक़्ह के दर्से खारिज मे विलायते फ़क़ीह के सिद्धांत को बयान किया।[१२] और इस्लामी सरकार की स्थापना की आवश्यकता पर जोर दिया।[१३] उनके दृष्टिकोण इस क्षेत्र में उनकी सामग्री 1390 हिजरी (1970 ई) में विलायते फ़क़ीह नामक पुस्तक में प्रकाशित हुए।[१४]
समर्थकों के तर्क
विलायते फ़क़ीह के सिद्धांत के समर्थकों ने इसे साबित करने के लिए कई अक़ली और नक़ली दलीले बयान की है।[१५] मक़बूला ए उमर बिन हंज़ला और इमाम ज़मान (अ) की तौक़ीअ नक़ली दलीलो मे से है। मक़बूला ए उमर बिन हंज़ला के आधार पर जोकि इमाम सादिक़ (अ) की हदीस है, उसे हकम के रूप में चुना जाना चाहिए जो अहले-बैत (अ) की हदीस सुनाता हो और धार्मिक नियमों को जानता हो।[१६] इमाम ख़ुमैनी ने इस रिवायत का उपयोग करते हुए कहा कि इमाम सादिक़ (अ) ने फ़क़ीह को शासक और हकम दोनो मामलों में रखा है, और इस रिवायत के आधार पर समाज में शासनों के कार्यान्वयन को शक्ति की आवश्यकता माना हैं। उनकी राय के अनुसार, सरकार एक न्यायविद् (फ़क़ीह) के हाथों में होनी चाहिए ताकि वह निर्णय ले सके और फैसले को क्रियान्वित कर सके।[१७] वो इमाम सादिक (अ) द्वारा शिया न्यायशाविदो (फ़ुक़्हा) के लिए विलायत के पद को राजनीतिक रहस्य मानते हैं। और वह यह है कि न्यायविदों (फ़ुक्हा) को न्यायपालिका (क़ज़ावत) की स्थिति में प्रवेश करने के लिए प्रोत्साहित और उकसाना; वे हुकूमते अदले इलाही के गठन के लिए योजना बनाकर तैयारी करते हैं ताकि अगर वे कभी सरकार बनाने में सफल हो जाएं तो उन्हें कोई परेशानी न हो और उन्होंने पहले से ही तैयारी कर रखी है।[१८]
इमाम ज़मान (अ) की तौक़ीअ, "अल-हवादिस अल-वाक़िया" (घटनाओं) के बारे में उल्लेख किया गया है और कहा गया है कि जब कोई घटना घटे तो अहले-बैत की हदीस वर्णनकर्ताओं की ओर रुजूअ करना चाहिए।[१९] इमाम खुमैनी ने इस तौक़ीअ का हवाला देते हुए निष्कर्ष निकाला कि पूरे इस्लामी समाज के तमाम कामो की बाग डोर न्यायविदों को सौंपी जानी चाहिए।[२०]
साहिब जवाहर उन न्यायविदों में से हैं जो विलायते फक़ीह के पक्ष में इस हद तक हैं कि उनका मानना है कि हर व्यक्ति इमामो (अ) द्वारा न्यायविदों को दी गई शक्तियों के बारे में विभिन्न व्याख्याओं जैसे: (शासक, न्यायाधीश, प्राधिकारी और ख़लीफ़ा) विलायते फक़ीह को नही समझता ऐसा है जैसेकि उसने फ़िक़्ह से कुछ भी नही चखा और इमामो के कलाम के रहस्यों से बे ख़बर है; क्योंकि इन व्याख्याओं से पता चलता है ग़ैबत के ज़माने मे कि शिया मामलों की व्यवस्था ढूंढी जानी चाहिए। उन्होंने विलायते फ़क़ीह के विषय को इतना स्पष्ट और सुस्पष्ट माना है कि इसे दलील से सिद्ध करने की आवश्यकता नही समझते और विरोधियों को वस्वसे (मोहग्रस्त) मे मानते हैं।
तर्कसंगतो (अक़ली दलीलो) मे से एक यह है कि मनुष्य के सामाजिक जीवन और उसकी व्यक्तिगत और आध्यात्मिक पूर्णता (मानवी कमाल) के लिए त्रुटि और कमी से मुक्त दैवीय कानून की आवश्यकता के अलावा, उसे एक बुद्धिमान और न्यायप्रिय शासक की भी आवश्यकता होती है। इन दो स्तंभों के बिना, सामाजिक जीवन को अराजकता और भ्रष्टाचार का सामना करना पड़ेगा। इस लक्ष्य को पैगंबरों और इमामों के समय में उनके द्वारा साकार किया गया, और इमाम ज़माना (अ) की अनुपस्थिति के समय में यह वली फ़क़ीह द्वारा मोहक़्क़क़ होगा।[२१]
विलायते फ़कीह की नियुक्ति या निर्वाचन
विलायते फ़क़ीह के सिद्धांत के समर्थक इसकी वैधता (मशरूईयत) के बारे में असहमत हैं। उनमें से कुछ विलायते फ़क़ीह के निर्वाचन और कुछ इसको नियुक्ति मानते है:
विलायते फ़क़ीह की नियुक्ति
इस दृष्टिकोण के अनुसार, राजनीतिक मामलों में न्यायविदों के अधिकार की वैधता का कारण यह है कि इमामों ने धार्मिक और सामाजिक मामलों और समाज के राजनीतिक प्रबंधन को न्यायविदों के लिए आवंटित किया है और इसमे जनता के वोट और वसीयत की कोई हैसीयत नही है।[२२] इमाम खुमैनी[२३] अब्दुल्लाह जवादी आमोली, मुहम्मद मोमिन क़ुमी और मुहम्मद तक़ी मिस्बाह यज़्दी इस सिद्धांत के समर्थक हैं।[२४]
फ़क़ीह की सम्पूर्ण विलायत
विलायते फ़क़ीह को नियुक्ति समझने वालो में से कुछ, फ़क़ीह के लिए सम्पूर्ण विलायत में विश्वास करते है; अर्थात उनका मानना है कि न्यायविद् के पास सरकार और राजनीति के मामलों में इस्लाम के पैगंबर (स) और मासूम इमामों के सभी अधिकार हैं; क्योंकि लक्ष्य शरई अहकाम को लागू करना है और इस संदर्भ में, शासक के बीच कोई मतभेद उचित नहीं है।[२५] इसके अलावा, मानव कानूनों की वैधता भी वली फ़क़ीह के प्रवर्तन के अधीन है, और कानून वली फ़क़ीह को सीमित नहीं कर सकता है और वली फ़क़ीह के आदेश कानून के भीतर आते हैं।[२६]
ऐसा कहा जाता है कि इमाम ख़ुमैनी ने पहली बार यह दृष्टिकोण पेश किया था।[२७]
विलायते फ़क़ीह का निर्वाचन
इस दृष्टिकोण के अनुसार जनता के वोट विलायते फ़क़ीह की वैधता के कारण के आधार पर आवश्यक सझते है अर्थात, वह शासक वैध है जो फ़क़ीह, न्यायप्रिय (आदिल), समय के प्रति जागरूक, प्रबंधक एवं साधन संपन्न होने के अलावा सभी अथवा अधिकांश जनता उसे नेता के रूप में निर्वाचित किया हो।[२८] इस दृष्टिकोण के आधार पर फ़क़ीह के लिए सम्पूर्ण विलायत साबित नही होती है।[२९] शहीद बहिश्ती, शहीद मुताहरी, हुसैन अली मुंतज़री और नेमातुल्लाह सालेह नजफाबादी इस सिद्धांत के समर्थकों में से हैं।[३०]
विरोधी
शेख अंसारी, आख़ूंद खोरासानी,[३१] मिर्ज़ाए नाइनी और आयतुल्लाह ख़ूई[३२] की विलायते फ़क़ीह के सिंद्धातं के विरोधियों में गणना की जाती हैं।[३३] शेख अंसारी के फतवे के अनुसार, ग़ैबत काल मे फ़तवा देना और न्याय करने की जिम्मेदारी फ़क़ीह का कर्तव्य हैं,[३४] लेकिन जनता के धन और जीवन पर अधिकार पैगंबर (स) और इमामों के लिए विशेष है।[३५]
उन्होने विलायते फ़क़ीह पर पेश किए जाने वाले तर्को जैसे मक़बूला ए उमर बिन हंज़ला और इमाम ज़मान (अ) की तौक़ीअ के हवालो को सही नही समझा है।[३६] उनके अनुसार, ये हदीसें केवल फ़कीह का लोगो के लिए शरई अहकाम बयान करने की जिम्मेदारी बयान करती है तथा ख़ुम्स एंवम ज़कात जैसे मुद्दो पर फ़क़ीह की विलायत होने पर दलालत नही करती है।[३७]
कलामी या फ़िक़्ही मुद्दा
कुछ का मानना है कि विलायते फ़क़ीह एक कलामी मुद्दा (मस्अला) है, और अन्य इसके फ़िक्ही मुद्दा होने पर जोर देते हैं।[३८] जवादी आमोली विलायते फ़क़ीह को दानिशे कलाम से संबंधित मानते हैं। उनका तर्क यह है कि धर्मशास्त्र (कलाम) का विषय ईश्वर की क्रिया (अल्लाह तआला का फेल) है और विलायते फ़क़ीह ईश्वर की क्रिया से संबंधित है; क्योंकि ईश्वर ने यह निर्धारित किया है कि अनुपस्थिति समाज पर फ़क़ीह की विलायत होगी।[३९] दूसरी ओर हुसैन अली मुंतज़री का मानना है कि विलायते फ़क़ीह की चर्चा फ़िक़्ह से संबंधित है इसीलिए बहुत से फ़ुक़्हा ने इसे फ़िक्ही किताबो मे उल्लेख किया है।[४०]
ईरान में विलायते फ़क़ीह
ईरान मे 1979 ई की इस्लामी क्रांति के बाद विलायते फ़क़ीह को इस्लामी गणतंत्र ईरान के संविधान में सम्मिलित किया गया। इस कानून के अनुच्छेद 57 में कहा गया है: "इस्लामी गणराज्य ईरान में सत्तारूढ़ हाकिम कार्यालय, न्यायालय, विधायी शक्ति, कार्यकारी शक्ति विलायते मुतलेक़ा अम्र और इमामत के जडेरे साया क़ानून के अनुसार अमल करेंगे।"[४१]
इस्लामी गणतंत्र ईरान में इमाम खुमैनी और उनके बाद आयतुल्लाह ख़ामेनई विलायते फ़क़ीह के पद के प्रभारी हैं।[४२]
मोनोग्राफ़ी
काज़िम उस्तादी ने अपनी पुस्तक "किताब शनासी हुकूमत व विलायते फ़क़ीह" में विलायते फ़क़ीह और इस्लामी सरकार के बारे मे 700 से अधिक किताबो का उल्लेख किया है जिनमे से अधिकांश इस्लामी क्रांति के बाद लिखी गई है।[४३] इस विषय पर कुछ सबसे महत्वपूर्ण कार्य निम्मलिखित हैं:
- विलायते फकीह: इमाम ख़ुमैनी का हौज़ा ए इल्मीया नजफ़ मे विलायते फ़क़ीह के संबंध मे दिए गए दुरूस का संग्रह है। यह किताब 1349 हिजरी मे सबसे पहले बैरुत से प्रकाशित हुई।
- देरासातुन फ़ी विलायत अल-फ़क़ीह व फ़िक़्ह अल-दौलत अल इस्लामीया: हुसैन अली मुंतज़री के शोध और दूरुस पर आधारित है और इस विषय पर लिखी जाने वाली महत्वपूर्ण पुस्तको मे से एक है। इस पुस्तक को नेज़ाम अल हकम फ़िल इस्लाम नाम से संक्षिप्त रूप दिया गया है और महमूद सलवाती और अबुल फ़ज़्ल शकूरी ने मबानी ए फ़िक़्ह हुकूमते इस्लामी के नाम से फ़ारसी भाषा मे अनुवाद किया है।
- विलायते फ़क़ीह, विलायते फ़क़ाहत वा अदालत: अब्दुल्लाह जवादी आमोली द्वारा लिखित।
- विलायते फ़क़ीह हुकूमते सालेहान: नेमतुल्लाह सालेही नजफ़ाबादी की रचना।
- अल-विलायातुल इलाहीयातुल इस्लामीया औ अल-हुकुमतिल इस्लामीया ज़म्ने हुज़ूर अल-मासूम वा ज़म्निल ग़ैबा: मुहम्मद मोमिन क़ुमी द्वारा तीन खंडों में संकलित है।
- विलायते फ़क़ीह दर हुकूमते इस्लाम: अल्लामा तेहरानी के दुरूस का संग्रह है जिसे उनके कुछ छात्रों द्वारा 4 खंडों में संकलित किया गया है।
संबंधित लेख
फ़ुटनोट
- ↑ देखेः शेख अंसारी, मकासिब, 1415 हिजरी, भाग 3, पेज 545
- ↑ देखेः मुंतज़री, देरासात फ़ी विलायत अल फ़क़ीह, 1409 हिजरी, भाग 1, पेज 11; जवादी आमोली, विलायते फ़क़ीह, 1378 शम्सी, पेज 129
- ↑ फ़ीरही, नेज़ामे सियासी वा दौलत दर इस्लाम, 1386 शम्सी, पेज 242-243
- ↑ कदीवर, नज़रयेहाए दौलत दर फ़िक़ह शिया, 1378 शम्सी, पेज 17
- ↑ देखेः नराक़ी, अवाइद अल अय्याम, 1417 हिजरी, पेज 529
- ↑ मुफ़ीद, अल मुक़्नेआ, 1413 हिजरी, पेज 810
- ↑ जाफ़रयान, दीन व सियासत दर दौरा ए सफ़वी, 1370 शम्सी, पेज 32, पेज 312
- ↑ काशिफ़ अल ग़ेता, कश्फ़ अल ग़ेता, 1422 हिजरी, भाग 1, पेज 207; फ़ीरही, क़ुदरते दानिश मशरूईयत दर इस्लाम, 1394 शम्सी, पेज 313
- ↑ देखेः नजफी, जवाहिर अल कलाम, 1404 हिजरी, भाग 21, पेज 395-396 भाग 22, पेज 155, 195
- ↑ मुंतज़री, मबानी फ़िक्ही हुकूमते इस्लामी, 1409 हिजरी, भाग 1, पेज 47-48
- ↑ अली मुहम्मदी, सैरे तहव्वुल अंदीशा ए विलायते फ़क़ीह दर फ़िक़्ह सियासी शिया, 1378 शम्सी, पेज 263-272
- ↑ कदीवर, नज़रयेहाए दौलत दर फ़िक़्ह शिया, 1378 शम्सी, पेज 21-22
- ↑ कदीवर, नज़रयेहाए दौलत दर फ़िक़्ह शिया, 1378 शम्सी, पेज 24
- ↑ देखेः इमाम ख़ुमैनी, विलायते फ़क़ीह, 1421 हिजरी, पेज 1
- ↑ मुनतज़री, निज़ामे अल हकम फ़िल इस्लाम, 1385 शम्सी, पेज 143, 146; जवादी आमोली, विलायते फ़क़ीह, 1378 शम्सी, पेज 150; कदीवर, हुकूमत विलाई, 1378 शम्सी, पेज 389-392
- ↑ कुलैनी, अल काफ़ी, 1378 शम्सी, भाग 1, पेज 169
- ↑ इमाम ख़ुमैनी, किताब अल बैय, 1421 हिजरी, भाग 2, पेज 638-642
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- ↑ देखेः इमाम ख़ुमैनी, किताब अल बैय, 1421 हिजरी, भाग 2, पेज 635; इमाम ख़ुमैनी, विलायते फ़क़ीह, 1374 शम्सी, पेज 78-82
- ↑ देखेः जवादी आमोली, विलायते फ़क़ीह, 1378 शम्सी, पेज 151
- ↑ नराक़ी, अवाइद अल अय्याम, पेज 185; इमाम ख़ुमैनी, किताब अल बैय, 1421 हिजरी, भाग 2, पेज 622
- ↑ कदीवर, नज़रयेहाए दौलत दर फ़िक़्ह शिया, 1378 शम्सी, पेज 107
- ↑ फ़ीरही, फ़िक़्ह व सियासत दर ईरान मआसिर, 1393 शम्सी, भाग 2, पेज 424
- ↑ इमाम ख़ुमैनी, किताब अल बैय, 1421 हिजरी, भाग 2, 426
- ↑ इमाम ख़ुमैनी, सहीफ़ा इमाम, 1378 शम्सी, भाग 1, पेज 17
- ↑ कदीवर, नज़रयेहाए दौलत दर फ़िक़्ह शिया, 1378 शम्सी, पेज 24
- ↑ मुंतज़री, निज़ाम अल हकम फ़िल इस्लाम, 1385 शम्सी, पेज 166-169; सालेही नज़फाबादी, विलायते फ़क़ीह, 1378 शम्सी, पेज 68-72
- ↑ मुताहरी, पैरामून ए जमहूरी इस्लाम, 1368 शम्सी, पेज 149-156; मुंतज़री, निज़ाम अल हकम फ़िल इस्लाम, 1385 शम्सी, पेज 214-224
- ↑ फ़ीरही, फ़िक़्ह व सियासत दर ईरान मआसिर, 1393 शम्सी, भाग 2, पेज 380; कदीवर, नज़रयेहाए दौलत दर फ़िक्ह शिया, 1378 शम्सी, पेज 141
- ↑ कदीवर, नज़रयेहाए दौलत दर फ़िक्ह शिया, 1378 शम्सी, पेज 36
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- ↑ क़ानूने असासी जमहूरी इस्लामी ईरान, वेबगाह मरकज़ पुज़ूहिशहाए मजलिस शूरा ए इस्लामी, तारीख वीजीट 3 शहरीवर 1398 शम्सी
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स्रोत
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- फ़ीरही, दाऊद, शिया वा डेमेक्रेसी मशवरती दर ईरान, मजल्ला दानिशकदे हुकूक़ वा उलूम सियासी दानिशगाह तेहरान, क्रमांक 67, 1384 शम्सी
- फ़ीरही, दाऊद, फ़िक़्ह वा सियासत दर ईरान मआसिर, तेहरान, नशर नय, 1393 शम्सी
- फ़ीरही, दाऊद, कुदरते दानिशे मशरूईयत दर इस्लाम, तेहरान, नशर नय, 1396 शम्सी
- फ़ीरही, दाऊद, नेज़ामे सियासी वा दौलत दर इस्लाम, तेहारन, इंतेशारत सम्त, 1386 शम्सी
- क़ानूने असासी जमहूरी ए इस्लामी ए ईरान, वेबगाह मरकज़ पुज़ूहिशहाए मजलिसे शूरा ए इस्लामी, तारीख वीजीट 3 शहरीवर 1398 शम्सी
- काशिफ़ अल ग़ेता, जाफ़र बिन ख़िज़्र, कश्फ अल ग़ेता अन मुबहेमात अल शरीया अल ग़रा, क़ुम, इंतेशारात इस्लामी, 1422 हिजरी
- कदीवर, मोहसिन, हुकूमते विलाई, तेहरान, नशरे नय, 1378 शम्सी
- कदीवर, मोहसिन, नज़रयेहाए दौलत दर फ़िक़्ह शिया, तेहरान, नशरे नय, 1378 शम्सी
- कुलैनी, मुहम्मद बिन याक़ूब, अल काफ़ी, तेहारन, दार उल कुतुब उल इस्लामीया, 1407 हिजरी
- गुलपाएगानी, सय्यद मुहम्मद रज़ा, अल हिदायतो इला मन लहू अल विलायत, बे तक़रीरः अहमद साबेरी हमादानी, क़ुम, दफ़तरे नशरे नवैद इस्लाम, 1377 शम्सी
- मुताहरी, मुर्तुजा, पैरामूनन जमहूरी ए इस्लामी, तेहरान, नशर सदरा, 1368 शम्सी
- मुंतज़री, हुसैन अली, बदर अल ज़वाहिर फ़ी सलवात अल जुमअते वल मुसाफिर, तक़रीर अबहास सय्यद मुहम्मद हुसैन बुरूजर्दी, क़ुम, दफ़तरे आयुतल्लाहिल उज़्मा मुंतज़री, 1416 हिजरी
- मुंतज़री, हुसैन अली, मबानी ए फ़िक्ही हुकूमते इस्लामी, अनुवादकः महमूद सलवाती, अबुल फ़ज़्ल शकूरी, तेहरान, कैहान, 1367 शम्सी
- मुंतज़री, हुसैन अली, नेज़ाम अल हकम फ़िल इस्लाम, तेहरान, नशर सराई, 1385 शम्सी
- मोमिन क़ुमी, मुहम्मद, जाएगाह अहकाम हुकूमती वा इख़्तियारात वली फ़क़ीह, क़ुम, नशरे मआरिफ, 1393 शम्सी
- नजफ़ी, मुहम्मद हसन, जवाहिर अल कलाम, बैरूत, दार अल एहया अल तुरास अल अरबी, 1404 हिजरी
- नराक़ी, अहमद बिन मुहम्मद महदी, अवाइद अल अय्याम, क़ुम, इंतेशारात इस्लामी, 1417 हिजरी
- विलायती, अली अकबर, ख़ामेनई, आयतुल्लाह सय्यद अली, दाएरातुल मआरिफ़ बुज़ुर्ग इस्लामी, भाग 21, तेहरान, मरकज़े दाएरतुल मआरिफ़ बुज़ुर्ग इस्लामी, पहला संस्करण 1392 शम्सी