सामग्री पर जाएँ

इमाम महदी (अ) की ग़ैबत

wikishia से
(इमाम ज़मान (अ) की ग़ैबत से अनुप्रेषित)
शिया मान्यताएँ
धर्मशास्र
ईश्वर का प्रमाणतौहीदपरमेश्वर के नाम और गुणईश्वरीय न्यायक़ज़ा और क़द्र
नबूवत
अम्बिया की इस्मतनबूवत का अंतविशेष नबूवतमोजेज़ाक़ुरआनरहस्योद्घाटन (वही)इस्लाम
इमामत
इमामइमामों की इमामतअहल अल-बैत (अ) की श्रेष्ठताइस्मते आइम्माविलायतग़ैबतमहदवीयत
मआद
मृत्युबरज़ख़शारीरिक मौतस्वर्गनरक
अन्य उत्कृष्ट मान्यताएँ
अहले बैत (अ)तक़य्याविलायते फ़क़ीहतवस्सुलशफ़ाअतक़ुरआन का अविरुपणज़ियारतरज्अत


इमाम महदी (अ) की ग़ैबत (अरबीःغيبة الإمام المهدي) बारह इमामो को मानने वाले शियों की विशेष मान्यताओं में से एक है, जो शियों के बारहवें इमाम, इमाम महदी (अ) के गुप्त जीवन को संदर्भित करती है।

शियों के अनुसार इमाम महदी (अ) के दो गुप्त काल हैं: एक लघुप्तकाल (ग़ैबते सुग़रा) जो 69 वर्षों तक चला और दूसरा दीर्घुप्तकाल (ग़ैबते कुबरा) जो उनके पुनः प्रकट (ज़हूर) होने के समय तक जारी रहेगा। शियों के अनुसार, इमाम महदी (अ) लघुप्तकाल के समय नुव्वाबे अरबआ कहने जाने वाले लोगों के माध्यम से शियों के संपर्क में थे। लेकिन दीर्घुप्तकाल मे इमाम का लोगों के साथ स्पष्ट संचार कट गया है, और शिया धार्मिक मामलों के लिए हदीस के वर्णनकर्ताओं और शिया विद्वानों की ओर रुख करते है। हालाकि शिया रिवायतों मे ग़ैबत के दौरान इमाम की तुलना बादल के पीछे सूरज से की जाती है, और लोग हमेशा उसके अस्तित्व का लाभ उठाते हैं। शिया इमामों की रिवायतों में ग़ैबत की वजह के बारे में कुछ बातें बताई गई हैं, जिनमें से एक शियों की परीक्षा भी है।

शिया विद्वानों ने ग़ैबत के मुद्दे को बयान करने के लिए कई किताबें लिखी हैं, जिनमें से सबसे प्रसिद्ध ग़ैबते नोमानी और शेख़ तूसी की किताब अल ग़ैबा हैं।

परिभाषा

बारहवें इमाम की ग़ैबत सुन्नियों के विरुद्ध शियों की विशेष मान्यता है। शियों की मान्यता मे, ग़ैबत का तात्पर्य शियों के बारहवें इमाम, हज़रत महदी (अ) का गुप्त जीवन है।[] शियों का मानना है कि इमाम महदी (अ) ईश्वर के आदेश से ज़हूर के समय तक –जिसका समय ज्ञात नही है- ग़ैबत मे रहेंगे।[]

ग़ैबत की परिस्थिति

बारहवें इमाम की ग़ैबत के बारे में निम्नलिखित संभावनाएँ बताई गई हैं:

  1. शरीर का छिपाना (अदृश्यता): हज़रत महदी (अ) का शरीर लोगों की दृश्य दृष्टि से छिपा हुआ है और यह छिपाव चमत्कार के माध्यम से होता है।[] इस दृष्टिकोण के अनुसार, शियों के 12वें इमाम लोगों को देखते हैं, परन्तु लोग उन्हे नहीं देख पाते। सय्यद मुहम्मद सद्र के अनुसार, यह सिद्धांत उनके छिपने और उत्पीड़कों से मुक्ति के बारे में सबसे सरल स्वीकार्य सिद्धांत है।[] सद्र उपरोक्त अवधारणा की तुलना शब्दकोष और रिवायतों के शाब्दिक अर्थ से भी करते हैं जो इमाम महदी (अ) की तुलना एक बादल के पीछे सूरज से करते हैं।[] जिसे समान माना जाता है।[]
  2. शीर्षक को छुपाना (अज्ञात): सय्यद रज़ा सद्र के अनुसार, ग़ैबत का अर्थ यह नहीं है कि बारहवें इमाम किसी पहाड़, गुफ़ा या किसी अन्य स्थान पर छिपे हुए हैं, बल्कि यह है कि वह लोगों के लिए अज्ञात हैं।[]
  3. शरीर और शीर्षक को छिपाना: कुछ मामलों में 12वें इमाम के शरीर को लोगों की नज़रों से छिपाया गया है और कुछ मामलों में इमाम लोगों को दिखाई तो देते है लेकिन लोग उन्हे पहचान नही पाते। शिया मरज ए तक़लीद साफ़ी गुलपायगानी का मानना है कि हदीसों और इमाम महदी (अ) से मिलने वाले लोगों की कहानियों के आधार पर, यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि ग़ैबत दोनों रूपों (गायब होने और गुमनामी) में होती है, लेकिन कभी-कभी दोनों रूप एक ही समय में होते हैं।[]

लघुप्तकाल और दीर्घुप्तकाल

इमाम महदी (अ) की ग़ैबत को दो अवधियों में विभाजित किया गया है; अल्पकालिक अवधि अर्थात लघुप्तकाल (ग़ैबते सुग़रा) कहा जाता है, तथा लंबी अवधि अर्थात दीर्घुप्तकाल (ग़ैबते कुबरा) कहा जाता है। शेख मुफ़ीद ने इन दो गुप्त कालो को ग़ैबते क़ुसरा वा ग़ैबते तूला के नाम से उल्लेख किया है।[] इमाम ज़मान (अ) ने अपने अंतिम विशेष प्रतिनिधि अली बिन मुहम्मद समरी को उनकी मृत्यु से छह दिन पहले लिखे एक पत्र में ग़ैबते कुबरा को ग़ैबत अल ताम्मा के रूप में संदर्भित किया और इसकी व्याख्या एक ऐसे गुप्त काल (ग़ैबत) के रूप में की जिसमें ईश्वर की अनुमति जारी होने तक जह़ूर नही होगा।[१०]

लघुप्तकाल

मुख्य लेख: लघुप्तकाल

लघुप्तकाल बारहवें इमाम के गुप्त जीवन का पहला चरण है, जो 329 हिजरी में समाप्त हुआ। लघुप्तकाल की शुरुआत का समय विवाद के आधार पर 69 या 74 वर्षों तक चला। शिया विद्वानों के एक समूह, जैसे शेख मुफ़ीद (मृत्यु 413 हिजरी) ने अपनी पुस्तक अल-इरशाद[११] में और तबरसी (मृत्यु 548 हिजरी) ने अपनी पुस्तक आलाम अल वरा में लघुप्तकाल की अवधि को 74 वर्ष और इसकी शुरुआत 255 हिजरी (इमाम महदी (अ) के जन्म का वर्ष) माना है।[१२] हालांकि, एक दूसरे समूह लघुप्तकाल की शुरूआत 260 हिजरी (इमाम हसन अस्करी (अ) की शहादत और इमाम महदी (अ) की इमामत की शुरुआत का वर्ष) मानता है जोकि 69 वर्षों तक चली।[१३]

ग़ैबत के दौरान इमाम महदी (अ) नुव्वाबे अरबआ के माध्यम से शियों के संपर्क में थे।[१४] शियों ने नुव्वाब के माध्यम से इमाम महदी (अ) को अपने पत्र और अनुरोध भेजते और इन्ही माध्यम से उनके उत्तर प्राप्त करते थे।[१५] अब्बासी ख़िलाफ़त प्रणाली में शिया बुजुर्गों का प्रभाव, ग़ुलात के ख़िलाफ़ लड़ाई, प्रतिनिधित्व और वकालत के झूठे दावेदारी को नुव्वाब की गतिविधियों में सूचीबद्ध किया गया है।[१६]

दीर्घुप्तकाल

मुख्य लेख: दीर्घुप्तकाल और जन प्रतिनिधित्व

दीर्घुप्तकाल (ग़ैबते कुबरा) इमाम महदी (अ) के गुप्त जीवन का दूसरा चरण है, जो 329 हिजरी में इमाम महदी (अ) के चौथे विशेष प्रतिनिधि अली बिन मुहम्मद समरी की मृत्यु के साथ शुरू हुआ और इमाम महदी (अ) के ज़हूर तक जारी रहेगा। इस अवधि के दौरान इमाम महदी (अ) का शियोंं के साथ कोई स्पष्ट संबंध नहीं है, और उन्होंने किसी विशिष्ट व्यक्ति को अपने प्रतिनिधि के रूप में नामित नहीं किया है। हालाँकि, शियों के अनुसार, हदीस के वर्णनकर्ताओ और शिया विद्वान इस अवधि में जन प्रतिनिधि हैं। इमाम महदी (अ) की तौक़ीअ मे इस्हाक़ बिन याकूब को दिए गए संदेश के अनुसार, शियों को नए उभरते मुद्दों में हदीस के वर्णनकर्ताओं (शिया फ़ुक़्हा) की ओर रूख करना चाहिए।[१७] हालांकि लीर्घुप्तकाल की अवधि के दौरान न्यायविदों के अधिकार क्षेत्र के बारे में मतभेद है।[१८] इमाम खुमैनी ने इस तौक़ीअ का उल्लेख करते हुए कहा कि ग़ैबत काल के दौरान, इस्लामी समाज के सभी मामलों को न्यायविदों को सौंपा जाना चाहिए।[१९]

लघुप्तकाल (ग़ैबते सुग़रा) और दीर्घुप्तकाल (ग़ैबते कुबरा) के बीच का अंतर चार प्रतिनिधियों और संचार मध्यस्थों की उपस्थिति है जो लघुप्तकाल के दौरान इमाम महदी (अ) के संदेशों को संप्रेषित करने के लिए जिम्मेदार थे, और लघुप्तकाल के बाद बारहवें इमाम का आम जनता के साथ बाहरी संचार पूर्ण रूप से कट गया है।[२०]

गुप्त काल की शुरुआत में शिया समुदाय की स्थिति

इमाम हसन अस्करी (अ) के समय में यह ज्ञात था कि शिया उनके बेटे के आंदोलन की प्रतीक्षा कर रहे थे।[२१] इस कारण से अब्बासी ख़लीफ़ा इमाम हसन अस्करी (अ) के बेटे की तलाश में थे इमाम अस्करी (अ) ने अपने बेटे का केवल अपने कुछ करीबी सहाबीयो और रिश्तेदारों से ही परिचय कराया था[२२], इस कारण से, अधिकांश शियो को उनकी शहादत के दौरान इमाम अस्करी के बेटे के अस्तित्व के बारे में पता नहीं था।[२३] दूसरी ओर इमाम अस्करी (अ) ने राजनीतिक परिस्थितियो के कारण अपनी वसीयत में केवल अपनी माँ का उल्लेख किया, और इससे कुछ शियों को विश्वास हो गया कि इमाम अस्करी की माँ उनकी शहादत के बाद पहले दो वर्षों में उनका प्रतिनिधत्व करते हुए इमाम के रूप में कार्य कर रही थीं।[२४]

इमाम अस्करी (अ) की शहादत के बाद, उस्मान बिन सईद अमरी (मृत्यु 260 और 267 हिजरी के बीच) के नेतृत्व में उनके कुछ साथियों ने शिया समुदाय को घोषणा की कि इमाम अस्करी अपने पीछे एक बेटा छोड़ गए हैं जो अब उनका उत्तराधिकारी और इमाम है।[२५] हालाँकि इमाम अस्करी के भाई जाफ़र ने इमाम अस्करी (अ) की माँ के जीवित रहते हुए इमाम अस्करी (अ) का वारिस होने का दावा किया,[२६] इमाम अस्करी (अ) की माँ और उनकी फ़ूफी हकीमा इमाम अस्करी (अ) के बेटे की इमामत का समर्थन करती थी लेकिन इमाम हसन अस्करी (अ) की बहन अपने भाई जाफ़र की इमामत का समर्थन करती थी।[२७] इसके अलावा, नौबख्त परिवार ने उस्मान बिन सईद और उनके बेटे को इमाम महदी (अ) के उत्तराधिकारी के रूप में मान्यता दी थी।[२८] इस स्थिति के कारण कुछ शिया भटक गए।[२९] कुछ लोग अन्य शिया संप्रदायों में शामिल हो गए।[३०] कुछ समूह इमाम अस्करी (अ) के स्वर्गवास को नकारते हुए उन्हें महदी मानते थे, एक समूह ने इमाम अली नक़ी (अ) के बेटे सय्यद मुहम्मद की इमामत को स्वीकार कर लिया और इमाम अस्करी की इमामत से इनकार कर दिया।[३१] और एक समूह ने जाफ़रे कज़्ज़ाब को इमाम के रूप में मान्यता दी गई[३२], लेकिन अंततः अधिकांश शियों ने इमाम महदी (अ) की इमामत को स्वीकारा और इस आंदोलन ने बाद में शिया इमामी का मुख्य नेतृत्व ग्रहण किया।[३३]

फ़लसफ़ा और ग़ैबत का कारण

शिया शोधकर्ताओं के अनुसार, ग़ैबत के सभी रहस्य और कारण हमारे लिए स्पष्ट नहीं हैं; जैसा कि कुछ हदीसों में, इमाम की ग़ैबत का मुख्य ज्ञान ईश्वर के रहस्यों में से एक माना जाता है, जो उनके ज़हूर होने के बाद ज़ाहिर होगा।[३४] हालाँकि हदीसों में कई विषयो पर जोर दिया गया है:

  • हज़रत महदी (अ) के जीवन का संरक्षण[३५]
  • लोगों की परीक्षा[३६] इमाम मूसा बिन जाफ़र (अ) की एक रिवायत में है कि ईश्वर ग़ैबत के माध्यम से अपने बंदों की परीक्षा लेता है।[३७] कुछ हदीसों के अनुसार, ग़ैबत के दिनों में इम्तिहान अल्लाह के सबसे कठिन इम्तिहानों में से एक है।[३८] और यह दो तरह से कठिन है:
  1. ग़ैबत के लंबा होने से लोगों के संदेह करने का कारण है लोगों का एक समूह इमाम महदी (अ) के जन्म पर और कुछ लोग इमाम महदी (अ) लंबी आयु पर संदेह करते हैं। केवल परखे हुए, सच्चे और गहरे जानकार लोग ही आप (अ) की इमामत पर आस्था और विश्वास पर कायम रहते हैं।[३९]
  2. ग़ैबल काल मे होने वाली कठिनाइयाँ और दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएँ लोगों को बदल देती हैं, जिससे धर्म में विश्वास और दृढ़ता बनाए रखना मुश्किल हो जाता है और लोगों का विश्वास गंभीर खतरों के संपर्क में आ जाता है।[४०]
  • अपने ज़हूर के समय तक किसी भी अत्याचारी के प्रति निष्ठा की प्रतिज्ञा नहीं करेंगे[४१] कुछ आख्यानों के अनुसार, बारहवें इमाम तकय्या के कारण भी किसी भी अत्याचारी सरकार को मान्यता नहीं देंगे। किसी शासक या सुल्तान के आदेश के सामने तक़य्या करने का हुक्म नही दिया गया और किसी भी अत्याचारी और उत्पीड़क के शासन से प्रभावित नही होंगे, और परमेश्वर के धर्म के आदेशो को मिन वा अन (जैसा है वैसा ही) बिनी किसी पर्दापोशी और भय अथवा संरक्षता के बिना लागू करेंगे।[४२]
  • मनुष्य का अनुशासन[४३]
  • इस्लाम के वैश्वीकरण के लिए राजनीतिक और सामाजिक पृष्ठभूमि का अभाव।

अतीत में कुछ पैगंबरों के बारे में ग़ैबत का मुद्दा मौजूद रहा है।[४४] क़ुरआन की आयतों के अनुसार, कई पैगंबर, जैसे सालेह, यूनुस,[४५] मूसा,[४६] ईसा और हजरत ख़िज़्र (अ) अपनी उम्मत की परीक्षा जैसे कारणों से लोगों की आंखों से छुप गए। कुछ हदीसों मे पैगंबरों की ग़ैबत का उल्लेख एक दैवीय परंपरा (इलाही सुन्नत) के रूप में किया गया है जो क़ौमो के बीच प्रसारित हो रही है।[४७] शेख़ तूसी के अनुसार, ग़ैबत मे लोगों ने भी भूमिका निभाई है। अपने व्यवहार से और इमाम को डराकर और उनके लिए असुरक्षा पैदा करके और उनके अधीन न होकर, लोगों ग़ैबत के लिए जमीन तैयार की और खुद को इमाम की कृपा और उनके साथ आमने-सामने संपर्क से वंचित कर दिया।[४८] शिया फ़लास्फ़र और मुताकल्लिम ख्वाजा नसीरुद्दीन तूसी ने भी अपनी किताब तजरीदुल एतेक़ाद मे इमाम की ग़ैबत का ज़िम्मेदार लोगो को ठहराया है।[४९]

ग़ैबत के बारे में लिखित कार्य

इमाम महदी (अ) की ग़ैबत से संबंधित कई किताबें लिखी गई हैं। 342 हिजरी मे नोमानी द्वारा लिखित अल-ग़ैबा, शेख़ सदूक़ (मृत्यु 381 हिजरी) द्वारा लिखित कमालुद्दीन, शेख़ तूसी द्वारा लिखित अल-ग़ैबा जैसी पुस्तकें इस विषय पर सबसे पुराने कार्यों में से हैं। [५०] इस विषय पर लिखी जाने वाली दूसरी किताबे निम्नलिखत हैः

  • The Qccultation of the Twelfth Imam, A Historical द ऑकल्टेशन ऑफ द ट्वेल्थ इमाम, ए हिस्टोरिकल बैकग्राउंड नामक पुस्तक जासिम हुसैन द्वारा लिखी गई है। इस पुस्तक में, लेखक महदीवाद को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य की, साथ ही ग़ैबते सुग़रा के दौरान वकील संगठन के इतिहास और इसकी भूमिका की भी चर्चा की है। मुहम्मद तकी आयतुल्लाही ने तारीखे सियासी ग़ैबते इमामे दवाज़दहुम शीर्षक से इसका फ़ारसी में अनुवाद किया है।
  • अरबआ रिसालात फ़िल ग़ैबा: शेख मुफ़ीद की रचना है इसमें इमाम महदी (अ) के बारे में सवाल और जवाब के रूप में चार ग्रंथ शामिल हैं, चौथे ग्रंथ में इमाम महदी (अ) की ग़ैबत के कारण की जांच की गई है।
  • अल फ़ुसूल अल अश्रा फ़िल ग़ैबा या अल मसाइल अल अश्रा फ़िल ग़ैबा शेख मुफ़ीद द्वारा लिखित है, जिसमे इमाम महदी (अ) की ग़ैबत के बारे में दस संदेहों का उत्तर दिया है।
  • मोसआ अल-इमाम अल-महदी, महदवियत के विषय पर चार खंडों का संग्रह है, जिसे इराक के शिया विद्वान सय्यद मुहम्मद सद्र (मृत्यु 1377 शम्सी) ने संकलित किया है। इस कार्य के पहले खंड को तारिख अल-ग़ैबा अल-सुग़रा और दूसरे खंड को तारिख अल-ग़ैबा अल-कुबरा कहा जाता है। अन्य दो खंड ग़ैबत के बाद की अवधि से संबंधित हैं।

संबंधति लेख

फ़ुटनोट

  1. नोमानी, अल-ग़ैबा, 1397 हिजरी, पेज 61; शेख तूसी, अल-ग़ैबा, 1411 हिजरी, पेज 164
  2. शेख मुफ़ीद, अल इरशाद, 1426 हिजरी, भाग 2, पेज 340
  3. साफ़ी गुलपाएगानी, पासोख दह पुरसिश, 1375 शम्सी, पेज 71; सद्र, तारीख अल ग़ैबा अल कुबरा, 1412 हिजरी, पेज 31-32
  4. सद्र, तारीख अल ग़ैबा अल कुबरा, 1412 हिजरी, पेज 31-32
  5. सलीमयान, दर्सनामे महदवीयत, 1388 शम्सी, पेज 39
  6. सद्र, तारीख अल ग़ैबा अल कुबरा, 1412 हिजरी, पेज 31-32
  7. सद्र, राहे महदी (अ), 1378 शम्सी, पेज 78
  8. साफ़ी गुलपाएगानी, पासोख दह पुरसिश, 1375 शम्सी, पेज 70
  9. शेख मुफ़ीद, अल इरशाद, 1426 हिजरी, पेज 340
  10. शेख तूसी, अल ग़ैबा, 1411 हिजरी, पेज 395
  11. शेख मुफ़ीद, अल इरशाद, 1426 हिजरी, पेज 340
  12. तबरसी, आलाम अल वरा बेएलाम अल हुदा, 1417 हिजरी, भाग 2, पेज 259-260
  13. सद्र, तारीख अल ग़ैबा अल सुग़रा, 1412 हिजरी, पेज 339-342
  14. शेख तूसी, अल ग़ैबा, 1411 हिजरी, पेज 173-174
  15. ग़फ़्फ़ार ज़ादे, ज़िदगानी नुव्वाबे खास इमाम ज़मान, 1379 शम्सी, पेज 86-87
  16. जब्बारी, बर रसी तत्बीक़ी साज़मान दावत अब्बासीयान व साज़मान वकालत इमामिया (मराहिल शक्लगीरी वा अवामिल पैदाइश), पेज 75-104; शेख तूसी, अल ग़ैबा, 1411 हिजरी, पेज 109, 225-226
  17. शेख सदूक़, कमालुद्दीन, 1395 हिजरी, भाग 2, पेज 484
  18. फ़ाजिल लंकरानी, मशरूईयते वा ज़रूरत इजराए हुदूद इस्लामी दर ज़माने ग़ैबत, 1430 हिजरी, पेज 10
  19. देखेः इमाम ख़ुमैनी, किताब अल बैय, 1421 हिजरी, भाग 2, पेज 635
  20. सद्र, तारीख अल ग़ैबा अल सुग़रा, 1412 हिजरी, पेज 341-345
  21. शेख मुफ़ीद, अल इरशाद, 1426 हिजरी, भाग 2, पेज 336
  22. हुसैन, तारीख सियासी ग़ैबत इमाम दवाजदहुम, 1377 शम्सी, पेज 102
  23. नौबख़्ती, फ़ेरक़ अल शिया, 1355 हिजरी, पेज 105; शेख मुफ़ीद, अल इरशाद, 1426 हिजरी, भाग 22, पेज 336
  24. शेख सदूक़, कमालुद्दीन, 1395 हिजरी, भाग 2, पेज 507
  25. शेख सदूक़, कमालुद्दीन, 1395 हिजरी, पेज 92-93
  26. शेख मुफ़ीद, अल इरशाद, 1426 हिजरी, पेज 345
  27. मुदर्रेसी तबातबाई, मकतब दर फ़रआयंद तकामुल, 1388 शम्सी, पेज 161-162
  28. मुदर्रेसी तबातबाई, मकतब दर फ़रआयंद तकामुल, 1388 शम्सी, पेज 162
  29. शेख सदूक़, कमालुद्दीन, 1395 हिजरी, भाग 2, पेज 426, 429, 487
  30. शेख सदूक़, कमालुद्दीन, 1395 हिजरी, भाग 2, पेज 408
  31. साबेरी, तारीख फ़ेरक इस्लामी, 1390 शम्सी, भाग 2, पेज 197, फ़ुटनोट 2
  32. नौबख़्ती, फ़ेरक़ अल शिया, 1355 हिजरी, पेज 107-109; अशअरी क़ुमी, अल मक़ालात वल फेरक़, पेज 110-114; शेख सदूक़, कमालुद्दीन, 1395 हिजरी, भाग 2, पेज 408
  33. सय्यद मुर्तुज़ा, अल फ़ुसूल अल मुख्तारेह, 1413 हिजरी, पेज 321
  34. शेख सदूक़, कमालुद्दीन, 1395 हिजरी, भाग 2, पेज 282
  35. नोमानी, अल ग़ैबा, 1397 हिजरी, पेज 177 शेख तूसी, अल ग़ैबा, 1411 हिजरी, पेज 334
  36. नोमानी, अल ग़ैबा, 1397 हिजरी, पेज 177; शेख तूसी, अल ग़ैबा, 1411 हिजरी, पेज 339
  37. शेख तूसी, अल ग़ैबा, 1411 हिजरी, पेज 204
  38. शेख तूसी, अल ग़ैबा, 1411 हिजरी, पेज 203-207
  39. फ़ैज काशानी, फसल 1, बाब 8, पेज 101
  40. शेख तूसी, अल ग़ैबा, 1411 हिजरी, पेज 202
  41. नोमानी, अल ग़ैबा, 1397 हिजरी, पेज 171, 191; शेख तूसी, अल ग़ैबा, 1411 हिजरी, पेज 292
  42. शेख सदूक़, कमालुद्दीन, 1395 हिजरी, भाग 2, पेज 480
  43. नोमानी, अल ग़ैबा, 1397 हिजरी, पेज 141
  44. सलीमीयान, दरसनामा महदवीयत, 1388 शम्सी, पेज 41
  45. सूर ए अंबिया, आयत न 87
  46. सूर ए बकरा, आयत न 51
  47. शेख सदूक़, कमालुद्दीन, 1395 हिजरी, भाग 1, पेज 323
  48. शेख तूसी, अल ग़ैबा, 1411 हिजरी, भाग 1, पेज 7
  49. तूसी, तजरीद अल ऐतेक़ाद, 1407 हिजरी, पेज 221
  50. तबातबाई, तारीख हदीस शिया, 1395, पेज 38-39

स्रोत

  • इब्ने शहर आशोब, मुहम्मद बिन अली, मनाक़िब आले अबी तालिब (अ), क़ुम, अल्लामा, 1379 शम्सी
  • अरबेली, अली बिन ईसा, कश्फ अल ग़ुम्मा फ़ी मारफतिल आइम्मा, तहक़ीक सयय्द हाशिम रसूली महल्लाती, बैरूत, 1401 हिजरी
  • अशअरी क़ुमी, साद बिन अब्दुल्लाह, अल मक़ालात वल फ़ेरक़, तहक़ीक़ मुहम्मद जवाद मशकूर, तेहरान, इंतेशारत इल्मी व फ़रहंगी, 1361 शम्सी
  • इमाम ख़ुमैनी, सय्यद रूहुल्लाह, किताब अल बैय, क़ुम, इंतेशारात इसमाईलीयान, 1363 शम्सी
  • हसन जादे आमोली, हसन, नहज अल विलाया, बर रसी मुस्तनद दर शनाखत इमाम जमान (अ), क़ुम, नशरे क़याम
  • हुसैन, जासिम, तारीख सियासी ग़ैबत इमामे दवाजदहुम, अनुवाद सय्यद मुहम्मद तक़ी आयतुल्लाही, तेहरान, अमीर-कबीर, 1377 शम्सी
  • सलीमीयान, ख़ुदामुराद, दरस नामे महदवीयत (2), हजरत महदी वा दौरान ग़ैबत, क़ुम, बुनयाद फ़रहंगी हजरत महदी मौऊद, 1388 शम्सी
  • सयय्द मुर्तुज़ा, अली बिन हुसैन, अल फ़ुसूल अल मुख्तारे मिनल ओयून वल महासिन, क़ुम, अल मोअतमेरा अल आलमी लेअलफ़िया अल शेख अल मुफ़ीद, 1413 हिजरी
  • शेख सदूक़, मुहम्मद बिन अली, कमालुद्दीन वा तमाम अल नेमा, तेहरान, दार अल कुतुब अल इस्लामीया, 1395 हिजरी
  • शेख तूसी, मुहम्मद बिन हसन, अल ग़ैबा, तस्हीह एबादुल्लाह तेहरानी वा अली अहमद नासेह, क़ुम, दार अल मआरिफ़ अल इस्लामीया, 1411 हिजरी
  • शेख मुफ़ीद, मुहम्मद बिन मुहम्मद बिन नौमान, अल इरशाद फ़ी मारफ़ते हुज्जिल्लाह अलल एबाद, क़ुम, मोहिब्बीन, 1426 हिजरी
  • साबरी, हुसैन, तारीख फ़ेरक़ इस्लामी, तेहरान, साज़मान मुतालेआ वा तदवीन कुतुब उलूम इंसानी दानिशगाहा, 1390 शम्सी
  • साफ़ी गुलपाएगानी, लुत्फ़ुल्लाह, पासोख दह पुरसिश, क़ुम, मोअस्सेसा इंतेशारात हज़रत मासूमा (स), 1417 हिजरी
  • सद्र, सय्यद रज़ा, राहे महदी (अ), बे एहतेमाम सय्यद बाक़िर ख़ुसरोशाही, क़ुम, बूस्ताने किताब, 1378 शम्सी
  • सद्र, सय्यद मुहम्मद, तारीख अल ग़ैबा अल सुग़रा, बैरूत, दार अल तआरुफ, 1412 हिजरी
  • सद्र, सय्यद मुहम्मद, तारीख अल ग़ैबा अल कुबरा, अज़ मजमूआ ए मोसूआ अल इमाम अल महदी (अ). बैरूत, दार अल तारूफॉ, 1412 हिजरी
  • तबातबाई, सय्यद मुहम्मद काज़िम, तारीखे हदीसे शिया, अस्रे ग़ैबत, क़ुम, दार उल हदीस, 1395 हिजरी
  • तबरसी, फ़ज़्ल बिन हसन, एलाम अल वरा वेआलाम अल हुदा, क़ुम, मोअस्सेसा आले अल बैत ले एहया अल तुरास, 1417 हिजरी
  • तूसी, ख्वाजा नसीरुद्दीन, तजरीद अल एतेकाद, तस्हीह मुहम्मद जवाद हुसैनी जलाली, तेहरान, मकतब अल आलाम अल इस्लामी, 1407 हिजरी
  • फ़ाज़िल लंकरानी, मुहम्मद जवाद, मशरूईयत वा ज़रूरत इजरा ए हुदूद इस्लामी दर ज़माने ग़ैबत, क़ुम, मरकज फ़िक्ही आइम्मा अत्हार, 1430 हिजरी
  • मुदर्रेसी तबातबाई, सय्यद हुसैन, मकतब दर फरआयंद कतामुल, नज़री बर ततव्वुरे मबानी ए फ़िकरी तशय्यो दर सह कर्बन नुख़ुस्तीन, अनुवाद हाशिम ईज्दपनाह, तेहरान, कवीर, 1388 शम्सी
  • नौमानी, मुहम्मद बिन इब्राहीम, अल ग़ैबा, तैहरान, नशरे सदूक़, 1397 शम्सी
  • नौबख्ती, हसन बिन मूसा, फ़ेरक अल शिया, तस्हीह मुहम्मद सादिक़ आले बहर उल उलूम, नजफ़, अल मकतब अल मुर्रतज़वीया, 1355 हिजरी
  • याक़ूत हमवी, मोजम अल ओदबा, बैरूत, दार अल फ़िक्र, 1400 हिजरी