ख़्वाजा नसीरुद्दीन तूसी

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ख़्वाजा नसीरुद्दीन तूसी
पूरा नाममुहम्मद बिन मुहम्मद बिन हसन तूसी
उपनामउस्तादुल बशर, अक़्ले हादी अशर
जन्म तिथि11 जमादी अल अव्वल वर्ष 597 हिजरी
जन्म स्थानतूस
मृत्यु तिथि18 ज़िल हिज्जा वर्ष 672 हिजरी
समाधि स्थलइराक़, काज़मैन
संकलनअसासुल इक़्तेबास, तजरीदुल एतेक़ाद, शरहे एशारात, क़वाएदुल अक़ाएद, तहरीरे उसूल अक़्लीदस


ख़्वाजा नसीर अल-दीन तूसी (अरबी: الخواجة نصير الدين الطوسي) (597-672 हिजरी) 7वीं हिजरी शताब्दी के एक शिया दार्शनिक और धर्मशास्त्री हैं। ख्वाजा नसीर नैतिकता, तर्कशास्त्र, दर्शनशास्त्र, धर्मशास्त्र, गणित और खगोल विज्ञान में कई पुस्तकों और ग्रंथों के लेखक हैं। अख़लाक़े नासेरी, औसाफ़ अल-अशराफ़, असास अल-इक़तेबास, शरह अल-इशारात, तजरीदुल-ऐतेक़ाद, जामे अल-हिसाब और ज़ैज इल्ख़ानी की प्रसिद्ध पुस्तक और खगोल विज्ञान में तज़केरा फ़ी इल्म अल-हैयत उनकी कुछ सबसे महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध किताबें हैं। इसी तरह से उन्होंने मरागे़ वेधशाला और उसके साथ 400,000 से अधिक पुस्तकों के मरागे़ पुस्तकालय का भी निर्माण किया।

नसीर अल-दीन तूसी को दर्शन शास्त्र के पुनरुत्थानवादी और शिया दर्शन में दार्शनिक पद्धति के प्रर्वतक के रूप में जाना जाता है। कुछ महान शिया विद्वान जो उनके छात्र थे, उनमें अल्लामा हिल्ली, इब्ने मीसम बहरानी और कुतुबुद्दीन शिराज़ी शामिल हैं।

जीवनी

मुहम्मद बिन मुहम्मद बिन हसन, जिन्हें ख्वाजा नसीर अल-दीन तूसी के नाम से जाना जाता है, का जन्म तूस में 11 जमादी अल अव्वल 597 हिजरी को हुआ था।[१] उन्होंने बचपन में पवित्र क़ुरआन, व्याकरण, वाक्यविन्यास और शिष्टाचार सीखा। फिर, अपने पिता के मार्गदर्शन में, उन्होंने कमाल अल-दीन मुहम्मद[नोट १] से गणित की मूल बातें सीखीं। उन्होंने अपने पिता और दादा से न्यायशास्त्र और हदीस का ज्ञान भी सीखा, जो उस युग के न्यायविदों और हदीस शास्त्र के विद्वानों में से थे।[२] उनके अन्य शिक्षक में उनके मामा नूर अल-दीन अली बिन मुहम्मद शिया थे, जिन्होंने उन्हें तर्क और ज्ञान सिखाया।[३]

अपने पिता की मृत्यु के बाद, तूसी तूस से नैशापुर गए, जो उस समय विद्वानों और छात्रों के लिए एक गढ़ था।[४]उन्होंने अबू अली सीना की दर्शन शास्त्र की पुस्तक एशारात को फ़रीद अल-दीन दामाद[नोट २] और चिकित्सा में उनकी पुस्तक कानून को कुतुब अल-दीन मसरी से पढ़ा[५] और सिराज अल-दीन क़मरी, अबुल सआदत एस्फहानी और अन्य के पाठों में भाग लिया। [उद्धरण वांछित] इसी तरह से उन्होंने इस शहर में फ़रीद अल-दीन अत्तार से भी मुलाकात की।[६] वह कमालुद्दीन बिन यूनुस मूसली के भी शिष्य रहे, जो अधिकांश विज्ञानों, विशेषकर गणित में माहिर थे। उन्होने महान इमामी न्यायशास्त्रिय सालिम बिन बदरान माज़नी मिसरी से, इब्ने ज़ोहरा की न्यायशास्त्र के सिद्धांतों पर आधारित किताब अल-ग़ुनियह के कुछ हिस्से भी पढ़े।[७]

इस्माइलियों के क़िले में उपस्थिति

ख्वाजा नसीर अल-दीन तूसी, ईरान पर मंगोलों के हमले और अशांति विशेष रूप से खुरासान क्षेत्र में, के बाद कुछ समय के लिए अलग-अलग शहरों में भटकते रहे, यहां तक कि वह इस्माइलियों के क़िलो के शासक नासिर अल-दीन के निमंत्रण पर क़हिस्तान चले गए।[८] और वहाँ उन्होने, नासिर अल-दीन के अनुरोध पर, अबू अली मस्कावैह राज़ी की किताबों तहज़िब अल-अख़लाक़ और ततहीर अल-आअराक़ का फ़ारसी में अनुवाद किया, इसमें कुछ चीज़ों को इज़ाफ़ा किया और नासिर अल-दीन के नाम से उसका नाम अख़लाक़े नासिरी रखा। इस पुस्तक के लेखन की तिथि 630 से 632 हिजरी थी।[९] वहां उन्होंने अल-रिसाला अल-मुईनिया के नाम से इल्मे हैयत पर एक पुस्तक भी लिखी, जिसका नाम नासिर अल दीन के बेटे मोईन अल-दीन के नाम पर रखा गया।[१०] इस्माइलियों के क़िले एकमात्र प्रतिरोध बल थे जो मंगोलों के हमलों को रोकने में सक्षम माने जाते थे। ऐसी स्थिति में जहां खुरासान और नैशापुर शहर पूरी तरह से मंगोलों के हाथों में आ गए थे, इन क़िलों ने कई वर्षों तक विरोध किया और मंगोलों के सामने आत्मसमर्पण नहीं किया।[११]

इस्माइलियों के नेता अलादीन मुहम्मद ने नासिर अल-दीन के पास ख्वाजा नसीर तूसी की मौजूदगी की ख़बर मिलने के बाद ख्वाजा नसीर को अपने पास बुलाया और वह नासिर अल-दीन के साथ मैमुन देज़ के क़िले में गए। इस्माइलियों के रहबर ने उनका विशेष स्वागत किया। ख्वाजा नासिर अल-दीन तूसी अलामुत के किले में उनके साथ तब तक रहे जब तक कि अला अल-दीन मुहम्मद के बेटे रुकन अल-दीन ने दूसरे मंगोल हमले में उनके सामने आत्मसमर्पण नहीं कर दिया।[१२]

कुछ इतिहासकारों का मानना ​​है कि ख्वाजा नासिर की उपस्थिति और इस्माइली महलों में उनका रहना स्वैच्छिक नहीं था, बल्कि उन्हें ऐसा करने के लिए मजबूर किया गया था;[१३] हालांकि, मसमरा अल-अख़बार में आक़ सराय का मानना ​​है कि ख्वाजा तूसी को इस्माइलियों के यहां पूर्ण वेज़ारत प्राप्त थी और ऐसा मुकाम हासिल था कि उन्होंने उन्हें ख्वाजा कायनात की उपाधि दी।[१४] जो लोग मानते हैं कि ख्वाजा नसीर तूसी को इस्माइलियों के सामने पेश होने के लिए मजबूर किया गया था और उन्हें उनके महल में कैद कर दिया गया था, वह शरहे इशारात के अंत में उनके शिकवे जैसे बयान का उल्लेख करते हैं। जिसमें उन्होंने अपने समय और जीवन की स्थिति के बारे में शिकायत की है।[१५]

ख्वाजा तूसी और हलाकू ख़ान

ख्वाजा नसीर, हलाकू की कमान के तहत मंगोलों के दूसरे हमले और इस्माइली किले के आत्मसमर्पण के बाद, हलाकू के दरबार में दाखिल हुए।[१६] सय्यद मोहसिन अमीन के अनुसार, ख्वाजा तूसी अपने लिये कुछ चुनने की शक्ति के बिना हलाकू के साथ हो गए, और ऐसी स्थिति में जहां आक्रमणकारी सेना के खिलाफ़ प्रतिरोध, न तो लोगों से और न ही सरकार से संभव था, उन्होंने इस्लामी विरासत की रक्षा करने की कोशिश की जो विनाश के ख़तरे में थी और यह उनके कार्यों के कारण था कि अंततः कुछ समय बाद मंगोलों ने इस्लाम धर्म अपना लिया।[१७] ख्वाजा तूसी 655 हिजरी में बग़दाद पर विनाशकारी हमले में उनके साथ थे।[१८]

मराग़ा वेधशाला और पुस्तकालय की स्थापना

ख्वाजा नसीर अल-दीन तूसी ने हलाकू द्वारा बग़दाद पर विजय प्राप्त करने के बाद हलाकू को एक वेधशाला के निर्माण का सुझाव दिया। इस औचित्य के साथ कि वह खगोल विज्ञान में अपने ज्ञान के अनुसार, सितारों के अवलोकन की सहायता से सुल्तान को भविष्य की घटनाओं, अपने जीवन काल और पीढ़ी के बारे में सूचित कर सकते हैं।[१९] यह प्रस्ताव हलाकू को पसंद आया और इसका निर्माण 657 हिजरी में शुरू हुआ[२०] सय्यद मोहसिन अमीन के अनुसार, ख्वाजा नसीर ने मराग़ह वेधशाला उस समय के वैज्ञानिकों की एक बड़ी संख्या को इकट्ठा करने के लिए एक जगह थी और इस तरह उन्हें मारे जाने से मुक्त कर दिया, और बड़ी संख्या में पुस्तकों को इकट्ठा करने का भी एक बड़ा प्रयास किया और उन्होंने उन्हें संरक्षित किया।[२१] वेधशाला का निर्माण ख़्वाजा के जीवन का अंत तक चला, और इस वेधशाला से प्राप्त ज़ैज को इल्खानी ज़ैज कहा जाता था।[२२][नोट ३]

ख्वाजा नसीर ने मराग़ा वेधशाला में एक बड़ा पुस्तकालय भी बनवाया, और बग़दाद, दमिश्क़, मूसल और खुरासान से लूटी गई कई उत्तम और उपयोगी पुस्तकें हलाकू के आदेश से इसमें स्थानांतरित कर दी गईं। खुद ख़्वाजा ने भी आसपास के शहरों में एजेंटों को भेजा कि वे जहां भी वैज्ञानिक किताबें पाएं उन्हें ख़रीद कर उनके पास भेजें, और ख़ुद उन्हे भी जहां भी उन्हें कोई उपयोगी और उत्तम किताब मिलती और इसी तरह अपनी यात्रा के दौरान उन्हें कोई नफ़ीस किताब मिलती, तो वे उसे ख़रीद लेंते।[२३] कुछ इतिहासकारों के अनुसार मराग़ा पुस्तकालय में लगभग 4 लाख पुस्तकें एकत्रित हो गई थीं।[२४] मराग़ा वेधशाला के पुस्तकालय में चीनी, मंगोलियाई, संस्कृत, असीरियन और अरबी की कई प्रकार की पुस्तकों का फारसी में अनुवाद किया गया और विज्ञान के छात्रों और वेधशाला के वैज्ञानिकों को उपलब्ध कराई जाती थीं। यह वेधशाला वास्तव में एक वैज्ञानिक केंद्र था जहां गणित, खगोल विज्ञान और प्राकृतिक विज्ञान जैसे समय के विभिन्न विज्ञानों पर शोध और शिक्षा दी जाती थी।[२५]

वफ़ात

ख्वाजा नसीर की मृत्यु 18 ज़िल हिज्जा 672 हिजरी को उस समय हुई थी जब वह औक़ाफ़ के बंदोबस्त और विद्वानों के मामलों को व्यवस्थित करने के लिए बग़दाद में थे। उनकी इच्छा के अनुसार, उन्हें काज़मैन के रौज़े में दफ़नाया गया था।[२६]उन्होंने यह भी वसीयत की कि उनकी क़ब्र पर उनके वैज्ञानिक गुणों का कोई उल्लेख नहीं होना चाहिए, और केवल शब्द "वा कलबोहुम बासितुन, ज़ेराऐह बिलवसीत"[२७]उनकी समाधि के पत्थर पर लिखा होना चाहिए।[२८]

मज़हब

इस बात के बहुत से प्रमाण हैं कि ख्वाजा नासिर अल-दीन तुसी एक इसना अशरी शिया हैं; उदाहरण के लिए, तजरीद अल-ऐतेक़ाद जैसी अपनी अधिकांश धार्मिक पुस्तकों में, उन्होंने बारह इमामों और उनकी अचूकता (मासूम होने) के वाजिब होने का उल्लेख किया है। [२९] उन्होंने इस विषय पर विशेष ग्रंथ भी लिखे, जिसमें रिसाला "अल-फ़िरक़ा अल-नाजिया" और रिसाला "फ़ी हसरिल हक़ बे मक़ाला अल-इमामिया", रिसाला "अल-अथनी अल-अशरीया" और "रिसाला फी अल-इमामा" का उल्लेख किया जा सकता है। [३०] हालांकि, उनके कार्यों की सूची में, ऐसी किताबें और ग्रंथ मौजूद हैं जो इस्माइलियों की शिक्षाओं के अनुसार हैं। [स्रोत की जरूरत]

शिया विद्वानों ने अक्सर इन कार्यों के ख्वाजा की ओर संबंध दिये जाने के सिद्धांत को ही खारिज कर दिया है, लेकिन कुछ पश्चिमी शोधकर्ता और पश्चिमी इस्लामी विद्वान इस्माइलियों के बीच उनकी उपस्थिति के दौरान ख्वाजा में एक प्रकार के धार्मिक परिवर्तन में विश्वास करते हैं।[३१] कुछ इन कार्यों के आधार पर मानते हैं कि उन्होंने बाद में इस्माइली महलों में शरण लेते हुए, वह अस्थायी रूप से उनके धर्म में परिवर्तित हो गए और फिर शिया धर्म में लौट आए।[३२]

कुछ लेखकों का यह भी मानना ​​है कि तूसी, एक इसना अशरी शिया के रूप में, तक़य्या लागू किया और अपने जीवन को बचाने के लिए, वह इस्माइलियों के क़िले में अपनी किताबें और ग्रंथ लिखने में व्यस्त हो गये थे।[३३] अब्दुल्लाह नेअमा ने इस तथ्य को स्वीकार किया है कि जैसे ही इस्माइली महलों को नष्ट किया गया तूसी ने अपने इसना अशरी शिया होने की घोषणा की, और इस दृष्टिकोण की पुष्टि के रूप में लिया है।[३४]

बग़दाद की विजय में उपस्थिति

सुन्नी विद्वानों में से एक इब्ने तैमिया (661-728 हिजरी) ने दावा किया है कि ख्वाजा नासिर अल-दीन तूसी के आदेश से बग़दाद के ख़लीफा को मार दिया गया था।[३५] कुछ शोधकर्ताओं ने इब्ने तैमिया से पहले के स्रोतों में शोध किया और उनमें ऐसा कुछ नही होने के बाद इसे ग़लत और ख्वाजा पर तोहमत माना है और सुझाव दिया है कि इब्ने तैमिया के बाद के सूत्रों ने उनकी पैरवी करते हुए इस तरह की बातों का उल्लेख किया है।[३६]

कुछ शोधकर्ताओं का मानना ​​है कि मंगोलों द्वारा बग़दाद पर विजय के दौरान नासिर अल-दीन तूसी की उपस्थिति लोगों की लूटपाट और हत्याओं को कम करने में एक कारक थी, और उनके समर्थन से, बहुत से विद्वानों को मृत्यु से बचाया गया था।[३७]

इल्मी रुतबा

अल्लामा हिल्ली:

यह शेख़ (ख्वाजा नसीर) बौद्धिक विज्ञान में अपने समय में सबसे अच्छे थे और जिन लोगों को मैने देखा उनमें वह सबसे नैतिक (अख़लाक़ वाले) व्यक्ति थे।

लाहिजी, गौहरे मुराद, 2003, पृष्ठ 702।

ख्वाजा नसीर तूसी को विज्ञान में इब्ने सीना के बराबर माना गया है; इस अंतर के साथ कि अबू अली सीना ने चिकित्सा में और ख्वाजा नसीर ने गणित में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। [उद्धरण वांछित] कुछ लोगों का मानना ​​है कि ख्वाजा नसीर अल-दीन तूसी की पुस्तक "शरहे इशारात" में फ़ख़र राज़ी की आलोचनाओं के खिलाफ़ अबू अली सेना की ओर से देफ़ा ने उस युग में दर्शन शास्त्र के पुनरुद्धार का नेतृत्व किया है।[३८] इसी तरह से, ख्वाजा नसीर को शिया कलाम शास्त्र में दार्शनिक पद्धति का आविष्कारक माना गया है[३९] मुर्तज़ा मोतहहरी के अनुसार, ख्वाजा नसीर के बाद के सभी धर्मशास्त्रीय कार्य तजरीद अल-एतिकाद पुस्तक से प्रभावित हैं।[४०] कुछ समकालीन शोधों के अनुसार, ख्वाजा नसीर तूसी एक तरफ़ उनसे पहले के दार्शनिकों और वैज्ञानिकों का विस्तार करने वाले और उनके पूरक थे, और दूसरी ओर, वे अपने बाद के वैज्ञानिकों के लिए एक आदर्श बन गए हैं।[४१]

बहुत से मुस्लिम विद्वानों के साथ-साथ पश्चिमी इस्लामविदों ने उनकी प्रशंसा की है।[४२] ख्वाजा तूसी की विभिन्न व्याख्याएं उनकी वैज्ञानिक स्थिति का संकेत देती हैं। उनमें से कुछ यह हैं: सुल्तानुल मुहक़्क़ेक़ीन [४३] फ़ख़रुल उलमा व मुअय्येदुल फ़ुज़ला, नसीरुल मिल्लते वद दीन [४४] मुहक़्क़िक़ मुदक्क़िक़ तूसी और हकीम अज़ीम कुद्दूसी [४५] अफज़ल अल-मुतअख़्ख़ीरीन और अकमल अल-मुतक़द्देमीन।[४६]

छात्र

ख्वाजा नसीर तूसी के कुछ महान शिष्य निम्न लिखित हैं:

  • अल्लामा हिल्ली, महान शिया फ़क़ीह और धर्मशास्त्री (मृत्यु 726 हिजरी), ने ख्वाजा तूसी [४७] से ज्ञान (हिकमत) सीखा और कश्फ़ुल-मुराद शीर्षक के तहत ख्वाजा नसीर की किताब तजरीद अल-ऐतेक़ाद का विवरण लिखा। यह पुस्तक तजरीदुल एतेक़ाद के सबसे प्रसिद्ध विवरणों में से है।[४८]
  • इब्ने मीसम बहरानी, ​​नहज अल-बलाग़ा पर एक टिप्पणी के लेखक, एक हकीम, गणितज्ञ, धर्मशास्त्री और न्यायविद, जो हिकमत में ख्वाजा नसीर के छात्र और न्यायशास्त्र में उनके शिक्षक थे।[४९]
  • कुतुब अल-दीन शिराज़ी (मृत्यु 710 हिजरी), जब ख्वाजा हलाकू के साथ कज़वीन गए, तो वे ख्वाजा के साथ गए, उनके साथ मराग़े गए और विज्ञान, गणित, दर्शन और चिकित्सा में ख्वाजा नसीर के छात्र बन गए। ख्वाजा उन्हे कुतुब फलक अल-वुजुद कहते थे।[५०]
  • सय्यद रुकनुद्दीन (हसन बिन मुहम्मद बिन शरफ़ शाह अलवी) ख्वाजा के छात्रों में से एक थे और उन्होंने उनके कुछ कार्यों का विवरण लिखा है। [५१]
  • कमाल अल-दीन अब्द अल-रज्जाक शाबानी बग़दादी (642-723 हिजरी) को इब्न अल-फुवाती के नाम से जाना जाता है, जो 7वीं शताब्दी के इतिहासकारों में से एक हैं, और किताब "मोअजम अल-आदाब" और "अल-हवादिस अल जामेआ" उनके कार्यों में से हैं। वह मराग़े वेधशाला पुस्तकालय के लाइब्रेरियन थे और अपने जीवन के अंत में मुस्तनसरिया पुस्तकालय के लाइब्रेरियन थे।[५२]
  • इमाद अल-दीन हरबवी, जिन्हे इब्न अल-ख़्व्वाम (643-728 हिजरी) के रूप में जाना जाता है, अंकगणित और चिकित्सा में अपने समय के बड़े ज्ञानी थे, और "फ़वायदे बहाइया फ़ी क़वायदे हेसाबिया" और "मुक़द्देमई दर तिब" जैसी उनके द्नारा लिखी गईं किताबें उनकी यादगार है। [५३]

रचनाएं

मुख्य लेख: ख्वाजा नसीरुद्दीन तूसी की रचनाओं की सूची

ख्वाजा नसीर अल-दीन तूसी की वैज्ञानिक पुस्तकों और विभिन्न विषयों पर ग्रंथों को 184 से अधिक माना गया है।[५४] कुछ शोधकर्ताओं का मानना ​​है कि इस्माइली क़िलों में उनके जबरन जीवन के कारण, उनकी कई किताबें माली बदहाली के स्थिति में में लिखी गईं हैं। [स्रोत की जरूरत] ख्वाजा नसीर ने किताब इशारात पर टिप्पणी के प्रस्तावना में, उन्होने पुस्तक लिखते समय अपनी बड़ी पीड़ा और बढ़ती उदासी के बारे में लिखा है।[५५]

उनकी कुछ रचनाएँ:

  1. तजरीदुल एतेक़ाद: यह पुस्तक अपने लेखन के बाद से धर्मशास्त्र के क्षेत्र में शिया मदरसों (हौज़ ए इल्मिया) में पढ़ाई जाने वाली पुस्तकों में से एक रही है।[५६] इस पुस्तक में ख्वाजा नसीर ने धर्मशास्त्र को दर्शन शास्त्र के साथ मिश्रित किया है और धार्मिक मुद्दों को दार्शनिक तरीक़े से हल किया है। [५७]
  2. असासुल एक़तेबास: यह पुस्तक तर्क (मंतिक़) विषय पर और फ़ारसी भाषा में है।[५८] कुछ लोगों ने अबू अली सीना की पुस्तक शेफ़ा के तर्क (मंतिक़) खंड के बाद इस पुस्तक को इस विषय पर लिखी गई सबसे महत्वपूर्ण पुस्तक माना है।[५९]
  3. शरहे अलएशारात वत तंबीहात, बू अली सीना: यह किताब हिकमते मश्शा की पाठ्य पुस्तकों में से एक है।[६०]
  4. अख़लाक़े नासेरी: इब्न मस्कावैह द्वारा लिखित तहारा अल-आअराक़ पुस्तक पर इज़ाफ़ा और अनुवाद।[६१]
  5. आग़ाज़ व अंजाम: यह पुस्तक उत्पत्ति और पुनरुत्थान (मआद) के बारे में है, जिसमें पुनरुत्थान की स्थिति, स्वर्ग और नरक से संबंधित विषयों को इरफ़ानी तरीक़े से उठाया गया है।[६२]
  6. तहरीरे उसूले अक़लीदल: पुस्तक "उसूलुल हिंदसा वस हिसाब" एक ऐसी पुस्तक है जिसकी रचना यूक्लिड, एक प्रसिद्ध यूनानी गणितज्ञ और खगोलशास्त्री ने ईसा से लगभग तीन सौ साल पहले की थी और यह गणितज्ञों की पाठ्यपुस्तकों में से एक थी।[६३] ख़्वाजा ने इस किताब के पुराने अनुवादों और उनके बीच की तुलना करते हुए, उन्होंने इस काम को लिखा और इसका विवरण किया और इसमें अन्य रूपों और प्रस्तावों को जोड़ा।[६४]
  7. ज़ैज इल्खानी: एक पुस्तक जिसमें तारों आदि की स्थितियाँ और चाल, ​​जिनका अवलोकन करके जाना जाता है, दर्ज हैं।
  8. अल-तज़केरा फ़ी इल्म अल-हैयत: हाजी खलीफ़ा के अनुसार, यह पुस्तक इस विज्ञान की समस्याओं और इसके संबंधित प्रमाणों का सारांश है।[६५]

फ़ुटनोट

  1. नेअमा, फलासिफतुश शिया, 1987, पृष्ठ 535।
  2. अल-अमीन, अल-इस्माइलियून वल-मुग़ोल व नासिर अल-दीन अल-तूसी, 2005, पेज। 20-16।
  3. अल-अमीन, अल-इस्माइलियून वल-मुग़ोल व नासिर अल-दीन अल-तूसी, 2005, पेज। 20।
  4. # अमीन, आयान अल-शिया, 1986, खंड 9, पृष्ठ 415।
  5. नासिर अल-दीन तूसी, इल्खानी तेनसुख नामे, 1363, मुक़द्देम ए मोसह्हेह, पृष्ठ 15।
  6. अमीन, आयान अल-शिया, 1986, खंड 9, पृष्ठ 415।
  7. नसीरुद्दीन तूसी, इल्खानी तेनसुख नामे, 1363, पृष्ठ 16।
  8. नासिर अल-दीन तूसी, इल्खानी तनसुख नामे, 1363, पृष्ठ 17।
  9. मुद्रसी रज़वी, अहवाल व आसारे ख्वाजा नसीरुद्दीन, 1354, पृष्ठ 9।
  10. मुद्रसी रज़वी, अहवाल व आसारे ख्वाजा नसीरुद्दीन, 1354, पृष्ठ 9
  11. अमीन, आयान अल-शिया, 1986, खंड 9, पृष्ठ 415।
  12. अमीन, आयान अल-शिया, 1986, खंड 9, पृष्ठ 415।
  13. देखें: "ख्वाजा नासिर अल-दीन तूसी व नक़शे ऊ दर गुसतरिशेे तशय्यो व हिफ़्ज़े आसारे इस्लामी, पृष्ठ 71।
  14. आक़ सराय, मसामरा अल-अख़बार, 1362, पृष्ठ 47
  15. अमीन, आयान अल-शिया, 1986, खंड 9, पेज 415-416।
  16. अमीन, आयान अल-शिया, 1986, खंड 9, पेज 416।
  17. अमीन, अयान अल-शिया, 1986, खंड 9, पेज 416-417।
  18. नीमा, फ़लासिफतुश शिया, 1987, पृष्ठ 540।
  19. हसन ज़ादे आमोली, हज़ार व येक कलेमे, 2013, पृष्ठ 329
  20. इब्ने कसीर, अल-बिदाया वल-निहाया, 1997, खंड 17, पृष्ठ 387।
  21. अमीन, आयान अल-शिया, 1986, खंड 9, पीपी 416-417।
  22. अमीन, आयान अल-शिया, 1986, खंड 9, पृष्ठ 417।
  23. मुद्रसी रज़वी, अहवाल व आसारे ख्वाजा नसीरुद्दीन, 1354, पृष्ठ 50।
  24. कतबी, फ़ुवात अल-वफ़ायत, 1974, खंड 3, पेज 246-252; ज़िदान, तारीख अल-तमद्दुन अल-इस्लामी, 1914, खंड 3, पृष्ठ 214।
  25. अज़ेंद,"कार करदे दो सवय्या किताब ख़ाने दर दौरए मोग़ूलाने ईरान किताब आराई व किताब दारी, पृष्ठ 10।
  26. नेअमा, फ़लासिफ़तुश शिया: हयातोहुम व आराहुम, 1987, पृष्ठ 531; अमीन, आयान अल-शिया, 1986, खंड 9, पृष्ठ 418; बेशक, इब्ने कसीर ने अल-बिदाया वल-निहाया (अल-बिदाया वल-निहाया, 1997, खंड 17, पृष्ठ 514) में ज़िल-हिज्जा की 12वीं तारीख़ को उनकी मृत्यु का दिन लिखा है।
  27. अनुवाद: और उनके कुत्ते ने [गुफा की] दहलीज पर अपने दोनों हाथ फैलाए (सूर ए अल-कहफ़, आयत 18)।
  28. अज़ीज़ी, फ़ज़ायल व सीरए चहारदा मासूम (अ), दर आसारे उस्ताद अल्लामा हसन ज़ादे आमोली, 1381, पृष्ठ 402।
  29. तूसी, तजरीद अल-एतेक़ाद, 1407 हिजरी, पृष्ठ 293
  30. नेअमा, फ़लासिफ़तुश शिया, 1987, पृष्ठ 534।
  31. इज़दी और अहमद पनाह, "मज़हबे ख्वाजा नासिर अल-दीन तूसी व तासीरे आन बर तआमुले वय बा इस्माइलियाने नज़ारी", पेज.36।
  32. देखें: दफ़तरी, फरहाद, "नसिर अल-दिन तूसी व इस्माइलियाने दौरा अलमौत" दर मजमूआ ए मक़ालाते उस्ताद बिश्र, मरकज़े पजोहिशी ए मीरासे मकतूब, 2013।
  33. इज़दी और अहमद पनाह, "मज़हबे ख्वाजा नासिर अल-दीन तूसी व तासीरे आन बर तआमुले वय बा इस्माइलियाने नज़ारी", पेज.36
  34. नेअमा, फ़लासिफ़तुश शिया, 1987, पृष्ठ 535।
  35. इब्ने तैमिया, मिन्हाजुस सुन्नत, खंड 3, पेज. 445-446.
  36. सालेही और इदरीसी देखें, "ख्वाजा नासिर अल-दीन तुसी व फ़तहे बग़दाद", पीपी. 115-120
  37. मुद्रसी रज़वी, अहवाल व आसारे ख्वाजा नसीरुद्दीन, 1354, पृष्ठ 27।
  38. इब्राहिमी दीनानी, "सुखनरानी दर सराय अहले क़लम", पृष्ठ 11
  39. देखें: खोसरो पनाह, "ख्वाजा नसिर, मोअस्सिसे कलामे फ़लसफ़ी" और अल-आसिम और एमादी, "ख़्वाजा नसिर मुबतकिरे रविशे फ़लसफ़ी दर कलामे शिया"
  40. मोतह्हरी, अशनाई बा उलूमे इस्लामी, खंड 2, पी. 57।
  41. मासूमी हमदानी, उस्ताद बिश्र, 1391, पृष्ठ 12।
  42. देखें: फरहात, अंदीशा हाय फ़लसफ़ी व कलामी ख्वाजा नसीरुद्दीन तूसी, 1389, पृष्ठ 97।
  43. तेहरानी, ​​आग़ा बुजुर्ग, अल-ज़रिया इला तसनीफ अल-शिया, खंड 37, पृष्ठ 392।
  44. गंजूर वेबसाइट, रज़ा क़ुली खान हिदायत, रियाज़ अल-आरेफ़ीन तद्जकिरा https://गंजूर.नेट/rhedayat/riazolarefin/rowze2/sh95
  45. खुमैनी, रुहुल्लाह, शरहे अरबीने हदीस, खंड 1, पृष्ठ 271।
  46. खुमैनी, रूहुल्लाह, शरहे अरबाइन हदीस, खंड 1, पृष्ठ 661।
  47. मुद्रसी रज़वी, अहवाल व आसारे ख्वाजा नसीरुद्दीन, 1354, पृष्ठ 238।
  48. सदराई खोई, किताब शेनासी तजरीद अल-एतिकाद, 2013, पृष्ठ 35।
  49. ख़ुनसारी, रौज़ात अल-जन्नात, 1390 हिजरी, खंड 6, पृष्ठ 302।
  50. मद्रासी रज़ावी, अहवाल व आसारे ख्वाजा नसीरुद्दीन, 1354, पीपी. 241 और 242.
  51. मद्रासी रज़ावी, अहवाल व आसारे ख्वाजा नसीरुद्दीन, 1354, पीपी. 249
  52. मद्रासी रज़ावी, अहवाल व आसारे ख्वाजा नसीरुद्दीन, 1354, पीपी. 252 और 257.
  53. मुद्रसी रज़ावी, अहवाल व आसारे ख्वाजा नसीरुद्दीन, 1354, पीपी. 257 और 261.
  54. फराहत, अंदीशा हाय फ़लसफ़ी व कलामी नसीरुद्दीन तुसी, 2009, पी. 71.
  55. नसीर अल-दीन तूसी, शरहे एशारात, खंड 2, पृष्ठ 146।
  56. अल्लामा हिल्ली, कशफ अल-मुराद, मुकद्देम ए मोसह्हेह 1413 हिजरी, पृष्ठ.5
  57. नसीर अल-दीन तूसी, तजरीद अल-ऐतेक़ाद, मुक़द्देम ए मुहक़्क़िक़ 1407 हिजरी, पृष्ठ 71।
  58. मुद्रसी रज़वी, अहवाल व आसारे ख्वाजा नसीरुद्दीन, 1354, पृष्ठ 420।
  59. मुद्रसी रज़वी, अहवाल व आसारे ख्वाजा नसीरुद्दीन, 1354, पृष्ठ 420।
  60. अल्लामा हिल्ली, कशफ अल-मुराद, मुक़द्देम ए मुसह्हेह, 1413 हिजरी, पृष्ठ.5।
  61. मुद्रसी रज़वी, अहवाल व आसारे ख्वाजा नसीरुद्दीन, 1354, पृष्ठ 420।
  62. बख़्शे फ़लसफ़ा व कलामे दायरतुल मआरिफ़े बुज़ुर्गे इस्लामी, आग़ाज़ व अंजाम 440
  63. रमेज़ानी, आसार वा तालीफ़ाते अल्लामा हसनज़ादे आमोली, 1374, पृष्ठ 117।
  64. देखें: मुत्तक़ी, हुसैन, "किताब शेनासी हिंदसा अक़लीदक उसूले बा ताकीद बर तहरीरे ख्वाजा नासिर अल-दीन तूसी"
  65. विडमैन, एइलहार्ड, "ख्वाजा नसीरुद्दीन तूसी", 1391, पेज. 32

नोट

  1. कमालुद्दीन मोहम्मद हसीब गणित के प्रसिद्ध विद्वानों में से एक हैं और अफ़ज़लुद्दीन काशानी के छात्र हैं
  2. फरीदुद्दीन दामाद नैशापूरी, इमाम फख़रे राज़ी के छात्रों में से एक।
  3. अरबी शब्द ज़िग का अर्थ एक ऐसी पुस्तक है जिससे खगोलविद ग्रहों और तारों की स्थिति और गति का निर्धारण कर सकते हैं। और यह खगोल विज्ञान के सिद्धांतों और उस बोर्ड में भी एक वैज्ञानिक नाम है जिससे कैलेंडर निकला है। देहखोदा, शब्दकोश, जिज के अधीन

स्रोत

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