मृतकों से अपील

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यह लेख मृतकों से अपील (तवस्सुल) करने के बारे में है। तवस्सुल की अवधारणा के बारे में जानने के लिए, तवस्सुल वाला लेख पढ़े।

मृतकों से अपील (तवस्सुल) या मुर्दो से अपील (फ़ारसीःتوسل به مردگان) अर्थात धार्मिक हस्तीयो जैसे मासूम इमामो को उनके स्वर्गवास के पश्चात उनकी मध्यस्थता के माध्यम से जरूरतों को पूरा करने के लिए ईश्वर से अनुरोध करना। मृतकों से अपील करना मुसलमानों, विशेष रूप से शियो की मान्यताओं में से एक है, जो कि बरज़खी जीवन और मुर्दो में सुनने की क्षमता की स्वीकृति पर आधारित है।

शिया और सुन्नी स्रोतों में, अहले-बैत (अ) और कुछ सहाबा की ओर से पैगंबर (स) के स्वर्गवास के बाद उनसे अपील (तवस्सुल) करने से संबंधित विभिन्न रिवायते मौजूद हैं। वहाबी और इब्ने तैमीया मृतकों से अपील करना जायज़ या वैध नहीं मानते हैं।

मुस्लिम विद्वानों के अनुसार, जीवन और मृत्यु के दौरान दिव्य संतों (औलीया ए इलाही) से अपील करने में कोई अंतर नहीं है। जिस तरह पैगंबर (स) और भगवान के अन्य संतों के जीवनकाल के दौरान, उनसे प्रार्थना (दुआ) करने और मनुष्यों के लिए क्षमा मांगने के लिए कहा जा सकता है, उनके स्वर्गवास के बाद भी वही अनुरोध किया जा सकता है।

परिभाषा

मृतकों से अपील अर्थात धार्मिक हस्तीयो जैसे मासूम इमामो को उनके स्वर्गवास के पश्चात उनकी मध्यस्थता के माध्यम से जरूरतों को पूरा करने के लिए ईश्वर से अनुरोध करना।[१]

बरज़ख़ का जीवन और मृतको का सुन्ना

मृतकों से अपील करना उस समय स्वीकार्य है जब बरज़ख़ के जीवन और मृतको के सुन्नने में विश्वास रखता हो और जीवित लोगों के लिए बरज़ख की दुनिया में आत्माओं के साथ संवाद करने और मृतक जीवित लोगों की आवाज़ सुनने की क्षमता रखते हो।[२]

वैधता

यह भी देखें: तवस्सुल:

मृतकों से अपील की वैधता (मशरूइयत) के लिए, क़ुरआन की आयतें, अहले-बैत (अ) और मुसलमानों की जीवनी का हवाला दिया गया है:

क़ुरआनिक साक्ष्य

मृतकों से अपील की वैधता के लिए, सूर ए नेसा की आयत न 64 की व्यापकता का तर्क दिया गया है, जो विश्वासियों को पैगंबर (स) से उनके लिए क्षमा मांगने के लिए प्रोत्साहित करती है। इस व्यापकता में पैगंबर (स) के जीवन और मृत्यु का समय शामिल है।[३] इसके अलावा, सूर ए मायदा की आयत न 35 तवस्सुल को बिना किसी क़ैद के जायज़ मानती है, और उन्होंने इस आयत के उपयोग को बिना किसी क़ैद के यह कहने के लिए किया है कि मोमेनीन और नबियों की आत्माओं से तवस्सुल करना उनकी मृत्यु के बाद भी संभव है।[४]

शियो के इमामो की जीवनी

कुछ स्रोतों के अनुसार, पैगंबर (स) के स्वर्गवास पश्चात शियो के इमामों ने उनसे अपील की है। हज़रत अली (अ)[५] और इमाम हुसैन (अ) ने पैगंबर (स) से अपील की है।[६] इमाम सज्जाद (अ) ने भी चौदह इमामो के जीवनकाल मे और स्वर्गवास पश्चात अपील करने के बीच अंतर नहीं किया है।[७] [नोट १]

अहले-बैत (अ) से वर्णित दुआओ जैसे दुआ सरीअ अल इजाबा दर्शाती हैं कि बुजुर्गों से उनकी मृत्यु के बाद भी अपील की सिफारिश की गई है।[८]

सहाबा का व्यवहार

सुन्नी रेवाई स्रोतों में, कुछ सहाबा और मुसलमानों द्वारा पैगंबर (स) के स्वर्गवास पश्चात उनसे अपील करने की खबरें हैं। उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:

सुन्नीयो का दृष्टिकोण

अधिकांश सुन्नी विद्वान मृतकों से अपील करना जायज़ मानते हैं और उन्होंने धार्मिक हस्तीयो से अपील की है। जैसेः

  • चंद्र कैलेंडर की 10वीं शताब्दी के शाफ़ई विद्वान समहूदी ने "वफ़ा अल-वफ़ा बे अखबार दार अल-मुस्तफा" पुस्तक में पैगंबर (स) से अपील करके अपनी इच्छाएं प्राप्त करने वालों की रिपोर्ट दी है। उनका मानना है कि भगवान के सामने पैगंबर (स) से इस्तेग़ासा (प्रार्थना), शफ़ाअत और अपील करना पैगंबरों के कार्यों और धर्मियों के तरीकों में से एक है और हर समय चाहे सृष्टि से पहले या उसके बाद, चाहे सांसारिक जीवन में या बरज़ख मे किया जाता है।[१३]
  • अबू अली ख़ल्लाल ने कहा कि मुझे जब भी कोई समस्या होती थी, तो वह इमाम काज़िम (अ) की कब्र पर जाता था और उनसे तवस्सुल करता था और मेरी समस्या हल हो जाती थी।[१४] शाफ़ई से यह भी वर्णित है कि उन्होंने इमाम काज़िम (अ) की कब्र का "उपचार औषधि" के रूप में वर्णन किया है।[१५]
  • आलूसी अपनी तफसीर में, तवस्सुल के बारे में कुछ ऐतिहासिक रिपोर्टों और रिवायतो का वर्णन करने और लंबे समय तक उनका विश्लेषण करने के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि पैगंबर (स) से तवस्सुल करने में कोई बाधा नहीं है, चाहे वह जीवन के दौरान हो या पैगंबर (स) के स्वर्गवास पश्चात हो। आलूसी ने इस क्षेत्र में अपेक्षाकृत विस्तृत चर्चा के बाद स्वीकार किया कि ईश्वर की उपस्थिति में गैर-पैगंबर से अपील करने में कोई बाधा नहीं है, बशर्ते कि उसके लिए वास्तव में ईश्वर की निगाह में कोई पद हो।[१६]
  • उमर इब्ने खत्ताब द्वारा इब्ने अब्बास से बारिश के लिए दुआ करने के अनुरोध की कहानी सुनाने के बाद, अस्क़लानी ने स्वीकार किया कि अहले ख़ैर और अहले सलाह लोगो विशेषकर अहले-बैत (अ) को शफ़ीअ (सिफारिश करने वाला) क़रार देना मुस्तहब काम है।[१७]

वहाबीयो का दृष्टिकोण

वहाबी मृतकों से अपील करना जायज़ और वैध (मशरूअ) नहीं मानते। इब्ने तैमीया (जिनके विचारों को वहाबियों द्वारा वर्णन किया गया है) का मानना है कि पैगंबर (स) और धर्मी लोगों की प्रार्थनाओं का सहारा लेना केवल उनके जीवनकाल के दौरान वैध है, और उनकी मृत्यु के बाद उनका सहारा लेना शिर्क है।[१८]

उत्तर

तवस्सुल के समर्थकों के अनुसार, दिव्य संतों (औलीया ए इलाही) के जीवन और मृत्यु में तवस्सुल के बीच कोई अंतर नहीं है। जिस तरह पैगंबर (स) और ईश्वर के अन्य संतों के जीवनकाल के दौरान, उनसे लोगों के लिए प्रार्थना करने और क्षमा मांगने के लिए कहा जा सकता है, उनके जीवनकाल के बाद भी वही अनुरोध किया जा सकता है।[१९] इसी तरह इस संबंध मे सूर ए नेसा की आयत न 64 “ وَلَوْ أنَّهُمْ إذْ ظَلَمُوا أنْفُسَهُمْ جَاءُوک فَاسْتَغْفَرُوا اللهَ وَاسْتَغْفَرَ لَهُمُ الرَّسُولُ لَوَجَدُوا اللهَ تَوَّاباً رَحیماً वलौ अन्नहुम इज़ ज़लमू अंफ़ोसहुम जाउका फ़स्तग़फ़रुल्लाहा वस्तग़फ़रा लहोमुर रसूलो लवजदुल्लाहा तव्वाबन रहीमा” का हवाला दिया गया है, जिसमें पैगंबर (स) के जीवनकाल और उनके स्वर्गवास के बाद दोनों समय शामिल हैं।[२०] साथियों सहित मुसलमानों की जीवनी इस बात को दर्शाती है कि मृतको से अपील एक जायज़ कार्य है।[२१]


संबंधित लेख


फ़ुटनोट

  1. सुब्हानी, बोहूसे कुरआनीया फ़ी अल तौहीद वल शिरक, 1426 हिजरी, पेज 93
  2. सुब्हानी, बोहूसे कुरआनीया फ़ी अल तौहीद वल शिरक, 1426 हिजरी, पेज 111
  3. नौवी, अल मजमूआ, 1421 हिजरी, भाग 8, पेज 274
  4. देखेः मकारिम शिराज़ी, तफसीर नमूना, 1380 शम्सी, भाग 4, पेज 365
  5. देखेः नहज अल बलाग़ा, हिकमत 353, पेज 479
  6. इब्ने आसम कूफ़ी, अल फ़ुतूह, 1411 हिजरी, भाग 5, पेज 19
  7. मजलिसी, बिहार अल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 84, पेज 285
  8. कुलैनी, अल काफ़ी, 1362 शम्सी, भाग 2, पेज 583
  9. दारमी, सुनन अल दारमी, 1412 हिजरी, भाग 1, पेज 227
  10. सहमूदी, वफ़ा अल वफ़ा, 2006 ईस्वी, भाग 4, पेज 195
  11. सहमूदी, वफ़ा अल वफ़ा, 2006 ईस्वी, भाग 4, पेज 195
  12. सहमूदी, वफ़ा अल वफ़ा, 2006 ईस्वी, भाग 4, पेज 195
  13. सहमूदी, वफ़ा अल वफ़ा, 2006 ईस्वी, भाग 4, पेज 195
  14. बग़दादी, तारीखे बगदाद, 1417 हिजरी, भाग 1, पेज 133
  15. काबी, अल इमाम मूसा बिन अल काज़िम अलैहिस सलाम सीरा व तारीख, 1430 हिजरी, पेज 261
  16. आलूसी, रूह अल मआनी फ़ी तफसीर अल क़ुरआन अल अज़ीम, 1415 हिजरी, भाग 3, पेज 297
  17. अल अस्क़लानी, फ़त्ह अल बारी, 1397 हिजरी, भाग 2, पेज 497
  18. इब्न तैमीया, मजमूआ अल फ़तावा, 1416 हिजरी, भाग 1, पेज 159 https://shamela.ws/book/6919/17
  19. देखेः सहमूदी, वफ़ा अल वफ़ा, 2006 ईस्वी, भाग 4, पेज 196-197
  20. इब्न तैमीया, मजमूआ अल फ़तावा, 1416 हिजरी, भाग 1, पेज 159
  21. देखेः सहमूदी, वफ़ा अल वफ़ा, 2006 ईस्वी, भाग 4, पेज 195-197

नोट

  1. إنا نتوسل إلیک بمحمد صلواتک علیه وآله رسولک، و بعلی وصیه، و فاطمة ابنته، و بالحسن والحسین، وعلی و محمد و جعفر و موسی و علی و محمد وعلی والحسن والحجة علیهم‌السلام أهل بیت الرحمة इन्ना नतावस्सलो इलैका बे मुहम्मदिन सलवातोका अलैहे व आलेही रसूलका, व बे अलीयिन वसीयेही, व फ़ातेमता इब्नतेही, व बिल हसने वल हुसैने, व अलीइन व मोहम्मदिन व जाफ़रिन व मूसा व अलीयिन व मुहम्मदिन व अलीयिन वल हसने वल हुज्जते अलैहेमुस सलाम अहले-बैतिर रहमा (मजलिसी, बिहार अल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 84, पेज 168, 285)
  2. उस्मान बिन हनीफ़ ने उससे अनुरोध किया कि इस प्रकार पैगंबर (स) से अपील करोः اللّهمّ إنّی أسألک وأتوجّه إلیک بنبیک محمّد صلّی اللَّه علیه وسلّم نبی الرحمة، یا محمّد! إنّی أتوجّه بک إلی ربّی فتقضی لی حاجتی. अल्लाहुम्मा इन्नी अस्अलोका व अतावज्जहो इलैका बेनबीऐका मुहम्मदिन सललल्लाहो अलैहे व सल्लम नबीइर रहमा, या मुहम्मदो! इन्नी अतावज्जहो बेका इला रब्बी फ़तक़्ज़ी ली हाजती (तबरानी, अल मोजम अल कबीर, 1406 हिजरी, भाग 9, पेज 30)

स्रोत

  • आलूसी, सय्यद महमूद, रूह अल मआनी फ़ी तफसीर अल क़ुरआन अल अज़ीम, शोधः अली अब्दुल बारी अतया, बैरूत, दार अल कुतुब अल इल्मीया, भाग 1, 1415 हिजरी
  • इब्ने आसम कूफ़ी, अल फ़ुतूह, बैरूत, दार अल अज़वा, पहला संस्करण, 1411 हिजरी
  • इब्ने तैमीया, अहमद बिन अबदुल हलीम, मजमूआ अल फ़तावा, शोधः शेख अब्दुर रहमान बिन क़ासिम, अल मदीना अल नबावीया, मजमा अल मलिक फहद, ले तबाअतिल मुस्हफ़ अल शरीफ़, 1416 हिजरी
  • खतीब बगदादी, अहमद बिन अली, तारीख बगदाद, बैरूत, दार अल कुतुब अल इल्मीया, 1417 हिजरी
  • दारमी, अब्दुल्लाह बिन अब्दुर रहमान, सुनन अल दारमी, शोधः हुसैन सलीम असद अल दारानी, मल ममलेकत अल अरबीया अल सऊदीया, दार अल मुग़नी लिल नशर वल तौज़ीअ, पहला संस्करण, 1412 हिजरी
  • सुब्हानी, जाफ़र, बोहूसे क़ुरआनीया फ़ी अल तौहीद वल शिरक, क़ुम, मोअस्सेसा इमाम सादिक़ (अ), तीसरा संस्करण, 1426 हिजरी
  • समहूदी, अली बिन अहमद, वफ़ा अल वफ़ा बेअखबार दार अल मुस्तफ़ा, बैरूत, दार अल कुतुब अल इल्मीया, 2006 ईस्वी
  • अल अस्क़लानी, इब्ने हजर, फ़ुतूह अल बारी, तालीक़ात अब्दुल अज़ीज बिन अब्दुल्लाह बिन बाज़, बैरूत, दार अल मारफ़ा, 1397 हिजरी
  • तबरानी, सुलैमान बिन अहमद, अल मोजम अल कबीर, शोधः हमदी बिन अब्दुल मज़ीद अल सलफ़ी, क़ाहिरा, मकतब इब्ने तैमीया, दूसरा संस्करण, 1406 हिजरी
  • काबी, अली मूसा, अल इमाम मूसा बिन अल काज़िम अलैहिस सलाम सीरा व तारीख़, मरकज़ अल रेसाला, 1430 हिजरी
  • कुलैनी, मुहम्मद बिन याक़ूब, अल काफ़ी, तेहरान, इंतेशारात इस्लामीया, 1362 शम्सी
  • मजलिसी, मुहम्मद बाक़िर, बिहार उल अनवार, बैरूत, दार एहया अल तुरास अल अरबी, तीसरा संस्करण, 1403 हिजरी
  • मकारिम शिराज़ी, नासिर, तफसीर नमूना, तेहरान, दार अल कुतुब अल इस्लामीया, इकतालीस्वां संस्करण, 1380 शम्सी
  • नहज अल बलाग़ा, शोधः अज़ीज़ुल्लाह अत्तारदी, तेहरान, बुनयाद नहज अल बलाग़ा, 1413 हिजरी
  • नौवी, मोहयुद्दीन बिन शरफ, अल मजमूअ शरह अल मोहज़्ज़ब, बैरूत, दार अल फ़िक्र, 1421 हिजरी