शाम के खंडहर
शाम के खंडहर (अरबी: خربة الشام) दमिश्क़ में एक जगह जहां यज़ीद बिन मुआविया ने कर्बला के कैदियों को रखा था। हदीसी स्रोतों में, इस स्थान को छत रहित और कमज़ोर दीवारों वाला बताया गया है, और इसके निवासी ठंड और गर्मी से सुरक्षित नहीं थे। कुछ रिपोर्टों के अनुसार हज़रत रुक़य्या की शहादत इसी स्थान पर हुई थी। कुछ समकालीन शोधकर्ताओं ने शाम के खंडहरों में कर्बला के बंदियों की मौजूदगी को स्वीकार नहीं किया है और उनका मानना है कि अहले बैत (अ) की लोगों के बीच सामाजिक स्थिति और सम्मान के कारण यज़ीद उन्हें खंडहरों में नहीं रख सकता था। इसलिए यज़ीद ने उन्हें अपने महल में ठहराया था और यज़ीद का महल "महल्ला अल ख़राब" में था।
शाम के खंडहरों पर आशूरा साहित्य में विशेषकर मरसिया ख्वानी और नौहा ख्वानी में उल्लेख किया गया है।
नामकरण एवं स्थान
ऐसा कहा गया है कि यज़ीद बिन मुआविया ने दमिश्क़ में कर्बला के बंदियों को एक छत रहित खंडहर में रखा था।[१] आशूरा साहित्य में, इसे ख़राबे ए शाम (शाम के खंडहर) कहा गया है।[२] शेख़ मुफ़ीद के अनुसार, वह स्थान जहां कर्बला के क़ैदियों को रखा गया था, यज़ीद के महल से जुड़ा हुआ एक घर था।[३]
हदीसों में विवरण
कुछ रिवायतों में[४] शाम के खंडहरों का विवरण किया गया है। उनमें से एक यह कि, इस घर पर छत नहीं थी और इसकी दीवारें कमजोर थीं।[५] इसके अलावा सय्यद नेमातुल्लाह जज़ाएरी ने मिन्हाल बिन अम्र के साथ इमाम सज्जाद (अ) की बातचीत का जो उल्लेख किया है उसके आधार पर घर में छत नहीं थी और सूरज अंदर चमक रहा था[६] और यह घर बंदियों को ठंड और गर्मी से नहीं बचाता था।[७] कुछ बंदियों ने कहा कि यज़ीद ने हमें इस खंडहर में इसलिए भेजा ताकि हम पर यह गिर जाए[८] और हम मारे जाएँ।[९]
खंडहर में कर्बला के कैदी
कुछ रवायतों के अनुसार खंडहर में कर्बला के क़ैदियों की हालत अच्छी नहीं थी। सूरज उन्हें परेशान कर रहा था[१०] और परिणामस्वरूप, उनके चेहरे की त्वचा ख़राब हो गई थी।[११] वे खंडहर में इमाम हुसैन (अ) के लिए नौहे पढ़ रहे थे और रो रहे थे।[१२] कुछ हदीसों में यह भी उल्लेख किया गया है कि यज़ीद ने खंडहर पर गार्ड नियुक्त किए थे जो अरबी भाषा नहीं जानते थे।[१३]
शाम के खंडहर में कर्बला के क़ैदियों के रहने की अवधि को लेकर विवाद है। कुछ स्रोतों में कहा गया है कि उन्हें तब तक वहा रखा गया था यहां तक कि उनके चेहरे की त्वचा छिल गई थी।[१४] कुछ लेखकों ने अनुमान लगाया है कि बंदियों का कारवां लगभग एक सप्ताह तक शाम के खंडहरों में रहा था।[१५] कुछ इतिहासकारों ने इमाम सज्जाद (अ) से वर्णित एक हदीस के आधार पर, उन्होंने खंडहरों में दो दिनों तक रहने की अवधि का उल्लेख किया है।[१६]
खंडहर में घटनाएँ
जब कर्बला के क़ैदी शाम के खंडहर में रह रहे थे, तो कुछ घटनाएँ हुईं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं:
रुक़य्या की शहादत
- मुख्य लेख: इमाम हुसैन (अ) की बेटी रुक़य्या
कुछ स्रोतों के अनुसार, इमाम हुसैन (अ) की एक युवा बेटी की शाम के खंडहर में मृत्यु हुई है। कामिल बहाई पुस्तक के अनुसार, यह बेटी अपने पिता के दुख में रो रही थी। यज़ीद ने इमाम हुसैन (अ) का सिर उसके पास ले जाने का आदेश दिया। वह अपने पिता का सिर अपनी बांहों में लेकर इतना रोई कि उसका निधन हो गया।[१७] कुछ बाद के स्रोतों ने इस बेटी का नाम रुक़य्या बताया है।[१८] मिर्ज़ा जवाद तबरेज़ी के अनुसार, हज़रत रुकय्या की दरगाह शुरू से ही प्रसिद्ध थी और हुसैन मज़ाहेरी ने इसी स्थान को उनकी दरगाह माना है।[१९]
सकीना का सपना
कुछ स्रोतों ने दमिश्क़ में उनके प्रवास के चौथे दिन हज़रत सकीना के एक सपने का वर्णन किया है।[२०] इब्ने नमा हिल्ली के अनुसार, सकीना ने एक सपना देखा कि इस्लाम के पैग़म्बर (स), हज़रत आदम, हज़रत इब्राहीम, हज़रत मूसा और हज़रत ईसा, इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत के लिए कर्बला जा रहे थे, और इस्लाम के पैग़म्बर (स) ने अपनी दाढ़ी अपने हाथों से पकड़ी है और वह कभी ज़मीन पर गिरते हैं और उठते हैं। इसी तरह हज़रत फ़ातिमा, हव्वा, आसिया, मरियम और ख़दीजा भी आई हैं और हज़रत फ़ातिमा (स) ने अपना हाथ सिर पर रखा हुआ है और वह कभी ज़मीन पर गिरती हैं और उठती हैं। वह स्वयं को हज़रत फ़ातिमा (स) तक पहुंचाती है और रोने लगती है, हज़रत फ़ातिमा (स) उनसे कहती हैं: सकीना जान बहुत हुआ, तुम्हारा रोना मेरे कलेजे में आग लगा दे रहा और मेरे दिल के तार काट दे रहा। यह कुर्ता तुम्हारे पिता हुसैन के खून से रंगा हुआ है, और मैं भगवान से मिलने तक इसे स्वयं से अलग नही करूंगी।[२१]
खंडहर के अस्तित्व पर संदेह
कुछ शिया शोधकर्ताओं ने कर्बला के क़ैदियों को खंडहर में रखने को स्वीकार नहीं किया है। मुहम्मद हादी यूसुफ़ी ग़र्वी का मानना है कि अहले बैत (अ) की लोगों के बीच सामाजिक स्थिति और सम्मान के कारण यज़ीद उन्हें खंडहर में नहीं रख सका। इसलिए, यज़ीद ने उन्हें अपने महल में ठहराया, और यज़ीद का महल "महल्ला ए खराब" में था।[२२] कुछ स्रोतों में यह भी कहा गया है कि जब यज़ीद अहले बैत (अ) के बंदियों को अपने घर लाया और उन्हें महल में रखा, तो मुआविया के परिवार की महिलाओं ने विलाप और आँसूओं के साथ उनका स्वागत किया और उन्हें अपने सभी कपड़े और गहने दे दिए और और उन्होंने तीन दिन तक शोक सभा की।[२३]
साहित्य और संस्कृति में
शाम के खंडहरों पर आशूरा साहित्य में विशेषकर मरसिया ख्वानी और नौहा ख्वानी में उल्लेख किया गया है। आमतौर पर सीरिया के खंडहर के नाम के साथ हज़रत रुक़य्या की दरगाह और सीरिया में क़ैदियों के कारवां के निवास का उल्लेख जुड़ा हुआ है। इन मरसियों और नौहों में, खंडहर में क़ैदियों के निवास और उन पर सूरज की किरणें पड़ने की ओर इशारा किया गया है।[२४]
फ़ुटनोट
- ↑ इतिहासकारों का एक समूह, तारीख़े क़याम व मक़तल जामेअ सय्यद अल शोहदा (अ), 1391 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 143।
- ↑ उदाहरण के लिए देखें: "हज़रत रुक़्य्या (अ) पर शोध", बलाग़ वेबसाइट।
- ↑ मुफ़ीद, अल इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 122।
- ↑ देखें: सफ़्फ़ार, बसाएर अल दराजात, 1404 हिजरी, पृष्ठ 338, हदीस 1।
- ↑ कुतुबुद्दीन रावंदी, अल खराएज वा अल जराएह, 1409 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 753; इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब, 1379 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 145।
- ↑ जज़ाएरी, अनवार अल नोमानिया, 1429 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 176; क़ुमी, मुन्तहा अल आमाल, 1379 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 1001।
- ↑ शेख़ सदूक़, अमाली, पृष्ठ 167-168, मजलिस 31, हदीस 4; इब्ने ताऊस, लोहूफ़, 1348 शम्सी, पृष्ठ 188; मजलिसी बिहार अल अनवार, 1403 हिजरी, खंड 45, पृष्ठ 140।
- ↑ कुतुबुद्दीन रावंदी, अल खराएज वा अल जराएह, 1409 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 753; इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब, 1379 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 145।
- ↑ बहरानी, मदीना मआजिज़ अल आइम्मा, 1413 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 264।
- ↑ जज़ाएरी, अनवार अल नोमानिया, 1429 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 176; क़ुमी, मुन्तहा अल आमाल, 1379 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 1001।
- ↑ इब्ने ताऊस, लोहोफ़, 1348 शम्सी, पृष्ठ 188।
- ↑ इब्ने ताऊस, लोहोफ़, 1348 शम्सी, पृष्ठ 188।
- ↑ बहरानी, मदीना मअजिज़ अल आइम्मा, 1413 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 264।
- ↑ शेख़ सदूक़, अमाली, पृष्ठ 167-168, मजलिस 31, हदीस 4; इब्ने ताऊस, लोहोफ़, 1348 शम्सी, पृष्ठ 188; मजलिसी बिहार अल अनवार, 1403 हिजरी, खंड 45, पृष्ठ 140।
- ↑ हाशमी नूरबख्श, बा कारवाने शाम, 1398 शम्सी, पृष्ठ 98।
- ↑ इतिहासकारों का एक समूह, तारीख़े क़याम व मक़तल जामेअ सय्यद अल शोहदा (अ), 1391 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 144।
- ↑ तबरी, कामिल बहाई, 1383 शम्सी, पृष्ठ 523।
- ↑ शाह अब्दुल अज़ीमी, अल ईक़ाद, बी ता, पृष्ठ 179।
- ↑ "हज़रत रुक़य्या (स) के बारे में कुछ मराजे की राय, करब व बला साइट।
- ↑ क़ुमी, मुन्तही अल आमाल, 1379 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 1005-1006; इब्ने ताऊस, लोहोफ़, 1348 शम्सी, पृष्ठ 188-189।
- ↑ इब्ने नमा हिल्ली, मुसीर अल अहज़ान, 1406 हिजरी, पृष्ठ 105-106।
- ↑ आशूरा मक़तल निगारी प्रक्रिया का विश्लेषणात्मक अध्ययन, मोअस्सास ए फ़र्हंगी फ़हीम, संशोधित: 6 नवंबर 2016।
- ↑ ख्वारज़मी, मक़तल अल हुसैन, 1423 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 81।
- ↑ क़ुमी, दर कर्बला चे गुज़श्त, 1381 शम्सी, पृष्ठ 664।
स्रोत
- इब्ने शहर आशोब माजंदरानी, मुहम्मद बिन अली, मनाक़िब आले अबी तालिब (अ), क़ुम, अल्लामा, 1379 हिजरी।
- इब्ने ताऊस, अल लोहूफ अला क़तली अल तफ़ूफ़, तेहरान, जहान, 1348 शम्सी।
- इब्ने नमा हिल्ली, जाफ़र बिन मुहम्मद, मुसीर अल अहज़ान, क़ुम, मदरसा इमाम महदी, 1406 हिजरी।
- बहरानी, सय्यद हशम बिन सुलेमान, मदीना मआजिज़ अल आइम्मा अल इस्ना अशर, क़ुम, मोअस्सास ए अल मआरिफ़ अल इस्लामिया, 1413 हिजरी।
- "हज़रत रुक़य्या (अ) पर शोध", बलाग़ वेबसाइट, प्रकाशन तिथि: 12 मुर्दाद, 1400 शम्सी, विज़िट तिथि: 7 ख़ुर्दाद, 1402 शम्सी।
- जज़ाएरी, सय्यद नेमतुल्लाह बिन अब्दुल्लाह, अनवार अल नोमानिया, बेरूत, दार अल क़ारी, 1429 हिजरी।
- ख़्वारज़मी, मूफ़िक़ बिन अहमद, मक़तल अल हुसैन, क़ुम, अनवार अल महदी, 1423 हिजरी।
- शाह अब्दुल अज़ीमी, सय्यद मुहम्मद अली, अल ईक़ाद, बी ता।
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- तबरी, इमादुद्दीन हसन बिन अली, कामिल बहाई, तेहरान, मुर्तज़वी, 1383 शम्सी।
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- कुतुबुद्दीन रावंदी, सईद बिन हेबतुल्लाह, अल खराएज व अल जराएह, क़ुम, मोअस्सास ए इमाम महदी (अ), 1409 हिजरी।
- इतिहासकारों का एक समूह,तारीख़े क़याम व मक़तले जामेअ सय्यद अल शोहदा (अ), महदी पेशवई की देखरेख में, इमाम खुमैनी शैक्षिक और अनुसंधान संस्थान, क़ुम, पहला संस्करण, 1391 शम्सी।
- मजलिसी, मुहम्मद बाक़िर, बिहार अल-अनवार, बेरूत, दार अल एहिया अल तोरास अल-अरबी, 1403 हिजरी।
- मुफ़ीद, मुहम्मद बिन मुहम्मद, अल इरशाद फ़ी मारेफ़त होज्जुल्लाह अला अल एबाद, क़ुम, शेख़ मुफ़ीद की कांग्रेस, 1413 हिजरी।
- "हज़रत रुक़य्या (स) के बारे में कुछ मराजे की राय", करब व बला साइट, विज़िट की तारीख: 7 खुर्दाद, 1402 शम्सी।
- हाशमी नूरबख्श, हुसैन, बा कारवाने शाम, तेहरान, मशअर, 1389 शम्सी।