ख़ैबर
देश | अरब |
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भाषा | अरबी |
महत्वपूर्ण घटनाएँ | ख़ैबर का युद्ध |
ख़ैबर (फ़ारसी: خیبر) अरब का एक क्षेत्र है जहाँ ख़ैबर का युद्ध हुआ था। ख़ैबर, मदीना से 165 किमी की दूरी पर स्थित है और इसका केंद्र अल-शोरैफ़ शहर है। इस्लाम की शुरुआत में ख़ैबर के निवासी यहूदी थे। मुस्लिम इतिहासकारों के अनुसार, क्योंकि वे मक्का के नेताओं को मुसलमानों पर हमला करने के लिए उकसा रहे थे, पैग़म्बर (स) ने उनसे युद्ध किया।
ख़ैबर क्षेत्र में कई किले शामिल थे और कुछ लोगों का कहना है कि इसी कारण इसका नाम ख़ैबर (किला) पड़ा। वर्ष सात हिजरी में ख़ैबर का युद्ध हुआ, मुसलमान ख़ैबर के किलों को जीतकर विजयी हुए। कुछ किलों पर इमाम अली (अ) ने विजय प्राप्त की। युद्ध के बाद यहूदियों को इस क्षेत्र से नहीं निकाला गया, लेकिन मुसलमानों को उनके कृषि उत्पादों का आधा हिस्सा देने का निर्णय लिया गया।
ऐतिहासिक स्रोतों के अनुसार, यहूदी इस क्षेत्र में दूसरे खलीफ़ा उमर बिन खत्ताब के समय तक रहते थे, लेकिन दूसरे ख़लीफ़ा ने उन्हें इस क्षेत्र को छोड़ने के लिए मजबूर किया।
नामकरण का कारण
इस क्षेत्र का नाम ख़ैबर क्यों पड़ा, इसके बारे में कई कथाएँ हैं।[१] भूगोलवेत्ता याकूत हमवी के अनुसार, खैबर एक हिब्रू शब्द है जिसका अर्थ महल (किला) है, और क्योंकि इस क्षेत्र में कई किले थे, इसलिए इसे "ख़याबिर" नाम से जाना जाता था।[२] कुछ लोगों ने यह भी कहा है कि यहां बसने वासे पहले व्यक्ति का नाम ख़ैबर था इसी कारण इसे ख़ैबर कहा जाता है।[३]
याक़ूत हमवी ने इस क्षेत्र में सात किलों का उल्लेख किया है,[४] याक़ूबी ने उनकी (किलों) संख्या छह मानी है[५] और किताब तारीख़े पैयाम्बरे इस्लाम में ख़ैबर के युद्ध में मुसलमानों द्वारा दस किलों पर विजय प्राप्त होने का उल्लेख किया गया है।[६] अल सहीह मिन सीरत अल नबी में सय्यद जाफ़र मुर्तज़ा के अनुसार, यहूदियों के पास ख़ैबर में आठ किले थे जिनके नाम इस प्रकार है: नतात, वतीह, सलालम, कतीबा, शक़, सा'ब, नाएम, क़मूस।[७]
भौगोलिक एवं जलवायु संबंधी स्थिति
ख़ैबर क्षेत्र अरब और मदीना के उत्तर में स्थित है और मदीना से लगभग 165 किलोमीटर की दूरी पर है। इसका केंद्र अल-शोरैफ़ शहर है।[८] अतीत में, याक़ूत हमवी के अनुसार, ख़ैबर मदीना से आठ मंजिल[९] या पांच दिन[१०] की दूरी पर था। ख़ैबर एक उपजाऊ क्षेत्र के रूप में जाना जाता था और इसमें कई झरने, कई खेत और खजूर के पेड़ थे।[११]
इतिहास
ख़ैबर के लोगों और मुसलमानों के युद्ध के दौरान, अर्थात ख़ैबर के युद्ध में, इस क्षेत्र के निवासी यहूदी थे। इस क्षेत्र में यहूदियों के आगमन का समय निर्धारित करना कठिन माना गया है। कुछ रिपोर्टों में फ़िलिस्तीन पर रोमनों के हमले और ख़ैबर क्षेत्र में यहूदियों के आगमन का समय एक माना गया है। एक समूह का यह भी कहना है कि इससे पहले यरूशलेम पर बेबीलोन के शासन के दौरान यहूदी इस क्षेत्र में आये थे।[१२]
ख़ैबर युद्ध में मुसलमानों की जीत के बाद इस क्षेत्र की संपत्तियाँ मुसलमानों को लूट के रूप में दे दी गईं। लेकिन ख़ैबर में रहने वाले यहूदियों के अनुरोध पर, पैग़म्बर (स) ने उन्हें इस शर्त पर ख़ैबर में रहने की अनुमति दी कि वे अपने कृषि उत्पादों का आधा हिस्सा मुसलमानों को देंगे।[१३]
इतिहासकारों के अनुसार, यहूदी दूसरे ख़लीफ़ा उमर बिन ख़त्ताब के काल तक ख़ैबर में रहते थे, लेकिन दूसरे ख़लीफ़ा ने उन्हें पैग़म्बर (स) की एक हदीस जिसकी सामग्री यह है कि दो धर्म अरब प्रायद्वीप पर फिट नहीं होते हैं का हवाला देकर उन्हें पलायन करने के लिए मजबूर किया।[१४]
ख़ैबर का युद्ध
- मुख्य लेख: ख़ैबर का युद्ध
वर्ष सात हिजरी में, इस्लाम के पैग़म्बर (स) ने एक सेना के साथ ख़ैबर पर हमला किया।[१५] इस युद्ध में, मुसलमानों ने ख़ैबर के किलों पर विजय प्राप्त की।[१६] इस युद्ध को ख़ैबर की लड़ाई का नाम दिया गया।[१७] इस युद्ध का कारण यह माना गया है कि बनी नज़ीर के यहूदी, जिन्हें पैग़म्बर (स) की हत्या के षड़यंत्र (साज़िश) के बाद मदीना से निष्कासित कर दिया गया था और ख़ैबर चले गए थे, मक्का के नेताओं को मुसलमानों के खिलाफ़ लड़ने के लिए उकसा रहे थे।[१८]
तीसरी शताब्दी हिजरी के इतिहासकार इब्ने हिशाम की रिपोर्ट के अनुसार, पैग़म्बर (स) ने ख़ैबर के किलों में से एक किले की विजय के दौरान सेना का कमांडिंग ध्वज अबू बक्र और फिर उमर बिन ख़त्ताब को दिया था। लेकिन दोनों बिना जीत के लौट आये। इसके बाद, उन्होंने इमाम अली (अ) को ध्वज सौंप दिया और वादा किया कि वह किला जीत लेंगे और उन्होंने किला जीत लिया।[१९]
फ़ुटनोट
- ↑ देखें अली, अल-मुफ़स्सल फ़ी तारीख़ अल-अरब क़ब्ला अल-इस्लाम, 1413 हिजरी, खंड 6, पृष्ठ 526-527।
- ↑ याक़ूत हमवी, मोजम अल-बुल्दान, 1995 ईस्वी, खंड 2, पृष्ठ 409।
- ↑ अली, अली, अल-मुफ़स्सल फ़ी तारीख़ अल-अरब क़ब्ला अल-इस्लाम, 1413 हिजरी, खंड 6, पृष्ठ 526।
- ↑ याक़ूत हमवी, मोजम अल-बुल्दान, 1995 ईस्वी, खंड 2, पृष्ठ 409।
- ↑ याकूबी, तारीख़ अल याकूबी, दार सादिर, खंड 2, पृष्ठ 56।
- ↑ आयती, तारीख़े पयाम्बरे इस्लाम, 1378 शम्सी, पृष्ठ 409-410।
- ↑ आमोली, अल-सहीह मिन सीरत अल नबी अल-आज़म, अल नाशिर मोअस्ससा इल्मी फ़र्हंगी दारुल हदीस, प्रकाशन संगठन, खंड 17, पृष्ठ 70।
- ↑ नाजी, "ख़ैबर, ग़ज़वा", पृष्ठ 584।
- ↑ याक़ूत हमवी, मोजम अल-बुल्दान, 1995 ईस्वी, खंड 2, पृष्ठ 409।
- ↑ याक़ूत हमवी, मोजम अल-बुल्दान, 1995 ईस्वी, खंड 2, पृष्ठ 29।
- ↑ अली, अल-मुफ़स्सल फ़ी तारीख़ अल-अरब क़ब्ला अल-इस्लाम, 1413 हिजरी, खंड 6, पृष्ठ 525।
- ↑ अली, अली, अल-मुफ़स्सल फ़ी तारीख़ अल-अरब क़ब्ला अल-इस्लाम, 1413 हिजरी, खंड 6, पृष्ठ 527।
- ↑ इब्ने हिशाम, अल-सीरत अल-नबविया, दार अल-माअरेफ़ा, खंड 2, पृष्ठ 337।
- ↑ नहरवानी, तारीख़ अल-मदीना, बूर सईद मिस्र, पृष्ठ 87।
- ↑ याकूबी, तारीख अल याकूबी, दार सादिर, खंड 2, पृष्ठ 56।
- ↑ आयती, तारीख़े पयाम्बरे इस्लाम, 1378 शम्सी, पृष्ठ 409-410।
- ↑ आयती, तारीख़े पयाम्बरे इस्लाम, 1378 शम्सी, पृष्ठ 407।
- ↑ वाकेदी, किताब अल-मगाज़ी, 1966 ईस्वी, खंड 2, पृ. 441-442।
- ↑ इब्ने हिशाम, अल-सीरत अल-नबविया, दार अल-माअरेफ़ा, खंड 2, पृष्ठ 334-335।
स्रोत
- आयती, मोहम्मद इब्राहीम, तारीख़े पयाम्बरे इस्लाम, अबुल कासिम गुर्जी द्वारा शोध, तेहरान, तेहरान विश्वविद्यालय, 6वां संस्करण, 1378 शम्सी।
- इब्ने हिशाम, अब्दुल-मलिक, अल-सीरत अल-नबाविया, मुस्तफ़ा अल-सक्का और इब्राहीम अल-अबियारी और अब्दुल-हफीज़ शिबली द्वारा शोध, बेरूत, दार अल-माअरेफा, बी ता।
- अली, जवाद, अल-मुफस्सल़ फ़ी तारीख़ अल-अरब कब्ला इस्लाम, बेरूत, 1978-1976 ईस्वी।
- नाजी, मोहम्मद रज़ा, "खैबर, ग़ज़वा", दानिशनामे जहाने इस्लाम, ग़ुलाम अली हद्दाद आदिल की देखरेख में, खंड 16, तेहरान, इस्लामिक इनसाइक्लोपीडिया फाउंडेशन, 1375 शम्सी।
- नहरवानी, मुहम्मद बिन अहमद, तारीख अल-मदीना, मुहम्मद ज़ैनहम मुहम्मद अज़ब द्वारा शोध, बूर सईद (मिस्र), मकतब अल-सक़ाफ़ा अल-दीनिया, बी ता।
- वाकेदी, मुहम्मद बिन उमर, किताब अल-मगाज़ी, मार्सडेन जोन्स अनुसंधान, लंदन, 1966 ईस्वी।
- याकूत हमवी, मोजम अल-बुल्दान, बेरूत, दार सादिर, दूसरा संस्करण, 1995 ईस्वी।
- याकूबी, अहमद बिन इसहाक़, तारीख़े अल-याकूबी, बेरूत, दार सादिर।