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सेदानत ए काबा

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सेदानत ए काबा (अरबी: سدانة الكعبة) का अर्थ है कि काबा की सेवा और उसके मामलों की देखभाल करना, इसमें काबा की चाबी की देखभाल, काबा के दरवाज़े खोलना और बंद करना, तीर्थयात्रियों का स्वागत करना, काबा की सफाई करना और काबा के परदे को बदलना जैसे कार्य शामिल हैं। इस्लाम से पहले, काबा की चाबी की देखभाल बनी शैबा जनजाति के पास थी। पैग़म्बर मुहम्मद (स) ने मक्का की विजय के बाद काबा की चाबी उस समय के चाबीदार उस्मान बिन तल्हा को सौंप दी और पैग़म्बर के आदेश के अनुसार, यह ज़िम्मेदारी इसी परिवार के पास रही।

इस्लामी स्रोतों के अनुसार, पैग़म्बर के चाचा अब्बास ने खुद को "सेक़ायत अल हाज्ज" (तीर्थयात्रियों को पानी पिलाने की ज़िम्मेदारी) के कारण दूसरों से श्रेष्ठ माना। शैबा, जो काबा की सदानत की ज़िम्मेदारी संभालता था, ने भी खुद को श्रेष्ठ बताया। लेकिन इमाम अली (अ) ने खुद को दूसरों से पहले ईमान लाने, हिजरत करने और जिहाद करने के कारण श्रेष्ठ माना। इस्लामी शोधकर्ताओं के अनुसार, इस घटना के बाद सूर ए तौबा की आयत 19 नाज़िल हुई, जिसमें ईमान और ईश्वर के रास्ते में जिहाद को काबा से संबंधित ज़िम्मेदारियों से श्रेष्ठ बताया गया। सुन्नी मुफ़स्सिर तबरी के अनुसार, क़ुरआन में ईश्वर ने उन लोगों को फटकार लगाई है जो हाजियों को पानी पिलाने और काबा की सेवा करने पर गर्व करते थे, और ईमान और जिहाद को काबा की ज़िम्मेदारियों से श्रेष्ठ बताया है।

परिचय

काबा का ताला और चाबी

काबा की सेवा और देखभाल, जिसे "सेदानत ए काबा" कहा जाता है, का अर्थ काबा की सेवा करना और उसके मामलों की देखरेख करना है।[] इसमें काबा के दरवाजे को खोलना और बंद करना,[] तीर्थयात्रियों का स्वागत करना, काबा को धोना, साफ करना, उसे ढकना और काबा के परदे को बदलना जैसे कार्य शामिल हैं।[]

काबा की चाबी और ताला की ज़िम्मेदारी भी उन लोगों पर है जो सेदानत ए काबा की ज़िम्मेदारी संभालते हैं।[] सेदानत और काबा की देखभाल की ज़िम्मेदारी का इतिहास बहुत पुराना है, और कुछ लोग इसे हज़रत इस्माईल (अ) के समय तक वापस ले जाते हैं।[] मक्का की विजय के बाद, पैग़म्बर (स) ने केवल दो ज़िम्मेदारियों को मान्यता दी और उन्हें बरकरार रखा: एक सेदानत ए काबा (काबा की सेवा) और दूसरी सेक़ायत ए हाज्ज (तीर्थयात्रियों को पानी पिलाने की ज़िम्मेदारी)।[]

बनी शैबा जनजाति और काबा की चाबी की ज़िम्मेदारी

इस्लाम से पहले, काबा की चाबी बनी शैबा के पास थी।[] पैग़म्बर मुहम्मद (स) ने मक्का की विजय के बाद काबा की चाबी उस समय के चाबीदार उस्मान बिन तल्हा से ली और काबा में प्रवेश किया। फिर उन्होंने चाबी उस्मान बिन तल्हा को वापस कर दी और कहा कि काबा की चाबी इस परिवार के पास ही रहेगी और केवल अत्याचारी लोगों को छोड़कर, चाबी इस परिवार से नहीं ली जाएगी।[] इसलिए, इसके बाद भी काबा की चाबी की ज़िम्मेदारी इसी परिवार के लोगों के पास रही।[]

कुछ रिवायतों में यह बताया गया है कि पैग़म्बर ने जब चाबी उस्मान बिन तल्हा से ली, तो वे इसे अपने चाचा अब्बास को देना चाहते थे इस पर आयत नाज़िल हुई: "ईश्वर तुम्हें आदेश देता है कि अमानतों को उनके असली मालिकों को वापस करो"।[१०] इसके बाद पैग़म्बर ने चाबी उस्मान बिन तल्हा को वापस कर दी।[११]

वर्ष 2013 ईस्वी में, बनी शैबा के कुछ लोगों ने सऊदी सरकार के खिलाफ़ विरोध प्रकट किया और घोषणा की कि उन्हें काबा के परदे की देखभाल के लिए इतिहास में मिलने वाले कई लाभों से वंचित कर दिया गया है।[१२]

ईमान और जिहाद काबा की ज़िम्मेदारियों से बेहतर

तबरी, एक प्रसिद्ध सुन्नी मुफ़स्सिर (क़ुरआन के व्याख्याकार) के अनुसार, ईश्वर ने क़ुरआन में उन लोगों को फटकार लगाई है जो हाजियों को पानी पिलाने और काबा की सेवा करने पर गर्व करते थे। ईश्वर ने ईमान और जिहाद को काबा से संबंधित ज़िम्मेदारियों से श्रेष्ठ बताया है।[१३]

इस्लामी स्रोतों के अनुसार, एक दिन पैग़म्बर मुहम्मद (स) के चाचा अब्बास ने खुद को "सेक़ायत अल हाज्ज" (तीर्थयात्रियों को पानी पिलाने की ज़िम्मेदारी) के कारण दूसरों से श्रेष्ठ माना। शैबा, जो काबा की सेवा (सेदानत ए काबा)[१४] की ज़िम्मेदारी संभालता था, ने भी खुद को श्रेष्ठ बताया। हम्ज़ा ने खुद को काबा की मरम्मत (इमारत) की ज़िम्मेदारी के कारण श्रेष्ठ माना, और इमाम अली (अ) ने खुद को दूसरों से पहले ईमान लाने, हिजरत (पलायन) करने और जिहाद करने के कारण श्रेष्ठ माना। इस पर आय ए सेक़ायत अल हाज्ज "क्या तुमने हुज्जाज (हज यात्रियों) को पानी पिलाने और मस्जिद अल हराम की सेवा करने वाले को उस व्यक्ति के समान समझ लिया है जो ईश्वर और आख़िरत के दिन पर ईमान लाया और ईश्वर के रास्ते में जिहाद किया है? ये दोनों ईश्वर के नज़दीक बराबर नहीं हैं। और ईश्वर ज़ालिम लोगों को मार्गदर्शन नहीं देता।"[१५] नाज़िल हुई।[१६] और इस आयत में ईमान और ईश्वर के रास्ते में जिहाद को काबा से संबंधित ज़िम्मेदारियों से श्रेष्ठ बताया गया है।[१७]

कुछ रिवायतों में, इमाम अली (अ), हम्ज़ा और जाफ़र इमाम अली (अ) के भाई को उन लोगों में से बताया गया है जिन्होंने अपने ईमान और जिहाद को काबा से जुड़ी ज़िम्मेदारियों से श्रेष्ठ माना।[१८]

फ़ुटनोट

  1. इब्ने मंज़ूर, लिसान अल अरब, 1414 हिजरी, खंड 13, पृष्ठ 207।
  2. वासिती ज़ुबैदी, ताज अल उरूस, 1414 हिजरी, खंड 18, पृष्ठ 276।
  3. शोवाबके, "मा हेया सेदानत अल काबा", साइट मवज़ू।
  4. इब्ने मंज़ूर, लिसान अल अरब, 1414 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 298।
  5. शोवाबके, "मा हेया सेदानत अल काबा", साइट मवज़ू।
  6. इब्ने हिशाम, अल सीरत अल नब्विया, बेरूत, खंड 2, पृष्ठ 412।
  7. इब्ने असीर, असद अल ग़ाबा, 1409 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 383।
  8. मिक़रेज़ी, इम्ताअ अल अस्माअ, 1420 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 394।
  9. शोवाबके, "मा हेया सदानत अल काबा", साइट मवज़ू।
  10. सूर ए निसा, आयत 58।
  11. शेख़ तूसी, अल तिब्यान, बेरूत, खंड 3, पृष्ठ 97।
  12. काबा के परदेदार कबीले का आले सऊद शासन के अत्याचार के खिलाफ़ विरोध, अंतर्राष्ट्रीय कुरान समाचार एजेंसी।
  13. तबरी, जामेअ अल बयान, 1412 हिजरी, खंड 10, पृष्ठ 67।
  14. बहरानी, अल बुरहान, 1416 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 580।
  15. सूर ए तौबा, आयत 19।
  16. क़ुमी, तफ़सीर अल क़ुमी, 1404 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 284।
  17. मक़ारिम शिराज़ी, तफ़सीर नमूना, 1374 शम्सी, खंड 7, पृष्ठ 323।
  18. कुलैनी, अल काफी, 1407 हिजरी, खंड 8, पृष्ठ 204।

स्रोत

  • इब्ने असीर, अली बिन मुहम्मद, असद अल ग़ाबा फी मारिफत अल सहाबा, दार अल फिक्र, बेरूत, 1409 हिजरी।
  • इब्ने मंज़ूर, मुहम्मद बिन मुकर्रम, लिसान अल अरब, संपादक और शोधकर्ता: मीर दामादी, जमालुद्दीन, दार अल फिक्र लिल तबाअ व अन नश्र व अत तौज़ीअ, बेरूत, दार सादिर, तीसरा संस्करण, 1414 हिजरी।
  • इब्ने हिशाम, अब्दुल मलिक, अल सीरत अल नब्विया, शोधकर्ता: मुस्तफा अल सक़ा, इब्राहीम अल अबियारी, अब्दुल हफीज़ शलबी, बेरूत, दार अल मारिफा, पहला संस्करण, तारीख रहित।
  • "काबा के परदेदार कबीले का आले सऊद शासन के अत्याचार के खिलाफ विरोध", अंतर्राष्ट्रीय कुरान समाचार एजेंसी, प्रकाशन तिथि: 29 अबान 1392 शम्सी, देखे जाने की तिथि: 7 ख़ुर्दाद 1401 शम्सी।
  • बहरानी, सय्यद हाशिम, अल बुरहान फी तफ़सीर अल कुरान, तेहरान, बुनियाद बेअसत, पहला संस्करण, 1416 हिजरी।
  • शोवाबके, मुराद, "मा हेया सदानत अल काबा", साइट मवज़ू, प्रकाशन तिथि: 17 नवंबर 2019, देखे जाने की तिथि: 7 ख़ुर्दाद 1401 शम्सी।
  • शेख़ तूसी, मुहम्मद बिन हसन, अल तिब्यान फी तफ़सीर अल कुरान, प्रस्तावना: शेख़ आग़ा बुज़ुर्ग तेहरानी, शोधकर्ता: अहमद क़सीर आमिली, बेरूत, दार इह्या अत तोरास अल अरबी, तारीख रहित।
  • तबरी, मुहम्मद बिन जरीर, जामेअ अल बयान फी तफ़सीर अल कुरान, बेरूत, दार अल मारिफा, 1412 हिजरी।
  • क़ुमी, अली बिन इब्राहीम, तफ़सीर अल क़ुमी, संपादक और शोधकर्ता: सय्यद तय्यब, मूसवी जज़ाइरी, क़ुम, दार अल किताब, तीसरा संस्करण, 1404 हिजरी।
  • कुलैनी, मुहम्मद बिन याक़ूब, अल काफी, संपादक और शोधकर्ता: अली अकबर ग़फ़्फ़ारी, मुहम्मद आख़ूंदी, तेहरान, दार अल कुतुब अल इस्लामिया, चौथा संस्करण, 1407 हिजरी।
  • मिक़रेज़ी, तक़ीउद्दीन, इम्ताअ अल अस्माअ, शोधकर्ता: मुहम्मद अब्दुल हमीद नमीसी, बेरूत, दार अल कुतुब अल इल्मिया, पहला संस्करण, 1420 हिजरी।
  • मक़ारिम शिराज़ी, नासिर, तफ़सीर नमूना, तेहरान, दार अल कुतुब अल इस्लामिया, पहला संस्करण, 1374 शम्सी।
  • वासिती जुबैदी, सय्यद मुहम्मद मुर्तज़ा, ताज अल अरूस मिन जवाहिर अल क़ामूस, संपादक और शोधकर्ता: अली शीरी, बेरूत, दार अल फिक्र, पहला संस्करण, 1414 हिजरी।