आयात ए बराअत
- यह लेख सूर ए तौबा की शुरुआती आयतों के बारे में है। इन आयतों के विवरण के लिए, "आयात ए बराअत का पहुचाना" वाला लेख पढ़े।
| आयत का नाम | आयात ए बराअत |
|---|---|
| सूरह में उपस्थित | सूर ए तौबा |
| आयत की संख़्या | शुरूआती आयतें |
| पारा | 11 और 12 |
| नुज़ूल का स्थान | मदीना |
| विषय | ऐतेकादी, फ़िक़्ही |
आयात ए बराअत, सूर ए तौबा की शुरूआती आयतें हैं जो मुसलमानों और मुश्रिकों के संबंधों के बारे में अंतिम नियमों (निहाई अहकाम) की व्याख्या करती हैं। इन आयतों में, अल्लाह ने पैग़म्बर (स) और मुसलमानों को मुश्रिकों के प्रति अपनी घृणा ज़ाहिर करने, उनके साथ की गई संधियों से पीछे हटने और यदि वे इस्लाम धर्म स्वीकार नहीं करते हैं तो उनके विरुद्ध युद्ध की घोषणा करने का आदेश देते हैं। ये आयतें इमाम अली (अ) द्वारा ईद अल अज़हा के दिन मुश्रिकों तक पहुँचाई गई थीं।
टिप्पणीकारों के अनुसार, मुश्रिकों के साथ संधि का एकतरफा निरस्तीकरण कोई अनोखी बात नहीं थी; बल्कि, संधि को सबसे पहले मुश्रिकों ने तोड़ा था। इसीलिए, इन आयतों के अनुसार, जिन मुश्रिकों ने अपनी संधि नहीं तोड़ी थी, उनके साथ की गई संधि को मुसलमानों द्वारा उसकी अवधि समाप्त होने तक सम्मानजनक माना जाता था। यह भी कहा गया है कि ये संधियाँ शुरू से ही अस्थायी थीं।
मुहम्मद जवाद मुग़्निया के अनुसार, आयात ए बराअत में अरब प्रायद्वीप के मुश्रिकों को इस्लाम स्वीकार करने या युद्ध के लिए तैयार होने पर ज़ोर दिया जाना, अन्य आयतों में वर्णित धर्म की स्वैच्छिक स्वीकृति के साथ विरोधाभास नहीं करता, क्योंकि अरब प्रायद्वीप के मुश्रिक लगातार अपनी संधियों का उल्लंघन करते रहे और नवजात इस्लामी समाज के लिए ख़तरा बने रहे। इसलिए, यह फ़ैसला सिर्फ़ उनके लिए ही सुरक्षित था।
आयतो का परिचय और अनुवाद
सूर ए तौबा की शुरूआती आयतों को आयात ए बराअत कहा जाता है।[१]
بَرَاءَةٌ مِّنَ اللَّـهِ وَرَسُولِهِ إِلَى الَّذِينَ عَاهَدتُّم مِّنَ الْمُشْرِكِينَ ﴿١﴾ فَسِيحُوا فِي الْأَرْضِ أَرْبَعَةَ أَشْهُرٍ وَاعْلَمُوا أَنَّكُمْ غَيْرُ مُعْجِزِي اللَّـهِ ۙ وَأَنَّ اللَّـهَ مُخْزِي الْكَافِرِينَ ﴿٢﴾ وَأَذَانٌ مِّنَ اللَّـهِ وَرَسُولِهِ إِلَى النَّاسِ يَوْمَ الْحَجِّ الْأَكْبَرِ أَنَّ اللَّـهَ بَرِيءٌ مِّنَ الْمُشْرِكِينَ ۙ وَرَسُولُهُ ۚ فَإِن تُبْتُمْ فَهُوَ خَيْرٌ لَّكُمْ ۖ وَإِن تَوَلَّيْتُمْ فَاعْلَمُوا أَنَّكُمْ غَيْرُ مُعْجِزِي اللَّـهِ ۗ وَبَشِّرِ الَّذِينَ كَفَرُوا بِعَذَابٍ أَلِيمٍ ﴿٣ बराअतुम मिनल्लाहे व रसूलेहि एलल लज़ीना आहदतुम मिनल मुशरेकीना (1) फ़सीहू फ़िल अर्ज़े अरबअतो अशहोरिन वअलमू अन्कुम ग़ैरो मोअजेज़िल्लाहे व अन्नल्लाहा मुख़ज़ेइल काफ़ेरीना (3) व आज़ाुम मिनल्लाहे व रूसूलेहि एलन्नासे यौमल हज्जिल अकबरे अन्नल्लाहा बरीउम मिनल मुशरेकीना व रसूलोहू फ़इन तुबतुम फ़होवा ख़ैरुल लकुम व इन तवल्लैतुम फ़अलमू अन्नकुम ग़ैरो मोअजेज़िल्लाहे व बश्शेरिल लज़ीना कफ़रू बेअज़ाबिन अलीम (3) अनुवादः ये आयतें अल्लाह और उसके रसूल की ओर से उन मुश्रिकों के लिए इन्कार का बयान हैं जिनसे तुमने वाचा बाँधी है। अतः तुम धरती में चार महीने पूरी निश्चिंतता से यात्रा करो और जान लो कि तुम अल्लाह को कष्ट नहीं दे सकते और यह कि अल्लाह ही है जो इनकार करनेवालों को अपमानित करता है। ये आयतें अल्लाह और उसके रसूल की ओर से लोगों के लिए हज अकबर के दिन एक बयान हैं कि अल्लाह और उसके रसूल मुश्रिकों से वाचा बाँधने के लिए बाध्य नहीं हैं। यदि तुम तौबा कर लो तो यह तुम्हारे लिए बेहतर है। किन्तु यदि तुम मुँह मोड़ते हो तो जान लो कि तुम अल्लाह की सहायता नहीं कर सकोगे; और इनकार करनेवालों को दुखद यातना से डरा दो...
आयतों के नुज़ूल और पहुचाने की कहानी
- मुख्य लेख: '''आयात ए बराअत का पहुचाना'''
आयात ए बराअत नौवें हिजरी वर्ष के अंत में, मुसलमानों के तबूक की लड़ाई से लौटने के बाद, नाज़िल हुईं।[२] पैग़म्बर (स) को उस वर्ष ज़िल हिज्जा में, जब बहुदेववादी मक्का में एकत्र हुए थे, इन आयतों को उन तक पहुँचाने का आदेश दिया गया था।[३]
आयात बराअत के नाजिल होने के कारण के बारे में कहा जाता है कि हिजरी के आठवें वर्ष में मुसलमानों द्वारा मक्का पर विजय प्राप्त करने के बावजूद,[४] कुछ कबीले और बहुदेववादी इस्लाम का विरोध कर रहे थे,[५] और जिन बहुदेववादियों ने पैग़म्बर (स) के साथ समझौता किया था, वे बार-बार अपना समझौता तोड़ रहे थे।[६] बदलती परिस्थितियों और इस्लाम के प्रसार के साथ,[७] ये आयतें नाज़िल हुईं, जिनमें बहुदेववाद के अस्तित्व को असहनीय बताया गया।[८]
इन आयतों के मुश्रिकों तक पहुँचने की कहानी के बारे में, शिया और सुन्नी ऐतिहासिक और हदीस स्रोतों में कहा गया है कि जब सूर ए बराअत की शुरूआती आयतें नाज़िल हुईं, तो पैग़म्बर (स) ने सबसे पहले अबू बक्र बिन अबी क़ुहाफ़ा को उन तक आयतें पहुँचाने के लिए भेजा। उन्होंने मक्का के लोगों को भेजा; लेकिन अबू बक्र के मदीना छोड़ने के बाद, जिब्रील पैग़म्बर (स) पर नाज़िल हुए और कहा कि आप या आपके परिवार का कोई सदस्य इन आयतों को मुश्रिकों तक पहुँचाए। इस इलाही आदेश का पालन करते हुए, पैग़म्बर (स) ने अबू बक्र के स्थान पर इमाम अली (अ) को मक्का भेजा।[९]
अहमद बिन अबि याक़ूब ने अपनी किताब "तीरीखे याक़ूबी" में लिखा है कि अली (अ) ईद अल अज़्हा की दोपहर को मक्का पहुँचे और लोगों के बीच पैग़म्बर (स) के संदेश और आयतों को पढ़कर सुनाया और फिर कहा कि अब से कोई भी नग्न होकर काबा की परिक्रमा नहीं करेगा और अगले साल किसी भी बहुदेववादी को काबा जाने का अधिकार नहीं है। याकूबी के अनुसार, अली (अ) ने तब लोगों को मोहलत दी और कहा कि जो भी बहुदेववादी अल्लाह के रसूल के साथ समझौता करेगा, उसकी वैधता अवधि चार महीने होगी, और जो कोई समझौता नहीं करेगा, उसे पचास रातों की मोहलत मिलेगी।[१०]
सामग्री
मुहम्मद जवाद मुग्निया ने अपनी तफ़सीर अल काशिफ़ मे कहा है कि आयात ए बराअत, जो सूर ए तौबा के अंतर्गत नाज़िल हुईं, मुसलमानों और बहुदेववादियों के बीच संबंधों के बारे में अंतिम हुक्म बताती हैं।[११] टिप्पणीकारों के अनुसार, सूर ए तौबा की शुरुआती आयतों में, अपने पैग़म्बर (स) और मुसलमानों को आदेश देता हैं कि वे बहुदेववादियों के प्रति अपनी घृणा प्रकट करें, उनके साथ की गई संधियों से पीछे हट जाएँ, और यदि वे इस्लाम धर्म स्वीकार नहीं करते हैं तो उनके विरुद्ध युद्ध की घोषणा करें। इस चेतावनी में सभी बहुदेववादी शामिल थे, यहाँ तक कि वे भी जिन्होंने पैग़म्बर (स) के साथ शांति संधि पर हस्ताक्षर किए थे, और घोषणा की कि अपनी स्थिति पर विचार करने के लिए चार महीने की अवधि के बाद, उन्हें इस्लाम धर्म स्वीकार करने या मुसलमानों से लड़ने के संबंध में अपना कर्तव्य निर्धारित करना होगा।[१२]
संधि को एकतरफ़ा रद्द करने का कारण
इस्लाम में वादा बनाए रखने पर ज़ोर दिए जाने के बावजूद, आयात ए बराअत में बहुदेववादियो के साथ संधि को एकतरफ़ा रद्द करने के आदेश पर सवाल उठाए गए हैं।[१३] अल्लामा तबातबाई बहुदेववादियो द्वारा संधि तोड़ने को उनकी सुरक्षा समाप्त करने का कारण और मुसलमानों को जवाबी कार्रवाई करने का लाइसेंस, यानी मुश्रिकों के साथ की गई संधियों को रद्द करना मानते हैं।[१४] मजमा उल बयान तफ़सीर मे तबरेसी के अनुसार, पैग़म्बर (स) द्वारा शांति संधि को एकतरफ़ा रद्द करने के तीन कारण थे: मुश्रिकों के साथ शांति संधि की अस्थायी प्रकृति, अल्लाह से आदेश प्राप्त न करने की शर्त, और मुश्रिकों द्वारा संधि के साथ विश्वासघात और संधि को तोड़ना।[१५]
मकारिम शिराज़ी का यह भी मानना है कि मुसलमानों द्वारा संधि को रद्द करना कोई अनोखी बात नहीं थी, क्योंकि साक्ष्यों के अनुसार, यह स्पष्ट था कि यदि मुशरिक संधि को तोड़ने में सफल होते, तो वे मुसलमानों को भारी नुकसान पहुँचाते। उनके अनुसार, किसी राष्ट्र पर कुछ परिस्थितियों में थोपी गई संधियाँ सत्ता प्राप्त करने के बाद उल्लंघन के अधीन होती हैं।[१६]
टिप्पणीकारों के अनुसार, मक्का स्थित उनके सभा स्थल पर और ईद अल अज़्हा के दिन मुसलमानों और मुश्रिकों के बीच संधि को समाप्त करने की सार्वजनिक घोषणा, और उन्हें इस पर विचार करने के लिए चार महीने का समय देना, मुश्रिकों को आश्चर्यचकित न करने के लिए किया गया था, और यह इस्लाम के मानवीय सिद्धांतों के प्रति निष्ठा का प्रतीक है।[१७] अल्लामा तबातबाई के अनुसार, अल्लाह ने इस आदेश के साथ मुसलमानों को इस स्तर के विश्वासघात से भी मना किया है।[१८]
बहुदेववादियों को इस्लाम स्वीकार करने के लिए क्यों मजबूर किया जाता है
इस बारे में कि सूर ए बक़रा आयत 256 जैसी आयतों में धर्म स्वीकार करने में अनिच्छा को नकारने के बावजूद, बहुदेववादियों को इस्लाम स्वीकार करने के लिए क्यों मजबूर किया जाता है, यह कहा गया है कि इस्लाम धर्म लोगों को केवल बुद्धि और तर्क से धर्म की ओर बुलाता है और किसी को भी धर्म स्वीकार करने के लिए मजबूर नहीं करता; लेकिन कभी-कभी इस्लामी समाज के हित कुछ परिस्थितियों में यह आवश्यक कर देते हैं कि बहुदेववादी इसमें मौजूद न हों; क्योंकि वे समाज को नुकसान पहुँचाते हैं और उसमें भ्रष्टाचार फैलाते हैं। मुहम्मद जवाद मुग़्निया के अनुसार, इस्लाम स्वीकार करने के लिए मजबूर करने का नियम अरब प्रायद्वीप के बहुदेववादियों के लिए विशिष्ट था; क्योंकि शांति संधि होने के बावजूद, वे बार-बार उसका उल्लंघन करके नवजात इस्लामी समुदाय को नुकसान पहुँचा रहे थे, इसलिए उनके बारे में अल्लाह का आदेश था कि या तो उन्हें मार दिया जाए या वे इस्लाम धर्म अपना लें।[१९]
वाचा तोड़ने वालों की वाचा का सम्मान
अल्लामा तबातबाई, सूर ए तौबा की चौथी आयत का हवाला देते हुए, वाचा तोड़ने वाले काफिरों और वाचा निभाने वाले काफिरों के बीच अंतर बताते हैं, और कहते हैं कि जिन बहुदेववादियों ने मुसलमानों के साथ वाचा का पालन किया और उसे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से नहीं तोड़ा, वे बहुदेववादियों को दोषमुक्त करने के सामान्य नियम से मुक्त हैं, और मुसलमानों को ऐसे लोगों की वाचा का सम्मान करना चाहिए और वाचा के अंत तक उसका पालन करना चाहिए।[२०] बेशक, उनके अनुसार, अधिकांश बहुदेववादियों ने अपनी वाचा तोड़ दी थी और दूसरों के लिए कोई आश्वासन नहीं छोड़ा था।[२१]
फ़ुटनोट
- ↑ सादेक़ी तेहरानी, अल तफ़सीर अल मौज़ूई लिल कुरआन अल करीम, क़ुम, भाग 7, पेज 202; हस्कानी, शवाहिद अल तंज़ील, 1411 हिजरी, भाग 1, पेज 305; मजलिसी, बिहार उल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 69, पेज 152
- ↑ तबरेसी, मजमा उल बयान, 1372 शम्सी, भाग 5, पेज 3; अय्याशी, तफ़सीर अल अय्याशी, 1380 हिजरी, भाग 2, पेज 73।
- ↑ रजबी, इमाम अली दर अहदे पयाम्बर, पेज 209; इब्ने कसीर, अल बिदाया वल नियाहा, 1398 हिजरी, भाग 5, पेज 36-37।
- ↑ तबरी, तारीख अल उमम वल मुलूक, बैरात, भाग 3, पेज 42।
- ↑ रजबी, इमाम अली दर अहदे पयाम्बर, पेज 209।
- ↑ शुब्बर, तफ़सीर अल क़ुरआन अल करीम, 1410 हिजरी, भाग 1, पेज 199; मकारिम शिराज़ी, तफसीर नमूना, 1371 शम्सी, भाग 7, पेज 272।
- ↑ मुग्निया, अल कश्शाफ़, 1424 हिजरी, भाग 4, पेज 9।
- ↑ रजबी, इमाम अली दर अहदे पयाम्बर, पेज 209।
- ↑ इब्ने हमबल, मुसनद, 1421 हिजरी, भाग 2, पेज 427; इब्ने हंबल, फ़ज़ाइल अल सहाबा, 1403 हिजरी, भाग 2, पेज 703, हदीस 1203; इब्ने असाकिर, तारीख मदीना दमिश्क़, 1415 हिजरी, भाग 42, पेज 348, हदीस 8929; इब्ने साद, अल तब्क़ात अल कुबरा, बैरूत, भाग 1, पेज 168; मुफ़ीद, अल आमाली, क़ुम, पेज 56।
- ↑ याक़ूबी, तारीख अल याक़ूबी, दार अल बैरूत, भाग 2, पेज 76।
- ↑ मुग्निया, अल कश्शाफ़, 1424 हिजरी, भाग 4, पेज 8।
- ↑ तबरेसी, मजमा उल बयान, 1372 शम्सी, भाग 5, पेज 5; मुग्निया, अल कश्शाफ़, 1424 हिजरी, भाग 4, पेज 8; मकारिम शिराज़ी, तफ़सीर नमूना, 1371 शम्सी, भाग 7, पेज 282।
- ↑ मकारिम शिराज़ी, तफ़सीर नमूना, 1371 शम्सी, भाग 7, पेज 283।
- ↑ तबातबाई, अल मीज़ान, 1390 हिजरी, भाग 9, पेज 147।
- ↑ तबरेसी, मजमा उल बयान, 1372 शम्सी, भाग 5, पेज 283।
- ↑ मकारिम शिराज़ी, तफ़सीर नमूना, 1371 शम्सी, भाग 7, पेज 283।
- ↑ रज़ाई इस्फ़हानी, तफ़सीर क़ुरआन मेहेर, 1387 शम्सी, भाग 8, पेज 145; मकारिम शिराज़ी, तफ़सीर नमूना, 1371 शम्सी, भाग 7, पेज 284।
- ↑ तबातबाई, अल मीज़ान, 1390 हिजरी, भाग 9, पेज 147।
- ↑ मुग्निया, अल कश्शाफ़, 1424 हिजरी, भाग 4, पेज 109।
- ↑ तबातबाई, अल मीज़ान, 1390 हिजरी, भाग 9, पेज 150।
- ↑ तबातबाई, अल मीज़ान, 1390 हिजरी, भाग 9, पेज 147।
स्रोत
- अय्याशी, मुहम्मद बिन मसूद, अल तफ़सीर, शोधकर्ता हाशिम रसूली, तेहरान, मकतबा अल इस्लामिया, 1380 शम्सी।
- इब्ने असाकिर, अली बिन हसन, तारीख मदीना दमिशक, शोधः अली शीरी, बैरूत, दार अल फ़िक्र, 1415 हिजरी।
- इब्ने कसीर, अबुल फ़िदा इस्माईल बिन कसीर, अल हिदाया वल नेहाया, आमादेसाजीः खलील शुहादा, बैरूत, दार उल फ़िक्र, 1398।
- इब्ने साद, मुहम्मद बिन साद, अल तबक़ात अल कुबरा, बैरूत, दार अल बैरूत, बिना तारीख़।
- इब्ने हंबल, अहमद, फ़ज़ाइल अल सहाबा, शोधः वसीउल्लाह मुहम्मद अब्बास, बैरूत, मोअस्सेसा अल रेसाला, 1403 हिजरी।
- इब्ने हंबल, अहमद, मुसनद, शोधः शुऐब अल अरनऊत, आदिर मुरशिद और अन्य, बिना स्थान, मोआस्सेसा अल रेसाला, 1421 हिजरी।
- तबरी, मुहम्मद बिन जुरैर, तारीख अल उमम वल मुलूक, शोधः मुहम्मद अबुल फ़ज़्ल इब्राहीम, बैरूत, बिना प्रकाशक, बिना तारीख़।
- तबरेसी, फ़ज़्ल बिन हसन, मजमा उल बयान, तेहरान, नासिर खुस्रो, 1372 शम्सी।
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- मुग़्निया, मुहम्मद बिन मुहम्मद, अल तफसीर अल कश्शाफ़, क़ुम, दार अल किताब अल इस्लामी, 1424 हिजरी।
- मुफ़ीद, मुहम्मद बिन मुह्म्द, अल आमाली, शोधः हुसैन उस्ताद वली व अली अकबर ग़फ़्फ़ारी, क़ुम, मंशूरात जमाअ अल मुदर्रेसीन फ़िल हौज़ा अल इल्मिया, बिना तारीख़।
- याक़ूबी, अहमद बिन अबि याक़ूब, तारीख अल याक़ूबी, बैरूत, दार अल बैरुत, बिना तारीख़।
- रजबी, मुहम्मद हुसैन, इमाम अली दर अहदे पयाम्बर, दर दानिशनामा इमाम अली (अ), अली अकबर रशाद की देखरेख के अंतर्गत, भाग 8, तेहरान, इंतेशारात पुजूहिशगाह फ़रहंग व अंदीशे, 1380 शम्सी।
- रेज़ाई इस्फ़हानी, मुहम्मद अली, तफ़सीर क़ुरआन मेहेर, क़ुम, पुजूहिशहाए तफ़सीर व उलूम ए क़ुरआन, 1387 शम्सी।
- शुब्बर, अब्दुल्लाह, तफ़सीर अल क़ुरआन अल करीम, क़ुम, दार अल हिज्रा, 1410 हिजरी।
- सादेक़ी तेहरानी, मुहम्मदत अल फ़ुरक़ान फ़ी तफ़सीर अल क़ुरआन, क़ुम, फ़रहंग इस्लामी, 1406 हिजरी।
- हस्कानी, उबैदुल्लाह बिन अब्दुल्लाह, शवाहिद अल तंज़ील लेक़वाइद अल तफ़ज़ील, तेहरान, मरकज़ तब्अ व इंतेशारात वज़ारत फ़रहंग व इरशाद इस्लामी, 1411 हिजरी।