मुफ़्तरज़ अल ताआ
मुफ़्तरज़ अल-ताआ (अरबीःمُفْتَرَضُ الطاعَة) शियो के इमामो के लिए एक विशेष पद है, जिसका अर्थ किसी ऐसे व्यक्ति के है जिसकी आज्ञाकारिता बिल्कुल और बिना शर्त अनिवार्य (वाजिब) है। शिया विद्वान विभिन्न आयतो और रिवायतो जैसे आय ए ऊलिल अम्र, हदीस सक़लैन, हदीस सफ़ीना और हदीस मंज़ेलत इत्यादि का हवाला देते हुए अपने इमामो को मुफ़्तरज़ अल ताआ मानते है। उनमें से कुछ, जैसे शेख़ तूसी ने इमाम अली (अ) के मुफ़्तरज़ अल ताआ होने के माध्यम से उनकी इमामत साबित करने का तर्क दिया है।
शिया हदीस के स्रोतों मे उपरोक्त हदीसो के अलावा, ऐसी हदीसे भी हैं जिनमे शिया इमामो के मुफ़्तरज़ अल ताआ होने पर विस्तार से वर्णन हुआ हैं। अल-काफ़ी पुस्तक मे एक खंड इस मुद्दे के लिए समर्पित है और इसमे सत्रह हदीसे बयान की गई है।
हालांकि कुछ रिवायतों में यह उल्लेख किया गया है कि इमाम खुद को मुफ़्तरज़ अल ताआ नहीं मानते थे; लेकिन शिया विद्वानों ने इन परंपराओं को स्वीकार नहीं किया है। कुछ शोधकर्ताओं ने कहा है कि ये हदीसे तक़य्या की स्थिति मे जारी की गई है।
परिभाषा
मुफ़्तरज़ अल ताआ उस व्यक्ति को कहा जाता है जिसकी आज्ञाकारिता बिल्कुल और बिना शर्त अनिवार्य (वाजिब) है।[१] शिया विद्वान इसे इमामों के लिए एक विशेष पद मानते हैं।[२] अल्लामा मजलिसी मुफ़्तरज़ अल ताआ होने को इमामत की अनिवार्य शर्त मानते है और उनके अनुसार हदीस मंज़ेलत भी इसी बिंदु की ओर इशारा करती है।[३] कुछ लोगों ने यह भी कहा है कि इमामत और ईश्वरीय खिलाफत का अर्थ मूलतः मुफ़्तरज़ अल ताआ होना है।[४]
इमामो के मुफ़्तरज़ अल ताअत होने पर तर्क
शिया विद्वान आयतो और हदीसों के आधार पर मासूमीन (अ) की आज्ञाकारिता को वाजिब समझते है। आय ए उलिल अम्र, हदीस सक़लैन, हदीस सफ़ीना और हदीस मंज़ेलत उन आयतो और रिवायतो मे से है जिनसे उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि मासूमीन (अ) मुफ़्तरज़ अल ताआ है। इस बीच, ऐसे कथन भी हैं जिन्होंने स्पष्ट रूप से आज्ञाकारिता के मुद्दे का वर्णन किया है:
आय ए उलिल अम्र
आयत के अनुसार " أَطیعُوا اللَه وَ أَطیعُوا الرَّسُولَ وَ أُولِی الْأَمْرِ مِنْكُمْ؛ अतीउल्लाहा व अतीउर रसूला व उलिल अम्रे मिनकुम; अल्लाह की आज्ञा मानो और रसूल की आज्ञा मानो और उन लोगो की जो तुम मे आज्ञा देने वाले की आज्ञा मानो[५] भगवान और उनके दूत की आज्ञा का पालन करने के अलावा, सर्वोच्च नेता का पालन करना बिना शर्त के वाजिब (अनिवार्य) है।[६] अल्लामा तबताबाई के अनुसार उलिल अम्र का रसूल पर अतिऊ का शब्द बिना दुहराए लाना इस बात का सबूत है कि जिस प्रकार रसूल की आज्ञा का पालन करना वाजिब है उसी प्रकार बिना किसी शर्त के ऊलिल अम्र की आज्ञा का पालन करना भी वाजिब है।[७] शिया विद्वान रिवायतो के प्रकाश मे उलिल अम्र बारह इमामों को मानते है।[८]
मुफ़्तरज़ अल ताआ पर इशारा करने वाली हदीसे
हदीस सक़लैन मे, अहले-बैत (अ) को क़ुरआन के बराबर बयान किया गया है। जिस तरह मुसलमानों के लिए क़ुरआन का पालन करना अनिवार्य है, उसी तरह अहले-बैत (अ) का पालन करना भी अनिवार्य है।[९] चौथी और पांचवीं शताब्दी के शिया न्यायविद् और धर्मशास्त्री अबु अल-सलाह हल्बी के अनुसार इस हदीस मे पैग़म्बर (स) के शब्दों की पूर्णता के कारण, अहले-बैत (अ) का बिना शर्त पालन करना अनिवार्य है। इसलिए, मुसलमानों को अपने सभी व्यवहार और वाणी में उनका अनुसरण करना चाहिए।[१०]
हदीस सफ़ीना भी अहले-बैत (अ) का अनुसरण और पालन करने के दायित्व को इंगित करती है; क्योंकि इस हदीस के अनुसार, मोक्ष उनका पालन करने में है और विनाश और गुमराही उनकी अवज्ञा करने में है।[११] मीर हामिद हुसैन के अनुसार, इस हदीस के अनुसार, अहले-बैत (अ) का पालन करने का दायित्व बिना शर्त है।[१२]
शेख़ तूसी और अबु अल- सलाह हल्बी जैसे कुछ विद्वानों ने हदीस मंज़ेलत से इमाम अली (अ) के मुफ़्तरज़ अल ताआ होने का निष्कर्ष निकाला है और फ़िर इस मुद्दे से, उन्होंने आपकी इमामत साबित की है[१३] शेख तूसी ने लिखा है कि पैग़म्बर (स) हदीस मंज़ेलत मे इमाम अली (अ) और अपने बीच का रिश्ता हारून का मूसा के साथ रिश्ते के समान बताया है। चूँकि हारून मूसा के उत्तराधिकारी होने के कारण मुफ़्तरज़ अल ताआ थे, इमाम अली (अ) भी मुफ़्तरज़ अल ताआ है और इससे साबित होता है कि आप इमाम भी हैं।[१४]
मुफ़्तरज़ अल ताआ होने का उल्लेख करने वाली हदीसे
हदीसी स्रोत मे कुछ हदीसो का वर्णन हुआ है जो आइम्मा मासूमीन (अ) के मुफ़्तरज़ अल ताआ होने का उल्लेख करती है। मुहम्मद बिन याक़ूब कुलैनी ने किताब अल काफ़ी मे "बाबो फ़र्ज़े ताअतिल आइम्मा" नामक अध्याय मे इस संदर्भ में सत्रह हदीस एकत्रित की हैं[१५] इन हदीसो मे से एक हदीस मे इमाम सादिक़ (अ) ने अपने से पहले वाले आइम्मा के मुफ़्तरज़ अल ताआ होने की गवाही देते हुए उन्हे अल्लाह की ओर उनकी आज्ञा पालन करना अनिवार्य बताते है[१६] एक दूसरी हदीस मे जो इमाम सादिक़ (अ) से नक़ल की गई है जिसमे इमाम सादिक़ (अ) ने अल्लाह की कसम खाते हुए मुफ़्तरज़ अल ताआ इमाम के पद और उनकी स्थिति तथा महत्व का उल्लेख करते है और फ़रमाते हैः कि पृथ्वी पर मुफ़्तरज अल ताआ (आज्ञाकारिता) के दायित्व से ऊँचा पद नहीं है, एक लंबे समय से ईश्वर द्वारा इब्राहीम पर वही होती चली आ रही थी; लेकिन आप मुफ़्तरज़ अल ताआ नही थे जबतक कि आपको इमामत का पद नहीं दिया।[१७] अल्लामा मजलिसी ने बिहार उल अनवार में इमाम रज़ा (अ) से यह भी वर्णन किया कि इस पद की घोषणा पैग़म्बर (स) के जीवनकाल के दौरान की गई थी। ग़दीर के दिन उनके साथ एक समझौता किया गया।[१८]
हदीस की किताबों में ऐसी भी खबरे हैं जहां लोग इमामों के सामने गवाही देते हैं कि वे विनम्र हैं और उन्हें इमाम स्वीकार करते हैं।[१९]
विरोधाभासी हदीसे
शिया हदीस स्रोतो मे ऐसी रिवायते भी है जो संकेत देती हैं कि शिया इमामों ने स्वयं अपने मुफ़्तरज़ अल ताआ होने को अस्वीकार किया है। उनमे शेख़ तूसी द्वारा सुनाई गई एक हदीस भी शामिल है। इस हदीस के अनुसार दो लोग इमाम सादिक़ (अ) के पास आते है और उनमें से एक उनसे पूछता है: "क्या मुफ़्तरज़ अल ताआ इमाम आप हैं?" इमाम ने उत्तर दिया: "मैं हमारे बीच ऐसे किसी व्यक्ति को नहीं जानता।" फिर वह व्यक्ति कहता है: "कूफ़ा में एक समूह वह आपको मुफ़्तरज़ अल ताआ इमाम जानता है।" इमाम फ़रमाते हैं: "हमने उन्हें ऐसा करने का उन्हो कोई आदेश नहीं दिया है।"[२०]
इसके अलावा, शेख़ मुफ़ीद ने अल-इखतेसास में उल्लेख किया है कि इमाम काज़िम (अ) ने मुफ़्तरज़ अल ताआ होने के अक़ीदे (आस्था, विश्वास) को ग़ालीयो का अक़ीदा क़रार देते हुए इसे खारिज कर दिया।[२१]
विरोधाभासी हदीसों के बारे में शिया विद्वानों का दृष्टिकोण
शिया विद्वान मासूम इमामों के मुफ़्तरज़ अल ताआ होने के विरुद्ध हदीसों को स्वीकार नहीं करते हैं और मानते हैं कि शिया इमाम मुफ़्तरज़ अल ताआ है।[२२] शेख़ सदूक़, शेख मुफ़ीद और शेख़ तूसी हदीस मंज़ेलत का हवाला देते हुए शियो के इमामो को मुफ़्तरज़ अल ताआ समझते है।[२३]
कुछ शोधकर्ताओं ने कहा है कि जिन हदीसों में इमामों ने अपने मुफ़्तरज़ अल ताआ होने से इनकार किया है, वे तक़य्या के कारण व्यक्त की गई हैं। उनके अनुसार इमाम सादिक़ (अ) और इमाम काज़िम (अ) के समय मे आइम्मा मासूमीन (अ) का मुफ़्तरज़ अल ताआ होने का अक़ीदा प्रचलित हुआ था इसी कारण बनी अब्बास के ख़लीफ़ा इसके प्रति संवेदनशील हो गए; क्योंकि उन्होंने इस राय को अपनी राजनीतिक जीवन के लिए खतरा समझते थे।[२४]
फ़ुटनोट
- ↑ दिज़फ़ूली, बर रसी शवाहिद तारीख़ी बावरमंदी शिया बे मक़ाम मुफ़तरिज अल ताआ बूदने इमाम, पेज 32
- ↑ ग़ुलामी, दलालत हदीस मंज़ेलत बर मक़ाम मुफ़तरिज़ अल ताआ, पेज 81; दिज़फ़ूली, बर रसी शवाहिद तारीख़ी बावरमंदी शिया बे मक़ाम मुफ़तरिज अल ताआ बूदने इमाम, पेज 37; देखेः शेख सदूक़, मआनी अल अख़बार, 1403 हिजरी, पेज 78; शेख मुफ़ीद, अल इरशाद, 1413 हिजरी, पेज 156-157; शेख तूसी, अल इक़्तेसाद, 1406 हिजरी, पेज 352
- ↑ देखेः मजलिसी, बिहार उल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 37, पेज 282
- ↑ शफ़ती, अल इमामा, 1411 हिजरी, भाग 3, पेज 22
- ↑ सूर ए नेसा, आयत न 59
- ↑ देखेः तबरेसी, मजमा अल बयान, 1372 शम्सी, भाग 3, पेज 100 तबातबाई, अल मीज़ान, 1390 शम्सी, भाग 4, पेज 391
- ↑ तबातबाई, अल मीज़ान, 1390 शम्सी, भाग 4, पेज 391
- ↑ तूसी, अल तिबयान फ़ी तफ़सीर अल क़ुरआन, दार एहया अल तुरास अल अरबी, भाग 3, पेज 236; तबरेसी, मजमा अल बयान, 1372 शम्सी, भाग 3, पेज 100; तबातबाई, अल मीज़ान, 1390 हिजरी, भाग 4, पेज 398-399
- ↑ देखेः हल्बी, अल काफ़ी फ़ी अल फ़िक़्ह, 1403 हिजरी, पेज 97
- ↑ हल्बी, अल काफ़ी फ़ी अल फ़िक़्ह, 1403 हिजरी, पेज 97
- ↑ मुज़फ़्फ़र, दलाइल अल सिद्क़, 1422 हिजरी, भाग 6, पेज 262-263
- ↑ मीर हामिद हुसैन, अबक़ात अल अनवार, 1366 शम्सी, भाग 23, पेज 975
- ↑ शेख तूसी, अल इक़तेसाद, 1406 हिजरी, पेज 352; हल्बी, तकरीब अल मआरिफ़, 1404 हिजरी, पेज 210
- ↑ शेख तूसी, अल इक़तेसाद, 1406 हिजरी, पेज 352
- ↑ देखेः कुलैनी, अल काफ़ी, 1407 हिजरी, भाग 1, पेज 185-190
- ↑ कुलैनी, अल काफ़ी, 1407 हिजरी, भाग 1, पेज 186
- ↑ सफ़्फ़ार, बसाइर अल दरजात, 1404 हिजरी, भाग 1, पेज 509; मजलिसी, बिहार उल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 25, पेज 141
- ↑ मजलिसी, बिहार उल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 37, पेज 325
- ↑ शेख तूसी, रेजाल अल कशी (इखतेयार मारफ़त अल रेजाल), 1384 शम्सी, भाग 2, पेज 719; कुलैनी, अल काफ़ी, 1407 हिजरी, भाग 1, पेज 188
- ↑ शेख तूसी, रेजाल अल कशी (इखतेयार मारफ़त अल रेजाल), 1384 शम्सी, भाग 2, पेज 427
- ↑ मुफ़ीद, अल इख़तेसास, 1413 हिजरी, पेज 55
- ↑ देखेः शेख सदूक़, मआनी अल अख़बार, 1403 हिजरी, पेज 78; शेख मुफ़ीद, अल इरशाद, 1413 हिजरी, पेज 156-157; शेख़ तूसी, अल इक़तेसाद, 1406 हिजरी, पेज 352; मजलिसी, बिहार उल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 37, पेज 282; शफती, अल इमामा, 1411 हिजरी, भाग 3, पेज 22
- ↑ देखेः शेख सदूक़, मआनी अल अख़बार, 1403 हिजरी, पेज 78; शेख मुफ़ीद, अल इरशाद, 1413 हिजरी, पेज 156-157; शेख तूसी, अल इक़तेसाद, 1406 हिजरी, पेज 352
- ↑ दिज़फ़ूली, बर रसी शवाहिद तारीख़ी बावरमंदी शिया बे मक़ाम मुफ़तरिज अल ताआ बूदने इमाम, पेज 47-49
स्रोत
- हल्बी, अबू अल सलाह, तकरीब अल मआरिफ़, क़ुम, अल हादी, 1404 हिजरी
- हल्बी, अबू अल सलाह, अल काफ़ी फ़ी अल फ़िक्ह, शोधः रज़ा उस्तादी, इस्फहान, मकतब अल इमाम अमीर अल मोमेनीन (अ), पहला संस्करण, 1403 हिजरी
- दिज़फ़ूली, मुहम्मद अली, बर रसी शवाहिद तारीख़ी बावरमंदी शिया बे मक़ाम मुफ़तरिज अल ताआ बूदने इमाम, बा ताकीद बर सह क़र्ने अव्वल, दर फ़सल नामा इमामत पुज़ूही, तीसरा साल, क्रमांक 9, बहार 1392 शम्सी
- शफ़ती, असदुल्लाह मूसवी, अल इमामा, शोधः सय्यद महदी रजाई, मकतब सय्यद हुज्जतुल इस्लाम शफ़ती, इस्फ़हान, 1411 हिजरी
- शेख सदूक़, मुहम्मद बिन अली, मआनी अल अखबार, संशोधनः अली अकबर गफ़्फ़ारी, क़ुम, दफतर इंतेशारात इस्लामी, पहला संस्करण, 1403 हिजरी
- शेख तूसी, मुहम्मद बिन हसन, अल इक़तेसाद फ़ी मा यताअल्लक़ो बिल ऐतेकाद, बैरूत, दार अल अज़्वा, दूसरा संस्करण, 1406 हिजरी
- शेख तूसी, मुहम्मद बिन हसन, अल तिबयान फ़ी तफसीर अल क़ुरआन, बैरूत, दार एहया अल तुरास अल अरबी, पहला संस्करण
- शेख तूसी, मुहम्मद बिन हसन, रेजाल अल कशी (इखतेयार मारफ़त अल रेजाल), मशहद, दानिशगाह मशहद, 1384 शम्सी
- शेख मुफ़ीद, मुहम्मद बिन मुहम्मद, अल इखतेसास, शोधः अली अकबर गफ़्फ़ारी व महमूद महरमी ज़रंदी, कुंगरे शेख मुफ़ीद, क़ुम, 1413 हिजरी
- शेख मुफ़ीद, मुहम्मद बिन मुहम्मद, अल इरशाद फ़ी मारफ़त हुजाजिल लाहे अलल ऐबाद, शोध एंव संशोधनः मोअस्सेसा आले अल-बैत (अलैहेमुस सलाम), क़ुम, कुंगरे शेख मुफ़ीद, पहला संस्करण 1413 हिजरी
- सफ़्फ़ार, मुहम्मद बिन अल हसन, बसाइर अल दरजात फ़ी फ़ज़ाइल आले मुहम्मद, क़ुम, किताब खाना आयतुल्लाह मरअशी नजफ़ी, 1404 हिजरी
- तबातबाई, सय्यद मुहम्द हुसैन, अल मीज़ान फ़ी तफसीर अल क़ुरआन, बैरूत, मोअस्सेसा आलमी, दूसरा संस्करण, 1390 हिजरी
- तबरेसी, फ़ज़्ल बिन हसन, मजमा अल बयान फ़ी तफ़सीर अल क़ुरआन, संशोधनः फ़ज़्लुल्लाह यज़्दी व हाशिम रसूली महल्लाती, तेहरान, नासिर खुसरू, तीसरा संस्करण 1372 शम्सी
- ग़ुलामी, असग़र, दलालत हदीस मंज़ेलत बर मक़ाम फ़र्ज़ अल ताआ, दर सफ़ीना, क्रमांक 13, 1385 शम्सी
- कुलैनी, मुहम्मद बिन याक़ूब, अल काफ़ी, संशोधनः अली अकबर ग़फ़्फ़ारी, दार अल कुतुब अल इस्लामीया, तेहरान, 1363 शम्सी
- मजलिसी, मुहम्मद बाक़िर, बिहार उल अनवार अल जामेअते लेदोररे अखबारे अल आइम्मातिल अत्हार, बैरूत, दार एहया अल तुरास अल अरबी, दूसरा संस्करण, 1403 हिजरी
- मुज़फ़्फ़र, मुहम्मद हसन, दलाइल अल सिदक़ लेनहज अल हक़, क़ुम, मोअस्सेसा आले अल-बैत (अलैहेमुस सलाम) पहला संस्करण 1422 हिजरी
- मीर हामिद हुसैन, सय्यद महदी, अबक़ात अल अनवार फ़ी इमामत अल आइम्मा अल अत्हार, इस्फ़हान, किताबखाना अमीर अल मोमेनीन (अ), दूसरा संस्करण, 1366 शम्सी