इमामिया
- यह लेख शिया इसना अशरी के बारे में है। शिया धर्म के लिए, शिया देखें।
इमामिया या शिया इसना अशरी, (अरबी: الإمامية) शिया संप्रदाय की सबसे बड़ी शाखा है। शिया इमामीयो के अनुसार, पैगंबर (स) के बाद समाज का नेतृत्व इमाम के पास रहता है और इमाम की नियुक्ति ईश्वर द्वारा की जाती है। शिया इमामी हदीस पर आधारित जैसे हदीसे ग़दीर हज़रत अली (अ) को पैगंबर ए इस्लाम (स.अ.व.व.) का उत्तराधिकारी पहला इमाम मानते है। वे बारह इमामों में विश्वास करते हैं और उनका मानना है कि बारहवें इमाम महदी जीवित और गुप्त हैं। ज़ैदिया और इस्माइलिया दो अन्य शिया संप्रदाय, इमामिया के सभी बारह इमामों पर विश्वास नहीं करते वे इमामों की संख्या को बारह तक सीमित नहीं जानते हैं।
इमामी शिया धर्म के सिद्धांत पांच चीजें हैं। दूसरे मुसलमानों की तरह, वे एकेश्वरवाद (तौहीद), नबूवत और क़यामत को अपने धर्म के सिद्धांतों के रूप में मानते हैं। इनके अलावा, वे इमामत और अद्ल के दो सिद्धांतों में विश्वास करते हैं, जो उन्हें सुन्नी संप्रदाय से अलग करता है। रज्अत इमामिया की ख़ास मान्यताओं में से एक है। इस मान्यता के अनुसार मृतको में से कुछ इमाम महदी (अ) के ज़हूर के बाद दुनिया में लौट आएंगे।
शिया इमामिया जीवन में कई काम करते हैं, जैसे इबादात, लेन-देन और शरियत के अनुसार वुजूहात ए शरिया की अदाएगी। शिया इमामिया अपने फ़िक्ही, एतेक़ादी, नैतिक आदि विचारों के लिए चार स्रोतों, कुरआन, इस्लाम के पैगंबर (स) और बारह इमामों (अ) सुन्नत, अक़्ल और इजमाअ (आम सहमति) का उल्लेख करते हैं। शेख़ तूसी, अल्लामा हिल्ली और शेख़ मुर्तज़ा अंसारी सबसे प्रमुख फ़ुक़्हा में से हैं, और शेख़ मुफ़ीद, ख़्वाजा नसीरूद्दीन तूसी और अल्लामा हिल्ली इमामिया के प्रसिद्ध धर्मशास्त्री (मुतकल्लेमीन) हैं।
907 हिजरी में शाह इस्माइल ने सफ़वी सरकार की स्थापना की और ईरान में इमामिया संप्रदाय को आधिकारिक बना दिया। इस सरकार ने ईरान में इमामी धर्म के विस्तार में बड़ी भूमिका निभाई। इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान, ईरान की वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था का नाम है, जिसका गठन उसूले मज़हब और फ़िक्ह ए शिया 12 इमामी के आधार पर किया गया है।
ईदे ग़दीर, इमाम अली (अ.स.) का जन्मदिन, हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स) का जन्मदिन और नीम ए शाबान विशेष रूप से शिया इमामियो की सबसे बड़ी ईदे हैं। निर्दोषों के लिए शोक, विशेष रूप से मुहर्रम के महीने में इमाम हुसैन (अ) और उनके साथियों के लिए शोक उनके अन्य महत्वपूर्ण अनुष्ठानों में से एक है। चौदह मासूमीन (अ) के शहादत के दिनो पर विशेष रूप से मोहर्रम के महीने मे इमाम हुसैन (अ) और उनके बावफा असहाब की याद मे अज़ादारी करना उनके अन्य महत्वपूर्ण अनुष्ठानों में से एक है।
दुनिया में शियों की संख्या के कोई सटीक मालूमात नहीं हैं, सामान्य रूप से जब शिया संप्रदाय की जनसंख्या की बात होती है तो उसमें ज़ैदीया और इस्माइलीया शिया संप्रदाय भी शामिल हैं। कुछ आंकड़ों के अनुसार, दुनिया में शियों की जनसंख्या 154 से 200 मिलियन लोगों के बीच है, जो दुनिया के मुसलमानों की 10 से 13% जनसंख्या के बराबर है, और कुछ दूसरे आंकड़ों के अनुसार, 300 मिलियन से अधिक, यानी दुनिया की मुस्लिम आबादी का 19% है। अधिकांश शिया इन चार देशों ईरान, इराक़, पाकिस्तान और भारत मे रहते है जिनकी संख्या 68 से 80 प्रतिशत है।
इमामिया का इतिहास
शिया इमामिया के उदय (इतिहास) के संबंध मे मतभेद पाया जाता है, जिसमे इस्लाम के पैंगबर (स.अ.व.व.) के समय से, सक़ीफ़ा की घटना के पश्चात, उस्मान के हत्याकांड के बाद, और हकमियत की घटना के बाद शियों के जन्म की तारीख के रूप में वर्णित किया गया है।[१] सय्यद मुहम्मद हुसैन तबातबाई, चौदहवीं शताब्दी हिजरी के फिलॉसफर और क़ुरआन के व्याख्याकार के मान्यता के अनुसार, शिया का उदय जिन्हें शुरू में "शिया-ए-अली" कहा जाता था, पैग़म्बर मुहम्मद (स) के जीवनकाल से ही हुआ था।[२]
इस्लाम के उदय के बाद कई शताब्दियों तक, "शिया" शब्द केवल उन लोगों के लिए प्रयोग नहीं किया जाता था जो इमामों की दैवीय नियुक्ति में विश्वास रखते थे, बल्कि अहले बैत के प्रेमियों या उन लोगों को भी "शिया-ए-अली" कहा जाता था जो हज़रत अली (अ) को उस्मान पर प्राथमिकता देते थे।[३] अहले बैत (अ) के अधिकांश साथी, इन दोनों श्रेणियों में से थे।[४]
कहा जाता है कि हज़रत अली (अ) के समय से ही "एतेक़ादी शिया" अस्तित्व में थे, यानी उनके कुछ अनुयायियों का मानना था कि वह ईश्वर द्वारा इमामत के लिए नियुक्त किए गए थे।[५] हालाँकि, इस समूह की संख्या बहुत कम थी।[६]
इमाम हसन (अ.स.) और इमाम हुसैन (अ.स.) की इमामत के समय मे इमामी शियों की संख्या में वृद्धि हुई, लेकिन यह अभी भी इतनी संख्या मे नही थे जिन्हे एक धार्मिक संप्रदाय का नाम दिय जा सके।[७] उस समय अहले-बैत (अ) के शिया और प्रेमी बड़ी संष्या मे थे, लेकिन कुछ रिवायात मे इलाही अधिकारियों के रूप में मानने वालों की संख्या पचास से कम बताई गई है।[८]
तीसरी चंद्र शताब्दी के अंत से, शिया इमामिया दूसरे शिया संप्रदायों से अलग हो गए थे। इमाम हसन अस्करी (अ.स.) की शहादत के बाद, शियों का एक समूह जो यह मानता था कि पृथ्वी कभी भी इमाम के बिना बाकी नहीं रह सकती, बारहवें इमाम के अस्तित्व और उनकी ग़ैबत (अनुपस्थिति) में विश्वास करने लगे। यही समूह शिया इमामिया अथवा शिया बारह इमामी के रूप में जाना जाने लगा।[९] उस समय से धीरे-धीरे इस शिया संप्रदाय की संख्या में वृद्धि हुई; इस तरह से शेख़ मुफ़ीद के अनुसार, उनके समय अर्थात 373 हिजरी के दौरान, शिया बारह इमामी दूसरे शिया संप्रदायों की तुलना मे अधिक थे।[१०]
विश्वास
शिया इमामियो की पांच चीज़े सिद्धान्त है। मुसलमानो के दूसरे संप्रदायो के भांति शिया इमामिया भी तौहीद, नबूवत और क़यामत को अपने धार्मिक सिद्धांतो मे शुमार करते है इसके अलावा और दो सिद्धांत अद्ल और इमामत पर विश्वास रखते है जोकि इनको अहले सुन्नत से अलग करते है।[११] इनके अनुसार पैगंबर (स.अ.व.व.) के पश्चात इमाम नामी व्यक्ति को उनका स्थान लेकर उनके मिशन को आगे बढ़ाना चाहिए। शिया समुदाय पैगंबर की भांति इमाम का चयन भी अल्लाह की ओर से विश्वास रखते है और कहते है, कि अल्लाह पैगंबर (स) के माध्यम से जनता को इमाम का परिचय कराता है।[१२]
बारह इमामो को मानने वाले शिया जो रिवायत पैगंबर से नक़ल हुई है उन रिवायात के अनुसार इस बात पर विश्वास रखते है कि पैगंबर ने अल्लाह के आदेश से इमाम अली (अ.स.) को अपना उत्तराधिकारी और पहला इमाम घोषित किया।[१३] ज़ैदीया, इस्माईलिया और दूसरे शिया संप्रदायो के विपरीत जो इमामो की संख्या बारह तक सीमित नही समझते, शिया इमामिया कुछ हदीसो जैसे हदीसे लौह का हवाला देते हुए केवल बारह इमामो[१४] की इमामत पर विश्वास करते है। जोकि निम्मलिखित है।
- अली बिन अबी तालिब (इमाम अली (अ))
- हसन बिन अली (इमाम हसन (अ))
- हुसैन बिन अली (इमाम हुसैन (अ))
- अली बिन हुसैन (इमाम सज्जाद (अ))
- मुहम्मद बिन अली (इमाम बाक़िर (अ))
- जाफ़र बिन मुहम्मद (इमाम सादिक़ (अ))
- मूसा बिन जाफ़र (इमाम काज़िम (अ))
- अली बिन मूसा (इमाम रज़ा (अ))
- मुहम्मद बिन अली (इमाम मुहम्मद तक़ी (अ))
- अली बिन मुहम्मद (इमाम अली नक़ी (अ))
- हसन बिन अली (इमाम असकरी (अ))
- हुज्जत बिन हसन (इमाम महदी (अ))[१५]
बारह इमामो को मानने वाले शिया संप्रदाय के अनुसार बारहवे इमाम इमाम महदी जीवित है। जो ग़ैबत ए कुबरा (अर्थात जनता की आंखो से ओझल) जीवन व्यतीत कर रहे है। जो एक दिन अल्लाह के आदेश से क़याम करके धरती को अद्ल और इंसाफ से भर देंगे।[१६]
इमामिया अद्ल को भी इमामत की भांति उसूले दीन मे क़रार देते है इसी कारण वंश मोअतज़ेला की तरह इमामिया को भी अदलिया कहा जाता है। अद्ल का अर्थ है कि अल्लाह अपनी कृपा और दया एंवम सवाब को अपने बंदो के ज़ाति अधिकार की बुनियाद पर देता है। और किसी पर भी सूक्ष्म कण के बराबर भी अत्याचार नही करता है।[१७] रज'अत और बदा शिया इमामिया के विशेष मान्यताओं में से हैं।[१८] रज'अत का अर्थ यह है कि इमाम महदी (अ) के ज़ुहूर के बाद, कुछ विश्वासियों, शियों और अहले बैत (अ) के दुश्मनों, जो मर चुके हैं, को फिर से जीवित किया जाएगा और बुरे लोगों को उनके कर्मों का फल मिलेगा।[१९] इसी तरह, कई हदीसों में इमाम मेहदी (अ) के ज़माने में पैग़म्बरों, अल्लाह के अवलिया विशेषकर इमाम अली (अ), इमाम हुसैन (अ) और अहले बैत (अ) के रज'अत (वापसी) की बात की गई है।[२०] बदा की शिक्षा के अनुसार, अल्लाह कभी-कभी कुछ मसलहतों (हितों) के तहत अपने पैग़म्बर या इमाम को कोई बात प्रकट करता है, लेकिन बाद में उसे बदल देता है और दूसरा फैसला करता है।[२१]
अवाए लुल-मक़ालात, तस्ही उल-एतेक़ाद, तजरीद उल-एतेक़ाद और कश्फ़ुल-मुराद शिया इमामीयो के प्रसिद्ध धर्मशास्त्र (कलामी किताबे) है।[२२] शेख़ मुफ़ीद (336 या 338-413 हिजरी), शेख़ तूसी (385-460 हिजरी), ख़्वाजा नसीरूद्दीन तूसी (597-672 हिजरी) और अल्लामा हिल्ली (648-726 हिजरी) सबसे प्रमुख इमामी धर्मशास्त्रियों में से हैं।[२३]
इमामिया और दूसरे शिया संप्रदायों के बीच अंतर
- यह भी देखें:ज़ैदिया और इस्माईलिया
ज़ैदिया और इस्माईलिया अन्य शिया संप्रदाय इमामिया की तरह सभी बारह इमामों को स्वीकार नहीं करते हैं। वे इमामों की संख्या को बारह तक सीमित नहीं करते हैं। ज़ैदिया का मानना है कि पैगंबर ने केवल तीन लोगों की इमामत इमाम अली (अ), इमाम हसन (अ) और इमाम हुसैन (अ) को निर्दिष्ट किया।[२४] उनके बाद, किसी भी समय, अगर हज़रत फ़ातेमा ज़हरा की नस्ल से एक तपस्वी (ज़ाहिद), बहादुर और उदार (सख़ावतमंद) व्यक्ति सही ढंग से क़याम करता है, तो वह इमाम है।[२५] ज़ैद बिन अली, यहया बिन ज़ैद, मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह बिन हसन (नफ़्से ज़किया), इब्राहीम बिन अब्दुल्लाह और शहीद फ़ख़ ज़ैदीयो के इमाम है।[२६]
इस्माइलिया इमामिया के दूसरे इमाम इमाम हसन मुज्तबा (अ) की इमामत को स्वीकार नही करते है।[२७] इमामिया के दूसरे इमामो की इमामत को केवल इमाम सादिक़ (अ) तक ही स्वीकार करते है।[२८] यह शिया संप्रदाय इमाम सादिक़ की इमामत के पश्चात उनके बेटे इस्माइल और उनके बेटे मुहम्मद की इमामत को स्वीकार करते है।[२९] इस्माइली संप्रदाय के अनुसार, इमामत की अलग-अलग अवधि होती है और प्रत्येक अवधि में सात इमाम नेतृत्व करते हैं।[३०]
अहकाम
इमामिया संप्रदाय में अन्य इस्लामी संप्रदायो की तरह जीवन के महत्वपूर्ण मामले जैसे इबादात, मामलात अर्थात लेन-देन, शरिया शुल्क का भुगतान (वाजिबाते शरिया की अदाएगी) जैसे ख़ुम्स और ज़कात, शादी और मीरास का विभाजन से संबंधित शरीयत के विभिन्न नियमों पर चर्चा की जाती है।[३१] क़ुरआन और बारह इमामों की हदीसें, शिया इमामिया के धार्मिक नियमों (अहकाम) के दो प्रमुख स्रोत हैं।[३२] इन नियमों को प्राप्त करने के लिए दिरायत (हदीस विज्ञान), रेजाल (हदीस वर्णनकर्ताओं का अध्ययन), उसूल-ए-फ़िक़्ह (धर्मशास्त्र के सिद्धांत) और फ़िक़्ह (इस्लामी न्यायशास्त्र) जैसे विज्ञानों की सहायता ली जाती है।[३३]
शराए उल-इस्लाम, अल-लुम्आ तुत-दमिश्क़िया, शरह लुम्आ, जवाहिर उल-कलाम, मकासिब और अल-उर्वा तुल-वुस्क़ा शियो की प्रसिद्ध फ़िक़्ही किताबों मे से है।[३४] शेख़ तूसी, मुहक़्क़िक़ हिल्ली, अल्लामा हिल्ली, शहीद अव्वल, शहीद सानी, काशिफ़ उल-ग़िता, मिर्ज़ा क़ुम्मी और शेख़ मुर्तज़ा अंसारी इस संप्रदाय के महत्वपूर्ण और प्रमुख धर्मशास्त्रीयो मे से है।[३५]
मरजा ए तक़लीद
- मुख्य लेख:मरजा ए तक़लीद
आज कल शरई अहकाम को मराजा ए तक़लीद तौज़ीह उल-मसाइल नामक किताबों में बयान करते है।[३६] मरजा ए तक़लीद ऐसा मुजतहिद व्यक्ति है कि जिसका दूसरे अनुसरण करते हैं; अर्थात्, अपने धार्मिक कार्यों को फ़क़्ही के फतवे के आधार पर अंजाम देते है और शरई वुजूहात (ख़ुम्स और ज़कात इत्यादि) खुद उनको या उनके प्रतिनिधियों को भुगतान करते हैं।[३७]
धार्मिक अनुष्ठान

ईद उल-फ़ित्र, ईद उल-अज़्हा, ईदे मबअस और मीलादे पैंग़बर (स.अ.व.व.) जिसे सभी मुसलमान मनाते है, के अलावा ईदे ग़दीर, पैंग़बर (स.अ.व.व.), हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (अ) और दूसरे इमामों (अ.स.) के जन्मदिन और 15 शाबान इमामी शियों की सबसे महत्वपूर्ण ईदे हैं।[३८]
इमामिया संप्रदाय मे उपरोक्त सभी ईदो के विशेष आमाल है जैसे ईद उल-अज़्हा के आमाल मे ग़ुस्ल करना, ईद की नमाज़ पढ़ना, क़ुर्बानी करना, इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत और दुआ-ए नुदबा पढ़ना मुसतहब है।[३९]
शिया अहले-बैत से अपनी मुहब्बत का इज़्हार करने के लिए साल के कुछ दिनो मे अज़ादारी करते है।[४०] अज़ादारी के यह अनुष्ठान हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) और आपके बावफ़ा साथीयो की शहादत के अवसर पर मोहर्रम अल हराम के पहले अशरे मे अंजाम पाते है। इसके अलावा सफ़र के अंतिम दस दिनो मे अरबईन और अय्यामे फ़ातिमिया मे भी अज़ादारी का आयोजन होता है। पैग़ंबर (स.अ.व.व.) और अहले-बैत (अ.स.) की ज़ियारत इमामी शियों के सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक संस्कारों में से एक है।[४१] वे इमाम ज़ादो और अन्य बड़ों और धार्मिक विद्वानों के मक़बरो की ज़ियारत को भी महत्वपूर्ण मानते हैं।[४२] शिया हदीस मे दुआ और मुनाजात पर भी विशेष ध्यान दिया गया है इसी को ध्यान मे रखते हुए विभिन्न किताबों मे कई प्रकार की दुआए, ज़ियारते इमामों और कुछ विद्वानों की जबानी बयान की गई है।[४३] कुछ प्रसिद्ध दुआए और मुनाजात इस प्रकार है। दुआ ए कुमैल[४४] दुआ ए अरफ़ा[४५], दुआ ए नुदबा[४६] , मुनाजाते शाबानिया[४७] , दुआ ए तवस्सुल[४८], ज़ियारते आशूरा[४९], ज़ियारते जामेआ ए कबीरा[५०] और ज़ियारते अमीनुल्लाह।[५१]
शिया इमामीया शिक्षा के स्रोत
शिया अपने कलामी (धार्मिक-दार्शनिक), फ़िक़्ही (न्यायशास्त्रीय), नैतिक (अख़्लाक़ी) और अन्य विचारों के लिए चार मुख्य स्रोतों का हवाला देते हैं: क़ुरआन, पैग़म्बर और इमामों की हदीसें, अक़्ल (तर्क एवं बुद्धि), इज्मा (धार्मिक विद्वानों की सहमति)।[५२]
* कुरआन
- मुख्य लेखः क़ुरआन
शिया इमामी क़ुरआन को सबसे महत्वपूर्ण और प्रथम स्रोत मानते है। शियो के यहा क़ुरआन का महत्व इतना अधिक है कि जहा पर भी कोई रिवायत क़ुरआन की किसी भी आयत से टकराए तो उसे मोतबर नही समझते है।[५३] अल-तमहीद के अनुसार सभी शिया क़ुरआन को सही और कामिल समझते है।[५४]
- पैग़म्बर और इमामों की हदीसें
- मुख्य लेखः हदीस
इमामिया, इस्लाम के दूसरे संप्रदायो की भांति पैगंबर अकरम (स) की सुन्नत अर्थात करनी और कथनी को हुज्जत समझते है।[५५] शिया कुछ हदीस जैसे हदीसे सक़लैन और हदीसे सफ़ीना इत्यादि जिनमे अहले-बैत (अ.स.) की ओर रुजूअ और उनका पालन करने के आदेश का उल्लेख करते हुए अहले-बैत (अ.स.) की सुन्नत को भी अपनी शिक्षाओ को मुख्य स्रोतो मे से एक मानते है।[५६] इसी महत्व को देखते हुए शिया पैगंबर (स) और अहले-बैत (अ.स.) की हदीसों को संकलित करने और उनके संरक्षण पर अधिक ध्यान देते हैं।[५७]
शिया इमामियो की महत्वपूर्ण किताबे उसूले काफ़ी, तहज़ीब उल-अहकाम, अल-इस्तिबसार, मन-ला याहज़ुर अल-फ़क़ीह जो कुतुब ए अरबआ (चार किताबे) अथवा उसूले अरबा के नाम से प्रसिद्ध है।[५८] अल-वाफ़ी, बिहार उल-अनवार, वसाइल उश-शिया[५९] मुस्तदरकुल वसाएल, मीज़ान अल-हिक्मा, जामेअ अहादीसे शिया, अल-हयात और आसार उस-सादेक़ीन शियो की अन्य हदीसी किताबे है।[६०]
शिया प्रत्येक हदीस को प्रमाणिक (मोतबर) नही मानते है। क्योकि उनके यहा हदीस को लिखने के कई मानदंड है, उनमे से क़ुरआन के ख़िलाफ़ नही होना, रावीयो का भरोसे मंद और हदीस का मुतावातिर होना इत्यादि और इस कार्य के लिए दिराया और रिजाल नामक शास्त्रों से लाभ उठाया जाता है।[६१]
- अक़्ल (बुद्धि)
- मुख्य लेखः अक़्ल
न्यायशास्त्र के सिद्धांतों (इल्मे उसूल) के प्रसिद्ध विद्वान बुद्धि को किताब और सुन्नत की तुलना में एक मुस्तक़िल दलील मानते हैं।[६२] शिया अक्ल (तर्क एवं बुद्धि) को भी शरीयत के नियमों (अहकाम) के स्रोतों में से एक मानते हैं। वे कुछ फ़िक़्ही नियमों, उसूली (सिद्धांतों) और शरई आदेशों को तर्क के माध्यम से सिद्ध करते हैं।[६३]
- इज्मा
- मुख्य लेखः इज्मा
इज्मा शरई अहकाम के निष्कर्षण (इस्तिंबात) के चार प्रमुख स्रोतों में से एक है और उसूल-ए-फ़िक़्ह (धर्मशास्त्र के सिद्धांत) के अंतर्गत विभिन्न पहलुओं से इसकी चर्चा की गई है।[६४] इमामी फ़ोक़हा, अहले सुन्नत के विपरीत, इज्मा को क़ुरआन, सुन्नत और अक़्ल के समान एक स्वतंत्र प्रमाण नहीं मानते। बल्कि, वे इसे केवल इसलिए मान्य ठहराते हैं क्योंकि यह मासूम (इमाम) के ज्ञान की ओर संकेत करता है।[६५]
सरकारें
इस्लामी दुनिया में कई शिया सरकारें बनी हैं, जिनमें अलवियाने तबरिस्तान, आले बूयेह, फ़ातेमियान, इस्माइलिया और सफ़वी शामिल हैं। अलवियान सरकार की स्थापना ज़ैदियों ने की थी।[६६] फातिमिद और इस्माइली अलमूत की सरकारें इस्माइली मत पर आधारित थीं।[६७] हालांकि, आले बुयेह के संबंध में मतभेद हैं। कुछ का मानना है कि वे ज़ैदी मत के थे, कुछ उन्हें इमामी मानते हैं, और कुछ का कहना है कि वे पहले ज़ैदी थे और बाद में इमामी मत अपना लिया।[६८]
सुल्तान मुहम्मद ख़ुदाबंदा, जिन्हें उल्जाइतू (शासन 703-716 हिजरी) के नाम से जाना जाता है, को पहला शासक माना जाता है जिसने इमामिया को आधिकारिक मजहब घोषित किया और इसे व्यापक रूप से फैलाने की कोशिश की।[६९] हालांकि, उस समय की सरकारी व्यवस्था, जो अहले सुन्नत के मत पर आधारित थी, के विरोध के कारण उन्हें इस कदम से पीछे हटना पड़ा, लेकिन वे शिया ही बने रहे।[७०]
सरबदारान की सरकार, जो सब्ज़वार में थी, को भी एक शिया सरकार के रूप में याद किया जाता है।[७१] सरबदारान के नेताओं और शासकों का मजहब ठीक से पता नहीं है, लेकिन यह स्पष्ट है कि उनके धार्मिक नेता सूफ़ी थे जिनमें शिया झुकाव भी था।[७२] फिर भी, ख़्वाजा अली मोयेद, सरबदारान के अंतिम शासक,[७३] ने इमामिया को अपनी सरकार का आधिकारिक मजहब घोषित किया।[७४]
सफ़वी वंश
- मुख्य लेख: सफ़वी
शाह इस्माइल ने 907 हिजरी (1501 ईस्वी) में सफ़वी वंश की स्थापना की और इमामिया मत को ईरान का आधिकारिक धर्म घोषित किया।[७५] उन्होंने और अन्य सफ़वी शासकों ने शिया विद्वानों को ईरान आने के लिए आमंत्रित करना, शिया शिक्षण केंद्रों और मदरसों की स्थापना करना, तथा मुहर्रम[७६] के मातमी समारोहों को बढ़ावा देने जैसे उपायों के माध्यम से इमामिया मत को पूरे ईरान में फैलाया। इस तरह, उन्होंने ईरान को एक पूर्णतः शिया देश में बदल दिया।[७७]
इस्लामी गणतंत्र ईरान
- मुख्य लेख: इस्लामी गणतंत्र ईरान
इस्लामी गणतंत्र ईरान की स्थापना 22 बहमन 1357 (11 फरवरी 1979) को इमाम ख़ुमैनी के नेतृत्व में हुई ईरानी इस्लामिक क्रांति की सफलता के बाद हुई।[७८] यह राजनीतिक व्यवस्था ट्वेल्वर शिया इस्लाम के सिद्धांतों और न्यायशास्त्र (इस्लामिक जुरिस्प्रुडेंस) पर आधारित है।[७९] विलायते फ़क़ीह इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान का सबसे महत्वपूर्ण स्तंभ है, जिसका सभी सरकारी संस्थानों पर नियंत्रण होता है।[८०] ईरान के संविधान के अनुसार, कोई भी कानून तभी मान्य होता है जब वह इस्लामिक नियमों के अनुरूप हो।[८१]
भूगोल
दुनिया में बारह इमामों को मानने वाले शियों की सही संख्या के बारे में कोई सटीक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है, और मौजूदा आंकड़ों में ज़ैदिया और इस्माईलिया शियों को भी शामिल किया गया है। "प्यू रिसर्च सेंटर" की एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया में शियों की संख्या 15.4 से 20 करोड़ के बीच आंकी गई है, जो विश्व के मुसलमानों का 10 से 13 प्रतिशत है।[८२] हालांकि, इस रिपोर्ट के अनुवादक ने इन आंकड़ों को अवास्तविक बताते हुए शियों की वास्तविक जनसंख्या 30 करोड़ से अधिक, यानी विश्व के मुसलमानों का 19 प्रतिशत, आंकी है।[८३]
अधिकांश शिया (68 से 80 प्रतिशत) चार देशों ईरान, इराक़, पाकिस्तान और भारत में रहते हैं। ईरान में 6.6 से 7 करोड़ शिया रहते हैं, जो दुनिया के कुल शियाओं का 37 से 40 प्रतिशत है। पाकिस्तान, भारत और इराक में से प्रत्येक देश में 1.6 करोड़ से अधिक शिया हैं।[८४]
चार देशों ईरान, अज़रबैजान, बहरीन और इराक़ में शिया आबादी का बहुमत है।[८५] इसके अलावा, मध्य पूर्व, उत्तरी अफ्रीका, एशिया-प्रशांत क्षेत्र, तुर्की, यमन, सीरिया, सऊदी अरब, अमेरिका और कनाडा जैसे क्षेत्रों में भी शिया समुदाय के लोग रहते हैं।[८६]
फ़ुटनोट
- ↑ मोहर्रमी, तारीख ए तशय्यो, 1382 शम्सी, 43-44; गिरोह ए तारीख पुज़ोहिश-गाह हौज़ा वा दानिश-गाह, तारीख ए तशय्यो, 1389 शम्सी, 20-22; फ़य्याज़, पैदाइश वा गुस्तरिश ए तशय्यो, 1382 शम्सी, पेज 49-53
- ↑ तबातबाई, शिया दर इस्लाम, 1379 शम्सी, पृष्ठ 25।
- ↑ जाफ़रयान, तारीख ए तशय्यो दर ईरान अज़ आग़ाज़ ता तलूअ ए दौलत ए सफ़वी, 1390 शम्सी, पेज 22, 27
- ↑ फ़य्याज़, पैदाइश वा गुस्तरिश ए तशय्यो, 1382 शम्सी, पेज 61
- ↑ जाफ़रयान, तारीख ए तशय्यो दर ईरान अज़ आग़ाज़ ता तलूअ ए दौलत ए सफ़वी, 1390 शम्सी, पेज 29, 30
- ↑ फ़य्याज़, पैदाइश वा गुस्तरिश ए तशय्यो, 1382 शम्सी, पेज 61
- ↑ फ़य्याज़, पैदाइश वा गुस्तरिश ए तशय्यो, 1382 शम्सी, पेज 63-65
- ↑ फ़य्याज़, पैदाइश वा गुस्तरिश ए तशय्यो, 1382 शम्सी, पेज 62
- ↑ फ़य्याज़, पैदाइश वा गुस्तरिश ए तशय्यो, 1382 शम्सी, पेज 109, 110
- ↑ सय्यद मुर्रतज़ा, अल-फ़ुसूल अल-मुख़्तार, 1413 हिजरी, पेज 321
- ↑ मुताहरि, मजमूआ ए आसार, 1389 शम्सी, भाग 3, पेज 96
- ↑ मिस्बाह यज़्दी, आमूज़िश अकाइद, 1384 शम्सी, पेज 14
- ↑ अल्लामा तबातबाई, शिया दर इस्लाम, 1379 शम्सी, पेज 197-198
- ↑ अल्लामा तबातबाई, शिय दर इस्लामा, 1379 शम्सी, पेज 197-198
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स्रोत
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- गिरोह ए तारीख़ पुज़ोहिश-गाह हौज़ा वा दानिश-गाह, तारीख ए तशय्यो, क़ुम, मरकज़े मुदीरियत हौज़ाहा ए इल्मिया ख़ाहारान, तीसरा प्रकाशन, 1389 शम्सी
- जाफ़रियान, रसूल, तारीख ए तशय्यो दर ईरान अज़ आग़ाज़ ता तलूअ ए दौलत ए सफ़वी, तेहरान, इल्म, चौथा प्रकाशन, 1390 शम्सी
- तबातबाई, सय्यद मौहम्मद हुसैन, अल-मीज़ान फ़ी तफ़सीरिल क़ुरआन, क़ुम, इन्तेशाराते इस्लामी, पांचवा प्रकाशन, 1417 हिजरी
- तबातबाई, सय्यद मौहम्मद हुसैन, शिया दर इस्लाम, क़ुम, इस्माईलीयान, पहला प्रकाशन, 1379 शम्सी
- नजफी, नफ़ीसा, निगरशी मोजूई बर ज़ियारत जामेआ ए कबीरा, सफ़ीना, क्रमांक 16, 1378 शम्सी
- फ़य्याज़, अब्दुल्लाह, पैदाइश वा गुस्तरिश ए तशय्यो, अनुवाद सय्यद जवाद ख़ातेमी, सब्ज़ावार, इंतेशाराते इब्ने यमीन, पहाल प्रकाशन, 1382 शम्सी
- फ़ौलादी मोहम्मद, मौहम्मद जवाद नोरौज़ी, जायगाहे ज़ियारत दर आईने कातोलीक वा मज़हबे शिया, बररसी वा मुक़ाएसा, मारफते अदयान, क्रमांक 25, 1394 शम्सी
- मकारिम शीराज़ी, नासिर, दाएरात उल-मआरिफ फ़िक़्हे मकारिन, क़ुम, मदरसा अल इमाम अली इब्ने अबि तालिब (अ.स.), पहला प्रकाशन, 1427 हिजरी
- मजलिसी, मोहम्मद बाक़िर, ज़ाद उल-मआद, क़ुम, जलवे कमाल, 1389 शम्सी
- मज़ाहेरी, मोहसिन हिसाम, अज़ादारी, फ़रहंगे सोगे शीई, तेहरान, ख़ैमा, पहाल प्रकाशन, 1395 शम्सी
- महदावी राद, मौहम्मद अली वा रूहुल्लाह शहीदी, सैरे इंतेक़ाल ए मीरासे मकतूबे शिया दर आइने फहरीसहा, क्रमांक 44, 1386 शम्सी
- महदीपुर, अली अकबर, बा दुआ ए नुद्बा दर पैगाहै जुम्आ, क्रमांक 16, 1378 शम्सी
- महल्लाती, हैदर, बर्रसी तत्बीकी दुआ ए अरफ़ा इमाम हुसैन (अ.स.) व इमाम सज्जाद, आयते बूस्तान, क्रमांक 1, 1395 शम्सी
- माअरफत, मोहम्मद हादी, अल तमहीद फ़ी उलूम इल-क़ुरआन, क़ुम, मोअस्सेसा ए अल-नश्र उल-इस्लामी, पहला प्रकाशन, 1412 हिजरी
- मिस्बाह यज़्दी, मौहम्मद तक़ी, आमूज़िश अकाइद, तेहरान, अमीर कबीर, अठ्ठारवां प्रकाशन, 1384 शम्सी
- मुज़फ़्फ़र, मोहम्मद रज़ा, उसूलुल फ़िक्ह, क़ुम, इंतेशाराते इस्लामी, क़ुम, पांचवा प्रकाशन, 1430 हिजरी
- मुताहरि, मुर्तुज़ा, मजमूआ ए आसार, तेहरान, इंतेशाराते सदरा, पंदरहवा प्रकाशन, 1389 शम्सी
- मूसा पुर, इब्राहीम, जश्न हाय जहाने इस्लाम, दानिश नामा जहाने इस्लाम, तेहरान, बुनयादे दाएरत उल-मआरिफ ए-इस्लामी, पहला प्रकाशन, 1385 शम्सी
- मोअद्दब, रज़ा, तारीखे हदीस, क़ुम, मरकज़े बैनुल मिलली तरजुमा वा नश्रे अल-मुस्तफा, दूसरा प्रकाशन, 1388 शम्सी
- मोहर्रमी, ग़ुलाम मोहसिन, तारीख ए तशय्यो अज़ आग़ाज़ ता पायाने ग़ैबते सुग़रा, क़ुम, मोअस्सेसा ए आमूज़िशी वा पज़ूहिशी इमाम ख़ुमैनी, दूसरा प्रकाशन, 1382 शम्सी
- यज़दानी, अब्बास, मुरूरी बर रिसालहाए अमालिया (2), काविश नो दर फ़िक़्ह, क्रमांक 15 और 16, 1377 शम्सी
- रज़ाई, मोहम्मद जाफ़र, पुज़ुहिशी दर अस्नाद व नुस्ख़ेहाए ज़ियारते आशूरा, उलूम ए हदीस, क्रमांक 49,50, 1387 शम्सी
- रब्बानी गुलपाएगानी, अली,दर आमदी बर शिया शनासी, क़ुम, मरकज़े बैनुल मिलली तरजुमा वा नश्र अल-मुस्तफ़ा, चौथा प्रकाशन, 1392 शम्सी
- रहमान ए सताइश, मोहम्मद काज़िम, तक़लीद 1, दानिश नामा ए जहान ए इस्लाम, तेहरान, बुनयादे दाएरत उल-मआरिफ ए-इस्लामी, पहला प्रकाशन, 1382 शम्सी
- सय्यद मुर्रतज़ा, अल-फ़ुसूल अल-मुख़्तार मिनल ओयूने वल महासिन, क़ुम, अल मोतमेरुल आलमी ले अलफ़ियते अल शेखिल मुफ़ीद, पहला प्रकाशन, 1413 हिजरी
- हाश्मी अक़दम, लैया, असरारुर आरेफीन बा शरह दुअ ए कुमैल, किताबे माहे दीन, क्रमांक 120, 211, 122, 1386 शम्सी
- हैदर ज़ादे, अब्बास, दर महज़रे मुनाजाते शाबानिया, फ़स्लनामा ए इल्मी वा फ़रहंगी पयाम, क्रमांक 106, 1390 शम्सी