रोयते ख़ुदा

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रोयते ख़ुदा (अरबीः رؤية الله) अर्थात ईश्वर को देखना, एक आंखों से ईश्वर को देखने की संभावना के बारे में कलामी मस्अला (धर्मशास्त्रीय मुद्दा) है। इमामिया और मोतज़ेला धर्मशास्त्रियों का मानना है कि ईश्वर को न तो इस दुनिया में और न ही परलोक मे आंखों से नहीं देखा जा सकता है। उनके दृष्टिकोण से, परमेश्वर को बाहरी आँखों से देखने के लिए परमेश्वर के शरीर की आवश्यकता होती है। दूसरी अधिकांश सुन्नी धर्मशास्त्री जैसे अशाएरा, अहले हदीस, मुजस्सेमा, कर्रामीया और सलफ़िया का मानना है कि ईश्वर को देखना संभव है।

इस्लाम में ईश्वर को देखने के मुद्दे का इतिहास दूसरी चंद्र शताब्दी तक जाता है। कुछ के दृष्टिकोण से इस मुद्दे को यहूदियों और ईसाइयों द्वारा मुसलमान का ढोंग रचकर इस्लामी चर्चाओं में पेश किया गया था। क़ुरआन, हदीसों और रहस्यवाद में भी ईश्वर को देखने की चर्चा की गई है, और इस संबंध में कई किताबें लिखी गई हैं, जिनमें आयतुल्लाह जाफ़र सुब्हानी द्वारा लिखित किताब "रोयतुल्लाह फ़ी ज़ोइल किताबे वल सुन्नते वल अक़्लिस सरीह" शामिल है।

अवधारणा और स्थान

ईश्वर को देखना एक कलामी मस्अला (धर्मशास्त्रीय मुद्दा) है कि क्या ईश्वर को आँखों से देखा जा सकता है या नहीं।[१] क़ुरआन की कुछ आयतों जैसे सूर ए क़यामत की आयत न 22 और 23, सूर ए मुतफ़्फ़ेफ़ीन की आयत न 15, सूर ए यूनुस की आयत न 16 और सूर ए नज्म की आयत न 11 से 13 में ईश्वर को देखने का उल्लेख है। कुछ आयतो में जैसे सूर ए अनाम की आयत न 103, सूर ए आराफ की आयत न 143, सूर ए बकरा की आयत न 55, सूर ए निसा की आयत न 153 और सूर फ़ुरक़ान की आयत न 21 परमेश्वर को देखने से इनकार किया गया है।[२] शिया और सुन्नी हदीसी स्रोतों में परमेश्वर को देखने की संभावना या असंभवता के बारे में कई रिवायते बयान हुई है।[३]

भगवान को देखने की संभावना के खिलाफ और इसके पक्ष में टीकाकारों ने इन आयतो के तहत भगवान को देखने के बारे में विस्तार से चर्चा की है।[४] ऐसा कहा गया है कि क्योंकि सूफियों ने हमेशा ईश्वर से सीधे संपर्क की मांग की है, रहस्यवाद और सूफीवाद में ईश्वर को देखना भी एक गंभीर मुद्दा बन गया है, और लगभग सभी जो सूफियों की पहली श्रेणी में हैं, जैसे कि इब्राहिम अदहम का इस संबंध में अपना दृष्टिकोण हैं।[५]

इतिहास

इस्लाम में भगवान को देखने के बारे में धार्मिक बहस का इतिहास दूसरी चंद्र शताब्दी तक जाता है।[६] इस सदी में दो कलामी संप्रदाय जम्हिय्या और मोतज़ेला ने भगवान को ज़ाहेरी आंखों से देखने से इनकार किया है। तीसरी शताब्दी की शुरुआत में चार सुन्नी इमामों मे अहमद इबने हंबल और उनके अनुयायियों की मुख्य मान्यताओं से ईश्वर को देखना संभव हो गया। मातुरदिया, अशायरा, मुज्जस्सेमा, कर्रामीया और सलफ़ीया[७] जैसे अन्य धार्मिक संप्रदायों ने भगवान को ज़ाहेरी आंखों से देखने की संभावना को स्वीकार किया।[८]

14वीं शताब्दी के शिया धर्मशास्त्री जाफ़र सुब्हानी सहित कुछ धर्मशास्त्रियों का मानना है कि ईश्वर को देखने का विचार कुछ यहूदियों और ईसाइयों द्वारा पेश किया गया था, जिन्होंने मुस्लमान होने का ढोंग किया था, जैसे कि काब उल-अहबार इस्लामी हदीसों में प्रवेश कर गया।[९] जाफ़र सुब्हानी के दृष्टिकोण से रोयते ख़ुदा से संबंधित सभी हदीसें मुसलमान होने का ढोंग रचने वाले यहूदी और ईसाई द्वारा मुसलमानों की हदीसी स्रोतों में प्रवेश कर गई हैं।[१०]

अन्य धर्मों में ईश्वर को देखना

इस्लाम से पहले ईश्वर को देखने के मुद्दे की तौरेत और इंजील (बाइबिल) में चर्चा की गई है।[११] यहूदियों की पवित्र पुस्तक तौरैत मे ईश्वर मूसा से कहता हैं: "तुम मेरा चेहरा नहीं देख सकते; क्योंकि जो कोई मुझे देखेगा वह जीवित नहीं रहेगा।[१२] दूसरी आयत मे मूसा (अ) को संबोधित करके कहा गया है: "मैं अपना हाथ उठाऊंगा ताकि आप मेरी निशानी देख सको, लेकिन मेरा चेहरा नहीं देख पाओगे"[१३] इंजील (बाइबिल) की एक आयत में कहा गया है कि शुद्ध हृदय वाले ईश्वर को देखेंगे;[१४] लेकिन एक दूसरी आयत में कहा गया है कि ईश्वर को किसी ने नहीं देखा।[१५]

ईश्वर को देखने के बारे में इस्लामी धर्मों का दृष्टिकोण

ईश्वर को देखने के मुद्दे के बारे में तीन मुख्य दृष्टिकोण हैं:

  1. सुन्नी धर्मशास्त्रीय संप्रदायों से मुज्जस्सेमा और कर्रामीया इस दुनिया में और उसके बाद परमेश्वर को देखना संभव मानते हैं; क्योंकि वे ईश्वर के शरीर और स्थानिक रूप में वर्णित करते हैं।[१६]
  2. अहले सुन्नत के अन्य धार्मिक संप्रदाय, जैसे कि अशायरा,[१७] और अहले-हदीस[१८] कहते हैं कि ईश्वर को केवल आख़ेरत (परलोक) में ज़ाहेरी आंखों से देखा जा सकता है; यद्यपि वे ईश्वर के शरीर होने में विश्वास नहीं करते।[१९]
  3. इमामिया[२०], ज़ैदिया[२१] और मोतज़ेला[२२] इस दुनिया और आख़िरत में परमेश्वर को देखना असंभव मानते हैं और वे इस पर सहमत हैं।[२३]

परलोक में दर्शन की संभावित तर्क

ईश्वर को देखने की संभावना के समर्थकों ने इसे साबित करने के लिए बौद्धिक और कथात्मक तर्को का हवाला दिया है[२४], जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं:

बौद्धिक तर्क

ईश्वर को देखने के समर्थकों के कुछ बौद्धिक तर्क इस प्रकार हैं:

  • जो व्यक्ति स्वयं को और वस्तुओं को देखता है, उसके लिए यह संभव है कि दूसरे उसे देख सकें। चूंकि परमेश्वर खुद को और चीजों को देखता हैं, इसलिए यह संभव है कि वह हमें खुद को देखने की क्षमता प्रदान करे।[२५]
  • अलग-अलग प्राणी दिखाई देते हैं और उनकी दृश्यता उनके सार और अस्तित्व से संबंधित है। इस मामले में, ईश्वर जोकि एक अस्तित्व है अतः दिखाई देना चाहिए।[२६]

कथात्मक तर्क

क़ुरआन की आयतें और हदीसे कथात्मक तर्को मे शामिल हैं: क़ुरआन की आयतों में, सूर ए आराफ की आयत न 143 है, जिसमें पैगंबर मूसा (अ) ने ईश्वर से उसे देखने का अनुरोध किया तो ईश्वर ने उत्तर दिया कि मूसा उसे नहीं देख सकते। तर्क यह है कि यदि ईश्वर को देखना असंभव होता, तो पैगंबर मूसा (अ) ईश्वर से ऐसा अनुरोध नहीं करते।[२७]

परमेश्वर को देखने के जायज़ होने से संबंधित दूसरी आयतें जैसे सूर ए अहज़ाब की आयत न 44, सूर ए क़यामत की आयत न 22 और 23, सूर ए मुतफ़्फ़ेफ़ीन की आयत न 15[२८] और सूर ए अनआम[२९] की आयत न 103 में भी ईश्वर को देखने के लिए तर्क दिया गया है।

आख़ेरत में ईश्वर को देखने को साबित करने के लिए पैगंबर (स) की हदीस का भी हवाला दिया है;[३०] पैगंबर (स) की इस हदीस की तरह:[३१] "चौदहवीं रात मे चंद्रमा की भांति तुम अपने परमेश्वर को देखोगे ।"[३२]

ईश्वर को देखने की असंभवता के तर्क

ईश्वर को देखने की संभावना के विरोधियों ने भी बौद्धिक और कथात्मक तर्कों का हवाला दिया है:

बौद्धिक तर्क

चौदहवी शताब्दी के शिया धर्मशास्त्री जाफ़र सुब्हानी के अनुसार बौद्धिक तर्कों का आधार यह है कि ईश्वर को देखने के लिए ईश्वर के लिए शरीर के प्रमाण या शरीर के गुणों की आवश्यकता होती है।[३३] कुछ बौद्धिक तर्क इस प्रकार हैं:

  1. ज़ाहेरी आँख से देखने के लिए आवश्यक है कि ईश्वर के पास आयाम, स्थान और काल हो; जबकि ईश्वर इन विशेषताओं से दूर है।[३४] अल्लामा हिल्ली के अनुसार, ईश्वर के अस्तित्व की आवश्यकता, ईश्वर का ब्रह्मचर्य (खुदा का मुजर्रद होना) , और दिशा और स्थान का निषेध (जहत और मकान की नफ़ी) उसी से है। इन मामलों को नकारने से ईश्वर को ज़ाहेरी आंख से देखने से इनकार किया जाता है।[३५]
  2. ईश्वर या तो संपूर्ण सार को दिखाई देता है या उसके सार का एक अंश दिखाई देता है। पहला रूप ईश्वर की परिमित और सीमित प्रकृति की ओर ले जाता है, और दूसरे रूप में ईश्वर को समग्र, स्थानिक और दिशात्मक होने की आवश्यकता होती है, जो दोनों असंभव और अमान्य हैं। इसलिए ईश्वर को नहीं देखा जा सकता है।[३६]

कथात्मक तर्क

आयतुल्लाह जाफ़र सुब्हानी द्वारा लिखित "रोयतुल्लाह" किताब

विरोधियों के तर्कों में से एक सूर ए आराफ़ की वही आयत न 143 है, जिसका उल्लेख समर्थकों ने भी किया था, और इसमें ख़ुदा मूसा से कहता है, "तुम मुझे नहीं देख सकते: "लन तरानी"। चूँकि "लन" शब्द का अर्थ सदैव इनकार है, "लन तरानी" का अर्थ है ईश्वर को कभी भी नही देखा जा सकता।[३७]

दूसरी आयत है: لَا تُدْرِ‌کهُ الْأَبْصَارُ‌ وَهُوَ یُدْرِ‌ک الْأَبْصَارَ‌ ला तुदरोकहुल अब्सारो वहोवा युकरेकुल अब्सार, तुम ज़ाहेरी आंखें से उसे नहीं देख सकते, और वह आखो से देखता है।"[३८] इमामी और मोतज़ेली धर्मशास्त्रियों के दृष्टिकोण से, यह आयत इस बात को इंगित करती है कि ईश्वर को आँखों से नहीं देखा जा सकता है।[३९]

शियो के इमामों (अ) से चली आ रही रिवायते भी इस बात पर संकेत करती है कि ईश्वर को ज़ाहेरी आंखों से नहीं देखा जा सकता है।[४०] एक परंपरा मे किसी ने इमाम अली (अ) से सवाल किया कि क्या आपने ईश्वर को देखा है, इमाम अली (अ) ने उत्तर दिया कि जिस ईश्वर को नही देखा मै उसकी इबादत नही करता; लेकिन उसे विश्वास की सच्चाई से देखा जा सकता है, ज़ाहेरी आंखों से नहीं।[४१]

विरोधियों के अनुसार ईश्वर को देखने की संभावना के समर्थकों द्वारा पैगंबर (स) की हदीस की प्रामाणिकता की धारणा का अर्थ ईश्वर का ज्ञान है नाकि उसे ज़ाहेरी आँख से देखना; क्योंकि अगर ज़ाहेरी आंखों से देखना मुराद है, तो देखने के लिए ईस्वर के दिशात्मक होने की आवश्यकता होती है, जो असंभव है।[४२]

मोनोग्राफ़ी

दार क़ुत्नी द्वारा लिखित किताब "रोयतुल्लाह जल वा अला"

ईश्वर को देखने के मुद्दे पर कई धर्मशास्त्रीय पुस्तकों, तफसीरो और कुछ रहस्यमयी (इरफ़ानी) और हदीसी पुस्तकों में चर्चा की गई है। इसके अतिरिक्त ईश्वर को देखने के विषय में स्वतंत्र ग्रन्थ भी लिखे गए हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं:

  • कलमतुन हौला अल-रोया, अब्दुल हुसैन शराफुद्दीन आमोली द्वारा लिखित। शिया दृष्टिकोण से यह पुस्तक, ईश्वर को देखने की असंभवता को साबित करती है।[४३]
  • रोयतुल्लाह फ़ी ज़ौइल क़ुरआने वल सुन्नते वल अक़्लिस सरीह, जाफ़र सुब्हानी द्वारा लिखित। इस पुस्तक मे आयतुल्लाह सुब्हानी ने ईश्वर के दर्शन को यहूदियों से आयातित सिद्धांत माना और इस सिद्धांत का खंडन करने की कोशिश की और बौद्धिक, क़ुरआनिक और कथात्मक प्रमाणों के साथ शिया दृष्टिकोण का बचाव किया।
  • रोयतुल्लाह जल वल अला, चौथी शताब्दी के प्रसिद्ध अहले हदीस मोहद्दिस अली बिन उमर दारेकुत्नी द्वारा लिखित है। इस पुस्तक में, ईश्वर को देखने की वैधता को साबित करने के लिए, ईश्वर को देखने से संबंधित आयतों और हदीसों को एकत्र किया गया है।[४४] इस पुस्तक के साथ दो परिशिष्ट (ज़मीमे) है, इब्ने नोहास द्वारा लिखित "रोयतुल्लाह तबारक वा तआला" और "ज़ौउस सारी एला मारफ़ते रोयतिल बारी" अबि शामेह मुक़द्देसी द्वारा लिखित जिन्हे दार अल कुतुब अल इल्मीया पब्लिशिंग हाउस द्वारा प्रकाशित किया गया है। और अबु उवैस अल कुर्दी द्वारा लिखित ज़मीमे "अल-मिस्बाह अल-मुनीर फ़ी रोयते रब्ब अल खबीर" और "अल-मुहलक़ अल-ज़ाफी एला मा फ़ी किताब अल रोयत अल वाफ़ी" को इब्ने तैमीया पब्लिशिंग हाउसस द्वारा प्रकाशित किया गया है।

ईश्वर के दर्शन के बारे में अन्य कार्य इस प्रकार हैं: अब्दुल करीम बहबहानी द्वारा लिखित रोयातुल्लाह बैनत तंज़ीहा वत तश्बीहा, मजमा जहानी अहले बैत, रोयते माह दर आसमानः बररसी तारीखी मस्अला लेक़ाइल्लाह दर कलाम वा तसव्वुफ़, नसरुल्लाह पूर जवादी द्वारा लिखित, मरकज़े नशर दानिशगाही, रोयते खुदावंद? दर ईन जहान वा जहाने दिगर, सय्यद अब्दुल महदी तवक्कुली द्वारा नासिर मकारिम शिराज़ी, इमाम अली बिन अबी तालिब की देखरेख मे लिखित है।

संबंधित लेख

• ख़बरी सिफ़ात

फ़ुटनोट

  1. सुब्हानी, रोयत अल्लाह फ़ी ज़ो अल किताब वल सुन्नत वल अक़्ल अल सरीह, पेज 26-27; सुबाहानी, अल इलाहीयात, 1412 हिजरी, भाग 2, पेज 127; बहबहानी, रोयतुल्लाह बैनल तनज़ीया वल तशबीहा, 1426 हिजरी, पेज 16
  2. ज़ाकेरी वा दिगरान, रोयत, पेज 799-802
  3. शिया रिवायतो के लिए देखेः कुलैनी, अल काफ़ी, इस्लामीया, 1407 हिजरी, बाबे इब्ताल अल रोयत, भाग 1, पेज 95-110; शेख़ सदूक़, अल तौहीद, 1398 हिजरी, बाबे मा जाअ फ़ी अल रोयत, पेज 107-122; नहजुल बलाग़ा, तस्हीह सुब्ही सालेह, ख़ुत्बा 91, पेज 124, खुत्बा 185, पेज 269 और ख़ुत्बा 186, पेज 273; शरफ़ुद्दीन, रोयतुल्लाह वा फ़लसफ़ा अल मीसाक़ वल विलाया, 1423 हिजरी, पेज 53-81; अहले सुन्नत की रिवायतो के लिए देखेः बुख़ारी, सहीह बुख़ारी, 1422 हिजरी, भाग 1, पेज 115, भाग 6, पेज 139, भाग 9, पेज 127-129; दार ए क़ुत्नी, रोयतुल्लाह जल्ला व अला, 1426 हिजरी, पेज 7-94
  4. रोयत के मुख़ालेफ़ीन की तफ़सीर के लिए देखेः रोयते ख़ुदा तूसी, अल तिबयान, दार एहया अल तुरास अल अरबी, भाग 1, पेज 249-253, भाग 10, पेज 197-199; तबातबाई, अल मीज़ान, 1390 हिजरी, भाग 8, पेज 237-243; ज़मख़्शरी, अल कश्शाफ़, 1407 हिजरी, भाग 1, पेज 141, भाग 2, पेज 151-157, रोयत के मुवाफ़ेकीन की तफ़सीर के लिए देखेः फ़ख्रे राज़ी, तफसीर कबीर, 1420 हिजरी, भाग 3, पेज 519-520, भाग 14, पेज 354-358, भाग 30, पेज 730-733
  5. देखेः ज़ाकेरी वा दिगरान, रोयत, पेज 810
  6. सुब्हानी, रोयतुल्लाह फ़ी ज़ोइल किताबे वल सुन्नते वल अक्लिस सरीह, पेज 24-25 जाक़ेरी वा दिगरान, रोयत, पेज 804
  7. इब्ने तैमीया, मिन्हाज अल सुन्नत अल नबावीया, 1406 हिजरी, भाग 2, पेज 316, 329-349, भाग 3, पेज 341, 344 और 347
  8. ज़ाकेरी वा दिगरान, रोयते ख़ुदा, पेज 804
  9. देखेः सुब्हानी, इलाहीयात, 1412 हिजरी, भाग 2, पेज 138-139; सुब्हानी, रोयतुल्लाह फ़ी ज़ोइल किताबे वल सुन्नते वल अक्लिस सरीह, पेज 15-24; बहबहानी, रोयतुल्लाह बैनल तनज़ीहा वत तश्बीहा, 1426 हिजरी, पेज 99-100
  10. देखेः सुब्हानी, रोयतुल्लाह फ़ी ज़ोइल किताबे वल सुन्नते वल अक्लिस सरीह, पेज 16
  11. ज़ाकेरी वा दिगरान, रोयत, पेज 799
  12. किताबे मुकद्दस, सफ़रे खुरूज, बाब 33, आयत न 20
  13. किताबे मुकद्दस, सफ़रे खुरूज, बाब 33, आयत न 23
  14. किताबे मुक़द्दस, इनजील मत्ता, बाब 5, आयत न 8
  15. किताबे मुक़द्दस, इनजील यूहन्ना, बाब 1, आयत न 18
  16. सुब्हानी, इलाहीयात, मोअस्सेसा इमाम सादिक़ (अ), भाग 2, पेज 125; फ़ख़्रे राज़ी, अल अरबाईन फ़ी उसूल अल दीन, 1986 , भाग 1, पेज 266-267; बहबहानी, रोयतुल्लाह बैनल तनज़ीहा वत तश्बीहा, 1426 हिजरी, पेज 15
  17. अश्अरी, अल इबाना अन उसूल अल दय्याना, 1397 हिजरी, पेज 25 और 51; आमदी, ग़ायत अल मराम, 1413 हिजरी,, पेज 142
  18. सुब्हानी, रोयतुल्लाह फ़ी ज़ोइल किताबे वल सुन्नते वल अक्लिस सरीह, पेज 27
  19. सुब्हानी, इलाहीयात, 1412 हिजरी, भाग 2, पेज 125
  20. अल्लामा हिल्ली, कश्फ़ अल मुराद, 1382 शम्सी, पेज 46; सुब्हानी, रोयतुल्लाह फ़ी ज़ोइल किताबे वल सुन्नते वल अक्लिस सरीह, पेज 27; जवादी आमोली, तौहीद दर क़ुरआन, 1395 शम्सी, पेज 256-257
  21. सुब्हानी, रोयतुल्लाह फ़ी ज़ोइल किताबे वल सुन्नते वल अक्लिस सरीह, पेज 27; अश्अरी, मक़ालात अल इस्लामीयीनन, 1426 हिजरी, भाग 1, पेज 172
  22. क़ाज़ी अब्दुल जब्बार, अल मुख़तसर फ़ी उसूल अल दीन, 1971 ई, पेज 190; शहरिस्तानी, अल मिलल वल नहल, 1364 शम्सी, भाग 1, पेज 57 और 114
  23. अश्अरी, मक़ालात अल इस्लामीयीन, 1426 हिजरी, भाग 1, पेज 131 और 172; आमदी, ग़ायत अल मराम, 1413 हिजरी, पेज 142; शहरिस्तानी, अल मिलल वल नहल, 1364 शम्सी, भाग 1, पेज 5; सुब्हानी, इलाहीयात, मोअस्सेसा इमाम सादिक़ (अ), भाग 2, पेज 125
  24. देखेः अश्अरी, अल इबाना अन उसूल अल दय्याना, 1397 हिजरी, पेज 35-55
  25. अश्अरी, अल इबाना अन उसूल अल दय्याना, 1397 हिजरी, पेज 53
  26. आमदी, ग़ायत अल मराम, 1413 हिजरी, पेज 142-143; शहरिस्तानी, अल मिलल वल नहल, 1364 शम्सी, भाग 1, पेज 113
  27. अश्अरी, अल इबाना अन उसूल अल दय्याना, 1397 हिजरी, पेज 141; राज़ी, अल अरबाईन फ़ी उसूल अल दीन, 1986 ई, भाग 1, पेज 278
  28. देखेः अश्अरी, अल इबाना अन उसूल अल दय्याना, 1397 हिजरी, पेज 35, 45-46; फ़ख़्रे राज़ी, अल अरबाईन फ़ी उसूल अल दीन, 1986 ई, भाग 1, पेज 292-295
  29. फ़ख़्रे राज़ी, तफसीर कबीर, 1420 हिजरी, भाग 13, पेज 97
  30. देखेः दारे क़ुत्नी, रोयतुल्लाह जल्ला वा अला, 1426 हिजरी, पेज 7-94
  31. बुख़ारी, सहीह बुख़ारी, 1422 हिजरी, भाग 1, पेज 115, भाग 6, पेज 139, भाग 9, पेज 127-129
  32. अश्अरी, अल इबाना अन उसूल अल दय्याना, 1397 हिजरी, पेज 49; इब्ने तैमीया, मिन्हाज अल सुन्ना अल नबावीया, 1406 हिजरी, भाग 2, पेज 332, भाग 3, पेज 341
  33. सुब्हानी, इलाहीयात, 1412 हिजरी, भाग 2, पेज 128
  34. जवाद आमोली, तौहीद दर क़ुरआन, 1395 शम्सी, पेज 257
  35. अल्लामा हिल्ली, कश्फ़ अल मुराद, 1382 शम्सी, पेज 46-47
  36. सुबाहनी, इलाहीयात, 1412 हिजरी, भाग 2, पेज 127
  37. सुब्हानी, रोयतुल्लाह फ़ी ज़ोइल किताबे वल सुन्नते वल अक्लिस सरीह, पेज 64-66
  38. सूर ए अन्आम, आयत न 103
  39. जवादी आमोली, तौहीद दर क़ुरआन, 1395 शम्सी, पेज 258; सुब्हानी, रोयतुल्लाह फ़ी ज़ोइल किताबे वल सुन्नते वल अक्लिस सरीह, पेज 55; क़ाज़ी अब्दुल जब्बार, शरह उसूल अल ख़म्सा, 1422 हिजरी, पेज 156
  40. देखेः कुलैनी, अल काफ़ी, 1407 हिजरी, बाब इब्ताल अल रोया, भाग 1, पेज 95-110; शेख़ सदूक़, अल तौहीद, 1398 हिजरी, बाब मा जाआ फ़ी अल रोया, पेज 107-122
  41. नहजुल बलाग़ा, चाप दार अल किताब अल लुबनानी, भाग 1, पेज 258, खुत्बा 179
  42. क़ाज़ी अब्दुल जब्बार, अल मुखतसर फ़ी उसूल अल दीन, 1971 ई, पेज 191-192
  43. अमीनीपूर, नीम निगाही बे उनवानहाए मोसूआ अल इमाम अल सय्यद अब्दुल हुसैन शरफ़ुद्दीन, पेज 25-26
  44. देखेः दारे क़ुत्नी, रोयतुल्लाहे जल वल अला, 1426 हिजरी, पेज 7; नफ़ीसी, दार क़ुत्नी, अबुल हसन अली बिन उमर, पेज 755


स्रोत

  • नहजुल बलाग़ा, संशोधन सुब्ही सालेह, क़ुम, हिजरत, पहला संस्करण, 1414 हिजरी
  • इब्ने तैमीया, अहमद बिन अब्दुल हलीम, मिनहाज अल सुन्नत फ़ी नक़ज़े कलाम अल शिया अल कदरीया, शोधः मुहम्मद रशाद सालिम, जामेअतुल इमाम मुहम्मद बिन सऊद अल इस्लामीया, पहाल संस्करण, 1406 हिजरी-1986 ई
  • अश्अरी, अबुल हसन अली बिन इस्माईल, अल अबाना अन उसूल अल दय्याना, शोधः दफ़ूक़ीया हुसैन महमूद, काहिरा, दार अल अंसार, पहला संस्करण, 1397 हिजरी
  • अश्अशरी, अबुल हसन अली बिन इस्माईल, मकालात अल इस्लामीयीन व इख़्तेलाफ़ अल मुसल्लीन, शोधः नईम ज़रज़ूर, मकतब अल अस्रीया, पहाल संस्करण, 1426 हिजरी-2055 ई
  • अमीनीपूर, अब्दुल्लाह, नीम निगाही बे उनवानहाए मोसूआ अल इमाम अल सय्यद अब्दुल हुसैन शरफ़ुद्दीन, दर मजल्ले किताब हाए इस्लामी, क्रमांक 22 – 23, पाईज़ व ज़मीस्तान, 1384
  • आमदी, सैफ़ुद्दीन, ग़ायत अल मराम फ़ी इल्म अल कलाम, बैरूत, दार अल कुतुब अल इल्मीया, पहाल संस्करण, 1413 हिजरी
  • बुख़ारी, मुहम्मद बिन इस्माईल, सहीह बुख़ारी, शोधः मुहम्मद जुहैर बिन नासिर अल नासिर, दार तौक़ अल निजात, पहला संस्करण, 1422 हिजरी
  • बहबहानी, अब्दुल करीम, फ़ी रहाब अहल अल बैत (अ), रोयतुल्लाह बैनल तनज़ीहा वत तश्बीहा, क़ुम, मजमा जहानी अहलेबैत, दूसरा संस्करण, 1426 हिजरी
  • जवादी आमोली, अब्दुल्लाह, तौहीद दर क़ुरआन, तफसीर ए मोजूई क़ुरआन अल करीम, क़ुम, नशर इस्रा, आठवा संस्करण, 1395 शम्सी
  • दार क़ुत्नी, अली बिन उमर, रोयातुल्लाह जल वा अला वा यलीहे रोयतुल्लाहे तबारक वा तआला वा ज़ूइस सारी एला मारफ़त रोयतिल बारी, शोधः बुनयाद दाएरातुल मआरिफ अल इस्लामी, 1394 शम्सी
  • ज़मख्शरी, महमूद बिन उमर, अल कश्शाफ़ अन हक़ाइक़ ग़वामिज़ अल तंज़ील वा ओयून अल अक़ावील फ़ी वजुहित तावील, संशोधन मुस्तफ़ा हुसैन अहमद, बैरूत, दार अल कुतुब अल अरबी, तीसार संस्करण, 1407 हिजरी
  • सुब्हानी, जाफ़र, इलाहीयात अला हुदा अल किताब वल सुन्ना वल अक़्ल, क़ुम, अल मरकज़ अल आलमी लिद देरासात अल इस्लामीया, तीसरा संस्करण 1412 हिजरी
  • सुब्हानी, जाफ़र, रोयतुल्लाह फ़ी ज़ोइल किताब वस सुन्नते वल अक़्लिस सरीह
  • शरफ़ुद्दीन, अब्दुल हुसैन, रोयातुल्लाह वा फ़लसफ़तिल मीसाक़ वल विलाया, शोधः महदी अंसारी क़ुमी, क़ुम, लोहे महफ़ूज़, 1423 हिजरी
  • शहरिस्तानी, मुहम्मद बिन अब्दुल करीम, अल मिलल वल नहल, शोधः मुहम्मद बदरान, क़ुम, शरीफ़ रज़ी, तीसरा संस्करण, 1364 शम्सी
  • शेख़ सदूक़, मुहम्मद बिन अली इब्ने बाबेवह, अल तौहीद, जामे मुदर्रेसीन, पहला संस्करण, 1398 हिजरी
  • तबातबाई, सय्यद मुहम्मद हुसैन, अल मीज़ान फ़ी तफसीर अल क़ुरआन, बैरूत, मोअस्सेसा आलमी, दूसरा संस्करण, 1390 हिजरी
  • अल्लामा हिल्ली, कश्फ़ अल मुराद फ़ी शरह तजरीद अल एतेक़ाद क़िस्म अल इलाहीयात, मुकद्दमा वा तालीक़ा जाफ़र सुब्हानी, क़ुम, मोअस्सेसा इमाम सादिक़ (अ), दूसरा संस्करण 1382 शम्सी
  • फ़ख़्रे राज़ी, मुहम्मद बिन उमर, अल अरबाईन फ़ी उसूल अल दीन, क़ाहिरा, मकतब अल कुल्लीयात अल अज़हरीया, पहाल संस्करण, 1986 ई
  • फ़ख्रे राज़ी, मुहम्मद बिन उमर, तफसीर कबीर, बैरूत, दार एहया अल तुरास अल अरबी, तीसरा संस्करण, 1420 हिजरी
  • क़ाज़ी अब्दुल जब्बार, अल मुख़तसर फ़ी उसूल अल दीन, शोधः मुहम्मद अम्मारा, बैरूत, दुर अल हिलाल, 1971 ई
  • क़ाज़ी अब्दुल जब्बार, शरह उसूल अल ख़म्सा, बैरूत, दार एहया अल तुरास अल अरबी, पहला संस्करण 1422 हिजरी
  • कुलैनी, मुहम्मद बिन याक़ूब, अल काफ़ी, शोध और संशोधनः अली अकब ग़फ़्फ़ारी वा मुहम्मद आख़ूंदी, तेहरान, दार अल कुतुब अल इस्लमीया, चौथा संस्करण 1407 हिजरी
  • मुहम्मदी, अली, शरह कश्फ़ अल मुराद, क़ुम, दार अल फ़िक्र, चौथा संस्करण 1378 शम्सी
  • नफ़ीसी, शादी, दार क़ुत्नी, अबुल हसन अली बिन उमर, दर दानिश नामे जहान इस्लाम, भाग 16, तेहारन, बुनयाद दाएरातुल मआरिफ अल इस्लामी, 1393 शम्सी