अदलिय्या
अदलिय्या (अरबीःالعَدليِّة) शिया और मोअतज़ेला को संदर्भित करने वाला एक शब्द है। इस नामकरण का कारण शिया और मोअतज़ेला मान्यता है कि अक़्ल के दृष्टिकोण से हुस्न और क़ुब्ह या अच्छाई और बुराई है, और ईश्वर इसके आधार पर कार्य करता है और इसलिए उसे न्यायकारी (आदिल) माना जाता है। इसके आधार पर न्याय (अदल) शिया धर्म के सिद्धांतों और मोअतज़ेला के पांच सिद्धांतों में से एक है।
अदलिय्या के मुक़ाबले अशाएरा हैं, जो शरीयत की भलाई और बुराई (हुस्न व क़ुब्ह शरई) पर ईमान रखते हैं; अर्थात्, उनका मानना है कि, वास्तव में, कोई अच्छा या बुरा नहीं है; बल्कि जो कुछ ईश्वर आदेश देता है वह अच्छा है और जो कुछ वह मना करता है वह बुरा है। मुर्तज़ा मुताहरी के अनुसार, सभी इस्लामी धर्म ईश्वर को न्यायकारी (आदिल) मानते हैं और केवल उनके न्याय की व्याख्या में अंतर हैं।
अदलिय्या के हुस्न व कुब्ह अकली के विश्वास का परिणाम यह है कि वे कुरआन, सुन्नत और सभी मुसलमानों द्वारा स्वीकार की गई सर्वसम्मति के साथ-साथ बुद्धि को भी प्रमाण मानते हैं और इसे अहकामे शरई हासिल करने वाले तर्को मे से एक तर्क मानते है।
ईश्वरीय न्याय; इस्लामी धर्मशास्त्र में महत्वपूर्ण मुद्दा
- मुख्य लेख: ईश्वरीय न्याय
वे न्याय के मुद्दे को इस्लामी धर्मशास्त्र के महत्वपूर्ण मुद्दों में से एक मानते हैं, और कहते हैं कि इसका महत्व इतना है कि मुस्लिम धर्मशास्त्री, इस मुद्दे पर अपनी स्थिति के आधार पर, दो श्रेणियों: अदलिय्या और गैर-अदलिय्या में विभाजित हैं।[१] न्याय का सिद्धांत शिया धर्म के पांच सिद्धांतों में से एक है।[२] इसके अलावा, मोअतज़ेला के पांच सिद्धांतों में से दूसरा सिद्धांत सुन्नियों के इस्लामी धर्मशास्त्र से है।[३]
ईश्वरीय न्याय में मुख्य मुद्दा
मुर्तज़ा मुताहरी के अनुसार, न्याय के मामले में, सवाल यह नहीं है कि ईश्वर न्यायकारी है या नहीं; क्योंकि सभी मुस्लिम विद्वान ईश्वर के न्याय में विश्वास करते हैं और कोई भी संप्रदाय ईश्वर के न्याय के विरुद्ध नहीं है। मुद्दा उनके न्याय की उनकी व्याख्या है।[४] मुद्दा यह है कि क्या न्याय के लिए कोई माप और मानदंड है और क्या ईश्वर के अस्तित्व के नियम और ईश्वर की शरीयत, यानी उसके आदेशों (अवामिर) और निषेधों (नवाही) का पालन किया जाता है या नहीं, न्याय का कोई मानदंड नहीं है और ईश्वर जो कुछ भी करता है वह न्याय का उदाहरण है।[५] दूसरे शब्दों में, पहले अच्छा और बुरा, समीचीन (मस्लहत) और भ्रष्ट (मफसदा), सही और गलत था, और फिर, भगवान ने उनके आधार पर अपने आदेश निर्धारित किए या वे नहीं थे; बल्कि सबसे पहले ईश्वर की आज्ञाएँ बनाई गईं, और फिर इन आज्ञाओं के आधार पर अच्छे और बुरे, सही और गलत का गठन किया गया।[६]
उदाहरण के लिए, ईश्वर अमानतदारी का आदेश देता है, क्योंकि यह वास्तव में अच्छा है और इसमें एक मसलहत है, और वह विश्वासघात से मना करता है, क्योंकि यह वास्तव में बुरा है और इसमें मफसदा हो या न हो, चाहे उसमे कोई वास्तविक मसलहत और मफसदा है या ना हो क्योंकि भगवान ने कुछ कार्यो का आदेश दिया वे अच्छे हो गए, और उसने कुछ कार्यों को मना किया, वे बुरे हो गए।[७]
अदलिय्या कौन हैं?
इस्लामी धार्मिक संप्रदायो में शिया और मोअतज़ेला को अदलिय्या कहा जाता है।[८] शिया और मोअतज़ेला धर्मशास्त्री बौद्धिक रूप से अच्छाई और बुराई मे विश्वास रखते है अर्थात हुस्न व क़ुब्ह को अकली मानते है उनका कहना है कि इस बात की अनदेखी करते हुए कि ईश्वर कर्मो की अच्छाई या बुराई का आदेश दे; अर्थात्, बुद्धि कुछ चीज़ों की अच्छाई और कुरूपता का निर्धारण करती है, और ईश्वर इसलिए न्यायकारी है क्योंकि वह उस अच्छाई और कुरूपता के विपरीत कार्य नहीं करता है जिसे बुद्धि पहचानती है।[९]
अदलिय्या के विरोधी
अशाएरा मुस्लिम धर्मशास्त्रियों का एक समूह, शियो और मोअतज़ेला के विपरीत, बौद्धिक अच्छाई और बुराई (हुस्न व क़ुब्ह अकली) को स्वीकार नहीं करता है और इस्लामी अच्छाई और बुराई (हुस्न व क़ुब्ह शरई) में विश्वास करता है। वे कहते हैं कि बुद्धि अच्छे और बुरे में भेद नहीं कर पाती; दूसरे शब्दों में, कोई अच्छा या बुरा नहीं है, और जो कुछ भी शरीयत आदेश देती है वह अच्छा है, और जो कुछ भी निषिद्ध है वह बुरा है, और यदि कोई शरियत नहीं होती, तो कोई अच्छाई या बुराई नहीं होती।[१०]
अदलिय्या के समक्ष अक़्ल का प्रमाण
मुर्तज़ा मुताहरी के शब्दों के आधार पर अदलिय्या क्योंकि वे कुरआन, सुन्नत और सर्वसम्मति (इज्माअ) तथा अक़्ल के अलावा बोद्धिक रुप से अच्छाई और बुराई (हुस्न व क़ुब्ह अक़्ली) को स्वीकार करते हैं, जिसे सभी मुसलमान स्वीकार करते हैं, वे अक़्ल को भी प्रमाण मानते हैं। यानी, वे इसे शरई तर्को में से एक मानते हैं और इसे इज्तिहाद और शरई अहकाम हासिल करने के लिए संदर्भित करते हैं।[११] यह गैर-अदलिय्या राय के विपरीत है, जो कहता है कि शरई कानूनो तक पहुंचने के लिए अक़ल हमारी मार्गदर्शक नहीं हो सकती।[१२]
फ़ुटनोट
- ↑ मुताहरी, मजमूआ आसार, 1384 शम्सी, भाग 4, पेज 811
- ↑ मुहम्मदी रय शहरि, दानिश नामा अकाइद इस्लामी, 1385 शम्सी, भाग 8, पेज 99
- ↑ सुब्हानी, फ़रहंग अकाइद व मज़ाहिब इस्लामी, 1373 शम्सी, भाग 4, पेज 51
- ↑ मुताहरी, मजमूआ आसार, 1384 शम्सी, भाग 3, पेज 73
- ↑ मुताहरी, मजमूआ आसार, 1384 शम्सी, भाग 4, पेज 811-812
- ↑ मुताहरी, मजमूआ आसार, 1384 शम्सी, भाग 4, पेज 813
- ↑ मुताहरी, मजमूआ आसार, 1384 शम्सी, भाग 4, पेज 811-812
- ↑ देखेः अल्लामा हिल्ली, इस्तिक़सा उन नज़र फ़िल क़ज़ा वल क़दर, 1418 हिजरी मशकूर, फ़रहंग फ़िरके इस्लामी, 1375 शम्सी, पेज 333
- ↑ हिल्ली, कश्फ़ुल मुराद, 1413 हिजरी, पेज 302-303
- ↑ हिल्ली, कश्फ़ुल मुराद, 1413 हिजरी, पेज 302
- ↑ मुताहरी, मजमूआ आसार, 1384 शम्सी, भाग 4, पेज 815
- ↑ मुताहरी, मजमूआ आसार, 1384 शम्सी, भाग 4, पेज 814
स्रोत
- हिल्ली, हुसैन बिन यूसुफ़, इस्तिक़सा उन नज़र फ़िल क़ज़ा वल क़दर, शोधः मुहम्मद हुसैनी नेशाबूरी, मशहद, दार अबना अल ग़ैब, पहला संस्करण 1418 हिजरी
- हिल्ली, हुसैन बिन यूसुफ़, कश्फ़ुल मुराद फ़ी शरह तजरीदिल ऐतेक़ाद, संशोधन हसन हसन जादे आमोली, क़ुम, जमाअतुल मुदर्रेसीन फ़िल हौज़तिल इल्मिया बेक़ुम, मोअस्सेसा अल नशर अल इस्लामी, चौथा संस्करण 1413 हिजरी
- सुब्हानी, जाफ़ार, फ़रहंग अकाइद व मज़ाहिब इस्लामी, क़ुम, तौहीद, पहला संस्करण 1373 शम्सी
- मुहम्मदी रय शहरी, मुहम्मद, दानिशनामा अकाइद इस्लामी, क़ुम, दार उल हदीस, 1385 शम्सी
- मशकूर, मुहम्मद जवाद, फ़रहंग फ़िरक इस्लामी, मशहद, आस्ताने कुद्से रज़वी, 1375 शम्सी
- मुताहरि, मुर्तज़ा, मजमूआ आसार, तेहरान, इंतेशारात सदरा, 1384 शम्सी