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हदसे अकबर

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हदसे अकबर, वह चीज़ है जो तहारत (पवित्रता) को समाप्त कर देती है और कुछ इबादतों जैसे नमाज़ के लिए ग़ुस्ल (स्नान) को अनिवार्य (वाजिब) बना देती है।[]

शिया न्यायविदों के अनुसार, जनाबत, हैज़ (मासिक धर्म), निफ़ास (प्रसूता रक्तस्राव), इस्तिहाज़ा-ए-मुतवस्सिता और कसीरा (मध्यम और भारी असामान्य रक्तस्राव), और मुर्दे के शरीर का स्पर्श हदसे अकबर के उदाहरण हैं।[] जब भी इनमें से कोई एक स्थिति किसी व्यक्ति में पैदा हो जाए या उससे घटित हो जाए, तो उन इबादतों (जैसे नमाज़) को करने के लिए जिनके लिए तहारत (वुज़ू, ग़ुस्ल या तयम्मुम) शर्त है, उसे गुस्ल (स्नान) करना अनिवार्य होता है।[]

न्यायविदों ने हदस को "हदसे अकबर" और "हदसे असग़र" में विभाजित किया है।[] हदसे अकबर (बड़ा हदस) से मतलब उस चीज़ से है जो ग़ुस्ल (स्नान) को अनिवार्य (वाजिब) बना देती है।[] हदसे असगर (छोटा हदस) उस चीज़ की ओर इशारा करता है जो वुज़ू को तोड़ देती है या ख़त्म कर देती है।[]

न्यायविदों ने अपने रिसाला-ए-अमलिया के तहारत के अध्याय में और अन्य न्यायशास्त्रीय किताबों में हदस के बारे में विस्तार से बात की है।[] उस व्यक्ति को जिससे कोई हदस (छोटा या बड़ा) हो जाए, "मोहदिस" कहा जाता है।[]

संबंधित लेख

फ़ुटनोट

  1. मोअस्सेसा दायरतुल मआरिफ़ फ़िक़्हे इस्लामी, फ़ंरहंगे फ़िक़्ह, 2007, खंड 3, पेज 246-248।
  2. फ़ैज़ काशानी, रसाएल, 1429 हिजरी, पृष्ठ 22।
  3. नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1404 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 63।
  4. मोअस्सेसा दायरतुल मआरिफ़ फ़िक़्हे इस्लामी, फ़ंरहंगे फ़िक़्ह, 2007, खंड 3, पेज 246-248।
  5. मोअस्सेसा दायरतुल मआरिफ़ फ़िक़्हे इस्लामी, फ़ंरहंगे फ़िक़्ह, 2007, खंड 3, पेज 246-248।
  6. मोअस्सेसा दायरतुल मआरिफ़ फ़िक़्हे इस्लामी, फ़ंरहंगे फ़िक़्ह, 2007, खंड 3, पेज 246-248।
  7. शेख़ अंसारी, किताब तहरात, 1415 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 43।
  8. मोअस्सेसा दायरतुल मआरिफ़ फ़िक़्हे इस्लामी, फ़ंरहंगे फ़िक़्ह, 2007, खंड 3, पेज 246।

स्रोत

  • शेख़ अंसारी, मुर्तज़ा, किताब अल-तहारा, क़ुम, शेख़ आज़म अंसारी की सम्मान की विश्व कांग्रेस, क़ुम, 1415 हिजरी।
  • फ़ैज़ काशानी, मोहम्मद मोहसिन, रसायले फ़ैज़ काशानी, शोध: बेहज़ाद जाफ़री, तेहरान, शाहिद मोतह्हरी हाई स्कूल, 1429 हिजरी।
  • मोअस्सेसा दायरतुल मआरिफ़ फ़िक़्हे इस्लामी, फ़ंरहंगे फ़िक़्ह: मुताबिक़े मज़हबे अहल अल-बैत (अ), क़ुम, इस्लामी न्यायशास्त्र विश्वकोश फाउंडेशन अहल अल-बेत के मज़हब पर, 1426 हिजरी।
  • नजफी, मोहम्मद हसन, जवाहेर अल-कलाम फ़ी शरहे शरायेअ अल-इस्लाम, अब्बास कूचानी और अली अखुंदी द्वारा शोध:, बेरूत, दार एहया अल-तुरास अल-अरबी, 1404 हिजरी।