चार विशेष किताबे

कुतुबे अरबआ या उसूले अरबआ (अरबी: کتب اربعه) शियों की चार विश्वसनीय (मोतबर) हदीस की पुस्तकें हैं, जिनमें अल-काफ़ी, मन ला-यहज़ोरोहुल-फ़क़ीह, तहज़ीब उल-अहकाम और अल-इस्तिब्सार शामिल हैं। काफ़ी के लेखक मुहम्मद बिन याक़ूब कुलैनी हैं, मन ला-यहज़ोरोहुल-फ़कीह के लेखक शेख़ सदूक़ हैं, जबकि तहज़ीब उल-अहकाम और अल-इस्तिब्सार के लेखक शेख़ तूसी हैं।
पहली बार शहीद सानी ने हदीस ट्रांसमिशन के प्राधिकरण में इन पुस्तकों का जिक्र करते हुए कुतुबे अरबा शब्द का इस्तेमाल किया। उनके बाद इस शब्द का इस्तेमाल न्यायशास्त्रीय स्रोतों में सार्वजनिक रूप से होने लगा। कुछ शिया विद्वान कुतुबे अरबा की सभी हदीसों को सही मानते हैं, लेकिन अधिकांश विद्वान केवल उन्हीं हदीसों को स्वीकार करते हैं जो मुतवातिर हैं या जिनके संचरण (सनद) विश्वसनीय होती है।
शियों के सबसे विश्वसनीय हदीसी ग्रंथ
शिया इन चार किताब अर्थात काफ़ी, तहज़ीब उल-अहकाम, इस्तिब्सार और मन ला-यहज़ोरोहुल फ़क़ीह को अपने सबसे विश्वनसनीय हदीसी ग्रंथ मानते है और इन्हे कुतुबे अरबा के नाम से याद करते है।[१] हालांकि अधिकांश शिया विद्वान इन किताबो मे उल्लेखित सभी हदीसों का पालन करना अनिवार्य नही समझते बल्कि इन का पालन करने के लिए इनके संचरण और निहितार्थ (सनद और दलालत) दोनो की छान-बीन करते है।[२]
इतिहास के झरोके मे
शहीद सानी पहले विद्वान थे जिन्होंने 950 हिजरी में एक हदीस अनुमति में "कुतुब-अल-हदीस अल-अरबआ" शब्द का इस्तेमाल किया। इसके बाद, उन्होंने कई अन्य रिवायत अनुमतियों में इस शब्द और "अल-कुतुब अल-अरबआ" वाक्यांश का उपयोग किया।[३]
लगभग तीन दशक बाद, मोहक्किक़े अर्दबेली ने अपनी फिक़्ही किताब "मजमा अल फ़ाइदा व अल बुरहान" जिसकी लेखन अवधि 977 हिजरी से 985 हिजरी थी में इस शब्द का प्रयोग किया। इस तरह, यह शब्द हदीस के क्षेत्र से फिक़्ह इस्लामी न्यायशास्त्र की किताबों में भी प्रवेश कर गया। इसके बाद, यह शब्द निम्नलिखित किताबों में क्रमशः "ज़ुब्दा अल बयान" (989 हिजरी में लिखी गई), "मुनतक़ा अल जुमान" (1006 हिजरी में लिखी गई), "अल-वाफ़िया" (1059 हिजरी में लिखी गई), इस्तेमाल हुआ है।[४]
सत्यापन
शिया धर्मशास्त्रि कुतुबे अरबा का एक संग्रह के रूप मे सत्यापन करते है, यहा तक कि शेख अंसारी प्रसिद्ध किताब उनमे से कुतुबे अरबा के विश्वसनीय होने पर आस्था रखने को धर्म की अनिवार्यताओं में से एक घोषित करना दूर की कौड़ी नहीं मानते हैं।[५] लेकिन इन सब बातों के बावजूद, सभी हदीसों और रिवायतो के सही, ग़ैर सही तथा और सत्यापन और असत्यापन को लेकर शिया विद्वानों में मतभेद है। इस संबंध में तीन सिद्धांतों की ओर इशारा किया जा सकता है:
- सभी हदीसें क़ती उस-सुदूर और विश्वसनीय हैं: अख़बारी कुतुबे अरबा की सभी हदीसों को विश्वसनीय मानते हुए इन सभी हदीसों को मासूमीन द्वारा प्रेषित होने पर यक़ीन रखते है।[६] सय्यद मुर्तज़ा का दृष्टिकोण की अख़बारीयो के दृष्टिकोण के समान है। सय्यद मुर्तज़ा इन किताबों की अधिकांश हदीसों को मुतावातिर या क़ती उस-सुदूर मानते हैं।[७]
- सभी हदीसे सही हैं लेकिन सभी क़ती उस-सुदूर नहीं हैं: कुछ धर्मशास्त्री जैसे फाज़िल तुनी,[८] मुल्ला अहमद नराकी[९] और मिर्ज़ा मुहम्मद हुसैन नाइनी, हालांकि वे इन किताबों में सभी हदीसों को क़ती उस-सुदूर नही मानते लेकिन सभी के सही होने को स्वीकार करते हैं। आयतुल्लाह ख़ूई से यह वर्णन किया गया है कि काफ़ी की हदीसों की संचरण (सनद) में शंका डालना कुछ कमजोर लोगों के एक निष्फल प्रयास के अलावा और कुछ नहीं है।[१०]
- अधिकांश हदीसे ज़न्नी उस-सुदूर हैं, केवल क़ती उस-सुदूर ही प्रमाण (हुज्जत) है: अधिकांश शिया धर्मशास्त्रियो और उसूलीयो का मानना है कि काफ़ी की कुछ मुतावातिर हदीसों को छोड़कर, बाकी हदीस ज़न्नी उस-सुदूर हैं और केवल वे हदीस जो संचरण (सनद) के हिसाब से जिनका सत्यापित (मोअस्सक़) है प्रमाणित हैं, भले ही वे खबर की प्रामाणिकता के मानदंड और शर्तों में उनके बीच अंतर हो।[११]
अल-काफ़ी

- मुख़्य लेख: काफ़ी
यह किताब अल-काफ़ी के नाम से जानी जाती है, जिसे मुहम्मद बिन याक़ूब कुलैनी (मृत्यु 329 हिजरी) ने लघुगुप्त काल (ग़ैबते सुग़रा) के दौरान संकलित किया था।[१२] यह पुस्तक तीन अलग-अलग भाग उसूले काफ़ी, फ़ुरू ए काफ़ी और रौज़ा ए काफ़ी पर आधारित लगभग 16 हजार हदीसो का संग्रह है।[१३] अल-उसूल मिन अल-काफ़ी एतेक़ादी हदीसों का संग्रह है; अल-फ़ुरू मिन अल-काफ़ी में उल्लिखित हदीसे अमली अहकाम और न्यायशास्त्र से संबंधित हैं, जबकि रौज़ ए काफ़ी में अधिकतर नैतिक हदीस और उपदेश और सलाह शामिल हैं।[१४]
मन ला-यहज़ोरोहुल-फ़क़ीह

- मुख़्य लेख: मन ला-यहज़ोरोहुल-फ़क़ीह
यह किताब शेख़ सदूक़ अबू जाफ़र मुहम्मद बिन अली बिन हुसैन बिन बाबवैह क़ुम्मी (मृत्यु 381 हिजरी) द्वारा संकलित की गई। इस पुस्तक में लगभग 6222 हदीस शामिल हैं, जिनका विषय न्यायशास्त्र और अमली अहकाम हैं। इस पुस्तक की विशेषता यह है कि शेख सदूक़ ने इसमें उन हदीसों को एकत्र किया है जिन्हें उन्होंने सही माना और उनके आधार पर फ़तवे दिए।[१५]
तहज़ीब उल-अहकाम

- मुख़्य लेख: तहज़ीब उल-अहकाम
यह किताब अबू जाफ़र मुहम्मद बिन हसन तूसी (मृत्यु 462 हिजरी) द्वारा संकलित की गई है। इस किताब मे न्यायशास्त्र और शरीयत के फैसलों से संबंधित हदीसों का संग्रह है जो पैगंबर (स) और आइम्मा (अ) से सुनाई गई है। शैख़ तूसी ने इस पुस्तक में केवल फ़ुरूए दीन (धर्म की शाखाओं) की चर्चा की है और तहारत से लेकर दीयात तक के अहकाम से संबंधित हदीसों का वर्णन किया है। इस पुस्तक के शीर्षकों की व्यवस्था और वर्गीकरण बिल्कुल शेख मुफ़ीद की किताब अल-मुक़्नेआ की व्यवस्था और वर्गीकरण के अनुसार है। "तहज़ीब उल-अहकाम" पुस्तक 393 अध्याय और 13592 हदीसो पर आधारित हैं। इसके अंत में शरह मशीख़ा तहज़ीब उल-अहकाम नामक एक परिशिष्ट (ज़मीमा) है। मशीख़ा उन बुजर्गो और अध्यापको को संदर्भित करता है जिन से शेख ने हदीसों को बयान किया है।[१६]
अल-इस्तिब्सार फ़ी मा इख़्तलफ़ा मिनल अख़बार
- मुख़्य लेख: अल-इस्तिब्सार फ़ी मा इख़्तलफ़ा मिनल अख़बार
इस पुस्तक को तहज़ीब उल-अहकाम के लेखक शेख़ तूसी ने संकलित किया है। तहज़ीब उल-अहकाम के बाद उन्होंने अपने छात्रों के अनुरोध पर इस पुस्तक को संकलित किया। शेख़ ने इस पुस्तक में केवल उन हदीसों का वर्णन किया है जो धर्मशास्त्र की विभिन्न बहसों और विषयों के संबंध मे आई हैं; इसलिए, इस पुस्तक में धर्मशास्त्र के सभी अध्यायों को सम्मिलित नहीं किया गया है। शेख़ तूसी ने शुरू में उन रिवायतो और हदीसों को बयान किया जिन्हें उन्होंने प्रामाणिक माना और फिर विरोधी रिवायतो की ओर इशारा किया और फिर उन रिवायतो को एकत्र किया और उनका मूल्यांकन किया। इस पुस्तक के अध्यायों का क्रम अन्य धर्मशास्त्र की पुस्तकों के समान है और यह किताब तहारत से शुरू होकर किताब उद-दियात पर समाप्त हुई। (यहाँ किताब खंड या अध्याय को संदर्भित करती है)। इस किताब में कुल 5511 हदीसें हैं।[१७]
संबंधित पृष्ठ
फ़ुटनोट
- ↑ अमीनी, अल-ग़दीर, 1416 हिजरी, भाग 3, पेज 383-384
- ↑ अमीनी, अल-ग़दीर, 1416 हिजरी, भाग 3, पेज 383-384
- ↑ बाक़री, चहार किताबे हदीसी इमामिया व रिवाजे इस्तेलाह, “अल-कुतुब उल-अरबा”, नक़्दी बर दीदगाहे अंदरू न्यूमुन
- ↑ बाक़री, चहार किताबे हदीसी इमामिया व रिवाजे इस्तेलाह, “अल-कुतुब उल-अरबा”, नक़्दी बर दीदगाहे अंदरू न्यूमुन
- ↑ देखेः अंसारी, फराइद उल-उसूल, 1428 हिजरी, भाग 1, पेज 239
- ↑ उस्तराबादी, फ़वाइद उल-मदानिया, पेज 112 अल-करकी, हिदाय तुल-अबरार, 1396 हिजरी, पेज 17
- ↑ बेनक़्ल अज़ हसन आमोली, मआलिम अल-उसूल, पेज 157
- ↑ फ़ाज़िल तूनी, अल-वाफ़ीया फ़ी उसूलिल फ़िक़्ह, 1415 हिजरी, पेज 166
- ↑ मुल्ला अहमद नराक़ी, मनाहिज, पेज 186
- ↑ ख़ूई, मोअजम रिजाल उल-हदीस, भाग 1, पेज 87
- ↑ सय्यद अबुल क़ासिम ख़ूई, मोअजम रिजाल उल-हदीस, भाग 1, पेज 87-97
- ↑ मुदीर शानेची, इल्म उल-हदीस, 1381 शम्सी, पेज 96
- ↑ मुदीर शानेची, इल्म उल-हदीस, 1381 शम्सी, पेज 96-97
- ↑ मुदीर शानेची, इल्म उल-हदीस, 1381 शम्सी, पेज 96-97
- ↑ देखेः मुदीर शानेची, तारीख़े हदीस, 1381 शम्सी, पेज 130 और 135
- ↑ देखेः मुदीर शानेची, तारीख़े हदीस, 1381 शम्सी, पेज 138 और 140
- ↑ देखेः मुदीर शानेची, तारीख़े हदीस, 1381 शम्सी, पेज 148 और 150
स्रोत
- उस्तराबादी, मुहम्मद अमीन बिन मुहम्मद शरीफ़, फ़वाएद उल-मदानिया, तबरेज़, 1321 हिजरी
- अमीनी, अब्दुल हुसैन, अल-ग़दीर फ़ी किताब वल सुन्ना वल अदब, क़ुम, मरकज़ उल-ग़दीर लिल दरासात इल इस्लामीया, 1416 हिजरी / 1995 ई
- अंसारी, मुर्तुज़ा, फ़राइद उल-उसूल, क़ुम, मज्मा उल-फ़िक्र उल-इस्लामी, 1428 हिजरी
- बाक़री, हमीद, (चहार किताबे हदीसी इमामिया वा रिवाजे इस्तेलाह अल-कुतुब उल-अरबा) नक़दी बर दीदगाह अंदरू न्यूमुन, वेबगाह तूमार अंदेशे, वीजिट 6 फरवरदीन, 1397 शमसी
- ख़ूई, सय्यद अबुल क़ासिम, मोअजम रिजाले हदीस वा तफ़सीले तबकाते रुवात, क़ुम, मरकजे नश्र अल-सक़ाफ़ते इस्लामीया फ़िल आलम, 1372 शम्सी
- फ़ाजिल तुनी, अब्दुल्लाह बिन मुहम्मद, अल-वाफ़ीया फ़ी उसूले फ़िक़्ह, शोधः रिज़वी कश्मीरी, क़ुम, मजमा उल-फ़िक्र उल-इस्लामी, 1415 हिजरी
- करकी, हुसैन बिन शहाबुद्दीन, हिदाय तुल-अबरार एला तरीक़ इल-आइम्मा तिल-अत्हार, शोधः रऊफ़ जमालुद्दीन, नजफ़, मोअस्सेसा एहयाइल एहया, 1396 हिजरी
- मुदीर शानेची, काज़िम, तारीखे हदीस, तेहरान, इंतेशारात सेमत, 1377 शम्सी
- मुदीर शानेची, काज़िम, इल्म उल-हदीस, क़ुम, दफ़्तरे इंतेशारात ए इस्लामी, सोलहवा प्रकाशन, 1381 शम्सी