सूर ए फ़ज्र
ग़ाशिया सूर ए फ़ज्र बलद | |
सूरह की संख्या | 89 |
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भाग | 30 |
मक्की / मदनी | मक्की |
नाज़िल होने का क्रम | 10 |
आयात की संख्या | 30 |
शब्दो की संख्या | 139 |
अक्षरों की संख्या | 584 |
सूर ए फ़ज्र (अरबी: سورة الفجر) 89वां सूरह है और क़ुरआन के मक्की सूरों में से एक है, जो कुरआन के तीसवें भाग में है। फज्र का अर्थ है भोर, जिसकी शपथ भगवान सूरह की पहली आयत में लेता है, और कथात्मक व्याख्याओं (हदीसी तफ़सीरों) में, शियों के बारहवें इमाम, इमाम महदी (अ) को इसका उदाहरण (मिस्दाक़) माना गया है।
सूर ए फ़ज्र आद की क़ौम, समूद की क़ौम और फ़िरौन और उनके फ़साद और विद्रोह के इतिहास को संदर्भित करता है और कहता है कि मनुष्य ईश्वरीय परीक्षण (आज़माइश ए एलाही) के अधीन हैं; लेकिन कुछ लोग भगवान की कृपा को भूल जाने के कारण इस परीक्षा में असफल हो जाते हैं।
सूर ए फ़ज्र को इमाम हुसैन (अ) के सूरह के रूप में भी जाना जाता है, और हदीसों में, इसकी अंतिम आयतों में, "नफ़्से मुत्मइन्ना" का अर्थ इमाम हुसैन (अ) को माना गया है।
हदीसों में वर्णित हुआ है कि, जो कोई इसे दस रातों में पढ़ता है, भगवान उसे माफ़ कर देगा, और यदि वह इसे अन्य दिनों में पढ़ता है, तो क़यामत के दिन रोशनी उसके साथ होगी। सूर ए फ़ज्र उन सूरों में से एक है जो इमाम हुसैन (अ) की वर्तमान ज़रीह (2012 ईस्वी में स्थापित) पर उत्कीर्ण हैं।
परिचय
नामकरण इस सूरह को "फ़ज्र" कहा जाता है क्योंकि यह भगवान द्वारा फ़ज्र (भोर) की शपथ से शुरू होता है।[१]
- नाज़िल होने का स्थान और क्रम
सूर ए फ़ज्र मक्की सूरों में से एक है, और नाज़िल होने के क्रम में यह दसवां सूरह है जो पैग़म्बर (स) पर नाज़िल हुआ था।[२] यह सूरह क़ुरआन की वर्तमान व्यवस्था में 89वां सूरह है और क़ुरआन के तीसवें भाग में है।
- आयतों एवं शब्दों की संख्या
सूर ए फ़ज्र में 30 आयतें, 139 शब्द और 584 अक्षर हैं। यह सूरह मुफ़स्सलात सूरों (छोटी आयतों वाले) में से एक है और यह पांच शपथों से शुरू होता है।[३]
- सूर ए इमाम हुसैन (अ)
सूर ए फ़ज्र को सूर ए इमाम हुसैन (अ) के नाम से जाना जाता है।[४] क्योंकि इमाम सादिक़ (अ) की एक हदीस के आधार पर, "नफ़्से मुत्मइन्ना" [आयत 27 में] का अर्थ इमाम हुसैन (अ) हैं।[५]
इसके अलावा, «لیال عشر» (दस रातें) की एक व्याख्या, मुहर्रम की पहली दस रातों के रूप में की गई है।[६] सूर ए फ़ज्र उन सूरों में से एक है जो इमाम हुसैन (अ) की वर्तमान ज़रीह (2012 ईस्वी में स्थापित) पर उत्कीर्ण हैं।[७]
सामग्री
सूर ए फ़ज्र आद की क़ौम और अरम ज़ात अल इमाद (ऊंचे स्तंभ वाले स्वर्गीय बाग़) और समूद की क़ौम, फ़िरौन की क़ौम और उनके फ़साद और विद्रोह की कहानी को संदर्भित करता है, और यह हमें याद दिलाता है कि कि मनुष्य ईश्वरीय परीक्षण (आज़माइश ए एलाही) के अधीन हैं और आशीर्वाद (नेअमत) और कठिनाइयों के साथ, परीक्षण होगा फिर वह इस परीक्षा में अविश्वासियों की विफलता के कारणों की व्याख्या करता है और न्याय (क़यामत) के दिन के आने की ओर इशारा करता है, जिस दिन अविश्वासियों को नर्क के प्रभावों को देखकर चेतावनी दी जाएगी; लेकिन ऐसी सलाह लेने का क्या मतलब जो बेकार और देर से हो।[८]
व्याख्यात्मक नोट्स
व्याख्याओं में सूर ए फ़ज्र के कुछ शब्दों के बारे में व्याख्यात्मक नोट्स दिए गए हैं, जिनका उल्लेख नीचे किया गया है:
अल-फ़ज्र, अल-शफ़अ और अल-वित्र शब्दों का अर्थ
तफ़सीर अल बुरहान में, वर्णन हैं कि "अल-शफ़अ: जोड़ी" शब्द का अर्थ पैग़म्बर (स) और इमाम अली (अ) या इमाम हसन (अ) और इमाम हुसैन (अ) है और शब्द "अल-वित्र: अकेला" का अर्थ है ईश्वर। एक कथन में यह भी कहा गया है कि "अल-फ़ज्र" शियों के बारहवें इमाम, इमाम महदी (अ) को संदर्भित करता है।[९]
दस रातों का अर्थ
सूर ए फ़ज्र की दूसरी आयत में, भगवान لَيَالٍ عَشْرٍ (लयालिन अश्र) (दस रातें) की क़सम खाता है, लयालिन अश्र की व्याख्या के संबंध में कई संभावनाएं हैं: ज़िल हिज्जा की पहली दस रातें, मुहर्रम की पहली दस रातें, रमज़ान की आख़िरी दस रातें, और रमज़ान की पहली दस रातें, इन संभावनाओं में से हैं।[१०]
सुन्नी टिप्पणीकारों में से एक, फ़ख्रे राज़ी के अनुसार, दस रातों की शपथ लेना उनकी महानता और गुण को दर्शाता है। उन्होंने ज़िल हिज्जा की पहली दस रातों, मुहर्रम की पहली दस रातों और रमज़ान की अंतिम दस रातों को लयालिन अश्र के लिए तीन संभावनाओं के रूप में पेश किया है, जिसमें भगवान की इबादत पर ज़ोर दिया गया है।[११] तफ़सीर अल मीज़ान में, अल्लामा तबातबाई ने, उल्लिखित संभावनाओं की ओर इशारा करते हुए, लयालिन अश्र को ज़िल हिज्जा की पहली दस रातें माना है।[१२]
जाबिर बिन यज़ीद जोअफ़ी ने इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ) से जो रिवायत वर्णित की है, उसके आधार पर लयालिन अश्र, दस मासूम इमामों को संदर्भित करता है।[१३] कुछ टिप्पणीकारों का मानना है कि दस रातों का अर्थ केवल रातें ही नहीं है, बल्कि इसमें दिन भी शामिल हैं।[१४]
आशीर्वाद द्वारा मनुष्य का परिक्षण
सूर ए फ़ज्र की 15वीं और 16वीं आयत में कहा गया है कि ईश्वर मनुष्य की परीक्षा कभी प्रचुर आशीर्वाद से और कभी सीमित जीविका से करता है। लेकिन इंसान इस परिक्षा को भूल जाता है और जब उस पर बरकात (नेअमतें मिलती हैं) होती है तो वह सोचता है कि वह ईश्वर के क़रीब (मुक़र्रब) है और जब उसे ज़रूरत (तंगदस्ती) होती है तो वह निराश हो जाता है और कहता है कि ईश्वर ने मुझे अपमानित (ज़लील व ख़्वार) किया है।[१५] अल्लामा तबातबाई ने इन आयतों की व्याख्या में तीन बिंदुओं का उल्लेख किया है जो इस प्रकार हैं: 1- ईश्वर का आशीर्वाद देना और रोकना और कम देना ईश्वरीय परीक्षा है, परन्तु मनुष्य अपनी अदूरदर्शिता और स्व-धार्मिकता के कारण इस प्रकार निर्णय करता है कि ईश्वर ने आशीर्वाद देकर उसका सम्मान किया है और उसे कम आशीर्वाद देकर अपमानित किया है, और परिणामस्वरूप, वह विद्रोह, फ़साद और आशीर्वाद की निन्दा (कुफ़राने नेअमत) में बदल जाता है 2- ईश्वर मनुष्यों को जो आशीर्वाद देता है, क्योंकि वे ईश्वर की कृपा और दया से उत्पन्न होते हैं, वास्तव में ईश्वर की ओर से बंदों के लिए एक सम्मान है, इस शर्त के साथ कि वे आशीर्वाद को अपने हाथों से सज़ा में न बदल दें। 3- मनुष्य सोचता है कि आशीर्वाद से लाभ प्राप्त करना संसार में सुख की निशानी है और ईश्वर की उपस्थिति में उसकी गरिमा (करामत) का कारण है, जबकि वास्तविक गरिमा (करामत), ईश्वर से निकटता, आस्था (ईमान) और धार्मिक कर्मों (अमले सालेह) से है और इस संदर्भ में ग़रीबी और आवश्यकता की कमी की कोई भूमिका और प्रभाव नहीं है।[१६]
प्रसिद्ध आयतें
पुनरुत्थान के दिन ईश्वर के आगमन के बारे में बाईसवीं आयत और आत्म-आश्वासन के बारे में आयत 27 और 28 सूरह फज्र की प्रसिद्ध आयतों में से हैं।
आय ए मजीअ (22)
- मुख्य लेख: आय ए मजीअ
وَ جَآءَ رَبُّكَ وَ ٱلمَلَكُ صَفًّا صَفًّا
(व जाआ रब्बोका वल मलको सफ़्फ़न सफ़्फ़ा) अनुवाद: और तुम्हारे रब का आदेश आएगा और फ़रिश्ते एक पंक्ति में प्रकट हों। सूर ए फ़ज्र की आयत 22, जिसमें क़यामत के दिन ईश्वर के पास आने का गुण बताया गया है, को आय ए मजीअ के रूप में जाना जाता है[१७] शिया के दृष्टिकोण से, आने और जाने जैसे प्राणियों के गुण को ईश्वर की ओर इंगित नहीं किया जा सकता है। इसलिए, टीकाकारों ने इस आयत की व्याख्या ईश्वर के आदेश के आने के अर्थ के रूप में की है। या कि "आने" का श्रेय ईश्वर को देना बौद्धिक अनुमति पर आधारित होना चाहिए।[१८] इस आयत को आयाते मुतशाबेह में से एक माना गया है जिनकी व्याख्या आयाते मोहकम द्वारा होती है। वह मोहकम आयत जो इस तरह के मुतशाबेह का अर्थ बताती है यह सूर ए शूरा की आयत 11 का एक वाक्य है (لَيْسَ كَمِثْلِهِ شَيْءٌ: लैसा कमिस्लेही शय) (अनुवाद: उसके जैसा कुछ भी नहीं है) अर्थात, यद्यपि सर्वशक्तिमान ईश्वर एक वास्तविक प्राणी है, लेकिन क्योंकि वह किसी अन्य प्राणी के जैसा नहीं है, परिणामस्वरूप, उसके द्वारा किया गया कोई भी कार्य अन्य प्राणियों के कार्यों जैसा नहीं है। इस आयत में ईश्वर के आने की व्याख्या और विश्लेषण इस प्रकार किया जाना चाहिए कि यह ईश्वरीय दायरे में फिट बैठता हो और उसे अन्य प्राणियों के समान न बनाता हो।[१९]
आय ए नफ़्से मुतमइन्ना (27-28)
मुख्य लेख: आय ए नफ़्से मुतमइन्ना
يَا أَيَّتُهَا النَّفْسُ الْمُطْمَئِنَّةُ ارْجِعِي إِلَىٰ رَبِّكِ رَاضِيَةً مَّرْضِيَّةً
(या अय्यतोहन नफ़्सुल मुतमइन्ना इरजेई ऐला रब्बेका राज़ेयतम मरज़िया) अनुवादः हे निश्चिन्त आत्मा वालों (हे नफ़्से मुतमइन्ना) संतुष्ट और, प्रसन्न होकर अपने प्रभु (रब) के पास लौट आओ ये दो आयतें और आयत 29 और 30, जो सूर ए फ़ज्र की अंतिम आयतें हैं, जो हदीसों के अनुसार, उनमें नफ़्से मुतमइन्ना, इमाम हुसैन (अ) को संदर्भित करती हैं, और इसी कारण से, सूर ए फ़ज्र को सूर ए इमाम हुसैन (अ) कहा जाता है।[२०] हदीसों में यह भी उल्लेख किया गया है कि नफ़्से मुतमइन्ना वह नफ़्स है जो पैग़म्बर (स) और उनके अहले बैत (अ) में विश्वास रखता है, और यह भी कहा गया है कि यह सूरह अमीर उल मोमिनीन (अ) के बारे में है और नफ़्से मुतमइन्ना का मतलब वह नफ़्स है जो इनकी संरक्षकता (विलायत) में आश्वस्त है।[२१] सूर ए फ़ज्र की आखिरी आयतें आमतौर पर शिया विद्वानों की मृत्यु की सूचना की शुरुआत में आती हैं।[२२] इसके अलावा, उल्लेखित आयत का हवाला देकर रहस्यवादियों ने नफ़्स की एक श्रेणी को "नफ़्से मुतमइन्ना" माना है।[२३]
गुण और विशेषताएं
- मुख्य लेख: सूरों के फ़ज़ाइल
तफ़सीर मजमा उल बयान में सूर ए फ़ज्र को पढ़ने के गुण के बारे में, पैग़म्बर (स) से एक हदीस वर्णित हुई है कि: जो कोई दस रातों के दौरान सूर ए फ़ज्र को पढ़ता है, भगवान उसे माफ़ कर देगा, और यदि वह अन्य दिनों में पढ़ता है, तो क़यामत के दिन एक नूर उसके साथ होगा।[२४] यह इमाम सादिक़ (अ) से भी वर्णित है: "वाजिब और मुस्तहब नमाज़ों में सूर ए फ़ज्र का पाठ करो, इस लिए कि यह सूर ए हुसैन बिन अली (अ) है।" जो कोई भी इसे पढ़ेगा, वह न्याय के दिन, स्वर्ग में उसके समान एक पद पर होगा।[२५]
मोनोग्राफ़ी
कुछ पुस्तकों में विशेष रूप से सूर ए फ़ज्र की व्याख्या का वर्णन किया गया है। जो इस प्रकार हैं:
- सय्यद अब्दुल हुसैन दस्तग़ैब, नफ़्स ए मुत्मइन्ना (सूर ए फ़ज्र की आयत 26-30 पर टिप्पणी), क़ुम, दार अल कुतुब, 1369 शम्सी।
- मुर्तज़ा मुतह्हरी, तफ़सीरे सूर ए फ़ज्र व क़यामत, क़ुम, इस्लामिक रिपब्लिक पार्टी।
- जम्शेद अब्ज़ारी, तफ़सीरे तहलीली ए सूर ए फ़ज्र, अराक, तन्ज़ प्रकाशन, 1382 शम्सी।
फ़ुटनोट
- ↑ दानिशनामे क़ुरआन व क़ुरआन पजोही, 1377 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 1263।
- ↑ मारेफ़त, आमोज़िशे उलूमे क़ुरआन, 1371 शम्सी, खंड 1, पृष्ठ 166।
- ↑ दानिशनामे क़ुरआन व क़ुरआन पजोही, 1377 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 1263-1264।
- ↑ मोहद्दसी, फ़र्हंगे आशूरा, 1388 शम्सी, पृष्ठ 251।
- ↑ मजलिसी, बिहार उल अनवार, 1403 हिजरी, खंड 24, पृष्ठ 93।
- ↑ मकारिम शिराज़ी, तफ़सीर नमूना, 1374 शम्सी, खंड 26, पृष्ठ 439।
- ↑ इमाम हुसैन (अ) के नई ज़रीह के बारे में सब कुछ।
- ↑ दानिशनामे क़ुरआन व क़ुरआन पजोही, 1377 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 1263-1264।
- ↑ बहरानी, अल बुरहान, 1416 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 650।
- ↑ तबातबाई, अल मीज़ान, 1390 हिजरी, खंड 20, पृष्ठ 279; मीबदी, कशफ़ उल असरार, 1371 शम्सी, खंड 10, पृष्ठ 479।
- ↑ फ़ख़रे राज़ी, मफ़ातीह उल ग़ैब, 1420 हिजरी, खंड 31, पृष्ठ 149।
- ↑ अल्लामा तबातबाई, अल मीज़ान, 1390 हिजरी, खंड 20, पृष्ठ 279।
- ↑ इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब, 1379 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 281।
- ↑ मीबदी, कशफ़ उल असरार, 1371 शम्सी, खंड 10, पृष्ठ 479।
- ↑ मकारिम शिराज़ी, तफ़सीर नमूना, 1371 शम्सी, खंड 26, पृष्ठ 462।
- ↑ तबातबाई, अल मीज़ान, खंड 20, पृष्ठ 278 और 282।
- ↑ दफ़्तरे तब्लीग़ाते इस्लामी, फ़र्हंग नामे उलूमे क़ुरआन, 1394 शम्सी, खंड 1, पृष्ठ 102।
- ↑ तबातबाई, अल मीज़ान, 1390 हिजरी, खंड 20, पृष्ठ 284।
- ↑ तबातबाई, अल मीज़ान, 1390 हिजरी, खंड 20, पृष्ठ 284।
- ↑ मजलिसी, बिहार उल अनवार, 1403 हिजरी, खंड 24, पृष्ठ 93।
- ↑ बहरानी, अल बुरहान, 1416 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 657-658।
- ↑ उदाहरण के लिए: आयतुल्लाह ताहेरी इस्फ़हानी की मौत की सूचना।
- ↑ देखें: मुल्ला सदरा, असरार अल आयात, 1360 शम्सी, पृष्ठ 93; अंसारियान, इरफ़ाने इस्लामी, 1386 शम्सी, खंड 1, पृष्ठ 124-119।
- ↑ तबरसी, मजमा उल बयान, 1372 शम्सी, खंड 10, पृष्ठ 730।
- ↑ तबरसी, मजमा उल बयान, 1372 शम्सी, खंड 10, पृष्ठ 730।
स्रोत
- पवित्र कुरआन, मुहम्मद महदी फौलादवंद, तेहरान द्वारा अनुवादित, दार अल कुरआन अल करीम, 1418 हिजरी, 1376 शम्सी।
- इब्ने शहर आशोब, मुहम्मद बिन अली, मनाक़िब आले अबी तालिब (अ), क़ुम, अल्लामा, 1379 हिजरी।
- अंसारियान, हुसैन, इरफ़ाने इस्लामी, मुहम्मद जवाद साबिरयान और मोहसिन फ़ैज़पुर द्वारा शोध, क़ुम, दार उल इरफ़ान, 1386 शम्सी।
- बहरानी, सय्यद हाशिम, अल बुरहान फ़ी तफ़सीर अल कुरआन, तहक़ीक़ क़िस्म अल दरासात अल इस्लामिया मोअस्सास ए अल बेअसत क़ुम, तेहरान, बुनियादे बेअसत, पहला संस्करण, 1416 हिजरी।
- दानिशनामे क़ुरआन व क़ुरआन पजोही, खंड 2, बहाउद्दीन खुर्रमशाही द्वारा प्रयास किया गया, तेहरान, दोस्ताने नाहिद, 1377 शम्सी।
- दफ़्तरे तब्लीग़ाते इस्लामी, फ़र्हंगनामे उलूमे क़ुरआन, क़ुम, पजोहिशगाह उलूम व फ़र्हंगनामे इस्लामी, 1394 शम्सी।
- फ़ख़रे राज़ी, मुहम्मद बिन उमर, मफ़ातीह उल ग़ैब, बेरूत, दार इह्या अल तोरास अल अरबी, 1420 हिजरी।
- तबाताबाई, सय्यद मुहम्मद हुसैन, अल मीज़ान फ़ी तफ़सीर अल कुरआन, बेरूत, मोअस्सास ए आलमी लिल मतबूआत, 1390 हिजरी।
- तबरसी, फ़ज़्ल बिन हसन, मजमा उल बयान फ़ी तफ़सीर अल कुरआन, मुहम्मद जवाद बलागी द्वारा एक परिचय के साथ, तेहरान, नासिर खोस्रो प्रकाशन, तीसरे संस्करण, 1372 शम्सी।
- मजलिसी, मुहम्मद बाक़िर, बिहार उल अनवार, शोधकर्ताओं के एक समूह द्वारा सुधार किया गया, बेरूत, दार इह्या अल तोरास अल अरबी, दूसरा संस्करण, 1403 शम्सी।
- मुहद्दसी, जावद, फ़र्हंगे आशूरा, क़ुम, नशरे मारूफ़, 13वां संस्करण, 1388 शम्सी।
- मारेफ़त, मुहम्मद हादी, आमोज़िशे उलूमे क़ुरआन, [अप्रकाशित], मरकज़े चाप व नशर साज़माने तब्लीग़ाते इस्लामी, पहला संस्करण, 1371 शम्सी।
- मकारिम शिराज़ी, नासिर और लेखकों का एक समूह, तफ़सीर नमूना, दार अल कुतुब अल इस्लामिया, 1371 शम्सी।
- मुल्ला सदरा, असरार उल आयात, मुहम्मद ख्वाजूई द्वारा संपादित, तेहरान, अंजुमन ए इस्लामी हिक्मत व फ़लसफ़ा, 1360 शम्सी।
- मबीदी, अहमद बिन अबी साद, कशफ़ उल असरार व इद्दत उल अबरार, शोध: अली असगर हिकमत, तेहरान, अमीर कबीर, 1371 शम्सी।