कर्बला की घटना
यह लेख वाकेया ए कर्बला अर्थात कर्बला की घटना के बारे में है। इसके विश्लेषण के लिए इमाम हुसैन (अ) का आंदोलन वाला लेख देखें।
कर्बला की घटना | |
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अन्य नाम | आशूर की घटना, तफ़ की घटना |
कथा का वर्णन | इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके साथियों का कर्बला में कूफ़ा की सेना से युद्ध |
पक्ष | इमाम हुसैन (अ)/ यज़ीद बिन मुआविया |
समय | 10 मुहर्रम वर्ष 61 हिजरी |
अवधि | बनी उमय्या |
स्थान | कर्बला |
कारण | इमाम हुसैन (अ) का यज़ीद के प्रति निष्ठा से इनकार |
एजेंट | उबैदुल्लाह इब्ने ज़ियाद, उमर इब्ने साद, शिम्र बिन ज़िल जौशन |
परिणाम | इमाम हुसैन (अ) और उनके साथियों की शहादत और उनके परिवार को बंदी बनाया गया |
नतीजे | तव्वाबीन का आंदोलन, मुख़्तार का आंदोलन, ख़ाज़र का युद्ध, ज़ैद बिन अली का आंदोलन |
सम्बंधित | इमाम हुसैन (अ) का आंदोलन, शोक अनुष्ठानों का प्रसार, आशूरा का दिन, कूफ़ियों के पत्र |
वाक़ेय ए करबला (अरबी: واقعة کربلاء) या वाक़ेय ए आशूरा 10 मुहर्रम वर्ष 61 हिजरी को कर्बला मे होने वाली उस घटना को कहा जाता है जिसमें यज़ीद की बैअत न करने का कारण इमाम हुसैन अलैहिस सलाम और उनके साथी यज़ीदी सेना द्वारा शहीद किये गए। इमाम और उनके साथियों की शहादत के पश्चात उनके परिवार वालो को बंदी बनाया गया।
करबला की घटना इस्लाम के इतिहास की सबसे हृदय विदारक घटना मानी जाती है; इसलिए, शिया इसकी सालगिरह पर अपना सबसे बड़ा शोक समारोह आयोजित करते हैं और शोक मनाते हैं।
कर्बला की घटना 15 रजब वर्ष 60 हिजरी मे मुआविआ बिन अबू सुफ़ियान की मृत्यु और उसके बेटे यज़ीद के शासन की शुरुआत के साथ शुरू हुई, और कर्बला के कैदियों की मदीना वापसी के साथ समाप्त हुई। मदीना के गवर्नर ने यज़ीद के लिए इमाम हुसैन से निष्ठा प्राप्त करने की कोशिश की; हुसैन बिन अली ने निष्ठा से बचने के लिए रात में मदीना छोड़ दिया और मक्का की ओर चले गए। इमाम हुसैन (अ) के साथ इस यात्रा में परिवार वालो के अलावा बनी हाशिम और कुछ शिया भी थे।
इमाम हुसैन (अ) लगभग चार महीने मक्का में रहे। इस दौरान उन्हें कूफियों ने कूफ़ा आने का न्योता भेजा और दूसरी तरफ यजीद के गुर्गे हज के दौरान मक्का में उन्हें शहीद करने की योजना बना चुके थे। कूफ़ा शहर की स्थिति का आकलन और पत्रो को सुनिश्चत करने के लिए इमाम ने मुस्लिम बिन अक़ील को कूफ़ा और सुलेमान बिन रज़ीन को बसरा भेजा। यज़ीदी सैनिकों द्वारा हत्या के अंदेशे और कूफ़ा के लोगों के निमंत्रण की अपने सफ़ीर द्वारा पुष्टि को देखते हुए, उन्होंने 8 ज़िल हिज्जा को कूफ़ा की ओर यात्रा करने का चयन किया।
इमाम कूफ़ा पहुँचने से पहले ही कूफ़ियों द्वारा शपथ भंग और मुस्लिम की शहादत से अवगत हो गए, जिन्हें आपने कूफ़ा में स्थिति का आकलन करने के लिए कूफ़ा भेजा था। हालाँकि आपने अपनी यात्रा तब तक जारी रखी जब तक कि हुर बिन यज़ीद ने अपना रास्ता रोका तो आप कर्बला की ओर चले गए जहाँ आपका सामना कूफ़ा के गवर्नर उबैदुल्लाह बिन ज़ियाद की सेना से हुआ। इस सेना का नेतृत्व उमर बिन सअद के हाथों में था। 10 मोहर्रम आशूर के दिन दोनो सेनाओ के बीच युद्ध हुआ, जिसमे इमाम हुसैन (अ), उनके भाई अब्बास बिन अली (अ) और 6 महीने के अली असगर सहित बनी हाशिम के 17 जवान और 50 से अधिक असहाब शहीद हुए। उमर बिन सअद की सेना ने शहीदो के शरीर पर घोड़े दौड़ाए। आशूर के दिन अस्र के समय यज़ीद की सेना ने इमाम हुसैन (अ) के ख़ैमो पर हमला करके उन्हे आग लगा दी। शिया मुसलमान इस रात को शामे गरीबा के नाम से याद करते हैं। इमाम सज्जाद (अ) ने बीमारी के कारण युद्ध मे भाग नही लिया अतः आप जीवित बचे रहे। हज़रत ज़ैनब (स) और अहले-बैत (अ) की महिलाए बच्चो सहित दुश्मन के हाथों बंदी बना लिए गए। उमर बिन सअद की सेना ने शहीदो के सरों को भालों पर उठाया और बंदीयों को उबैदुल्लाह बिन ज़ियाद के दरबार मे पेश किया और वहा से उन्हे यज़ीद के पास शाम (सीरिया) भेजा गया।
उमर बिन साद की सेना के जाने के बाद बनी असद क़बीले के लोगों ने कर्बला के शहीदों के शवों को रात में दफ़्न किया।
यज़ीद के प्रति निष्ठा की प्रतिज्ञा से इंकार
मुआविया[१] के प्रयासो के माध्यम से 15 रजब वर्ष 60 हिजरी को मुआविया बिन अबु सुफ़यान की म़त्यु पश्चात लोगो से यज़ीद के लिए निष्ठा (बैअत) की प्रतिज्ञा ली गई।[२] जबकि इमाम हसन (अ) और मुआविया के बीच शांति समझौते के अनुसार, मुआविया को अपने लिए उत्तराधिकारी नियुक्त करने का अधिकार नहीं था।[३] यज़ीद ने सत्ता मे आने के बाद उन सभी लोगो से निष्ठा की प्रतिज्ञा लेने का निर्णय किया जिन्होने मुआविया के प्रति निष्ठा की प्रतीज्ञा करने से इंकार कर दिया था।[४] इसलिए उसने मदीना के गर्वनर वलीद बिन अत्बा बिन अबि सुफ़यान के नाम एक पत्र भेजकर मुआविया की मृत्यु से सूचित किया और साथ ही एक संक्षिप्त लेख मे वलीद को हुसैन बिन अली (अ), अब्दुल्लाह बिन उमर और उबैदुल्लाह बिन ज़ुबैर से ज़बरदस्ती निष्ठा की प्रतिज्ञा लेने और स्वीकार न करने की स्थिति मे उनकी गर्दन मारने का निर्देश दिया।[५] इसके बाद यज़ीद की ओर से एक और पत्र लिखा गया जिसमे समर्थको और विरोधीयो के नाम लिखने और हुसैन बिन अली (अ) का सर भी पत्र के जवाब के साथ भिजवाने पर जोर दिया गया था।[६] अतः वलीद ने मरवान से परामर्श किया।[७] और फिर उसने अब्दुल्लाह बिन उम्र को इमाम हुसैन (अ), इब्ने ज़ूबैर, अब्दुल्लाह बिन उमर और अब्दुर्रहमान बिन अबी बक्र के पास भेजा।[८]
इमाम हुसैन अपने 30[९] संबंधियो के साथ दारुल इमारा पहुंचे।[१०] वलीद ने आरम्भ मे मुआविया की मृत्यु से अवगत कराया फिर यज़ीद का पत्र पढ़कर सुनाया जिसमे उसने "हुसैन से अपने प्रति निष्ठा की प्रतिज्ञा पर ज़ोर दिया था।"
इस पर इमाम हुसैन (अ) ने वलीद से कहा "क्या तुम इस बात पर राज़ी हो कि मै रात्रि के अंधकार मे यज़ीद के प्रति निष्ठा की प्रतिज्ञा करूं? "मेरा विचार यह है कि तुम्हारा उद्देश्य यह है कि मै लोगो के सामने यज़ीद के प्रति निष्ठा की प्रतिज्ञा करूं" वलीद ने कहाः "मेरी राय भी यही है।"[११] इमाम ने फ़रमायाः "बस कल तक मुझे समय दो ताकि मै अपनी राय की घोषणा करूं।"[१२] मदीना के हाकिम ने दूसरे दिन अस्र के समय अपने लोगो को इमाम के यहा भिजवाया ताकि आप से जवाब हासिल करें।[१३]] इमाम ने एक और रात का समय मांगा जिसे वलीद ने स्वीकार किया और इमाम को समय दे दिया गया।[१४] इमाम हुसैन (अ) ने देखा मदीना मे शांति नही रही इसलिए इमाम हुसैन (अ) ने मदीना छोड़ने का निर्णय लिया।[१५]]
मदीना से मक्का की यात्रा
मदीना के हालात को देखते हुए इमाम हुसैन (अ) ने रविवार की रात्रि 28 रजब वर्ष 60 हिजरी और दूसरे कथन अनुसार 3 शाबान वर्ष 60 हिजरी[१६] को अपने परिवार और असहाब (साथियो) के 84 लोगो के साथ मदीना से मक्का की ओर रवाना हुए।[१७] कुछ दूसरे स्रोतो के अनुसार आपने पूर्णरात्रि अपने माता हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स) और भाई इमाम हसन (अ) के मज़ार पर हाज़िरी दी वहां पर नमाज़ पढ़ी और विदा किया और सुबह सवेरे घर लौट आए।[१८] और अन्य स्रोतो मे बयान किया गया है कि आपने लगातार दो रात अपने नाना रसूले खुदा (स.अ.) के मज़ार पर बिताई।[१९] मुहम्मद बिन हनफ़िया[२०] के अलावा इस सफ़र मे अधिकांश संबंधी जिनमे आपके बेटे, भाई, बहने, भतीजे और भांजे आपके साथ थे।[२१] बनी हाशिम के अतिरिक्त आपके असहाब मे से 21 लोग भी इस सफ़र मे आपके साथ थे।[२२]
आपके भाई मुहम्मद बिन हनफ़िया को जब इमाम हुसैन (अ) के सफ़र से संबंधित सूचना मिली तो आपसे खुदा हाफ़िज़ी के लिए आए। इस अवसर पर इमाम ने भाई के नाम लिखित वसीयत नामा लिखा। जिसमे निम्मलिखित वाक्य भी मौजूद है।
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अनुवादः मै सैर सपाटे के लिए मदीना से नही निकला हूं और मेरी यात्रा का उद्देश्य फितना व फ़साद और अत्याचार नही है बल्कि मै केवल अपने नाना की उम्मत की इस्लाह (सुधार) के लिए निकला हूं, मै अम्र बिल मारूफ़ व नही अनिल मुनकर का इरादा रखता हूं, मै अपने पिता और नाना का अनुसरण करूंगा ---
इमाम हुसैन (अ) अपने साथियो के साथ मदीना से निकले और अपने सगे संबंधियो की मरज़ी के विपरीत मक्का की ओर रवाना हुए।[२४] मक्का के मार्ग मे अब्दुल्लाह बिन मुतीअ से भेट हुई, उसने इमाम (अ) के इरादे से संबंधित प्रश्न किया तो इमाम (अ) ने फ़रमायाः "अभी मक्का जाने का इरादा कर चुका हूं वहां पहुचने के पश्चात ख़ुदा से भविष्य की ख़ैर व सलाह की दरखास्त करूंगा।" अब्दुल्लाह ने कूफ़ा के लोगो के बारे मे सूचित करते हुए इमाम से मक्का ही में निवास करने की दरखास्त की।[२५]
इमाम हुसैन (अ) 5 दिन बाद अर्थात 3 शाबान वर्ष 60 हिजरी को मक्का पहुंचे।[२६] जहा मक्का वाले और बैतुल्लाहिल हराम की ज़ियारत पर आए हुए हाजियो ने आपका शानदार स्वागत किया।[२७] मदीना से मक्का के इस सफर के दौरान आपने निम्मलिखित मंजिलो को पार किया। ज़ुल हुलैफ़ा, मिलल, सियालह, अरक़े ज़ब्या, ज़ौहा, अनाया, अर्ज, लहरे जमल, सक़या, अब्वा, राबिग़, जोह्फ़ा, क़दीद, ख़लीस, अस्फ़ान और मरउज़ ज़ोहरान।[२८]]
मक्का मे इमाम
इमाम हुसैन (अ) का 3 शाबान से 8 ज़िल हिज तक अर्थात 4 महीने से अधिक समय तक मक्का मे निवास रहा। मक्का मे आपके आगमन की ख़बर सुनकर मक्का निवासी अत्यधिक प्रसन्न हुए और सुबह व शाम आपके पवित्र अस्तित्व से लाभ उठाते थे जोकि अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर पर बहुत सख्त गुज़रा क्योकि वह इस आशा मे था कि मक्का वाले उसकी (अब्दुल्लाह बिन ज़ूबैर) के प्रति निष्ठा की प्रतिज्ञा कर लेगें और वह यह जानता था कि जब तक इमाम हुसैन (अ) मक्का मे निवास करेंगे तब तक उसके प्रति कोई निष्ठा की प्रतिज्ञा नही करेगा।[२९]
कूफ़ीयो के पत्र और इमाम को क़याम का निमंत्रण
- मुख़्य लेखः इमाम हुसैन (अ) के नाम कूफ़ीयो के पत्र
परमेश्वर का धन्यवाद, जिसने आपके शक्तिशाली शत्रु को पराजित किया; जिस शत्रु ने इस जाति से बलवा किया; उसने उसकी संपत्ति हड़प ली और बिना सहमति के उस पर शासन किया; उसके बाद, उसने सबसे अच्छे को मार डाला और बुरे को छोड़ दिया और भगवान के धन को अमीरों को लौटा दिया; लेकिन अब हमारे पास इमाम नहीं है, आइए, हो सकता है कि ईश्वर हम सभी को आपके नेतृत्व की छाया में सही रास्ते पर एक कर दे ...
इमाम हुसैन (अ) को मक्का पहुंचा बहुत समय नही बीता था कि इराक के शिया मुआविया की मृत्यु और इमाम हुसैन (अ) और इब्ने ज़ुबैर का यज़ीद के प्रति निष्ठा की प्रतिज्ञा ना करने से अवगत होते है। इसलिए वो सुलेमान बिन सुरदे ख़ुज़ाई के घर मे एकत्रित हो गए और इमाम हुसैन (अ) को एक पत्र लिखा जिसमे आपको कूफ़ा आने का निमंत्रण दिया गया।[३०] इस पत्र को भेजकर अभी दो दिन भी नही बीते थे कि कूफ़ा वालो ने 150 पत्र और आपके नाम लिखे जिसमे से प्रत्येक पर कम से कम एक से चार व्यक्तियो के हस्ताक्षर हुआ करते थे।[३१]
इमाम हुसैन (अ) ने इन पत्रो का उत्तर देने मे विलंब किया यहा तक कि उन पत्रो की संख्या बहुत अधिक हो गई तब इमाम हुसैन (अ) ने कूफ़ियो के नाम इस प्रकार पत्र लिखा
... मै अपने परिवार के भरोसेमंद व्यक्ति, चचेरे भाई को आपकी ओर भेज रहा हूं ताकि वो मुझे आपकी स्थिति और हालात के संबंध मे अवगत करे। यदि इसने मुझे यह ख़बर दी कि आप लोग वही हो जिन्होने मुझे पत्र लिखे है तो मै आपके यहां आऊंगा... इमाम केवल वह है जो अल्लाह की किताब पर अमल करता हो, न्याय स्थापित करे, दीन ए हक़ पर यक़ीन रखता हो और अपने आपको अल्लाह के लिए वक़्फ़ करे।[३२]
कूफ़ा मे इमाम हुसैन (अ) के सफ़ीर
- मुख़्य लेख: मुस्लिम बिन अक़ील
इमाम (अ) ने कूफ़ीयो के नाम एक पत्र देकर अपने चचेरे भाई मुस्लिम बिन अक़ील को इराक़ रवाना किया, ताकि वहा की स्थिति का आकलन करे और आपको स्थिति से अवगत करें।[३३] मुस्लिम 15 रमज़ान को ख़ुफ़िया रूप से मक्का से निकल कर 5 शव्वाल को कूफ़ा पहुंचने पर मुख्तार बिन अबि उबैदा सक़फ़ी के घर निवास किया।[३४] और कुछ रिवायतो के अनुसार मुस्लिम बिन औसाजा के घर निवास किया।[३५] मुस्लिम बिन अक़ील के कूफ़ा पहुंचने की सूचना मिलते ही कूफ़े के शिया उनके पास आने लगे। मुस्लिम उनको इमाम (अ) के लेख से अवगत करते[३६] और उनसे इमाम हुसैन (अ) के प्रति निष्ठा की प्रतीज्ञा लेना आरम्भ किया।[३७] इस प्रकार 12000[३८], 18000[३९] अथवा 30000[४०] से अधिक लोगो ने मुस्लिम बिन अक़ील के हाथ पर इमाम हुसैन (अ) के प्रति निष्ठा की प्रतीज्ञा की और आपका साथ देने का वचन दिया। इस अवसर पर मुस्लिम ने इमाम हुसैन (अ) को एक पत्र लिखा जिसमे निष्ठा की प्रतीज्ञा करने वालो की संख्या का उल्लेख करते हुए इमाम (अ) को कूफ़ा आने का परामर्श दिया।[४१]
जब यजीद को कूफ़े वालो की इमाम हुसैन (अ) के प्रति निष्ठा की शपथ और नोमान बिन बशीर (जो तत्कालीन कूफ़ा का गर्वनर था) के उनके साथ नर्म रवय्ये का पता चला तो उसने उबैदुल्लाह बिन ज़्याद को (तत्काली बसरा का गर्वनर था) कूफ़ा के गर्वनर पद पर नियुक्त किया।[४२] इब्ने ज़्याद कूफ़ा आने के पश्चात इमाम हुसैन (अ) के प्रति निष्ठा की प्रतिज्ञा करने वालो की तलाश और कब़ाएली सरदारो को डराना धमकाना शुरू कर दिया।[४३] इतिहास के अध्ययन से पता चलता है कि लोग उबैदुल्लाह इब्ने ज़्याद के गुर्गो के प्रोपेगंडो से भयभीत होकर मुस्लिम बिन अक़ील से दूर होने लगे यहां तक कि रात के समय मुस्लिम बिन अक़ील अकेले रह गए और छुपने के लिए भी कोई स्थान नही था।[४४] अंतः इब्ने ज्याद की सेना के साथ लड़ने के पश्चात मुहम्मद बिन अश्अस की ओर से शरण देने के वचन से हत्थार डाल दिए[४५] और उन्हे गिरफ्तार करके महल लाया गया; परंतु इब्ने ज़्याद ने मुहम्मद बिन अश्अस के शरणपत्र की परवाह किए बिना मुस्लिम बिन अक़ील को शहीद करने का आदेश पारित कर दिया।[४६]
कुछ इतिहासकारो के अनुसार, मुस्लिम बिन अक़ील इमाम हुसैन (अ) के लिए चिंतित थे इसलिए आपने उमर बिन सअद को इस संबंध मे वसीयत की, उसका संबंध क़ुरैश से था। मुस्लिम की पहली वसीयत यह थी कि किसी को इमाम हुसैन (अ) के पास भेज दिया जाए और उनको कूफ़ा आने से रोका जाए।[४७] ज़ुबाला नामक स्थान पर उमर बिन साअद के माध्यम से भेजा गया संदेश इमाम हुसैन (अ) के पास पहुंचा।[४८]
मक्का से कूफ़ा की ओर प्रस्थान
इमाम हुसैन मक्का मे चार महीना पांच दिन निवास करने के पश्चात सोमवार 8 ज़िल हिज[४९] (जिस दिन मुस्लिम ने कूफ़ा मे क़याम किया) 82 व्यक्तियो[५०] के साथ (जिन मे से 60 व्यक्ति कूफ़े के शिया थे)[५१] मक्का से कूफ़ा की ओर प्रस्थान किया।
कुछ इतिहास कारो ने इतिहास और हदीस के तत्थो को नज़र मे रखते हुए कहा कि इमाम हुसैन (अ) ने आरम्भ से ही उमरा ए मुफ़रदा की नीयत कर रखी थी इसलिए हज के मौसम मे मक्का से प्रस्थान किया।[५२] मक्का मे निवास के अंतिम महीने मे जब इमाम हुसैन (अ) का कूफा की ओर जाने का अधिक झुकाव होने लगा तो बहुत से लोगो ने इस यात्रा का विरोध किया उन लोगो मे अब्दुल्लाह बिन अब्बास और मुहम्मद बिन हनफ़्या के नाम उल्लेखनीय है इमाम के पास आए ताकि आप को कूफा की ओर यात्रा करने से रोके परंतु वह इसमे सफल नही हुए।[५३]
जब इमाम हुसैन और आपके साथी मक्का से बाहर निकले तो मक्का के गर्वनर अमरू बिन सईद बिन आस की सेना ने यहया बिन साद की सरदारी मे इमाम हुसैन (अ) का मार्ग रोका लेकिन आपने कोई महत्व नही दिया और अपनी यात्रा जारी रखी।[५४]
मक्का से कूफ़ा का रास्ता
इमाम हुसैन (अ) का यह कारवान मक्का से कूफ़ा जाते हुए निम्मलिखित मंज़िलो (स्थानो) से गुज़रा।
- बुस्ताने बनी आमिर
- तनईम (यमन मे यज़ीद के कारवाहक बुहैर बिन रीसान हुमैरी की ओर से सफ़ाया से सीरिया की ओर भेज गए ग़नाइम को अपने कब्ज़े मे ले लेना)
- सफाह (फ़रज़दक़ प्रसिद्ध शायर (कवि) से भेट)
- ज़ातो अरक़ (बश्र बिन ग़ालिब और औन बिन अब्दुल्लाह बिन जाफ़र इत्यादि से भेट)
- वादी ए अक़ीक़
- ग़मरा
- उम्मे ख़ुरमान
- सेलाह
- अफ़ीईया
- मादने फ़िज़ान
- अमक़
- सलीलिया
- मग़ीसा ए मावान
- नक़्रा
- हाजिर (क़ैस बिन मुसाहर सैदावी को कूफ़ा भेजना)
- सुमैरा
- तूज़
- अजफर (अब्दुल्लाह बिन मुतीअ अदवी से भेट और उनकी ओर से इमाम को वापस लौटने की नसीहत)
- ख़ुज़ैमिया
- ज़र्रूद (ज़ुहैर बिन क़ैन का इमाम हुसैन (अ) के कारवान मे सम्मिलित होना, मुस्लिम के पुत्रो से भेट और मुस्लिम एंवम हानी की शहादत की खबर),
- सालब्या
- बत्तान
- शुक़ूक़
- ज़ुबाला (क़ैस की शहादत की ख़बर और एक नाफ़ेअ बिन हिलाल के साथ एक समूह का इमाम के साथ सम्मिलित होना)
- बत्ने अक़्बा (अमरू बिन लोज़ान से भेट और उनकी ओर से वापस लौटने की नसीहत)
- उमिया
- वाकसेया
- शराफ़
- बरका ए अबु मसक
- जब्ले ज़ी हस्म (हुर बिन यज़ीद रियाही की सेना से भेट)
- बैय्ज़ा (इमाम हुसैन (अ) का हुर की सेना से संबोधन)
- मसीजिद
- हम्माम
- मुग़ैय्सा
- उम्मे क़रून
- अज़ीब (कूफ़ा का रास्ता अज़ीब से क़ाद्सिया और हैरा की ओर था लेकिन इमाम हुसैन (अ) ने रास्ता बदल कर कर्बला मे उतर आए
- क़स्र बनी मुक़ाबिल (उबैदुल्लाह बिन हुर जोअफ़ी से भेट और इमाम (अ) के निमंत्रण को स्वीकार न करना)
- क़ुतक़ुताना
- कर्बला-वादी ए तफ़ (2 मोहर्रम 61 हिजरी क़म्री इमाम (अ) का कर्बला मे प्रवेश करना)।[५५]
इमाम प्रत्येक मंज़िल पर लोगो को आकर्षित करने और उनके ज़हनो मे इस मामले को स्पष्ट करने के लिए हर संभव प्रयास करते रहे। उदाहरण स्वरूप ज़ातो अरक़ नामक स्थान पर बशर बिन ग़ालिब असदी नामक एक व्यक्ति इमाम की सेवा मे पहुंच कर कूफ़ा की स्थिति की सूचना दी। इस मौक़े पर इमाम (अ) ने उसकी बात की पुष्टि की। इस व्यक्ति ने इमाम (अ) से आयतः
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अनुवादः प्रत्येक मनुष्य को हम उसके इमाम के साथ बुलाएंगे [५६] के संबंध मे सवाल किया तो आपने फ़रमायाः
इमाम दो प्रकार के होते हैः एक वह जो लोगो का मार्गदर्शन करता है जबकि दूसरा वह लोगो को गुमराह और ज़लालत की ओर ले जाता है। जो हिदायत के इमाम का अनुसरण करता है वह स्वर्ग मे जाऐंगे जबकि जो ज़लालत के इमाम का अनुसारण करेगा वह नरक मे जाएगा।[५७] बशर बिन ग़ालिब उस समय तो इमाम (अ) का साथ नही दिया लेकिन बाद मे इमाम हुसैन (अ) की क़ब्र पर रोते देखा जाता था और इमाम (अ) की मदद न करने पर शर्मिंदा होता रहता था।[५८]
इसी प्रकार सालब्या नामक स्थान पर अबू हर्रा अज़्दी नामक व्यक्ति ने इमाम (अ) की सेवा मे आकर यात्रा का कारण पूछा तो इमाम (अ) ने फ़रमायाः
बनी उमय्या ने मेरी जाएदाद ले ली उसपर मैने सब्र किया। मुझे अपशब्द कहे गए मैने सब्र किया, मेरी हत्या करना चाहा तो मैने फ़रार किया। हे अबू हर्रा जानलो कि मै एक बाग़ी और सरकश समूह के हाथो मारा जाऊंगा और खुदा ज़िल्लत और रुसवाई का लिबास उन्हे पहनाएगा और एक तेज धार तलवार उनपर मुसल्लत होगी जो उनको ज़लील और रूस्वा करेगी।[५९]
क़ैस बिन मुसाहर का कूफ़ा प्रस्थान
कहा जाता है कि जब इमाम हुसैन (अ) बत्नुर्रमा नामक स्थान पर पहुंचे तो इमाम (अ) ने कूफ़ा वालो को एक पत्र लिखा और उन्हे कूफ़ा की ओर अपने प्रस्थान की सूचना दी।[६०] इमाम (अ) ने पत्र क़ैस बिन मुसाहर सैदावी को दिया। क़ैस जब काद्सिया पहुंचे तो इब्ने ज़्याद के सिपाहीयो ने उनका रास्ता रोक कर उनकी तलाशी लेना चाहा। इस समय क़ैस ने विवश होकर इमाम (अ) का पत्र फाड़ दिया ताकि दुश्मन उसके विषय से अवगत न हो सके। जब क़ैस को गिरफ्तार करके इब्ने ज्याद के पास ले जाया गया तो उसने क्रोधित होकर चिल्लाते हुए कहाः "खुदा की सौगंध तुम्हे कदापि नही छोडूंगा मगर यह कि उन व्यक्तियो के नाम बता दो जिन्हे हुसैन बिन अली (अ) ने पत्र लिखा था; अथवा यह कि मिंबर पर जाकर हुसैन (अ) और उनके पिता को बुरा भला कहो; इसी शर्त के साथ मै तुम्हे रिहा करूंगा अन्यथा तुम्हे मार दूंगा "।
क़ैस ने स्वीकार किया मिंबर पर जाकर इमाम (अ) को बुरा भला कहने की जगह कहाः "ऐ लोगो मै हुसैन इब्ने अली (अ) का दूत हूं और तुम्हारी तरफ आया हूं ताकि इमाम (अ) का संदेश तुम तक पहुंचा दूं; अपने इमाम की निदा पर लब्बैक कहो"। इब्ने ज़्याद ने आदेश दिया कि क़ैस बिन मुसाहर को दार उल इमारा की छत से नीचे फेका जाए। उसके सिपाहीयो ने ऐसा ही किया[६१] और फिर उस पार्थिव शरीर की सभी हड्डिया तोड़ दी।
अब्दुल्लाह बिन यक़्तुर को कूफ़ा भेजना
कहा जाता है कि इमाम हुसैन (अ) ने मुस्लिम की शहादत की खबर मिलने से पहले अपने रज़ाई भाई अब्दुल्लाह बिन यक़्तुर[६२] को मुस्लिम की ओर भेजा था लेकिन वह हसीन बिन नमीर के हाथो गिरफ्तार होकर इब्ने ज़्याद के पास ले जाए गए। इब्ने ज्याद ने आदेश दिया कि इन्हे दार उल इमारा की छत पर ले जाया जाए ताकि कूफ़ीयो के सामने इमाम हुसैन (अ) और आपके पिता को अपशब्द कहें। अब्दुल्लाह बिन यक़्तुर ने दार उल इमारा की छत से कूफ़ा वालो को संबोधित करते हुए कहाः "हे लोगो मै तुम्हारे पैगंबर के नवासे हुसैन (अ) का दूत हूं; अपने इमाम (अ) की मदद को दौड़ो और इब्ने मरजाना[६३] के विरूध बग़ावत करो"। इब्ने ज़्याद ने जब यह देखा तो आदेश दिया कि उन्हे छत से नीचे फेक दिया जाए, और उसके गुर्गो ने ऐसा ही किया। अब्दुल्लाह इब्ने यक़्तुर प्राण त्यागने ही वाले थे कि एक व्यक्ति ने आकर उन्हे क़त्ल कर दिया।[६४] अब्दुल्लाह इब्ने यक़्तुर की शहादत की ख़बर मुस्लिम और हानी की शहादत की ख़बर के साथ ज़ुबाला नामक स्थान पर इमाम हुसैन (अ) को मिली।[६५]
बसरा मे इमाम हुसैन (अ) का सफ़ीर
इमाम हुसैन (अ) ने बसरा की पांच जनजाति (आलिया, बक्र बिन वाएल, बनू तमीम, अब्दुल क़ैस और अज़्द) के सरदारो के नाम एक पत्र लिखा जिसे सुलैमान बिन ज़र्रीन नामक अपने एक मवाली (आज़ाद किया हुआ) के माध्यम से रवाना किया।[६६] सुलेमान ने पांचो जनजाति के सरदारो " मालिक बिन मिस्माअ बकरि, आहनफ़ बिन क़ैस, मुन्ज़िर बिन जारूद अल-अब्दी, मसऊद बिन अमरू, क़ैस बिन हैसम और अमरू बिन उबैदुल्लाह बिन माअमर" मे से प्रत्येक को पत्र की लिपि दी।[६७] इस पत्र का विषय और पाठ एक ही था जो इस प्रकार था
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(अनुवादः मै तुम्हे खुदा की किताब और रसूल की सुन्नत की ओर बुलाता हूं। निसंदेह सुन्नत तहस नहस हो गई है और बिदअते ज़िंदा हो गई है तुम मेरी बात सुनोगे और मेरे आदेश का अनुसरण करोगे तो मै सीधे रास्ते की ओर तुम्हारा मार्गदर्शन करूंगा)।[६८]
बसरा मे उपरोक्त व्यक्तियो मे से प्रत्येक ने इमाम (अ) के पत्र की एक एक लीपि छुपा कर रखी मुंज़िर बिन जारूद अब्दी के अलावा उसने यह गुमान किया कि यह इब्ने ज़्याद का छल है।[६९] इसलिए उसने अगले दिन इब्ने ज़्याद को –जोकि कूफ़ा जाना चाहता था- हक़ीक़त बता दी[७०] इब्ने ज़्याद ने इमाम (अ) के दूत को अपने पास बुलवाया और उनकी गर्दन मरवा दी।[७१]
कर्बला की ओर मार्ग परिवर्तन
उज़ैब अल-हिजानात नामक स्थान पर पहुचने के बाद इमाम हुसैन (अ) अपने मार्ग को कर्बला की ओर परिवर्तित करने पर विवश हुए।[७२]
हुर बिन यज़ीद रियाही की सेना से भेट
- मुख़्य लेखः हुर बिन यज़ीद रियाही
- अन्नासो अबीदुद दुनिया वद्दीनो लाक़ुन अला अलसेनतेहिम यहूतूनहू मा दर्रत मआयशोहुम फ़ा एज़ा मोह्हेसू बिल बलाए क़ल्लद दय्यानून
(अनुवाद: लोग दुनिया के पुजारी (बन्दे) हैं, और उनका धर्म केवल ज़बानी है। धर्म का समर्थन तब तक है जब तक उनका जीवन समृद्ध है, इसलिए कि जब भी विपत्ति और कठिनाई आएगी, धार्मिक लोग कम हो जाएंगे।)
उबैदुल्लाह इब्ने ज़्याद इमाम हुसैन (अ) के कूफ़ा प्रस्थान से सूचित हुआ तो उसने अपनी सेना के कमांडर हसीन बिन नमीर चार हज़ार की सेना देकर "क़ाद़्सिया " रवाना किया ताकि "क़ाद्सिया " से "ख़फ़ान" और "क़ुतक़ुत्तानिया " से लाअलाअ तक के क्षेत्रो की कड़ी निगरानी के माध्यम से उन क्षेत्रो से गुज़रने वाले व्यक्तियो के आवा गमन से सूचित रह सके।[७३] हुर बिन यज़ीद रियाही की एक हज़ार की सेना भी हसीन बिन नमीर की सेना की टुक्ड़ी थी जो हुसैनी कारवान का रास्ता रोकने के लिए भिजवाया गया था।[७४]
अबू मिख़नफ़ ने इस यात्रा मे इमाम हुसैन (अ) के काफ़ले मे सम्मिलित दो असदी व्यक्तियो से नक़्ल किया है कि जब "हुसैनी क़ाफ़ला" "शराफ़" की मंज़िल से प्रस्थान किया तो दिन के मध्यम मे दो दुश्मन की सेना के दो समूह और उनके घोड़ो की गर्दने आ पहुंचीं"। इमाम (अ) ने "ज़ू हसम" का रूख किया।[७५]
हुर और उसके सिपाही ज़ोहोर के वक़्त इमाम हुसैन (अ) और आपके असहाब के आमने सामने आ गए, इमाम (अ) ने अपने असहाब को आदेश दिया कि हुर और उसकी सेना एवंम उनके घोड़ो को पानी पिलाए। उन्होने न केवल दुश्मन की सेना को पानी पिलाया बल्कि उनके घोड़ो की प्यास भी बुझा दी।
ज़ोहोर की नमाज़ का वक़्त हुआ तो इमाम हुसैन (अ) ने अपने मोअज़्ज़िन हज्जाज बिन मसरूक़ जोअफी को आज़ान देने की हिदायत की उन्होने आज़ान कही और नमाज़ का वक़्त हुआ तो इमाम हुसैन (अ) ने अल्लाह की हम्द व सना पश्चात फ़रमायाः
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अनुवादः यह अल्लाह की उपस्थिति मे और तुम्हारे यहा एक उज़्र है; "लोगो मै तुम्हारे पास नही आया तुम्हारे पत्र मिले और तुम्हारे दूत मेरे पास आए और मुझ से विंती की" कि मै तुम्हारी ओर आ जाऊं और तुमने कहा कि हमारा इमाम नही है; आशा करता हूं कि अल्लाह मेरे माध्यम से तुमको सीधे मार्ग पर लगा दे पस यदि तुम अपने बोल वचन पर दृढ़ हो तो मै तुम्हारे शहर मे आता हूं और अगर नही हो तो मै वापस लौट जात हूं।
हुर और उसके सिपाहीयो ने ख़ामोशी इख्तेयार कर ली और किसी ने कुछ नही कहा। इमाम हुसैन (अ) ने ज़ोहोर की नमाज़ के लिए अक़ामत कहने का हुक्म दिया (और नमाज़ अदा की) और हुर एंवम उसके सिपाहीयो ने भी इमाम हुसैन (अ) की इमामत मे नमाज़ पढ़ी।[७६] उस दिन अस्र के वक़्त इमाम हुसैन(अ) ने अपने असहाब (साथियो) से फ़रमाया कि प्रस्थान के लिए तैयारी करो। फ़िर अस्र के वक़्त इमाम हुसैन (अ) अपने ख़ैमे से बाहर आए और मोअज़्ज़िन को अस्र की अज़ान देने का हुक्म दिया अस्र की नमाज़ अदा करने के पश्चात लोगो को संबोधित करते हुए कहा,
"हे लोगो ! अल्लाह से डरो और हक़ को अहले हक़ के लिए क़रार दोगे तो खुदा की खुशी का कारण बनोगे हम मुहम्मद (स) के परिवार वाले इन ग़ैर हक़्की दावेदारो की तुलना मे खिलाफ़त के पद और तुम्हारी विलायत और इमामत, इमामत के अधिक हक़दार है जिनसे इस पद का कोई संबंध ही नही है और तुम्हारे साथ का व्यवहार अनुचित है और तुम पर अत्याचार जारी रखते है। इसके बावजूद यदि तुम हमारा हक़ स्वीकार नही करते और हमारे अनुसरण की ओर आकर्षित नही होते हो और तुम्हारी राय तुम्हारे पत्रो मे लिखे हुए लेख के अनुरूप नही है तो मै यही से वापस लौट जाता हूं।"
हुर बिन यज़ीद ने कहाः "मुझे इन पत्रो का कोई ज्ञान नही है जिनकी ओर आपने संकेत किया; और कहाः हम उन पत्रो को लिखने वालो मे से नही थे। हमे आदेश है कि आपका सामना करते ही आपको इब्ने ज़्याद के पास ले जाऐं"।[७७]
इमाम (अ) ने अपने क़ाफ़ले को संबोधित करते हुए फ़रमायाः "वापस लौटो"!, जब वो वापस लौटने लगे तो हुर और उसके साथ रास्ता रोका तो हुर ने कहाः "मुझे आपको इब्ने ज्याद के पास ले जाना है"। इमाम (अ) ने फ़रमायाः "खुदा की सौगंध तुम्हारे पीछे नही आऊंगा"।
हुर ने कहा, "मै आपके साथ युद्ध करने के लिए नियुक्त नही हूं। लेकिन मुझे आदेश है कि आप से अलग न हूं यहा तक कि आपको कूफ़ा ले जाऊं यदि आप मेरे साथ आने से परहेज़ करते है तो ऐसे रास्ते पर चले जो कूफ़ा की ओर जा रहा हो नाकि मदीना की ओर" ताकि मै एक पत्र उबैदुल्लाह इब्ने ज़्याद के लिए लिखू आप भी अगर चाहते है तो एक पत्र यज़ीद के लिए लिखें ताकि यह अम्र सुल्ह और शांति पर समाप्त हो जाए मेरी राय मे यह कार्य इससे अधिक बेहतर है कि मै आपके साथ युद्ध करूं।[७८]
इमाम हुसैन ने (अ) "अज़ीब" और "काद्सिया" की बाईं ओर से प्रस्थान किया जबकि आप "अज़ीब" से 38 मील की दूरी पर थे और हुर आपके साथ साथ चल रहा था।[७९]
उबैदुल्लाह के दूत का आगमन
सुबह होते ही इमाम (अ) ने "अलबैज़ा"[८०] नामक स्थान पर रुक कर नमाज़ अदा की तत्पश्चात अपने असहाब और परिवार वालो के साथ प्रस्थान किया ज़ोहोर के समय "नैनवा" मे पहुंचे।[८१] उबैदुल्लाह के दूत ने हुर के हवाले एक पत्र किया जिसमे इब्ने ज़्याद ने लिखा थाः "मेरा पत्र मिलते ही इमाम हुसैन के साथ सख्ती से पेश आओ और उन्हे किसी ऐसे स्थान पर ठहरने के लिए विवश करो जहा खाने-पीने के लिए कुछ न हो। मैने अपने दूत को आदेश दिया है कि वह तुम से अलग न हो यहां तक कि वह तुम्हारी ओर से मेरे आदेश के पालन की खबर मुझे पहुंचा दे। वस्सलाम"।[८२]
हुर ने इब्ने ज़्याद का पत्र इमाम हुसैन (अ) को पढ़कर सुनायाः इमाम (अ) ने फ़रमायाः "हमे "नैनवा" या "ग़ाज़रिया"[८३] जाने दो। हुर ने कहाः "यह संभव नही है क्योकि उबैदुल्लाह ने अपना दूत मुझ पर जासूज तैनात किया है"। ज़ुहैर बिन क़ैन ने कहाः खुदा की सौगंध मुझे आभास हो रहा है कि इसके पश्चात हमे और अधिक कठिनाईयो का सामना करना पड़ेगा। यब्ना रसूलल्लाह (स)! इस समय इस टुक्ड़ी (हुर और उसके साथीयो) के साथ युद्ध करना अधिक सरल है उन लोगो की तुलना मे, जो इनके पीछे पीछे आ रहे है। मेरे प्राणो की सौगंध! "इनके पीछे ऐसे व्यक्ति आ रहे है जिनके साथ युद्ध करने की शक्ति हमारे पास नही है"। इमाम (अ) ने फ़रमायाः ज़ुहैर सही कह रहे हो लेकिन हम युद्ध की शुरूआत करने वाले नही है"।[८४] यह कहकर इमाम (अ) ने अपनी यात्रा जारी रखी यहां तक कि "कर्बला" पहुंच गए। हुर और उसके साथी इमाम हुसैन (अ) के सामने आकर खड़े हो गए और उन्हे यात्रा जारी रखने से रोका।[८५]
कर्बला मे इमाम हुसैन (अ)
कर्बला मे इमाम हुसैन (अ) का आगमन
अधिकांश एतिहासिक स्रोतो मे है कि इमाम हुसैन (अ) और आपके असहाब 2 मोहर्रम 61 हिजरी को कर्बला पहुंचे है।[८६] दैनूरी ने इमाम हुसैन (अ) का कर्बला मे आगमन पहली मोहर्रम बताया है।[८७] इस कथन की भी अनदेखी नही की जा सकती।
जब हुर ने इमाम हुसैन से कहा, "यही उतरे क्योकि फ़ोरात करीब है"। इमाम ने फ़रमाया, "इस स्थान का नाम क्या है"? सबने कहा, कर्बला।
फ़रमाया: यह दुख और विपत्ति का स्थान है। मेरे पिता यहाँ सिफ़्फीन के रास्ते में उतरे और मैं आपके साथ था। रुक गए और इसका नाम पूछा। तो लोगों ने नाम बताया, उस समय आपने फ़रमाया: "यह वह जगह है जहाँ उनकी सवारी उतरेंगी, और यह वह स्थान है जहाँ उनका खून बहाया जाएगा।" जब लोगों ने वास्तविकता के बारे में पूछा, तो आपने फ़रमाया: " मुहम्मद के परिवार का एक कारवां यहाँ उतरेगा"।[८८]
इमाम हुसैन (अ) ने फ़रमाया: यह हमारी सवारीया और सामान उतारने का स्थान है, और यह हमारे खून बहाए जाने का स्थान जगह है।[८९] उसके पश्चात सवारीया और सामान उतारने का आदेश दिया और ऐसा ही किया गया और वह गुरूवार 2 मुहर्रम का दिन था।[९०]और एक रिवायत के अनुसार, यह वर्ष 61 हिजरी में मुहर्रम का पहला दिन बुधवार था।[९१]
बताया जाता है कि कर्बला में डेरा डालने के बाद इमाम हुसैन (अ) ने अपने बेटों, भाइयों और परिवार के सदस्यों को इकट्ठा किया और उन सभी को देखा और रोए और फ़रमाया:
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अनुवादः ख़ुदावंद ! हम तेरे नबी के वंशज और परिवार वाले है जिन्हे अपने शहर से निष्कासित किया गया है और हैरान और परेशान अपने नाना रसूल अल्लाह के हरम से निष्कासित किय गया है, और बनू उमय्या ने हमारे खिलाफ षडयंत्र किया है हे अल्लाह ! उनसे हमारा हक़ ले ले और अत्याचारीयो को हमारी नसीहत कर।
तत्पश्चात आपने असहाब की ओर मुह करके कहाः
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अनुवादः लोग दुनिया के ग़ुलाम है और धर्म मात्र उनकी ज़बानो तक सीमित है उस समय तक धर्म का समर्थन और हिमायत करते है जब तक उनका जीवन समृद्धि में है और जब भी विपत्ति और परीक्षण का समय होता है, तो धार्मिक बहुत कम होते हैं।[९३]
उसके बाद इमाम ने कर्बला की भूमी को- जिसका क्षेत्रफल 4x4 मील था। नैनवा और ग़ाज़रया के नागरिको से 60 हज़ार दिरहम मे खरीद लिया। और उनसे शर्त रखी कि आपकी क़ब्र की ओर लोगो का मार्गदर्शन करेंगे और उनको तीन दिन तक उनता अतिथि सत्कार करेंगे।[९४]
2 मोहर्रम को इमाम हुसैन और उनके असहाब के कर्बला मे उतरने के पश्चात[९५] हुर बिन यज़ीद रियाही ने उबैदुल्लाह इब्ने ज़्याद को पत्र लिख कर इमाम हुसैन के कर्बला मे उतरने से अवगत किया।[९६] हुर का पत्र मिलने के पश्चात उबैदुल्लाह बिन ज़्याद ने इमाम हुसैन (अ) के नाम एक पत्र लिखा जिसमे उसने लिखा थाः
"हे हुसैन! कर्बला मे तुम्हारे डेरा डालने की सूचना प्राप्त हुई अमीरूल मोमिनीन यज़ीद बिन मुआविया ने मुझे आदेश दिया है कि चैन से ना सोऊ और पेट भर भोजन ना करूं जबतक कि तुम्हारी हत्या न कर दूं या फ़िर तुम्हे अपने आदेश और यज़ीद के आदेश का पालन करने पर तैयार कर दूं...। वस-सलाम"।
इमाम हुसैन (अ) ने पत्र पढ़ने के पश्चात एक ओर फेंक दिया और कहाः "जिन लोगो ने अपनी मर्ज़ी और प्रसन्ता को अल्लाह की मर्ज़ी और प्रसन्नता पर प्राथमिकता दी वो कदापि सफल नही हो पाएंगे। इब्ने ज़्याद के दूत ने कहाः "या अबा-अब्दिल्लाह आप पत्र का उत्तर नही देंगे? कहाः "इस पत्र का उत्तर अल्लाह की दर्दनाक पीड़ा है जो अति शीघ्र उसको अपनी चपेट मे लेगी"।
इब्ने ज़्याद का दूत वापस लौट गया और इमाम हुसैन (अ) का कथन उसके सामने दोहराया उबैदुल्लाह ने इमाम हुसैन के खिलाफ युद्ध के लिए सेना तैयार करने का आदेश दिया।[९७]
उमर इब्ने साद का कर्बला आगमन
उमर बिन सअद इमाम (अ) के कर्बला मे डेरा डालने के दूसरे दिन अर्थात तीन मोहर्रम को 4 हज़ार की सेना के साथ कर्बला पहुंचा।[९८] उमर बिन साद कर्बला कैसे आया, इसके बारे में कहा गया है: उबैदुल्लाह बिन ज़ियाद ने उमर बिन साद को चार हज़ार कुफ़ियों का सेनापति बनाया और उसे रैय और दस्तबी जाकर उन क्षेत्रो मे जहां दैलमयो का प्रभुत्व था उनके साथ युद्ध करने का आदेश दिया। उबैदुल्लाह ने इब्ने साद के नाम पर रैय की सरकार का फरमान भी लिखा और उसे इस शहर का गवर्नर नियुक्त किया। इब्ने साद ने अपने साथियों के साथ कूफ़ा के बाहर हम्माम आयुन नामक स्थान पर पड़ाव डाला। रैय जाने की तैयारी कर ही रहा था कि इमाम हुसैन (अ) कूफ़ा की ओर बढ़े, इब्ने ज़ियाद ने उमर इब्ने साद को रैय जाने से पहले इमाम हुसैन (अ) के विरुद्ध युद्ध करने और युद्ध की समाप्ति के बाद रैय जाने का आदेश दिया। इब्ने साद को इमाम हुसैन (अ) से जंग पसंद नहीं थी। इसलिए उसने उबैदुल्लाह से कहा कि मुझे इस काम से मुक्त करो; लेकिन इब्ने ज़ियाद ने रैय के शासन की वापसी के अधीन उसे इमाम हुसैन (अ) के विरूद्ध युद्द करने से माफ करने की शर्त रखी।[९९] उमर इब्ने साद ने उबैदुल्लाह इब्ने ज़ियाद के इसरार को देखा तो कर्बला[१००] जाने के लिए तैयार हो गया और अपनी सेना के साथ कर्बला की ओर चल दिया, और इमाम हुसैन (अ) के नैनवा पहुंचने के अगले ही दिन उमर इब्ने साद पहुंच गया।[१०१]
इमाम हुसैन (अ) और उमर इब्ने साद के बीच वार्ता का आरम्भ
कर्बला आने के बाद, उमर इब्ने साद इमाम के पास एक संदेशवाहक भेजना चाहता था ताकि वह उन (इमाम) से पूछें कि आप इस भूमि पर क्यों आए हौ और क्या चाहते हैं? उसने अज़्रा बिन क़ैस अहमसी और अन्य बुजुर्गों -जिन्होने इमाम (अ) को निमंत्रण पत्र लिखे थे- को इस काम का सुझाव दिया; लेकिन उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया।[१०२] लेकिन कसीर बिन अब्दुल्लाह शुएबा ने स्वीकार कर लिया और इमाम हुसैन (अ) के शिविर की ओर बढ़ा। लेकिन अबू समामा साएदी ने कसीर को हथियार के साथ इमाम हुसैन (अ) के पास नहीं जाने दिया और बिना किसी परिणाम के उमर बिन साद के पास लौट आया।[१०३]
कसीर बिन अब्दुल्लाह की वापसी के बाद, उमर साद ने क़ुर्रत बिन क़ैस हंज़ली[१०४] से इमाम हुसैन (अ) के पास जाने के लिए कहा तो उसने स्वीकार कर लिया। इमाम हुसैन (अ) ने उमर साद के संदेश के जवाब मे क़ुर्रत से कहा: "तुम्हारे शहर के लोगों ने मुझे एक पत्र लिखा था जिसमें मुझे यहाँ आने के लिए कहा गया था। अब अगर वे मुझे नहीं चाहते हैं तो मैं वापस चला जाऊंगा।" उमर साद इस उत्तर से खुश हुआ।[१०५] उमर साद ने इब्ने ज़ियाद को पत्र लिख कर इमाम हुसैन (अ) के जवाब में सूचित किया।[१०६] उमर साद के पत्र के जवाब में उबैदुल्ला बिन ज़ियाद ने इमाम हुसैन (अ) और उनके साथीयो से यज़ीद के प्रति निष्ठा की प्रतिज्ञा चाही।[१०७]
इब्ने ज़ियाद का कर्बला सेना भिजवाने का प्रयास
इमाम हुसैन (अ) के कर्बला आने के पश्चात उबैदुल्लाह ने मस्जिदे क़ूफा मे लोगो के एकत्रित किया और यज़ीद के उपहार – दो लाख दिरहम और चार हज़ार दीनार तक- बड़ों के बीच बाटे और कर्बला मे इमाम हुसैन (अ) के साथ युद्ध मे उमर बिन साद की मदद करने के लिए कहा।[१०८]
उबैदुल्लाह बिन ज़ियाद ने अम्र बिन हुरैस को कूफ़ा के कार्यालय में नियुक्त करके स्वयं अपने साथियों के साथ कूफ़ा से बाहर आया और नुख़ैला नामक स्थान पर छावनी बनाकर लोगों को नुख़ैला जाने के लिए मजबूर किया।[१०९] कुफ़ा वालो को इमाम हुसैन (अ.स.) की सेना में शामिल होने से रोकने के लिए उन्होंने कूफ़ा के पुल पर नियंत्रण कर लिया और किसी को भी पुल पार करने की अनुमति नहीं दी।[११०]
उबैदुल्लाह बिन ज़ियाद के आदेश से, हसीन बिन तमीम और उनकी कमान के तहत चार हजार सैनिकों को कादसिया से नुख़ैला बुलाया गया।[१११] मुहम्मद बिन अश्अस बिन क़ैस किंदी, कसीर बिन शहाब और क़ाअक़ा बिन सुवैद को भी इब्न ज़ियाद द्वारा जिम्मेदारी सौंपी गई कि लोगो को इमाम हुसैन (अ) के विरूद्ध युद्ध के लिए तैयार करें।[११२] इब्ने ज़ियाद ने कुछ घुड़सवारों के साथ सुवैद बिन अब्दुर-रहमान मनक़री को कूफ़ा भेजा और उसे कूफ़ा के द्वार पर पूछ-ताछ करने का आदेश दिया कि जिस किसी ने भी अबा अब्दिल्लाह के साथ युद्ध में जाने से इनकार किया हो उसे पेश किया जाए। सुवैद ने कूफ़ा में खोज करके शाम से आए हुए एक व्यक्ति को गिरफ्तार कर जो कूफ़ा मे अपनी विरासत का दावा करने आया था, इब्ने ज़ियाद के पास भेज दिया। इब्न ज़ियाद ने भी [कुफ़ा के लोगों को डराने के लिए] उसे मारने का आदेश पारित कर दिया। जब लोगों ने यह देखा तो सब नुख़ैला चले गए।[११३]
जब लोग नुख़ैला में इकठ्ठा हुए, तो उबैदुल्लाह ने हुसैन बिन नुमैर, हज्जार बिन अबजर, शबस बिन रबी और शिम्र बिन ज़िल-जोशन को इब्ने साद की मदद करने के लिए उसकी सेना में शामिल होने का आदेश दिया।[११४] शिम्र उसके आदेश का पालन करने वाला पहला व्यक्ति था और इब्ने साद की मदद के लिए तैयार हो गया[११५] शिम्र के बाद, ज़ैद (यज़ीद) बिन रकाब कलबी दो हज़ार लोगों के साथ, हुसैन बिन नुमैर सकुनी चार हज़ार लोगों के साथ, मुसाब मारी (मुज़ाइर बिन रहिना माज़ेनी) तीन हज़ार लोगों के साथ[११६] और हुसैन बिन तमीम तहवी दो हज़ार सैनिकों[११७] और नस्र बिन हरबाह (हर्षा) दो हज़ार कुफ़ियों के साथ आगे बढ़े और उमर बिन साद की सेना में शामिल हो गए।[११८] तब इब्ने ज़ियाद ने एक आदमी को शबस बिन रबी रियाही के पास भेजा और उसे उमर की ओर बढ़ने के लिए कहा। शबस भी एक हजार घुड़सवारों के साथ उमर बिन साद में शामिल हो गया।[११९] शबस के बाद, हज्जार बिन अबजर एक हजार घुड़सवारों के साथ[१२०] और उसके बाद मुहम्मद बिन अश्अस बिन क़ैस किंदी एक हजार घुड़सवारों के साथ[१२१] हारिस बिन यज़ीद बिन रुवैम ने भी हज्जार बिन अबजर का कर्बला तक पीछा किया।[१२२] उबैदुल्लाह बिन ज़ियाद ने 20, 30, 50 और 100 के समूहों में हर सुबह और दोपहर में कुफी सैनिकों के एक समूह को कर्बला भेजा।[१२३] इस तरह मुहर्रम की 6 तारीख तक उमर बिन साद की सेना की संख्या बीस हजार से अधिक हो गई।[१२४] उबैदुल्लाह ने उमर बिन साद को उन सभी का सेनापति नियुक्त किया।
हबीब इब्ने मज़ाहिर का सेना एकत्रित करने का प्रयास
कर्बला में दुश्मन सैनिकों के जमावड़े के बाद, हबीब इब्ने मज़ाहिर असदी इमाम हुसैन (अ) के साथियों की संख्या को देखकर इमाम (अ) की अनुमति से बनी असद जनजाति के एक कबीले में गुमनाम रूप से गए और उन्होने पैगंबर (स) के नवासे की मदद करने का आग्रह किया। बनी असद हबीब इब्ने मज़ाहिर असदी के साथ रात में इमाम हुसैन (अ) के शिविर की ओर बढ़ रहे थे, तो उमर इब्ने साद की सेना के चार या पांच सौ घुड़सवारों ने अज़्रक़ बिन हर्ब सैदावी के नेतृत्व में फ़रात के किनारे उनका रास्ता रोक दिया। बात संघर्ष तक पहुंची जिसका परिणाम यह हुआ कि बनी असद अपने घरों को लौट गए और हबीब अकेले इमाम हुसैन (अ) के पास लौट आए।[१२५]
सात मोहर्रम और पानी पर प्रतिबंध
मुहर्रम की 7 तारीख को उबैदुल्लाह बिन ज़ियाद ने उमर बिन साद को एक पत्र में इमाम हुसैन (अ) और उनके साथियों पर पानी बंद करने की मांग की। जब पत्र उमर बिन साद के पास पहुंचा, तो उसने अम्र बिन हज्जाज ज़ुबैदी को पांच सौ घुड़सवारों के साथ फ़ुरात नदी के किनारे पहुचं कर हुसैन (अ) और उनके साथियों को पानी तक पहुंचने से रोकने का आदेश दिया।[१२६]
कुछ स्रोतों के अनुसार पानी बंद होने और प्यास तेज होने के बाद इमाम हुसैन (अ) ने अपने भाई अब्बास को तीस घुड़सवारों और बीस पैदलों के साथ बीस मश्को के साथ पानी लाने के लिए भेजा। वो रात के समय फ़ुरात की ओर निकले जबकि नाफ़े बिन हिलाल बजली ध्वज के साथ समूह का नेतृत्व कर रहे थे और फ़ुरात पर पहुंचे। अम्र बिन हज्जाज जोकि फरात की रखवाली का प्रभारी था इमाम हुसैन (अ) के साथियों से मुक़ाबला करने के लिए उठ खड़ा हुआ। इमाम हुसैन (अ) के साथियों के एक समूह ने मशको को भरा, और एक अन्य समूह जिसमें हज़रत अबुल फ़ज़्लिल अब्बास (अ) और नाफ़े बिन हिलाल युद्द करने लगे और उन्हें दुश्मनों के हमले से बचाया ताकि वे सुरक्षित रूप से पानी ख्यामे हुसैनी तक ला सकें। इमाम हुसैन (अ) के साथी पानी लाने में सफल रहे।[१२७]
उमर इब्ने साद के साथ इमाम हुसैन (अ) की अंतिम वार्ता
उमर बिन साद की छावनी में जब एक के बाद एक फौजें उतरीं तो इमाम हुसैन (अ) ने अम्र बिन क़र्ज़ा अंसारी को उमर इब्ने साद के पास संदेश देकर भेजा और कहा कि मैं आज रात दोनों छावनीयो के बीच तुम से मिलना चाहता हूँ। रात मे इमाम हुसैन (अ) और इब्ने साद प्रत्येक बीस घुड़सवारों के साथ भेट स्थल पर आए। कुछ स्रोतों के अनुसार, इस मुलाक़ात में हुसैन (अ) ने उमर इब्ने साद से फ़रमाया "... इस गलत विचार और भ्रम से छुटकारा पाएं और उस मार्ग का च्यन करो जो तुम्हारे धर्म और दुनिया के लिए सर्वोत्तम है ...";[१२८] लेकिन इब्ने साद ने नहीं माना। जब इमाम हुसैन (अ) ने यह देखा, तो फ़रमाया: "अल्लाह तुम्हें नष्ट कर दे और पुनरुत्थान के दिन तुम्हें क्षमा न करे; आशा करता हूं कि ईश्वर की कृपा से तुम रैय के गेहूं नहीं खा पाओगे!" फिर इमाम (अ) लौट आए।[१२९]
इमाम हुसैन (अ) और इब्ने साद के बीच तीन या चार बार बात-चीत दोहराई गई।[१३०] कुछ सूत्रो के अनुसार, इनमे से एक बातचीत के अंत मे उमर बिन साद ने उबैदुल्लाह इब्ने ज़ियाद को संबोधित एक पत्र मे इस प्रकार लिखाः "... हुसैन बिन अली (अ) ने मेरे साथ एक समझौता किया कि वह उसी स्थान पर लौट जाएं जहा से आए है, या मुस्लिम क्षेत्रों में से किसी जगह चले जाएंगे और वहा पर उनके भी अन्य मुसलमानों के समान अधिकार और कर्तव्य होंगे, या यज़ीद के पास चले जाएं और जो कुछ वो आदेश दे उसको लागू करें, और यही आपकी संतुष्टि और राष्ट्र के कल्याण का स्रोत है।[१३१]
उबैदुल्लाह ने पत्र पढ़ते ही कहाः एक ऐसे व्यक्ति से है जो अपने अमीर का नेता और अपने लोगों का रक्षक है!" वह इस प्रस्ताव को स्वीकार करने ही वाला था कि शिम्र बिन ज़िल जोशन ने उसे रोका। तब उबैदुल्लाह ने शिम्र को बुला कर कहा:
"इस पत्र को उमर बिन साद के पास ले जाओ ताकि वह हुसैन (अ) और उनके साथियों को मेरे आदेश को मानने के लिए कह सकें। यदि वे स्वीकार करें, तो उन्हें सुरक्षित रूप से मेरे पास भेज दें, और यदि वे स्वीकार नहीं करते हैं, तो उनके साथ युद्ध करें। अगर उमर बिन साद लड़ें तो उनकी बात सुनें और उनकी बात मानें और अगर वह लड़ने से इनकार करें तो हुसैन (अ) से युद्ध करो क्योंकि आप लोगों के नेता हैं। फिर साद के बेटे की गर्दन पर वार कर उसका सिर मेरे पास भेज दो।"[१३२]
फिर उबैदुल्लाह ने उमर बिन साद को एक पत्र लिखा, जिसमें हुसैन (अ) के साथ उनके शांतिपूर्ण व्यवहार के लिए उसे फटकार लगाई और लिखा:
"... अगर हुसैन (अ) और उनके साथी मेरे आदेश को मान लिया [और यज़ीद के प्रति निष्ठा की प्रतिज्ञा की] तो उन्हें सुरक्षित रूप से मेरे पास भेज दें, और यदि वे स्वीकार नहीं करते हैं, तो उन पर हमला करें और उनका खून बहाओ और उनके शरीर को क्षत-विक्षत कर दें; क्योंकि वे इसी काम के योग्य हैं। जब हुसैन (अ) मारे जाए, तो उनके पार्थिव शरीर पर घुड़ सवार दौड़ाओ क्योकि वो विद्रोही और अत्याचारी है, और मुझे नहीं लगता कि मौत के बाद ऐसा करने मे कोई नुकसान होगा। लेकिन मैंने खुद से वादा किया है कि अगर मैं उनको मारूंगा तो मैं उनके साथ ऐसा ही करूंगा। अगर तुमने इस आदेश का पालन किया तो हम तुमको एक आज्ञाकारी व्यक्ति का इनाम देंगे, और यदि तुमने इसे स्वीकार नहीं किया, तो हमारे काम और हमारी सेना से हाथ उठा लो और सेना को शिम्र बिन ज़िल जोशन पर छोड़ दो। क्योंकि हमने उसे अपने काम का अमीर बनाया है। वस-सलाम।"[१३३]
नौ मुहर्रम
- मुख़्य लेख: नौ मोहर्रम
गुरुवार, 9 मुहर्रम 61 हिजरी को दोपहर के बाद अस्र की नमाज़ पश्चात शिम्र बिन ज़िल जोशन ने उमर बिन साद के पास पहुंच कर उसे इब्ने ज़ियाद का संदेश दिया।[१३४] उमर बिन साद ने शिम्र से कहा: मैं खुद इस काम का प्रभारी बनूंगा।[१३५]
एक रिवायत के अनुसार शिम्र और एक दूसरी रिवायत के अनुसार उम्मुल-बनीन के भतीजे अब्दुल्लाह बिन अबिल-महल को उम्मुल-बनीन के बच्चों के लिए इब्ने ज़ियाद से एक विश्वास पत्र मिला था।[१३६] अब्दुल्लाह ने अपने दास द्वारा कर्बला विश्वास पत्र भेजा, और कर्बला में प्रवेश करने के बाद उम्मुल-बनीन के बच्चों को विश्वास पत्र पढ़कर सुनाया; लेकिन उन्होने इसे अस्वीकार कर दिया।[१३७] एक अन्य रिवायत के अनुसार, शिम्र विश्वास पत्र कर्बला लाया और इसे अब्बास (अ) और उनके भाइयों के पास ले गया;[१३८] लेकिन अब्बास (अ) और उनके भाईयो ने इसको नकार दिया।[१३९] शेख़ मुफ़ीद के अनुसार शिम्र ने कहाः हे मेरे भतीजो तुम सुरक्षित हो। उन्होंने उत्तर दिया: ईश्वर तुमपर और तुम्हारे विश्वास पत्र पर लानत करे, तुम हमें तो अमान (सुरक्षा) दो और रसूले ख़ुदा (स) के पुत्र असुरक्षित है?[१४०]
नौ मुहर्रम की शाम को उमर बिन साद ने पुकारा: ऐ ख़ुदा के फ़ौजीयो! सवार हों और खुश ख़बर दे। सैनिक घोड़ो पर सवार हुआ और इमाम के शिविर की ओर बढ़ गए।[१४१] जब हुसैन (अ) दुश्मन की नियत से अवगत हुए तो अपने भाई अब्बास से फ़रमायाः "यदि आप उन्हें कल तक युद्ध टालने के लिए राजी कर सकते हो और हमें आज रात की मोहलत दे ताकि हम अपने ईश्वर से राज़ो नियाज कर सके और नमाज़ पढ़ सकें। अल्लाह जानता है कि मुझे नमाज पढ़ना और क़ुरआन की तिलावत करना बहुत पसंद है।[१४२] अब्बास दुश्मन सैनिकों के पास गए और उनसे उस रात की मोहलत देने के लिए कहा। इब्ने साद एक रात की मोहलत पर सहमत हो गया।[१४३] इस दिन, इमाम हुसैन (अ) और उनके परिवार और साथियों के तंबूओ का घिराव कर लिया गया।[१४४]
आशूरा की रात की घटनाएँ
- मुख़्य लेख: आशूरा की रात (घटनाएँ)
अपने साथियों के बारे में आशूरा की रात हुसैन का भाषण: أَمَّا بَعْدُ فَإِنِّي لَا أَعْلَمُ أَصْحَاباً أَوْفَى وَ لَا خَيْراً مِنْ أَصْحَابِي وَ لَا أَهْلَ بَيْتٍ أَبَرَّ وَ لَا أَوْصَلَ مِنْ أَهْلِ بَيْتِي فَجَزَاكُمُ اللَّهُ عَنِّي خَيْرا. अम्मा बादो फ़इन्नी ला आलमो अस्हाबन ओफ़ा वला ख़ैयरन मिन अस्हाबी वला अहलाबैयतिन अबारुन वला औसला मिन अहलेबैयती फ़जज़ाकोमुल्लाहो अन्नी खैयरा। (अनुवाद: वास्तव में, मैं अपने साथियों (अस्हाब) से अधिक वफादार और बेहतर साथी और अपने परिवार से अधिक उदार और दयालु परिवार नहीं जानता; अल्लाह तुम्हे अच्छाई का इनाम दें।)
मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1399 हिजरी, भाग 2, पेज 91
इमाम हुसैन के साथियों की वाचा का नवीनीकरण
आशूरा की रात की शुरुआत में इमाम हुसैन (अ) ने अपने साथियों को इकट्ठा किया और परमेश्वर की प्रशंसा करने के बाद फ़रमाया: "मुझे लगता है कि यह आखिरी दिन है जिसकी हमें इन लोगों से मोहलत मिली है। ज्ञात रहे कि मैंने आपको (जाने की) अनुमति दी थी। इसलिए सब लोग, मन की शांति के साथ जाओ कि तुम्हें मेरे प्रति निष्ठा नहीं रखनी है। अब जबकि रात के अँधेरे ने तुम्हें ढँक लिया है, अपनी सवारीया लो और चले जाओ।" इस समय, पहले इमाम के परिवार और फिर इमाम के साथियों ने महाकाव्य भाषणों में अपनी वफादारी की घोषणा की और इमाम की रक्षा में अपने प्राणों की आहुति देने पर जोर दिया। ऐतिहासिक स्रोतों और मक़तल (रण भूमि की किताबो) ने इनमें से कुछ शब्दों को दर्ज किया है।[१४५]
हज़रत जैनब (स) की चिंता
हुसैन (अ) के साथियों की वफादारी की घोषणा करने के बाद, वो शिविर में लौट आए और हज़रत ज़ैनब (स) के तम्बू में प्रवेश किया। नाफ़े बिन हेलाल तंबू के बाहर हुसैन (अ) की प्रतीक्षा मे बैठे हुए थे कि इतने मे हज़रत ज़ैनब (स) को हुसैन (अ) से कहते हुए सुनाः क्या आपने अपने अस्हाब की परीक्षा ली है? मुझे चिंता है कि वे हमसे मुंह मोड़ लेंगे और संघर्ष के दौरान आपको दुश्मन के हवाले कर देंगे।" हुसैन (अ) ने जवाब दिया: "मैं अल्लाह की कसम खाता हूं, मैंने इन्हें आजमाया है और मैंने उन्हें ऐसे पुरुष पाया है जिन्होंने अपनी कमर बांध ली है कि वे अपनी आंखों के कोने में मौत को देखते हैं और वे मेरे लिए अपनी मौत को इतना पसंद करते हैं कि जितना एक शिशु अपनी मां की छाती को पसंद करता है।" जब नाफे को इस बात का आभास हुआ कि इमाम हुसैन (अ) का परिवार अस्हाब की वफादारी और दृढ़ता के बारे में चिंतित हैं, तो वह हबीब बिन मज़ाहिर के पास गए और उनकी सलाह के साथ निर्णय लिया कि बाकी अस्हाब के साथ हुसैन (अ) और अहले-बैत के पास जाकर उन्हे आश्वस्त करे कि वे रक्त की आखिरी बूंद तक उनकी रक्षा करेगें।[१४६]
हबीब बिन मज़ाहिर ने हुसैन (अ) के अस्हाब को इकट्ठा होने के लिए आवाज़ लगाई। और बनी हाशिम के युवाओ को उनके डेरो मे वापस लौट जाने के लिए कहा; फिर अस्हाब की ओर मुड़े और जो कुछ नाफ़े से सुना उसको दोहराया। उन सभी ने कहा: "उस खुदा की क़स्म जिसने हमे इस स्थान पर रखा है, अगर हमे हुसैन (अ) के आदेश की प्रतीक्षा नहीं होती, तो हम उन (दुशमनो) पर हमला करके अपने जीवन को शुद्ध और अपनी आंखों को स्वर्ग के दर्शन से रोशन कर लेते।" हबीब दूसरे अस्हाब के साथ नंगी तलवारो के साथ अहले-बैत (अ) के पास एक आवाज होकर पहुंचे और उन्होने कहा: "हे रसूले खुदा (स) के परिवार वालो" ये आपके जवानो और वीरो की तलवारें हैं, जो तब तक म्यान में न जाएंगी जब तक आपके दुराचारियों की गर्दनें न काट दें। ये आपके पुत्रों के भाले हैं, उन्होंने तो शपथ खाई है, कि इनको उन लोगो की छाती मे घौंप देंगे जिन्होने आपकी अवज्ञा की है।[१४७]
आशूरा के दिन की घटनाएँ
- मुख़्य लेख: आशूरा के दिन की घटनाएँ
इमाम हुसैन (अ) ने सुबह की नमाज़ के बाद[१४८] अपनी सेना (32 घुड़सवार और 40 पैदल सेना)[१४९] को संगठित किया। हुसैन (अ) तर्क को पूरा करने के लिए घोड़े पर चढ़े और अस्हाब के एक समूह के साथ दुश्मन की सेना के पास गए और उन्हें उपदेश दिया।[१५०] इमाम के उपदेश पश्चात ज़ुहैर बिन क़ैन ने तक़रीर करना आरम्भ की और इमाम हुसैन (अ) के फ़ज़ाइल का वर्णन करते हुए दुशमनो को नसीहत की।[१५१]
आशूरा की सुबह की घटनाओं में से एक उमर बिन साद की सेना छौड़ कर हुर बिन यज़ीद रियाही का इमाम हुसैन (अ) के शिविर में शामिल होना है।[१५२]
युद्ध की शुरुआत में समूहों में हमले किए गए। कुछ ऐतिहासिक रिवायतो के अनुसार, पहले हमले में इमाम के 50 साथी शहीद हुए। उसके बाद इमाम के अस्हाब अकेले या जोड़ियों में युद्द के लिए गए। अस्हाब ने शत्रु सेना में से किसी को भी हुसैन (अ) के निकट आने की अनुमति नही दी।[१५३] आशूरा की सुबह और दोपहर में इमाम हुसैन (अ) के गैर-हाशमी साथियों की शहादत के बाद हुसैन (अ) के साथी बनी हाशिम जंग के लिए आगे आए। बनी हाशिम में पहला व्यक्ति जिसने हुसैन (अ) से अनुमति लेकर वीर गति को प्राप्त हुए, अली अकबर है।[१५४] उनके बाद इमाम हुसैन (अ) के परिवार मे से एक के बाद दूसरे ने अनुमति लेकर रणभूमि मे जाकर शहादत का जाम पिया। अबुल फ़ज़्लिल अब्बास (अ) जोकि सेनापति और तंबुओं के रक्षक थे फ़रात के किनारे लड़ाई में शहीद हो गए।[१५५]
बनी हाशिम की शहादत पश्चात इमाम हुसैन (अ) युद्ध के लिए चले, लेकिन कुछ समय तक कूफ़ा की सेना में से कोई भी उनका सामना करने के लिए आगे नहीं आया। लड़ाई के बीच हुसैन (अ) ने अकेलेपन, सिर और शरीर पर लगे भारी घावों के बावजूद, हुसैन (अ) ने निडर होकर तलवार चलाई।[१५६]
इमाम हुसैन (अ) की शहादत
शिम्र बिन ज़िल-जोशन की कमान के तहत पैदल सैनिकों के हुसैन (अ) को घेरने और हमले के लिए शिम्र द्वारा उनको प्रत्साहित करने के बावजूद कोई आगे नही आया।[१५७] शिम्र ने निशानेबाजों को इमाम पर तीरो की वर्षा का आदेश दिया। बाणों की अधिकता के कारण इमाम का शरीर तीरों से भर गया। {{|मक़ातिल मे इस प्रकार आया हैं... वलम्मा असख़नल हुसैना बिल जर्राहे, वा बक़ैया कलक़नकुज... (अनुवादः इमाम (अ) का शरीर पीठ की ओर से काँटे की तरह हो गया)।[१५८] [१५९]हुसैन (अ) पीछे हटे और उनके सामने एक रेखा बना दी।[१६०] घावो और थकान ने हुसैन (अ) को बुरी तरह कमजोर कर दिया था। इसलिए थोड़ा आराम करने के लिए रुक गए। इसी दौरान एक पत्थर आपके माथे पर लगा और खून बहने लगा। जैसे ही इमाम ने अपनी कमीज़ के दामन (रूमाल या कपड़े से) से अपने चेहरे से ख़ून पोंछना चाहा,[१६१] एक नुकीला और जहरीला त्रिशूल (तीन भाल का तीर) आप पर फेंका गया जो आपके दिल पर जा लगा।[१६२] मालिक बिन नुसैर ने तलवार से इमाम हुसैन (अ) के सिर पर ऐसा वार किया कि इमाम के हेलमेट का पट्टा फट गया।[१६३] सैय्यद इब्ने ताऊस[१६४] ने तीरों की बारिश के बाद इमाम के जमीन पर गिरने पर विचार किया। इस दृश्य में शिम्र के आदेश पर तीरंदाजों और बड़ी संख्या में सैनिकों के हमले से इमाम के शरीर मे कमजोरी इस हद तक थी कि गिर रहे थे और खड़े हो रहे थे, बड़ी मुश्किल से खड़े होते थे और तुरंत गिर जाते थे।[१६५]
ज़रआ बिन शरीक तमीमी नामक व्यक्ति ने इमाम (अ) के बाएं कंधे पर ज़ोर से वार किया। सिनान बिन अनस नख़-ई ने गले पर तीर चलाया। उसके बाद सालेह बिन वहब जोफ़ी (सिनान बिन अनस के अनुसार) आगे आया और हुसैन (अ) की तरफ एक भाला फेंका जिससे इमाम (अ) घोड़े से दाहिनी करवट ज़मीन पर गिर पड़े।[१६६]
शिम्र बिन ज़िल-जोशन उमर साद के सैनिकों के एक समूह के साथ, जिसमें सिनान बिन अनस और ख़ूली बिन यज़ीद अस्बही शामिल थे, हुसैन (अ) के पास आए। शिम्र ने उन्हें हुसैन (अ) का काम तमाम करने के लिए प्रोत्साहित किया,[१६७] लेकिन किसी ने स्वीकार नहीं किया। उसने ख़ूली को हुसैन का सिर काटने का आदेश दिया। जब ख़ूली ने क़त्लगाह में प्रवेश किया, तो उसके हाथ और शरीर कांपने लगे और वह ऐसा नहीं कर सका। शिम्र[१६८] और सिनान बिन अनस[१६९] के कथन के अनुसार घोड़े से उतरा और हुसैन (अ) का सिर काटकर ख़ूली को दे दिया।[१७०]
इमाम हुसैन (अ) की शहादत पश्चात घटनाएँ
सिनान बिन अनस द्वारा इमाम का सिर खुली को देने के बाद, उमर साद की टुकड़ियों ने हर उस चीज को लूट लिया जो इमाम पहने हुए थे। क़ैस बिन अश्अस और बोहुर बिन काब, (वस्त्र)[१७१], असवद बिन खालिद ओवदी (नालैन), जमी बिन ख़ल्क़ ओवदी (तलवार), अख्नस बिन मुरसद (अम्मामा), बजदल बिन सुलैम (अंगूठी) और उमर बिन साद इमाम (अ) का कवच[१७२] ले गया।
इमाम हुसैन (अ) की शहादत की सूचना देना
इमाम हुसैन के अपने घोड़े से गिरने के बाद, ज़ुल-जनाह इमाम हुसैन (अ) के सरहाने आया और इमाम के बेहोश शरीर के चारों ओर चक्कर लगाने लगा, उनको सूंघ रहा था और चूम रहा था। फिर उसने अपने माथे को इमाम हुसैन के शरीर के खून से साना, अपने पैरों को जमीन पर पटकते हुए और सिर हिलाते हुए ख़ैमे की ओर चला[१७३] इमाम बाक़िर (अ) एक रिवायत में कहते हैं: घोड़ा ख़ैमे मे लौट आया और कह रहा था: الظليمة ، الظليمة ، من اُمّة قتلتْ ابن بنت نبيّها अज़-ज़ुलमिया, अज़-ज़ुलमिया, मन उम्मते क़तालत इब्ने बिन्ते नबीयोहा (अनुवादः दौड़ो दौड़ो एक उम्मत ने अपने नबी की बेटी के पुत्र को कत्ल कर दिया)।[१७४] जब वह ख़ेमे तक पहुँचा, तो रो रहा था और अपना सिर जमीन पर पटक रहा था। जब इमाम हुसैन के परिवार ने ज़ुल-जनाह को इस हालत मे देखा, तो वे ख़ेमो से बाहर आकर ज़ुल-जनाह के सिर, चेहरे और पैरों को छूते हुए उसके चारों ओर इकट्ठा हो गए। उम्मे कुलसूम ने अपने दोनों हाथ उसके सिर पर रखे और कहा: वा मोहम्मदाह वा जद्दाह वा अंम्बियाह।[१७५]
ख़ैमो की लूट-पाट
हुसैन (अ) की शहादत के बाद दुश्मन सैनिकों ने तंबुओं (ख़ैमो) पर हमला किया और जो कुछ था उसे लूट लिया। वे इस मामले में एक-दूसरे से आगे निकल रहे थे।[१७६] शिम्र इमाम सज्जाद (अ) को शहीद करने के इरादे से सैनिकों के एक समूह के साथ तंबू में दाखिल हुआ, लेकिन ज़ैनब (स) ने उसे ऐसा करने से रोक दिया। एक दूसरी रिवायत के अनुसार, उमर बिन साद के कुछ सैनिकों ने इस पर आपत्ति जताई।[१७७] उमर बिन साद ने महिलाओं को एक तंबू में इकट्ठा होने का आदेश दिया और उनमें से कुछ को उनकी सुरक्षा के लिए नियुक्त किया।[१७८]
शहीदो के शरीर पर घोड़े दौड़ाना
उमर बिन साद के आदेश पर और इब्न ज़ियाद के आदेश का पालन करने हेतू, कूफ़ा के सैनिकों के दस स्वयंसेवकों ने इमाम हुसैन (अ) के शरीर पर घोड़े दौड़ाए और उनकी छाती और पीठ की हड्डियों को कुचल डाला।[१७९] ये दस लोग निम्मलिखित है:
शहीदो के सरो को कूफ़ा भेजना
उमर बिन साद ने उसी दिन इमाम हुसैन (अ) के सिर को ख़ूली बिन यज़ीद अस्बही और हमीद बिन मुस्लिम अज़्दी के साथ उबैदुल्लाह बिन ज़ियाद के पास भेजा। उसने कर्बला के शहीदों के सिर उनके शरीर से जुदा करने का भी आदेश दिया जोकि 72 सिर थे उन्हें शिम्र बिन ज़िल-जोशन, कैस बिन अश्अस, अम्र बिन हज्जाज और अज़्रा बिन क़ैस के साथ कूफ़ा भेजा।[१८३]
अहले हरम को क़ैदी बनाना
- मुख़्य लेख: कर्बला के क़ैदी
इमाम सज्जाद (अ.) जो बीमार थे, हज़रत ज़ैनब (स) और बाकी बचे लोगों के साथ क़ैदी बना कर कूफ़ा मे इब्ने ज़ियाद और फिर सीरिया में यज़ीद के दरबार में भेजा गया।[१८४]
शहीदो का अंतिम संस्कार
उमर बिन साद के आदेश से कूफ़ा के सैनिकों के शवों का अंतिम संस्कार किया गया; लेकिन हुसैन (अ) और उनके अस्हाब की लाशें जमीन पर पड़ी रहीं।[१८५] मुहर्रम की 11वीं[१८६] या 13वीं तारीख[१८७] को कर्बला के शहीदों के अंतिम संस्कार का दिन बताया गया है। कुछ रिवायतो के अनुसार, उमर बिन साद और उसके साथियों की वापसी के बाद, बनी असद का एक समूह जो कर्बला के पास रहता था, कर्बला में प्रवेश किया और रात के समय जब वे दुश्मन से सुरक्षित थे, तो उन्होंने इमाम हुसैन (अ) और उनके अस्हाब की नमाज़े जनाज़ा अदा करके उन्हें दफ़्न किया।[१८८] एक रिवायत के अनुसार इमाम हुसैन (अ) के पार्थिव शरीर को इमाम सज्जाद (अ) की मौजूदगी में दफ़नाया गया था।[१८९]
संबंधित लेख
- इमाम हुसैन (अ) का आंदोलन
- आशूरा घटना की तारीख
- आशूरा की घटना (सांख्यिकी की दृष्टि से)
- मुहर्रम के महीने की घटनाएँ
- अरबईने हुसैनी
फ़ुटनोट
- ↑ इब्ने आसम, अल-फ़ुतूह, भाग 4, पेज 334
- ↑ इब्ने सअद, अल-तबक़ात उल-कुबरा, भाग 1, पेज 442; बलाज़री, अनसाब उल-अशराफ़, भाग 3, पेज 155; मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 32
- ↑ इब्ने आसम, अल-फ़ुतूह, भाग 4, पेज 291
- ↑ तबरी, तारीख़ उल-उमम वल मुलूक (तारीख़े तबरी), भाग 5, पेज 328
- ↑ अबू मख़नफ़ उल-अज़दि, मक़तालुल हुसैन (अ), पेज 3; तबरी, तारीख़ उल-उमम वल मुलूक (तारीख़े तबरी), भाग 5, पेज 338; इब्ने आसम, अल-फ़ुतूह, भाग 5, पेज 9-10; अलख़ुवारज़्मी, मक़तालुल हुसैन (अ), भाग 1, पेज 180; इब्ने असीर, अल-कामिल फ़ी तारीख़, भाग 4, पेज 14
- ↑ शेख़ सदूक़, अल-अमाली, पेज 152; इब्ने आसम, अल-फ़ुतूह, भाग 4, पेज 334; अल-ख़वारिज़्मी, मक़तलुल हुसैन (अ), भाग 1, पेज 185
- ↑ अबू मख़नफ़ उल-अज़दि, मक़तालुल हुसैन (अ), पेज 3-4; तबरी, तारीख़ उल-उमम वल मुलूक (तारीख़े तबरी), भाग 5, पेज 338-339; इब्ने आसम, अल-फ़ुतूह, भाग 4, पेज 10; अल-ख़वारिज़्मी, मक़तलुल हुसैन (अ), भाग 1, पेज 181; इब्ने असीर, अल-कामिल फ़ी तारीख़, भाग 4, पेज 14
- ↑ तबरी, तारीख़ उल-उमम वल मुलूक (तारीख़े तबरी), भाग 5, पेज 338-339; इब्ने आसम, अल-फ़ुतूह, भाग 5, पेज 10-11; ख़वारिज़्मी, मक़तलुल हुसैन (अ), भाग 1, पेज 181; इब्ने असीर, अल-कामिल फ़ी तारीख़, भाग 4, पेज 14
- ↑ इब्ने आसम, मक़तलुल हुसैन, पेज 18; सय्यद बिन ताऊस, अल-लुहूफ़, पेज 17
- ↑ ख़वारिज़्मी, मक़तालुल हुसैन (अ), भाग 1, पेज 183
- ↑ अल-जौज़ी, अल-मुनतज़िम फ़ी तारीखिल उमम वल मुलूक, भाग 5, पेज 323
- ↑ अबू मख़नफ़ उल-अज़दि, मक़तलुल हुसैन (अ), पेज 3-4; इब्ने आसम, मक़तलुल हुसैन, पेज 19
- ↑ शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 34
- ↑ तबरी, तारीख़ उल-उमम वल मुलूक (तारीख़े तबरी), भाग 5, पेज 341; शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 34
- ↑ इब्ने आसम, अल-फ़ुतूह, भाग 4, पेज 19; ख़वारिज़्मी, मक़तलुल हुसैन (अ), भाग 1, पेज 187
- ↑ इब्ने आसम, अल-फ़ुतूह, भाग 5, पेज 21-22; ख़वारिज़्मी, मक़तलुल हुसैन (अ), मकतबतुल मुफ़ीद, पेज 189
- ↑ बलाज़री, अनसाब उल-अशराफ़, भाग 3, पेज 160; तबरी, तारीख़ उल-उमम वल मुलूक (तारीख़े तबरी), भाग 5, पेज 341; शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 34
- ↑ इब्ने आसम, अल-फ़ुतूह, भाग 5, पेज 19-20; ख़वारिज़्मी, मक़तलुल हुसैन (अ), मकतबतुल मुफ़ीद, पेज 187
- ↑ इब्ने आसम, अल-फ़ुतूह, भाग 5, पेज 18-19
- ↑ दैनूरी, अखबार उल-तवाल, पेज 228; तबरी, तारीख़ उल-उमम वल मुलूक (तारीख़े तबरी), भाग 5, पेज 341; इब्ने असीर, अल-कामिल फ़ी तारीख़, भाग 4, पेज 16
- ↑ इब्ने आसम, अल-फ़ुतूह, भाग 5, पेज 228; सदूक़, अल-अमाली, पेज 152-153
- ↑ सदूक़, अल-अमाली, पेज 152
- ↑ इब्ने आसम, अल-फ़ुतूह, भाग 5, पेज 21; ख़वारिज़्मी, मक़तालुल हुसैन (अ), मकतबातुल मुफ़ीद, पेज 188-189
- ↑ इब्ने आसम, अल-फ़ुतूह, भाग 5, पेज 22; ख़वारिज़्मी, मक़तलुल हुसैन (अ), मकतबतुल मुफ़ीद, पेज 189
- ↑ इब्ने आसम, अल-फ़ुतूह, भाग 5, पेज 23
- ↑ बलाज़री, अनसाब उल-अशराफ़, भाग 3, पेज 160; तबरी, तारीख़ उल-उमम वल मुलूक (तारीख़े तबरी), भाग 5, पेज 381 शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 35
- ↑ बलाज़री, अनसाब उल-अशराफ़, भाग 3, पेज 156; इब्ने आसम, अल-फ़ुतूह, भाग 5, पेज 23; शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 36
- ↑ नक्शे वा मसीर हरकते कारवाने इमाम हुसैन (अ) अज़ मदीना बे मक्का वा कर्बला, मोअस्सेसा ए तहक़ीक़ात वा नश्रे मआरिफ़ अहले-बैत) बेनक़्ल अज़ किताब ऐटलस शिया
- ↑ बलाज़रि, अनसाब उल-अशराफ़, भाग 3, पेज 156; शेख मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 36; इब्ने असीर, अल-कामिल फी तारीख, भाग 4, पेज 20; ख़वारिज़्मी, मक़तालुल हुसैन (अ), मकतबातुल मुफ़ीद, भाग 1, पेज 190
- ↑ बलाज़रि, अनसाब उल-अशराफ़, भाग 3, पेज 157-158; इब्ने आसम, अल-फ़ुतूह, भाग 5, पेज 27-28; शेख मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 36-37; इब्ने असीर, अल-कामिल फी तारीख, भाग 4, पेज
- ↑ बलाज़रि, अनसाब उल-अशराफ़, भाग 3, पेज 158; तिबरि, तारीख उल-उमम वल मुलूक (तारीख़े तिबरि), भाग 5, पेज 352; इब्ने आसम, अल-फ़ुतूह, भाग 5, पेज 29; शेख मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 38
- ↑ तिबरि, तारीख उल-उमम वल मुलूक (तारीख़े तिबरि), भाग 5, पेज 353; इब्ने असीर, अल-कामिल फी तारीख, भाग 4, पेज 21
- ↑ दैनूरी, अखबार उल-तवाल, पेज 230; तिबरि, तारीख उल-उमम वल मुलूक (तारीख़े तिबरि), भाग 5, पेज 347; इब्ने आसम, अल-फ़ुतूह, भाग 5, पेज 39; इब्ने असीर, अल-कामिल फी तारीख, भाग 4, पेज 21
- ↑ बलाज़रि, अनसाब उल-अशराफ़, भाग 2, पेज 77; तिबरि, तारीख उल-उमम वल मुलूक (तारीख़े तिबरि), भाग 5, पेज 355
- ↑ तिबरि, तारीख उल-उमम वल मुलूक (तारीख़े तिबरि), भाग 5, पेज 347; मसऊदी, मुरूज उज़ ज़हब, भाग 3, पेज 54
- ↑ दैनूरी, अखबार उल-तवाल, पेज 231
- ↑ मुक़र्रम, अल-शहीद मुस्लिम बिन अक़ील, पेज 85-86
- ↑ तिबरि, तारीख उल-उमम वल मुलूक (तारीख़े तिबरि), भाग 5, पेज 348
- ↑ दैनूरी, अखबार उल-तवाल, पेज 235
- ↑ इब्ने क़तीबे दैनूरी, अल-इमामा वल सियासा, भाग 2, पेज 8
- ↑ दैनूरी, अखबार उल-तवाल, पेज 243; तिबरि, तारीख उल-उमम वल मुलूक (तारीख़े तिबरि), भाग 5, पेज 395
- ↑ दैनूरी, अखबार उल-तवाल, पेज 231
- ↑ तिबरि, तारीख उल-उमम वल मुलूक (तारीख़े तिबरि), भाग 5, पेज 359
- ↑ तिबरि, तारीख उल-उमम वल मुलूक (तारीख़े तिबरि), भाग 5, पेज 359-371
- ↑ तिबरि, तारीख उल-उमम वल मुलूक (तारीख़े तिबरि), भाग 5, पेज 350-374
- ↑ मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 53-63
- ↑ जाफ़रयान, ताअम्मुली दर नहज़त ए आशूरा, पेज 169; मुक़र्रम, अल-शहीद मुस्लिम बिन अक़ील, पेज 146
- ↑ जाफ़रयान, ताअम्मुली दर नहज़त ए आशूरा, पेज 172
- ↑ बलाज़रि, अनसाब उल अशराफ़, भाग 3, पेज 160; तिबरि, तारीख उल-उमम वल मुलूक (तारीख़े तिबरि), भाग 5, पेज 381; इब्ने आसम, अल-फ़ुतूह, भाग 5, पेज 81
- ↑ इब्ने आसम, अल-फ़ुतूह, भाग 5, पेज 69; ख्वारज़मी, मक़त अल-हुसैन (अ), मकता बतुल मुफ़ीद, पेज 220; इर्बेली, कश्फ़ उल-ग़ुम्मा, भाग 2, पेज 43
- ↑ इब्ने साद, अल-तबक़ात उल-कुबरा, भाग 1, पेज 451; इब्ने आसम, अल-फ़ुतूह, भाग 5, पेज 69
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- ↑ दैनूरी, अखबार उल-तवाल, पेज 245; बलाज़रि, अनसाब उल अशराफ़, भाग 3, पेज 167
- ↑ बलाज़रि, अनसाब उल अशराफ़, भाग 3, पेज 167; तिबरि, तारीख उल-उमम वल मुलूक (तारीख़े तिबरि), भाग 5, पेज 405; इब्ने मस्कूया, तजारुब उल-उमम, भाग 2, पेज 60
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- ↑ बलाज़रि, अनसाब उल अशराफ़, भाग 3, पेज 169; तिबरि, तारीख उल-उमम वल मुलूक (तारीख़े तिबरि), भाग 5, पेज 398; इब्ने असीर, अल-कामिल फ़ी तारीख़, भाग 4, पेज 43
- ↑ तिबरि, तारीख उल-उमम वल मुलूक (तारीख़े तिबरि), भाग 5, पेज 398; इब्ने असीर, अल-कामिल फ़ी तारीख़, भाग 4, पेज 42
- ↑ तिबरि, तारीख उल-उमम वल मुलूक (तारीख़े तिबरि), भाग 5, पेज 357; इब्ने आसम, अल-फ़ुतूह, भाग 5, पेज 37
- ↑ तिबरि, तारीख उल-उमम वल मुलूक (तारीख़े तिबरि), भाग 5, पेज 357; इब्ने आसम, अल-फ़ुतूह, भाग 5, पेज 37; ख़्वारिज़्मी, मकतालुल हुसैन (अ) मकतबा तुल मुफ़ीद, भाग 1, पेज 199
- ↑ तिबरि, तारीख उल-उमम वल मुलूक (तारीख़े तिबरि), भाग 5, पेज 357; इब्ने कसीर, अल-बिदाया वल-निहाया, भाग 8, पेज 157-158
- ↑ दैनूरी, अखबार उल-तवाल, पेज 231; तिबरि, तारीख उल-उमम वल मुलूक (तारीख़े तिबरि), भाग 5, पेज 357; इब्ने आसम, अल-फ़ुतूह, भाग 5, पेज 37; ख़्वारिज़्मी, मकतालुल हुसैन (अ) मकतबा तुल मुफ़ीद, भाग 1, पेज 199
- ↑ तिबरि, तारीख उल-उमम वल मुलूक (तारीख़े तिबरि), भाग 5, पेज 358
- ↑ तिबरि, तारीख उल-उमम वल मुलूक (तारीख़े तिबरि), भाग 5, पेज 358; इब्ने आसम, अल-फ़ुतूह, भाग 5, पेज 37; इब्ने असीर, अल-कामिल फ़ी तारीख़, भाग 4, पेज 41
- ↑ समावी, मुहम्मद, अबसार उल-ऐन फ़ी अनसारिल हुसैन, भाग 17, पेज 105
- ↑ बलाज़रि, अनसाब उल अशराफ़, भाग 3, पेज 166; तिबरि, तारीख उल-उमम वल मुलूक (तारीख़े तिबरि), भाग 5, पेज 401; इब्ने मस्कूया, तजारेब उल-उमम, भाग 2, पेज 62
- ↑ तिबरि, तारीख उल-उमम वल मुलूक (तारीख़े तिबरि), भाग 5, पेज 401; इब्ने मस्कूया, तजारेब उल-उमम, भाग 2, पेज 62
- ↑ तिबरि, तारीख उल-उमम वल मुलूक (तारीख़े तिबरि), भाग 5, पेज 400; इब्ने मस्कूया, तजारेब उल-उमम, भाग 2, पेज 63; मुफ़ीद अल-इरशाद, भाग 2, पेज 77-78; इब्ने असीर, अल-कामिल फ़ी तारीख़, भाग 4, पेज 46
- ↑ तिबरि, तारीख उल-उमम वल मुलूक (तारीख़े तिबरि), भाग 5, पेज 401-402; मुफ़ीद अल-इरशाद, भाग 2, पेज 78-79; इब्ने आसम, अल-फ़ुतूह, भाग 5, पेज 76; इब्ने मस्कूया, तजारेब उल-उमम, भाग 2, पेज 62; इब्ने असीर, अल-कामिल फ़ी तारीख़, भाग 4, पेज 47
- ↑ तिबरि, तारीख उल-उमम वल मुलूक (तारीख़े तिबरि), भाग 5, पेज 402; ख़्वारिज़्मी, मकतालुल हुसैन (अ) मकतबा तुल मुफ़ीद, भाग 1, पेज 232; इब्ने आसम, अल-फ़ुतूह, भाग 5, पेज 78; मुफ़ीद अल-इरशाद, भाग 2, पेज 79-80; इब्ने मस्कूया, तजारेब उल-उमम, भाग 2, पेज 62-63; इब्ने असीर, अल-कामिल फ़ी तारीख़, भाग 4, पेज 47
- ↑ तिबरि, तारीख उल-उमम वल मुलूक (तारीख़े तिबरि), भाग 5, पेज 402-403; मुफ़ीद अल-इरशाद, भाग 2, पेज 81; इब्ने मस्कूया, तजारेब उल-उमम, भाग 2, पेज 64; इब्ने असीर, अल-कामिल फ़ी तारीख़, भाग 4, पेज 48
- ↑ दैनूरी, अखबार उल-तवाल, पेज 251; बलाज़रि, अनसाब उल अशराफ़, भाग 3, पेज 171; तिबरि, तारीख उल-उमम वल मुलूक (तारीख़े तिबरि), भाग 5, पेज 404
- ↑ बग़दादी, मिरासेद उल इत्तेला अला अस्माइल अमकेनाते वल बुकाअ, भाग 1, पजे 243
- ↑ तिबरि, तारीख उल-उमम वल मुलूक (तारीख़े तिबरि), भाग 5, पेज 403
- ↑ तिबरि, तारीख उल-उमम वल मुलूक (तारीख़े तिबरि), भाग 5, पेज 408; इब्ने मस्कूया, तजारेब उल-उमम, भाग 2, पेज 67; इब्ने असीर, अल-कामिल फ़ी तारीख़, भाग 4, पेज 51
- ↑ मुफ़ीद अल-इरशाद, भाग 2, पेज 84; इब्ने मस्कूया, तजारेब उल-उमम, भाग 2, पेज 68; इब्ने असीर, अल-कामिल फ़ी तारीख़, भाग 4, पेज 52
- ↑ तिबरि, तारीख उल-उमम वल मुलूक (तारीख़े तिबरि), भाग 5, पेज 409; इब्ने मस्कूया, तजारेब उल-उमम, भाग 2, पेज 68; इब्ने असीर, अल-कामिल फ़ी तारीख़, भाग 4, पेज 52
- ↑ मुक़र्रम, मक़तलुल हुसैन (अ), दार उल कुतुब उल-इस्लामिया, पेज 192
- ↑ इब्ने आसम अलकूफ़ी, अल-फ़ुतूह, भाग 5, पेज 83; शेख मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 84; मुहम्मद बिन जुरैर अल-तिबरी, तारीख उल-उमम वल मुलूक (तारीखे अल-तिबरी), भाग 5, पेज 409; अबू अली मस्कूयह, तबारिब अल-उमम, भाग 2, पेज 68; अलि बिन अबी अल-करम इब्ने असीर, अल-कामिल फ़ी तारीख़, भाग 4, पेज 52; इब्ने शहर आशोब, मनाक़िबे आले अबी तालिब, भाग 4, पेज 96
- ↑ अबू हनीफ़ा, अहमद बिन दाऊद अल-दैनूरी, अल-अखबार अल-तुवाल, पेज 53
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- ↑ सय्यद इब्ने ताऊस, अल-लहूफ़, 1348 शमसी, पेज 80; इर्बेली, कश्फ़ुल ग़ुम्मा, 1381 हिजरी, भाग 2, पेज 47; इब्ने शहर आशोब, अल-मनाक़िब, 1379 शम्सी, भाग 4, पेज 97
- ↑ इब्ने आसम अलकूफ़ी, अल-फ़ुतूह, भाग 5, पेज 83; इब्ने असीर, पेज 52 फिताल नेशापूरी, पेज 181; शेख मुफ़ीद, अल-इरशाद, पेज 84; मुहम्मद बिन जुरैर अल-तिबरी, तारीख उल-उमम वल मुलूक (तारीखे अल-तिबरी), भाग 5, पजे 409; अबू अली मस्कूयह, तबारिब अल-उमम, भाग 2, पेज 68; इब्ने शहर आशोब, मनाक़िबे आले अबी तालिब, भाग 4, पेज 96
- ↑ दैनूरी, अखबार उल-तवाल, पेज 53
- ↑ लइक़ अला अलसेनतेहिम का अर्थ है कि लोग धर्म को ऐसी चीज़ समझते है कि जिसके स्वाद का आभास चख कर होता है और जब तक उसके स्वाद का आभास करते है उसको पास रखते है जब परिक्षा का समय आता है तो धर्मीयो की संख्या कम हो जाती है। [www۔ghorany۔com/karbala1۔htm| खत़्मे क़ुरआन वेबसाइट
- ↑ बिहार उल-अनवार, भाग 44, हदीस 383, भाग 75 , पेज 116; तोहफ़ुल उक़ूल के हवाले से अल-मुसवी अल-मुक़र्रम, पेज 193
- ↑ बिहार उल-अनवार, भाग 44, हदीस 383, भाग 75, पेज 116; तोहफ़ुल उक़ूल के हवाले से अल-मुसवी अल-मुक़र्रम, पेज 193
- ↑ मुहम्मद बिन जुरैर तबरी, तारीख उल-उमम वल मुलूक (तारीख तबरी), भाग 5, पजे 409; अल-कूफ़ी, इब्ने आसिम, अल-फ़ुतूह, भाग 5, पेज 83; शेख मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 84
- ↑ इब्ने आसिम, अल-फ़ुतूह, भाग 5, पेज 84; अल-मुवफ़्फ़क़ बिन अहमद अल-खुवारिज़्मी, मक़तलुल हुसैन, भाग 1, पेज 239
- ↑ इब्ने आसिम, अल-फ़ुतूह, भाग 5, पेज 85; अल-मुवफ़्फ़क़ बिन अहमद अल-खुवारिज़्मी, मक़तलुल हुसैन, भाग 1, पेज 239; इब्ने शहर आशोब, मनाक़िबे आले अबी तालिब, भाग 4, पेज 98
- ↑ अबू हनीफ़ा अहमद बिन दाऊद अलदैनूरी, अल-अखबार अल-तुवाल, पेज 253; अहमद बिन याह्या अल-बलाज़री, अनसाबुल अशराफ़, भाग 3, पेज 176; अल-तिबरी, तारीख उल-उमम वल मुलूक, पेज 409
- ↑ अल-दैनूरी, अख़बार उत-तुवाल, 1368 शम्सी, पेज 253; बलाज़ुरी, अनसाब उल-अशराफ़, 1417 हिजरी, भाग 3, पेज 176; तबरी, तारीखुल उमम वल मुलूक, 1967 ई, भाग 5, पेज 409
- ↑ तबरी, तारीखुल उमम वल मुलूक, 1967 ई, भाग 5, पेज 410; इब्ने आसिम, अल-फ़ुतूह, 1411 हिजरी, भाग 5, पेज 86; ख़ुवारिज़्मी, मक़तलुल हुसैन, मकतबतुल मुफ़ीद, पेज 239-240
- ↑ अल-दैनूरी, अख़बार उत-तुवाल, 1368 शम्सी, पेज 253; बलाज़ुरी, अनसाब उल-अशराफ़, 1417 हिजरी, भाग 3, पेज 176; तबरी, तारीखुल उमम वल मुलूक, 1967 ई, भाग 5, पेज 409
- ↑ तबरी, तारीखुल उमम वल मुलूक, 1967 ई, भाग 5, पेज 410; इब्ने आसिम, अल-फ़ुतूह, 1411 हिजरी, भाग 5, पेज 86; मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1399 हिजरी, भाग 2, पेज 84-85
- ↑ तिबरी, तारीख उल-उमम वल मुलूक, 1967ई, भाग 5, पेज 410; इब्ने आसिम, अल-फ़ुतूह, 1411 हिजरी, भाग 5 पेज 86-87; मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1399 हिजरी, भाग 2, पेज 85; ख़ुवारिज़्मी, मकतलुल हुसैन, मकतब अतुल मुफ़ीद, पेज 240
- ↑ अल-दैनूरी, अख़बार उत-तुवाल, 1368 शम्सी, पेज 253
- ↑ दैनूरी, अख़बार उत-तुवाल, 1368 शम्सी, पेज 253-254; तबरी, तारीखुल उमम वल मुलूक, 1967 ई, भाग 5, पेज 411; अल-इरशाद, 1399 हिजरी, भाग 2, पेज 85-86
- ↑ तिबरी, तारीखुल उमम वल मुलूक, 1967 ई, भाग 5, पेज 411; मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1399 हिजरी, भाग 2, पेज 86; ख़ुवारिज़्मी, मकतलुल हुसैन, मकतब अतुल मुफ़ीद, पेज 241
- ↑ तिबरी, तारीखुल उमम वल मुलूक, 1967 ई, भाग 5, पेज 411; मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1399 हिजरी, भाग 2, पेज 86
- ↑ बलाज़ुरी, अनसाब उल-अशराफ़, 1417 हिजरी, भाग 3, पेज 178; इब्ने आसिम, अल-फ़ुतूह, 1411 हिजरी, भाग 5 पेज 89; ख़ुवारिज़्मी, मकतलुल हुसैन, मकतब अतुल मुफ़ीद, पेज 242
- ↑ इब्ने साद, अल-तबक़ात उल-कुबरा, 1414 हिजरी, भाग 1, पेज 466; बलाज़ुरी, अनसाब उल-अशराफ़, 1417 हिजरी, भाग 3, पेज 178
- ↑ इब्ने साद, अल-तबक़ात उल-कुबरा, 1414 हिजरी, भाग 1, पेज 466
- ↑ बलाज़ुरी, अनसाब उल-अशराफ़, 1417 हिजरी, भाग 3, पेज 178
- ↑ बलाज़ुरी, अनसाब उल-अशराफ़, 1417 हिजरी, भाग 3, पेज 179
- ↑ दैनूरी, अख़बार उत-तुवाल, 1368 शम्सी, पेज 254-255; बलाज़ुरी, अनसाब उल-अशराफ़, 1417 हिजरी, भाग 3, पेज 179
- ↑ अल-दैनूरी, अख़बार उत-तुवाल, 1368 शम्सी, पेज 254; बलाज़ुरी, अनसाब उल-अशराफ़, 1417 हिजरी, भाग 3, पेज 178
- ↑ दैनूरी, अख़बार उत-तुवाल, 1368 शम्सी, पेज 254; इब्ने आसिम, अल-फ़ुतूह, 1411 हिजरी, भाग 5 पेज 89; ख़ुवारिज़्मी, मकतलुल हुसैन, मकतब अतुल मुफ़ीद, पेज 242
- ↑ इब्ने आसिम, अल-फ़ुतूह, 1411 हिजरी, भाग 5 पेज 89; ख़ुवारिज़्मी, मकतलुल हुसैन, मकतब अतुल मुफ़ीद, पेज 242; इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब, 1379 हिजरी, भाग 4, पेज 98
- ↑ इब्ने साद, अल-तबक़ात उल-कुबरा, 1414 हिजरी, भाग 1, पेज 466
- ↑ इब्ने आसिम, अल-फ़ुतूह, 1411 हिजरी, भाग 5 पेज 89; ख़ुवारिज़्मी, मकतलुल हुसैन, मकतब अतुल मुफ़ीद, पेज 242
- ↑ अल-दैनूरी, अख़बार उत-तुवाल, 1368 शम्सी, पेज 254; बलाज़ुरी, अनसाब उल-अशराफ़, 1417 हिजरी, भाग 3, पेज 178; इब्ने आसिम, अल-फ़ुतूह, 1411 हिजरी, भाग 5 पेज 89; ख़ुवारिज़्मी, मकतलुल हुसैन, मकतब अतुल मुफ़ीद, पेज 242
- ↑ बलाज़ुरी, अनसाब उल-अशराफ़, 1417 हिजरी, भाग 3, पेज 178; इब्ने आसिम, अल-फ़ुतूह, 1411 हिजरी, भाग 5 पेज 89; ख़ुवारिज़्मी, मकतलुल हुसैन, मकतब अतुल मुफ़ीद, पेज 242
- ↑ सुदूक़, अल-अमाली, 1417 हिजरी, पेज 155
- ↑ अल-दैनूरी, अख़बार उत-तुवाल, 1368 शम्सी, पेज 254; बलाज़ुरी, अनसाब उल-अशराफ़, 1417 हिजरी, भाग 3, पेज 179
- ↑ बलाज़ुरी, अनसाब उल-अशराफ़, 1417 हिजरी, भाग 3, पेज 179
- ↑ इब्ने आसिम, अल-फ़ुतूह, 1411 हिजरी, भाग 5 पेज 90; ख़ुवारिज़्मी, मकतलुल हुसैन, मकतब अतुल मुफ़ीद, पेज 242-243; इब्ने नेमा ए हिल्ली, मसीर उल-एहज़ान, 1406 हिजरी, पेज 50
- ↑ शेअरानी, मदूस सुजूम, तरजुमा नफ़्सुल महमूम, 1374 हिजरी, पेज 109
- ↑ अल-दैनूरी, अख़बार उत-तुवाल, 1368 शम्सी, पेज 255; बलाज़ुरी, अनसाब उल-अशराफ़, 1417 हिजरी, भाग 3, पेज 180; तिबरी, तारीखुल उमम वल मुलूक, 1967 ई, भाग 5, पेज 412; मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1399 हिजरी, भाग 2, पेज 86
- ↑ देखेः बलाज़ुरी, अनसाब उल-अशराफ़, 1417 हिजरी, भाग 3, पेज 181; तिबरी, तारीखुल उमम वल मुलूक, 1967 ई, भाग 5, पेज 412-413; इस्फहानी, मकातेलुत तालेबीन, दार उल-मारफ़ा, पेज 117-118; ख़ुवारिज़्मी, मकतलुल हुसैन, मकतब अतुल मुफ़ीद, पेज 242
- ↑ तिबरी, तारीखुल उमम वल मुलूक, 1967 ई, भाग 5, पेज 413; इब्ने आसिम, अल-फ़ुतूह, 1411 हिजरी, भाग 5 पेज 92-93; इब्ने मस्कूयह, तजारेबुल उमम, 1379 शम्सी, भाग 2, पेज 70-71; ख़ुवारिज़्मी, मकतलुल हुसैन, मकतब अतुल मुफ़ीद, पेज 245
- ↑ ख़ुवारिज़्मी, मकतलुल हुसैन, मकतब अतुल मुफ़ीद, पेज 245; इब्ने मस्कूयह, तजारेबुल उमम, 1379 शम्सी, भाग 2, पेज 71-72
- ↑ तिबरी, तारीखुल उमम वल मुलूक, 1967 ई, भाग 5, पेज 414; इब्ने मस्कूयह, तजारेबुल उमम, 1379 शम्सी, भाग 2, पेज 71
- ↑ तिबरी, तारीखुल उमम वल मुलूक, 1967 ई, भाग 5, पेज 414; मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1399 हिजरी, भाग 2, पेज 87; इब्ने मस्कूयह, तजारेबुल उमम, 1379 शम्सी, भाग 2, पेज 71; इब्ने असीर, अल-कामिल फ़ी तारीख़, 1965 ई, भाग 4, पेज 55
- ↑ बलाज़ुरी, अनसाब उल-अशराफ़, 1417 हिजरी, भाग 3, पेज 182; तिबरी, तारीखुल उमम वल मुलूक, 1967 ई, भाग 5, पेज 414; मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1399 हिजरी, भाग 2, पेज 87; इब्ने मस्कूयह, तजारेबुल उमम, 1379 शम्सी, भाग 2, पेज 71-72
- ↑ बलाज़ुरी, अनसाब उल-अशराफ़, 1417 हिजरी, भाग 3, पेज 183; तिबरी, तारीखुल उमम वल मुलूक, 1967 ई, भाग 5, पेज 415; इब्ने आसिम, अल-फ़ुतूह, 1411 हिजरी, भाग 5 पेज 93; मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1399 हिजरी, भाग 2, पेज 88
- ↑ इब्ने साद, अल-तबक़ात उल-कुबरा, 1414 हिजरी, भाग 1, पेज 466; इब्ने आसिम, अल-फ़ुतूह, 1411 हिजरी, भाग 5 पेज 94; इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब, 1379 हिजरी, भाग 4, पेज 98
- ↑ बलाज़री, अनसाब उल-अशराफ़, 1417 हिजरी, भाग 3, पेज 183; तबरी, तारीखुल उमम वल मुलूक, 1967 ई, भाग 5, पेज 415; मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1399 हिजरी, भाग 2, पेज 89; इब्ने मस्कूयह, तजारेबुल उमम, 1379 शम्सी, भाग 2, पेज 73; इब्ने असीर, अल-कामिल फ़ी तारीख़, 1965 ई, भाग 4, पेज 56
- ↑ तिबरी, तारीखुल उमम वल मुलूक, 1967 ई, भाग 5, पेज 415; ख़ुवारिज़्मी, मकतलुल हुसैन, मकतब अतुल मुफ़ीद, पेज 246; इब्ने असीर, अल-कामिल फ़ी तारीख़, 1965 ई, भाग 4, पेज 56
- ↑ तबरी, तारीखुल उमम वल मुलूक, 1967 ई, भाग 5, पेज 415; इब्ने आसिम, अल-फ़ुतूह, 1411 हिजरी, भाग 5 पेज 93-94; ख़ुवारिज़्मी, मकतलुल हुसैन, मकतब अतुल मुफ़ीद, पेज 246; इब्ने असीर, अल-कामिल फ़ी तारीख़, 1965 ई, भाग 4, पेज 56
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स्रोत
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- दैनूरी, अहमद बिन दाऊद, अल-अखबार उत तुवाल, शोधः अब्दुल मुनइम आमिर मुराजेआ जमालुद्दीन शियाल, क़ुम, मनशूराते रज़ी, 1368 शम्सी
- समावी, मुहम्मद, अब्सार उल-ऐन फ़ी अनसारिल हुसैन (अ), शोधः मुहम्मद जाफ़र अल-तब्सी, मरकज़ अल-दिरासात अल-इस्लामीया लेमुमस्सालिल वली अल-फ़क़ीह फ़ी हरस सौरातिल इस्लामीया
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- सुदूक़, मुहम्मद बिन अली बिन बाबवैह, अल-अमाली, क़ुम, मोअस्सेसा अल-बेसा, 1417 हिजरी
- तबरसी, आलाम उल वरा बे आलामिल हुदा, तेहरान, दार उल कुतुब उल इस्लामीया, 1390 हिजरी
- तबरसी, फ़ज़्ल बिन हसन, आलाम उल वरा बे आलामिल हुदा, क़ुम, मोअस्सेसा आले अल-बैत
- तिबरी, मुहम्मद बिन जुरैर, तारीख उल उमम वल मुलूक (तारीखे तिबरी), शोधः मुहम्मद अबुल फ़ज़्ल इब्राहीम, बैरूत, दार उत तुरास, 1967 ई
- तुरैही, फ़ख़्रूद्दीन, मजमा उल बहरैन, तेहरान, मुर्तज़वी, तीसरा प्रकाशन, 1375 शम्सी
- अस्करी, सय्यद मुर्तुज़ा, मआलेमुल मद-रसातैन, बैरूत, मोअस्सेसा नौमान, 1401 हिजरी
- फ़िताले नेशापूरी, मुहम्मद बिन हसन, रौज़ातुल वाएज़ीन, क़ुम, नश्रे रज़ी
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- नूरी, मिर्ज़ा हुसैन, मुस्तदरक उल-वसाइल वा मुस्तंबेतुल मसाइल, तहक़ीक वा तस्हीहः गिरोहे पुज़ुहिश मोअस्सेसा आले अल-बैत, बैरूत, मोअस्सेसा आले अल-बैत (अ), 1408 हिजरी
- याक़ूबी, अहमद बिन अबिल-याक़ूब, तारीख़े याक़ूबी, बैरूत, दारे सादिर