सूरा ए निसा

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(सूरह नेसा से अनुप्रेषित)
सूरा ए निसा
सूरा ए निसा
सूरह की संख्या4
भाग4,5 और 6
मक्की / मदनीमदनी
नाज़िल होने का क्रम92
आयात की संख्या176
शब्दो की संख्या3764
अक्षरों की संख्या16328


सूर ए निसा (अरबी: سورة النساء) चौथा सूरह है और क़ुरआन के मदनी सूरों में से एक है, जो चौथे से छठे भाग में स्थित है। इस सूरह को निसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस सूरह में महिलाओं से संबंधित कई न्यायशास्त्रीय अहकाम का उल्लेख किया गया है। सूर ए निसा विवाह और विरासत के अहकाम के बारे में अधिक बात करता है, और इसके अलावा यह नमाज़, जिहाद और शहादत के अहकाम से संबंधित है। साथ ही, इस सूरह में अहले किताब और पूर्ववर्तियों के इतिहास के बारे में संक्षिप्त बातें हैं, और भगवान ने मुनाफ़िकों के बारे में चेतावनी दी है।

सूर ए निसा की प्रसिद्ध आयतों में से एक आयत 59 है, जिसे आय ए ऊलिल अम्र के रूप में जाना जाता है और इसमें "ऊलिल अम्र" का पालन करने का आदेश दिया गया है। हदीसों के अनुसार "ऊलिल अम्र" का मतलब शियों के इमाम हैं। इस सूरह की अन्य प्रसिद्ध आयतों में आय ए तयम्मुम और आय ए महारिम हैं। सूर ए निसा के सम्बंध में, पैग़म्बर (स) से वर्णित हुआ है कि जो कोई भी इस सूरह को पढ़ता है, तो यह ऐसा होगा जैसे उसने सभी विश्वासियों के विरासत के बराबर जो वो छोड़ के गए हैं, दान दिया है, और उसे एक ग़ुलाम को मुक्त करने जैसा इनाम दिया जाएगा, और वह बहुदेववाद से मुक्त होगा और ईश्वर की कृपा से, वह उन लोगों में से होगा जिन्हें ईश्वर ने अतीत में माफ़ कर दिया है।

परिचय

  • नामकरण

इस सूरह को सूर ए निसा कहा जाता है क्योंकि इस सूरह में "निसा: महिलाएं" शब्द का बीस से अधिक बार उपयोग किया गया है और महिलाओं से संबंधित अधिकांश न्यायशास्त्रीय अहकाम इसी सूरह में पाए जाते हैं। इस सूरह का दूसरा नाम निसा अल कुबरा है, जिसका अर्थ है महिलाओं का बड़ा सूरह, क्योंकि सूर ए तलाक़ को "निसा अल सुग़रा" या "निसा अल क़ुसरा" कहा जाता है, जिसका अर्थ है महिलाओं का छोटा सूरह।[१]

  • नाज़िल होने का स्थान और क्रम

सूर ए निसा मदनी सूरों में से एक है और नाज़िल होने के क्रम में यह 92वां सूरह है जो पैग़म्बर (स) पर नाज़िल हुआ था। यह सूरह क़ुरआन की वर्तमान व्यवस्था में चौथा सूरा है[२] और यह क़ुरआन के चौथे से छठे भाग में स्थित है।

  • आयतों की संख्या एवं अन्य विशेषताएँ

सूर ए निसा में 176 आयतें, 3764 शब्द और 16328 अक्षर हैं। मात्रा के संदर्भ में, यह सूरह सात लंबे सूरों (सब्ओ तेवाल) में से एक है और सूर ए बक़रा के बाद, यह क़ुरआन का सबसे लंबा सूरह है। हालाँकि सूर ए निसा क़ुरआन के तीन भागों में स्थित है, लेकिन मात्रा के संदर्भ से यह क़ुरआन के लगभग डेढ़ अध्याय पर है।[३]

सामग्री

तफ़सीर अल मीज़ान में अल्लामा तबातबाई के अनुसार, सूर ए निसा विवाह के अहकाम को व्यक्त करता है, जैसे "किसी की कितनी पत्नियाँ हो सकती हैं" और "किससे शादी नहीं की जा सकती"। यह सूरह "विरासत" के विषयों पर भी चर्चा करता है और इसकी कुछ आयतें, नमाज़, जिहाद, अदालत में गवाही और व्यापार जैसे अन्य मामलों से संबंधित है, और अहले किताब के बारे में संक्षेप में बात करता है[४] इस सूरह में उठाए गए अन्य विषय इस प्रकार हैं: विश्वास (ईमान) और न्याय (अदालत) का आह्वान, पूर्ववर्तियों के इतिहास का एक हिस्सा, समाज के सदस्यों के आपसी अधिकार और कर्तव्य, काफ़िरों के खिलाफ़ जिहाद और पाखंडियों के बारे में चेतावनी।[५]

ऐतिहासिक कहानियाँ और रिवायतें

  • मनुष्य को गुमराह करने की शैतान की शपथ (आयत 118-120)।
  • बनी इसराइल का विद्रोह (मूसा से ईश्वर को दिखाने का अनुरोध करना, बछड़े की पूजा करना, मीसाक़े तूर, शनिवार को अनाक्रमण संधि, नबियों को हत्या, मरियम पर तोहमत लगाना, ईसा की हत्या का दावा करना) (आयत 153-157)।

प्रसिद्ध आयतें

सूर ए निसा की कई आयतें, जैसे आय ए क़िन्तार, आय ए महारिम, आय ए ऊलुल अम्र, आय ए अल रेजालो क़व्वामूना अला अल नेसा, और आय ए नफ़ी ए सबील, प्रसिद्ध आयत मानी जाती हैं।

  • आय ए क़िन्तार
मुख्य लेख: आय ए क़िन्तार

وَإِنْ أَرَ‌دتُّمُ اسْتِبْدَالَ زَوْجٍ مَّكَانَ زَوْجٍ وَآتَيْتُمْ إِحْدَاهُنَّ قِنطَارً‌ا فَلَا تَأْخُذُوا مِنْهُ شَيْئًا ۚأَتَأْخُذُونَهُ بُهْتَانًا وَإِثْمًا مُّبِينًا

थ्री डी में सूर ए निसा की आयत 78 का एक भाग

(व इन अरत्तुमुस तिब्दाला ज़ौजिम मकाना ज़ौजिन व आतैतुम एहदाहुन्ना क़िन्तारन फ़ला तअख़ोज़ू मिन्हो शैअन अताख़ोज़ूनहू बोहतानन व इस्मम मोबीना)

अनुवाद: और यदि तुम [अपनी पिछली] पत्नी के बदले [दूसरी] पत्नी लेना चाहते हो, और तुमने उनमें से एक को बहुत सारा धन दिया हो, तो उससे कुछ भी वापस मत लेना। क्या तुम उस [संपत्ति] को खुले पाप के रूप में लेना चाहते हो?)

सूर ए निसा की आयत 20 तलाक़ और मेहर के भुगतान न करने या इसे वापस लेने का औचित्य साबित करने के लिए महिलाओं पर शुद्धता के खिलाफ़ कृत्यों का आरोप लगाने से सख्ती से मना करती है और निंदा करती है।[६] इस आयत में महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के अलावा, महिलाओं के संपत्ति अधिकारों और ज़्यादा मेहर की अनुमति के हुक्म का भी उल्लेख किया गया है।[७]

  • आय ए महारिम
मुख्य लेख: आय ए महारिम

حُرِّ‌مَتْ عَلَيْكُمْ أُمَّهَاتُكُمْ وَبَنَاتُكُمْ وَأَخَوَاتُكُمْ وَعَمَّاتُكُمْ وَخَالَاتُكُمْ وَبَنَاتُ الْأَخِ وَبَنَاتُ الْأُخْتِ وَأُمَّهَاتُكُمُ اللَّاتِي أَرْ‌ضَعْنَكُمْ وَأَخَوَاتُكُم مِّنَ الرَّ‌ضَاعَةِ وَأُمَّهَاتُ نِسَائِكُمْ وَرَ‌بَائِبُكُمُ اللَّاتِي فِي حُجُورِ‌كُم مِّن نِّسَائِكُمُ اللَّاتِي دَخَلْتُم بِهِنَّ فَإِن لَّمْ تَكُونُوا دَخَلْتُم بِهِنَّ فَلَا جُنَاحَ عَلَيْكُمْ وَحَلَائِلُ أَبْنَائِكُمُ الَّذِينَ مِنْ أَصْلَابِكُمْ وَأَن تَجْمَعُوا بَيْنَ الْأُخْتَيْنِ إِلَّا مَا قَدْ سَلَفَ ۗ إِنَّ اللَّـهَ كَانَ غَفُورً‌ا رَّ‌حِيمًا

(हुर्रेमत अलैकुम उम्महातोकुम व बनातोकुम व अख़्वातोकुम व अम्मातोकुम व ख़ालातोकुम व बनातुल अख़े व बनातुल उख़्ते व उम्माहातोकुम अल्लाती अर्ज़अनकुम व अख़वातोकुम मिनर रज़ाअते व उम्महातो नेसाएकुम व रबाएबोकुम अल्लाती फ़ी होजूरेकुम मिन नेसाएकुम अल्लाती दख़ल्तुम बे हिन्ना फ़इन लम तकूनू दख़ल्तुम बे हिन्ना फ़ला जोनाहा अलैकुम व हलाएलो अब्नाएकुम अल्लज़ीना मिन अस्लाबेकुम व अन तजमऊ बैनल उख़तैने इल्ला मा क़द सलफ़ इन्नल्लाहा काना ग़फ़ूरन रहीमा) (आयत 23)

अनुवाद: [इनसे विवाह] तुम्हारे लिए वर्जित है: तुम्हारी माताएं, और तुम्हारी बेटियां, और तुम्हारी बहनें, और तुम्हारी बुआएँ (फूफी), और तुम्हारी मौसियां (खाला), और तुम्हारे भाइयों की बेटियां, और तुम्हारी बहनों की बेटियां, और तुम्हारी माताएं जिन्होंने तुम्हें दूध पिलाया, और तुम्हारी रेज़ाई बहनें, और तुम्हारी पत्नियों की माताएं, और तुम्हारी पत्नियों की बेटियां जो तुम्हारी गोद में पली थीं और तुम उन पत्नियों के साथ संभोग किया है - यदि तुम ने उनके साथ संभोग नहीं किया है, तो तुम पर कोई पाप नहीं है [उनकी बेटियों से विवाह करना] - और तुम्हारे बेटों की पत्नियाँ जो तुम्हारे पीछे और पीढ़ी से हैं और दो बहनों का एक दूसरे के साथ इकट्ठा होना - सिवाय इसके कि जो कुछ अतीत में हुआ हो - ईश्वर क्षमाशील, दयालु है।

सूर ए निसा की तेईसवीं आयत में कुछ रिश्तेदारों के साथ विवाह की हुरमत का उल्लेख किया गया है। महारिम (बहुवचन महरम) एक न्यायशास्त्रीय शब्द है जिसका अर्थ है ऐसे रिश्तेदार जिनके साथ विवाह वर्जित (हराम) है। महारिम को, महरमियत (वंश, विवाह और रेज़ाअ या स्तनपान) के कारणों के आधार पर नस्बी, सबबी और रेज़ाई में विभाजित किया गया है।[८]

  • आय ए तेजारत
मुख्य लेख: आय ए तेजारत

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تَأْكُلُوا أَمْوَالَكُم بَيْنَكُم بِالْبَاطِلِ إِلَّا أَن تَكُونَ تِجَارَ‌ةً عَن تَرَ‌اضٍ مِّنكُمْ ۚ وَلَا تَقْتُلُوا أَنفُسَكُمْ ۚ إِنَّ اللَّـهَ كَانَ بِكُمْ رَ‌حِيمًا

(या अय्योहल लज़ीना आमनू ला तअकोलू अम्वालकुम बैनकुम बिल बातिले इल्ला अन तकूना तेजारतन अन तराज़िन मिन्कुम वला तक़्तोलू अन्फ़ोसकुम इन्नल्लाहा काना बेकुम रहीमा) (आयत 29)

अनुवाद: ऐ ईमान लाने वालों, एक-दूसरे की संपत्ति अन्यायपूर्वक मत लो - जब तक कि आदान-प्रदान आपसी सहमति से न हो - और अपने आप को मत मारो (आत्महत्या न करो), क्योंकि ईश्वर हमेशा तुम्हारे प्रति दयालु है।

सूर ए निसा की आयत 29, जो ग़ैर-शरिया वित्तीय लेनदेन और आदान-प्रदान के निषेध (हराम होने) को संदर्भित करती है। टिप्पणीकारों का मानना है कि इस्लाम में लेनदेन पार्टियों (दोनों तरफ़) की सहमति के साथ और सही तरीक़े से होना चाहिए। कुछ लोगों के अनुसार लेन-देन में संतुष्टि का अर्थ पार्टियों का एक-दूसरे से अलग हो जाना अथवा लेन-देन के विकल्प का समाप्त हो जाना है।[९] इस आयत में आत्महत्या और दूसरों की हत्या को भी मना किया गया है।[१०]

  • आय ए तयम्मुम
मुख्य लेख: आय ए तयम्मुम और सूर ए निसा की आयत 43

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تَقْرَ‌بُوا الصَّلَاةَ وَأَنتُمْ سُكَارَ‌ىٰ حَتَّىٰ تَعْلَمُوا مَا تَقُولُونَ وَلَا جُنُبًا إِلَّا عَابِرِ‌ي سَبِيلٍ حَتَّىٰ تَغْتَسِلُوا ۚ وَإِن كُنتُم مَّرْ‌ضَىٰ أَوْ عَلَىٰ سَفَرٍ‌ أَوْ جَاءَ أَحَدٌ مِّنكُم مِّنَ الْغَائِطِ أَوْ لَامَسْتُمُ النِّسَاءَ فَلَمْ تَجِدُوا مَاءً فَتَيَمَّمُوا صَعِيدًا طَيِّبًا فَامْسَحُوا بِوُجُوهِكُمْ وَأَيْدِيكُمْ ۗ إِنَّ اللَّـهَ كَانَ عَفُوًّا غَفُورً‌ا

(या अय्योहल लज़ीना आमनू ला तक़रबुस्सलाता व अन्तुम सोकारा हत्ता तअलमू मा तक़ूलूना वला जोनोबन इल्ला आबेरी सबीलिन हत्ता तग़्तसेलू व इन कुन्तुम मर्ज़ा अव अला सफ़रिन अव जाआ अहदुन मिन्कुम मिनल गाएते अव लामस्तुमुन नेसाआ फ़लम तजेदू माअन फ़तयम्ममू सईदन तय्येबन फ़स्महू बेवोजूहेकुम व एयदीकुम इन्नल्लाहा काना अफ़ूवन ग़फ़ूरा) (आयत 43)

अनुवाद: ऐ ईमान लाने वालों, नशे में नमाज़ के पास न जाओ जब तक कि तुम्हें पता न हो कि तुम क्या कह रहे हो; और जनाबत की हालत में भी नमाज़ में न जाओ –मगर यह कि तुम राहगीर न हो- जब तक स्नान न कर लो; और यदि तुम बीमार हो, या यात्रा पर हो, या तुम में से किसी को शौच की आवश्यकता हो, या यदि तुम स्त्रियों के साथ संभोग करते हो और पानी न पाते हो, तो पाक मिट्टी पर तयम्मुम करो और अपने चेहरे और हाथों को मस्ह कर लो; ईश्वर दयालु और क्षमाशील है।

सूरह की आयत 43 में तयम्मुम के अहकाम का उल्लेख किया गया है। इसके अनुसार, यदि पानी शरीर के लिए हानिकारक हो या पानी तक पहुंच संभव नहीं हो, तो वुज़ू या ग़ुस्ल के बजाय तयम्मुम किया जा सकता है।[११]

  • आय ए ऊलिल अम्र
मुख्य लेख: आय ए ऊलिल अम्र

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا أَطِيعُوا اللَّـهَ وَأَطِيعُوا الرَّ‌سُولَ وَأُولِي الْأَمْرِ‌ مِنكُمْ ۖ فَإِن تَنَازَعْتُمْ فِي شَيْءٍ فَرُ‌دُّوهُ إِلَى اللَّـهِ وَالرَّ‌سُولِ إِن كُنتُمْ تُؤْمِنُونَ بِاللَّـهِ وَالْيَوْمِ الْآخِرِ‌ ۚ ذَٰلِكَ خَيْرٌ‌ وَأَحْسَنُ تَأْوِيلًا

(या अय्योहल लज़ीना आमनू अतीउल्लाह व अतीउर्रसूल व उलिल अम्रे मिन्कुम फ़इन तनाज़अतुम फ़ी शयइन फ़रुद्दूहो एल्लाहे वर्रसूले इन कुन्तुम तुअमेनूना बिल्लाहे वल यौमिल आखेरे ज़ालेका ख़ैरुन व अहसनो तअवीलन) (आयत 59)

अनुवाद: ऐ ईमान लाने वालों, ईश्वर की एताअत करो और पैग़म्बर और औलिया ए अम्र का पालन करो; इसलिए जब भी तुम्हें किसी [धार्मिक] मामले में मतभेद मिले, यदि तुम ईश्वर और अंतिम दिन पर विश्वास करते हो, तो इसे ईश्वर की [पुस्तक] और [उसके] पैग़म्बर की [हदीसों] पर अर्ज़ा (सामने रखो) करो, यह बेहतर है और इसका बेहतर परिणाम है।

इस सूरह की आयत 59 विश्वासियों (मोमिनों) को ईश्वर, ईश्वर के पैग़म्बर (स) और ऊलिल अम्र के पालन (एताअत) करने का निर्देश देती है। शिया टिप्पणीकार[१२] और कुछ सुन्नी जैसे फ़ख़्रे राज़ी[१३] मानते हैं कि यह आयत ऊलिल अम्र की इस्मत को इंगित करती है। कई कथनों के आधार पर,[१४] शियों को मानना है कि "उलिल अम्र" का मतलब आइम्मा ए अतहार हैं।[१५]

  • आय ए हिज़्र
मुख्य लेख: आय ए हिज़्र

یا أَیهَا الَّذینَ آمَنُوا خُذُوا حِذْرَکُمْ فَانْفِرُوا ثُباتٍ أَوِ انْفِرُوا جَمیعاً

(या अय्योहल लज़ीना आमनू ख़ुज़ू हिज़्रकुम फ़न्फ़ेरू सोबातिन अविन्फ़ेरू जमीअन) (आयत 71)

अनुवाद: ऐ ईमान लाने वालों, अपनी तैयारी (दुश्मन के खिलाफ) रखो और कई समूहों में या एक समूह के रूप में दुश्मन की ओर बढ़ो।

यह आयत मुसलमानों को काफ़िरों के ख़िलाफ़ जिहाद के लिए बुलाती है[१६] और मुसलमानों को एक समूह या कई समूहों में सतर्कता और पूरे उपकरणों के साथ दुश्मन की ओर बढ़ने के लिए कहती है।[१७] टीकाकारों ने इस आयत की अलग-अलग व्याख्याएँ की हैं और इसके कार्यान्वयन को सम्मान और सफलता का रहस्य माना है और इसे मुसलमानों के पतन और विफलता का रहस्य मानकर उपेक्षा की है।[१८]

  • आय ए नुशूज़
मुख्य लेख: आय ए नुशूज़ और आय ए अल रेजालो क़व्वामूना अला अल नेसा

وَاللَّاتِي تَخَافُونَ نُشُوزَهُنَّ فَعِظُوهُنَّ وَاهْجُرُ‌وهُنَّ فِي الْمَضَاجِعِ وَاضْرِ‌بُوهُنَّ ۖ فَإِنْ أَطَعْنَكُمْ فَلَا تَبْغُوا عَلَيْهِنَّ سَبِيلًا ۗ إِنَّ اللَّـهَ كَانَ عَلِيًّا كَبِيرً‌ا ﴿٣٤﴾ وَإِنِ امْرَ‌أَةٌ خَافَتْ مِن بَعْلِهَا نُشُوزًا أَوْ إِعْرَ‌اضًا فَلَا جُنَاحَ عَلَيْهِمَا أَن يُصْلِحَا بَيْنَهُمَا صُلْحًا ۚ وَالصُّلْحُ خَيْرٌ‌ ۗ وَأُحْضِرَ‌تِ الْأَنفُسُ الشُّحَّ ۚ وَإِن تُحْسِنُوا وَتَتَّقُوا فَإِنَّ اللَّـهَ كَانَ بِمَا تَعْمَلُونَ خَبِيرً‌ا

(वल्लाती तख़ाफ़ूना नोशूज़हुन्ना फ़एज़ूहुन्ना वहजोरूहुन्ना फ़िल मज़ाजेए वज़रेबूहुन्ना फ़इन अतअनकुम फ़ला तब्ग़ू अलैहिन्ना सबीलन इन्नल्लाहा काना अलीयन कबीरा (34) व एनिमराअतुन ख़ाफ़त मिन बअलेहा नोशूज़न अव एअराज़न फ़ला जोनाहा अलैहेमा अन युस्लेहा बैनहोमा सुल्हन वस्सुलहो ख़ैरुन व ओहज़ेरतिल अन्फ़ोसुश्शोह्हा व इन तोहसेनू वत्तक़ू फ़इन्नल्लाहा काना बेमा तअमलूना ख़बीरा)

अनुवाद: ..और जिन महिलाओं को तुम अवज्ञा करने से डरते हो, उन्हें [पहले] नसीहत दो और [फिर] कमरे में उनसे दूर रहो, और (यदि यह काम नहीं करता है) तो उन्हें मारो; फिर यदि वे तुम्हारी इताअत करें [अब] उनके लिए [फटकारने के लिए] कोई रास्ता नहीं है, कि भगवान महान है।/और यदि किसी स्त्री को अपने पति की असंगति या विचलन का भय हो, उन दोनों के लिए एक-दूसरे के साथ शांति के माध्यम से मेल-मिलाप की तलाश करना कोई पाप नहीं है; वह समझौता बेहतर है. और लालच की आत्माओं में उपस्थिति [और प्रभुत्व] है; और यदि तुम भलाई करते हो और परहेज़गारी करते हो, तो जो कुछ तुम करते हो, उसकी ख़बर ईश्वर को है।

सूर ए निसा की आयत 34 के दूसरे भाग और आयत 128 को आय ए ऩुशूज़ कहा जाता है। नुशूज़ एक न्यायशास्त्रीय शब्द है जो एक महिला द्वारा यौन आज्ञाकारिता और अपने पति की अनुमति के बिना घर से बाहर जाने जैसे मामलों में अपने पति की आज्ञाकारिता के प्रति अवज्ञा को संदर्भित करता है, साथ ही अपने पति की असंगति और पत्नी के अधिकारों का सम्मान न करना भी है। हालांकि, कुछ हदीसों में, एक आदमी का अपनी पत्नी को तलाक़ देने के फैसले को भी नुशूज़ कहा गया है।[१९]

  • आय ए नफ़ी ए सबील
मुख्य लेख: आय ए नफ़ी ए सबील

وَلَن يَجْعَلَ اللَّـهُ لِلْكَافِرِ‌ينَ عَلَى الْمُؤْمِنِينَ سَبِيلًا...

(व लन यज्अल्लाहो लिल काफ़ेरीना अलल मोमिनीना सबीला) (आयत 141)

अनुवाद:...और ईश्वर ने कभी भी अविश्वासियों (काफ़िरो) के लिए विश्वासियों (मोमिनों) पर हावी होने का कोई रास्ता नहीं बनाया है।

सूर ए निसा की आयत 141 के अंतिम भाग को आय ए नफ़ी ए सबील कहा जाता है। यह आयत विश्वासियों पर अविश्वासियों के किसी भी वर्चस्व को नकारती है और विश्वासियों से अविश्वासियों के प्रभुत्व का मुकाबला करने के लिए कहती है।[२०] विद्वानों ने क़ाएदा ए नफ़ी ए सबील को सिद्ध करने के लिए इस आयत का प्रयोग किया है।[२१]

आयात उल अहकाम

सूर ए निसा की आयतों के बीच 30 आयतों से अधिक को आयात उल अहकाम में सूचीबद्ध किया गया है।[२२] इनमें से कई आयतें विवाह और संभोग और विरासत के अहकाम का वर्णन करती हैं। इस सूरह में उल्लिखित अन्य अहकाम में, वेश्यावृत्ति की सज़ा का हुक्म, नशे में नमाज़ पढ़ने का हुक्म, जनाबत की स्थिति में मस्जिद से गुज़रने का हुक्म, तयम्मुम का हुक्म, नमाज़ के अहकाम, अमानत लौटाने का हुक्म, अनाथ और सफ़ीह (ना समझ लोग) का हुक्म, ग़लती से होने वाली हत्या का हुक्म, रेया, सलाम करने का हुक्म और विश्वासी पर अविश्वासी की प्रभुता का हुक्म, शामिल हैं।[२३] जिन आयतों में या तो शरिया हुक्म होता है या हुक्म निकालने की प्रक्रिया में उपयोग किया जाता है, उन्हें आयात उल अहकाम कहा जाता है।[२४] सूर ए निसा की कुछ आयात उल अहकम का उल्लेख निम्नलिखित तालिका में किया गया है:

आयात उल अहकाम
आयत आयत का हिंदी उच्चारण अध्याय विषय आयत का अरबी उच्चारण
3 व इन ख़िफ़्तुम अल्ला तुक़्सेतू फ़िल यतामा फ़न्केहू मा ताबा लकुम मिनन नेसा विवाह बहुविवाह की अनुमति وَإِنْ خِفْتُمْ أَلَّا تُقْسِطُوا فِي الْيَتَامَىٰ فَانكِحُوا مَا طَابَ لَكُم مِّنَ النِّسَاءِ
4 व आतुन नेसाआ सदुक़ातेहिन्ना नेहलतन फ़इन तिब्ना लकुम अन शैइन मिन्हो नफ़्सन फ़कुलूहो हनीअम मरीआ विवाह महिलाओं के लिए मेहर के अहकाम وَآتُوا النِّسَاءَ صَدُقَاتِهِنَّ نِحْلَةً ۚ فَإِن طِبْنَ لَكُمْ عَن شَيْءٍ مِّنْهُ نَفْسًا فَكُلُوهُ هَنِيئًا مَّرِ‌يئًا
6 वब्तलुल यतामा हत्ता एज़ा बलग़ुन नेकाहा फ़इन आनस्तुम मिन्हुम रुशदन फ़दफ़ऊ एलैहिम अम्वालहुम बुलूग़ अनाथों की संपत्ति की वापसी وَابْتَلُوا الْيَتَامَىٰ حَتَّىٰ إِذَا بَلَغُوا النِّكَاحَ فَإِنْ آنَسْتُم مِّنْهُمْ رُ‌شْدًا فَادْفَعُوا إِلَيْهِمْ أَمْوَالَهُمْ
7 लिर्रेजाले नसीबुन मिम्मा तरकल वालेदाने व अक़रबूना व लिन्नेसाए नसीबुन मिम्मा तरकल वालेदाने वल अक़रबूना विरासत विरासत का विभाजन لِّلرِّ‌جَالِ نَصِيبٌ مِّمَّا تَرَ‌كَ الْوَالِدَانِ وَالْأَقْرَ‌بُونَ وَلِلنِّسَاءِ نَصِيبٌ مِّمَّا تَرَ‌كَ الْوَالِدَانِ وَالْأَقْرَ‌بُونَ
11 यूसीकुमुल्लाहो फ़ी औलादेकुम लिज़्ज़करे मिस्लो हज़्ज़िल उन्सयैन विरासत विरासत का विभाजन يُوصِيكُمُ اللَّـهُ فِي أَوْلَادِكُمْ ۖ لِلذَّكَرِ‌ مِثْلُ حَظِّ الْأُنثَيَيْنِ
12 व लकुम निस्फ़ो मा तरका अज़्वाजोकुम इन लम यकुन लहुन्ना वलदुन विरासत जीवनसाथी का एक दूसरे से विरासत وَلَكُمْ نِصْفُ مَا تَرَ‌كَ أَزْوَاجُكُمْ إِن لَّمْ يَكُن لَّهُنَّ وَلَدٌ
15 वल्लाती तअतीनल फ़ाहेशता मिन्न नेसाएकुम फ़स्तशहेदू अलैहिन्ना अरबअतन मिन्कुम हुदूद और दीयात स्त्री के व्यभिचार पर हुक्म وَاللَّاتِي يَأْتِينَ الْفَاحِشَةَ مِن نِّسَائِكُمْ فَاسْتَشْهِدُوا عَلَيْهِنَّ أَرْ‌بَعَةً مِّنكُمْ
19 या अय्योहल लज़ीना आमनू ला यहिल्लो लकुम अन तरेसू अल नेसाआ कर्हन विरासत विरासत के अहकाम يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا يَحِلُّ لَكُمْ أَن تَرِ‌ثُوا النِّسَاءَ كَرْ‌هًا
22 वला तन्केहू मा नकहा आबाओकुम मिनन नेसाए इल्ला मा क़द सलफ़ा विवाह वर्जित विवाह وَلَا تَنكِحُوا مَا نَكَحَ آبَاؤُكُم مِّنَ النِّسَاءِ إِلَّا مَا قَدْ سَلَفَ
23-24 हुर्रेमत अलैकुम उम्महातोकुम व बनातोकुम व अख़्वातोकुम व अम्मातोकुम व ख़ालातोकुम विवाह वर्जित विवाह حُرِّ‌مَتْ عَلَيْكُمْ أُمَّهَاتُكُمْ وَبَنَاتُكُمْ وَأَخَوَاتُكُمْ وَعَمَّاتُكُمْ وَخَالَاتُكُمْ

25 व मन लम यस्ततेअ मिन्कुम तौलन अन यन्केहल मोहसनातिल मोमेनाते फ़मन मा मलकत एयमानोकुम विवाह वर्जित विवाह وَمَن لَّمْ يَسْتَطِعْ مِنكُمْ طَوْلًا أَن يَنكِحَ الْمُحْصَنَاتِ الْمُؤْمِنَاتِ فَمِن مَّا مَلَكَتْ أَيْمَانُكُم
29 या अय्योहल लज़ीना आमनू ला तअकोलू अम्वालकुम बैनकुम बिल बातिले इल्ला अन तकूना तेजारतन अन तराज़िन मिन्कुम मकासिब (लाभ) हलाल व्यापार के अहकाम يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تَأْكُلُوا أَمْوَالَكُم بَيْنَكُم بِالْبَاطِلِ إِلَّا أَن تَكُونَ تِجَارَ‌ةً عَن تَرَ‌اضٍ مِّنكُمْ
43 या अय्योहल लज़ीना आमनू ला तक़रबुस्सलाता व अन्तुम सोकारा नमाज़ नमाज़ क़ायम करने की शर्तें يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تَقْرَ‌بُوا الصَّلَاةَ وَأَنتُمْ سُكَارَ‌ىٰ
58 इन्नल्लाहा यअमोरोकुम अन तोअद्दुल अमानाते एला अहलेहा व एज़ा हकम्तुम बैनन नासे अन तहकोमू बिल अदले न्याय और गवाही निर्णय में न्याय (अदालत) का पालन करने की आवश्यकता إِنَّ اللَّـهَ يَأْمُرُ‌كُمْ أَن تُؤَدُّوا الْأَمَانَاتِ إِلَىٰ أَهْلِهَا وَإِذَا حَكَمْتُم بَيْنَ النَّاسِ أَن تَحْكُمُوا بِالْعَدْلِ
92-93 वमा काना ले मोमेनिन अन यक़्तोला मोमेनन इल्ला ख़ताअन हुदूद और दीयात आत्म-प्रतिशोध (क़ेसास) पर हुक्म और जानबूझकर हत्या के लिए दंड وَمَا كَانَ لِمُؤْمِنٍ أَن يَقْتُلَ مُؤْمِنًا إِلَّا خَطَأً
127 व यस्तफ़्तूनका फ़िन नेसाए क़ुलिल्लाहो युफ़्तीकुम फ़ीहिन्ना वमा युत्ला अलैकुम फ़िल किताबे फ़ी यतामन्नेसाए विवाह महिलाओं के अधिकारों का भुगतान وَيَسْتَفْتُونَكَ فِي النِّسَاءِ ۖ قُلِ اللَّـهُ يُفْتِيكُمْ فِيهِنَّ وَمَا يُتْلَىٰ عَلَيْكُمْ فِي الْكِتَابِ فِي يَتَامَى النِّسَاءِ
128-130 व एनिमराअतुन ख़ाफ़त मिन बअलेहा नुशूज़न अव एअराज़न फ़ला जोनाहा अलैहेमा अन युस्लेहा बैनहोमा सुल्हन वस्सुल्हो ख़ैरुन तलाक़ तलाक़ रोकने के लिए सुल्ह وَإِنِ امْرَ‌أَةٌ خَافَتْ مِن بَعْلِهَا نُشُوزًا أَوْ إِعْرَ‌اضًا فَلَا جُنَاحَ عَلَيْهِمَا أَن يُصْلِحَا بَيْنَهُمَا صُلْحًا ۚ وَالصُّلْحُ خَيْرٌ
161 व अख़्ज़ेहेमुर रेबा व क़द नोहू अन्हो व अक्लेहिम अम्वालन नासे बिल बातिले मकासिब (लाभ) रेबा की हुरमत وَأَخْذِهِمُ الرِّ‌بَا وَقَدْ نُهُوا عَنْهُ وَأَكْلِهِمْ أَمْوَالَ النَّاسِ بِالْبَاطِلِ
176 यस्तफ़्तूनका क़ुलिल्लाहो युफ़्तीकुम फ़िल कलालते विरासत कलाला की विरासत يَسْتَفْتُونَكَ قُلِ اللَّـهُ يُفْتِيكُمْ فِي الْكَلَالَةِ

गुण और विशेषताएं

मुख्य लेख: सूरों के फ़ज़ाइल

सूर ए निसा के सम्बंध में, पैग़म्बर (स) से वर्णित हुआ है कि जो कोई भी इस सूरह को पढ़ता है, तो यह ऐसा होगा जैसे उसने सभी विश्वासियों के विरासत के बराबर जो वो छोड़ के गए हैं, दान दिया है, और उसे एक ग़ुलाम को मुक्त करने जैसा इनाम दिया जाएगा, और वह बहुदेववाद से मुक्त होगा और ईश्वर की कृपा से, वह उन लोगों में से होगा जिन्हें ईश्वर ने अतीत में माफ़ कर दिया है।[२५] इमाम अली (अ) से यह भी वर्णित हुआ है कि यदि कोई व्यक्ति शुक्रवार को सूर ए निसा पढ़ता है, तो वह क़ब्र के दबाव (फ़ेशारे क़ब्र) से सुरक्षित रहेगा।[२६]

हदीस स्रोतों में, इस सूरह को पढ़ने के लिए डर को खत्म करने (यदि इसे किसी बर्तन में लिख कर बारिश के पानी से धोना और फिर उसे पीना)[२७] और खोए हुए को ढूंढना[२८] जैसे गुणों का उल्लेख किया गया है। शेख़ तूसी की पुस्तक मिस्बाह उल मुतहज्जद में कहा गया है कि शुक्रवार को सुबह की नमाज़ के बाद सूर ए निसा का पाठ करना मुस्तहब है।[२९]

फ़ुटनोट

  1. दानिशनामे क़ुरआन व क़ुरआन पजोही, खंड 2, पृष्ठ 1237।
  2. मारेफ़त, आमोज़िशे उलूमे क़ुरआन, 1371 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 168।
  3. दानिशनामे क़ुरआन व क़ुरआन पजोही, खंड 2, पृष्ठ 1237।
  4. तबातबाई, अल मीज़ान, अनुवाद, 1374 शम्सी, खंड 4, पृष्ठ 213।
  5. मकारिम शिराज़ी, तफ़सीर नमूना, 1374 शम्सी, खंड 3, पृ. 273-275।
  6. मकारिम शिराज़ी, तफ़सीर नमूना, 1371 शम्सी, खंड 3, पृष्ठ 322।
  7. क़राअती, तफ़सीर नूर, 1388 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 40।
  8. दानिशनामे क़ुरआन व क़ुरआन पजोही, खंड 2, पृष्ठ 1988।
  9. फ़ख़्रे राज़ी, मफ़ातीह उल ग़ैब, 1420 हिजरी, खंड 10, पृष्ठ 58।
  10. तबरी, तफ़सीर तबरी, 1412 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 20।
  11. मकारिम शिराज़ी, तफ़सीर नमूना, 1374 शम्सी, खंड 3, पृष्ठ 398।
  12. तूसी, अल तिब्यान फ़ी तफ़सीर अल कुरआन, दार इह्या अल तोरास अल अरबी, खंड 3, पृष्ठ 236; तबरसी, मजमा उल बयान, 1372 शम्सी, खंड 3, पृष्ठ 100; तबातबाई, अल मीज़ान, 1390 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 391।
  13. फ़ख़्रे राज़ी, मफ़ातीह उल ग़ैब, 1420 हिजरी, खंड 10, पृष्ठ 112 और 113।
  14. देखें: बहरानी, ग़ायत उल मोराम व हज्जा अल खेसाम, 1422 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 109-115; कुन्दोज़ी, यनाबी उल मोवद्दा, 1416 हिजरी, पृष्ठ 494।
  15. तूसी, अल तिब्यान फ़ी तफ़सीर अल कुरआन, दार एह्या अल तोरास अल अरबी, खंड 3, पृष्ठ 236; तबरसी, मजमा उल बयान, 1372 शम्सी, खंड 3, पृष्ठ 100; तबातबाई, अल मीज़ान, 1390 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 399।
  16. क़ुर्तुबी, अल जामेअ ले अहकाम अल क़ुरआन, 1364 हिजरी।
  17. सालबी, अल कश्फ़ व अल बयान, 1422 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 343।
  18. क़राअती, तफ़सीर नूर, 1388 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 103।
  19. हुर्रे आमोली, वसाएल अल शिया, 1414 हिजरी, खंड 21, अध्याय: अल क़सम व अल नुशूज़ व अल शेक़ाक़, अध्याय 11, पृष्ठ 351।
  20. तबातबाई, अल मीज़ान, 1390 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 116।
  21. बिजनवर्दी, अल क़वाएद अल फ़िक्हिया, 1419 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 187।
  22. देखें: ईरवानी, दुरूस तम्हीदिया फ़ी तफ़सीर आयात उल अहकाम, 1423 हिजरी, खंड 1 और 2, आयतों की सूची।
  23. देखें: ईरवानी, दुरूस तम्हीदिया फ़ी तफ़सीर आयात उल अहकाम, 1423 हिजरी, खंड 1 और 2, आयतों की सूची।
  24. मोईनी, "आयात उल अहकाम", पृष्ठ 1।
  25. तबरसी, मजमा उल बयान, 1390 शम्सी, खंड 3, पृष्ठ 5।
  26. शेख़ सदूक़, सवाब उल आमाल, 1382 शम्सी, पृष्ठ 105।
  27. सय्यद बिन ताऊस, अल अमान मिन अख़्तार, 1409 हिजरी, पृष्ठ 89।
  28. कफ़अमी, मिस्बाह कफ़अमी, 1403 हिजरी, पृष्ठ 454।
  29. शेख़ तूसी, मिस्बाह अल मुतहज्जद, 1411 हिजरी, पृष्ठ 284।

स्रोत

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  • ईरवानी, बाक़िर, दुरूस तम्हीदिया फ़ी तफ़सीर आयात उल अहकाम, क़ुम, दार अल फ़िक़्ह, 1423 हिजरी।
  • बिज्नवर्दी, सय्यद हसन बिन आग़ा बुज़ुर्ग मूसवी, अल क़वाएद अल फ़िक़्हीया, महदी मेहरेज़ी द्वारा शोध, क़ुम, अल हादी प्रकाशन, 1419 हिजरी।
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  • हुर्रे आमोली, मुहम्मद बिन हसन, वसाएल अल शिया, क़ुम, मोअस्सास ए आल अल बैत, 1414 हिजरी।
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  • तबातबाई, सय्यद मुहम्मद हुसैन, अल मीज़ान फ़ी तफ़सीर अल कुरआन, क़ुम, मकतबा अल नशर अल इस्लामी, पाँचवाँ संस्करण, 1390 हिजरी।
  • तबरसी, फ़ज़्ल बिन हसन, मजमा उल बयान फ़ी तफ़सीर अल कुरआन, तेहरान, नासिर खोस्रो, तीसरा संस्करण, 1372 शम्सी।
  • तबरसी, फ़ज़्ल बिन हसन, मजमा उल बयान फ़ी तफ़सीर अल कुरआन, बिस्तौनी द्वारा अनुवादित, मशहद, आस्ताने क़ुद्स रज़वी, 1390 शम्सी।
  • तबरी, मुहम्मद बिन जरीर, तबरी के तफ़सीर (जामेअ उल बयान), बेरूत, दार उल मारेफ़त, पहला संस्करण, 1412 हिजरी।
  • तूसी, मुहम्मद बिन हसन, अल तिब्यान फ़ी तफ़सीर अल कुरआन, बेरूत, दार इह्या अल तोरास अल अरबी, पहला संस्करण, बी ता।
  • तूसी, मुहम्मद बिन हसन, मिस्बाह अल मुतहज्जद, बेरूत, मोअस्सास ए फ़िक़्ह अल शिया, 1411 हिजरी।
  • फ़ख़्रे राज़ी, मुहम्मद बिन उमर, मफ़ातीह उल ग़ैब, बेरूत, दार उल एह्या अल तोरास अल अरबी, 1420 हिजरी।
  • क़राअती, मोहसिन, तफ़सीर नूर, तेहरान, मरकज़े फ़र्हंगी दर्सहाए अज़ क़ुरआन, 1388 शम्सी।
  • क़ुर्तुबी, मुहम्मद बिन अहमद, अल जामेअ ले अहकाम अल क़ुरआन, तेहरान, नासिर खोस्रो, 1364 शम्सी।
  • कुंदोज़ी, सुलेमान बिन इब्राहीम, यनाबी उल मोअद्दा लेज़वी उल क़ुरबा, क़ुम, उस्वा, 1416 हिजरी।
  • कफ़्अमी, इब्राहीम बिन अली, मिस्बाह, बेरूत, मोअस्सास ए अल आलमी, 1403 हिजरी।
  • मारेफ़त, मुहम्मद हादी, आमोज़िशे उलूमे क़ुरआन, [अप्रकाशित], मरकज़े चाप व नशर साज़माने तब्लीग़ाते इस्लामी, अध्याय 1, 1371 शम्सी।
  • मकारिम शिराज़ी, नासिर, तफ़सीर नमूना, तेहरान, दार अल कुतुब अल इस्लामिया, पहला संस्करण, 1374 शम्सी।
  • मोईनी, मोहसिन, "आयात उल अहकाम", तहक़ीक़ाते इस्लामी, 12वां वर्ष, संख्या 1 और 2, तेहरान, वसंत और ग्रीष्म 1376 शम्सी।