हदीसे वेलायत
हदीसे वेलायत | |
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विषय | इमाम अली (अ) की इमामत और वेलायत का सिद्ध (इस्बात) करना |
किस से नक़्ल हुई | पैग़म्बर (स) |
मुख्य वक्ता | इमरान इब्ने हसीन |
कथावाचक | सलमान फ़ारसी, अबू अय्यूब अंसारी, अनस बिन मालिक |
शिया स्रोत | कशफ़ुल ग़ुम्मा |
सुन्नी स्रोत | सहीह तिर्मिज़ी, मुसनदे अहमद बिन हंबल, मुसनदे अबी दाऊद.... |
हदीसे वेलायत (अरबी: حديث الولاية) पैग़म्बर (स) द्वारा वर्णित एक हदीस है और अली बिन अबी तालिब (अ) की इमामत को सिद्ध करने के लिए शिया कारणों (दलाएल) में से एक है। इस हदीस का शिया और सुन्नी स्रोतों में अलग-अलग शब्दों के साथ उल्लेख किया गया है, जैसे «هُوَ وَلِیُّ کُلِّ مُؤْمِنٍ بَعْدی» (होवा वलियो कुल्ले मोमेनिन बादी) (अनुवाद: वह (अली) मेरे बाद सभी विश्वासियों (मोमिनों) का संरक्षक (वली) है)।
शिया इस हदीस में वली शब्द को इमाम और संरक्षक (सरपरस्त) के अर्थ में मानते हैं, और इसके माध्यम से वे इमाम अली (अ) की इमामत और संरक्षकता (वेलायत) को सिद्ध करते हैं। और उनका मानना है कि (वली) शब्द का अर्थ शब्दकोश में यही है और इसका उपयोग कई मामलों में, शेख़ैन, सहाबा, ताबेईन और अहले सुन्नत के कुछ विद्वानों द्वारा इसी अर्थ में किया गया है। लेकिन सुन्नियों का दावा है कि इस शब्द का अर्थ दोस्त और अभिभावक होता है और इसका हज़रत अली (अ) की संरक्षकता (वेलायत) और इमामत के मुद्दे से कोई लेना-देना नहीं है।
मूलपाठ
जाफ़र बिन सुलेमान ने इमरान बिन हसीन से रिवायत का वर्णन किया है कि रसूले ख़ुदा (स) ने युद्ध के लिए एक जत्था भेजा और उनकी कमान अली बिन अबी तालिब (अ) को सौंपी। उन्हें लूट का माल मिला। हज़रत अली ने ऐसा लूट के माल का इस प्रकार बंटवारा किया कि उन्हें लूट का बंटवारा पसंद नहीं आया। उनमें से चार लोगों ने यह तय किया कि जब वह पैग़म्बर (स) मिलेंगे तो अली (अ) के इस कार्य की सूचना उन्हें देंगे, जब वह पैग़म्बर (स) के पास पहुंचे, तो एक के बाद एक उन्होंने कहा: हे ईश्वर के रसूल क्या आप जानते हैं अली ने ऐसा किया था? पैग़म्बर (स) क्रोधित हुए और कहा अली से क्या चाहते हो? अली से क्या चाहते हो? अली मुझ से है और मैं अली से हूँ और मेरे बाद अली, हर विश्वासी (मोमिन) का संरक्षक (वली) है।[१]
विभिन्न उद्धरण
हदीसे वेलायत को शिया और सुन्नी स्रोतों में अलग-अलग शब्दों में वर्णित किया गया है। उनमें से:"علی ولیّ کل مؤمن بعدی"[२] (अलीयुन वलियो कुल्ले मोमेनिन बादी), "هو ولی کل مؤمن بعدی"[३] (होवा वलियुन कुल्ले मोमेनिन बादी), "انت ولی کل مؤمن بعدی"[४] (अन्ता वलियुन कुल्ले मोमेनिन बादी), "أنت ولی کل مؤمن بعدی و مؤمنه"[५] (अन्ता वलियुन कुल्ले मोमेनिन बादी व मोमिनोह), "انت ولیی فی کل مؤمن بعدی"[६] (अन्ता वली फ़ी कुल्ले मोमेनिन बादी), "فانه ولیکم بعدی"[७] (फ़ा इन्नहू वलियोकुम बादी), "ان علیا ولیکم بعدی"[८] (इन्ना अलियन वलियोकुम बादी), "هذا ولیکم بعدی"[९] हाज़ा वलियोकुम बादी), "انک ولی المؤمنین من بعدی"[१०] (इन्नका वलियो अल मोमेनीन मिन बादी), "انت ولیی فی کل مؤمن بعدی"[११] (अन्ता वली फ़ी कुल्ले मोमेनिन बादी), "وانت خلیفتی فی کل مؤمن من بعدی"[१२] (व अन्ता ख़लीफ़ती फ़ी कुल्ले मोमिन मिन बादी), "و فهو اولی الناس بکم بعدی"[१३] (व फ़ा होवा औलन नास बेकुम बादी)।
सामग्री
शियों के अनुसार, हदीसे वलेयात की सामग्री (मोहत्वा) इमाम अली (अ) की इमामत और वेलायत का मुद्दा है।[१४] वे वली शब्द को संरक्षक (सरपरस्त), इमाम, नेता (रहबर) और ख़लीफ़ा के अर्थ में मानते हैं।[१५] लेकिन सुन्नियों का मानना है कि यह हदीस अली इब्ने अबी तालिब (अ) के उत्तराधिकार का उल्लेख नहीं करती है क्योंकि उनका दावा है कि वली शब्द का शाब्दिक अर्थ दोस्ती और मदद करना है।[१६] अपने दावे को सिद्ध करने के लिए शिया कहते हैं: वली शब्द का शाब्दिक अर्थ संरक्षक, नेता, ख़लीफ़ा, साहिबे इख़्तेयार और इमाम है और इस्लाम के आरम्भ में और उसके बाद भी इस शब्द का अर्थ ख़लीफ़ा और संरक्षक किया गया है। वे पहले ख़लीफ़ा,[१७] दूसरे ख़लीफ़ा,[१८] सहाबा,[१९] अनुयायियों (ताबेईन)[२०] और कुछ सुन्नी विद्वानों[२१] द्वारा ख़लीफ़ा और अभिभावक (सरपरस्त) के अर्थ में वली शब्द के उपयोग का भी उल्लेख करते हैं।
वैधता
अब्दुल कादिर अल-बग़दादी और इब्ने हजर अस्क़लानी ने कहा कि हदीसे वलेयात को तिर्मिज़ी ने इमरान बिन हसीन से संचरण की एक मज़बूत श्रृंखला के साथ वर्णित किया है।[२२] मुत्तक़ी हिंदी ने भी इसे सही माना है।[२३] हाकिम नैशापुरी ने इसे सहीह अल सनद, हदीस माना, जिसे मुस्लिम और बुख़ारी ने सहीह में शामिल नहीं किया है।[२४] इसके अलावा, शम्सुद्दीन ज़हबी और नासिर अल-दीन अल-अल्बानी ने भी इस हदीस को सहीह माना है।[२५]
स्रोत
सहीह तिर्मिज़ी, मुसनद अहमद बिन हंबल;[२६] जामेअ अहादीस सुयूति;[२७] कंज़ुल-उम्माल;[२८] मुसनद अबी दाऊद;[२९] फ़ज़ाएल अल-सहाबा;[३०] अल -आहाद व अल-मसानी;[३१] सुनन नेसाई;[३२] मुसनद अबू याअली;[३३] सहीह इब्ने हब्बान;[३४] अल-मोजम अल-कबीर अल-तबरानी;[३५] तारीख़े मदीना दमिश्क़;[३६] अल-बेदाया व अल-नेहाया;[३७] अल-एसाबा;[३८] अल जौहरा फ़ी नसब अल इमाम अली व आलेह;[३९] खज़ाना अल-अदब व लुब्बो-लुबाब लेसान अल-अरब;[४०] अल-ग़दीर;[४१] अल-इस्तीयाब;[४२] और कशफ़ुल ग़ुम्मा[४३] जैसी किताबों में हदीसे वेलायत का उल्लेख है।
दस्तावेज़ समीक्षाएँ
मुबारकफौरी का दावा है कि "बादी" शब्द, जो कि हदीसे वलेयात के कुछ संस्करणों में नहीं है, उसमें शिया कथाकारों द्वारा जोड़ा गया था। अपने दावे को सिद्ध करने के लिए, वह इब्ने हंबल की मुसनद का हवाला देते हैं, जिसमें यह हदीस कई स्रोतों के साथ वर्णित हुई है, लेकिन उनका दावा है कि उनमें से किसी में भी ऐसा कोई जोड़ (बादी शब्द) नहीं है।[४४] हालांकि अहमद हंबल ने इस हदीस को मुसनद[४५] और फ़ज़ाएले सहाबा में ("बादी" शब्द) के साथ उल्लेख किया है।[४६]
इसके अलावा, मुबारकफौरी (अबुल अला मुहम्मद बिन अब्दुर्रहमान 1283-1353 हिजरी) का दावा है कि यह हदीस केवल जाफ़र बिन सुलेमान और इब्ने अजलह कंदी द्वारा वर्णित हुई है। और क्योंकि वे शिया हैं, उनके हदीसों को स्वीकार नहीं किया जाएगा। वह शियों को विधर्मी (अहले बिदअत) मानते हैं और कहते हैं कि यदि कोई विधर्मी (बिदअत गुज़ार) ऐसी हदीस सुनाता है जो उसके धर्म को मज़बूत करती है, तो उसका कथन स्वीकार नहीं किया जाएगा।[४७] जबकि अल-अल्बानी के अनुसार, सुन्नियों के बीच हदीस को स्वीकार करने का एकमात्र मानदंड हदीस का वर्णन करने में कथावाचक की सत्यता और सटीकता है, और कथावाचक के धर्म का उसकी हदीस की स्वीकृति या अस्वीकृति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, इसी तरह बोख़ारी और मुस्लिम ने अपनी सहीह में हदीसों को उन कथावाचकों से लिया है जिनका धर्म, अहले सुन्नत धर्म के विपरीत है। जैसे ख़्वारिज और शिया से हदीस वर्णित की है।[४८]
अल्बानी (मुहम्मद नसीरुद्दीन 1914-1999 ई।) ने कहा है कि यह हदीस सुन्नी स्रोतों में संचरण की अन्य श्रृंखला के साथ वर्णित हुई है जिसमें प्रसारण की श्रृंखला में कोई शिया कथावाचक नहीं है। सय्यद अली मीलानी ने कहा कि यह हदीस 12 सहाबा[४९] द्वारा जिनमें इमाम अली (अ), इमाम हसन (अ), अबूज़र, अबू सईद ख़दरी और बर्रा बिन आज़िब वर्णित हुई है।[५०] इसके अधिकांश आख्यानों का श्रेय इमरान बिन हसीन, इब्ने अब्बास और बुरिदा बिन हसीब को दिया जाता है।[५१]
इसके अलावा, जाफ़र बिन सुलेमान सहीह मुस्लिम के कथाकारों में से एक हैं।[५२] ज़हबी ने इमाम[५३] की व्याख्या के साथ उनका उल्लेख किया और उन्होंने याहया बिन मोइन से उद्धृत किया कि वह उन्हें भरोसेमंद (सेक़ा) मानते हैं।[५४] अल्बानी जाफ़र को विश्वसनीय कथाकारों और उनकी हदीसों को ठोस और मज़बूत मानते हैं कि जो अहले बैत (अ) से प्रेम करते थे और अपने धर्म की ओर आमंत्रित नहीं करते थे। उनका कहना है कि हमारे नेताओं (रहबर) में इस बात में मतभेद नहीं है कि अगर सच बोलने वाला अहले बिदअत में से हो लेकिन अपने धर्म की ओर आमंत्रित न करता हो तो उसकी हदीस का पालन करना सही है।[५५]
कुछ सुन्नी विद्वानों ने भी इब्ने अज्लह की पुष्टि (तौसीक़) की है और उनकी हदीस को हसन (अच्छा) माना है।[५६] अल्बानी अज्लह की हदीस को जाफ़र बिन सुलेमान की हदीस की शुद्धता का प्रमाण मानते हैं।[५७]
मुबारकफौरी ने कहा कि इब्ने तैमिया ने दावा किया कि यह हदीस झूठी है जिसकी निस्बत ईश्वर के पैग़म्बर (स) की तरफ़ दी गई है।[५८] अल्बानी, सुन्नी विद्वानों में से एक, ने इस हदीस के इब्ने तैमिया के खंडन पर आश्चर्य व्यक्त किया।[५९]
मोनोग्राफ़ी
- हदीसो अल वेलाया व मन रवा ग़दीरा ख़ुम मिन्स सहाबा; इब्ने उक़्दा कूफ़ी, क़ुम, दलीले मा, 1427 हिजरी।
- हदीसुल वेलाया; सय्यद अली हुसैनी मीलानी, मरकज़े हक़ाएक़ अल इस्लामिया, 1421 हिजरी।
सम्बंधित लेख
फ़ुटनोट
- ↑ इब्ने शैबा, अल-मुस्न्नफ़, 1409 हिजरी, खंड 8, पृष्ठ 504, हदीस 58; तयालसी, मुसन्दे अबी दाऊद, दारुल मारेफ़ा, पृष्ठ 111।
- ↑ इब्ने शैबा, अल-मुस्न्नफ़, 1409 हिजरी, खंड 8, पृष्ठ 504, हदीस 58; नेसाई, अल-सुनन अल-कुबारा, 1411 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 132; हिंदी, कंज़लुल-उम्माल, 1409 हिजरी, खंड 13, पृष्ठ 142।
- ↑ तयालसी, मुसन्दे अबी दाऊद, दारुल मारेफ़ा, पृष्ठ 111; इब्ने हंबल, मुसनद, क़ुर्तुबा फाउंडेशन, खंड 4, पृष्ठ 437; अबू याअली मूसली, मुसनद अबी याअली, 1404 हिजरी, पृष्ठ 293।
- ↑ तयालसी, मुसन्दे अबी दाऊद, दारुल मारेफ़ा, पृष्ठ 360; नेसाई, ख़्साएसे अमीर अल-मोमेनीन (अ), 1383 शम्सी, पृष्ठ 98।
- ↑ इब्ने हंबल, फ़ज़ाएले अल सहाबा, 1403 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 684, हदीस 1168; हकीम निशापुरी, अल-मुस्तद्रक, खंड 3, पृष्ठ 134; अमिनी, अल-ग़दीर, 1397 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 51; एरबली, कशफ़ुल ग़ुम्मा, 1405 हिजरी, पृष्ठ 177।
- ↑ इब्ने हंबल, मुसनद, क़ुर्तुबा फाउंडेशन, खंड 1, पृष्ठ 330।
- ↑ इब्ने हजर, अल-एसाबा, 1415 हिजरी, खंड 6, पृष्ठ 488।
- ↑ इब्ने कसीर, अल-बेदाया व अल-नेहाया, 1407 हिजरी, खंड 7, पृष्ठ 345; हिंदी, कंज़ुल-उम्माल, 1409 हिजरी, खंड 11, पृष्ठ 612, हदीस 32963; इब्ने असाकर, तारीख़े मदीना दमिश्क़, 1415 हिजरी, खंड 42, पृष्ठ 191।
- ↑ नसाई, अल-सुनन अल-कुबरा, 1411 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 133।
- ↑ ख़तीब अल-बग़दादी, तारीख़े बग़दाद, दारुल कुतुब अल-इल्मिया, खंड 4, पृष्ठ 338।
- ↑ इब्ने हंबल, मसनद, क़ुर्तुबे फाउंडेशन, खंड 1, पृष्ठ 330।
- ↑ इब्ने अबी आसिम्, अल सुन्नत, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 550; तबरानी, अल-मोजम अल-कबीर, दारुल एहिया अल-तोरास अल-अरबी, खंड 12, पृष्ठ 78।
- ↑ तबरानी, अल-मोजम अल-कबीर, 1404 हिजरी, खंड 22, पृष्ठ 135।
- ↑ मिलानी, तशईद अल-मुराजेआत, 1427 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 164।
- ↑ रहीमी इस्फ़ाहानी, वेलायत व रहबरी, 1374 शम्सी, खंड 3, पृष्ठ 119-121।
- ↑ ईजी, शरहे अल-मुवाफ़िक़, 1325 हिजरी, खंड 8, पृष्ठ 365-365।
- ↑ मुस्लिम, सहीह मुस्लिम, किताब अल-जिहाद वा अल-सैर बाबे हुक्म अल्फ़ा, खंड 3, पृष्ठ 1378, हदीस 1757; बलाज़री, अंसाब अल-अशराफ़, 1959 ईस्वी, खंड 1, पृष्ठ 590; तबरी, तारीख़े अल-उम्म व अल-मुलूक, 1387 हिजरी., खंड 3, पृष्ठ 211; इब्ने कसीर, अल-बेदाया वा अल-नेहाया, 1407 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 248।
- ↑ बलाज़री, अंसाब अल-अशराफ़, 1417 हिजरी, खंड 10, पृष्ठ 363; तबरी, तारीख़े अल-उम्म व अल-मुलूक, 1387 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 65, 214; इब्ने कसीर, अल-बेदाया वा अल-नेहाया, 1407 हिजरी, खंड 7, पृष्ठ 79।
- ↑ इब्ने अबी शैब, अल-मुसन्नफ़, 1409 हिजरी, खंड 8, पृष्ठ 574; इब्ने तैमिया, मिन्हाज अल-सुन्नह, 1406 हिजरी, खंड 7, पृष्ठ 461।
- ↑ मसऊदी, मोरुज अल-ज़हब, 1409 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 122।
- ↑ इब्ने साद, तबक़ात अल-कुबरा, 1410 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 245।
- ↑ बग़दादी, ख़ज़ाना अल अदब, 1998 ईस्वी, खंड 6, पृष्ठ 69; इब्ने हजर, अल-एसाबा, 1415 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 468।
- ↑ हिंदी, कंज़ुल-उम्माल, 1419 हिजरी, खंड 11, पृष्ठ 279, हदीस 32941।
- ↑ हाकिम निशापुरी, अल-मुस्तद्रक, खंड 3, पृष्ठ 134।
- ↑ अल मुलतद्रक बे तालीक़ ज़हबी, किताब मारेफ़त अल-सहाबा क़िस्म ज़कर इस्लाम अमीरल मोमेनीन अली, खंड 3, पृष्ठ 143, हदीस 4652; अल्बानी, अल-सिलसिला अल-सहिहा, खंड 5, पृष्ठ 263।
- ↑ इब्ने हंबल, मुसनद, क़ुर्तुबा फाउंडेशन, खंड 4, पृष्ठ 437।
- ↑ स्यूती, जामेअ अल-अहादीस, खंड 16, पृष्ठ 256, हदीस 7866 और खंड 27, पृष्ठ 72।
- ↑ हिंदी, कंज़ुल-उम्माल, 1409 हिजरी, खंड 13, पृष्ठ 142।
- ↑ तयालसी, मुसनदे अबी दाऊद, दारुल मारेफ़ा, पृष्ठ 360।
- ↑ इब्ने हंबल, फ़ज़ाएल अल सहाबा, 1403 हिजरी, खंड 2, 605, 620, 649।
- ↑ अबू बक्र शैबानी, अल-आहाद वा अल-मुसन्ना, 1411 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 279, हदीस 2298।
- ↑ नेसाई, अल-सुनन अल-कुबरा, 1411 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 132।
- ↑ अबू याअली मूसली, मुसनद अबी याअली, 1404 हिजरी, पृष्ठ 293।
- ↑ इब्ने हब्बान, सहीह इब्ने हब्बान, 1414 हिजरी, खंड 15, पृष्ठ 373।
- ↑ तबरानी, अल-मोजम अल-कबीर, दारुल एहिया अल-तोरास अल-अरबी, खंड 12, पृष्ठ 78।
- ↑ इब्ने असाकर, तारीख़े मदीना दमिश्क़, खंड 42, पृष्ठ 100।
- ↑ इब्ने कसीर, अल-बेदाया व अल-नेहाया, 1407 हिजरी, खंड 7, पृष्ठ 345।
- ↑ इब्ने हजर, अल-एसाबा, 1415 हिजरी, खंड 6, पृष्ठ 488।
- ↑ तलमसानी, अल-जौहरा, अंसारीयान, खंड 1, पृष्ठ 65।
- ↑ बग़दादी, ख़ज़ाने अल-अदब, 1998 ईस्वी, खंड 6, पृष्ठ 68।
- ↑ अमीनी, अल-ग़दीर, 1397 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 51।
- ↑ इब्ने अब्दुल बर, इस्तियाब, 1412 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 1091।
- ↑ एरबली, कशफ़ुल ग़ुम्मा, 1405 हिजरी, पृष्ठ 177।
- ↑ मुबारकफ़ौरी, तोहफ़ा अल-अहवज़ा, 1410 हिजरी, खंड 10, पृष्ठ 146-147।
- ↑ इब्ने हंबल, मुसनद, कुर्तुबा फाउंडेशन, खंड 1, पृष्ठ 330, खंड 4, पृष्ठ 437।
- ↑ इब्ने हंबल, फ़ज़ाएल अल सहाबा, 1403 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 684, 1168 हिजरी।
- ↑ मुबारकफौरी, तोहफ़ा अल-अहवज़ा, 1410 हिजरी, खंड 10, पृष्ठ 146-147।
- ↑ अल-अल्बानी, अल-सिलसिला अल-सहिहा, खंड 5, पृष्ठ 262।
- ↑ हदीसे वलेयात का पाठ और इसके दस्तावेजों में सुधार, सय्यद अली मिलानी की वेबसाइट।
- ↑ मिलानी, तशईद अल-मुराजेआत, 1427 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 238।
- ↑ हदीसे वलेयात का पाठ और इसके दस्तावेजों में सुधार, सय्यद अली मिलानी की वेबसाइट।
- ↑ ज़हबी, "सैर आलाम अल-नबला", 1413 हिजरी, खंड 8, पृष्ठ 200; उदाहरण के लिए, निशापुरी, सहीह मुस्लिम, दार अल-फ़िक्र, खंड 1, पृष्ठ 77, 83, 153।
- ↑ ज़हबी, तारीख़े अल-इस्लाम, 1413 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 631।
- ↑ ज़हबी, "सैर आलाम अल-नबला", 1413 हिजरी, खंड 8, पृष्ठ 198।
- ↑ अल-अल्बानी, अल-सिलसिला अल-सहिहा, खंड 5, पृष्ठ 263।
- ↑ मनावी, फैज़ अल-क़दीर, 1415 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 471।
- ↑ अल-अल्बानी, अल-सिलसिला अल-सहिहा, खंड 5, पृष्ठ 263।
- ↑ मुबारकफौरी, तोहफ़ा अल-अहवज़ा, 1410 हिजरी, खंड 10, पृष्ठ 147।
- ↑ अल-अल्बानी, अल-सिलसिला अल-सहिहा, खंड 5, पृष्ठ 263।
स्रोत
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- इब्ने कसीर, इस्माइल इब्ने उमर, अल-बेदाया व अल-नेहाया, बैरूत, दार अल-फ़िक्र, 1407 हिजरी/1986 ईस्वी।
- अबू बकर शैबानी, अहमद बिन अम्र, अल-आहाद व अल-मसानी, शोध: बासिम फ़ैसल अहमद जवाबरेह, रेयाज़, दार अल-देराया, 1411 हिजरी/1991 ईस्वी।
- अबू याअली मूसली, अहमद बिन अली, मुसनद अबी याअली, शोधः हसन सलीम असद, दारुल मामून लित तोरास।
- एरबली, अली बिन अबी अल-फ़तह, कशफ़ुल ग़ुम्मा फ़ी मारेफ़ा अल-आइम्मा, बैरूत, दार अल-अज़वा, 1405 हिजरी/1985 ईस्वी।
- अल्बानी, मोहम्मद नसीरुद्दीन, अल-सिलसिला अल-सहिहा।
- एजी, मीर सय्यद शरीफ़, शरहे अल-मवाफ़िक़, बद्रुद्दीन नअसानी द्वारा सुधार, क़ुम, अल-शरीफ़ अल-राज़ी, 1325 हिजरी।
- हाकिम नीशापुरी, अल-मुस्तद्रक अली अल-साहिहैन, अनुसंधान: अब्दुर्रहमान मराशली, बी ना, बी जा, बी ता।
- अमिनी, अल-ग़दीर, दारुल किताब अल-अरबी, बैरूत, 1977 ईस्वी/1397।
- तलमसानी, मुहम्मद बिन अबी बक्र, अल-जौहरा फ़ी नसब इमाम अली व आलेह, क़ुम, अंसारियान, बी ता।
- बग़दादी, अब्दुल क़ादिर, ख़ज़ाना अल-अदब व लुब्ब लोबाब लेसान अल अरब, अनुसंधान: मोहम्मद नबील तरीक़ी व अमील बदी याकूब, बैरूत, दारुल कुतुब अल-इल्मिया, 1998 ईस्वी।
- बलाज़री, अहमद बिन यहया, अंसाब अल-अशराफ़ (खंड 1), शोध: मुहम्मद हमीदुल्लाह, मिस्र, दार अल-मआरिफ़, 1959 ईस्वी।
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