अमीरुल मोमिनीन (उपनाम)
- यह लेख अमीरुल मोमिनीन के उपनाम के बारे में है। शियों के पहले इमाम के बारे में जानने के लिए, इमाम अली अलैहिस सलाम देखें।
अमीरुल मोमिनीन (अरबी: اَمیرُالمؤمِنین) इमाम अली (अ) का एक उपनाम है जिसे शिया मानते हैं कि यह हज़रत अली अलैहिस सलाम के लिए विशेष व विशिष्ठ है और शिया अन्य मासूम इमामों के लिए इसका इस्तेमाल नहीं करते हैं। शियों के अनुसार, इस उपनाम का उपयोग पहली बार पैग़ंबरे इस्लाम (स) के समय अली बिन अबी तालिब (अ) के लिए किया गया था और यह उनके लिए अद्वितीय है।
जैसा कि पांचवीं शताब्दी हिजरी में महान शिया विद्वानों में से एक, शेख़ मुफ़ीद ने कहा, ग़दीर की घटना के दौरान, पैग़म्बर (स) ने अली इब्ने अबी तालिब को अपने उत्तराधिकारी और सभी मुसलमानों के मौला के रूप में पेश किया और सभी को अली (अ) को अमीरुल मोमिनीन कह कर अभिवादन (सलाम) करने के लिए कहा। इस संदर्भ में, उम्मे सलमा और अनस बिन मलिक के कथनों को पैगंबर (स) के जीवनकाल के दौरान भी अमीरुल मोमिनीन के उपयोग को दिखाने के लिए उद्धृत किया गया है। हालाँकि इब्ने ख़ल्दून (मृत्यु 808 हिजरी) जो अहले सुन्नत के इतिहासकार हैं, का दावा है कि सबसे पहले सहाबा ने यह ख़िताब (अमीरुल मोमिनीन) उमर बिन ख़त्ताब के लिए इस्तेमाल किया था। यह दावा उन रिवायतों के विपरीत है जो अहले सुन्नत की किताबों में मौजूद हैं और जिनमें पैग़म्बर (स) द्वारा इमाम अली (अ) को "अमीरुल मोमिनीन" कहने का स्पष्ट उल्लेख है।
"अमीरुल मोमिनीन" का राजनीतिक प्रयोग दूसरे खलीफ़ा (उमर) के समय से शुरू हुआ और पहले खलीफ़ाओं (अबू बक्र को छोड़कर), बनी उमय्या और बनी अब्बास के खलीफ़ाओं के लिए भी इस्तेमाल किया जाता था। सातवीं हिजरी के शिया आलिम सय्यद इब्ने ताऊस ने "अल-यक़ीन बे इख़्तेसासे मौलाना अली बे-इमारतिल मोमिनीन" नामक किताब लिखी थी, जिसमें उन्होंने इस खिताब (अमीरुल मोमिनीन) के विशेष रूप से इमाम अली (अ) के लिए होने का प्रमाण दिया है।
परिभाषा
अमीरुल मोमिनीन का अर्थ है मार्गदर्शक, मुसलमानों का कमांडर और रहबर है।[१] शियों का मानना है कि इस उपनाम का उपयोग केवल इमाम अली (अ) के लिए किया जाना चाहिए और यहां तक कि हदीसों के अनुसार, वे इसे मासूम इमामों पर भी लागू करने से इनकार करते हैं।[२]
मफ़ातिहुल जिनान में जो कहा गया है, उसके अनुसार, शियों को ईदे ग़दीर के दिन एक विशेष ज़िक्र[नोट १] कहने की सलाह दी जाती है, जब वे एक-दूसरे से मिलते हैं, जिसमें अमीरुल-मोमिनीन की विलायत के पालन पर ज़ोर दिया जाता है।[३]
अली (अ) के सम्बन्ध में पैग़म्बर द्वारा अमीरुल मोमिनीन का प्रयोग

शियों के अनुसार, अमीरुल मोमिनीन उपनाम का मूल और पहला उपयोग पैगंबर (स) ने किया था आप (स) ने अली बिन अबी तालिब को अमीरुल मोमिनीन कह कर संबोधित किया। हालांकि, इस तथ्य के कारण कि इमाम अली (अ) खिलाफ़त से दूर रहे, इस शब्द का व्यापक रूप से दूसरे और तीसरे खलीफ़़ा, यानी उमर और उस्मान के लिए इस्तेमाल होने लगा।[४]
इस संबंध में, शिया हदीसों का उल्लेख करते हैं जिन्हें शियों और सुन्नियों के माध्यम से वर्णित किया गया है। उम्मे सलमा[५] और अनस इब्ने मलिक के एक कथन के अनुसार, पैगंबर ने अपनी दो पत्नियों के साथ बातचीत में अली इब्ने अबी तालिब का अमीरुल मोमिनीन के रूप में उल्लेख किया।[६]
और सुन्नी विद्वानों के बीच इब्ने मर्दवैह इस्फ़हानी ने अपनी पुस्तक मनाक़िब में दी गई कई हदीसों के अनुसार, पैगंबर (स) ने इमाम अली (अ) को कई बार अमीरुल मोमिनीन के उपनाम से वर्णित किया है। इनमें से एक हदीस में, यह कहा गया है कि जिबरईल (अ) ने ईश्वर के दूत (स) की उपस्थिति में अली (अ) को अमीरुल मोमिनीन कह कर बुलाया।[७]
शिया हदीसों में यह भी कहा गया है कि ग़दीर की घटना के दौरान, इस्लाम के पैगंबर (स) ने अली (अ) को अपने उत्तराधिकारी और सभी मुसलमानों के रहबर के रूप में पेश किया और सभी को अली (अ) को "अमीरुल-मोमिनीन" की उपनाम से बधाई देने के लिए कहा। इस आधार पर, पैगंबर के अनुरोध के बाद, मुसलमानों ने समूहों में अली के तम्बू में प्रवेश किया और उन्हें उसी तरह से बधाई दी जैसे पैगंबर ने आदेश दिया था।[८] एक दूसरी हदीस के अनुसार पैग़ंबर ने सात लोगों से जिन में अबू बक्र, उमर, तल्हा और ज़ुबैर सम्मिलित थे अली (अ) को अमीरुल मोमिनीन कह कर सलाम करने के लिये कहा और उन्होने पैगंबर के अनुरोध को पूरा किया।[९]
इमाम अली (अ) के लिए अमीरुल मोमिनीन के उपनाम को साबित करने में, शियों ने उमर इब्ने ख़त्ताब के एक वाक्यॉॉ[नोट २] का भी हवाला दिया है, जिसके अनुसार, ग़दीर के दिन, उन्होंने अली को सभी ईमान वाले पुरुषों और महिलाओं का मौला (स्वामी) कहा।[१०] कुछ लोगों के अनुसार, इस संबोधन में मोमिन शब्द के प्रयोग का अर्थ इमाम अली (अ) के लिए अमीरुल मोमिनीन के उपनाम को स्वीकार करना है।[११]
अमीरुल मोमिनीन के पहले प्रयोग पर इब्ने ख़ल्दून की राय
सुन्नी इतिहासकार इब्ने ख़ल्दून ने दूसरे ख़लीफा के समय में अमीरुल मोमिनीन उपनाम के वुजूद में आने और उमर बिन ख़त्ताब के लिए इसके प्रयोग के बारे में कहा है: सहाबा ने अबू बक्र को ईश्वर के दूत का ख़लीफा कहा, उसके बाद, उमर बिन ख़त्ताब को ईश्वर के दूत के ख़लीफा का ख़लीफा कहा जाता था, लेकिन क्योंकि यह शब्द भारी था, और विडंबना यह है कि सहाबा में से एक, जिनका नाम अब्दुल्लाह बिन जहश, या अम्र आस, या मुग़ीरा बिन शोअबा या अबू मूसा अशअरी माना जाता है, ने उमर को अमीरल-मोमिनीन कह कर संबोधित किया, सहाबा ने इसे पसंद किया और उसे मंजूरी दे दी।[१२] और कुछ रिपोर्टों के अनुसार, दूसरे खलीफ़ा ने स्वयं इस नामकरण में भूमिका निभाई थी।[१३] तीसरी शताब्दी के इतिहासकार याक़ूबी के अनुसार, यह घटना वर्ष 18 हिजरी से संबंधित है[१४] वास्तव में, अहले सुन्नत के स्रोतों में पैग़म्बर (स) द्वारा इमाम अली (अ) को "अमीरुल मोमिनीन" के खिताब से विभूषित किए जाने का स्पष्ट उल्लेख मिलता है।[१५] इसके अलावा, कुछ लेखकों के अनुसार, इब्ने खल्दून चूँकि शैख़ैन (अबू बक्र और उमर) की श्रेष्ठता में विश्वास रखते थे, इसलिए वह ऐतिहासिक रिवायतों को हटाने, कमज़ोर करने या संशोधित करने का प्रयास करते थे, ताकि खोल्फ़ा-ए-सलासा (पहले तीन खलीफा), उमय्या और अब्बासी खलीफाओं का स्थान ऊँचा दिखाकर इमाम अली (अ) को उमय्या शासकों और अब्बासी शासकों के समकक्ष खड़ा कर सकें।[१६]
इब्ने ख़लदून के अनुसार, उस समय सेना के कमांडरों को अमीर कहा जाता था, सहाबा और साद बिन अबी वक्क़ास, जो क़ासेदिया की जंग (14 हिजरी) में मुस्लिम सेना के कमांडर थे उन्हें अमीरुल मोमिनीन कहते थे।[१७] कुछ रिपोर्टों के अनुसार, दूसरे ख़लीफा ने इस नामकरण में भूमिका निभाई। पवित्र पैगंबर (स) के बाद मुस्लिम सरकारों के इतिहास के दौरान अमीरुल-मोमिनीन शीर्षक राजनीतिक और धार्मिक रूप से इस्तेमाल किया जाने लगा और हमेशा, अबू बक्र को छोड़कर यह ख़ुलाफ़ा ए राशेदीन, बनी उमय्या और बनी अब्बास के ख़ुलाफ़ा को संदर्भित करने के लिये प्रयोग होता था।[१८]
मोनोग्राफ़ी
सय्यद इब्ने ताऊस, सातवीं शताब्दी में शिया मुहद्दीस ने, अल-यक़ीन बे इख़्तेसासे मौलाना अली बे इमरतिल मोमिनीन नामक पुस्तक में, सुन्नी स्रोतों से 220 हदीसों के हवाले से साबित किया है कि अमीरुल मोमिनीन की उपनाम इमाम अली अलैहिस सलाम के लिये विशेष है।[१९] और सय्यद बिन ताऊस का मानना है कि अमीरुल मोमिनीन ऐसा लक़ब है जिसे पैगंबर (स) ने अली (अ) के लिए मख़सूस किया है।[२०]
फ़ुटनोट
- ↑ दायरतुल मआरिफ़े तशय्यो, 1368, खंड 2, पृ.522।
- ↑ मजलिसी, बिहार अल-अनवार, 1403 हिजरी, खंड 37, पृष्ठ 334; हुर्रे आमेली, वसायल अल-शिया, 1416 हिजरी, खंड 14, पृष्ठ 600।
- ↑ क़ुमी, मफ़ातिहुल जिनान, 18 ज़िल हिज्जा के आमाल के अंतर्गत
- ↑ शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 1, पृ.48; इब्ने उक़बा कूफी, फज़ाएले अमीरुल मोमिनिन, 1379, पृष्ठ 13; यह भी देखें: इब्ने असाकर, तारीख़े मदीन ए दमिश्क़, 1425 हिजरी, खंड 42, पीपी 303 और 386; अबू नईम इस्फ़हानी, हिलयतुल-औवलिया, 1407 हिजरी, खंड 1, पृ.63।
- ↑ शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 1, पृ.48।
- ↑ इब्ने असाकर, तारीख़े मदीन ए दमिश्क़, 1425 हिजरी, खंड 42, पीपी 303 और 386; शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 1, पृ.48; अबू नईम इस्फ़हानी, हिलयतुल-औवलिया, 1407 हिजरी, खंड 1, पृ.63।
- ↑ इब्ने मर्दुवैह, मनाक़िब, 2013, पीपी. 62-64।
- ↑ शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 1, पृ.176।
- ↑ शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 1, पृ.48।
- ↑ शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 177।
- ↑ मुनतज़ेरी मोक़द्दम, "बररसी कारबुर्दहाए लक़बे अमीरुल मोमिनीन दर बिस्तरे तारीख़े इस्लाम", पृष्ठ 136।
- ↑ इब्ने ख़लदून, दीवान अल-मुबतदा वल-ख़बर, 1408 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 283।
- ↑ तबरी, तारीख़ अल उमम व अल मुलूक, बैरूत, खंड 4, पृष्ठ 208।
- ↑ याक़ूबी, तारिख़े याकौबी, दार सादिर, खंड 2, पृष्ठ 150।
- ↑ इब्ने असाकर, तारीख़े मदीना दमिश्क़, 1425 हिजरी, खंड 42, पृष्ठ 303 और 386।
- ↑ उम्मेह तलब, दावरी दर अंदीशेहाए इब्ने ख़ल्दून दरबार ए इमाम अली अलैहिस्सलाम व मसअल ए ख़िलाफ़त, पृष्ठ 92।
- ↑ इब्ने ख़लदून, इब्ने ख़लदून, दीवान अल-मुबतदा वाल-ख़बर, 1408 हिजरी, खंड 1, पृ.283।
- ↑ इब्ने ख़लदून, दीवान अल-मुबतदा वल-ख़बर, 1408 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 283।
- ↑ तक़द्दुमी मासूमी, नूर अल-अमीर फ़ा तसबीत ख़ुतबा अल-ग़दीर, 1379, पृष्ठ 97।
- ↑ "अलयक़ीन बेइख़्तेसास मौलाना अली बेअमरिहि अलमोमिनीन", हदीस नेट साइट।
नोट
- ↑ अलहम्दो लिल्लाहिल्लज़ी जअलना मिनल मुतमस्सेकीना बे विलायते अमीरिल मोमेनीन वल आइम्मतिल मासूमीन अलैहिमुस्सलााम (अनुवाद: ईश्वर की विशेष प्रशंसा की जाती है, जिसने हमें उन लोगों में से बनाया जो अमीरुल मोमिनीन और मासूम इमामों के शासन का पालन करते हैं) क़ुमी, मफ़ातिहुल जिनान, 18 ज़िल हिज्जा के आमाल के अंतर्गत
- ↑ बख़्ख़िन बख़्ख़िन लका यब्ना अबी तालिब अस्बहता व अमसयता मौलाया व मौला कुल्ले मोमेनिन व मोमेनतिन;(अनुवाद:वाह वाह, हे अली! तुम मेरे मौला हो और सभी ईमान वाली औरतों व मर्दों के मौला बन गए!) शेख़ मुफ़ीद, अल इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 177।
स्रोत
- आमदी, अब्दुल वाहिद बिन मुहम्मद, ग़ुरर अल-हेकम और दुरर अल-कलिम, क़ुम, दार अल-किताब अल-इस्लामी, 1410 हिजरी/1990 ई.
- इब्ने खलदून, अब्दुर रहमान इब्न मुहम्मद, दीवान अल-मुबतदा वल-ख़बर फ़ी तारिख़ अल-अरब वा अल-बर और मन आसरहुम मिन ज़ी शान अल-अकबर, खलील शहादाह, बेरूत, दार अल-फ़िक्र द्वारा शोधित, 1408 हिजरी/ 1988 ई.
- इब्ने असाकर, तारीख़े मदीन ए दमिश्क़, अली शिरी, बेरूत, दार अल-फ़िक्र, 1425 हिजरी द्वारा शोध किया गया।
- इब्ने उक़दा कूफी, फ़ज़ाएले अमीर अल-मोमेनिन, अब्दुल रज्जाक़ मोहम्मद हुसैन हर्ज़ुद्दीन, क़ुम, दलिल प्रकाशन, 1379 द्वारा संकलित।
- इब्न मर्दविह, अहमद बिन मूसा, मनाक़िब अली बिन अबी तालिब, क़ुम, दार अल-हदीस, 1382।
- अबू नईम इस्फ़हानी, अहमद बिन अब्दुल्लाह, हिलयतुल-अवलिया और तबक़ात अल-असफ़िया, बेरूत, दार अल-किताब अल-अरबी, 1407 हिजरी।
- अब्दुस, मोहम्मद तकी, और मोहम्मद मोहम्मदी एशतेहारदी, बीसते पंज अस्ल अज़ उसूले अख़लाक़ी इमामान, क़ुम, इस्लामी प्रचार कार्यालय प्रकाशन केंद्र, 1377।
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- तक़द्दुमी मासूमी, अमीर, नूर अल-अमीर (अ) फ़ी तसबीत ख़ुतबतिल ग़दीर: मुअय्येदात हदीसिया मिन कुतुबे अहलिस सुन्ना लेख़ुतबतिन नबी अल-आज़म अल-ग़दिरिया, क़ुम, 1379.
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- शेख़ मुफ़ीद, मुहम्मद बिन मुहम्मद, अल-इरशाद फ़ी मारेफ़ते हुज्जुल्ला अलल-इबाद, आलुल-बैत ले एहया अल-तुरास संस्थान, क़ुम का शोध, शेख़ मोफ़ीद मिलेनियम अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन, 1413 हिजरी।
- तबरी, मुहम्मद बिन जरीर, तारिख़ अल-उमम वल-मुलूक (तारीख़े तबरी), मुहम्मद अबुल फज़ल इब्राहिम, बेरूत, रुए अल-तुरास अल-अरबी, बीता।
- क़ुम्मी, शेख़ अब्बास, मफ़ातिह अल-जिनान, मूसवी दमग़ानी द्वारा अनुवादित, मशहद, आस्तान कुद्स रज़वी पब्लिशिंग हाउस, 11वां संस्करण।
- मजलेसी, मोहम्मद बाकिर, बिहार अल-अनवार, बेरूत, अल-वफा संस्थान, 1403 हिजरी।
- मुनतज़ेरी मोक़्ददम, हमीद, "बररसी कारबुर्द हाए लक़बे अमीरुल मोमिनीन दर बिसतरे तारीख़े इस्लाम", दर मजल्लए तारीख़े इस्लाम दर आईन ए पजोहिश, क़ुम, इमाम खुमैनी इंस्टीट्यूट, स्प्रिंग 2018 में।
- याकूबी, अहमद बिन वाज़ेह, तारिख़ अल याक़ूबी, बेरूत, दार सदर, बीता।