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ईदे ग़दीर

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(ग़दीर के दिन से अनुप्रेषित)
यह लेख ईदे ग़दीर के बारे में है। ग़दीर की घटना के बारे में जानकारी के लिए ग़दीर की घटना लेख देखें। उपदेश (ख़ुत्बा) का पाठ पढ़ने के लिए ख़ुत्बा ए ग़दीर लेख देखें।
ईदे ग़दीर
मुहम्मद फ़र्चियान की ग़दीरी चित्रकला
मुहम्मद फ़र्चियान की ग़दीरी चित्रकला
जानकारी
समय18 ज़िल हिज्जा
ऐतिहासिक उत्पत्तिहज्जतुल विदा
वस्तुएँ और प्रतीकभोजन देनासादात का सम्मान करना
प्रार्थनाاَلحمدُ لِلهِ الّذی جَعَلَنا مِنَ المُتَمَسّکینَ بِولایةِ اَمیرِالمؤمنینَ و الائمةِ المَعصومینَ علیهم السلام (अलहम्दो लिल्लाहिल लज़ी जअलना मिनल मुतमस्सेकीना बे विलायते अमीरिल मोमेनीन वल आइम्मतिल मासूमीना अलैहिमुस्सलाम)
उद्धरण और कविताएँहस्सान बिन साबित की ग़दीर के बारे में कविता


ईदे ग़दीर, (अरबी: عید الغدیر) शियों की सबसे बड़ी ईदों में से एक है, जिसमें ज़िल हिज्जा की 18 तारीख़ को पवित्र पैगंबर (स) ने ईश्वर के आदेश पर इमाम अली अलैहिस सलाम को अपने बाद ख़लीफ़ा और अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। ग़दीर की घटना हिजरी के दसवें वर्ष में और ग़दीरे ख़ुम के इलाक़े में हज यात्रा से वापसी के दौरान हुई थी।

शिया हदीसों में, इस दिन के लिए ईदे अकबर (सबसे बड़ी ईश्वरीय ईद), पैग़ंबर (स) के अहले बैत (अ) की ईद और अशरफ़ुल आयाद (उच्चतम ईद) जैसी व्याख्याओं का उपयोग किया गया है। दुनिया भर के शिया इस दिन का सम्मान करते और जश्न मनाते हैं। ईदे ग़दीर के दिन इस्लामी देश ईरान में आधिकारिक अवकाश होता है।

ग़दीर की घटना

मुख्य लेख: ग़दीर की घटना और ख़ुत्बा ए ग़दीर

वर्ष 10 हिजरी के ज़िल कादा के 24 या 25 वें दिन, पैगंबर (स) ने हज अदा करने के लिए हजारों लोगों के साथ मदीना से मक्का का सफ़र किया।[] चूंकि यह हज पैगंबर (स) का अंतिम हज था, इसलिए यह हज्जतुल वेदाअ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।[] जब हज की गतिविधियाँ समाप्त हो गईं और पैग़ंबर (स) मुसलमानों के साथ मक्का से मदीना की ओर चले, तो वे ज़िल हिज्जा की 18 तारीख़ को ग़दीरे ख़ुम के स्थान पर पहुँचे।[] हज़रत जिबरईल (अ) आयत ए तब्लीग़ को लेकर पैगंबर (स) के पास आये और ईश्वर की ओर से उन्हे आदेश दिया कि वह अली (अ) को अपने बाद अपने वली (उत्तराधिकारी) और वसी के रूप में लोगों से मिलवाएं।[] अल्लाह के दूत (स) ने लोगों को जमा किया और अली (अ) को अपने उत्तराधिकारी होने की घोषणा कर दी।[]

ग़दीर का उपदेश

हदीसों के अनुसार, हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि व सल्लम ने लोगों को ग़दीरे ख़ुम में इकट्ठा किया और अली (अलैहिस सलाम) का हाथ उठाया ताकि हर कोई उसे देख सके और कहा: "हे लोगों, क्या मैं तुम पर तुम से ज़्यादा विलायत नही रखता हूँ? सबने कहा: हाँ, ऐ अल्लाह के रसूल, फिर हज़रत ने फरमाया: "ईश्वर मेरा संरक्षक (वली) है और मैं ईमान वालों का संरक्षक (वली) हूं और उन पर उनसे अधिक संरक्षकता रखता हूँ। "जिसका मैं मौला हूँ उसके यह अली मौला हैं। हज़रत (अ) ने इस वाक्य को तीन बार दोहराया और कहा:

ऐ अल्लाह, जो अली को अपना दोस्त और अभिभावक मानता है, ,तू उसे दोस्त रख और उसकी सरपरस्ती कर, और जो भी उसे दुश्मन मानता है, तू उसे दुश्मन रख, और उसकी मदद करने वाले की मदद कर, और उसे अकेला छोड़ दे, जिसने उन्हे छोड़ दिया है।

फिर उन्होंने लोगों को संबोधित किया और कहा: "जो लोग मौजूद हैं उन्हें यह संदेश उन लोगों तक पहुंचाना चाहिए जो अनुपस्थित हैं।"

ग़दीर के दिन की फ़ज़ीलत

सुन्नी किताबों में वर्णित है कि जो कोई ज़िल हिज्जा के 18 वें दिन उपवास रखता है, भगवान उसके लिए छह महीने के उपवास का पुन्य लिखेगा, और यह दिन वही ईदे ग़दीर ख़ुम का दिन है।

  • पैग़ंबर (स) ने फ़रमाया: ग़दीरे ख़ुम का दिन मेरी उम्मत की बड़ी ईदों में से एक है और यह वह दिन है जब महान ईश्वर ने मुझे अपने भाई अली बिन अबी तालिब को मेरी उम्मत के ध्वज वाहक के रूप में नियुक्त करने का आदेश दिया ताकि लोग मेरे बाद उनके द्वारा निर्देशित (हिदायत) हों।[]
  • इसी तरह इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) ने फ़रमाया: "गदीरे ख़ुम का दिन अल्लाह की महान ईद है, ईश्वर ने किसी नबी को नहीं भेजा है, मगर यह कि उसने इस दिन को ईद के रूप में मनाया और इसकी महानता को मान्यता दी, इस दिन का नाम आकाश में सौगंध और समझौता और पृथ्वी में, दृढ़ समझौते का दिन और सभी की उपस्थिति है।[]
  • एक अन्य हदीस में, इमाम सादिक़ (अ) ग़दीर को सबसे बड़ी और सबसे सम्मानजनक मुस्लिम ईद मानते हैं, उस दिन का हर घंटा भगवान को धन्यवाद देने के योग्य है और लोगों को इसके शुक्र में उपवास रखना चाहिए, क्योंकि इस दिन का उपवास साठ साल की इबादत के बराबर है।
  • इमाम अली रज़ा (अ) ने फ़रमाया: "ग़दीर का दिन पृथ्वी के लोगों की तुलना में आकाश के लोगों के बीच अधिक प्रसिद्ध है ... यदि लोग इस दिन का मूल्य जानते हैं, तो निस्संदेह, फ़रिश्ते हर दिन उनसे दस बार हाथ मिलाते।"[]

ईदे ग़दीर के जश्न का इतिहास

हस्सान बिन साबित पहले व्यक्ति थे जो पवित्र पैगंबर (स) की उपस्थिति में खड़े हुए और ग़दीर के दिन ग़दीर ख़ुम में मौजूद मुसलमानों के मजमे में इस दिन के सम्मान में पैग़ंबर की अनुमति के साथ लिखी गई अपनी कविता को बुलंद आवाज़ में पढ़ा।[]

फ़याज़ बिन मुहम्मद बिन उमर तूसी एक हदीस का वर्णन करते हैं कि इमाम रज़ा अलैहिस सलाम ग़दीर के दिन को ईद के रूप में मनाते थे। उन्होने उस दिन उपवास तोड़ने के लिए अपने साथियों के एक समूह को अपने पास रोक लिया और उनके परिवारों को भोजन, उपहार, कपड़े और यहां तक कि जूते और अंगूठियां भी भेजीं।[१०]

अमीनी (अल्लामा अमीनी या उनके पिता या उनके पुत्र) के अनुसार, क़ुम में 259 हिजरी में, इमाम हसन असकरी अलैहिस सलाम के प्रतिनिधि अहमद बिन इसहाक़ क़ुम्मी ने ग़दीर के दिन अपने घर में उत्सव मनाया।[११]

चौथी चंद्र शताब्दी के इतिहास कार मसूदी (मृत्यु 346 हिजरी) ने पुस्तक अल-तनबियह वल-इशराफ़ में लिखा है कि इमाम अली (अ) की औलाद और उनके शिया इस दिन का सम्मान करते थे।[१२]

शैख़ कुलैनी (मृत्यु 328 हिजरी), चौथी शताब्दी के एक मुहद्दिस (हदीस शास्त्र के बड़े ज्ञानी), ने भी एक हदीस में शियों के जश्न मनाने का वर्णन किया है।[१३]

इस ईद के महत्व को दिखाने के लिए, आले बुयेह सरकार ने भी इसे सार्वजनिक अवकाश घोषित किया और जश्न मनाने का ऐलान किया और सरकारी संस्थानों और लोगों को शहरों को सजाने और जश्न मनाने के लिए प्रोत्साहित किया।[१४] इन समारोहों में, वे ढोल और ताशे का इस्तेमाल करते थे, पवित्र स्थानों की ज़ियारत के लिए तीर्थ यात्रा पर जाते थे, ईद की नमाज़ अदा करते थे, ऊंटों की बलि देते थे और रात में आग जलाते थे, जश्न और खुशी मनाते थे।[१५]

गरदेज़ी ने इस दिन को महान इस्लामी दिनों और शियों की ईदों में से एक के रूप में गिना है।[१६]

मिस्र में, फ़ातिमी ख़लीफाओं ने ईदे ग़दीर को सरकारी तौर पर मान्यता दी, और ईरान में, 907 ईस्वी के बाद से जब शाह इस्माइल सफ़वी गद्दी पर आए, ईदे ग़दीर एक आधिकारिक अवकाश रहा है। 487 हिजरी में, ईदे ग़दीर ख़ुम के दिन मुस्तली बिन मुस्तनसर (मिस्र के शासकों में से एक) के हाथों पर बैअत की गई।[१७]

ईदे ग़दीर के दिन ईरान में आधिकारिक अवकाश होता है।[१८] हाल के वर्षों में, ईदे ग़दीर को कुछ इराक़ी प्रांतों जैसे कर्बला, नजफ़ और ज़ीक़ार में आधिकारिक अवकाश घोषित किया गया है। [स्रोत की आवश्यकता है]

शिया शबे ईदे ग़दीर का भी बहुत सम्मान करते हैं और रात जाग कर (इबादत में) बिताते हैं।[१९]

ईदे ग़दीर के आमाल

मुख्य लेख: ईदे ग़दीर के आमाल
  • रोज़ा रखना: अहले सुन्नत की किताबों में पैग़म्बर (स) से एक रिवायत वर्णित है कि जो कोई 18 ज़िल हिज्जा का रोज़ा रखेगा, ईश्वर उसके लिए 6 महीने के रोज़ों का सवाब लिख देगा।[२०]
  • यह वाक्य पढ़ना: जब मोमिनीन से मुलाकात हो,"अलहम्दो लिल्लाहिल्लज़ी जअलना मिनल मुतमस्सेकीना बे विलायते अमीरिल मोमिनीना वल आइम्मते अलैहिमुस्सलाम" (अनुवाद: सारी प्रशंसा ईश्वर के लिए है, जिसने हमें उन लोगों में शामिल किया जो अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली (अ) और इमामों (अ) की विलायत को थामने वाले हैं।)[२१]
  • ईदे ग़दीर की नमाज़ पढ़ना: इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) से एक रिवायत वर्णित है कि ईदे ग़दीर के दिन दो रक'अत नमाज़ पढ़नी चाहिए, जिसमें: पहली रकअत: सूर ए हम्द के बाद 10 बार सूर ए इख़्लास, 10 बार आयतुल कुर्सी, और 10 बार सूर ए क़द्र (इन्ना अंज़ल्नाहो...) पढ़ें। दूसरी रक'अत: भी ऐसे ही पढ़ें। इस नमाज़ का सवाब 100 हज और 100 उमरा के बराबर है। ईश्वर दुनिया और आख़िरत की सारी ज़रूरतें पूरी करता है।[२४] इस नमाज़ को ज़ोहर के समय पढ़ना चाहिए। कुछ न्यायविदों का मानना है कि इसे जमाअत के साथ पढ़ना जाइज़ है, जबकि कुछ इसे फ़ोरादा (अकेले) पढ़ने को बेहतर मानते हैं।[२५]

रीति रिवाज़

सादात से मुलाक़ात

मुख्य लेख: सादात से मुलाक़ात (रस्म)

शिया मुसलमान, खासकर ईरान और अन्य इस्लामी देशों में, ईदे ग़दीर के दिन सादात से मुलाक़ात के लिए जाते हैं। सादात भी इस खुशी के मौके पर लोगों को ईदी (उपहार) के रूप में पैसा या कोई वस्तु देते हैं।[२६]

ग़ुदार के दिन खाना खिलाना

मुख्य लेख: ग़दीर के दिन खाना खिलाना

शिया मुसलमान ईदे ग़दीर के दिन मस्जिदों और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर भोजन का आयोजन करते हैं।[२७] सड़कों पर शरबत और मिठाई भी बाँटी जाती है। हदीसों के अनुसार, इस दिन एक मोमिन को भोजन कराने का सवाब (पुण्य) 10 लाख पैग़म्बरों, सिद्दीकों और शहीदों को खिलाने के बराबर माना गया है।[२८] इमाम रज़ा (अ) ने भी इस दिन विशेष भोज का आयोजन किया था और अपने साथियों को इफ्तार कराया था।[२९]

अक़्दे उख़ुव्वत (भाईचारे की सौगंध)

मुख्य लेख: अक़्दे उख़ुव्वत

शेख़ अब्बास क़ुमी के अनुसार, ईदे ग़दीर के दिन अक़्दे उखुव्वत (भाईचारे की सौगंध) बाँधना एक महत्वपूर्ण आदत (रिवाज) है। इसका मतलब है कि लोग आपस में दुनिया में भाईचारा और एकता का वादा करते हैं और आख़िरत में एक-दूसरे की मदद करने का संकल्प लेते हैं।[३०] कुछ शिया मुसलमान ईद-ए-ग़दीर के दिन औपचारिक रूप से अक़्द-ए-उखुव्वत पढ़ते हैं (भाईचारे की प्रतिज्ञा लेते हैं)। इस परंपरा को फिर से जीवित करने के लिए, फरहंगसरा-ए-अंदिशा (संस्कृति केंद्र) ने एक डिजिटल मुहिम "ब्रादराना" (भाईचारा) शुरू की है। इसका मकसद शिया मुसलमानों और अहले बैत (अ) के चाहने वालों के बीच एकता और भाईचारे को मज़बूत करना है।[३१]

मोनोग्राफ़ी

ग़दीर ईद के बारे में कई पुस्तकें लिखी गई हैं:

  • ईद अल ग़दीर बैन अल सुबूत वल इस्बात, अल्लामा अमीनी द्वारा लिखित।
  • ईद अल ग़दीर फिल इस्लाम वत्तवीज वल क़ुरबात यौम अल ग़दीर, अल्लामा अमीनी द्वारा लिखित (अरबी भाषा में पुस्तिका)
  • ईद अल ग़दीर फ़ी अहद अल फ़ातेमियीन, मुहम्मद हादी अमीनी द्वारा लिखित: यह किताब फ़ातेमिया काल में ईदे ग़दीर के बारे में लिखी गई है।[39]
  • ईद अल ग़दीर बैन अल सुबूत वल इस्बात, सय्यद आदिल अलवी द्वारा लिखित।[३२]

संबंधित लेख

फ़ुटनोट

  1. तूसी, तहज़ीबुल-अहकाम, 1407 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 474; तबरी, तारिख़ अल-उमम वल-मुलूक, 1387 हिजरी, खंड 3, पृ.148।
  2. ज़रक़ानी, शरह अल-ज़रकानी, 1417 हिजरी, खंड 4, पृ.141; तारी, "पैगंबर की मौत के इतिहास पर एक प्रतिबिंब", पृष्ठ 3।
  3. याकूबी, तारिख़े याक़ूबी, खंड 2, पृष्ठ 112।
  4. अयाज़ी, तफ़सीरे कुरआन, 1422 हिजरी, पृष्ठ 184; अयाशी, तफ़सीर अयाशी, vol.1, p.332.
  5. इब्ने असीर, उसदुल ग़ाबा, 1409 एएच, खंड 3, पृ. 605; कुलैनी, अल-काफी, 1407 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 295; बलाज़री, अंसाब अल-अशराफ़, 1417 हिजरी, खंड 2, पेज 111-110; इब्ने कसीर, अल-बिदाया वन-निहाया, 1407 हिजरी, खंड 7, पृष्ठ 349।
  6. शेख़ सदूक़, अमाली, 1376, पृष्ठ 125
  7. हुररे आमोली, वसायल अल-शिया, 1416 हिजरी, खंड 10, पृष्ठ 443
  8. हुर्रे आमिली, वसायलुश-शिया, 1416 हिजरी, खंड.8, पृ.89
  9. सैय्यद रज़ी, ख़साइसुल आइम्मा , पृष्ठ 42.
  10. मजलिसी, बेहार अल-अनवार, खंड 95, पृष्ठ 322
  11. अमीनी, अल-ग़दीर, 1416 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 534।
  12. मसूदी, अल-तंबियाह वल-इशराफ़, पृष्ठ 221
  13. कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 149।
  14. इब्ने कसीर, अल-बिदाया वल-निहाया, 1408 हिजरी, खंड 11, पृष्ठ 276
  15. इब्ने जौज़ी, अल-मुंतज़िम फ़ी तारिख़ अल-उमम वल-मुलूक, 1412 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 14
  16. गरदेज़ी, ज़ैन अल-अख़बार, 1363, पृष्ठ 466
  17. इब्ने खलक़ान, वफ़यातुल-आयान, 1364, खंड 1, पृष्ठ 180
  18. देश की आधिकारिक छुट्टियों के निर्धारण के लिए कानूनी बिल, इस्लामिक काउंसिल के रिसर्च सेंटर की वेबसाइट।
  19. सआलेबी, सेमार अल-क़ुलूब, 1424 हिजरी, पृ. 511
  20. ख़तीब बग़दादी तारीख़ ए बग़दाद, दारुल कुतुब अल इल्मिया, खंड 8, पृष्ठ 284।
  21. शेख़ अब्बास क़ुमी, मफ़ातीह अल जिनान ,18 ज़िल-हिज्जा के आमाल के तहत।
  22. शहीदे अव्वल, अल मज़ार ,1410 हिजरी, पृष्ठ 64।
  23. शेख़ अब्बास क़ुमी, मफातीह अल जिनान, 18 ज़िल-हिज्जा के आमाल के तहत।
  24. शेख़ तूसी, तहज़ीब अल अहकाम ,1365 शम्सी, खंड 3, पृष्ठ 143।
  25. शेख़ यूसुफ़ बहरानी, अल हदाइक अन नाज़िरा ,मोअस्ससा अन नशर अल इस्लामी, खंड 11, पृष्ठ 87।
  26. ईदे सादात व सियादत दर फ़र्हंगे ईरानी, जवान ऑनलाइन।
  27. बरपाए सुफ़रेहाए इत्आमे ग़दीर दर मसाजिद उस्ताने जंजान, ख़बर एजेंसी शबिस्तान।
  28. तूसी, मिस्बाह अल मुतहज्जद, 1411 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 758।
  29. तूसी, मिस्बाह अल मुतहज्जद, 1411 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 752।
  30. अल बोरोजर्दी, अल सय्यद हुसैन, जामेअ अहादीस अश-शिया, खंड 7, पृष्ठ 414। शेख़ अब्बास क़ुमी, मफ़ातीह अल जिनान, ईद-ए-ग़दीर के दिन के आमाल के तहत।
  31. एहयाए सुन्नत ग़दीरी ए अक़्दे उख़ुव्वत दर पोइशे बेरादेराने, खबर एजेंसी शबिस्तान।
  32. अमीनी, ईद अल ग़दीर फ़ी अहदे अल फ़ातेमेईन, 1376 शम्सी, पृष्ठ 41।

स्रोत

  • इब्ने असीर, अली इब्ने मुहम्मद, उसदुल-ग़ाबा फ़ी मारेफ़तिस सहाबा, बेरूत, दार अल-फिक्र, 1409 हिजरी।
  • इब्ने जौज़ी, अबुल फ़राज़, अल-मुंतज़म फ़ित तारिख़िल-उमम वल-मुलूक, मुहम्मद अब्द अल-कादिर अता, बेरूत, दार अल-किताब अल-अलामिया द्वारा शोधित, पहला संस्करण, 1412 हिजरी।
  • इब्ने खलक़ान, अहमद इब्न मुहम्मद, वफ़ायतुल-आयान, एहसान अब्बास द्वारा अनुसंधान, क़ुम, अल-शरीफ़ अल-रज़ी, 1364।
  • इब्ने कसीर, इस्माइल इब्ने उमर, अल-बिदाया वन-निहाया, बी जा, दार अल-फ़िक्र, 1407 हिजरी।
  • सआलबी, अब्द अल-मलिक बिन मुहम्मद, सेमार अल-क़ुलूब फ़िल-मज़ाफ़ वल-मंसूब, मुहम्मद अबू अल-फ़ज़ल इब्राहिम, बेरूत, मकतबा अल-असरियाह, 1424 हिजरी द्वारा शोध।
  • अमीनी, अब्दुल हुसैन, अल-ग़दीर फ़िल-किताब वस सुन्नत, क़ुम, अल-ग़दीर सेंटर फ़ॉर इस्लामिक स्टडीज़, पहला संस्करण, 1416 हिजरी।
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  • बलाज़री, अहमद बिन याह्या, अंसाब अल-अशराफ़, सोहेल ज़क्कर और रियाज़ अल-ज़रकली, बेरूत, दार अल-फ़िक्र, 1417 हिजरी द्वारा शोध किया गया।
  • तारी, जलील, "पैगंबर की मौत के इतिहास पर एक प्रतिबिंब", इस्लामी इतिहास त्रैमासिक, क़ुम, बाकिर अल-उलूम विश्वविद्यालय, 1379।
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  • सैय्यद मुहम्मद बकर मोहम्मद अबताही, क़ुम, इमाम अल-महदी (एएस), 1410 हिजरी के प्रयासों से पहला शहीद, मुहम्मद बिन मक्की, अल-मज़ार।
  • शेख़ सदूक़, मुहम्मद बिन अली, अमली, मोहम्मद बाकर कोह कामरेई द्वारा अनुवादित, तेहरान, किताबची, 1376।
  • तूसी, मोहम्मद बिन हसन, तहज़ीब अल-अहकाम, सैय्यद हसन मूसवी ख़िरसान, दारुल किताब अल-इस्लामिया, तेहरान।
  • अय्याशी, मुहम्मद बिन मसूद, तफ़सीर अय्याशी, रसूली महल्लाती अनुसंधान, तेहरान, इस्लामिक स्कूल।
  • क़ुम्मी, मफ़ातिहुल-जेनान।
  • "देश की आधिकारिक छुट्टियों के निर्धारण के लिए कानूनी बिल", इस्लामिक काउंसिल रिसर्च सेंटर की वेबसाइट, यात्रा की तारीख: 6 अगस्त, 1400।
  • किलिनी, मुहम्मद बिन याकूब, अल-काफी, अली अकबर गफ़ारी द्वारा संशोधित, दार अल-किताब अल-इस्लामिया, तेहरान, 1407 हिजरी।
  • गार्डीज़ी, अबू सैयद, ज़ैन अल-अख़बार, तेहरान, बुक वर्ल्ड, वॉल्यूम 1, 1363।
  • मजलेसी, मुहम्मद बाक़िर, बिहार अल-अनवार, अल-वफा संस्थान, बेरूत।
  • मसूदी, अली बिन हुसैन, ताबियेह वा अल-अशरफ, दार अल-सावी, काहिरा, 1357 हिजरी।
  • याक़ूबी, अहमद बिन अबी याक़ूब, तारिख़ अल-याक़ूबी, बेरूत, दार सादिर।