इमाम सज्जाद अलैहिस सलाम

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इमाम सज्जाद (अ)
शियों के चौथे इमाम
बक़ीअ क़ब्रिस्तान
नामअली बिन हुसैन (अ)
उपाधिअबुल हसन, अबुल हुसैन, अबू मोहम्मद, अबू अब्दिल्लाह
जन्मदिन5 शाबान या 15 जमादी अल सानी, वर्ष 38 हिजरी
इमामत की अवधि34 वर्ष, वर्ष 61 हिजरी से वर्ष 95 हिजरी तक
शहादत12 मुहर्रम या 25 मुहर्रम, वर्ष 94 या 95 हिजरी
दफ़्न स्थानबक़ीअ क़ब्रिस्तान
जीवन स्थानमदीना
उपनामसज्जाद, ज़ैनुल आबेदीन, सय्यद अल साजेदीन, ज़ुल सफ़ेनात
पिताइमाम हुसैन (अ)
माताशहर बानो
जीवन साथीउम्मे अब्दुल्लाह
संतानमोहम्मद, अब्दुल्लाह, हसन, हुसैन अकबर, ज़ैद, उमर, हुसैन असग़र, अब्दुर्रहमान, सुलैमान, अली, ख़दीजा, मोहम्मद असग़र, फ़ातिमा, अल्लिया, उम्मे कुलसूम
आयु57 वर्ष
शियों के इमाम
अमीरुल मोमिनीन (उपनाम) . इमाम हसन मुज्तबा . इमाम हुसैन (अ) . इमाम सज्जाद . इमाम बाक़िर . इमाम सादिक़ . इमाम काज़िम . इमाम रज़ा . इमाम जवाद . इमाम हादी . इमाम हसन अस्करी . इमाम महदी


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अली बिन हुसैन बिन अली बिन अबी तालिब (अ), (फ़ारसी: امام سجاد علیه‌ السلام) इमाम सज्जाद और इमाम ज़ैन अल-आबेदीन (38-95 हिजरी) के नाम से प्रसिद्ध, शियों के चौथे इमाम है। उनकी इमामत का कार्यकाल 34 वर्ष का था। कर्बला की घटना में इमाम सज्जाद (अ) मौजूद थे; परन्तु बीमारी के कारण उन्होंने युद्ध में भाग नहीं लिया। इमाम हुसैन (अ.स.) की शहादत के बाद उमर बिन साद की सेना उन्हें कर्बला के क़ैदियों के साथ कूफ़ा और सीरिया ले गई। शाम में इमाम सज्जाद का उपदेश लोगों के अहले-बैत (अ) के रूतबे से अवगत होने का कारण बना।

हर्रा की घटना, तव्वाबीन आंदोलन और मुख़्तार का विद्रोह इमाम सज्जाद (अ.स.) के समय में हुआ। इमाम सज्जाद (अ.स.) की दुआओं और प्रार्थनाओं का संग्रह सहीफ़ा सज्जादिया किताब में संकलित है। इमाम (अ) के कथनों का संग्रह रिसाला अल हुक़ूक़ (अधिकारों का ग्रंथ) में ईश्वर और सेवकों, जनता और शासकों, माता-पिता और बच्चों, पड़ोसियों .... आदि के 50 अधिकार शामिल हैं।

शिया हदीसों के अनुसार, इमाम सज्जाद (अ.स.) को वलीद बिन अब्द अल-मलिक के आदेश पर ज़हर देकर शहीद किया गया। उन्हें इमाम हसन मुजतबा (अ), इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ) और इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) की क़ब्रों के बगल में बक़ीअ क़ब्रिस्तान में दफ़्न किया गया।

इमाम सज्जाद (अ) में बहुत से गुण थे। उदाहरण के तौर पर, उनकी पूजा-अर्चना और ग़रीबों की मदद करने के बहत से मामलों उल्लेख किया गया हैं। इमाम (अ) को सुन्नियों के बीच एक उच्च स्थान प्राप्त है और वे उनके ज्ञान, पूजा और धर्मपरायणता की प्रशंसा करते हैं।