अल-अक़्सा मस्जिद
संस्थापक | अब्दुल मलिक बिन मरवान |
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स्थापना | 66 हिजरी-73 हिजरी |
उपयोगकर्ता | मस्जिद |
स्थान | बैतुल मुकद्दस |
अन्य नाम | मस्जिद बैतुल मुकद्दस |
संबंधित घटनाएँ | 1969 मे आग लगी, विश्व मस्जिद दिवस |
स्थिति | सक्रिय |
शैली | इस्लामी |
पुनर्निर्माण | अलग-अलग अवधियों में |
अल-अक़्सा मस्जिद (अरबी: المسجد الأقصی) बैतुल मुकद्दस में मुस्लमानो की पवित्र मस्जिदों में से एक है जोकि मुस्लमानोंं का पहला क़िबला था। कुछ रिवायतो के आधार पर पैग़म्बरे अकरम (स) इसी स्थान से मेराज पर गए थे। क़ुरआन शरीफ़ के सूर ए इस्रा मे मेराज का उल्लेख करते हुए अल-अक़्सा मस्जिद का ज़िक्र किया है। इस मस्जिद का मुस्लमान, यहूदी और ईसाई सम्मान करते है, इस्लामी हदीसों में मस्जिद अल-हराम (काबा) और मस्जिद अल-नबी के साथ-साथ इसकी भी बाफ़ज़ीलत मस्जिदों में गणना की जाती है और इस मस्जिद में नमाज़ अदा करना दूसरी मस्जिदो हज़ार नमाज़ अदा करने के समान है।
यहूदियो का मानना है कि मअबद ए सुलैमान के अवशेष अल-अक़्सा मस्जिद के नीचे स्थित है। कुछ ईसाईयो के अनुसार अल-अक़्सा मस्जिद का विनाश और उसके स्थान पर तीसरे मअबद ए सुलैमान का निर्माण हज़रत ईसा (अ) के ज़ुहूर की शर्तो मे से एक है। इसी कारण कुछ यहूदी अल-अक़्सा मस्जिद को ध्वस्त करने और उसके स्थान पर मअबद ए सुलैमान को पुनर्जीवित करने का प्रयत्न कर रहे है। इसीलिए यहूदी मुस्लमानो को इस मस्जिद में आने से रोकते है। 1969 मे एक यहूदी ने अल-अक़्सा मस्जिद मे आग लगा दी, इसी बात को ध्यान मे रखते हुए 22 अगस्त को इस्लामी देश ईरान के कैलेंडर में अंतर्राष्ट्रीय मस्जिद दिवस का नाम दिया गया।
आज-कल जिस भवन को अल-अक़्सा मस्जिद कहा जाता है, पहली शताब्दी हिजरी को अब्दुल मलिक बिन मरवान के शासन काल मे निर्माण हुआ और विभिन्न अवधियो मे इसका नवीनीकरण किया गया है।
स्थान और नामकरण
अरभी भाषा मे अल-अक़्सा का अर्थ है सबसे अधिक दूर, इस आधार पर अल-अक्सा मस्जिद का अर्थ होता है सबसे दूर वाली मस्जिद, फ़िलिस्तीन के शहर बैतुल मुकद्दस मे इस मस्जिद की ओर इशारा है जोकि शहर के दक्षिण पूर्व मे अल-सख़्रा मस्जिद से 500 मीटर की दूरी पर स्थित है।[१] इस मस्जिद के नामकरण से संबंधित कहा गया है कि उस समय मक्का और मस्जिदुल हराम जोकि पैग़म्बरे इस्लाम (स) और मुस्लमानो का निवास स्थान समझा जाता था उससे दूरी को ध्यान मे रखा गया है।[२]
कुछ शोधकर्ताओ के अनुसार, अल-अक़्सा मस्जिद जिसका उल्लेख क़ुरआन मे किया गया है एक बड़ा क्षेत्र है जिसमे अल-सख़्रा मस्जिद (पैगंबर (स) के मेराज पर जाने का स्थान) और उसके दूसरे भाग भी सम्मिलित है।[३] इसलिए शिया मुफ़स्सिरो ने सूर ए इस्रा की पहली आयत मे उल्लेखित अल-अक़्सा मस्जिद बैतुल मुकद्दस को बताया है। [४]जिसे हज़रत दाऊद (अ) और हज़रत सुलैमान (अ) ने बनाया था।[५] कुछ रिवायतो मे भी अल-अक़्सा मस्जिद का बैतुल मुकद्दस मस्जिद के नाम से उल्लेख हुआ है।[६]
कुछ का कहना है कि पैगंबर (स) की मेराज के समय अल-अक़्सा नामी कोई भवन नही था और मेराज वाली आयत मे मस्जिद का अर्थ इबादत और बंदगी का स्थान है।[७] वर्तमान मे छत वाले भवन का अब्दुल मलिक बिन मरवान के शासन काल मे निर्माण हुआ है आज-कल अल-अक़्सा मस्जिद के नाम से जानी जाती है। और इस भवन मे अल-सख़्रा मस्जिद, मस्जिद ए उमर, दीवारे बुराक़ और .... सम्मिलित है।[८]
फ़ज़ीलत
अल-अक़्सा मस्जिद का मुस्लमान, यहूदी और ईसाई सम्मान करते है। यहूदियो का मानना है कि मअबद ए सुलैमान के अवशेष अल-अक़्सा मस्जिद के नीचे स्थित है।[९] मुस्लमानो का कहना है कि पैंगबर (स) इसी स्थान से मेराज के लिए गए थे।[१०] दो हिजरी को मुस्लमानो का क़िबला परिर्वतन से पहले मुस्लमानो का पहला क़िबला भी यही था।[११] इसीलिए क़ाजार और पहलवी शासन काल मे कुछ हाजी हज के पश्चात बैतुल मुकद्दस के धार्मिक स्थान विशेष कर अल-अक़्सा मस्जिद की भी ज़ियारत करते थे।[१२]
सुबहानल लज़ी असरा बेअब्देही लैलम मिनल मस्जेदिल हरामे एलल मस्जेदिल अक़्सा अल्लज़ी बारकना हौलहू लेनोरीहु मिन आयातेना इन्नहू हुवस समीउल बसीर। (अनुवाद:धन्य है वह [भगवान] जिसने रात में अपने अब्द को मस्जिद अल-हरम से मस्जिद अल-अक्सा तक चलने का नेतृत्व किया, जिसे हमने चारों ओर आशीर्वाद दिया है, ताकि हम उसे अपनी निशानियों से दिखा सकें, कि वह सब कुछ सुनने वाला और सब कुछ देखने वाला है।)
हदीसों में मस्जिद अल-हराम, मस्जिद अल-नबी और मस्जिदे कूफ़ा के साथ अल-अक़्सा मस्जिद चार बा फ़ज़ीलत मस्जिदो मे गणना होती है।[१३] कुछ हदीसो मे मस्जिदे कूफ़ा का उल्लेख नही, अल-अक़्सा मस्जिद मस्जिद अल-हराम, मस्जिद अल-नबी के साथ तीन बा फ़ज़ीलत मस्जिदो मे से एक है।[१४] उपरोक्त तीनों मस्जिदों में एक नमाज़ पढ़ना दूसरी मस्जिदो मे हज़ार नमाज़ पढ़ने के समान है।[१५] कुछ शिया रिवायतो मे मस्जिदे कूफ़ा को अल-अक़्सा मस्जिद पर प्राथमिकता दी गई है।[१६]
इतिहास
कहा जाता है कि सर्व प्रथम हज़रत दाऊद (अ) ने अल-अक़्सा मस्जिद के स्थान पर एक मअबद बनाया और हज़रत सुलेमान (अ) ने उसे पर्ण किया जिसे मअबदे सुलेमान, मअबदे यरूश्लम, माअबदे एलीया और बुक़ाए एलिया कहा गया। उन्नीसवी और बीसवी शताब्दी के इतिहासकार गोस्टावलीबून (Gustave Le Bon) का कहना है कि बैतुल मुकद्द्स मुस्लमानो के माध्यम से फ़त्ह होने से पूर्व अल-अक़्सा मस्जिद के क्षेत्र मे हज़रत मरियम (स) के नाम से एक चर्च मौजूद था।[१७]
पहली शताब्दी के दस्तावेजो के अनुसार मौजूदा अल-अक़्सा मस्जिद पहली शताब्दी हिजरी को अमावियो के शासन मे निर्माण हुआ।[१८] आठवी शताब्दी के सुन्नी इतिहासकार इब्ने कसीर के अनुसार इस मस्जिद का निर्माण 66 हिजरी को बनी उमय्या के ख़लीफ़ा अब्दुल मलिक बिन मरवान के (शासन 65-66 हिजरी) शासन काल मे आरम्भ हुई और 73 हिजरी को निर्माण पूरा हुआ।[१९] कुछ लोगो ने इसके निर्माण को वलीद बिन अब्दुल मलिक (शासन 86-99 हिजरी) जाना है।[२०]
इब्ने कसीर लिखता हैः अब्दुल मलिक ने इसलिए अल-अक़्सा मस्जिद और दूसरे भवनो का निर्माण किया ताकि शामीयो को हज पर जाने से रोक दे और उनको यही पर तवाफ़ करने पर विवश कर दे।[२१] क्योकि अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर हज को अब्दुल मलिक के विरूद्ध तबलीग़ (प्रचार) करने और हाजीयो से अपने लिए निष्टा की प्रतिज्ञा लेने के लिए प्रयोग करता था।[२२] और अर्फ़े के दिन और अय्यामे मिना मे ख़ुत्बो (उपदेशो) के माध्यम से अब्दुल मलिक और उसकी संतान के दादा हक्म बिन आस पर पैगंबर (स) की लानत की याद दहानी कराकर शाम (सीरिया) वालो को अपनी ओर आकर्षित करता था।[२३]
भवन का विवरण
अल-अक़्सा मस्जिद का भवन आयताकार है जिसकी लंबाई 80 मीटर और चौड़ाई 55 मीटर है।[२४] मस्जिद का भवन 53 संगे मरमर के स्तंबो और 49 आधार पर बना है।[२५] इस प्रकार मस्जिद एक बड़े हाल पर आधारित है जिसके बीच मे एक गुंबद है।[२६] पांचवी शताब्दी हिजरी के पर्यटक नासिर ख़ुस्रो (394-481 हिजरी) ने 438 हिजरी मे बैतुल मुकद्दस गए है[२७] और अपने सफ़र नामे मे अल-अक़्सा मस्जिद का कुछ वर्णन किया है और वहा पर कुछ सेवको (ख़ादिमो) का भी वर्णन किया है।[२८]
निर्माण और नवीनीकरण
अल-अक़्सा मस्जिद का भवन विभिन्न अवधियो मे निर्माण और नवीनीकरण हुआ। बनी अब्बास, फ़ातिमी शासन, अय्यूबी सलतनत और उसमानी सरकारो मे निर्माण और नवीनीकरण हुआ।
बनी अब्बास के ख़लीफ़ा मंसूर दवानीक़ी (शासन 136-156 हिजरी)[२९] और महदी अब्बासी (126-169 हिजरी) ने भूकम्प के कारण अल-अक़्सा मस्जिद के विनाश पश्चात पुनः निर्माण और नवीनीकरण कराया।[३०] इसी प्रकार एक शिलालेख के अनुसार फ़ातेमी ख़लीफ़ा अल-ज़ाहिर लेएज़ाज दीनिल्लाह के आदेश 426 हिजरी मे अल-अक़्सा मस्जिद के ऊपर गुंबद का निर्माण हुआ।[३१] और अल-मुस्तंसिर लेदीन अल्लाह के आदेश से 458 हिजरी मे मस्जिद के उत्तरी बरामदे का पुनर्निर्माण किया गया।[३२]
1099 ई. मे जब ईसाईयो ने बैतुल मुकद्दस पर अवैध क़ब्ज़ा किया और मस्जिद के एक भाग को चर्च बना दिया और शेष भाग मे कुछ को अपनी सेना का विश्रामगृह और कुछ को अपनी चीज़ो के लिए भंडार गृह बना दिया।[३३] लेकिन सलाहुद्दीन अय्यूबी ने 589 हिजरी को उनसे बैतुल मुक़द्दस वापस ले लिया और मस्जिद की मरम्मत का कदम उठाया और मस्जिद के मंहराब का नवीनीकरण कराया, गुंबद पर सजावट और साज-सज्जा का काम कराया तथा प्रसिद्ध लकड़ी का मिंबर रखवाया।[३४]
यहूदीकरण
यहूदियो का मानना है कि मअबद ए सुलैमान के अवशेष अल-अक़्सा मस्जिद के नीचे स्थित है। इसी कारण कुछ यहूदी अल-अक़्सा मस्जिद को ध्वस्त करने और उसके स्थान पर मअबद ए सुलैमान को पुनर्जीवित करने का प्रयत्न कर रहे है।[३५] कहा जाता है कि कुछ ईसाईयो के अनुसार अल-अक़्सा मस्जिद का विनाश और उसके स्थान पर तीसरे मअबद ए सुलैमान का निर्माण हज़रत ईसा (अ) के ज़हूर की शर्तो मे से एक है।[३६] इसीलिए यहूदी मुस्लमानो को इस मस्जिद मे आने से रोकते है।[३७] अल-अक़्सा मस्जिद बैतुल मुकद्दस ईज़राइल के मुक़ाबले मे एक इस्लामी पहचान की निशानी समझी जाती है।[३८] 21 अगस्त 1969 को डनीस माइकल विल्यम रूहान नामक एक यहूदी ने अल-अक़्सा मस्जिद को आग लगा दी जिसके कारण मस्जिद का कुछ भाग जल गया और छत गिर गई और 583 हिजरी से संबंधित मस्जिद का प्राचीन मिंबर भी इस आग मे जल गया।[३९] ईरानी सरकारी कैलेंडर मे इस दिन को वैश्विक मस्जिद दिवस का नाम दिया गया।[४०]
संबंधित लेख
फ़ुटनोट
- ↑ हमीदी, तारीखे यरूश्लम, पेज 183
- ↑ अल्लामा तबातबाई, अल-मीज़ान, भाग 12, पेज 7; तबरसी, मजमा उल बयान, भाग 6, पेज 612
- ↑ मूसा ग़ूशा, तारीख ए मजमूआ ए मस्जिद उल अक़्सा, पेज 7
- ↑ तबरसी, मजमा उल बयान, भाग 6, पेज 612
- ↑ अल्लामा तबातबाई, अल-मीज़ान, भाग 13, पेज 6
- ↑ देखेः तफ़सीरे मनसूब बे इमाम हसन अस्करी, पेज 661
- ↑ हमीदी, तारीखे यरूश्लम, पेज 183-184
- ↑ मूसा ग़ूशा, तारीख ए मजमूआ ए मस्जिद उल अक़्सा, पेज 7
- ↑ तौफ़ीक़ी, आश्नाई बा अद्याने बुज़ुर्ग, पेज 88
- ↑ सूरा ए इस्रा, आयत न. 1
- ↑ तबातबाई, अल-मीज़ान, भाग 1, पेज 331
- ↑ देखेः जाफ़रयान, पंजा सफ़रनामा ए हज्जे क़ाजारी, पेज 230
- ↑ शेख़, सदूक़, मन ला यहज़ोरोह उल-फ़क़ीह, भाग 1, पेज 29
- ↑ बुख़ारी, सहीह उल-बुख़ारी, भाग 1, पेज 398
- ↑ तफ़सीरे मंसूब बे इमाम हसन अस्करी, पेज 661
- ↑ अय्याशी, तफ़सीर उल-अय्याशी, भाग 2, पेज 269 मोहद्दिस नूरी, मुस्तदरक उल-वसाइल उश-शिया, भाग 3, पेज 409
- ↑ गूस्तावलूबून, तमद्दुने इस्लाम वा अरब बे नक़्ल अज़ हमीदी, तारीखे यरूश्लम, पेज 183
- ↑ देखेः मूसा ग़ूशा, तारीख ए मजमूआ ए मस्जिद उल अक़्सा, पेज 10
- ↑ इब्ने कसीर, अल-बिदाया वल-निहाया, भाग 2, पेज 280
- ↑ देखेः मूसा ग़ूशा, तारीख ए मजमूआ ए मस्जिद उल अक़्सा, पेज 10
- ↑ इब्ने कसीर, अल-बिदाया वल-निहाया, भाग 2, पेज 280
- ↑ याक़ूबी, तारीख़ अल-याक़ूबी, दारे सादिर, भाग 2, पेज 261
- ↑ इब्ने कसीर, अल-बिदाया वल-निहाया, भाग 2, पेज 280
- ↑ मूसा ग़ूशा, तारीख ए मजमूआ ए मस्जिद उल अक़्सा, पेज 10
- ↑ हमीदी, तारीखे यरूश्लम, पेज 183
- ↑ मूसा ग़ूशा, तारीख ए मजमूआ ए मस्जिद उल अक़्सा, पेज 10
- ↑ नासिर ख़ुस्रो, सफ़रनामा, पेज 26
- ↑ नासिर ख़ुस्रो, सफ़रनामा, पेज 32
- ↑ हमीदी, तारीखे़ यरूश्लम, पेज 183
- ↑ मूसा ग़ूशा, तारीख ए मजमूआ ए मस्जिद उल अक़्सा, पेज 11
- ↑ मूसा ग़ूशा, तारीख ए मजमूआ ए मस्जिद उल अक़्सा, पेज 11
- ↑ मूसा ग़ूशा, तारीख ए मजमूआ ए मस्जिद उल अक़्सा, पेज 11
- ↑ हमीदी, तारीखे यरूश्लम, पेज 183
- ↑ हमीदी, तारीखे यरूश्लम, पेज 183
- ↑ तौफ़ीक़ी, आश्नाई बा अद्याने बुज़ुर्ग, पेज 88
- ↑ आतिश ज़दने मस्जिद उल-अक़्सा इक़दामी बराय संजिश ग़ैरते दीनी ए मुस्लमानान बूद, बाशगाहे ख़बर निगारान जवान
- ↑ गुज़ारिशः इस्राईल आमादा ए तख़रीबे मस्जिद उल-अक़्सा वा साख़्ते (सेव्वूमीन माबद) मी शवद, साइट प्रेस टीवी
- ↑ पुश्ते परदे तूते हाए जदीद अलैहे मस्जिद उल-अक़्सा/ विश्लेषण, ख़बर गुजारी ईरान प्रेस
- ↑ मूसा ग़ूशा, तारीख ए मजमूआ ए मस्जिद उल अक़्सा, पेज 16
- ↑ इल्लते नामगुज़ारी रोज़े जहानी ए मस्जिद चीस्त? ख़बर गुज़ारी ए सदा व सीमा
स्रोत
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- बुख़ारी, मुहम्मद बिन इस्माईल, सहीह उल-बुख़ारी, शोधः मुस्तफ़ा देब उल-बुग़ा, बैरूत, दारे इब्ने कसीर, अल-यमामा, 1407 हिजरी
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- शेख़ सुदूक़, मुहम्मद बिन अली, मन ला याह्ज़ेरोह उल-फ़क़ीह, तस्हीहः अली अकबर ग़फ़्फ़ारी, क़ुम, दफ़्तरे इंतेशारात इस्लामी वाबस्ता बे जामे उल-मुदर्रेसीन हौज़ा ए इल्मिया क़ुम, 1413 हिजरी
- तबरसी, फ़ज्ल बिन हसन, मजमा उल-बयान फ़ी तफ़सीर इल-क़ुरान, मुक़द्दमाः मुहम्मद जवाद बलाग़ी, तेहरान, इंतेशारात नासिर ख़ुस्रो, 1372 शम्सी
- तबरि, मुहम्मद बिन जुरैर, तारीख उल-उमम वल-मुलूक, शोधः मुहम्मद अबुल फ़ज़्ल इब्राहीम, बैरूत, दार उत-तुरास, 1967 ई
- अल्लामा तबातबाई, सय्यद मुहम्मद हुसैन, अल-मीज़ान फ़ी तफ़सीर इल-क़ुरान, क़ुम, दफ़्तरे इंतेशाराते इस्लामी जामे मुदर्रेसीन हौज़ा ए इल्मिया क़ुम, 1417 हिजरी
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- मुहद्दिसे नूरी, हुसैन बिन मुहम्मद तक़ी, मुस्तदरक उल-वसाइल वा मुस्तंबित उल-मसाइल, क़ुम, मोअस्सेसा ए आलुलबैत, 1408 हिजरी
- मूसा ग़ूशा, मुहम्मद हाशिम, तारीखे मजमूआ ए मस्जिद उल-अक़्सा, अनुवादः सय्यद शहराम फरहानियान वा हूदसा आतेफी, क़ुम, नश्रे अयदान, 1390 शम्सी
- नासिर ख़ुस्रो क़बादियानी, सफ़रनामा, आतीला ए हुनुरे मुहम्मद सलाहशोर, 1368 शम्सी
- याक़ूबी, अहमद बिन अबि याक़ूब, तारीख अल-याक़ूबी, बैरूत, दारे सादिर