हीताने सबआ

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हीताने सबआ लेख इन लेखों से संबंधित है: फ़दक, फ़दक की घटना, और फ़दकिया उपदेश।

हीताने सबआ या ईश्वर के दूत के सदक़ात, वे सात बगीचे हैं जो मुख़ैरिक़ या मदीना के यहूदियों में से अन्य लोगों ने पैग़म्बर (स) को दे दिए थे और पैग़म्बर ने उन्हें वक़्फ़ कर दिया था। एक हदीस के अनुसार, पैग़म्बर ने इन उद्यानों को हज़रत फ़ातेमा (अ) के लिये समर्पित (वक़्फ़) कर दिया था। पैग़म्बर (स) की वफ़ात के बाद, फ़ातेमा (स) ने अबू बक्र से इन बगीचों, ख़ैबर और फ़दक मेे मौजूद उनके खेतों का प्रबंधन उन्हें सौंपने के लिए कहा था, लेकिन उन्हे अबू बक्र के विरोध का सामना करना पड़ा।

कुछ रिपोर्टों के अनुसार, उमर बिन ख़त्ताब की खिलाफ़त के दौरान, इमाम अली (अ.स.) ने उनसे हीताने सबआ (सात बाग़), फ़दक और ख़ैबर उन्हें सौंपने के लिए कहा। लेकिन उमर केवल हीताने सबआ को सौंपने पर सहमत हुए। हज़रत ज़हरा (अ.स.) ने अपने वसीयत नामे में इन बागों का प्रबंधन इमाम अली (अ.स.), इमाम हसन (अ.स.) और इमाम हुसैन (अ.स.) और उनके बाद के समय में अपने सबसे बड़े वंशज को सौंपा है।

ये बाग़ अब्बासियों के शासन तक हज़रत फ़ातेमा की संतानों के हाथ में थे। तीसरी चंद्र शताब्दी के कुछ लेखकों ने इन उद्यानों का वर्णन किया है। समय के साथ, इनमें से कुछ उद्यानों के नाम और स्थान अस्पष्ट हो गए हैं।

परिचय

वह सात बाग़ थे जो पैग़म्बर (स) को तोहफ़े में दिए गए थे।[१] इन बाग़ों के नाम थे: आवाफ़, बुर्का, हुसना या हसना, दलाल, साफ़िया, मशरबा उम्म इब्राहिम और मसीब,[२] स्रोतों में, इन बगीचों के लिए अन्य शीर्षकों का भी उल्लेख किया गया है।[३] इन उद्यानों को, जिन्हें ईश्वर के दूत (स) के "हवायत" के रूप में भी जाना जाता था,[४] इसमें मदीना क्षेत्र के सबसे अच्छे खजूर के पेड़ शामिल थे।[५] ये उद्यान उस समय मुख्य रूप से मदीना के दक्षिण और उम्म इब्राहिम मदीना के दक्षिण पूर्व में स्थित था।[६] साफिया, बुर्का, दलाल और मसीब सब एक साथ अवाली[७] या आलिया[८] नामक क्षेत्र में और यह मरवान बिन हकम के महल के पीछे थे।[९] अन्य उद्यानों के स्थान के बारे में असहमति है।[१०] मशरबा उम्म इब्राहिम को छोड़कर, इन उद्यानों की सिंचाई[११] उस पानी से की जाती थी जो बारिश के दौरान एकत्रित होता था और वादी महज़ूर से होकर गुजरता था।[१२]

बनी उमय्या ख़लीफ़ा उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ (99-101 हिजरी) के शासनकाल तक हीतान सबआ में खजूर होते थे और उसने और उसके साथियों ने इसकी खजूरें खाईं थीं।[१३] मुहम्मद बिन इदरीस शाफ़ेई, चार सुन्नी न्यायविदों में से एक (मृत्यु: 204 हिजरी), सात बागों को अपने समय तक कायम माना है।[१४] उमर बिन शब्बाह (मृत्यु: 263 हिजरी)। मदीना के पहले भूगोलवेत्ताओं में से एक ने बागों और उनके स्थानों का वर्णन किया है।[१५] कहा जाता है कि समय के बीतने और विभिन्न लोगों की देखरेख के कारण बागों के नाम और स्थान अस्पष्ट हो गए हैं।[१६] और चंद्र कैलेंडर की आठवी और नवीं शताब्दी में मसीब और हसना जैसे कुछ उद्यानों के स्थान को अज्ञात माना गया है।[१७] कुछ लोगों ने इन उद्यानों को अपने समय के कुछ प्रसिद्ध उद्यानों से मिलाने की कोशिश की है।[१८] या पिछले लेखकों की राय की आलोचना की है।[१९] चंद्र कैलेंडर की तेरहवीं और चौदहवीं शताब्दी के शोधकर्ताओं में से एक, अयूब सबरी पाशा का मानना ​​है कि यह सातों उद्यान उनके समय तक बाक़ी थे, लेकिन उनमें से कुछ के नाम समय के साथ साथ बदल गए हैं।[२०]

मशरबा एम इब्राहिम

मुख्य लेख: मशरबा उम्म इब्राहिम

मशरबा उम्म इब्राहिम, उन सात उद्यानों में से एक है जो पैग़म्बर (स) को तोहफ़े के रूप में दिए गए थे।[२१] यह स्थान पैग़म्बर की पत्नियों में से एक मारिया क़िबतिया के रहने और इस स्थान पर इब्राहिम बिन पैग़म्बर (स) के जन्म के बाद जाना जाने लगा।[२२] इस बगीचे में पैग़म्बर ने नमाज़ अदा की थी।[२३] बाद में, वहां एक मस्जिद बनाई गई, जिसे इसी नाम से जाना जाता है।[२४] कुछ हदीसों के अनुसार, इस स्थान पर नमाज़ पढ़ने की सिफारिश की गई है।[२५] आज इस बाग की जगह एक क़ब्रिस्तान के रूप में बाक़ी है।[२६] ऐसा कहा जाता है कि इमाम काज़िम (अ.स.) की मां हमीदा और इमाम रज़ा (अ.स.) की मां नजमा की क़ब्रें इसी जगह पर स्थित हैं।[२७]

हीतान के पूर्व मालिक

कुछ लेखकों ने सात बागों का मालिक यहूदी मुख़ैरीक़ को माना है।[२८] उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ ने दावा किया था कि उसने मदीना में मुहाजिर और अंसार के बुजुर्गों से यह बात सुनी है।[२९] कुछ ने कहा है कि यह मुद्दा इतिहासकारों के बीच प्रसिद्ध माना गया है।[३०] मुख़ैरीक यहूदी विद्वानों में से एक[३१] और बनी नज़ीर[३२] या बनी क़ैनुक़ाअ[३३] जनजाति से है। वह ओहद की जंग में इस्लाम के पैग़म्बर (स) के पास गए और इस्लाम की घोषणा करने के बाद[३४] शहीद हो गए[३५] अपनी शहादत से पहले[३६] या जब उनकी मृत्यु हुई,[३७] उन्होंने अपनी संपत्ति पैग़म्बर को देने की वसीयत की थी।[३८] कुछ लोगों ने यह भी कहा है कि मुख़ैरीक ने शहादत से पहले अपनी संपत्ति पैग़म्बर को दे दी थी।[३९]

यह भी देखें: मुख़ैरीक़

चंद्र कैलेंडर की दूसरी और तीसरी शताब्दी के इतिहासकार मुहम्मद बिन उमर वाक़ेदी ने उल्लेखित उद्यानों को बनी नज़ीर जनजाति की संपत्ति का हिस्सा माना है, जो बनी नज़ीर के ख़िलाफ़ अभियान में प्राप्त किया गया था, और पैग़म्बर ने मुख़ैरीक की संपत्ति का मुसलमानों के बीच वितरण ओहद से लौटने पर किया था।[४०] कुछ लोगों ने कहा है कि पैग़म्बर द्वारा बनी नज़ीर की संपत्ति प्रवासियों (मुहाजेरीन) और दो ग़रीब अंसार के बीच विभाजित की गई थी।[४१] कुछ लोगों का मानना ​​है कि हीताने सबआ के स्वामित्व के बारे में अंतर पाया जाता है, कि वह क़बीला बनी नज़ीर की संपत्ति थी या बनी कुरैज़ा जनजाति की।[४२]

कुछ इतिहासकारों ने सातों बागों में से प्रत्येक के पिछले मालिकों को एक विशिष्ट व्यक्ति या जनजाति माना है।[४३] उदाहरण के लिए, आवाफ़ को बनी कुरैज़ा के एक यहूदी व्यक्ति ख़ुनाफ़ा की संपत्ति माना गया है।[४४] बर्क़ा और मसीब को भी बनी कुरैज़ा से ज़ुबैर बिन बाता की संपत्ति का हिस्सा माना गया है।[४५] कुछ लोगों ने कहा है कि बर्का बनू नज़ीर की संपत्तियों में से एक था।[४६] दलाल और होसना को बनी सअलबा की संपत्तियों में से भी एक माना गया है।[४७] ऐसा कहा जाता है कि दलाल की मालिक बनी नज़ीर की एक महिला थी, जिसके पास गुलाम के रूप में सलमान फ़ारसी भी थे और सलमान ने उसके साथ एक अनुबंध किया था कि उन्हे इस बाग़ के पुनरुद्धार के बदले में आज़ाद कर दिया जायेगा और पैग़म्बर (स) ने भी इस बारे में सलमान की सहायता की थी।[४८] कुछ लोगों ने उक्त उद्यान को मसीब माना है[४९] और कुछ का मानना ​​है कि बर्क़ा और मसीब सलमान द्वारा आबाद किया गया था।[५०]

इस्लाम के पैग़म्बर (स) द्वारा वक़्फ़

इतिहासकारों के अनुसार, इस्लाम के पैग़म्बर (स) ने सात बागों को वक़्फ़ कर दिया था।[५१] हीतान का उल्लेख पैग़म्बर (स) के दान (सदक़े) के रूप में भी किया गया है।[५२] कुछ लोगों ने कहा है कि पैग़म्बर के अधिकांश भिक्षा (सदक़े)[५३] और यहां तक ​​​​कि वे सभी[५४] मुख़ैरीक़ के सातों बगीचे थे। उन्होंने हिजरत[५५] के 22 महीने बाद या हिजरी सातवें वर्ष[५६] में इन संपत्तियों को वक़्फ़ किया था।

क़ुर्ब अल-असनाद वा अल-काफ़ी किताब में, एक हदीस का वर्णन है जिसमें इमाम रज़ा (अ.स.) ने अहमद बिन अबी नस्र बज़ंती के सवाल के जवाब में, हीताने सबआ को पैग़म्बर (स) के द्वारा हज़रत ज़हरा (स) के लिए किये गये वक्फ़ में से एक माना है, और पैग़म्बर (स) ने इसमें से अपनी आय का एक हिस्सा अपने मेहमानों और अप्रत्याशित घटनाओं के लिए विशेष किया था।[५७] इमाम सादिक़ (अ) के एक अन्य हदीस के अनुसार, ईश्वर के दूत (स) का दान (सदक़ात) बनी हाशिम को और बनी मुत्तलिब के लिये विशेष था।[५८]

कुछ स्रोतों में यह भी कहा गया है कि इस्लाम के पैग़म्बर (स) ने फ़दक और अवाली को हज़रत ज़हरा (स) को दे दिया था।[५९] अवाली को एक विशाल क्षेत्र माना गया है जिसमें सातों बाग़ भी शामिल थे।[६०]

पैग़म्बर के बाद हीताने सबआ का अंजाम

पैग़म्बर (स) की वफ़ात के बाद, हज़रत फ़ातेमा (स) ने अबू बक्र से फ़दक और सात बगीचे उन्हें सौंपने के लिए कहा। लेकिन अबू बक्र इसे स्वीकार नही किया।[६१] यह बात फ़ातेमा (अ) के क्रोधित होने का कारण बनी।[६२] अबू बसीर ने इमाम बाक़िर (अ) से एक हदीस में उल्लेख किया है कि हज़रत फ़ातेमा (स) ने इन सात बागों का प्रबंधन इमाम अली (अ) को दिया था और फिर हसनैन (अ.स.) और फिर हर दौर में उनकी पीढ़ी के सबसे बड़े वंशज को देने की वसीयत की गई थी। इमाम सादिक़ (अ.स.) की ओर से भी इसी तरह की हदीस का वर्णन किया गया है।[६३]

उमर बिन ख़त्ताब की खिलाफ़त के दौरान, इमाम अली (अ.स.) और अब्बास बिन अब्दुल-मुत्तलिब ने ख़लीफा से फ़दक और ख़ैबर क्षेत्रों और हीताने सबआ की मांग की, लेकिन उन्होने केवल हीताने सबआ उनके हवाले करना स्वीकार किया।[६४]</ref> और बाद में ये सातों बाग़ हज़रत फ़ातेमा (अ) के बच्चों की ओर हस्तांरित कर दिए गए थे।[६५] एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार, इमाम अली (अ.स.) ने उमर से हीताने सबआ का प्रशासन उन्हें सौंपने के लिए कहा था; लेकिन अब्बास ने भी इन बागों और फ़दक पर अपने अधिकार की भी बात कही और विवाद बढ़ने पर इमाम ने ख़लीफा से कहा कि दुश्मनी आगे न बढ़े इसलिए इन बागों को वह अपने पास ही रखे रहे।[६६] इमाम रज़ा (अ.स.) की एक हदीस के अनुसार, अब्बास ने अपना दावा तब छोड़ दिया जब इमाम अली (अ.स.) ने गवाही दी कि ये बगीचे हज़रत ज़हरा (अ.स.) के लिए वक़्फ़ किये गये थे।[६७]

ऐसा कहा गया है कि इमाम अली (अ.स.) के बाद हीताने सबआ का प्रशासन इमाम हसन (अ.स.) के पास था और फिर इमाम हुसैन (अ.स.) और फिर इमाम सज्जाद (अ.स.) और उसके बाद इमाम हसन (अ.स.) के बेटे हसन के पास था। यहाँ तक बनी अब्बास ने फ़ातेमा की औलाद के हाथों से यह सातों बगीचे छीन नहीं लिए और उनका प्रबंधन स्वयं नहीं करना शुरु कर दिया।[६८]

फ़ुटनोट

  1. सबरी पाशा, मौसूआ मरअतुल-हरमैन अल-शरीफ़ैन व जज़ीरतुल-अरब, 1424 एएच, खंड 4, पृष्ठ 806।
  2. काफ़ी, कुलैनी, 1407 एएच, खंड 7, पृ. 51; इब्न हजर, अल-इसाबा, 1415 एएच, खंड 6, पृष्ठ 46; याकूत हम्वी, मोज्म अल-बुलदान, 1995, खंड 5, पृष्ठ 241, 290-291।
  3. उदाहरण के लिए: बलाज़री, अंसाब अल-अशराफ़, 1996, खंड 1, पृष्ठ 518; इब्न सैय्यद अल-नास, उयून अल-असर, 1993, खंड 1, पृष्ठ 240; सम्हूदी, वफ़ा अल-वफ़ा, 2006, खंड 3, पृष्ठ 152।
  4. सालेही शामी, सुबुल अल-हुदा, 1993, खंड 8, पृष्ठ 407; इब्न साद, तबक़ात अल-कुबरा 1990, खंड 1, पृष्ठ 389।
  5. कोर्द अली, ख़ुतत अल-शाम, 1403 एएच, खंड 5, पृष्ठ 90।
  6. कअकी, मआलिम अल-मदीना अल-मुनव्वरा बैनल मेअमारह व अल तारीख़, 1419 एएच, खंड 120।
  7. कअकी, मआलिम अल-मदीना अल-मुनव्वरा बैनल मेअमारह व अल तारीख़, 1419 एएच, खंड 121।
  8. सबरी पाशा, मौसूआ मरअतुल-हरमैन अल-शरीफ़ैन व जज़ीरतुल-अरब, 1424 एएच, खंड 4, पृष्ठ 806।
  9. इब्न शबह, तारिख अल-मदीना अल-मुनव्वरा, 1410 एएच, खंड 1, पृष्ठ 173; सम्हूदी, वफ़ा अल-वफ़ा, 2006, खंड 3, पृष्ठ 150।
  10. इब्न शबह, तारिख अल-मदीना अल-मुनव्वरा, 1410 एएच, खंड 1, पृष्ठ 174; सम्हूदी, वफ़ा अल-वफ़ा, 2006, खंड 3, पृ. 151-150; शुरारब, अल-मुहम्म अल-असीरा फ़ी सुन्नत वा अल-सिरह, 1411 एएच, पृष्ठ 31, 100।
  11. शुर्राब, अल-मआलिम अल-असीरा फ़ी सुन्नत वा अल-सिरह, 1411 एएच, पृष्ठ 283।
  12. कअकी, मआलिम अल-मदीना अल-मुनव्वरा बैनल मेअमारह व अल तारीख़, 1419 एएच, खंड 3, पृष्ठ 120; सबरी पाशा, मौसूआ मरअतुल-हरमैन अल-शरीफ़ैन व जज़ीरतुल-अरब, 1424 एएच, खंड 4, पृष्ठ 806।
  13. इब्न असाकर, तारीख़ मदीना दमिश्क़, 1415 एएच, खंड 229।
  14. सम्हूदी, वफ़ा अल-वफ़ा, 2006, खंड 3, पृष्ठ 157।
  15. इब्न शुब, तारिख अल-मदीना अल-नुरा, 1410 एएच, खंड 1, पृष्ठ 173-174।
  16. मराग़ी शाफ़ेई, तहक़ीक़ अल-नुसरा बेतलख़ीस मआलिम दार अल-हिजरा, 1430 एएच, पृष्ठ 593।
  17. मराग़ी शाफ़ेई, तहक़ीक़ अल-नुसरा बेतलख़ीस मआलिम दार अल-हिजरा, 1430 एएच, पृष्ठ 592।
  18. मराग़ी शाफ़ेई, तहक़ीक़ अल-नुसरा बेतलख़ीस मआलिम दार अल-हिजरा, 1430 एएच, पृष्ठ 592; सम्हौदी, वफ़ा अल-वफ़ा, 2006, खंड 3, पृ. 153-154।
  19. सम्हूदी, वफ़ा अल-वफ़ा, 2006, खंड 3, पृष्ठ 154।
  20. सबरी पाशा, मौसूआ मरअतुल-हरमैन अल-शरीफ़ैन व जज़ीरतुल-अरब, 1424 एएच, खंड 4, पृष्ठ 806-807।
  21. इब्न शबह, तारिख अल-मदीना अल-मुनव्वरा, 1410 ए.एच., खंड 1, पृ. 174-175; वरसीलानी, अल-रेहला अल-वर्सीलानिया, 1429 एएच, खंड 2, पृष्ठ 545।
  22. इब्न शबह, तारिख अल-मदीना अल-मुनव्वरा, 1410 एएच, खंड 1, पृष्ठ 173; वरसीलानी, अल-रेहला अल-वर्सीलानिया, 1429 एएच, खंड 2, पृष्ठ 545।
  23. सम्हूदी, वफ़ा अल-वफ़ा, 2006, खंड 3, पृष्ठ 35।
  24. शुर्राब, अल-मआलिम अल-असीरा फ़ी सुन्नत वा अल-सिरह, 1411 एएच, पृष्ठ 253।
  25. कुलैनी, अल-काफी, 1407 एएच, खंड 4, पृष्ठ 560।
  26. जाफ़रियान, मक्का और मदीना के इस्लामी कार्य, 2006, पृष्ठ 263।
  27. जाफ़रियान, मक्का और मदीना के इस्लामी कार्य, 2006, पृष्ठ 263।
  28. इब्न शबह, तारिख अल-मदीना अल-मुनव्वरा, 1410 एएच, खंड 1, पृष्ठ 173; शुर्राब, अल-मआलिम अल-असीरा फ़ी सुन्नत वा अल-सिरह, 1411 एएच, पृष्ठ 156।
  29. इब्न असाकर, दमिश्क़ के मदीना का इतिहास, 1415 एएच, खंड 229।
  30. सबरी पाशा, मौसूआ मरअतुल-हरमैन अल-शरीफ़ैन व जज़ीरतुल-अरब, 1424 एएच, खंड 4, पृष्ठ 807।
  31. इब्न हिशाम, अल-सिरह अल-नबाविया, बी टा 1, पृष्ठ 518; बलाज़री, अंसाब अल-अशराफ़, 1996, खंड 1, पृ. 325, 518; इब्न हजर, अल-इसाबा, 1415 एएच, खंड 6, पृष्ठ 46।
  32. बलाज़री, अंसाब अल-अशराफ़, 1996, खंड 1, पृ. 285, 325, 518; इब्न सैय्यद अल-नास, उयुन अल-असर, खंड 1, पृष्ठ 240; सुबुल अल-हुदा, 1993, खंड 212।
  33. इब्न साद, तबक़ात अल-कुबरा, 1990, खंड 1, पृष्ठ 389; बलाज़री, अंसाब अल-अशराफ़, 1996, खंड 1, पृ. 285, 325, 518; इब्न हजर, अल-इसाबा, 1415 एएच, खंड 6, पृष्ठ 46, 47।
  34. इब्न हिशाम, अल-सिराह अल-नबविया, बी टा 1, पृष्ठ 514; बलाज़री, अंसाब अल-अशराफ़, 1996, खंड 1, पृ. 266, 285, 518; मोग़रिज़ी, अमता अल-इस्मा, 1999, खंड 1, पृष्ठ 65-66, खंड 14, पृष्ठ 369।
  35. इब्न हिशाम, अल-सिराह अल-नबीविया, बी टा 1, पृष्ठ 518, पृष्ठ 88; इब्न साद, तबक़ात अल-कुबरा, 1990, खंड 1, पृष्ठ 389; तबरी, तारीख़ तबरी, 1967, खंड 2, पृ. 531.
  36. इब्न हिशाम, अल-सिरह अल-नबाविया, बी टा 1, पृष्ठ 2, पृष्ठ 89; बलाज़री, अंसाब अल-अशराफ़, 1996, खंड 1, पृष्ठ 325; तबरी, तारीख़ तबरी, 1967, खंड 2, पृ. 531.
  37. इब्न हजर, अल-इसाबा, 1415 एएच, खंड 6, पृष्ठ 47; सम्हूदी, वफ़ा अल-वफ़ा, 2006, खंड 3, पृष्ठ 151।
  38. सम्हौदी, वफ़ा अल-वफ़ा, 2006, खंड 3, पृष्ठ 152।
  39. इब्न शुब, तारिख अल-मदीना अल-नूरा, 1410 एएच, खंड 1, पृष्ठ 174; सम्हूदी, वफ़ा अल-वफ़ा, 2006, खंड 3, पृष्ठ 151।
  40. इब्न अल-शबा, तारिख अल-मदीना अल-नूरा, 1410 एएच, खंड 1, पृष्ठ 175।
  41. बलाज़री, फतुह अल-बलदान, 1988, पीपी 27-28।
  42. इब्न शुब, तारिख अल-मदीना अल-नूरा, 1410 एएच, खंड 1, पृष्ठ 174; सम्हूदी, वफ़ा अल-वफ़ा, 2006, खंड 3, पृष्ठ 151।
  43. सम्हौदी, वफ़ा अल-वफ़ा, 2006, खंड 3, पृष्ठ 152।
  44. इब्न शुब, तारिख अल-मदीना अल-नूरा, 1410 ए.एच., खंड 1, पृष्ठ 175; सम्हूदी, वफ़ा अल-वफ़ा, 2006, खंड 3, पृष्ठ 151।
  45. इब्न शुब, तारिख अल-मदीना अल-नूरा, 1410 एएच, खंड 1, पृष्ठ 174; सम्हूदी, वफ़ा अल-वफ़ा, 2006, खंड 3, पृष्ठ 151।
  46. हाज़मी, अल-अमाकिन, बीटा, पी. 31; एस्कंदरी, अल-मुकना वा अल-मियाह वा अल-जेबल वा अल-अख्ती, 1425 एएच, खंड 1, पृष्ठ 162; होसैनी हनबली, क़लैद अल-अजायद, 1430 एएच, पृष्ठ 67।
  47. इब्न अल-शबा, तारिख अल-मदीना अल-नुरा, 1410 एएच, खंड 1, पृष्ठ 174।
  48. इब्न शुब, तारिख अल-मदीना अल-नूरा, 1410 एएच, खंड 1, पृष्ठ 174; सम्हूदी, वफ़ा अल-वफ़ा, 2006, खंड 3, पृष्ठ 151।
  49. सम्हूदी, वफ़ा अल-वफ़ा, 2006, खंड 3, पृष्ठ 152।
  50. इब्न शुब, तारिख अल-मदीना अल-नूरा, 1410 एएच, खंड 1, पृष्ठ 174; सम्हूदी, वफ़ा अल-वफ़ा, 2006, खंड 3, पृष्ठ 151।
  51. इब्न असाकर, दमिश्क के मदीना का इतिहास, 1415 एएच, खंड 229; सबरी पाशा, मौसूआ मरअतुल-हरमैन अल-शरीफ़ैन व जज़ीरतुल-अरब,, 1424 एएच, खंड 4, पृष्ठ 806; सम्हौदी, वफ़ा अल-वफ़ा, 2006, खंड 3, पृष्ठ 151
  52. मराग़ी शफ़ीई, तहक़ीक़ अल नुसरा बे तलख़ीस मआलिम दार अल-हिजरा, 1430 एएच, पृष्ठ 593।
  53. इब्न शबह, तारिख अल-मदीना अल-मुनव्वरा, 1410 ए.एच., खंड 1, पृष्ठ 175; कअकी, मआलिम अल-मदीना अल-मुनव्वरा बैनल मेरमारते वत तारीख़, 1419 एएच, खंड 120।
  54. सबरी पाशा, मौसूआ मरअतुल-हरमैन अल-शरीफ़ैन व जज़ीरतुल-अरब, 1424 एएच, खंड 4, पृष्ठ 805।
  55. सम्हौदी, वफ़ा अल-वफ़ा, 2006, खंड 4, पृष्ठ 42।
  56. इब्न अल-शबह, तारिख अल-मदीना अल-मुनव्वरा, 1410 एएच, खंड 1, पृष्ठ 175।
  57. हिमयरी, क़ुर्ब अल-असनाद, 1413 एएच, पीपी. 363-364; कुलैनी, अल-काफी, 1407 एएच, खंड 7, पृ. 47-48।
  58. कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 एएच, खंड 7, पृष्ठ 48।
  59. इब्न शहर आशोब, मनाकिब अल अबी तालिब (अ.स.), 1379 एएच, खंड 1, पृष्ठ 169; सैय्यद बिन तावुस, कश्फ़ अल-महज्जा, 1375, पृ. 182, हस्कानी, अल-तंज़िल साक्ष्य, 1411 एएच, खंड 1, पृष्ठ 441।
  60. हुसैनी जलाली, फ़दक व अल-अवाली, अव अवहवायत अस सबआ फ़ी अल-किताब वल सुन्नत व अल-तारिख व अल-अदब, 1426 एएच, पृष्ठ 64।
  61. खतीब ओमारी, अल-रौज़ा अल-फ़ैहा फ़ी तवारीख अल-निसा, 1420 एएच, पीपी. 231-230; सबरी पाशा, मौसूआ मरअतुल-हरमैन अल-शरीफ़ैन व जज़ीरतुल-अरब, 1424 एएच, खंड 4, पीपी. 807-808; सम्हूदी, वफ़ा अल-वफ़ा, 2006, खंड 3, पृष्ठ 155।
  62. सम्हूदी, वफ़ा अल-वफ़ा, 2006, खंड 3, पृष्ठ 155; सबरी पाशा, मौसूआ मरअतुल अल-हरमैन अल-शरीफ़ैन, 1424 एएच, खंड 4, पृष्ठ 808।
  63. कुलैनी, अल-काफी, 1407 एएच, खंड 7, पृष्ठ 49।
  64. सम्हूदी, वफ़ा अल-वफ़ा, 2006, खंड 3, पृष्ठ 155। <ref
  65. सबरी पाशा, मौसूआ मरअतुल-हरमैन अल-शरीफ़ैन, 1424 एएच, खंड 4, पृष्ठ 807।
  66. सम्हूदी, वफ़ा अल-वफ़ा, 2006, खंड 4, पृष्ठ 809।
  67. हिमयरी, क़ुर्ब अल-असनाद, 1413 एएच, पीपी. 363-364; कुलैनी, अल-काफी, 1407 एएच, खंड 7, पृ. 47-48।
  68. सबरी पाशा, मौसूआ मरअतुल-हरमैन अल-शरीफ़ैन व जज़ीरा अल-अरब, 1424 एएच, खंड 4, पृष्ठ 808

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