फ़दक की घटना

फ़दक की घटना (अरबी: واقعة فدک) फ़ातिमा (स) से अबू बक्र द्वारा फ़दक का अधिग्रहण, पैग़म्बर (स) के निधन के बाद, अबू बक्र ने फ़ातिमा (स) से फ़दक छीन लिया। अबू बक्र ने पैग़म्बर (स) की एक हदीस (जिसका रावी केवल वही था) के आधार पर दावा किया कि अम्बिया मीरास नहीं छोड़ते। लेकिन फ़ातिमा (स) ने जवाब दिया कि पैग़म्बर (स) ने उन्हें फ़दक अपने जीवनकाल में ही दे दिया था और इसके लिए इमाम अली (अ) और उम्मे अयमन को गवाह बनाया। शिया विद्वानों और कुछ सुन्नी विद्वानों के अनुसार, पैग़म्बर (स) ने सूर ए इसरा की आयत 26 के नाज़िल होने के बाद, जिसमें ज़विल क़ुर्बा (रिश्तेदारों) का हक़ देने का आदेश था, फ़दक फ़ातिमा (स) को दे दिया था।
एक रिवायत के अनुसार, अबू बक्र ने फ़ातिमा (स) के मालिकाना हक़ को स्वीकार करते हुए एक काग़ज़ लिख दिया, लेकिन उमर बिन ख़त्ताब ने वह काग़ज़ फ़ातिमा (स) से छीनकर फाड़ दिया। एक अन्य रिवायत में है कि अबू बक्र ने फ़ातिमा (स) के गवाहों को स्वीकार नहीं किया। पैग़म्बर (स) की बेटी ने, जब अपना और अपने पति इमाम अली (अ) का न्याय नहीं मिला, तो मस्जिद ए नबवी में जाकर एक ख़ुतबा (भाषण) दिया। यह ख़ुतबा, जो "ख़ुत्बा ए फ़दकिया" के नाम से प्रसिद्ध है, में उन्होंने खिलाफ़त की ज़ब्ती का उल्लेख किया और अबू बक्र के इस दावे को क़ुरआन के विरुद्ध बताया कि पैग़म्बर मीरास नहीं छोड़ते। उन्होंने अबू बक्र और उमर को क़यामत के दिन के न्याय के लिए छोड़ दिया। फ़ातिमा (स) इस घटना के बाद अबू बक्र और उमर से नाराज़ रहीं और अपनी शहादत तक उनसे नाराज़गी बनाए रखी।
पैग़म्बर (स) के निधन के बाद, फ़दक ख़लीफ़ाओं के हाथ में चला गया और उनके बीच हस्तांतरित होता रहा। हालाँकि, कुछ ख़लीफ़ाओं जैसे उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ और मामून अब्बासी ने फ़दक या उसकी आय को फ़ातिमा (स) के वंशजों को लौटा दिया, लेकिन बाद के ख़लीफ़ाओं ने फिर से छीन लिया।
इस घटना पर अरबी और फ़ारसी में कई किताबें लिखी गई हैं, जिनमें से एक प्रमुख किताब "फ़दक फ़िल तारीख़" है, जिसे सय्यद मुहम्मद बाक़िर सद्र ने लिखा है। सद्र ने इस किताब में फ़दक की माँग को हज़रत फ़ातिमा (स) की खिलाफ़त के ख़िलाफ़ निज़ाम की शुरुआत और इमामत की रक्षा में उनके संघर्ष का एक चरण बताया है।
फ़दक और उसकी स्थिति
- मुख़्य लेख: फ़दक
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फ़दक, ख़ैबर के निकट एक उपजाऊ गाँव था,[१२] जो मदीना से लगभग 200 किलोमीटर दूर स्थित था।google maps यहाँ यहूदी समुदाय के लोग रहते थे।[१३] इस क्षेत्र में खेतों, बाग़ों और खजूर के बहुत से बाग़ान थे।[१४] पैग़म्बर (स) के निधन के बाद, फ़दक के मालिकाना हक़ को लेकर विवाद पैदा हो गया। ख़लीफ़ाओं ने इसे अपने पक्ष में ज़ब्त कर लिया, जबकि हज़रत फ़ातिमा (स) ने अपने हक़ की रक्षा में "ख़ुतबा-ए-फ़दकिय्या" दिया। शिया मुसलमानों का मानना है कि फ़दक ख़लीफ़ाओं द्वारा ज़बरन छीन लिया गया था और इसे हज़रत फ़ातिमा (स) की मज़लूमियत का प्रतीक मानते हैं।[सन्दर्भ आवश्यक]
हज़रत फ़ातिमा को फ़दक देना
फ़दक, पैग़म्बर (स) के समय में बिना किसी सैन्य अभियान के मुसलमानों के अधिकार में आ गया था।[१५] इसलिए पैग़म्बर (स) ने इसे फ़ातिमा (स) को दे दिया। मुस्लिम विद्वानों ने "आय ए फ़य" के आधार पर तर्क दिया है कि जो संपत्ति बिना युद्ध के प्राप्त होती है, वह विशेष रूप से पैग़म्बर (स) के अधिकार में होती है।[१६]
जाफ़र सुब्हानी के अनुसार, शिया मुफ़स्सिरों और कई सुन्नी हदीस विद्वानों ने बताया है कि पैग़म्बर (स) ने आयत (وَآتِ ذَا الْقُرْبَىٰ حَقَّهُ वाते ज़ल क़ुर्बा हक़्क़हु) (और रिश्तेदारों को उनका हक़ दो)[१७] के उतरने के बाद फ़दक फ़ातिमा (स) को प्रदान किया था।[१८] सुन्नी विद्वानों में से जलालुद्दीन सियूती ने "अल दुर्रुल मंसूर",[१९] मुत्तक़ी हिंदी ने "कंज़ुल उम्माल",[२०] हाकिम हस्कानी ने "शवाहिद अल तंज़ील",[२१] कुंदूज़ी ने "यनाबीउल मवद्दा"[२२] और अन्य विद्वानों ने भी इस बात को उद्धृत किया है।[२३]
फ़दक के साथ इमामत का संबंध
हुसैन अली मुंतज़ेरी शिया मुज्तहिद, मृत्यु 1388 शम्सी का मानना है कि फ़दक इमामत का प्रतीक (सिम्बल) था और पैग़म्बर (स) ने इसे हज़रत फ़ातिमा (स) को इसलिए दिया था ताकि इमामत के घर के लिए आय का स्रोत बन सके। उन्होंने यह भी कहा कि पैग़म्बर (स) ने इसे सीधे इमाम अली (अ) के बजाय फ़ातिमा (स) को इसलिए दिया ताकि इसे आसानी से छीना न जा सके।[२४] इस दृष्टिकोण को साबित करने के लिए एक रिवायत का हवाला दिया गया है,[२५] जिसमें हारून अल रशीद ने इमाम मूसा काज़िम (अ) से फ़दक की सीमाएँ निर्धारित करने को कहा। इमाम (अ) ने अब्बासी साम्राज्य[२६] की सीमाओं से भी आगे तक फ़दक का दायरा बताया, जिस पर हारून ने कहा: "फिर तो हमारे लिए कुछ भी नहीं बचता!"।[२७] इसी तरह, उम्मे एयमन से वर्णित एक रिवायत के अनुसार, हज़रत फ़ातिमा (स) ने पैग़म्बर (स) से फ़दक माँगा ताकि भविष्य में अगर कभी आर्थिक ज़रूरत पड़े, तो उसकी आय से उसे पूरा किया जा सके।[२८]
फ़दक ज़ब्ती की ज़ब्ती और फ़ातिमा का दावा
फ़दक पैगंबर (स) के स्वर्गवास तक हज़रत फ़ातिमा (स) के स्वामित्व (मिल्कियत) में था और आपकी ओर से विभिन्न लोगों ने वकील या मजदूर के रूप में इस भूमि पर काम करते थे।[२९] सक़ीफ़ा बनी साएदा की घटना पश्चात जब अबू बक्र ख़िलाफ़त के पद पर पहुंचा तो उसने घोषणा की कि फ़दक किसी की निजी संपत्ति नहीं है। इसलिए, उसने इसे सरकार के कब्जे में लाने का आदेश जारी किया।[३०] इसी तरह, उमर[३१] और उस्मान[३२] की ख़िलाफ़त मे भी फ़दक अहले-बैत (अ) के स्वामित्व में नहीं आया था।
हज़रत फ़ातिमा (स) और मालेकाना हक़ का दावा
फ़दक के अधिग्रहण के बाद, फ़ातिमा (स) ने अबू बक्र से उसकी माँग की। अबू बक्र ने कहा कि उसने पैग़म्बर (स) से सुना है कि उनकी संपत्ति उनके बाद मुसलमानों के पास चली जाती है और उनसे कोई विरासत नहीं रहती।[३३] फ़ातिमा (स) ने जवाब दिया: "मेरे पिता ने यह ज़मीन मुझे दान में दी थी।" अबू बक्र ने फ़ातिमा (स) से अपने दावे को साबित करने के लिए गवाह माँगे। कुछ स्रोतों के अनुसार, हज़रत अली (अ) और उम्मे अयमन ने गवाही दी[३४] जबकि कुछ अन्य के अनुसार, उम्मे अयमन और पैग़म्बर (स) के एक आज़ाद किया हुआ गुलाम[३५] ने गवाही दी। कुछ अन्य स्रोतों में इमाम अली (अ), उम्मे अयमन और हसनैन (अ)[३६] के गवाह बनने का उल्लेख है। अबू बक्र ने मान लिया और एक काग़ज़ लिखा ताकि कोई फ़दक पर अतिक्रमण न करे। जब फ़ातिमा (स) सभा से बाहर निकलीं, उमर बिन ख़त्ताब ने उस काग़ज़ को छीनकर फाड़ दिया।[३७] हालाँकि, कुछ सुन्नी स्रोतों के अनुसार, अबू बक्र ने फ़ातिमा के गवाहों को स्वीकार नहीं किया और दो पुरुषों की गवाही माँगी।[३८] इब्ने अबिल-हदीद मोताज़ेली कहते हैं: "मैंने इब्ने फ़ारिक़ी (ग़रबी बग़दाद मदरसे के शिक्षक) से पूछा: क्या फ़ातिमा सच कह रही थीं? इब्ने फ़ारिक़ी ने कहा: हाँ। मैंने पूछा: फिर अबू बक्र ने उन्हें फ़दक क्यों नहीं लौटाया? उसने कहा: अगर वह ऐसा करता, तो कल वह अपने पति (अली) के लिए खिलाफ़त का दावा कर देती और अबू बक्र उनके दावे को ठुकरा नहीं सकता था, क्योंकि फ़दक के मामले में उसने बिना गवाह के उनकी बात मान ली थी।" इब्ने अबिल-हदीद आगे लिखते हैं: "हालाँकि इब्ने फ़ारिक़ी ने यह बात मज़ाक में कही थी, लेकिन उसकी बात सही थी।"[३९]
किताब अल-इख़्तिसास में, इमाम सादिक़ (अ) की एक रिवायत के अनुसार, फ़दक के विरोध के दौरान फ़ातिमा (स) के गर्भ से मोहसिन का गिरना (इस्कात-ए-मोहसिन) का ज़िक्र है।[४०] लेकिन ऐतिहासिक स्रोतों के अनुसार, मोहसिन का गिरना, फ़ातिमा (स) के घर पर हमले की घटना से जुड़ा हुआ है।[४१]
नबियों द्वारा विरासत न छोड़ने के ख़िलाफ़ अबू बक्र का तर्क
"इमाम अली (अ) की आर्थिक शक्ति का डर फ़दक की ज़ब्ती का एक कारण था, क्योंकि इमाम (अ) में नेतृत्व की सभी शर्तें मौजूद थीं उनका ज्ञान, तक़्वा, उनका शानदार इतिहास, पैग़म्बर (स) के साथ उनका निकटतम संबंध और पैग़म्बर द्वारा उनके बारे में दी गई सिफ़ारिशें किसी से छिपी नहीं थीं। चूँकि ऐसी स्थिति में इमाम की आध्यात्मिक स्थिति और शर्तों को कमज़ोर करना संभव नहीं था, इसलिए पैग़म्बर (स) के परिवार और हज़रत अली (अ) की स्थिति को कमज़ोर करने के लिए फ़दक को उसके असली मालिक से छीन लिया गया और पैग़म्बर के परिवार को सत्ता पर निर्भर बना दिया गया। यह सच्चाई उमर और ख़लीफ़ा के बीच हुई बातचीत से स्पष्ट होती है। उमर ने अबू बक्र से कहा: 'लोग दुनिया के ग़ुलाम हैं और उनका कोई दूसरा लक्ष्य नहीं है। तुम अली से ख़ुम्स और ग़नीमत ले लो और फ़दक को उनके हाथ से निकाल लो, ताकि जब लोग उन्हें खाली हाथ देखेंगे तो उन्हें छोड़कर तुम्हारी तरफ़ झुक जाएंगे।'"[४२]
- मुख्य लेख:नहनो मआशेरल अम्बिया लो नोवर्रेसो
रिपोर्ट किया गया है कि अबू बक्र ने फ़ातिमा (स) की माँग के जवाब में कहा:"मैंने पैग़म्बर (स) से सुना है:"हम (नबी) कोई विरासत नहीं छोड़ते, और जो कुछ हमारे पीछे रह जाता है, वह सदक़ा (दान) है।"[४३] इसके जवाब में, हज़रत फ़ातिमा (स) ने अपने खुत्बा-ए-फ़दकिय्या में क़ुरआन की आयतों का हवाला दिया, जिनमें नबियों से विरासत पाने का उल्लेख है।[४४] उन्होंने अबू बक्र के इस बयान को कुरआन की आयतों के विपरीत बताया।[४५] शिया विद्वानों ने कहा है कि यह वाक्य केवल अबू बक्र ने ही बयान किया है, और किसी अन्य सहाबा ने इसका वर्णन नहीं किया है।[४६]
यह भी उल्लेख किया गया है कि जब उस्मान खिलाफ़त पर बैठा, तो आयशा और हफ़्सा उसके पास गईं और उनसे माँग की कि वह उन्हें वही दें जो उनके पिता (पहले और दूसरे खलीफा) उन्हें देते थे। लेकिन उस्मान ने कहा: "अल्लाह की क़सम, मैं तुम्हें ऐसा कुछ नहीं दूँगा... क्या तुम दोनों वही नहीं हो जिन्होंने अपने पिता के सामने गवाही दी थी कि नबी कोई विरासत नहीं छोड़ते? एक दिन तुमने यह गवाही दी और दूसरे दिन पैग़म्बर (स) की विरासत माँग रही हो?"[४७]
ख़ुत्बा ए फ़दकिय्या
- मुख्य लेख:: ख़ुत्बा फ़दकिय्या
जब अबू बक्र के पास फ़ातिमा (स) की दावेदारी निष्फल रही, तो वह मस्जिद-ए-नबवी गईं और सहाबा की मौजूदगी में एक ज़ोरदार भाषण दिया। यह भाषण "खुत्बा-ए-फ़दकिय्या" के नाम से प्रसिद्ध है।[४८] फ़ातिमा (स) ने अपने इस भाषण में: खिलाफत की ज़बरदस्ती छीनने की निंदा की। अबू बक्र के इस दावे को झूठा ठहराया कि "नबी कोई विरासत नहीं छोड़ते"। उन्होंने पूछा: "किस कानून के तहत तुमने मुझे मेरे पिता की विरासत से वंचित किया है? क्या क़ुरआन की कोई आयत ऐसा कहती है?!" अबू बक्र को क़यामत के दिन अल्लाह की अदालत के लिए छोड़ दिया। सहाबा से सवाल किया: "तुम लोग इस ज़ुल्म के आगे चुप क्यों बैठे हो?" कहा कि अबू बक्र और उसके साथियों ने अपनी क़सम तोड़ी है। अंत में, उनके कार्यों को शर्मनाक बताया और उनका अंजाम जहन्नम (नरक) बताया।[४९]
जीवन के अंत तक फ़ातिमा (स) की नाराज़गी
सहीह बोख़ारी जैसे प्रमुख सुन्नी स्रोतों में वर्णित है कि हज़रत फ़ातिमा (स) अबू बक्र और उमर से नाराज़ हो गईं और अपनी शहादत तक उन पर ग़ुस्से में रहीं।[५०] इसी तरह की अन्य रिवायतें भी सुन्नी किताबों में मौजूद हैं।[५१]
कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार, अबू बक्र और उमर ने फ़ातिमा (स) को मनाने के लिए उनसे मिलने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने मिलने से इनकार कर दिया। फिर उन्होंने हज़रत अली (अ) को बीच में डालकर फ़ातिमा (स) से मिलने की कोशिश की। इस मुलाक़ात के दौरान, फ़ातिमा (स) ने हदीसे बिज़आ का हवाला दिया, लेकिन फिर भी वह अबू बक्र और उमर से राज़ी नहीं हुईं।[५२]
इमाम अली (अ) की प्रतिक्रिया
बिहारुल-अनवार में वर्णित एक रिवायत के अनुसार, फ़दक के ज़ब्त होने के बाद इमाम अली (अ) मस्जिद गए और अबू बक्र से सवाल किया: "तुमने फ़ातिमा को उस चीज़ से क्यों रोका जो पैग़म्बर (स) ने उन्हें दान में दी थी?" अबू बक्र ने न्यायसंगत गवाह माँगे, तो इमाम अली (अ) ने तर्क दिया: "अगर कोई चीज़ किसी के पास हो और दूसरा उस पर दावा करे, तो दावेदार को बय्यिना (सबूत) पेश करना चाहिए, न कि फ़ातिमा (स) जिनके पास फ़दक पहले से मौजूद था।"[५३] इमाम अली (अ) ने आय ए ततहीर तिलावत की और अबू बक्र से स्वीकार करवाया कि यह आयत उनके और उनके परिवार के बारे में नाज़िल हुई थी। फिर उन्होंने पूछा: "अगर दो गवाह कहें कि फ़ातिमा ने कोई बड़ा गुनाह किया है, तो तुम क्या करोगे?" अबू बक्र ने कहा: "मैं फ़ातिमा पर हद (सज़ा) लागू करूँगा।" इमाम अली (अ) ने जवाब दिया: "तो तुमने खुदा की गवाही को लोगों की गवाही पर प्रथामिकता दी और काफ़िर बन गए!"[५४] तबरीसी की किताब "अल-एह्तिजाज" में इमाम अली (अ) का अबू बक्र को लिखा एक पत्र भी मौजूद है, जिसमें उन्होंने धमकी भरे लहजे में खिलाफ़त और फ़दक के ज़ब्त किए जाने की निंदा की है।[५५]
इमाम अली (अ) के खिलाफ़त के समय भी फ़दक उनके विरोधियों के कब्ज़े में रहा। हालाँकि इमाम अली (अ) पिछले खलीफाओं के कार्य को ग़स्ब (अन्यायपूर्ण कब्ज़ा) मानते थे, लेकिन उन्होंने इसका फैसला अल्लाह पर छोड़ दिया।[५६] जब पूछा गया कि इमाम अली (अ) ने फ़दक वापस लेने की कोशिश क्यों नहीं की, तो हदीस स्रोतों में कुछ जवाब मिलते हैं: इमाम अली (अ) ने एक खुत्बे में कहा: "अगर मैं फ़दक को फ़ातिमा के वारिसों को लौटाने का हुक्म देता, तो अल्लाह की क़सम! लोग मेरे चारों ओर से बिखर जाते।"[५७] इमाम सादिक़ (अ) से एक रिवायत है कि इमाम अली (अ) ने इस मामले में पैग़म्बर (स) की तरक़ीब अपनाई। जैसे पैग़म्बर (स) ने मक्का की विजय के दिन अपने घर को वापस नहीं लिया, जो उनसे पहले ज़बरदस्ती छीन लिया गया था।[५८]
इमाम अली (अ) ने उस्मान बिन हनीफ़ को लिखे एक पत्र में फ़दक के बारे में कहा: "इस आसमान के नीचे सिर्फ़ फ़दक ही हमारे पास था। कुछ लोगों ने उस पर कंजूसी की, और कुछ ने उदारता से उसकी अनदेखी की। सबसे अच्छा न्याय करने वाला अल्लाह है। मुझे फ़दक और दूसरी चीज़ों से क्या लेना-देना, जबकि कल इंसान की मंज़िल कब्र है?!"[५९]
फ़दक के ज़ब्तीकरण और इसकी मांग के पीछे उद्देश्य
सय्यद मुहम्मद बाक़िर अल-सद्र का किताब फ़दक फिल तारीख़ में मानना है कि फ़दक की मांग कोई व्यक्तिगत मामला या आर्थिक विवाद नहीं, बल्कि तत्कालीन सरकार के ख़िलाफ़ एक खुली चुनौती थी। यह सक़ीफ़ा के माध्यम से स्थापित शासन की वैधता को अस्वीकार करने का एक तरीका था।[61] वे इसे हज़रत फ़ातिमा (स) के इमामत और विलायत की रक्षा के संघर्ष का प्रारंभिक चरण मानते हैं।[६०]
प्रख्यात इतिहासकार सय्यद जाफ़र शहीदी (मृत्यु 1386 शम्सी) के अनुसार, फ़ातिमा (स) का फ़दक की मांग करने का उद्देश्य पैग़म्बर (स) की परंपराओं को जीवित रखना और इस्लामी समाज में न्याय स्थापित करना था। वे जाहेलीयत के मूल्यों और कबीलाई वर्चस्व की पुनरावृत्ति से चिंतित थीं, जो उस समय मुस्लिम समाज के लिए खतरा बन चुका था।[६१]
आयतुल्लाह मकारिम शिराज़ी के अनुसार, ख़लीफ़ाओं ने फ़दक को ज़ब्त करके इमाम अली (अ) और उनके परिवार की आर्थिक ताक़त को कमज़ोर करने की कोशिश की।[६२] वे इमाम सादिक़ (अ) की एक हदीस का हवाला देते हैं,[६३] जिसमें बताया गया है कि जब अबू बक्र ख़लीफ़ा बना, तो उमर ने उसे सलाह दी: "अली (अ) और अहले बैत से खुम्स, फ़य और फ़दक छीन लो, क्योंकि जब उनके अनुयायी यह देखेंगे, तो वे अली को छोड़कर तुम्हारे पास आ जाएंगे।"[६४]
फ़ातिमा की संतान को फ़दक की वापसी
फ़दक अधिकांश समय उमय्या और अब्बासी ख़लीफाओं के नियंत्रण में रहा, केवल कुछ विशेष अवधियों में ही फ़ातिमा (स) के वंशजों को वापस मिला:
- उमय्या शासक उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ के काल में।[६५]
- अब्बासिद ख़लीफा अल-सफ़्फ़ाह के शासनकाल में।[६६]
- अब्बासिद ख़लीफा अल-महदी के समय।[६७] ख़लीफा अल-महदी के शासन में फ़दक कुछ समय के लिए वापस मिला, लेकिन कुछ स्रोतों के अनुसार, इमाम मूसा काज़िम (अ) द्वारा माँगे जाने पर भी अल-महदी ने इसे पूरी तरह लौटाने से इनकार कर दिया।[६८]
- मामून अब्बासी का शासनकाल में।[६९]
हालाँकि, मामून के बाद ख़लीफा मुतवक्किल ने फ़दक को फिर से ज़ब्त कर लिया और मामून के आदेश से पहले की स्थिति में लौटा दिया।[७०] मजलिसी कोपाई अपनी किताब "फ़दक अज़ ग़स्ब ता तख़रीब" में लिखते हैं कि अधिकांश ऐतिहासिक किताबों ने मुतवक्किल के बाद फ़दक के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं दी है।[७१]
मोनोग्राफ़ी
- "फ़दक फ़िल तारीख़" लेखक: सय्यद मुहम्मद बाक़िर अल-सद्र, भाषा: अरबी (फ़ारसी में अनुवादित), विशेषता: फ़दक की घटना का विश्लेषणात्मक अध्ययन। यह किताब फ़दक के मुद्दे को एक राजनीतिक और धार्मिक संघर्ष के रूप में प्रस्तुत करती है।
- "फ़दक वल अवाली औ अल हवाईत अल-सबआ फ़िल किताब वल सुन्नत वल तारीख़ वल अदब" लेखक: सय्यद मुहम्मद बाक़िर हुसैनी जलाली (जन्म 1324 हिजरी शम्सी) विषय: फ़दक का ऐतिहासिक और भौगोलिक विवरण, फ़दक से जुड़ी हदीसें, कलामी चर्चाएँ और साहित्यिक विश्लेषण, पुरस्कार: 1385 हिजरी शम्सी में "किताब-ए-साल-ए-विलायत" (विलायत पुस्तक वर्ष) का चयनित ग्रंथ।[७२]
- "अल-सक़ीफ़ा व फ़दक" लेखक: अबू बक्र अहमद बिन अब्दुलअज़ीज़ जौहरी बसरी, संपादन: मुहम्मद हादी अमीनी, प्रकाशन: तेहरान, मकतबा अल-नीनवी अल-हदीसा, 1401 हिजरी क़मरी।
- "फ़दक दर फ़राज़ व नशेब" लेखक: अली हुसैनी मिलानी, विशेषता: एक सुन्नी विद्वान के प्रश्नों का उत्तर देते हुए फ़दक पर गहन शोध। प्रकाशन: क़ुम, अल-हक़ाएक़, 1386 हिजरी शम्सी।
- "फ़दक व बाज़ताब-ए-तारीख़ी व सियासी-ए-आन" लेखक: अली अकबर हसनी, प्रकाशन: क़ुम, कांग्रेस-ए-हज़ारा-ए-शेख़ मुफ़ीद, 1372 हिजरी शम्सी
नोट
फ़ुटनोट
- ↑ तिबरी, तारीखुल उमम वल मुलूक, भाग 2, पेज 642
- ↑ इब्ने हेशाम, अस-सीरातुन नबावीया, भाग 2, पेज 341
- ↑ मक़रीज़ी, इम्ताउल असमाअ, भाग 13, पेज 149
- ↑ इब्ने अबिल हदीद, शरह नहजुल बलाग़ा, भाग 16, पेज 216
- ↑ अल्लामा हिल्ली, नहजुल हक़ वा कश्फुस-सिद्क़, पेज 357
- ↑ मोहसिन अमीन, आयानुश-शिया, भाग 1, पेज 318
- ↑ अल्लामा हिल्ली, नहजुल हक़ वा कश्फुस-सिद्क़, पेज 357
- ↑ बलाज़रि, फ़ुतूहुल बुलदान, भाग 1, पेज 37
- ↑ बलाज़रि, फ़ुतूहुल बुलदान, भाग 1, पेज 38
- ↑ इब्ने असीर, अल-कामिल फ़ित-तारीख़, भाग 7, पेज 116
- ↑ याक़ूते हम्वी, मोजमुल बुलदान, 1995 ई, ज़ेले माद्दा ए फ़िदक, पेज 238
- ↑ याक़ूते हम्वी, मोजमुल बुलदान, 1995 ई, ज़ेले माद्दा ए फ़दक, पेज 238
- ↑ बलाज़ोरी, मोअजम मआलिम अल हिजाज़, 1431 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 205, 206 और खंड 7, पृष्ठ 23, सुब्हानी, हवादिस साले हफ़्तुमे हिजरत, सरगुज़श्ते फ़दक, पृष्ठ 14।
- ↑ याकू़ते हम्वी, मोअजम अल बुल्दान, 1995 ईस्वी, खंड 4, पृष्ठ 238।
- ↑ तबरी, तारीख़ अल उमम व अल मुलूक, 1387 शम्सी, खंड 3, पृष्ठ
- ↑ फ़ख़्रे राज़ी, मफ़ातिहुल ग़ैब, 1420 हिजरी, खंड 29, पृष्ठ 506, तबातबाई, अल मीज़ान, 1417 हिजरी, खंड 19, पृष्ठ 203।
- ↑ सूर ए इस्रा, आयत 26।
- ↑ सुब्हानी, फ़ोरोगे विलायत, 1380 शम्सी, पृष्ठ 219।
- ↑ सियूती, अल दुर्रुल मंसूर, बेरूत, खंड 2, पृष्ठ 158 और खंड 5, पृष्ठ 273।
- ↑ मुत्तक़ी हिन्दी, कंज़ुल उम्माल, बिना तारीख़, खंड 2, पृष्ठ 158 और खंड 3, पृष्ठ 767।
- ↑ हाकिम हस्कानी, शवाहिद अल तंज़ील, मोअस्सास ए अल तबअ व अल नशर, खंड 1, पृष्ठ 439 और 441।
- ↑ कंदोज़ी, यनाबी उल मवद्दत, 1422 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 138 और 359।
- ↑ हुसैनी, जलाली, किताब फ़दक व अल अवाली, 1426 हिजरी, पृष्ठ 146-149।
- ↑ मुन्तज़ेरी, ख़ुत्बा ए हज़रत ज़हरा (स) वा माजरा ए फ़दक, भाग 1, पेज 393
- ↑ मुन्तज़ेरी, ख़ुत्बा ए हज़रत ज़हरा (स) वा माजरा ए फ़दक, भाग 1, पेज 394
- ↑ क़र्शी, हयात अल इमाम मूसा बिन जाफ़र, 1429 हिजरी, पेज 472।
- ↑ इब्ने शहर आशोब, मनाक़िबे आले अबी तालिब, 1379 हिजरी, खंड 4, पेज 320, 324।
- ↑ शेख़ मुफ़ीद, इख़्तेसास, 1413 हिजरी, पेज 184।
- ↑ शहीदी, जिंदागानी ए हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स), 1362 शम्सी, पेज 117
- ↑ इब्ने अबिल हदीद, शरह नहजुल बलाग़ा, 1387 हिजरी, भाग 16, पेज 211
- ↑ कुलैनी, उसूले काफ़ी, 1369 शम्सी, भाग 1, पेज 543; शेख़ मुफ़ीद, अल-मुक़्नेआ, 1410 हिजरी, पेज 289-290
- ↑ बलाज़ोरी, फ़ुतूहुल बुलदान, 1956 ई, भाग 1, पेज 36
- ↑ बलाज़ोरी, फ़ुतूहुल बुलदान, 1956 ई, पेज 35-36
- ↑ हल्बी, अस-सीरातुल हल्बिया, 1971 ई, भाग 3, पेज 512
- ↑ फ़ख़्रे राज़ी, मिफ्ताहुल ग़ैब, 1420 हिजरी, भाग 8, पेज 125
- ↑ ईजी, अल मवाफ़िक़, 1997 ईस्वी, भाग 7, पेज 608।
- ↑ कुलैनी, अल काफ़ी, 1363 शम्सी, भाग 1, पेज 543, हल्बी, अल सीरत अल हल्बिया, 1971 शम्सी, भाग 7, पेज 512।
- ↑ बलाज़ोरी, फ़ोतूह अल बुल्दान, 1956 ईस्वी, भाग 1, पेज 35।
- ↑ इब्ने अबिल हदीद, शरहे नहजुल बलाग़ा, 1404 हिजरी, भाग 16, पेज 284।
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