शिया
- यह लेख शिया के बारे में है। बारह इमामी शियों के बारे में जानकारी के लिए इमामिया प्रविष्टि देखें।
शिया, इस्लाम के दो प्रमुख धर्मों में से एक है। इस धर्म के आधार पर, इस्लाम के पैग़म्बर (स) ने हज़रत अली (अ) को अपने तत्काल उत्तराधिकारी के रूप में चुना है। इमामत शिया धर्म के सिद्धांतों में से एक है और उनके और सुन्नियों के बीच अंतर है। इस सिद्धांत के अनुसार, इमाम को ईश्वर द्वारा नियुक्त किया जाता है और पैग़म्बर (स) के माध्यम से लोगों से परिचित कराया जाता है।
ज़ैदिया को छोड़कर सभी शिया, इमाम को निर्दोष मानते हैं और मानते हैं कि आख़िरी इमाम, वादा किये गये इमाम महदी (अ), ग़ैबत में है और एक दिन दुनिया में न्याय स्थापित करने के लिए ज़हूर (प्रकट) करेंगे।
शियों की कुछ अन्य विशिष्ट धार्मिक मान्यताएँ यह हैं: हुस्न व क़ुब्हे अक़्ली, ईश्वर के गुणों का परिष्कार (तंज़ीहे सेफ़ात), अम्र बैनल अमरैन, अदालते सहाबा, तक़य्या, तवस्सुल और शेफ़ाअत।
शिया धर्म में, सुन्नी धर्म की तरह, शरिया नियमों में इज्तेहाद के स्रोत यह हैं: क़ुरआन, सुन्नत, अक़्ल और सर्वसम्मति (इजमाअ)। बेशक, पैग़म्बर (स) की सुन्नत के अलावा, शिया इमामों की सुन्नत, यानी उनके व्यवहार और भाषण को भी सबूत (प्रमाण) मानते हैं।
आज, शिया धर्म में तीन संप्रदाय हैं: इमामिया, इस्माइलिया और ज़ैदिया। इमामी या इसना अशरी शिया, शिया आबादी का बहुमत हैं। वे बारह इमामों की इमामत में विश्वास करते हैं, जिनमें से अंतिम, वादा किए गए इमाम महदी (अ) हैं।
इस्माइली, इमामिया के छठे इमाम यानी इमाम जाफ़र सादिक़ (अ.स.) तक के इमामों को स्वीकार करते हैं, और उनके बाद, इमाम सादिक़ (अ.स.) के बेटे इस्माइल और इस्माइल के बेटे मुहम्मद को इमाम मानते है और उनका मानना है कि वह वादा किये गये महदी हैं। ज़ैदिया इमामों की संख्या को सीमित नहीं करते हैं और उनका मानना है कि हज़रत फ़ातेमा (अ) की हर संतान जो विद्वान, तपस्वी, बहादुर और उदार हो और क़याम करे, वह इमाम है।
इदरीस वंश, तबरिस्तान के अलवी, आले-बुयेह, यमन के ज़ैदिया, फ़ातेमी वंश, इस्माइलिया, सब्ज़ेवार के सरबदारान, सफ़ाविया और इस्लामी गणराज्य ईरान की सरकारें इस्लामी दुनिया की शिया सरकारों में से थीं।
प्यू (pew) इंस्टीट्यूट की धर्म व जीवन एसोसिएशन की रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया की 10 से 13 फीसदी मुस्लिम आबादी शिया हैं। शियों की आबादी लगभग 154 से 200 मिलियन तक होने का अनुमान है। अधिकांश शिया ईरान, पाकिस्तान, भारत और इराक़ में रहते हैं।
परिभाषा
शिया इमाम अली (अ) के अनुयायियों और उन लोगों को संदर्भित करता है जो मानते हैं कि इस्लाम के पैग़म्बर (स) ने स्पष्ट रूप से इमाम अली (अ) को अपना तत्काल उत्तराधिकारी नियुक्त किया है।[१] शेख़ मुफ़ीद का मानना है कि "अल शिया" शब्द का प्रयोग जब "अलिफ़-व लाम" के साथ किया जाता है, तो यह केवल इमाम अली (अ) के अनुयायियों को संदर्भित करता है जो पैगंबर (स) के बाद उनकी तत्काल संरक्षकता और इमामत में विश्वास करते हैं।[२] दूसरी ओर, सुन्नियों का कहना है कि पैग़म्बर (स) ने अपना उत्तराधिकारी नियुक्त नहीं किया। और अबू बक्र के प्रति निष्ठा की शपथ लेने में मुसलमानों की सर्वसम्मति के कारण, वह पैगंबर (स) के उत्तराधिकारी हैं।[३]
शिया इतिहासकार रसूल जाफ़रियान के अनुसार, इस्लाम के जन्म के कई शताब्दियों बाद तक, अहले-बैत (अ) के प्रेमी और जो लोग इमाम अली (अ.स.) को उस्मान (तीसरे ख़लीफ़ा) से आगे मानते थे, उन्हें भी शिया कहा जाता था।[४] पहले समूह के विरुद्ध, जो धार्मिक (ऐतेक़ादी) शिया थे [नोट 1], उन्हें मोहब्बती शिया (अहले-बैत के प्रेमी) कहा जाता है।[५]
शिया का शाब्दिक अर्थ अनुयायी, मित्र और समूह है।[६]
पैदाइश का इतिहास
शियों की उत्पत्ति के इतिहास के बारे में अलग-अलग मत हैं; उनमें से, इस्लाम के पैग़म्बर (स) के जीवन के समय में, सक़ीफ़ा की घटना के बाद, उस्मान की हत्या के बाद, और हकमीयत की घटना के बाद को शिया के जन्म की तारीख़ के रूप में उल्लेख किया गया है।[७] कुछ शिया विद्वानों का मानना है कि इस्लाम के पैगंबर (स) के जीवन के समय से, कुछ सहाबा हज़रत अली (अ.स.) की धुरी के आसपास थे और शिया उसी समय अस्तित्व में थे। [८] वे हदीसों[९] और ऐतिहासिक रिपोर्टों[१०] का उल्लेख करते हैं, जिसके अनुसार, पैगंबर (स) के समय में, अली (अ.स.) के शियों को प्रचारित (बशारत) दी गई या लोगों का अली के शियों के रूप में उल्लेख किया गया है।[११] पैगंबर (स) की वफ़ात के बाद इस समूह ने अबू बक्र को ख़लीफ़ा के रूप में चुनने के सक़ीफ़ा परिषद के फैसले पर आपत्ति जताई और अबू बक्र को ख़लीफा के रूप में निष्ठा देने से इनकार कर दिया।[१२] मसायल अल-उम्मा पुस्तक में नाशी अकबर के अनुसार, हज़रत अली (अ) के समय से, शिया मान्यता (अक़ीदा) रही है।[१३]
इमामत सिद्धांत
मुख्य लेख: इमामत
इमामत के बारे में शिया दृष्टिकोण को शिया संप्रदायों की सामान्य विशेषता माना जाता है।[१४] शिया धार्मिक चर्चाओं में इमामत का बहुत महत्वपूर्ण और केन्द्रिय स्थान है।[१५] शियों के अनुसार, पैग़म्बर (स) के बाद इमाम धार्मिक नियमों की व्याख्या का सर्वोच्च स्रोत है। [१६] शिया हदीसों में, इमाम की स्थिति इतनी महत्वपूर्ण है कि यदि कोई अपने इमाम को जाने पहचाने बिना मर जाता है, तो वह एक काफिर के रूप में दुनिया से गया है।[१७]
- पैग़म्बर (स) ने कहा: «من مات ولم یعرف إمام زمانه مات میتة جاهلیة» "जो कोई भी मर जाये और अपने समय के इमाम को नहीं पहचानता हो वह जाहेलियत की मृत्यु (कुफ़्र की हालत) से मरा है)" तफ़ताज़ानी, शरह अल-मक़ासिद, खंड 5, पृष्ठ 239।
इमाम पर नस्स की ज़रूरत
मुख्य लेख: इमाम पर नस्स
शियों का मानना है कि इमामत धार्मिक सिद्धांतों और एक दैवीय पदों में से एक है; अर्थात्, पैग़म्बर इमाम के चुनाव को लोगों पर नहीं छोड़ सकते हैं, और उनके लिए अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करना अनिवार्य (वाजिब) है।[१८] इसलिए, शिया धर्मशास्त्री (ज़ैदिया को छोड़कर)[१९] इमाम की "नियुक्ति" (पैग़म्बर या पिछले इमाम द्वारा) की आवश्यकता पर ज़ोर देते हैं।[२०] और वे "नस्स" (ऐसा कथन या कार्य जो अभीष्ट अर्थ को स्पष्ट रूप से इंगित करता हो)[२१] को इमाम को जानने का एकमात्र तरीक़ा मानते हैं।[२२]
उनका तर्क यह है कि इमाम को अचूक (मासूम) होना चाहिए और केवल भगवान ही मनुष्य की अचूकता (इस्मत) के बारे में जानता है;[२३] क्योंकि अचूकता एक आंतरिक गुण है और कोई भी उनकी उपस्थिति से उनकी अचूकता के बारे में नहीं जान सकता है।[२४] इसलिए, यह आवश्यक है कि भगवान इमाम को नियुक्त करें और पैग़म्बर के माध्यम से उन्हे लोगों से परिचित कराये।[२५]
शिया धर्मशास्त्रीय पुस्तकों में, समाज में एक इमाम के अस्तित्व की आवश्यकता के लिए कई कथात्मक और तर्कसंगत कारण हैं।[२६] इमाम के अस्तित्व की आवश्यकता के लिए शिया द्वारा उद्धृत कारणों में उलिल अम्र की आयत और हदीसे मन माता शामिल हैं।[२७] अनुग्रह के नियम (क़ायदा लुत्फ़) से दलील देना उनके तर्कसंगत कारणों में से एक है। इस कारण को समझाते हुए, उन्होंने लिखा: एक ओर, इमाम का अस्तित्व लोगों को ईश्वर की आज्ञाकारिता की ओर अधिक और पापों की ओर कम जाने का कारण बनता है; और दूसरी ओर, अनुग्रह के नियम (क़ायदा लुत्फ़) के अनुसार, ऐसा कुछ भी करना ईश्वर के लिए अनिवार्य है जो ऐसी चीज़ का कारण बनता है; इसलिए, इमाम का भेजना ईश्वर पर अनिवार्य है।[२८]
इमाम की अचूकता
मुख्य लेख: इमामों की अचूकता
शिया, इमामों की अचूकता में विश्वास करते हैं और इसे इमामत के लिये शर्त मानते हैं।[२९] वे इस संदर्भ में कथात्मक और तर्कसंगत कारणों का हवाला देते हैं,[३०] जिसमें उलिल अम्र की आयत,[३१] इब्राहीम की पीड़ा की आयत[३२] और हदीस सक़लैन शामिल है।[३३]
शियों के बीच, ज़ैदिया सभी इमामों की अचूकता में विश्वास नहीं करते हैं। उनके अनुसार, केवल केसा के साथी, यानी पैग़म्बर (स), अली (अ), फ़ातेमा (स), हसन (अ) और हुसैन (अ) ही अचूक हैं[३४] और बाकी इमाम अचूक नहीं बल्कि अन्य लोगों की तरह है।[३५]
पैग़म्बर के उत्तराधिकार का मुद्दा
शियों का मानना है कि इस्लाम के पैग़म्बर (स) ने इमाम अली (अ) को अपने उत्तराधिकारी के रूप में लोगों के सामने पेश किया और इमामत को उनके और उनकी औलाद का विशेष अधिकार माना है।[३६] बेशक, इनमें से ज़ैदियों ने अबू बक्र और उमर की इमामत को भी स्वीकार कर लिया; लेकिन वे इमाम अली (अ.स.) को इन दोनों से अधिक योग्य मानते हैं लेकिन वे इमाम अली (अ.स.) को भी इन दोनों से अधिक योग्य मानते हैं और कहते हैं कि मुसलमानों ने उमर और अबू बक्र को इमाम के रूप में चुनकर ग़लती की, लेकिन चूंकि इमाम अली (अ.स.) इस पर सहमत हुए, इसलिए हम उनकी इमामत को भी स्वीकार करते हैं।[३७]
पैग़म्बर (स) के बाद इमाम अली (अ.स.) के तत्काल उत्तराधिकार को साबित करने के लिए, शिया धर्मशास्त्री आयतों और हदीसों का उल्लेख करते हैं, जिनमें विलायत की आयत, ग़दीर की हदीस और मंज़ेलत की हदीस शामिल हैं।[३८]
शिया संप्रदाय
मुख्य लेख: शिया फ़िरक़े
सबसे महत्वपूर्ण शिया संप्रदायों को इमामिया, ज़ैदिया, इस्माइलिया, ग़ाली, कैसनिया और कुछ हद तक वाक़ेफ़िया के नाम से जाना जाता है।[३९] इनमें से कुछ संप्रदायों की अलग-अलग शाखाएँ हैं; जैसे ज़ैदिया, जिसकी दस शाखाओं तक का उल्लेख किया गया है;[४०] और कैसनिया, जिसे चार शाखाओं में विभाजित किया गया है।[४१] इसके कारण कई संप्रदायों को शिया संप्रदाय के रूप में उल्लेखित किया गया है।[४२] कई शिया संप्रदाय ख़त्म हो गए हैं और आज केवल तीन धर्मों, इमामिया, ज़ैदिया और इस्माइलिया के अनुयायी हैं।[४३]
कैसनिया, मुहम्मद हनफ़िया के अनुयायी थे। इमाम अली (अ.स.), इमाम हसन (अ.स.) और इमाम हुसैन (अ.स.) के बाद वे इमाम अली (अ.स.) के दूसरे बेटे मुहम्मद हनफ़िया को इमाम मानते थे और उनका मानना था कि मुहम्मद हनफ़िया मरे नहीं है, और वह वही महदी मौऊद हैं, और वह माउंट रज़वा में रहते हैं।[४४]
वाक़ेफ़िया वे लोग हैं जो इमाम मूसा काज़िम (अ.स.) की शहादत के बाद उनकी इमामत पर बाक़ी रहे। यानी वे उन्हें आखिरी इमाम मानते थे।[४५] ग़ाली एक ऐसा समूह था जो शिया इमामों की स्थिति को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करता था। अर्थात्, वे उनकी दिव्यता में विश्वास करते थे, वे उन्हें प्राणी नहीं मानते थे और उनकी तुलना ईश्वर से करते थे।[४६]
शिया इसना अशरी
मुख्य लेख: इमामिया
बारह-इमामी शिया या शिया इसना अशरी, शिया धर्म का सबसे बड़ा संप्रदाय है।[४७] इमामिया के अनुसार, इस्लाम के पैग़म्बर (स) के बाद, बारह इमाम हैं, जिनमें से पहले इमाम अली (अ) हैं, और अंतिम इमाम महदी (अ) हैं।[४८] जो अभी भी जीवित है, वह ग़ैबत में है और एक दिन वह पृथ्वी पर न्याय स्थापित करने के लिए प्रकट होगें।[४९]
रजअत और बदा बारह इमाम के मानने वाले शियों की विशेष मान्यताएं हैं।[५०] रजअत के सिद्धांत के अनुसार, इमाम महदी (अ.स.) के प्रकट होने के बाद, कुछ मृतकों को पुनर्जीवित किया जाएगा। इन मृतकों में धर्मी, शिया और अहले-बैत (अ) के दुश्मन दोनों शामिल हैं, जिन्हें इसी दुनिया में अपने कर्मों की सज़ा देखनी पड़ेगी।[५१] बदा का अर्थ यह है कि ईश्वर कभी-कभी मसलहत के कारण उस मामले को बदल देता है जो उसने पैगंम्बर या इमाम को बताया था और उसकी जगह किसी और चीज़ को रख देता है।[५२]
सबसे महत्वपूर्ण इमामिया धर्मशास्त्री यह हैं: शेख़ मुफ़ीद (336 या 338-413 हिजरी), शेख़ तूसी (385-460 हिजरी), ख़्वाजा नसीर अल-दीन तूसी (597-672 हिजरी) और अल्लामा हिल्ली (648-726 हिजरी)।[५३] सबसे प्रमुख इमामिया न्यायविद यह हैं: शेख़ तूसी, मुहक्क़िक़ हिल्ली, अल्लामा हिल्ली, शहीद प्रथम, शाहिद सानी, काशिफ़ अल-ग़ेता, मिर्ज़ा क़ुम्मी और शेख़ मुर्तुज़ा अंसारी।[५४]
ईरान में अधिकांश शिया, जो देश की आबादी का लगभग 90% हैं, बारह इमाम के मानने वाले शिया हैं।[५५]
जै़दिया
मुख्य लेख: ज़ैदिया
ज़ैदिया धर्म इमाम सज्जाद (अ.स.) के बेटे ज़ैद से संबंधित है।[५६] इस धर्म के अनुसार, केवल इमाम अली (अ.स.), इमाम हसन (अ.स.) और इमाम हुसैन (अ.स.) को पैग़म्बर (स) द्वारा नियुक्त किया गया था।[५७] इन तीन इमामों को छोड़कर, जो कोई भी हज़रत ज़हरा (स) की पीढ़ी से क़याम करे और विद्वान, तपस्वी, उदार और बहादुर हो, वह इमाम है।[५८]
अबू बक्र और उमर की इमामत के संबंध में ज़ैदिया के दो दृष्टिकोण हैं: उनमें से कुछ इन दोनों की इमामत में विश्वास करते हैं और अन्य इसे स्वीकार नहीं करते हैं। [59] आज यमन के ज़ैदियों समूह का दृष्टिकोण पहले के दृष्टिकोण के क़रीब है।[५९]
जारूदिया, सालिहिया और सुलेमानिया ज़ैदिया के तीन मुख्य संप्रदाय रहे हैं।[६०] अल-मेलल वल-नेहल के लेखक शहरिस्तानी के अनुसार, अधिकांश ज़ैदी धर्मशास्त्र में मोतज़िला और न्यायशास्त्र में न्यायशास्त्र के चार सुन्नी स्कूलों में से हनफ़ी स्कूल से प्रभावित हैं।[६१]
शिया एटलस पुस्तक के अनुसार, यमन की 20 मिलियन आबादी में ज़ैदीया 35-40% हैं।[६२]
इस्माईलिया
मुख्य लेख: इस्माईलिया
इस्माईलिया शियों का एक संप्रदाय है जो इमाम सादिक़ (अ.स.) के बाद उनके सबसे बड़े बेटे इस्माईल को इमाम मानता है और इमाम मूसा काज़िम (अ.स.) और इमामिया के अन्य इमामों की इमामत को स्वीकार नहीं करता है।[६३] इस्माइलियों का मानना है कि इमामत के सात काल होते हैं और प्रत्येक काल एक "नातिक़" से शुरू होता है जो एक नई शरीयत लाता है और उसके बाद प्रत्येक काल में सात इमाम इमामत का नेतृत्व करते हैं।[६४]
इमामत के पहले छह काल के नातिक़ बड़े अंबिया हैं, जिनमें शामिल हैं: हज़रत आदम, हज़रत नूह, हज़रत इब्राहीम, हज़रत मूसा, हज़रत ईसा और हज़रत मुहम्मद (स)।[६५] इस्माईल के पुत्र मुहम्मद मकतूम, इमामत के छठे दौर, जिसका काल पैग़म्बरे इस्लाम के साथ प्रारम्भ हुआ था, के सातवें इमाम हैं। वह वादा किये गये महदी है, जो जब उठेगें, तो इमामत की सातवीं अवधि के नातिक़ होगें।[६६] कहते हैं कि इनमें से कुछ शिक्षाओं में फ़ातेमी शासन के दौरान बदलाव हुए हैं।[६७]
इस्माईलिया की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता उनका बातेनी गरी (इस धर्म का आंतरिक स्वरूप) को मानना हैं; क्योंकि वे आयतों, हदीसों, इस्लामी ज्ञान और अहकामों की व्याख्या करते हैं और उनके स्वरूप के विपरीत अर्थ निकालते हैं। उनके अनुसार क़ुरआन की आयतों और हदीसों के ज़ाहिरी और आंतरिक पहलू हैं। इमाम उनकी आंतरिकता को जानता है, और इमामत का दर्शन आंतरिक धर्म की शिक्षा और आंतरिक ज्ञान की अभिव्यक्ति है।[६८]
क़ाज़ी नोमान को सबसे महान इस्माईली न्यायविद् माना जाता है[६९] और उनकी पुस्तक दआएम अल-इस्लाम इस धर्म का मुख्य न्यायशास्त्रीय स्रोत है।[७०] अबू हातेम राज़ी, नासिर खोसरो और इख़वान अल-सफ़ा नामक एक समूह भी प्रमुख इस्माईली विचारक माने जाते हैं।[७१] अबू हातेम राज़ी द्वारा लिखित रसायल इख़वान अल सफ़ा और आलाम अल नबूवा, उनकी सबसे महत्वपूर्ण दार्शनिक पुस्तकों में से एक है।[७२]
इस्माईली आज दो समूहों में विभाजित हैं, आग़ा ख़ानी और बोहरा, जो मिस्र के फ़ातिमियों की दो शाखाओं, अर्थात् नज़ारिया और मुस्तअलविया के बचे हुए हैं।[७३] पहले समूह की संख्या लगभग एक मिलियन एक मानी जाती है, जो मुख्य रूप से भारत, पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान और ईरान जैसे एशियाई देशों में रहते हैं।[७४] दूसरे समूह की संख्या के बारे में लगभग पांच लाख लोगों का अनुमान लगाया गया है, जिनमें से 80% से अधिक भारत में रहते हैं।[७५]
महदवियत
मुख्य लेख: महदवियत
महदीवाद को सभी इस्लामी धर्मों के बीच एक सामान्य सिद्धांत माना जाता है;[७६] लेकिन इस विचार का शिया धर्म में एक विशेष स्थान है और इसका उल्लेख बहुत सी हदीसों, पुस्तकों और लेखों में किया गया है।[७७]
हालाँकि शिया संप्रदाय महदी के अस्तित्व के सिद्धांत पर सहमत हैं, लेकिन वे इसके विवरण और उदाहरणों में भिन्न हैं। शिया इसना अशरी का मानना है कि महदी इमाम हसन अस्करी (अ) के बेटे, 12वें इमाम हैं और वही वादा किए गए महदी (अ) हैं और ग़ैबत में हैं।[७८] इस्माईलिया इस्माईल के बेटे मुहम्मद मकतूम को महदी मौऊद मानते हैं।[७९] ज़ैदिया इंतेजार और अनुपस्थिति (ग़ैबत) में विश्वास नहीं करते क्योंकि वे क़याम को इमाम के लिये शर्त मानते हैं।[८०] वे हर इमाम को महदी और एक उद्धारकर्ता मानते हैं।[८१]
अन्य महत्वपूर्ण धार्मिक विचार
शिया अन्य मुसलमानों के साथ धर्म के सिद्धांतों, जैसे एकेश्वरवाद, नबूवत और पुनरुत्थान को साझा करते हैं, साथ ही शियों की भी ऐसी मान्यताएँ हैं जो उन्हें सभी सुन्नियों या उनमें से कुछ से अलग करती हैं। इमामत और महदीवाद के दो मुद्दों के अलावा, हुस्न व क़ुब्हे अक़्ली, तंज़ीह सेफ़ाते ख़ुदा, अम्र बैनल अमरैन, सारे सहाबा का आदिल न होना, तक़य्या, तवस्सुल और शफ़ाअत उन मान्यताओं में शामिल हैं।
मोतज़ेला जैसे शिया विद्वान हुस्न व क़ुब्ह को बौद्धिक मानते हैं।[८२] अच्छाई और बुराई इस अर्थ में बौद्धिक हैं कि भले ही ईश्वर उनके अच्छे या बुरे होने का आदेश देता हो कार्यों (आमाल) को बौद्धिक रूप से अच्छे और बुरे में विभाजित किया जाता है।[८३] यह कथन अशायरा के दृष्टिकोण के विरुद्ध है, जो अच्छे और बुरे को शरई मानते हैं;[८४] अर्थात् वे कहते हैं कि अच्छे और बुरे का वास्तविकता में कोई अस्तित्व नहीं है और वे काल्पनिक हैं; इसलिए, ईश्वर जो भी आदेश देता है वह अच्छा है और जो भी वह मना करता है वह बुरा है।[८५]
"तंज़ीहे सेफ़ात" का सिद्धांत, "तातील" और "तशबीह" दो विचारों के विपरित है, पहले के कथन के अनुसार किसी भी गुण का श्रेय ईश्वर को नहीं दिया जाना चाहिए, और दूसरे ईश्वर के गुणों की तुलना अन्य प्राणियों से करते हैं।[८६] शिया धर्म के अनुसार प्राणियों में प्रयुक्त होने वाले कुछ सकारात्मक गुणों का श्रेय ईश्वर को दिया जा सकता है लेकिन जिस तरह से उसमें ये गुण हैं, उन्हें प्राणियों के गुणों की तरह से नहीं माना जाना चाहिए।[८७] उदाहरण के लिए, यह कहा जाना चाहिए जिस प्रकार मनुष्य के पास ज्ञान, शक्ति और जीवन है, उसी प्रकार ईश्वर के पास भी ये गुण हैं, लेकिन ईश्वर का ज्ञान, शक्ति और जीवन मनुष्य के ज्ञान, शक्ति और जीवन के समान नहीं है।[८८]
अम्र बैनल अमरैन के सिद्धांत के अनुसार, मनुष्य पूरी तरह से स्वतंत्र प्राणी नहीं है, जैसा कि मोतज़ेला सोचते हैं, न ही वह पूरी तरह से मजबूर है, जैसा कि अहले-हदीस कहते हैं;[८९] बल्कि, मनुष्य को अपना कार्य करने की आज़ादी है, लेकिन उसकी इच्छा और शक्ति स्वतंत्र नहीं है बल्कि ईश्वर की इच्छा पर निर्भर है।[९०] शियों में, ज़ैदिया मोतज़ेला की तरह सोचते हैं।[९१]
सुन्नियों के विपरीत, शिया धर्मशास्त्री[९२] यह नहीं मानते कि पैग़म्बर (स) के सभी सहाबी आदिल हैं[९३] हैं और उनका कहना है कि सिर्फ़ पैगंबर से मिलना न्याय का प्रमाण नहीं है।[९४]
ज़ैदियों को छोड़कर,[९५] अन्य शिया तक़य्या को स्वीकार्य मानते हैं; यानी उनका मानना है कि ऐसे मामलों में जहां कोई अक़ीदा व्यक्त करने से विरोधियों द्वारा नुक़सान पहुचाया जा सकता है, हम चाहें तो अपनी राय प्रकट नहीं करें और उसके विपरीत कुछ कह सकते हैं। [९६]
हालाँकि तवस्सुल अन्य इस्लामी संप्रदायों में एक आम अवधारणा रही है, लेकिन शियों के बीच इसका अधिक महत्वपूर्ण स्थान है।[९७] कुछ सुन्नी जैसे वहाबियों के विपरीत,[९८] शिया इसे अच्छा मानते हैं कि कोई व्यक्ति प्रार्थनाओं के स्वीकार होने और भगवान से क़रीब के लिए भगवान के संतों की मध्यस्थता करे।[९९] तवस्सुल का मध्यस्थता (शफ़ाअत) के साथ एक मजबूत संबंध है।[१००] शेख़ मुफ़ीद के अनुसार, मध्यस्थता का अर्थ यह है कि पैग़म्बर (स) और इमाम पुनरुत्थान के दिन पापियों के लिए मध्यस्थ बन सकते हैं, और उनकी हिमायत के माध्यम से ईश्वर बहुत से पापियों को माफ़ कर देगा।[१०१]
न्यायशास्त्र
मुख्य लेख: न्यायशास्त्र
क़ुरआन और पैग़म्बर (स) की सुन्नत शरई अहकाम के दो मुख्य स्रोतों के रूप में सभी शियों के लिए मान्य हैं;[१०२] लेकिन इन दोनों के साथ-साथ अन्य न्यायशास्त्र स्रोतों का उपयोग कैसे किया जाए, इस पर उनमें मतभेद है।
अधिकांश शिया, अर्थात् इमामिया और ज़ैदिया, सुन्नियों की तरह, क़ुरआन और पैग़म्बर की सुन्नत के अलावा, अक़्ल और सर्वसम्मति (इजमाअ) को भी प्रमाण मानते हैं;[१०३] लेकिन इस्माईलिया ऐसा नहीं मानते हैं। इस्माइली धर्म के अनुसार, किसी भी मुज्तहिद की तक़लीद करना जायज़ नहीं है, और शरीयत के फैसले सीधे क़ुरआन, पैग़म्बर की सुन्नत और इमामों की शिक्षाओं से प्राप्त होने चाहिए।[१०४]
सुन्नत के संबंध में, ज़ैदिया केवल पैगंबर के व्यवहार और भाषण को प्रमाण मानते हैं और सेहाह सित्ता जैसे सुन्नी हदीस के स्रोतों की ओर संदर्भित करते हैं;[१०५] लेकिन इमामिया और इस्माईलिया भी अपने इमामों द्वारा सुनाई गई हदीसों को न्यायशास्त्र के स्रोत के रूप में मानते हैं।[१०६]
इसके अलावा, ज़ैदिया, अहले-सुन्नत की तरह, क़यास और इस्तेहसान को भी सबूत मानते हैं;[१०७] लेकिन ये इमामिया और इस्माइली शियों के बीच मान्य नहीं हैं।[१०८] बेशक, ज़ैदियों ने इमामिया और सुन्नियों के बीच असहमति के कुछ फैसलों में शियों के फ़तवे को चुना है; उदाहरण के लिए, सुन्नियों के विपरीत, वे "हय्या अला ख़ैरिल अमल" वाक्यांश को अज़ान का हिस्सा मानते हैं, और "अस-सलातो ख़ैर मिन अल नौम" (الصلاةُ خَیرٌ مِن النَّوم) (नमाज़ नींद से बेहतर है) कहने को हराम मानते है।[१०९]
अस्थायी विवाह के संबंध में, जो इमामिया और सुन्नियों के बीच विवादास्पद मुद्दों में से एक है, इस्माइलिया और ज़ैदिया सुन्नियों से सहमत हैं।[११०] यानी, इमामिया के विपरीत जो अस्थायी विवाह की अनुमति देता है, वे इसके हराम होने का नज़रिया रखते हैं।[१११]
जनसंख्या और भौगोलिक वितरण
2009 में, "प्यू रिलिजन एंड पब्लिक लाइफ एसोसिएशन" ने घोषणा की कि दुनिया में शियों की संख्या 154 से 200 मिलियन लोगों के बीच है और मुसलमानों के 10 से 13 प्रतिशत के बराबर है।[११२] बेशक, कुछ लोगों ने इस आंकड़े को अवास्तविक माना है और शियों की वास्तविक आबादी तीन सौ मिलियन से अधिक माना है, यानी दुनिया की मुस्लिम आबादी का 19%।[११३]
प्यू रिलिजन एंड पब्लिक लाइफ एसोसिएशन की रिपोर्ट के अनुसार, 68-80% शिया ईरान, इराक़, पाकिस्तान और भारत के चार देशों में रहते हैं।[११४] 2009 में प्यू इंस्टीट्यूट के आंकड़ों के अनुसार, 66-70 मिलियन शिया (दुनिया के 37 से -40% शिया) ईरान में, 17-26 मिलियन (10-15%) पाकिस्तान में, 16-24 मिलियन (9 से 14%) भारत में, 19-22 मिलियन (11-12%) इराक़ में और 7-11 मिलियन (2-6 प्रतिशत) शिया तुर्की में रहते हैं।[११५]
ईरान, आज़रबैजान, बहरैन और इराक़ में, बहुसंख्यक आबादी शिया है।[११६] शिया मध्य पूर्व, उत्तरी अफ्रीका, एशिया-प्रशांत क्षेत्र और अमेरिका और कनाडा[११७] और चीन[११८] में भी रहते हैं।
सरकारें
इदरीस वंश शासन, तबरिस्तान का अलवी शासन, आल-बुयेह शासन, यमन का ज़ैदीया शासन, फ़ातिमिड्स शासन, अलमूत का इस्माइलिया शासन, सब्ज़वार का सरबदारान शासन, सफ़ाविद शासन और इस्लामी गणराज्य ईरान की सरकारें इस्लामी दुनिया की शिया सरकारों में से थीं।
मोरक्को और अल्जीरिया के एक हिस्से में [११९] आले-इदरीस सरकार को शियों द्वारा गठित पहली सरकार माना जाता है।[१२०] यह सरकार 172 हिजरी में इमाम हसन मुजतबा (अ) के पोते इदरीस द्वारा सन 172 हिजरी स्थापित की गई थी जो लंबे समय लगभग दो शताब्दियों तक चली।[१२१] अलवी शासक ज़ैदीया थे।[१२२] ज़ैदियों ने इसी तरह से 284 हिजरी से 1382 हिजरी तक यमन पर शासन किया।[१२३] फ़ातिमिड्स और अलमूत के इस्माइलिया की सरकारें इस्माइली धर्म की थीं।[१२४] आले बूयेह के बारे में मतभेद है। उनमें से कुछ उन्हें ज़ैदीया मानते हैं, कुछ कहते हैं कि वे इमामिया थे, और दूसरों के अनुसार, वे पहले ज़ैदीया थे, और बाद में वे इमामिया बन गए थे।[१२५]
सुल्तान मोहम्मद ख़ुदा बंदे जिन्हें उलजायतो (शासनकाल 703 से 716 हिजरी) के नाम से जाना जाता है, ने भी कुछ समय के लिए बारह इमामी शिया धर्म को अपनी सरकार का आधिकारिक धर्म घोषित किया था। लेकिन सुन्नी धर्म पर आधारित उनकी सरकारी संस्था के दबाव के कारण उन्होंने सुन्नी धर्म को फिर से आधिकारिक घोषित कर दिया।[१२६]
सब्ज़वार में सर्बदारान सरकार को भी शिया सरकार माना जाता है।[१२७] हालांकि, रसूल जाफ़रियान के अनुसार, सर्बदारान नेताओं और शासकों का धर्म ठीक से ज्ञात नहीं है; लेकिन यह स्पष्ट है कि उनके धार्मिक नेता शिया प्रवृत्ति वाले सूफी थे।[१२८] सर्बदारान के अंतिम शासक ख्वाजा अली मोअय्यिद ने[१२९] इमामिया को अपनी सरकार का आधिकारिक धर्म घोषित किया।[१३०]
907 हिजरी में शाह इस्माइल द्वारा स्थापित सफ़ाविद सरकार में, बारह इमामी शिया धर्म को मान्यता दी गई थी।[१३१] इस सरकार ने ईरान में इमामिया धर्म का प्रसार किया और ईरान को पूरी तरह से शिया देश में बदल दिया। [१३२]
इस्लामी गणतंत्र ईरान शासन, धर्म के सिद्धांत और बारह इमामी शिया न्यायशास्त्र पर आधारित है।[१३३]
अधिक अध्धयन के लिये
इस्लाम में शिया पुस्तक, अल्लामा तबताबाई द्वारा लिखित: यह पुस्तक शिया धर्म को पेश करने के उद्देश्य से, विशेष रूप से ग़ैर-मुस्लिम पाठकों के लिए, फ़ारसी में लिखी गई थी। इस किताब में शिया को समझने के लिए आवश्यक सामग्री को सरल और संक्षिप्त भाषा में पेश किया गया है। इस्लाम में शिया किताब का विभिन्न भाषाओं में अनुवाद किया गया है।
संबंधित लेख
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