इमाम अली (अ) का दीवान

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इमाम अली (अ) का दीवान
लेखकइमाम अली (अ) से मनसूब
प्रयासकुतुबुद्दीन किदरी बेहक़ी
शैलीशायरी
भाषाअरबी
प्रकाशन का स्थानलीडेन, हॉलैंड
प्रकाशन तिथि1745 ई
अन्य भाषाओं में अनुवादतुर्की 1312 हिजरी, उर्दू 1976 ईस्वी, फारसी 1362 शम्सी
पुस्तक का नामदीवाने इमाम अली (अ) (फारसी मे)
अनुवादकमुस्तफ़ा ज़मानी (फारसी मे)


इमाम अली (अ) का दीवान (अरबीःدیوان الامام علی) अरबी भाषा में इमाम अली (अ) की शायरी का संग्रह है। मुस्लिम विद्वान और शोधकर्ता इन शायरी की एक छोटी संख्या को इमाम अली द्वारा लिखी गई मानते हैं, और बाकी को अन्य कवियो द्वारा इमाम अली (अ) के बारे में अपनी ज़बान से या उन कविताओं से जोकि इमाम अली (अ) ने दूसरे से नक़्ल की है समझा जाता है।

इन अश्आर को इमाम अली (अ) के बाद की सदियों में संकलित किया गया है, और उनमें से सबसे पुरानी कविताएँ अब्दुल अज़ीज़ जलोदी (निधन 322 हिजरी) द्वारा संकलित की गई हैं। विभिन्न संस्करणों में इन कविताओं की संख्या 190 और 506 कविताओं के बीच है। अधिकांश शोधकर्ता वर्तमान दीवान को कुतुबुद्दीन किदरी बेहक़ी (मृत्यु 548 हिजरी) की पुस्तक अनवार अल-अकूल फ़ी अश्आर वसी अल-रसूल के अनुसार मानते हैं।

बहरे रजज़ में अश्आर का होना जिन्हे गली, कूचो और बाजारो मे पढ़ा जाता था, ऐसी शायरी जिसमे जनजातियों की प्रशंसा, फ़साहत और बलाग़त के अनुसार अश्आर का कमजोर होना, कुछ कविताओं में शेखी बघारना, ईरानीयो, रोमीयो और यूनानियों से संबंधित कहावतों का उल्लेख, दूसरी हिजरी से मुसलमानों में उत्पन्न दार्शनिक विभाजनो (फलसफ़ी तकसीम) का अस्तित्व इत्यादि। यह सभी ऐसे तर्क है जिन से पता चलता है कि इस दीवान की अधिकांश कविताएँ इमाम अली से संबंधित नहीं हैं।

आक़ा बुज़ुर्ग तेहरानी के अनुसार, 1745 ई में लीडेन, हॉलैंड में मुद्रित, 1251 हिजरी में बुलाक, मिस्र में मुद्रित, 1276 हिजरी में मिस्र में मुद्रित, और 1284 हिजरी में तेहरान में मुद्रित दीवान के सबसे पुराने संस्करण है। इस दीवान का फ़ारसी, लैटिन, तुर्की और उर्दू भाषाओं में अनुवाद और व्याख्या की गई है और आज इसके कई संस्करण मौजूद हैं।

इमाम अली से मंसूब शायरी

शिया विद्वान इमाम अली (अ) के दीवान की अधिकांश शायरी को आप (अ) से संबंधित नहीं मानते हैं। उदाहरण के लिए, अल्लामा मजलिसी सभी अश्आर को इमाम अली (अ) से मंसूब करने के लिए संदेह करते हैं, उनमें से अधिकांश को इब्ने शहर आशोब से नक़ल करते है और दूसरो के अश्आर मानते है। और दीवान को नैशापूर के अदीब अली बिन अहमद (फ़ंजगिरदी) नामक व्यक्ति (मृत्यु 513 हिजरी) द्वारा संकलित मानते है।[१]

हसन हसनज़ादेह अमोली ने मिन्हाज अल-बराआ की निरंतरता में पुस्तक की कई कविताओं को दूसरों का मानते हुए उनके कवियों का भी उल्लेख किया हैं।[२] कुछ के अनुसार इनमें से केवल 10% कविताओं को इमाम अली (अ) की तरफ निसबत दी है और बाकी कविताएँ या तो अन्य दीवानों में हैं या दूसरे कवियों से संबंधित है।[३]

तर्क

इस तथ्य के कई तर्क बताए गए हैं कि इमाम अली (अ) के दीवान की सभी कविताएँ इमाम अली (अ) की नहीं हैं: काहिरा की मकतबा अल ईमान के शोध के अनुसार इमाम अली (अ) के दीवान की भूमीका में अली बिन अबी तालिब से मंसूब होने के संबंध मे दस आपत्तियां जताई गई है। उनमें से कुछ इस प्रकार हैं: बहरे रजज़ मे शायरी का होना जिन्हे गली कूचो और बाजार मे पढ़ा जाता था, ऐसी शायरी जिसमे जनजातियों की प्रशंसा, फ़साहत और बलाग़त के अनुसार अश्आर का कमजोर होना, कुछ कविताओं में शेखी बघारना, ऐसी बहुत सी शायरी है जिन्हे इमाम (अ) ने मुआविया और अम्र बिन आस के साथ आदान-प्रदान किया और शायरी मे उरूज़ी और वज़नी त्रुटियों का होना।[४]

इन आपत्तियों के अतिरिक्त कीवान समीई ने इमाम अली (अ) पर ऐसी शायरी को मंसूब करने को गलत समझा है जिस मे फ़ारसी शब्दों की उपस्थिति, ईरानियों, रोमनीयो और यूनानियों से संबंधित कहावतो का उल्लेख, दूसरी शताब्दी हिजरी मे उत्पन्न होने वाले मुसलमानों में दार्शनिक विभाजनों का अस्तित्व, और पहेलियों का अस्तित्व जो अरबों में आम नहीं थी।[५]

दूसरा कारण यह है कि अली बिन अबी तालिब की साहित्यिक रुचि और फ़साहत व बलाग़त के बावजूद उन्हें कवि कहना बहस का विषय रहा है। दूसरी और तीसरी चंद्र शताब्दी के लेखक जाहिज़ और छठी और सातवीं शताब्दी के इतिहासकार याक़ूत हमवी जैसे कुछ व्यक्ति इमाम अली (अ) को कवि नहीं मानते थे। जाहिज के अनुसार अली बिन अबी तालिब रज्ज़ के सिवा कोई शेर नहीं कहा है। याकूत ने भी दो शेरो को छोड़कर बाकी कविताओं को इमाम अली (अ) से मंसूब करना गलत माना है।[६]

मुहम्मद बिन जुरैर तिबरी, इब्ने कुतैबा, इब्ने मस्कूयह राज़ी, ज़मख्शरी, तबरसी और सय्यद रज़ी जैसे लोगो ने इमाम अली (अ) की कुछ शायरी को नक़्ल तो किया है, लेकिन उन्हें कवियों में शामिल नहीं किया।[७]

नवी और दसवी हिजरी शताब्दी के अरब कवि शाबी, इब्ने अब्द रब्बा और समकालीन मिस्र के लेखक एंव कवि क़लक़शंदी ने इमाम (अ) को कवि कहा और उन्हें अबू बक्र, उमर बिन खत्ताब और उस्मान से बडा कवि माना है।[८]

शायरी की संख्या और उनकी श्रेणियां

मुद्रित दीवानों मे शायरी की संख्या बहुत अलग है: 190, 355, 374, 455 और 506 कर बताई जाती है।[९] इमाम अली (अ) के दीवान के बारे में शोध लेख में दीवान की शायरी को चार श्रेणियों इंशा (रचना) , हिकायत (उपाख्यान), इंशाद (गीत) और मोज़ूअ (विषय) में रखा गया है:

  1. इंशाः इमाम अली (अ) की अपनी शायरी।
  2. हिकायत: अन्य कवियों की शायरी जिन्होंने इमाम अली के शब्दों को कविताओ का रूप दिया।
  3. इंशाद: दूसरे कवियों की शायरी जिन्हें इमाम अली ने अपने शब्दो में इस्तेमाल किया।
  4. मौज़ूअः इमाम अली (अ) के प्रेमियों द्वारा लिखी गई शायरी[१०]

अनवार अल-अकूल के अनुवाद की भूमिका मे अबुल क़ासिम इमामी ने दीवान की कविताओं को छह श्रेणियों में विभाजित किया है। उन्होंने उपरोक्त चार श्रेणियों में दो और श्रेणियां जोड़ी हैं: कविताएं जो इमाम से संबंधित घटनाओं और युद्धों में इमाम के साथियों की कहानियों का काव्यात्मक वर्णन हैं।[११]

कंटेंट

दीवान इमाम अली की शायरी में विभिन्न विषयों को उठाया गया है। इन शायरी के कुछ विषय इस प्रकार हैं: मनुष्य की गरिमा, एकेश्वरवाद (तौहीद), आख़िरत और पुनरुत्थान, मुनाजात (प्रार्थनाएं), नैतिक मुद्दे, प्रशंसा और विलाप (मरासी), आज्ञाएं, आत्म-परिचय और रजज़। सप्ताह के दिन, भाग्य, बुढ़ापा, जवानी, काम और प्रयास, धन, गरीबी और यात्रा जैसे विषय भी इन शायरीयो में देखे जाते हैं।[१२]

संकलन का इतिहास

शोधकर्ताओं के अनुसार, भले ही शायरी के लिए सही ढंग से इमाम अली (अ) को जिम्मेदार ठहराया भी जाए तबभी उनका संकलन निश्चित रूप से इमाम (अ) द्वारा नहीं किया गया था।[१३] आक़ा बुज़ुर्ग तेहरानी ने अल ज़रीया मे 17 संकलन का उल्लेख किया है जिनमे सबसे पुराने संस्करण का संबंध चौथी शताब्दी हिजरी से है उनमें से कुछ इस प्रकार हैं:

  • शोरो अली (नज्जाशी के अनुसार) अब्दुल अज़ीज़ जलूदी (मृत्यु 322 हिजरी) की रचना है।
  • सल्वत अल-शिया वा ताज अल-अश्आर, अली बिन अहमद फंजगिरदी नेशाबुरी (मृत्यु 513 हिजरी) की रचना है।
  • दीवान ए अमीरुल मोमेनीन इब्न शजरी (मृत्यु 548 हिजरी) की रचना।
  • अल हदीक़ा अल अनीक़ीयाह मुहम्मद बिन हुसैन कीदरी बेहकी (मृत्यु 548 हिजरी) द्वारा
  • अनवार अल उक़ूल मुहम्मद बिन हुसैन कीदरी बेहकी (मृत्यु 548 हिजरी) द्वारा
  • दीवान ए अमीरुल मोमेनीन अल अल रिवायात अल सहीहा सय्यद मोहसिन अमीन द्वारा 1360 हिजरी मे संकलित।[१४]

आक़ा बुज़ुर्ग तेहरानी के अनुसार, अनवार अल उक़ूल फी अश्आर वसी अल रसूल कीदरी बेहकी द्वारा लिखित वर्तमान लोकप्रिय दीवान है।[१५]

सय्यद मोहसिन अमीन के अनुसार दीवान संकलित करने वाला कौन है यह स्पष्ट नहीं है; क्योंकि ऐसे ज्ञान रखने वाले को हम जानते है जैसे जलूदी, इब्ने शजरी और कीदरी इत्यादि और दीवान में कुछ अवैध सामग्री है, जिसके लिए इमाम (अ) को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है, यह संभावना नहीं है कि ऐसे विद्वान लोगों ने इन कविताओं को संकलित किया होगा। सय्यद मोहसिन अमीन की आलोचना में कहा गया है कि यह स्पष्ट नहीं है कि वर्तमान दीवान वही है जिसके संकलन का श्रेय इन लोगों को दिया जाता है। इसी तरह, यह मानते हुए कि वर्तमान दीवान कीदरी का काम है, उन्होंने इमाम के लिए जिम्मेदार हर चीज को संरक्षित करने के इरादे से कविताओं का संग्रह करना शुरू किया।[१६]

छपाई

इमाम अली के दीवान को कई बार मुद्रित किया गया है।[१७] आक़ा बुज़ुर्ग तेहरानी के अनुसार, इसके कुछ पुराने संस्करण हैं: 1251 हिजरी में मिस्र में बुलाक का संस्करण, मिस्र में 1276 हिजरी में दूसरा संस्करण, 1284 मे तेहरान का संस्करण, और 1311 हिजरी में मिस्र के एल्मिया प्रकाशन का संस्करण। आक़ा बुज़ुर्ग ने लीडेन (हॉलैंड में द हेग के पास) में लैटिन में एक विवरण के साथ एक प्रिंट के बारे में सूचना दी, जिसे 1745 में प्रकाशित किया गया था।[१८] दीवान के कुछ अन्य प्रिंट हैं: दारुल किताब अल-अरबी बेरूत प्रिंट युसुफ फरहात के विवरण के साथ 1411 हिजरी, मकतबा अल ईमान मिस् का अल-बयान अल-अलामी सेंटर द्वारा शोध के साथ दार अलमोहज्जा अल बैयज़ा द्वारा सलमान अल-जबूरी द्वारा पूर्ण शोध के साथ प्रिंट हुआ।[१९]

अनुवाद और व्याख्या

इमाम अली (अ) के दीवान का फारसी, लैटिन, तुर्की और उर्दू भाषाओं में अनुवाद और शरह की गई है। दीवान के कुछ अनुवाद इस प्रकार हैं:

  • हजरत अली का दीवान, मुहम्मद जवाद नजफी (1384 हिजरी) द्वारा अनुवादित
  • इमाम अली का दीवान, अबू अल-कासिम इमामी (1373 शम्सी) द्वारा अनुवादित
  • दीवान ए अमीरुल मोमिनिन इमाम अली, मुस्तफा ज़मानी (1362 शम्सी) द्वारा अनुवादित
  • इमाम अली का दीवान, कूई पर्स (1745 ई) मे लैटिन अनुवाद।[२०]

इस दीवान के शायरी अनुवाद भी उपलब्ध हैं;

  • मिर्जा इब्राहिम अमिनी हेरावी (10वीं चंद्र शताब्दी में) द्वारा फारसी शायरी मे अनुवादित
  • सादुद्दीन मुस्तक़ीम ज़ादे द्वारा तुर्की शायरी मे अनुवादित है जोकि 1312 हिजरी मे दमिश्क मे छपा था।[२१]

उर्दू शायरी मे भी इसका अनुवाद हुआ है, जो 1976 में कराची में प्रकाशित हुआ था, और इसके कवि एन ई शाहिद थे।[२२] मीर हुसैन बिन मोइनुद्दीन मयबदी (मृत्यु 909 हिजरी) द्वारा इमाम अली (अ) के दीवान की शरह की गई है जिसके संशोधन का काम हसन रहमानी और सय्यद इब्राहीम अशक द्वारा 1379 शम्सी मे पूरा होकर मरकज़े नशर मीरास मकतूब द्वारा प्रकाशित किया गया था।[२३]

फ़ुटनोट

  1. मजलिसी, बिहार उल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 1, पेज 42
  2. हसन जादे आमोली, मिनहाज उल बराआ, 1400, भाग 15, पेज 306-313
  3. ख़ुशनवीसान वा सब्जयानपूर, पुज़ूहिशी दर असनादे दीवान ए इमाम अली (अ), 1393 शम्सी, पेज मुक्द्दमा
  4. महरेज़ी, दीवान ए इमाम अली (अ), पेज 221-226
  5. महरेज़ी, दीवान ए इमाम अली (अ), पेज 221-226
  6. ज़ीलावी, किताब शनासी तौसीफ़ी मंज़ूमा फ़ी सिर्र, पेज 41
  7. ज़ीलावी, किताब शनासी तौसीफ़ी मंज़ूमा फ़ी सिर्र, पेज 41
  8. ज़ीलावी, किताब शनासी तौसीफ़ी मंज़ूमा फ़ी सिर्र, पेज 41
  9. महरेज़ी, दीवान ए इमाम अली (अ), पेज 226
  10. हुसैनी जलाली, पुज़ूहिशी दर बार ए दीवान ए इमाम अली (अ), पेज 752-754
  11. महरेज़ी, दीवान ए इमाम अली (अ), पेज 225
  12. महरेज़ी, दीवान ए इमाम अली (अ), पेज 236-240
  13. महरेज़ी, दीवान ए इमाम अली (अ), पेज 217
  14. आक़ा बुज़ुर्ग तेहरानी, अल ज़रीया, बैरूत, भाग 9, पेज 101-102
  15. आक़ा बुज़ुर्ग तेहरानी, अल ज़रीया, बैरूत, भाग 2, पेज 431-434
  16. हुसैनी जलाली, पुज़ूहिशी दर बार ए दीवान ए इमाम अली (अ), पेज 757
  17. आक़ा बुज़ुर्ग तेहरानी, अल ज़रीया, बैरूत, भाग 9, पेज 102
  18. आक़ा बुज़ुर्ग तेहरानी, अल ज़रीया, बैरूत, भाग 9, पेज 102
  19. महरेज़ी, दीवान ए इमाम अली (अ), पेज 227-228
  20. महरेज़ी, दीवान ए इमाम अली (अ), पेज 228-229
  21. हुसैनी जलाली, पुज़ूहिशी दर बार ए दीवान ए इमाम अली (अ), पेज 761
  22. महरेज़ी, दीवान ए इमाम अली (अ), पेज 229
  23. महरेज़ी, दीवान ए इमाम अली (अ), पेज 229

स्रोत

  • आक़ा बुज़ुर्ग तेहरानी, मुहम्मद मोहसिन, अल ज़रीया एला तसानीफ़ अल शिया, बैरूत, दार उल अज़्वा, दूसार संस्करण
  • हसन ज़ादेह आमोली, हसन, मिनहाज उल बराआ फ़ी शरह नहजुल बलाग़ा, तेहरान, मकतब अल इस्लामीया, 1400 हिजरी
  • हुसैनी जलाली, मुहम्मद हुसैन, पुज़ूहिशी दरबार ए दीवान ए इमाम अली (अ), अनुवाद जूया जहानबख्श, दर आईने पुजूहिश, क्रमांक 66, 1379 शम्सी
  • ख़ुशनवीसान, लैला वा वहीद सब्ज़ीयानपूर, पुज़ूहिश दर असनाद दीवान ए मंसूब बे इमाम अली (अ), तेहरान, यारे दानिश, 1393 शम्सी
  • ज़ीलावी, निगार, किताब शनासी तौसीफ़ी किताब, मंजूमा ए फ़ी सिर्र इस्मुल्लाह अल आज़म, अज़ अली बिन अबी तालिब (अ), दर किताब माह दीन, क्रमांक 37, 1379 शम्सी
  • मजलिसी, मुहम्मद बाक़िर, बिहार उल अनवार अल जामे लेदुरर अखबार अल आइम्मातिल अत्हार, बैरूत, दार एहया अल तुरास अल अरबी, दूसरा संस्करण, 1403 हिजरी
  • महरेज़ी, महदी, दीवान ए इमाम अली (अ), दर दानिशनामे इमाम अली (अ), भाग 12, तेहरान, पुजूहिशगाह फ़रहंग व अंदीशे इस्लामी, 1380 शम्सी