रमज़ान
रमज़ान या रमज़ान अल-मुबारक (अरबीः رمضان) इस्लामी कैलेंडर का नौवां महीना है जिसमें मुसलमानों पर रोज़ा रखना अनिवार्य (वाजिब) है। हदीसों में रमज़ान के महीने की कई गुणो (फ़जाइल) का उल्लेख किया गया है और इस महीने को ख़ुदा की मेहमान नवाज़ी का महीना, रहमत, माफ़ी और बरकत का महीना और क़ुरआन की बहार कहा गया है। हदीसों के मुताबिक इस महीने में आकाश और स्वर्ग के द्वार खोल दिए जाते हैं और नरक के द्वार बंद कर दिए जाते हैं। शबे-क़द्र (क़द्र की रात) जिसमें क़ुरआन अवतरित (नाज़िल) हुआ, इसी महीने में है। कुछ अन्य आसमानी किताबे जैसे तौरैत और बाइबिल (इंजील) भी इसी महीने में नाज़िल हुई थीं। रमज़ान एकमात्र ऐसा महीना है जिसका नाम क़ुरआन में वर्णित है। इस महीने में मुसलमानों के लिए एक विशेष स्थान और सम्मान है, और मुसलमान इसमें इबादत पर विशेष ध्यान देते हैं। प्रार्थना स्रोतों में, इस महीने के लिए विभिन्न आमाल और नमाज़ो का उल्लेख किया गया है। इस महीने के सबसे महत्वपूर्ण कार्यों में से एक क़ुरआन का पाठ (तिलावत) करना, शबे क़द्र मे जागना और इबादत करना, प्रार्थना (दुआ) करना, नमाज़ पढ़ना, क्षमा मांगना (इस्तिग़फ़ार करना), इफ़तार कराना और जरूरतमंदों की मदद करना है।
इस महीने की महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक शबे क़द्र और रमज़ान की 21 तारीख को शियों के पहले इमाम हज़रत अली (अ) की शहादत है। शियो के दुसरे इमाम हसन मुज्तबा (अ) का जन्म भी इसी महीने की 15 तारीख को हुआ था।
रमज़ान में इबादत और रोज़ा रखना मुस्लिम पहचान का हिस्सा है। इस्लामिक समाजों में, विभिन्न रीति-रिवाज और परंपराएँ जैसे कि पार्टियाँ और सभाएँ, मस्जिदों और धार्मिक स्थलों की सफाई, सुलह समारोह, नाना प्रकार की मिठाइयाँ और खाद्य पदार्थ रमज़ान के महीने मे बनाए जाते हैं।
स्थान
रमज़ान इस्लामी कैलेंडर का नौवां महीना है[१] जिसमें मुसलमानों पर रोज़ा रखना अनिवार्य (वाजिब) है।[२]
पवित्र क़ुरआन[३] और कुछ स्वर्गीय पुस्तकें (आसमानी किताबे) जैसे सोहफ़े इब्राहीम, बाइबिल (इंजील), तौरैत और ज़बूर इस महीने में नबियों पर नाज़िल हुई थी।[४]
रमज़ान शब्द का उल्लेख क़ुरआन में एक बार किया गया है[५] और यह एकमात्र महीना है जिसका नाम क़ुरआन में वर्णित है:[६]
इसके अलावा, शबे क़द्र, जिसमें क़ुरआन नाज़िल हुआ[७] हदीसों[८] और व्याख्याओं (तफ़सीरो)[९] के अनुसार रमज़ान के महीने में है।[१०]
शब्दकोष मे "रमज़ान" का अर्थ सूर्य की गर्मी की तीव्रता है।[११] रमज़ान को रमज़ान इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह पापों को जलाता है।[१२] साथ ही, रिवाई स्रोतों में रमज़ान को अल्लाह के नामों में से एक माना जाता है।[१३]
विशेषताएं
पैग़म्बर (स) ने अपने ख़ुत्ब ए शाबानिया में रमज़ान के महीने के गुणों (फ़ज़ाइलो) की गणना की, जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:
- इस महीने में लोगों को अल्लाह की मेहमानी में आमंत्रित किया जाता है।
- शबे क़द्र जोकि एक हज़ार महीनों से श्रेष्ठ है, इसी महीने में स्थित है।
- इसकी महीने की प्रत्येक रात में जागना और नमाज़ पढ़ना अन्य महीनों में सत्तर रातों की नमाज़ के बराबर है।
- यह महीना सब्र का महीना है और सब्र का फ़ल स्वर्ग (बहिश्त) है।
- यह सहानुभूति का महीना है।
- यह ऐसा महीना है जिसमें मोमेनीन की जीविका बढ़ा दी जाती हैं।
पैग़म्बर (स) के अनुसार, यह महीना वह महीना है, जिसकी कीमत पता होने पर प्रत्येक व्यक्ति चाहेगा कि पूरा साल रमज़ान हो।[१४] पैग़म्बर (स) की हदीस के अनुसार रमज़ान नरक के द्वार बंद होने और स्वर्ग के द्वारा खुलने तथा शैतानों को जंजीरो मे जक़ने का महीना है।[१५]
इसके अलावा मासूमीन (अ) की हदीसो मे रमज़ान का महीना अल्लाह का महीना है,[१७] दया और ईश्वरीय क्षमा का महीना,[१८] बरकत का महीना और अच्छे कर्मों का दोगुना और पापों की सफाई[१९] और ऐसा महीना है कि अगर इस महीने में किसी बंदे की बख्शिश नही हुई, तो दूसरे महीनों में उसकी क्षमा की आशा नही है[२०] वर्णन किया गया है।
आमाल
- मुख़्य लेखः रमज़ान के आमाल
रमज़ान के विशेष अहकाम और आमाल है जिनमे से कुछ सामान्य है और कुछ विशेष दिनो के लिए हैः
रोज़े की अनिवार्यता
- मुख़्य लेखः रोज़ा
रमज़ान के महीने में मुसलमानों पर रोज़ा अनिवार्य (वाजिब) है[२१] उपवास (रोज़ा) कुछ चीजों को करने जैसे कि सुबह की आज़ान से मग़रिब की आज़ान तक खाने और पीने से बचना है।[२२] रमज़ान के महीने में रोज़ा रखने का आदेश और इससे संबंधित कुछ नियम क़ुरआन मे[२३] और मुस्लिम न्यायशास्त्र की किताबो मे वर्णित हैं। न्यायविदों के फतवों के अनुसार, अगर किसी को धार्मिक बहाने (शरई उज़्र) से रोज़ा से छूट दी गई है, तो उसे सार्वजनिक रूप से रोज़े का सम्मान करते हुए हर स्थान पर खाना और पीना नही चाहिए।[२४]
दुआ पढ़ना
- मुख़्य लेखः रमज़ान के महीने की दुआएं
दुआ ए सहर पढ़ना उनमे दुआ ए बहा और अबू हम्ज़ा सुमाली पढ़ना,[२५] रातो को दुआ ए इफ़्तेताह पढ़ना,[२६] “یا عَلِی یا عَظیمُ या अलीयो या अज़ीमो” वाली दुआ, “اَللّهُمَّ اَدْخِلْ عَلی اَهْلِ الْقُبُورِ السُّرُورَ अल्लाहुम्मा अदख़िल अला अहलिल क़ुबूरिस सुरूर” और “اَللّهُمَّ ارْزُقْنی حَجَّ بَیتِک الْحَرامِ अल्लाहुम्मा अरज़ुक़नी हज्जा बैतेकल हराम” वाली दुआ को वाज़िब नमाज़ो के बाद पढ़ना[२७] इस महीने के सामान्य आमाल है।
क़ुरआन की तिलावत
- मुख़्य लेखः तिलावत
कुछ रिवायतों में रमज़ान के महीने को क़ुरआन की बहार के रूप में पेश किया गया है।[२८] साथ ही इस महीने में क़ुरआन की एक आयत पढ़ने का सवाब अन्य महीनों में क़ुरान को खत्म करने के सवाब के बराबर है।[२९] कुछ इस्लामिक मुल्कों में मुसलमान इस की शुरुआत से ही हर रोज़ क़ुरआन का एक हिस्सा (पारा) पढ़ते है और महीने के आख़िर तक क़ुरआन का पूर्ण पाठ करते है। ये ख़त्म ज्यादातर मस्जिदों और अन्य धार्मिक स्थलों में सामूहिक रूप मे किया जाता है। ईरान में जुज़ ख़्वानी का प्रसारण रेडियो और टेलीविजन पर किया जाता है।[३०]
शबे क़द्र मे जागना
- मुख़्य लेखः शबे क़द्र
रिवायतो के अनुसार, शबे क़द्र रमज़ान की 19वीं, 21वीं या 23वीं रातों में से एक है।[३१] कुछ रिवायतो में 23वीं रमज़ान की रात को शबे क़द्र के रूप में नामित किया गया है।[३२] शेख़ सदूक़ ने कहा कि हमारे विद्वान सहमत है कि शबे क़द्र रमजान की 23वीं रात है।[३३] अल्लामा तबातबाई के अनुसार, सुन्नियों के बीच रमजान की 27वीं रात शबे क़द्र के नाम से प्रसिद्ध है।[३४]
हर साल रमज़ान की 19वीं, 21वीं और 23वीं रात को शिया अपने धार्मिक स्थलों या घरों में जागते और इबादत करते हुए रात बिताते हैं।[३५] शबे क़द्र आमाल अंजाम देना, जैसे जोशन कबीर पढ़ना और क़ुरआन सर पर रखना इन रातों में किए जाने वाले सबसे महत्वपूर्ण कार्य (आमाल) है।[३६]
मुस्तहब नमाज़े
- मुख़्य लेखः रमज़ान के महीने मे पढ़ी जाने वाली नमाज़े
रमज़ान के आमाल में से मुस्तहब नमाज़े है; इनमें से कुछ नमाज़े रमज़ान की सभी रातों के लिए आम हैं, और कुछ विशेत रात या दिन के लिए समर्पित हैं।[३७]
रमज़ान की रातों में 1000 रकअत नमाज़ अदा करने की सिफारिश की गई है[३८] अधिकांश लोगों ने इन नमाज़ों को इस प्रकार पढ़ना बताया है: रमज़ान की पहली रात से लेकर 20वीं रात तक हर रात 20 रकअत पढ़ी जाती हैं, और 20 वीं रात से महीने के अंत तक हर रात 30 रकअत अदा की जाती है। जिन रातों में शबे क़द्र होने की संभावना होती है, इनके अलावा 100-100 रकअत पढ़ी जाती हैं।[३९] सुन्नी मुसलमान हर रात 20 रकअत मुस्तहब नमाज़ पढ़ते है जिन्हे तरावीह कहा जाता है।[४०] दूसरे ख़लीफ़ा का अनुसरण करते हुए सुन्नी इन नमाज़ो को जमाअत के साथ पढ़ते हैं, जिसे शिया बिदअत मानते हैं।[४१]
अंतिम दशक मे एतेकाफ़
- मुख़्य लेखः एतेकाफ़
रमज़ान के अंतिम दस दिनो मे एतेकाफ मुस्तहब है और बहुत फ़ज़ीलत रखता है।[४२] आखिरी दशक, एतेकाफ़ का सबसे अच्छा समय है और यह एतेकाफ़ दो हज और दो उमरा के बराबर माना जाता है।[४३] पैगंबर (स) ने एतेकाफ़ की शुरूआत करने के लिए रमज़ान के पहले दशक, फिर दूसरे दशक और फिर इस महीने के तीसरे दशक को चुना, और उसके बाद अपने जीवन के अंत तक आप (स) रमज़ान के आखिरी दशक में एतेकाफ़ करते थे।[४४]
शिष्टाचार और रीति-रिवाज
इस्लामिक समाज में रमज़ान के रीति-रिवाज विविध और व्यापक हैं।
इफ़्तार
- मुख़्य लेखः इफ़्तारी
रमज़ान के महीने में विभिन्न देशों के मुसलमान धार्मिक स्थलों में इफ्तार की मेज (दस्तरख़वान) बिछाते हैं।[४५] ईरान के लोग एक दूसरे को अपने घरों में इफ़्तार के लिए आमंत्रित करते हैं और धार्मिक स्थलों में इफ़्तार के समय प्रसाद बांटते हैं।[४६] पैगंबर (स) की हदीस के अनुसार रमज़ान के महीने में जो कोई मोमिन को रोज़ा इफ़्तार कराए चाहे वह एक घूंट पानी या खजूर से ही क्यो न हो इसका एक गुलाम को आज़ाद करने के बराबर है।[४७] कुछ क्षेत्रो मे इसे मग़रिब की अज़ान के तुरंत बाद परोसा जाता है और कुछ क्षेत्रो मे नमाज़ और इफ़्तार के बाद व्याख्यान और मुनाजात कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
सहर ख़्वानी
कुछ शहरों में सहर के लिए लोगों को विभिन्न तरीकों से जगाया जाता है, जैसे कि मुअज्जिनों और ढंढोरचीयो का गली कूचो मे आज़ान देते हुए घूमना, मस्जिदो और दूसरे स्थानो पर मौजूद मीनारो पर लालटेन जलाना, घरों के द्वार खटखटाना और तोप से गोले दागना इत्यादि सम्मिलित है।[४८] इसके अलावा , सुबह की आज़ान से पहले दुआ ए सहर और मग़रिब की आज़ान से पहले मुनाजात रब्बना ईरानी रेडियो और टेलीविज़न और मस्जिद के लाउडस्पीकर पर प्रसारित की जाती है।
प्रचारको की नियुक्ति
रमज़ान के महीने के दौरान, शिया मौलवियों को धर्म का प्रचार करने के लिए शहरों और गांवों में तैनात किया जाता है, और वे शरिया नियमों को व्यक्त करते हैं, भाषण देते हैं और नमाज़े जमाअत पढ़ाते हैं।[४९] इसके अलावा, तबलीग़ी संगठन ईरान और अन्य देशों के विभिन्न क्षेत्रों में प्रचारक भेजते हैं।[५०]
दैनिक प्रार्थनाओं का सामूहिक वाचन
दैनिक नमाज़े जमाअत के बाद शिया एक समूह के रूप में दुआ ए "या अलीयो या अज़ीमो" पढ़ते हैं। इसके अलावा, आमतौर पर नमाज़ पढ़ने वालो में से एक "अल्लाहुम्मा अदख़िल अहलिल क़ुबूरिस सुरूर" और रमज़ान के महीने के हर दिन की दुआओं को ज़ोर से पढ़ता है, और अन्य लोग प्रत्येक दुआ के बाद आमीन कहते हैं।
गर्गियान रस्म
गर्गियान या क़रकियान एक पारंपरिक रस्म है जो रमज़ान की 15वीं रात इमाम हसन (अ) के जन्म के समय आयोजित की जाती है। इस रस्म में रोज़ा इफ़्तार के बाद बच्चे देर रात तक घरों के दरवाज़ों पर जाते हैं और क़सीदे पढ़कर घर के मालिकों से चाकलेट और मिठाई लेते हैं।[५१] बताया जाता है कि यह रस्म पैगंबर (स) के समय से चली आ रही है जिसमे जनता इमाम अली (अ) और हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स) को इमाम हसन (अ) के जन्म की बधाई देने के लिए जाते थे।[५२] गार्गियन रस्म कुछ इस्लामिक देशो ईरान के दक्षिण, मिस्र, इराक, बहरैन, अमीरात आदि देशों में इसका आयोजन होता है।[५३]
क़ुद्स दिवस रैली
- मुख़्य लेखः विश्व कुद्स दिवस
1358 शम्सी में इमाम खुमैनी ने फिलिस्तीनी लोगों के समर्थन में रमज़ान के महीने के आखिरी शुक्रवार को क़ुद्स दिवस के रूप में नामित किया।[५४] मुसलमान हर साल इस दिन विभिन्न देशों में फ़िलिस्तीनी लोगों और अल-अक़्सा मस्जिद की आज़ादी के समर्थन में मार्च करते हैं।[५५]
रमज़ान की शुरुआत और अंत का निर्धारण
- मुख़्य लेखः इस्तेहलाल और चांद देखना
रमज़ान के आरंभ और अंत की पुष्टि निम्नलिखित में से किसी एक तरीके से की जाती है:
- चांद का दिखाई देना: इंसान स्वयं महीने का पहला व अंतिम चांद देखे,
- कुछ लोगों के कहने से यक़ीन होना,
- दो आदिल व्यक्तियो की गवाही जिनके बयान आपस में टकराते नहीं हो,
- पिछले महीने के चांद के पहले दिन से तीस दिन बीत चुके हो,
- हाकिम ए शरा का हुक्म।[५६]
कुछ हदीसों ने रमज़ान के महीने को 30 दिनों का माना है[५७] और शिया विद्वानों के एक समूह ने भी रमज़ान को तीस दिन का ही माना है;[५८] लेकिन दूसरी ओर, कुछ रिवायतो के अनुसार, रमज़ान का महीना अन्य महीनों की तरह था और यह 29 दिन का भी हो सकता है।[५९] प्रसिद्ध न्यायविद इस दृष्टिकोण से सहमत हैं।[६०]
रमज़ान का महीना शव्वाल के महीने की शुरुआत और ईद-उल-फ़ित्र के ऐलान के साथ खत्म हो जता है। ईद-उल-फ़ित्र का एक अमल ज़काते फ़ित्रा अदा करना और ईद की नमाज़ अदा करना है।[६१]
घटनाएँ और अवसर
- मुख़्य लेखः रमज़ान की घटनाएँ
- 7 रमज़ान 201 हिजरी मे इमाम रज़ा (अ) की विलायते अहदी की घोषणा[६२]
- पैगंबर की बेअसत के दसवे साल के 10 रमज़ान को हज़रत खदीजा की वफ़ात[६३]
- पैगंबर (स) के साथियों (असहाब) के बीच भाईचारे का अनुबंध (अक़्दे उख़ूवत) और इसी प्रकार पैगंबर (स) और इमाम अली (अ) के बीच अक़्दे उख़ूवत[६४]
- 15 रमज़ान 3 हिजरी को इमाम हसन मुज्तबा (अ) का जन्म[६५]
- 17 रमज़ान 2 हिजरी मे बद्र की लड़ाई[६६]
- 19वीं, 21वीं या 23वीं रमज़ान 1 हिजरी को शबे क़द्र और क़ुरआन का नुज़ूल
- 20 रमज़ान 8 हिजरी फ़त्हे मक्का[६७]
- 21 रमज़ान 40 हिजरी को इमाम अली (अ) की शहादत[६८]
मोनोग्राफ़ी
रमजान के बारे में कई रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं:
- शहरुल्लाह फ़िल किताबे वल सुन्ना मुहम्मद मुहम्मदी रैयशहरी की रचना है। इस पुस्तक मे क़ुरआन की शिक्षाओं और अहले-बैत (अ) की हदीसों के आधार पर रमज़ान की विशेषताओं, गुणों और रीति-रिवाजों और रोज़े के संबंध में एक व्यापक रिपोर्ट है। यह किताब माहे ख़ुदा (कुरान और हदीस के परिप्रेक्ष्य से रमजान के पवित्र महीने का एक व्यापक अध्ययन)" नाम से फारसी भाषा में जवाद मोहद्दीसी द्वारा अनुवाद किया गया है। पुस्तक का एक अंश "मुराक़ेबाते माहे रमज़ान" शीर्षक के तहत भी प्रकाशित किया गया है।[६९]
- दर महज़रे माहे मुबारक रमज़ान: रमजान के पवित्र महीने के गुणों, कार्यों, धार्मिक नियमों और अवसरों पर अबुलफज़ल शेखी द्वारा लिखित एक शोध है जिसे रौज़ातुल अब्बास प्रकाशन द्वारा प्रकाशित किया गया है।
- अहमयते माहे मुबारक रमज़ान अज़ दीदगाहे क़ुरआन व रिवायातः अकबर अकबरजादेह मुर्शिदी द्वारा लिखित और कौसर हिदायत प्रकाशन द्वारा प्रकाशित है।
- रमज़ान दर फ़रहंगे मरदुमः सय्यद अहमद वकिलियान द्वारा लिखित यह पुस्तक रमज़ान के महीने के बारे में ईरानी लोगों के रीति-रिवाजों और विश्वासों का एक संग्रह है, जिसे सरोश पब्लिशिंग हाउस द्वारा प्रकाशित है।[७०]
फोटो गेलरी
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इंडोनेशिया मे क़ुरआनी जलसा
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इमाम रज़ा (अ) के हरम मे इफ़्तार का दृश्य
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तुर्की की राजधानी इस्तांबूल मे इफ़्तार का दृश्य
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नोट
- ↑ रिवायतो के अनुसार मनुष्य की नियति जैसे दुर्घटना और विपत्ति और जीविका आदि का निर्धारण होता है, वास्तव में उसके सभी भरण-पोषण और भौतिक और आध्यात्मिक लाभ लिखे होते हैं।
फ़ुटनोट
- ↑ क़रशी, क़ामूस ए क़ुरआन, 1412 हिजरी, भाग 3, पेज 123
- ↑ बस्तानी, फ़रहंगे अब्जदी, 1375 शम्सी, पेज 443
- ↑ सूर ए बक़रा, आयत न 185
- ↑ कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, भाग 2, पेज 629
- ↑ सूर ए बक़ार, आयत न 185
- ↑ क़राती, तफ़सीरे नूर, 1388 शम्सी, भाग 1, पेज 285
- ↑ सूर ए क़द्र, आयत न 1
- ↑ देखेः कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, भाग 4, पेज 66, 157-158
- ↑ तबरसी, मजमा अल-बयान, 1372 शम्सी, भाग 10, पेज 786
- ↑ तबातबाई, अल-मीज़ान, 1390 हिजरी, भाग 20, पेज 334
- ↑ राग़िब, मुफ़रेदात अलफ़ाज़ अल-क़ुरआन, 1412 हिजरी, पेज 366
- ↑ मजलिसी, बिहार अल-अनवार, 1403 हिजरी, भाग 55, पेज 341
- ↑ माज़ंदरानी, शरह अल-काफ़ी, 1382 हिजरी, भाग 6, पेज 110
- ↑ मजलिसी, बिहार अल-अनवार, 1403 हिजरी, भाग 93, पेज 346
- ↑ मजलिसी, बिहार अल-अनवार, 1403 हिजरी, भाग 93, पेज 348
- ↑ मजलिसी, बिहार अल-अनवार, 1403 हिजरी, भाग 93, पेज 348
- ↑ शेख़ सदूक़, मन ला याहज़ेरोह अल-फ़क़ीह, 1413 हिजरी, भाग 2, पेज 160
- ↑ मजलिसी, बिहार अल-अनवार, 1403 हिजरी, भाग 93, पेज 342
- ↑ मजलिसी, बिहार अल-अनवार, 1403 हिजरी, भाग 93, पेज 340
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- ↑ अल्लामा हिल्ली, तज़्केरातुल फ़ुक़्हा, 1414 हिजरी, भाग 6, पेज 5
- ↑ सूर ए बक़ार, आयात 183-185 और 187
- ↑ देखेः मूसवी गुलपाएगानी, मजमा अल-मसाइल, 1409 हिजरी, भाग 3, पेज 251
- ↑ सय्यद इब्ने ताऊस, अल-इक़बाल अल-आमाल बिल आमाल अल-हसना, 1376 शम्सी, भाग 1, पेज 156-185
- ↑ सय्यद इब्ने ताऊस, अल-इक़बाल अल-आमाल बिल आमाल अल-हसना, 1376 शम्सी, भाग 1, पेज 138
- ↑ सय्यद इब्ने ताऊस, अल-इक़बाल अल-आमाल बिल आमाल अल-हसना, 1376 शम्सी, भाग 1, पेज 79-80
- ↑ कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, भाग 2, पेज 630
- ↑ मजलिसी, बिहार अल-अनवार, 1403 हिजरी, भाग 93, पेज 341
- ↑ ज़मान पख़्श तरतील ज़ुज ख़्वानी क़ुरआन करीम दर तिलवीजीयून + जदवल, ईसना
- ↑ देखेः कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, भाग 4, पेज 156-160
- ↑ देखेः कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, भाग 4, पेज 158, हदीस 8 सदूक़, अल-ख़िसाल, 1362 शम्सी, भाग 2, पेज 508, हदीस 1
- ↑ सदूक़, अल-ख़िसाल, 1362 शम्सी, भाग 2, पेज 519
- ↑ तबातबाई, अल-मीज़ान, 1390 हिजरी, भाग 20, पेज 334
- ↑ मजीदी ख़ामनेह, शबहाए क़द्र दर ईरान, पेज 21
- ↑ मजीदी ख़ामनेह, शबहाए क़द्र दर ईरान, पेज 22
- ↑ देखेः कुमी, मफ़ातीह अल-जिनान, नशर उस्वा, पेज 183, 238-239
- ↑ कुमी, मफ़ातीह अल-जिनान, नशर उस्वा, पेज 183-184
- ↑ नजफ़ी, जवाहिर अल-कलाम, दार एहया अल-तुरास अल-अरबी, भाग 12, पेज 187-190
- ↑ चरा शीयान नमाज़े तरावीह नमी ख़ानंद, साइत हौज़ा नमायंदगी वली फ़क़ीह दर उमूर हज वा जियारत
- ↑ सादक़ी फदकी, तरावीह, दानिश नामेह हज व हरमैन शरीफ़ैन
- ↑ क़ुमी, मफ़ातीह अल-जिनान, नशर उस्वा, पेज 234
- ↑ क़ुमी, मफ़ातीह अल-जिनान, नशर उस्वा, पेज 234
- ↑ कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, भाग 4, पेज 175, हदीस 3
- ↑ रमज़ान दर किशवरहाए मुखतलिफ़ ए जहान, साइट केहान
- ↑ इफ़्तारी, मरकज़ दाएरातुल मआरिफ़ बुज़र्ग इस्लामी
- ↑ सदूक़, ओयून ए अखबार अल-रज़ा (अ), 1378 हिजरी, भाग 1, पेज 295-297, हदीस 53
- ↑ देखेः रहीमी, रमज़ान
- ↑ तब्लीग़, क़ल्बे दीन, खबरगुज़ारी फ़ारस
- ↑ आग़ाज़ ए सब्तनाम मुबल्लेग़ान दर खारिज अज़ किशवर, खबरगुज़ारी रस्मी हौज़ा
- ↑ आईने गुर्गीआन दर बैने अरबहाए ख़ूज़िस्तान, वेबगाह अस्रे इमाम
- ↑ आईने गुर्गीआन दर बैने अरबहाए ख़ूज़िस्तान, वेबगाह अस्रे इमाम
- ↑ आईने गुर्गीआन दर बैने अरबहाए ख़ूज़िस्तान, वेबगाह अस्रे इमाम
- ↑ इमाम ख़मैनी, सहीफा ए इमाम, 1389 शम्सी, भाग 9, पेज 267
- ↑ जहान वा रोज़े जहानी ए क़ुद्स, खबरगुज़ारी तसनीम
- ↑ इमाम खुमैनी, तौज़ीहुल मसाइल (महशी), 1424 हिजरी, भाग 1, पेज 959
- ↑ हुर्रे आमोली, वसाइल अल-शिया, 1409 हिजरी, भाग 10, पेज 268-274
- ↑ सय्यद इब्ने ताऊस, अल-इक़बाल, 1376 शम्सी, भाग 1, पेज 33-53
- ↑ हुर्रे आमोली, वसाइल अल-शिया, 1409 हिजरी, भाग 10, पेज 261-268
- ↑ देखेः बहरानी, अल-हदाएक़ अल-नाज़ेरा, 1405 हिजरी, भाग 13, पेज 270-271 आमोली, मिस्बाह अल-हुदा, 1380 हिजरी, भाग 8, पेज 384
- ↑ नजफ़ी, जवाहिर अल-कलाम, 1404 हिजरी, भाग 11, पेज 332-333
- ↑ याक़ूबी, तारीखे याक़ूबी, 1378 शम्सी, भाग 2, पेज 465
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स्रोत
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