हदीस

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हदीस (अरबीः الحديث) वह कथन है जो इस्लाम के पैग़म्बर (स) और दूसरे मासमू इमाम (अ) के कथन या व्यवहार के बारे मे वर्णन करता है। क़ुरआन के बाद, हदीस धार्मिक शिक्षाओं को समझने का दूसरा स्रोत है और इसने मुसलमानों को धर्म के बारे मे समझने और न्यायशास्त्र, उसूल, कलाम और तफ़सीर जैसे इस्लामी विज्ञानों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

शुरुआत मे हदीसों को रिकॉर्ड करने और प्रसारित करने की प्रक्रिया मौखिक थी। फिर यह लिखित मे आई। हदीस लेखन को मासूमों की हदीसों को संरक्षित करने और प्रसारित करने में सबसे महत्वपूर्ण कारक माना जाता है। पहले दो ख़लीफ़ाओं द्वारा हदीस पर प्रतिबंध लगाने की नीति के कारण एक अवधि के दौरान हदीस लिखना प्रतिबंधित था; लेकिन सौ साल बाद बनी उमय्या के आठवें खलीफा उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ के आदेश से यह कानून आधिकारिक तौर पर हटा दिया गया और हदीस लेखन लोकप्रिय हो गया।

शिया हदीस के विद्वानों के अनुसार, शियो ने इमामों के अनुरोध पर शुरुआत से ही हदीसों को दर्ज किया और उनका कहना है कि इस्लाम में लिखी गई हदीसों की पहली किताब, किताबो अली या अल जामेआ है। शिया हदीस के संकलन के चरणों मे हदीसो को रिकॉर्ड करना, हदीसों को वर्गीकृत करना और व्यवस्थित करना जवामेअ हदीसी मे है।

शिया इमामीयो की सबसे महत्वपूर्ण हदीस स्रोत (मनाबे हदीसी) या जवामेअ रवाई इस प्रकार हैं: कुलैनी (मृत्यु: 329 हिजरी) द्वारा लिखित अल-काफी, शेख़ सदूक़ (305-381 हिजरी) द्वारा लिखित मन ला-यहज़ोरोहु अल-फ़क़ीह, और शेख़ तूसी (385-460 हिजरी) द्वारा लिखित तहज़ीब अल-अहकाम और इस्तिबसार है। इन किताबों को कुतुब अरबआ कहा जाता है। फ़ैज़ काशानी (1007-1091 हिजरी) द्वारा लिखित अल-वाफ़ी, अल्लामा मजलिसी (1037-1110 हिजरी) द्वारा लिखित बिहार उल अनवार और हुर्रे आमोली (1033-1104 हिजरी) द्वारा लिखित वसाइल अल शिया अन्य शिया हदीस संग्रह हैं जो बाद की शताब्दियों में लिखे गए थे।

सुन्नियों ने दूसरी चंद्र शताब्दी के मध्य से पैग़म्बर (स) की हदीसों को इकट्ठा करना शुरू कर दिया था। तीसरी चंद्र शताब्दी मे उन्होंने सहाए सित्ता (छह सहीह) लिखी, जो सुन्नीयो की सबसे प्रसिद्ध जवामेअ रवाई हैं: सहीह बुखारी (194-256 हिजरी), सहीह मुस्लिम (204-261 हिजरी), जामेअ तिर्मिज़ी, सुनन इब्न दाऊद, सुनन नेसाई और सुनन इब्न माजा है।

हदीस के विभिन्न प्रकार हैं, जिनमें ख़बर वाहिद और हदीस मुतावातिर शामिल हैं। ख़बर वाहिद अपने आप में अलग-अलग प्रकार की होती है जैसे सहीह, हसन, मोअस्सक़ और ज़ईफ़। मुस्लिम विद्वान हर हदीस को स्वीकार नहीं करते। वे मुतावातिर हदीस और खबर वाहिद जो वैज्ञानिक प्रमाणों से युक्त हो उसे प्रमाण मानते हैं। वे एक भी ऐसी खबर के बारे में असहमत हैं जो ज्ञान नहीं लाती। अधिकांश शिया और सुन्नी न्यायविद् ऐसी किसी भी खबर को तभी स्वीकार करते हैं जब वह किसी विश्वसनीय व्यक्ति द्वारा सुनाई गई हो। हदीसों की वैधता और उनके वर्गीकरण और समझने की विधि की जांच करने के लिए, ज्ञान का गठन किया गया है, जिनमें से कुछ हैं: रेजाल (रेजाल शास्त्र), दिरायत अल-हदीस और फ़िक़्ह अल-हदीस

हदीस ने साहित्य और कला पर बहुत प्रभाव डाला है। कहा जाता है कि कवियों की कविताओं में इसका प्रयोग खूब होता है। इसका उपयोग चित्रकला और सुलेख जैसी कलाओं में भी किया जाता है।

मुसलमानो के बीच हदीस का महत्व और स्थान

हदीस कथन, व्यवहार या तक़रीर के बारे मे वर्णन करता है।[१] जैसे कि पैग़म्बर (स) की रिवायते और इसी तरह शियो की आस्था के अनुसार मासूम इमामों की रिवायते भी हदीस है।[२] मुस्लिम विद्वानों के लेखन के अनुसार हदीस को "खबर",[३] "रिवायत"[४] और "असर"[५] भी कहा जाता है।

धार्मिक ज्ञान का दूसरा स्रोत

अब्दुल हादी फ़ज़्ली (1314-1392 हिजरी) के अनुसार, क़ुरआन के बाद हदीस मुसलमानों के लिए शरिया प्राप्त करने का दूसरा स्रोत है। इसके अलावा, संख्या के हिसाब से यह क़ुरआन से अधिक व्यापक है और इसमें बहुत अधिक धार्मिक शिक्षाएँ शामिल हैं। इसलिए, हदीस का ज्ञान प्राप्त करना इज्तिहाद का आधार और शरिया नियमों की व्युत्पत्ति है।[६]

हदीस पर धार्मिक विज्ञानो की निर्भरता

हदीस के विद्वान काज़िम मुदीर शानेची (मृत्यु: 1381 शम्सी) ने "इल्म हदीस" पुस्तक की प्रस्तावना मे लिखा है कि इस्लाम मे पाए जाने वाले सभी विज्ञान हदीस पर आधारित थे और हदीस के बिना पूर्णता तक नहीं पहुंच पाते: इल्म तफ़सीर शुरुआत मे केवल हदीसो पर शामिल था। न्यायशास्त्र और न्यायशास्त्र के सिद्धांत हमेशा हदीस से जुड़े रहे हैं, और धर्मशास्त्र के ज्ञान और इस्लामी संप्रदायों के बीच बहस मे पैग़म्बर (स) की हदीसें निर्णायक थीं और एक विचार की शुद्धता और गलतता को निर्धारित करती थीं। दस्तावेज़ों की शृंखला के साथ सुनाए गए आख्यानों के अलावा इतिहास और सीरत कुछ भी नहीं था। साहित्य मे भी पैग़म्बर (स) के शब्दों को गवाह के रूप में लिया गया है।[७]

हदीस का इतिहास

शियो की चार विशेष किताबो मे से एक शेख़ तूसी द्वारा लिखित अल-इस्तिबसार
मुख्य लेख: हदीस का इतिहास

हदीस पर प्रतिबंध

मुख्य लेख: हदीस पर प्रतिबंध

हदीस पर प्रतिबंध का तात्पर्य पैग़म्बर (स) की हदीसों को लिखने और सुनाने पर प्रतिबंध से है। यह काम पैग़म्बर (स) के स्वर्गवास के बाद और अबू बक्र और उमर इब्न खत्ताब के खिलाफत काल के दौरान शुरू हुआ[८] और बनी उमय्या के आठवे खलीफा उमर इब्न अब्दुल अज़ीज़ ने मदीना के गर्वनर अबू बक्र बिन हज़म को लिखे एक पत्र मे कहा कि पैग़म्बर (स) की हदीसे लिखी जाए, क्योंकि डर है कि ज्ञान और उसके जाने वाले लोग लुप्त न हो जाए।[९]

सुन्नी विद्वानों का कहना है कि पहले और दूसरे खलीफाओं ने निम्नलिखित कारणों जैसे हदीस को क़ुरआन के साथ मिलाने की संभावना,[१०] मुसलमानों के बीच मतभेदों को रोकना[११] और लोगों का क़ुरआन के अलावा किसी दूसरी चीजो मे गितविधिया करने के भय।[१२] से हदीस के प्रसारण और लेखन पर प्रतिबंध लगाया था।

सय्यद अली शहरिस्तानी के अनुसार, अधिकांश शिया विद्वानों का मानना है कि हदीस पर प्रतिबंध लगाने का कारण इमाम अली (अ) के फ़ज़ाइल और उनके बच्चों और उनकी इमामत के बारे मे पैग़म्बर (स) के शब्दों के प्रकाशन को रोकना था।[१३] शियो के अनुसार हदीस लिखने पर प्रतिबंध जाअले हदीस (हदीस गढ़ने, झूठी हदीसे बनाने)[१४] पहले हदीस ग्रंथों के विनाश,[१५] विभिन्न धर्मों का उदय[१६] और इस्लाम के पैग़म्बर (स) की सुन्नत मे बदलाव[१७] का कारण बना।

हदीस लेखन

शियो की चार विशेष किताबो मे से एक शेख़ सदूक़ द्वारा लिखिता, मन ला याहज़ुर अल-फ़क़ीह
मुख्य लेख: हदीस लेखन

हदीस के विद्वानों के अनुसार, हदीसों की रिकॉर्डिंग और प्रसारण शुरू में मौखिक था और फिर लिखित हो गया।[१८] वे इस्लाम के पैग़म्बर (स) और अहले-बैत (अ) के कथनों के लेखन को इस्लामी परंपराओं को संरक्षित करने मे एक महत्वपूर्ण कारक मानते हैं।[१९] हदीस के सुन्नी विद्वान नूरुद्दीन इत्र ने लिखा कि हदीस का लेखन हदीस को संरक्षित करने और इसे नई पीढ़ियों तक पहुंचाने का सबसे महत्वपूर्ण साधन है।[२०]

रिवायतो के आधार पर, शियो के इमामो ने हदीसे लिखने की सलाह दी है।[२१] आयान अल-शिया के लेखक सय्यद मोहसिन अमीन के अनुसार, शियो ने इमाम अली (अ) के समय से लेकर इमाम अस्करी (अ) तक हदीसों की 6600 किताबें लिखी है।[२२]

शहीद सानी, इस तथ्य के कारण कि उनके काल में पर्याप्त धार्मिक पुस्तकें नहीं थीं, उन्होंने हदीस लिखने को वाजिब ए ऐनी माना है।[२३]

शियो के बीच हदीस के संकलन का इतिहास

शियो की चार विशेष किताबो मे से एक शेख़ तूसी द्वारा लिखित तहज़ीब अल-अहकाम

मजीद मआरिफ़ के अनुसार तारीख उमूमी हदीस नामक किताब मे शिया हदीस कई उतार-चढ़ाव से गुज़री है। उन्होंने इस उतार-चढ़ाव को दो दौरो (अवधियो) में विभाजित किया है: मुताक़द्देमान और मुताअख़्ख़ेरान: मुताक़द्देमीन की अवधी में पहली पांच चंद्र शताब्दियां शामिल हैं। इस अवधि के दौरान शियो के इमामो ने हदीसे बयान कीं और उनके साथियों (सहाबीयो) ने उन्हें लिखा, और बाद में विद्वानों ने उन्हें वर्गीकृत किया "पहले तीन मुहद्दिस" अर्थात कुलैनी (मृत्यु 329 हिजरी), शेख़ सदूक़ (305-381 हिजरी) और शेख़ तूसी (385-460 हिजरी) ने इन्हे कुतुबे अरबाअ (चार विशेष किताबो) मे स्थान दिया।[२४]

मुताअख़्ख़ेरीन काल छठी शताब्दी की शुरुआत से समकालीन काल तक है, और इसमें शिया हदीस की "मजामेअ तकमीली" का गठन किया गया। मुताअख़्ख़ेरीन काल, वास्तव में, शुरुआती लोगों के कार्यों का वर्गीकरण, समापन और विश्लेषण का दौर है।[२५]

मुताक़द्देमीन का युग

मुताक़द्देमीन के युग को चार खंडों में विभाजित किया गया है:

1-इमाम अली से इमाम सज्जाद का युग (पहली शताब्दी)

इस काल मे हदीस पर प्रतिबंध नीति के अस्तित्व और शियो के विरुद्ध राजनीतिक दबाव तथा इमामों की तक़य्या नीति के कारण हदीस अधिक विकसित नहीं हुई।[२६] हालाँकि, इस काल में किताबे लिखी गईं, जिनमें से एक किताबो अली है।[२७] इस पुस्तक को पहली शिया हदीस की पुस्तक माना जाता है।[२८] नहज अल-बलाग़ा जो उस समय "खुताबो अमीर अल-मोमिनीन" या "खुताबो अली" के शीर्षक वाली पुस्तकों के रूप मे शियो के पास थी।[२९] और सहीफ़ा सज्जादिया इस अवधि की अन्य हदीस की पुस्तको मे से हैं।[३०]

2-इमाम बाक़िर और इमाम सादिक का युग (दूसरी शताब्दी)

शिया हदीस के निर्माण में इस काल की महत्वपूर्ण भूमिका है और इसमें मूल्यवान हदीस की रचनाएँ संकलित की गईं।[३१] यह विज्ञान के संकलन और हदीस लिखने पर लगे प्रतिबंध को हटाने का युग था। इस स्थिति का उपयोग करते हुए इमाम बाक़िर (अ) और इमाम सादिक़ (अ) ने सार्वजनिक बैठकें, घर पर शिक्षण, बैठकें और बहसें, और फ़िक़्ह और हदीस सिखाने के लिए निजी बैठकें आयोजित करके शिया न्यायशास्त्र और हदीस के निर्माण पर बहुत प्रभाव डाला।[३२] इस युग की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक हदीस के चार सौ सिद्धांतों का संकलन है, जिन्हें उसूल अरबाअ मेआ के रूप में जाना जाता है।[३३] असल हदीस की उस किताब को कहते है जिसके लेखक ने हदीस को सीधे तौर पर या किसी मध्यस्थ के माध्यम से मासूम से सुना और लिखा है।[३४]

3-ग़ैबत सुगरा के आखिर तक इमाम काज़म का युग

इस युग में ख़लीफ़ाओं ने इमामों पर प्रतिबंध लगा दिया और शियाओं पर दबाव डाला।[३५] इसलिए पिछले युग की तुलना में इमामों की ओर से बहुत कम हदीसें जारी की गईं।[३६] इस युग मे पिछली हदीस की किताबो को व्यवस्थित करने पर ध्यान दिया गया और मुहद्देसीन ने पिछले युग के बचे हुए उसूल और रिवायतो को न्यायशास्त्र विषयों के अनुसार और अधिक विस्तृत पुस्तकों संकलित की।[३७]

4-जवामेअ हदीसी के उदय का युग

इस युग में अकादमिक केन्द्रों में हदीस के सक्रिय शिक्षण के लिए हदीस के क्षेत्र में और अधिक व्यापक पुस्तकें लिखने की आवश्यकता महसूस की गई। इस मुद्दे के कारण जवामेअ हदीस का उदय हुआ, जिनमें से कुछ मे फ़िक़्ह और अकाइद सहित सभी धार्मिक विषय शामिल थे, जैसे कि कुलैनी द्वारा लिखित अल-काफ़ी, और कुछ फ़िक्ह या अकाइद में विशेषज्ञता रखते थे; शेख़ सदूक़ द्वारा लिखित तौहीद, ओयून अख़बार अल-रज़ा और कमालुद्दीन और शेख़ तूसी द्वारा लिखित अल-ग़ैबा और अमाली,[३८] इस अवधि मे शियो की कुतुबे अरबआ लिखी गईं[३९] ये किताबे जो शिया इमामीया की सबसे महत्वपूर्ण जवामेअ हदीसी कुलैनी (मृत्यु:329 हिजरी) द्वारा लिखित अल-काफी, शेख़ सदूक़ (305-381 हिजरी) द्वारा लिखित मन ला-याहजुर अल-फ़क़ीह और शेख़ तूसी (385-460 हिजरी) द्वारा लिखित तहज़ीब अल-अहकाम और इस्तिबसार है।[४०]

मुताअख़्ख़ेरीन का युग

इस अवधि की शुरुआत मे 6वीं से 11वीं शताब्दी तक हदीस की पुस्तकों का लेखन रुक गया; हालाँकि 11वीं शताब्दी के बाद से फ़ैज़ काशानी (1007-1091 हिजरी), अल्लामा मजलिसी (1037-1110 हिजरी) और हुर्रे आमोली (1033-1104 हिजरी) के जुहूर के साथ हदीस की पुस्तकों का संकलन फला-फूला। इस अवधि के सबसे महत्वपूर्ण हदीस संकलन फ़ैज़ काशानी द्वारा लिखित अल वाफ़ी, अल्लामा मजलिसी द्वारा लिखित बिहार उल-अनवार, और हुर्रे आमोली द्वारा लिखित वसाइल अल-शिया है[४१] समकालीन युग अर्थात पिछले सौ वर्षों मे विद्वानों ने सही हदीसों का संग्रह, वर्गीकरण और चयन भी किया है। इस युग की सबसे महत्वपूर्ण पुस्तकें मुसतदरक अल वसाइल, सफ़ीना अल बिहार, जामे अहादीस अल-शिया, आसार अल-सादेक़ीन, मीज़ान अल हिकमा और अल-हयात है।[४२]

सुन्नियों में हदीस के संकलन का इतिहास

अब्दुल हादी फ़ज़्ली ने सुन्नी हदीस के इतिहास को तीन चरणों में विभाजित किया है:

  • हदीसों के संग्रह का चरण: इसकी शुरुआत दूसरी शताब्दी के उत्तरार्ध मे हुई। इस अवधि के दौरान, अहले सुन्नत के बुजुर्गों ने हदीसों को एकत्र किया और उन्हें साथियों (सहाबा) और अनुयायियों (ताबेईन) के फ़तवों के साथ किताबों में संकलित किया। मालिक बिन अनस द्वारा लिखित अल-मुवत्ता पुस्तक इसी युग में लिखी गई थी।[४३]
  • मुसनद लिखने का चरण: मुसनद ऐसी किताबें हैं जिनमें केवल पैग़म्बर (स) की हदीसों का उल्लेख किया गया है।[४४] दूसरी शताब्दी के अंत से, कुछ सुन्नी विद्वानो ने मुसनद लिखना शुरू कर दिया। मुसनद अहमद इब्ने हंबल इस काल की पुस्तकों में से एक है।[४५]
  • "सहीह" लिखने का चरण: "सहीह" उस किताब को संदर्भित करता है जिसमें लेखक ने केवल उन हदीसों को शामिल किया है जिन्हें वह प्रामाणिक रूप से पैग़म्बर (स) की मानता है[४६] इस क्षेत्र में किताब लिखने वाले पहले व्यक्ति मुहम्मद बिन इस्माईल बुखारी (194-256 हिजरी) थे। सहीह बुखारी और सहीह मुस्लिम इस अवधि की हदीस की पुस्तके हैं।[४७]

हदीस लिखने के तरीके

हदीस का विभाजन

यह भी देखें: खबर वाहिद और हदीस मुतावातिर

हदीसों की वैधता जांचने के लिए उन्हें विभिन्न प्रकारों में विभाजित किया गया है। विभाजन मे उन्हें दो प्रकार के वाहिद और मुतावतिर मानते हैं: ख़बर वाहिद उस हदीस को कहा जाता है जिसके वर्णनकर्ताओं की संख्या यह सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त नहीं है कि यह हदीस मासूम द्वारा जारी की गई है।[४८] ख़बर वाहिद के विपरीत हदीस मुतावातिर है। मुतावातिर उस हदीस को कहा जाता है जिसके वर्णनकर्ताओं की संख्या इतनी है कि हमे उस हदीस के मासूम से वर्णन करने पर यकीन हो जाता है।[४९]

ख़बर वाहिद की अपने आप में अलग-अलग प्रकार और श्रेणियां हैं।[५०] एक श्रेणी में, इसके कथाकारों की विशेषताओं के अनुसार, इसे चार मुख्य श्रेणियों में विभाजित किया गया है: सहीह, हसन, मोअस्सक़ और ज़ईफ़[५१]

एक अन्य श्रेणी मे, इस पर निर्भर करते हुए कि यह निश्चित (यकीनी) है या संदिग्ध (ज़न्नी) खबर वाहिद को दो प्रकारों में विभाजित किया जाता है: वह खबर जिसमें इस बात का सबूत हो कि कोई व्यक्ति किसी मासूम से जारी होने के बारे में आश्वस्त हो सकता है, लेकिन वह खबर (हदीस) ऐसी नहीं है।[५२] कुछ शिया विद्वानों के अनुसार खबर वाहिद को यक़ीनी बनाने वाले तर्क इस प्रकार हैः अक़्ल के अनुसार, क़ुरआन के अनुसार, मुसलमानों या शियो की सर्वसम्मति के अनुसार।[५३]

हदीस मुतावातिर को दो प्रकारों में रखते हैं, लफ़्ज़ी और माअनवी: लफ़्ज़ी मुतावातिर तब होता है जब वे समान शब्दों और वाक्यांशों के साथ एक विषय का वर्णन करते हैं; जैसे हदीस "मन कुंतो मौलाहो फ़हाज़ा अली मौलाह"। माअनवी मुतावातिर तब होता है जब एक सामान्य विषय को अलग-अलग वाक्यांशों और शब्दों के साथ वर्णित किया जाता है;[५४] जैसे कि इमाम महदी (अ) के ज़हूर से संबंधित हदीसें, जिनके शब्द अलग हैं और तवातुर की सीमा तक नहीं पहुंचते हैं; लेकिन इमाम महदी के ज़हूह के संबंध में उनका विषय मुतावातिर है।[५५]

हदीस का मान्यकरण

मुख्य लेख: मोअतबर हदीस

हदीसों की प्रामाणिकता और वैधता पर चर्चा दानिशे उसुल-फ़िक्ह में एक मुद्दा है। [56] अब्दुल हादी फ़ज़्ली के अनुसार विशेषरूप से मुतावातिर हदीस की प्रामाणिकता पर सभी उसूलिस्ट सहमत हैं, [57] इसी तरह खबर वाहिद जोकि साक्ष्य के साथ साथ विश्वास करने योग्य हो तो उसूलिस्ट ऐसी खबर वाहिद की प्रमाणिकता को भी स्वीकार करते है और उसमे कोई संदेह नहीं है।[58] लेकिन ऐसी खबर वाहिद जो साक्ष्य के साथ विश्वास करने योग्य न तो उसकी प्रमाणिकात मे मतभेद पाया जाता है। 59]

मुताक़द्दिम (शेख तूसी से पहले वाले) शिया न्यायविदो के एक समूह मे से सय्यद मुर्तज़ा और इब्न इदरीस ने ऐसी हदीस को प्रमाण नहीं माना। [60] हालांकि, शेख अंसारी के अनुसार, खबर वाहिद को सामान्य रूप से प्रमाण मानने पर शिया न्यायविदों का विशाल बहुमत है; [61] लेकिन उन्होंने इसे स्वीकार करने के लिए कुछ मानदंड सामने रखे विशेषरूप से इन मानदंडों की असहमती मे मतभेद हैं। [62]

कुछ अख़बारवादियों को यह श्रेय दिया जाता है कि वे प्रामाणिक शिया हदीस पुस्तकों में पाए जाने वाले सभी हदीसो को प्रामाणिक मानते हैं [63] इस शर्त के अलावा, कुछ ने हदीस का खंडन न करने की कसौटी भी सामने रखी है और वह हदीस का प्रसिद्ध होना है। [64] एक अन्य समूह का कहना है कि हम उस हदीस को स्वीकार करते हैं कि जिसके वर्णनकर्ता (रावी) आदिल (शिया इमामी) हो। [65] अब्दुल हादी फ़ज़्ली के अनुसार, अधिकांश शिया विद्वानों का मत यह है कि उसी खबरे वाहिद को प्रमाणिक माना जाएगा जिसके कथावाचकों की श्रृंखला सेक़ा हो। [66]

सुन्नीयो का दृष्टिकोण

सुन्नी न्यायविद् शौकानी (मृत्यु: 1250 हिजरी) के अनुसार, सुन्नी विद्वान भी मुतावातिर हदीसो की प्रामाणिकता पर कुछ नहीं कहते हैं और इसे ज्ञान योग्य मानते हैं [67], लेकिन वे सहीह खबरे वाहिद की प्रामाणिकता के बारे मे असहमत हैं। [68] अहमद इब्ने हंबल[69] सहित उनमें से अधिकांश का मानना है कि यह प्रामाणिक (मोअतबर) है। [70] नज़्ज़ाम जैसे कुछ अन्य लोगों का कहना है कि यह प्रामाणिक (मोअतबर) नहीं है, जब तक कि हदीस के बाहर कोई सबूत न हो जो हमें इसकी प्रामाणिकता पर विश्वास कराता हो। [71]

दस्तावेज़

मुख्य लेख: दस्तावेज़

दस्तावेज़ का अर्थ है कि हदीस के वर्णनकर्ताओं की पूरी श्रृंखला मासूम तक उल्लेख किया जाए; दूसरे शब्दों मे, हदीस का स्रोत बताया जाना चाहिए। [72] हदीस का स्रोत या उसके स्रोत का उल्लेख महत्वपूर्ण है क्योंकि यह हदीस की वैधता जानने के लिए उपकरणों में से एक है। [73] ऐसा कहा जाता है कि इसी कारण से, शियो के इमामो और सुन्नी विद्वानों ने हमेशा हदीस के दस्तावेजों को लिखने की सिफ़ारिश की है। [74]

हदीस गढ़ना

मुख्य लेख: हदीस गढ़ना

हदीस गढ़ना अर्थात एक हदीस बनाकर उसका श्रेय पैग़म्बर (स) या मासूम इमामो को देने का कहा जाता है। [75] इस तरह से बनाई गई हदीस को गढ़ी हुई हदीस (हदीसे मोज़ूअ) भी कहा जाता है [76] ऐसा कहा जाता है हदीस गढ़ना विश्वासों (ऐतेक़ादी), नैतिकता, इतिहास, चिकित्सा, गुणों और प्रार्थनाओं (फ़ज़ाइलो और दुआओ) में अधिक आम है। [77]

हदीस गढ़ने के कई तरीके हैं: कभी-कभी एक हदीस पूरी तरह से गढ़ी जाती थी, कभी-कभी पैग़म्बर (स) या इमाम की हदीस मे शब्दों को जोड़ा जाता था, और कभी-कभी हदीस के शब्दों को बदल दिया जाता था। [78]

गढ़ी हुई हदीस का एक उदाहरण, पैग़म्बर (स) की इस हदीस मे अब्बासी ख़लीफ़ा मंसूर दवानीक़ी को माना जाता है जो कहता है: "परमात्मा मेरे अहले-बैत मे से एक आदमी को उठाएगा जिसका नाम मेरा नाम है।"[79] मंसूर दवानिक़ी, वाक्यांश "और उसके पिता का नाम, मेरे पिता का नाम है" को हदीस मे जोड़ा ताकि उसके पुत्र मुहम्मद को पैग़म्बर (स) की हदीस से परिचित कराए, क्योकि मंसूर का नाम पैग़म्बर (स) के पिता अब्दुल्लाह के नाम जैसा [80]

कुछ के अनुसार, हदीस गढ़ने का इतिहास पवित्र पैग़म्बर (स) के जीवनकाल तक जाता है। [81] दूसरों का मानना है कि हदीस की जालसाजी खुलफ़ाए राशेदीन अर्थात इमाम अली (अ) की शहादत के बाद शुरू हुआ। इस अवधि के दौरान, संप्रदायों का गठन हुआ जो खुद की पुष्टि करने के लिए हदीस गढ़ते थे। [82]

ऐसा कहा जाता है कि मुआविया के समय मे हदीस की जालसाजी ने अपने पैर पसारे। [83] इब्ने अबी अल-हदीद ने सातवीं शताब्दी में नहज अल-बलागा पर अपनी टिप्पणी में लिखा था कि मुआविया उन वर्णनकर्ताओं का समर्थन करता था जो उसमान और दूसरे सहाबा के फ़ज़ाइल तथा इमाम अली (अ) के तिरस्कार (तहक़ीर) मे हदीस गढ़ते थे। [84]

हदीस की महत्वपूर्ण किताबे

मुख्य लेख: जामेअ हदीसी
शियो की चार विशेष किताबो मे से एक कुलैनी द्वारा लिखित अल-काफ़ी

जवामे हदीसी, हदीस की उन पुस्तकों को संदर्भित करता है जिसमें विश्वास (अक़ाइद), नियम (अहकाम), सीरत और तफ़सीर जैसे सभी धार्मिक विषय शामिल होते है। [85] एक दूसरी परिभाषा में, यह उन पुस्तकों को संदर्भित करता है जिनमें किसी विशेष विषय के सभी या अधिकांश मुद्दे शामिल होते हैं। [86]

सबसे महत्वपूर्ण शियो की जवामेअ हदीसी (हदीसी ग्रंथो का संग्रह) इस प्रकार हैं: कुलैनी द्वारा लिखित अल-काफ़ी, शेख़ सदूक़ द्वारा लिखित मन ला याहज़ुर अल-फ़क़ीह, शेख़ तूसी द्वारा लिखित तहज़ीब अल-अहकाम और इस्तिबसार [87] इन्हें कुतुबे अरबा (चार विशेष किताबे) या उसूले अरबा कहा जाता है। [88] दूसरे प्रसिद्ध शिया हदीस के ग्रंथो का संग्रहः फ़ैज़ काशानी द्वारा लिखित अल-वाफ़ी, अल्लामा मजलिसी द्वारा लिखित बिहार उल-अनवार, हुर्रे आमोली द्वारा लिखित वसाइल अल-शिया, [89] मिर्ज़ा हुसैन नूरी द्वारा लिखित मुस्तदरक अल-वसाइल, मुहम्मद रैय शहरी और उनके सहयोगीयो द्वारा लिखित मीज़ान अल-हिक्मा, लेखकों के एक समूह द्वारा लिखित जामेअ अहादीस अल-शिया, मुहम्मद रज़ा हकीमी द्वारा लिखित अल-हयात और सादिक़ अहसान बख़्श द्वारा लिखित आसार अल सादेक़ीन है। [90]

सुन्नियों की आठ सबसे विश्वसनीय और प्रसिद्ध जवामे रेवाई इस प्रकार हैः मोवत्ता मलिक, मुसनद अहमद बिन हंबल, सहीह बुखारी, सहीह मुस्लिम, जामेअ तिरमिज़ी, सुनन अबू दाऊद, सुनन नेसाई और सुनन इब्न माजा [91] अंतिम छह पुस्तकों को सेहाह सित्ता (छह सहीह) के नाम से जाना जाता है। [92]

उलूम हदीस

मुख्य लेख: उलूम हदीस

इस्लाम की पहली शताब्दियों मे हदीस के बारे में विभिन्न प्रकार के विज्ञान रहे हैं, जिसमें वे हदीसों की जांच उनके पाठ और प्रसारण की श्रृंखला जैसे पहलुओं से करते हैं। [93] इनमें से कुछ विज्ञान इस प्रकार हैं:

  • रेजाल (पुरूष विज्ञान): कथावाचकों का परिचय देता है तथा न्याय (अदालत) और विश्वास (ईमान) जैसे उनके गुणों की जांच करता है, जो उनकी रिवायतो को स्वीकार या अस्वीकार करने में भूमिका निभाते हैं। [94]
  • दिरायत अल-हदीस या मुस्तलह अल-हदीस: यह हदीस के प्रकार, दस्तावेज़ और हदीस के दस्तावेज़ो और पाठ की इस्तेलाहो, तहम्मुले हदीस (हदीस सुनने और प्राप्त करने की) शर्तों और तरीकों और और शिष्टाचार के बारे मे है। [95]
  • मुख़्तलफ़ अल हदीस: इस विज्ञान मे परस्पर विरोधी हदीसों और उन्हें हल करने के तरीकों की जांच की जाती है। [96]
  • नासिख़ और मंसूख: यह परस्पर विरोधी हदीसों के बारे में है जिनके संघर्ष को हल करने का कोई तरीका नहीं मिला है। इस मामले में, पहले वाली हदीस को निरस्त (मंसूख) और बाद वाली हदीस को निरस्त करने वाले (नासिख) कहा जाता है। [97]
  • फ़िक़्ह अल-हदीस: इसमे हदीसो को समझने की मूल बातें और मानदंडों पर चर्चा की जाती है। [98]

कला और साहित्य पर हदीस का प्रभाव

ग़ुलाम हुसैन अमीरख़ानी द्वारा लिखित अना मदीनातुल इल्म वाली हदीस के एक अंश का सुलेख

काज़िम मुदीर शानेची के अनुसार, हदीस ने फ़ारसी साहित्य को प्रभावित करते हुए समृद्ध और विस्तारित किया है। फ़ारसी भाषा के कुछ कवि ऐसे हैं जिन्होंने अपनी कविताओं में हदीस का इस्तेमाल नहीं किया। जिन साहित्यिक बिंदुओं में हदीस का उल्लेख किया गया है, वे फ़ारसी साहित्य के सर्वोत्तम कार्यों में से हैं और इनका शैक्षिक और नैतिक महत्व बहुत अधिक है। [99] नासिर खुसरो, सेनाई, अत्तार नेशाबुरी, ख़ाक़ानी, नेज़ामी, मौलवी और साअदी जैसे कवियों के कार्य ऐसे है हदीस को समझे बिना उनकी कविताओं को समझना संभव नहीं है। [100]

कलाकृति

हसन रुह अल-अमीन द्वारा ला फ़ता इल्ला अली वाली हदीस जिसमें ओहोद की लड़ाई का एक दृश्य दर्शाया गया है।

हदीसों का उपयोग कला के कार्यों में भी किया गया है। उदाहरण के लिए 2017 ईस्वी मे हसन रूह अल-अमीन ने ला फ़ता इल्ला अली वाली हदीस की एक पेंटिंग डिजाइन की थी [101] इसके अलावा, जॉर्ज जुर्दाक का कहना हैं कि "मैं एक ईसाई परिवार में पला-बढ़ा हूं मेरे पिता एक संगतराश थे। उन्होंने हमारे घर के द्वार पर एक पत्थर लटकाया था, जिस पर निम्नलिखित वाक्य खुदा हुआ था: "ला फ़ता इल्ला अली ला सैफ़ इल्ला जुल्फ़क़ार"।[102]

सुलेखक ग़ुलाम हुसैन अमीरख़ानी ने नस्तालिक लिपि में अना मदीनतुल इल्म वाली हदीस लिखी है। [103]


फ़ुटनोट

  1. सुबहानी, उसूल अल हदीस व अहकामेही, दार एहया अल तुरास अल अरबी, पेज 19
  2. मुदीर शानेची, इल्म अल हदीस, 1381 शम्सी, पेज 20
  3. महदवीराद, तदवीन हदीस (1), पेज 39-40; मुदीर शानेची, इल्म अल हदीस, 1381 शम्सी, पेज 20
  4. मुदीर शानेची, इल्म अल हदीस, 1381 शम्सी, पेज 20
  5. महदवीराद, तदवीन हदीस (1), पेज 43-44
  6. फ़ज़्ली, उसूल अल हदीस, 1420 हिजरी, पेज 14
  7. मुदीर शानेची, इल्म अल हदीस, 1381 शम्सी, पेज 21
  8. मुत्तक़ी हिंदी, कंज़ अल उम्माल, 1401 हिजरी, भाग 10, पेज 285; तिबरी, तारीख अल उमम व अल मुलूक, 1387 हिजरी, भाग 4, पेज 204
  9. बुख़ारी, सहीह बुख़ारी, 1401 हिजरी, भाग 1, पेज 33
  10. मुत्तक़ी हिंदी, कंज़ अल उम्माल, 1401 हिजरी, भाग 10, पेज 291-292, हदीस 29474
  11. ज़हबी, तज़केरा अल हुफ़्फ़ाज़, 1419 हिजरी, भाग 1, पेज 9
  12. ग़ज़ाली, एहया अल उलूम, भाग 10, पेज 79 बे नक़ल अज़ दयारी बेगदिली, नक़द व बररसी एलल व अंगीज़ेहाए मन्अ निगारिशे हदीस, पेज 44
  13. शहरिस्तानी, मन्अ तदवीन अल हदीस, 1430 हिजरी, पेज 67
  14. हुसैनी, पयामदहाए मन्अ नक़ल हदीस, पेज 62
  15. सुबहानी, फ़रहंग अक़ाइद व मज़ाहिब इस्लामी, 1378 शम्सी, भाग 1, पेज 91; मुत्तक़ी हिंदी, कंज़ अल उम्माल, 1401 हिजरी, भाग 10, पेज 285
  16. हुसैनी, पयामदहाए मन्अ नक़ल हदीस, पेज 68
  17. हुसैनी, पयामदहाए मन्अ नक़ल हदीस, पेज 67
  18. फ़ज़्ली, उसूल अल हदीस, 1420 हिजरी, पेज 14
  19. मआरिफ़, बर रसी सैरे तारीख़ी किताबत हदीस दर शिया, पेज 74
  20. अत्र, मनहज अल नक़द फ़ी उलूम अल हदीस, 1418 हिजरी, पेज 39-40
  21. देखेः कुलैनी, काफ़ी, 1407 हिजरी, भाग 1, पेज 52, हदीस 8,9,10; इब्ने शैयबा, तोहफ अल उकूल, 1404 हिजरी, पेज 36
  22. अमीन, आयान अल शिया, 1403 हिजरी, भाग 1, पेज 140
  23. शहीद सानी, मुनयातुल मुरीद, 1409 हिजरी, पेज 339
  24. मआरिफ़, तारीख उमूमी हदीस, 1377 शम्सी, पेज 202
  25. मआरिफ़, तारीख उमूमी हदीस, 1377 शम्सी, पेज 202
  26. मआरिफ़, तारीख उमूमी हदीस, 1377 शम्सी, पेज 207-209
  27. मआरिफ़, तारीख उमूमी हदीस, 1377 शम्सी, पेज 213
  28. फ़ज़्ली, उसूल अल हदीस, 1420 हिजरी, पेज 46
  29. मआरिफ़, तारीख उमूमी हदीस, 1377 शम्सी, पेज 216-217
  30. मआरिफ़, तारीख उमूमी हदीस, 1377 शम्सी, पेज 221
  31. मआरिफ़, तारीख उमूमी हदीस, 1377 शम्सी, पेज 227
  32. मआरिफ़, तारीख उमूमी हदीस, 1377 शम्सी, पेज 227-234
  33. मआरिफ़, तारीख उमूमी हदीस, 1377 शम्सी, पेज 255
  34. फ़ज़्ली, उसूल अल हदीस, 1420 हिजरी, पेज 47
  35. मआरिफ़, तारीख उमूमी हदीस, 1377 शम्सी, पेज 307
  36. मआरिफ़, तारीख उमूमी हदीस, 1377 शम्सी, पेज 310
  37. मआरिफ़, तारीख उमूमी हदीस, 1377 शम्सी, पेज 348-350
  38. मआरिफ़, तारीख उमूमी हदीस, 1377 शम्सी, पेज 355
  39. मआरिफ़, तारीख उमूमी हदीस, 1377 शम्सी, पेज 355
  40. मोअद्दब, तारीख हदीस, 1388 शम्सी, पेज 86
  41. मआरिफ़, तारीख उमूमी हदीस, 1377 शम्सी, पेज 400-402
  42. मआरिफ़, तारीख उमूमी हदीस, 1377 शम्सी, पेज 434-439
  43. फ़ज़्ली, उसूल अल हदीस, 1420 हिजरी, पेज 43
  44. फ़ज़्ली, उसूल अल हदीस, 1420 हिजरी, पेज 43
  45. फ़ज़्ली, उसूल अल हदीस, 1420 हिजरी, पेज 43-44
  46. फ़ज़्ली, उसूल अल हदीस, 1420 हिजरी, पेज 44
  47. फ़ज़्ली, उसूल अल हदीस, 1420 हिजरी, पेज 44
  48. फ़ज़्ली, उसूल अल हदीस, 1420 हिजरी, पेज 83
  49. फ़ज़्ली, उसूल अल हदीस, 1420 हिजरी, पेज 72-73
  50. देखेः शहीद सानी, अल बिदाया फ़ी इल्म अल दिराया, 1421 हिजरी, पेज 23 से 39
  51. शहीद सानी, अल बिदाया फ़ी इल्म अल दिराया, 1421 हिजरी, पेज 23-24
  52. फ़ज़्ली, उसूल अल हदीस, 1420 हिजरी, पेज 84-85
  53. फ़ज़्ली, उसूल अल हदीस, 1420 हिजरी, पेज 84-85
  54. सुबहानी, उसूल अल हदीस व अहकेमही, दार एहया अल तुरास अल अरबी, पेज 35
  55. फ़ज़्ली, उसूल अल हदीस, 1420 हिजरी, पेज 80


स्रोत

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  • शौकानी, मुहम्मद बिन अली, इरशाद अल फ़ुहूल ऐला तहक़ीक़ अल हक़ मिन इल्म अल उसूल, शोदः अहमद ग़ज़ू इनाया, दमिश्क, दार अल किताब अल अरबी, पहला संस्करण 1419 हिजरी
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  • मआरिफ़, मजीद, तारीख उमूमी हदीस बा रुईकर्द तहलीली, तेहरान, कवीर, पहला संस्करण 1377 हिजरी
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  • महदूदीराद, मुहम्मद अली, तदवीन हदीस (1), दर नश्रे उलूम हदीस, क्रमांक 1, 1375 शम्सी
  • नसीरी, अली, हदीस शनासी, क़ुम, सनाबिल, 1383 शम्सी