प्रारूप:ज़ियारत का ग़ुस्ल
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ज़ियारत का ग़ुस्ल, एक ऐसा ग़ुस्ल है जो मासूमीन (अ) की क़ब्रों की ज़ियारत के लिए किया जाता है। कुछ न्यायविद इस ग़ुस्ल को मुस्तहब मानते हैं, जबकि दूसरा एक समूह कहता हैं कि इसे सिर्फ़ आशा के इरादे या सवाब के लिए करना जायज़ है।
परिभाषा
ज़ियारत का ग़ुस्ल एक ऐसा ग़ुस्ल है जो मासूमीन (अ.) की क़ब्रों की ज़ियारत के लिए किया जाता है।[१] काशिफ़ अल ग़ेता के अनुसार, कुछ लोग ज़ियारतो के ग़ुस्ल में नबियों की क़ब्रों की ज़ियारत के लिए भी शामिल मानते हैं।[२] इसी तरह इमाम सादिक़ (अ) की रिवायतों में, काबा की ज़ियारत करने जाने के लिए ग़ुस्ल करने की सिफ़ारिश की गई है।[३]
फ़िक़्ही दृष्टिकोण
कुछ न्यायविद ज़ियारत के गुस्ल को मुस्तहब मानते हैं।[४] इब्ने ज़ोहरा ने इसके मुस्तहब होने पर इज्मा (आम सहमति) का दावा किया[५] एक और शिया फ़क़ीह मुहम्मद हसन नजफ़ी ने भी इसे जवाहिर में मशहूर माना है।[६] रिवायतों में पैग़म्बर (स), इमाम हुसैन (अ) और इमाम रज़ा (अ) जैसे कुछ मासूमीन की क़ब्रो की ज़ियारत के लिए खास सिफ़ारिश की गई है। मरजा ए तक़लीद वहीद बहबहानी ने इसे तमाम मासूमीन के लिए माना है, यह कहते हुए कि तमाम मासूमीन एक ही नूर से हैं।[७] कुछ का मानना है कि दूर से भी ज़ियारत के लिए गुस्ल किया जा सकता है।[८]
सय्यद अबुल क़ासिम ख़ूई, सय्यद अली सिस्तानी, और नासिर मकारिम शिराज़ी जैसे न्यायविदो ने ज़ियारत के लिए ग़ुस्ल के मुस्तहब होने का स्वीकार नही किया है इसे केवाल सवाब और आशा के इरादे से ज़ियारत का ग़ुस्ल करना सही मानते है; यानी, इस उम्मीद में कि यह वांछनीय होगा।[९] कुछ दूसरे शिया फ़ुक़्हा के अनुसार, मासूमीन के हरम मे प्रवेश करने के लिए भी ज़ियारत का ग़ुस्ल मुस्तहब मानते है चाहे ज़ियारत करने का इरादा भी ना हो।[१०]
क्या ज़ियारत के गुस्ल से नमाज़ पढ़ी जा सकती है?
कुछ न्यायविदो ने फ़तवा दिया हैं कि मध्यम इस्तेहाज़ा के ग़ुस्ल को छोड़ कर सभी वाजिब और मुस्तहब ग़ुस्ल के साथ नमाज़ पढ़ी जा सकती है; हालाँकि, जनाबत के ग़ुस्ल के अलावा वुज़ू करना भी एहतियात मुस्तहब है।[११]
संबंधित लेख
फ़ुटनोट
- ↑ काशिफ़ अल ग़ेता, कश्फ अल ग़ेता, 1422 हिजरी, भाग 2, पेज 309; नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1404 हिजरी, भाग 5, पेज 45; शेख अंसारी, किताब अल तहाहत, 1415 हिजरी, भाग 3, पेज 64-67।
- ↑ काशिफ़ अल ग़ेता, कश्फ अल ग़ेता, 1422 हिजरी, भाग 2, पेज 309।
- ↑ कुलैनी, अल काफ़ी, 1363 शम्सी, भाग 3, पेज 40; तूसी, तहज़ीब अल अहकाम, 1364 शम्सी, भाग 1, पेज 104 और 114; हुर्रे आमोली, वसाइल उश शिया, 1414 हिजरी, भाग 3, पेज 304।
- ↑ काशिफ़ अल ग़ेता, कश्फ अल ग़ेता, 1422 हिजरी, भाग 2, पेज 309; नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1404 हिजरी, भाग 5, पेज 45; शेख अंसारी, किताब अल तहाहत, 1415 हिजरी, भाग 3, पेज 64-67।
- ↑ इब्ने ज़ोहरा, गुनया अल नुजूआ एला इल्म अल उसूल वल फ़ुरूअ, 1417 हिजरी, पेज 62।
- ↑ नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1404 हिजरी, भाग 5, पेज 46।
- ↑ बहबहानी, मसाबीह उज़ ज़लाम, 1424 हिजरी, भाग 4, पेज 88-90।
- ↑ यज़्दी, अल उरवा अल वुस्क़ा, 1414 हिजरी, भाग 2, पेज 154।
- ↑ राशेदी, रसाला तौज़ीह अल मसाइल 9 मरजअ, 1385 शम्सी, पेज 367-368।
- ↑ यज़्दी, अल उरवा अल वुस्क़ा, 1414 हिजरी, भाग 1, पेज 462; तबातबाई हकीम, मुस्तमसिक अल अरवा अल वुस्क़ा, 1374 शम्सी, भाग 4, पेज 281; हमदानी, मिस्बाह अल फ़क़ीह, 1376 शम्सी, पेज 6।
- ↑ आयात तबरेजी, नूरी व वहीद, राशेदी, रेसाला तौज़ीह अल मसाइल 9 मरजअ, 1385 शम्सी, मसाइल 391 और 646।
स्रोत
- इब्ने ज़ोहरा, हम्ज़ा बिन अली, गुनया अल नुजुअ एला इल्म अल उसूल वल फ़ुरुअ, क़ुम, इमाम सादिक़ 1417 हिजरी।
- काशिफ़ अल ग़ेता, जाफ़र, काश्फ़ अल ग़ेता अन मुबहिम्मात अल शरिया अल ग़र्रा, तब्लीग़ाते इस्लामी हौज़ ए इल्मिया क़ुम का प्रकाशन ऑफ़िस, 1422 हिजरी।
- कुलैनी, मुहम्मद बिन याक़ूब, अल काफ़ी, तेहरान, दार अल कुतुब अल इस्लामीया, 1363 शम्सी।
- तबातबाई हकीम, सय्यद मोहसिन, मुस्तसिक अल अरवा अल वुस्क़ा, क़ुम, दार अल तफ़सीर, 1374 शम्सी।
- तूसी, मुहम्मद बिन हसन, तहज़ीब अल अहकाम, शोधः हसन ख़ुरसान, तेहरान, दार अल कुतुब अल इस्लामिया, 1364 शम्सी।
- नजफ़ी, मुहम्मद हसन, जवाहिर अल कलाम फ़ी शरह शरा ए अल इस्लाम, संशोधनः अब्बास क़ूचानी व अली आख़ूंदी, बैरुत, दार एहया अल तुरास अल अरबी, सातवां संस्करण, 1404 हिजरी।
- बहबहानी, मुहम्मद बाक़िर, मिसाबीह उज़ ज़लाम, क़ुम, मोअस्सेसा अल्लामा मुजदद्द वहीद बहबहानी, 1424 हिजरी /1382 शम्सी।
- यज़्दी, सय्यद मुहम्मद काज़िम, अल उरवा अल वुस्क़ा, क़ुम, दावरी प्रकाशन, 1414 हिजरी।
- राशेदी, लतीफ़ व सईद राशेदी, रेसाला तौज़ीह अल मसाइल 9 मरजअ, क़ुम, पयाम अदालत प्रकाशन, पहला संस्करण, 1385 शम्सी।
- शेख अंसारी, मुर्तज़ा, अल तहारत, क़ुम, कुंगरे बुजुर्गदाश्त शेख आज़म अंसारी, 1415 हिजरी।
- हमदानी, रज़ा, मिस्बाह अल फ़िक़ीह, क़ुम, मोअस्सेसा अल जाफ़रिया लेएहया अल तुरास, 1376 शम्सी।
- हुर्रे आमोली मुहम्मद बिन हसन, वसाइ उश शिया, क़ुम, आले अलबैत 1414 हिजरी।
