नमाज़े जाफ़रे तय्यार

wikishia से
(जाफ़रे तय्यार की नमाज़ से अनुप्रेषित)

नमाज़े जाफ़रे तय्यार (अरबी: صلاة جعفر الطيار) या नमाज़े तस्बीह या नमाज़े हबुआ, मुस्तहब नमाज़ो में से एक नमाज़ है जो दो-दो रकअत करके चार रकअत पढ़ी जाती है। इस नमाज़ में 300 बार तस्बीहाते अरबआ (سُبْحَانَ اللَّهِ وَ الْحَمْدُ لِلَّهِ وَ لا إِلَهَ إِلا اللَّهُ وَ اللَّهُ أَکبَرُ सुब्हानल्लाहे वल्हम्दो लिल्लाहे वला एला इल लल्लाहो अकबर) की तकरार होती है। पैगंबर (स) ने जाफ़र बिन अबी तालिब को उनके प्रयासों की सराहना में एक उपहार के रूप में हब्शा से लौटने के बाद यह नमाज सिखाई थी।

नमाज़े जाफ़रे तय्यार के लिए उल्लिखित प्रभावों में पापों की क्षमा और जरूरतों की पूर्ति शामिल है। कुछ धार्मिक विद्वानों ने महत्वपूर्ण कार्यों के लिए और शीघ्र विवाह के लिए नमाज़े जाफ़रे तय्यार पढ़ने की सिफारिश की है।

जाफ़रे तय्यार को पैगंबर (स) का उपहार

नमाज़े तस्बीह वह नमाज़ है जिसे पैगंबर (स) ने जाफ़र बिन अबी तालिब को उनके प्रयासों की सराहना करने के लिए उपहार के रूप में सिखाया था जब वह हब्शा से लौटे थे। इसलिए, इसे नमाज़े जाफ़रे तय्यार के रूप में जाना जाने लगा।[१] जाफ़र तय्यार पैगंबर के चचेरे भाई थे, इमाम अली (अ)[२] के भाई थे और वह पैगंबर पर ईमान लाने वाले पहले लोगों में से एक थे।[३] जाफ़र तय्यार मुसलमानों के एक समूह के प्रमुख थे जो कि पैगंबर के आदेश पर मक्का से अबीसीनिया (हब्शा) चले गए थे।[४]

क्योंकि यह नमाज़ पैगंबर (स) की ओर से जाफ़र को एक उपहार थी, इसलिए इस नमाज़े हब्वा[५] भी कहा जाता है।

नमाज़ पढ़ने का तरीक़ा

नमाज़े जाफ़रे तय्यार दो नमाज़ दो-दो रकअत करके दो तशहहुद और सलाम के साथ नीचे बताए गए तरीके से पढ़ी जाती है।

  • नमाज़ के आरम्भ मे नमाज़े जाफ़र तय्यार की नियत करें और पहली रकअत में सूर ए हम्द के बाद सूर ए ज़िलज़ाल (इज़ा ज़ुलज़ेलातिल अर्ज़ो ज़िलज़ालाहा), दूसरी रकअत में सूर ए हम्द के बाद सूर ए आदियात, तीसरी रकअत मे सूर ए हम्द के बाद सूर ए नस्र और चौथी रकअत मे सूर ए हम्द के बाद सूर ए तौहीद (क़ुल होवल्लाहू अहद) पढ़ा जाता है।
  • प्रत्येक रकअत में सूर ए हम्द और दूसरे सूरे के बाद 15 बार तस्बीहाते अरबआ (سُبْحَانَ اللَّهِ وَ الْحَمْدُ لِلَّهِ وَ لا إِلَهَ إِلا اللَّهُ وَ اللَّهُ أَکبَرُ सुब्हानल्लाहे वल्हम्दो लिल्लाहे वला एला इल लल्लाहो अकबर), इसी ज़िक्र को प्रत्येक रूकुअ मे 10 बार और रुकुअ से सर उठाने के बाद 10 बार, और प्रत्येक रकअत के सज्दे मे 10 बार सज्दे से सर उठाने के बाद 10 बार पढ़ा जाए। इस प्रकार प्रत्येक रकअत मे जिक्र की संख्या 75 और पूरी नमाज़ मे ज़िक्र की संख्या 300 बार दोहराया जाता है।[६]
ज़िक्र सुब्हानल्लाहे वल्हम्दो लिल्लाहे वला एला इल लल्लाहो अकबर संख्या
हम्द और सूरा पढ़ने के बाद 15 बार
रुकुअ मे 10 बार
रुकुअ से खड़े होेने के बाद 10 बार
पहले सज्दे मे 10 बार
पहला सज्दा करने के बाद 10 बार
दूसरे सज्दे मे 10 बार
दूसरे सज्दे के बाद तशाहुद से पहले 10 बार
  • दूसरी रकअत के दूसरे सज्दे मे तस्बीहात के बाद नीचे लिखी दुआ का पढ़ना मुस्तहब है।
  • سُبْحانَ مَنْ لَبِسَ الْعِزَّ وَالْوَقارَ ، سُبْحانَ مَنْ تَعَطَّفَ بِالْمَجْدِ وَتَكَرَّمَ بِهِ ، سُبْحانَ مَنْ لَايَنْبَغِى التَّسْبِيحُ إِلّا لَهُ ، سُبْحانَ مَنْ أَحْصىٰ كُلَّ شَىْءٍ عِلْمُهُ ، سُبْحانَ ذِى الْمَنِّ وَالنِّعَمِ ، سُبْحانَ ذِى الْقُدْرَةِ وَالْكَرَمِ ، اللّٰهُمَّ إِنِّى أَسْأَلُكَ بِمَعاقِدِ الْعِزِّ مِنْ عَرْشِكَ ، وَمُنْتَهَى الرَّحْمَةِ مِنْ كِتابِكَ ، وَاسْمِكَ الْأَعْظَمِ وَكَلِماتِكَ التَّامَّةِ الَّتِى تَمَّتْ صِدْقاً وَعَدْلاً ، صَلِّ عَلىٰ مُحَمَّدٍ وَأَهْلِ بَيْتِهِ ، وَافْعَلْ بِى كَذا وَكَذ. सुब्हाना मन लबेसल इज़्ज़ा वल वक़ारा, सुब्हाना मन तअत्तफ़ा बिल मज्दे वा तकर्रामा बेहि, सुब्हाना मन ला यंबग़ित तस्बीहो इल्ला लहू, सुब्हाना मन आहसा कुल्ला शैइन इलमोहू, सुब्हाना ज़िल मन्ने वन नेअमे, सुब्हाना ज़िल क़ुदरते वल करमे, अल्लाहुम्मा इन्नी अस्अलोका बेमआक़ेदिल इज्ज़े मिन अर्शेका, वा मुनंतहल रहमते मिन किताबेका, वस मेकल आज़मे वा कलेमातेकल ताम्मते अल्लती तम्मत सिदकन वा अदला, सल्ले अला मोहम्मदिन वा आहलेबेतेही, वफ़अल बी कज़ा वा कज़ा।
  • वफ़अल बी कज़ा वा कज़ा के स्थान पर अपनी हाजत तलब की जाए।[७]
  • अल्लामा मजलिसी ने मुफ़ज़्ज़ल बिन उमर की किताब ज़ाद अल-मआद में इमाम सादिक़ (अ) से एक दुआ नक़ल की है जिसे नमाज़े जाफ़र के बाद सज्दे की हालत मे अपनी हाजत के पूरा होने के लिए पढ़ा जाता है।

ऐ मुफ़ज़्ज़ल, जब भी तुम्हे कोई अत्यावश्यक ज़रूरत हो, तो नमाज़े जाफ़र अदा करो फिर इस दुआ को पढ़ें और ख़ुदा से अपनी हाजत माँगें, जो पूरी होगी, इंशाल्लाह। नमाज़ के बाद अपने हाथ ऊपर उठाएं और (या रब्बे या रब्बे या रब्बे) कहते हुए इस तरह अल्लाह को पुकारें की सास टूट जाए, फ़िर (या रब्बाहो या रब्बाहो या रब्बाहो) कहते हुए पुकारे कि सास टूट जाए फ़िर (रब्बे रब्बे रब्बे) कहते हुए सास टूटने तक पुकारे, फ़िर (या अल्लाहो या अल्लाहो या अल्लाहो) कहते हुए सास टूटने तक पुकारे, फिर (या हय्यो या हय्यो या हय्यो) सास टूटने तक पुकारे, फिर (या रहीमो या रहीमो या रहीमो) सास टूटने तक पुकारे, फिर सात बार (या रहमानो या रहमानो या रहमानो), सात बार कहे (या अर्हमर्राहेमीन), उसके बाद कहे (اَللَّهُمَّ إِنِّی أَفْتَتِحُ الْقَوْلَ بِحَمْدِک، وَ أَنْطِقُ بِالثَّنَاءِ عَلَیک، وَ أُمَجِّدُک وَ لَا غَایةَ لِمَدْحِک، وَ أُثْنِی عَلَیک وَ مَنْ یبْلُغُ غَایةَ ثَنَائِک وَ أَمَدَ مَجْدِک، وَ أَنَّی لِخَلِیقَتِک کنْهُ مَعْرِفَةِ مَجْدِک، وَ‌ای زَمَنٍ لَمْ تَکنْ مَمْدُوحاً بِفَضْلِک، مَوْصُوفاً بِمَجْدِک عَوَّاداً عَلَی الْمُذْنِبِینَ بِحِلْمِک، تَخَلَّفَ سُکانُ أَرْضِک عَنْ طَاعَتِک فَکنْتَ عَلَیهِمْ عَطُوفاً بِجُودِک، جَوَاداً بِفَضْلِک عَوَّاداً بِکرَمِک، یا لَا إِلَهَ إِلَّا أَنْتَ الْمَنَّانُ ذُو الْجَلَالِ وَ الْإِکرَامِ अल्लाहुम्मा इन्नी अफ़ततेहुल क़ौला बेहम्देक, वा अंतेक़ो बिस्सनाए अलैक, वा ओमज्जेदोका वला ग़ायता बेमदहेक, वा उस्नी अलैका वा मय्यबलोग़ो ग़ायता सनाएका वा अमदा मज्देक, वा अन्नी लेख़लीक़तेका कुन्हो मारेफ़ते मज्दिक, वा अय्यो ज़मानिन लम तकुन मम्दूहन बेफ़ज़्लिक, मोसूफ़न बेमजदिक अव्वादन अलल मुज़नेबीना बेहिलमिक, तख़ल्लफ़ा सुकानो अर्ज़ेका अन ताअतिक फ़कुंता अलैहिम अतूफ़न बेजूदिक, जवादन बेफ़ज़्लिका अव्वादन बे करामिक, या ला इलाहा इल्ला अंता अल मन्नानो ज़ुल जिलाले वल इकराम)[८] शेख अब्बास क़ुमी ने नमाज़े जाफ़रे तय्यार को मफ़ातिहुल जिनान मे इमामे ज़माने की नमाज़ के बाद शुक्रवार की रात्रि और शुक्रवार के दिन के फज़ीलत के आमाल मे उल्लेख किया है।[९]

फ़ज़ीलत और नमाज़ पढ़ने का समय

नमाज़े जाफ़रे तय्यार की फ़ज़ीलत मे कहा गया है कि हाजत के पूरा होने और पापो की क्षमा के लिए नमाज़े जाफ़रे तय्यार पढ़ी जाए और जब तक हाजत पूरी ना हो जाए तब तक इस नमाज़ को पढ़ा जाए।[१०] कुछ धार्मिक विद्वानों ने महत्वपूर्ण कार्यों और शीघ्र विवाह होने के लिए नमाज़े जाफ़रे तय्यार पढ़ने की सिफारिश की है।[११] नीमे शाबान की रात में इस नमाज़ को पढ़ने की सिफारिश इमाम रज़ा (अ) की हदीस में भी की गई है।[१२] शुक्रवार का दिन इस नमाज़ को पढ़े जाने वाले फ़ज़ीलत के समय मे से एक है।[१३]

फ़ुटनोट

  1. सुदूक़, मन ला यहज़ोरोह अल-फ़क़ीह, 1413 हिजरी, भाग 1, पेज 553; मजलिसी, ज़ाद अल-मआद, 1423 हिजरी, पेज 320-321; हुर्रे आमोली, वसाइल अल-शिया, 1409 हिजरी, पेज 51
  2. इब्ने हजर, अल-इसाबा, 1415 हिजरी, भाग 1, पेज 592
  3. इब्ने हजर, अल-इसाबा, 1415 हिजरी, भाग 1, पेज 592
  4. इब्ने सआद, अत-तबक़ात अल-कुबरा, 1410 हिजरी, भाग 4, पेज 25-26
  5. सुदूक़, मन ला यहज़ोरोह अल-फ़क़ीह, 1413 हिजरी, भाग 1, पेज 552
  6. कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, भाग 3, पेज 465
  7. कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, भाग 3, पेज 467
  8. मजलिसी, ज़ाद अल-मआद, 1423 हिजरी, पेज 323
  9. क़ुमी, मफ़ातीहुल जिनान, बाबे दोव्वुम आमाले सना, 1384 शम्सी, पेज 76
  10. मजलिसी, ज़ाद अल-मआद, 1423 हिजरी, पेज 321-322
  11. हदयेई बराए बर आवुरदे शुदने हवाइज, साइट तिबयान
  12. क़ुमी, मफ़ातिहुल जिनान, आमाले शबे नीमा ए शाबान
  13. क़ुमी, मफ़ातीहुल जिनान, आमाले रोज़े जुमा, नमाज़े जाफ़रे तय्यार

स्रोत

  • इब्ने हजर अस्क़लानी, अहमद बिन अली, अल इसाबा फ़ी तमीईज अल-सहाबा, शोधः आदिल अहमद अब्दुल मौजूद वा अली मुहम्मद मोअव्विज़, बैरूत, दार अल-कुतुब अल-इल्मीया, 1995 ई
  • इब्ने साद, मुहम्मद बिन साद, अत-तबक़ात अल-कुबरा, शोधः मुहम्मद अब्दुल कादिर अता, बैरूत, दार अल-कुतुब अल-इल्मीया, 1990 ई
  • इजलाल गूदरज़ी, ज़हरा, हदएई बराए आवुरदे शुदन हवाइज, साइट तिबयान, तारीखे इंतेशारात 5 उर्दीबहिश्त 1392, तारीख़े वीज़ीट 18 इस्फ़ंद 1398 शम्सी
  • हुर्रे आमोली, मुहम्मद बिन हसन, वसाइल अल-शिया, क़ुम, मोअस्सेसा आले अल-बैत (अ), 1409 हिजरी
  • सुदूक़, मुहम्मद बिन अली, मन ला याहज़ेरोह अल-फ़क़ीह, संशोधन अली अकबर ग़फ़्फ़ारी, क़ुम, जामे मुदर्रेसीन, 1413 हिजरी
  • क़ुमी, अब्बास, मफ़ातिहुल जिनान, बाब दोव्वुम आमाले सनाह, क़ुम, मतबूआते दीनी, 1384 शम्सी
  • कुलैनी, मुहम्मद बिन याक़ूब, अल-काफ़ी, तेहरान, दार उल कुतुब अल-इस्लामीया, 1407 हिजरी
  • मजलिसी, मुहम्मद बाक़िर, ज़ाद अल-मआद, बैरूत, मोअस्सेसा आलमी लिल मतबूआत, 1423 हिजरी