इस्मते आइम्मा
- यह लेख इमामों की इस्मत के बारे में है। पैगम्बरों की इस्मत और इस्मत की अवधारणा से परिचित होने के लिए इस्मत और पैगम्बरों की इस्मत वाले लेख का अध्ययन करें।:
इमामो की इस्मत अथवा इस्मत ए आइम्मा (अरबीः عصمة الأئمة) शिया इमामों की इस्मत सभी प्रकार के पाप चाहे बड़े हो अथवा छोटे, जानबूझकर हो अथवा अनजाने में हुई गलतियों और भूलने की बीमारी से शिया इमामों की पवित्रता का नाम है। इस्मत ए आइम्मा शिया इस्ना अश्री की विशिष्ट मान्यताओं में से एक है। इमामिया और शिया इस्माईलीयो के दृष्टिकोण से, इस्मत इमामत की शर्तों और इमामों की सिफतो में से एक है। अब्दुल्लाह जवादी आमोली के अनुसार, इमाम (अ) जिस प्रकार अपने चरित्र में मासूम होते हैं, उसी प्रकार उनका उनका ज्ञान सही और गलती से दूर होता है।
शिया विद्वानों ने इमामों की इस्मत साबित करने के लिए विभिन्न आयतो जैसे कि आय ए ऊलिल अम्र, आय ए तत्हीर, आय ए इब्तेला इब्राहीम, आय ए सादेक़ीन, आय ए मवद्दत और आय ए सलवात का हवाला दिया है। रिवाई स्रोतो मे इस विषय के संदर्भ मे अत्यधिक रिवायते आई है, हदीसे सक़लैन, हदीसे अमान और हदीसे सफ़ीना जैसे हदीसे है जो इमामो की इस्मत को साबित करने के लिए इस्तेमाल की गई है। इमामों की इस्मत पर विभिन्न तर्को के बावजूद, वहाबियों और सलफियों के नेता इब्न तैमिया हर्रानी ने इसका खंडन किया है और आपत्ति जताई हैं। शिया विद्वानों ने सभी आपत्तियो का उत्तर दिया है।
इस्मते इमाम और आइम्मा के बारे में किताबें लिखी गई हैं, जिनमें से जाफ़र सुब्हानी की पुज़ूहिशी दर शनाख़्त वा इस्मत इमाम, मुहम्मद हुसैन फ़ारयाब की इस्मते इमाम दर तारीख़े तफ़क्कुरे इमामीया ता पायान ए क़र्ने पंजुम हिजरी और इब्राहीम सफ़र जादे की इस्मते इमामान अज़ दीदगाहे अक़ल वा वही उल्लेखनीय है।
स्थान और महत्व
इस्मते इमाम और उस पर तर्को को क़ुरआन और कलाम मे महत्वपूर्ण विषय माना जाता है।[१] शिया इसना अशरी के दृष्टिकोण से, इस्मत इमामत की शर्तों और सिफतो (गुणो) में से एक है, और शिया इमामों की इस्मत उनकी बुनियादी मान्यताओं में से एक है।[२] अल्लामा मजलिसी के अनुसार, इमामिया सहमत हैं कि इमाम (अ) सभी पापों, बड़े पाप या छोटे पाप, चाहे जानबूझकर या अनजाने में, और किसी भी गलती के लिए मासूम हैं।[३] कहा जाता है कि इस्माईलीया भी इस्मत को इमामत की शर्ते मानते है।[४] इसके विपरीत अहले-सुन्नत इस्मत को इमामत की शर्त नहीं मानते हैं[५] क्योंकि वे इस बात पर सहमत हैं कि तीनो खलीफ़ा इमाम तो थे लेकिन वे मासूम नहीं थे।[६] अहले सुन्नत इस्मत के बजाए (अदालत) न्याय को शर्त मानते हैं।[७] हालांकि, 7वीं शताब्दी में सुन्नी विद्वानों में से सिब्ते इब्ने जौज़ी ने इस्मते इमाम को स्वीकार किया।[८] वहाबी भी इमाम और शिया इमामो की इस्मत को स्वीकार नहीं करते हैं और इसे नबियों के लिए विशेष मानते हैं।[९] इब्ने अबिल हदीद मोतज़ली के अनुसार, पांचवी शताब्दी के मोतज़ली मुताकल्लिम अबू मुहम्मद हसन बिन अहमद बिन मत्तावीया इसके वाजूद कि वो इस्मत को इमामत के लिए शर्त नहीं मानते लेकिन उन्होंने इमाम अली (अ) की इस्मत की व्याख्या की है और उसे मोअतज़ेला स्कूल की राय माना है।[१०]
जाफ़र सुब्हानी के अनुसार, यह मतभेद इमामत और खिलाफत के बारे में शिया और सुन्नी समूहों की धारणा से उत्पन्न हुआ है। शियो के दृष्टिकोण से, इमामत, नबूवत की तरह, एक दैवीय पद है, और भगवान को इसके प्रशासक की नियुक्ति करनी चाहिए;[११] लेकिन सुन्नियों के दृष्टिकोण से, इमामत एक प्रथागत स्थिति है[१२] और लोगो दुवारा चुना हुआ होता है जिसका ज्ञान और न्याय लोगो के स्तार के समान होता है जोकि ईश्वर द्वारा निर्धारित नहीं है।[१३]
इमामो (अ) की इस्मत को शिया न्यायशास्त्र के विज्ञान की धार्मिक नींव में से एक माना गया है; क्योंकि इमामों की इस्मत साबित करके, इमाम की सुन्नत (क़ौल, फ़ेल और तक़रीर) को न्यायशास्त्र के सिद्धांतों में अनुमान के स्रोतों में से एक के रूप में मान्यता दी जाती है; हालाँकि, यदि इमामों की इस्मत सिद्ध नहीं होती है, तो उनकी सुन्नत का उपयोग शरीयत नियमों को प्राप्त करने में नहीं किया जा सकता है।[१४] यह भी कहा गया है कि शिया विद्वानों के अनुसार, अधिकार का मानक इमाम की इसमत पर सहमति है; क्योंकि उनके अनुसार, इमाम पैग़म्बर (स) का उत्तराधिकारी है और उनकी तरह मासूम है, और सर्वसम्मति प्रमाण (इज्माअ) क्योंकि वह मासूम के क़ौल का खोजकर्ता है। दूसरी ओर, सुन्नी उसूलीयो ने उम्मत की इस्मत को इज्माअ की हुज्जियत का मानदंड माना है।[१५]
इमाम और इमामों की इस्मत का कुरआन में स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं किया गया है, लेकिन शिया विद्वानों ने आय ए ऊलिल अम्र,[१६] आय ए तत्हीर,[१७] आय ए इब्तेला इब्राहीम (इब्राहीम की परीक्षा वाली आयत)[१८] जैसे आयतो से इमाम या आइम्मा की इस्मत की व्याख्या की है। हालाँकि, रिवाई स्रोतों में, कई हदीसों में इमामों की इस्मत के बारे में बताया गया है।[१९]
परिभाषा
इस्मते आइम्मा का अर्थ है कि वे किसी भी प्रकार के पाप और त्रुटि से सुरक्षित हैं।[२०] मुस्लिम धर्मशास्त्रियों और हुक्मा की शब्दावली (इस्तेलाह) संरक्षण और संयम के शाब्दिक अर्थ को शामिल करती है;[२१] लेकिन उनके सिद्धांतों के आधार पर इस्मत की विभिन्न परिभाषाएँ प्रस्तुत की गई हैं। उनमें से कुछ हैं:
- मुतकल्लेमीन की परिभाषा: अदलिया धर्मशास्त्रियों (इमामिया[२२] और मोतज़ेला[२३] ने लुत्फ़ के आधार पर इस्मत को परिभाषित किया है।[२४] इसलिए, इस्मत वह लुत्फ़ है जो ईश्वर अपने सेवक (बंदे) को देता है, और इसके माध्यम से, वह पाप और बुरा कार्य नही करता है।[२५] अशायरा ने ईश्वर द्वारा मासूम व्यक्ति में पाप न पैदा करने के रूप में इस्मत को परिभाषित किया है।[२६]
- फ़लसफ़ीयो की परिभाषा: मुस्लिम हुक्मा ने इस्मत को नफसानी मलका के रूप में परिभाषित किया है इसके अस्तित्व के बावजूद, साहिबे इस्मत कोई पाप नहीं करता है।[२७] कहा जाता है कि हुक्मा के सिद्धांतो के आधार पर यह परिभाषा तौहीदे अफआली के अध्याय मे, मनुष्य की स्वतंत्र इच्छा के माध्यम से मानवीय कार्यों का श्रेय ईश्वर को दिया जाता है।[२८]
रूपात्मक संरचना के संदर्भ में, इस्मत शब्द "अ स म" की अनंत संज्ञा है[२९], जिसका शाब्दिक अर्थ है पकड़ना और रोकना।[३०] इस्मत शब्द का उपयोग क़ुरआन में नहीं किया गया है; लेकिन इसके व्युत्पत्ति का शाब्दिक अर्थ में कुरान में 13 बार उपयोग किया गया है।[३१]
क्षेत्र
इमामिया विद्वानों का मानना है कि शियों के इमाम, पैगम्बरों की तरह, किसी भी बड़े पाप या छोटे पापों से चाहे वे जानबूझकर हों या लापरवाही और भूलने की बीमारी के कारण, और किसी भी त्रुटि और गलतियों से प्रतिरक्षित हैं।[३२] उनके विचार मे आइम्मा अपने पूरे जीवनकाल, इमामत से पहले और बाद में मासूम है।[३३] फ़य्याज़ लाहिजी, पाप और त्रुटि से मासूम होने के अलावा, शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और वंशावली दोषों से इस्मत को इमाम के लिए एक शर्त मानते हैं, और उनके अनुसार, इमाम पुरानी या घृणित शारीरिक बीमारियों, जैसे कुष्ठ रोग और गूंगापन, या शारीरिक दोष जैसे लालच, कंजूसी और हिंसा, या बौद्धिक दोष जैसे पागलपन, अज्ञानता, विस्मृति और सापेक्ष दोष से पीड़ित नहीं होना चाहिए। उनका तर्क यह है कि ये दोष लोगों को इमामों (अ) से नफरत और नापसंद करने का कारण हैं और उनका पालन करने के दायित्व के साथ असंगत हैं।[३४]
शेख़ मुफ़ीद ने गलती से इमाम का मुस्तहब आदेश को छोड़ना तार्किक रूप से स्वीकार्य माना है; लेकिन उनका मानना है कि इमामों ने अपने जीवनकाल में कोई भी मुस्तहब नहीं छोड़ा है।[३५]
अब्दुल्लाह जवादी आमोली ने इस्मत को व्यावहारिक और वैज्ञानिक दो भागों में बाँटा है और इमामों (अ) को दोनों प्रकार का व्यापक माना है। उनके अनुसार जिस प्रकार इमामों का आचरण हक़ के अनुरूप होता है, उसी प्रकार उनका ज्ञान भी हक़ होता है और एक ऐसे सिद्धांत से उत्पन्न होता है जिसमें कोई गलती, त्रुटि या विस्मृति नहीं होती है।[३६] उनके अनुसार जो भी व्यक्ति इस मुकाम पर पहुंचता है। वैज्ञानिक अचूकता (इस्मते इल्मी) के कारण, वह शैतान के प्रलोभनों से सुरक्षित है और शैतान उसके विचारों में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है।[३७]
कलाम शास्त्र के विशेषज्ञ विद्वान अली रब्बानी गुलपाएगानी ने व्यावहारिक अचूकता (इस्मते अमली) को वही पार से दूरी और इस्मते इल्मी को निम्नलिखित स्तरों के समान माना है:
- ईश्वरीय आदेशों को जानने में अचूकता (इलाही अहकाम को पहचानने मे इस्मत);
- ईश्वरीय आदेशों के विषयों को जानने में अचूकता (इलाही अहकाम के मौज़ूअ को पहचानने मे इस्मत);
- समाज के नेतृत्व से संबंधित मामलों के फायदे और नुकसान को पहचानने में अचूकता;
- व्यक्तिगत और सामाजिक मुद्दों सहित सामान्य जीवन से संबंधित मामलों में अचूकता।[३८]
उनके अनुसार, शियों के इमामों के पास ये सभी स्तर होते हैं।[३९]
इस्मत साबित करने के तर्कसंगत
शिया विद्वानों द्वारा इमाम की इस्मत साबित करने के लिए कई बौद्धिक तर्क स्थापित किए गए हैं, जैसे: निरंतरता इनकार तर्क (बुरहान इमतेनाअ तसलसुल), इमाम द्वारा शरिया के संरक्षण और स्पष्टीकरण का तर्क, इमाम का पालन करने के दायित्व का तर्क, उद्देश्य के उल्लंघन का तर्क, पाप करने की स्थिति में इमाम के पतन के कारण का तर्क।[४०]
बौद्धिक तर्क, अस्ले इस्मत इमाम को तर्कसंगत के कारणो पर ध्यान दिए बिना सिद्ध करते हैं। जाफ़र सुब्हानी के अनुसार, पैगंबर की इस्मत के लिए प्रस्तुत सभी तर्कसंगत, जैसे नबूवत के लक्ष्यों को पूरा करना और लोगों का विश्वास हासिल करना, इमाम की इस्मत के लिए भी प्रासंगिक हैं। उनके दृष्टिकोण में, इमाम की इस्मत शिया स्कूल की आवश्यकता है जो इमामत की स्थिति को पैगंबर (स) की रिसलात और नबूवत के कर्तव्यों की निरंतरता के रूप में माना जाती है। इमाम की इस्मत के बिना ऐसे कर्तव्यों को जारी रखना संभव नहीं है।[४१]
इमाम की आज्ञा मानने के वाजिब होने का तर्क
साक्ष्यों के आधार पर जैसे आय ए उलिल अम्र के अनुसार इमाम की आज्ञा का पालन करना अनिवार्य है;[४२] इस तरह से कुछ लोगों ने इमाम की आज्ञा का पालन करने के दायित्व को मुस्लिम सर्वसम्मति (इज्माअ) का मामला माना है।[४३] अब, यदि इमाम मासूम नहीं होगा और कोई गुनाह करे या कोई ग़लती हो जाए तो उसकी आज्ञा का पालन हराम और अम्र बिल मारूफ वा नही अज़ मुनकर की तर्क अनुसार उसको गुनाह से रोकना वाजिब हो जाता है; ऐसे में एक तरफ इमाम का विरोध और दूसरी तरफ उनकी आज्ञा का पालन करना होगा जो संभव नहीं है; इसलिए, इमाम को मासूम होना चाहिए।[४४]
क़ुरआन की आयतों का हवाला
इमामों की इस्मत (अचूकता) साबित करने के लिए आय ए इब्तेला इब्राहीम, आय ए ऊलिल अम्र, आय ए तत्हीर, आय ए सादेक़ीन,[४५] आय ए मवद्दत[४६] और आय ए सलवात[४७] जैसी आयतो का हवाला दिया गया है।
इब्राहीम की परीक्षा वाली आयत
- मुख्य लेख: आय ए इब्तेला इब्राहीम
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— क़ुरआन: सूर ए बक़रा आयत न 124 |
आय ए इब्तेला के तर्क में कहा गया है कि "ला यनालो अहदिज़ ज़ालेमीन" की व्यापकता का अर्थ है कि जो व्यक्ति एक बार किसी भी तरह से ज़ुल्म कर चुका हो, उसोक इमामत नहीं मिलती। इसलिए, यह आयत इमाम की इमामत के दौरान और उससे पहले उनकी इस्मत (अचूकता) को इंगित करती है।[४९] फ़ाज़िल मिक़दाद ने आयत का तर्क (इस्तिदलाल) इस प्रकार व्यक्त किया है: गैर मासूम ज़ालिम है; ज़ालिम इमाम के योग्य नही है; गैर मासूम व्यक्ति इमाम बनने के लायक़ नहीं है।' इसलिए, इमाम को मासूम होना चाहिए।[५०]] शिया विद्वानों ने "अहदी" शब्द का अर्थ इमामत माना है।[५१]
ऊलिल अम्र वाली आयत
- मुख्य लेख: आय ए ऊलिल अम्र
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उलिल अम्र की आयत का जिक्र करते हुए शिया विद्वानों ने कहा है कि आयत में बिना किसी शर्त के उलिल-अम्र की आज्ञा मानने का आदेश दिया गया है। ऐसा आदेश उलिल अम्र की इस्मत को इंगित करता है; क्योंकि यदि उलिल अम्र मासूम नहीं थे और पाप या त्रुटि में पड़ जाते तो बुद्धि और ईश्वर का न्याय इस बात का तकाज़ा करता कि वह उन्हें पूर्ण रूप से आज्ञाकारिता का आदेश न दे।[५३] शिया रिवायतो[५४] के आधार पर उलिल अम्र शिया (अ) के इमामो का मानते हैं।[५५]
आय ए ततहीर
- मुख्य लेख: आय ए ततहीर
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यह आयत इस्मते आइम्मा (अ) को भी संदर्भित करती है।[५७] कुछ लोगों ने इस आयत के तर्क (इस्तिदलाल) को इस प्रकार समझाया है:
- आय ए तत्हीर मे अहले-बैत (अ) का अर्थ आले-अबा (हदीसे किसा) के पांच लोग हैं।
- यह आयत अहले-बैत (अ) से घृणित चीजों को हटाने की ईश्वर की इच्छा के बारे में सूचित करती है।
- घिनौनी चीज़ों को नष्ट करने की इच्छा के अलावा, ईश्वर ने इस कृत्य के एहसास को भी ध्यान में रखा था, क्योंकि यह आयत अहले-बैत (अ) के लिए प्रशंसा की स्थिति में है। (खुदा का तकवीनी इरादा)
- अहले-बैत (अ) से रिज्स और अशुद्धता को दूर रखने का अर्थ उनकी इस्मत है।[५८]
शिया[५९] और सुन्नियों से प्रसारित विभिन्न रिवायतो के अनुसार,[६०] असहाब किसा के सम्मान में आय ए तत्हीर नाजिल हुई है। इसलिए, आयत में अहले-बैत (अ) के पांच सदस्य मुराद हैं।[६१]
रिवयतो का हवाला
हदीसे सकलैन और हदीसे सफ़ीना जैसे कई हदीसो का साथियों और इमामों (अ) के माध्यम से इस्मते आइम्मा (अ) साबित करने के लिए वर्णन हुआ हैं।[६२] शियो द्वारा उद्धृत पैगंबर (स) की कुछ निम्नलिखित हदीसे है:
अन अब्दुलाह इब्न अब्बास क़ाला समेअतो रसूलल्लाहे (अ) यक़ूलोः अना वा अलीयुन वल हसनो वल हुसैनो वा तिस्अतुम मिन वुलदिल हुसैने मुताहरूना मासूमूना
(अनुवादः पैगंबर (स) ने फ़रमायाः मै, अली, हसन, हुसैन और उसकी संतान से नौ पुत्र पवित्र और मासूम है)।
हदीसे सक़लैन
- मुख्य लेख: हदीसे सक़लैन
यह हदीस स्पष्ट रूप से لَنْ يَفْتَرِقَا حَتَّي يَرِدَا عَلَيَّ الْحَوْض लन यफ़तरेक़ा हत्ता यरेदा अलय्यल हौज वाक्यांश मे अहलेबैत (स) की इस्मत को इंगित करती है; क्योंकि किसी भी प्रकार का पाप करना या उनसे त्रुटियां होना उन्हें क़ुरआन से अलग कर देगा।[६३] इसके अलावा, पैगंबर (स) ने इस हदीस में निर्दिष्ट किया है कि जो कोई भी क़ुरआन और अहले-बैत (अ) का पालन करेगा कभी भी नही भटकेंगा। यह वाक्यांश अहले –बैत (अ) की इस्मत को भी इंगित करता है; क्योंकि यदि वे मासून नहीं होते, तो उनसे चिपके रहने और उनका अनुसरण करने से त्रुटि हो जाती।[६४] दूसरे शब्दों में, यह हदीस अहले-बैत (अ) का पालन करने के दायित्व को इंगित करती है, और उनका पालन करने का दायित्व उनकी इस्मत को इंगित करता है।[६५]
शिया रिवायतो में, हदीसे सकलैन में अहले-बैत (अ) की व्याख्या शियो के इमाम के रूप में की गई है।[६६] कुछ सुन्नियों[६७] ने अहले-बैत (अ) को असहाबे किसा और कुछ[६८] ने इमाम अली (अ) को प्रमुख उदाहरण माना है।
कुछ शिया धर्मशास्त्री हदीसे सक़लैन को मुतावातिर मानते हुए इसकी प्रामाणिकता के बारे में कोई संदेह नहीं करते है।[६९] कुछ इसे मानवी मुतावतार मानते हैं।[७०]
हदीसे अमान
- मुख्य लेख: हदीसे अमान
हदीसे अमान पैगंबर (स) की एक प्रसिद्ध हदीस है जिसका शिया[७१] और सुन्नियों[७२] द्वारा थोड़े अंतर के साथ, यह इस प्रकार वर्णन किया गया है:
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इस हदीस के तर्क में कहा गया है कि अल्लाह के रसूल (स) ने अपने अहले-बैत की तुलना सितारों से की और उन्हें उम्मत या पृथ्वी के लोगों की सुरक्षा के रूप में पेश किया। पैगंबर (स) का यह कथन, जो बिना किसी शर्त के अहले-बैत को मार्गदर्शन के सितारे और मतभेदों और गुमराहियों से उम्मत की सुरक्षा का स्रोत मानते है, अहले-बैत की इस्मत को इंगित करता है; क्योंकि इस्मत के बिना, ऐसी कोई चीज़ संभव नहीं है।[७३]
"किफ़ायातुल-असर" पुस्तक में उद्धृत कथन में, अहले-बैत (अ) ने इमामों (अ) की व्याख्या की और कहा कि वे मासूम हैं।[७४] चौथी शताब्दी मे सुन्नी विद्वान हाकिम नेशाबुरी हदीसे अमान को सहीह अल-सनद के रूप में पुष्टि करते है।[७५]
हदीसे सफ़ीना
- मुख्य लेख: हदीसे सफ़ीना
प्रसिद्ध हदीसे सफ़ीना को कई शिया[७६] और सुन्नी[७७] स्रोतों में पैगंबर (स) से थोड़े अंतर के साथ उद्धृत किया गया है:
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कुछ लोगों ने इस हदीस को मुतावातिर माना है।[७८] हकीम नेशाबुरी ने भी इसे प्रामाणिक माना है।[७९]
मीर हामिद हुसैन हिंदी ने इस हदीस के तर्क में कहा है कि यदि अहले-बैत (अ) की कश्ती लोगों को बचाती है और इसके उल्लंघन के कारण वे डूब जाते हैं और भटक जाते हैं, तो पहले चरण मे अहले-बैत (अ) को भटकने से बचा हुआ होना चाहिए। अन्यथा, उनका अनुसरण करने और उनकी कश्ती पर चढ़ने का बिना शर्त आदेश उन्हें भटका देगा, और अल्लाह और अल्लाह के रसूल (स) के लिए ऐसा आदेश देना असंभव है जिससे लोग भटक जाएंगे।[८०]
हदीसे सफ़ीना में अहले-बैत (स) के मिस्दाक़ बारह इमाम हैं।[८१] दस्वी और ग्यारहवी चंद्र शताब्दी के शाफ़ई विद्वान अब्दुल रऊफ मनावी इमामो और हज़रत फ़ातिमा (स) को अहले-बैत (अ) का मिसदाक़ मानते है।[८२]
- عصمکم الله من الزلل و آمنکم من الفتن و طهرکم من الدنس
अस्समकोमुल्लाहो मिज़्ज़ुल्ले वा आमनकुम मिनल फ़ितने व ताहरोकुम मिनद दनसे
अनुवादःअल्लाह ने तुम अहले-बैत (अ) को लग़ज़िश (लडखड़ाहट) से सुरक्षित रखा और फितनो से अमान मे रखा और दुष्टता से दूर रखा
इस्मत पर विश्वास की उत्पत्ति
इस्मते आइम्मा के कुछ विरोधियों का मानना है कि इस्लाम की शुरुआत में ऐसी राय मौजूद नहीं थी और इसे बाद में बनाया गया है। उदाहरण के लिए, इब्न तैमिया का मानना है कि इमाम की इस्मत में विश्वास अब्दुल्लाह बिन सबा से उत्पन्न हुआ था और यह उनकी विधर्म (बिदअत) है।[८३] नासिर अल-कफ़्फ़ारी के अनुसार, हिशाम बिन हकम इस तरह की धारणा बनाने वाले पहले व्यक्ति थे।[८४] शिया और इस्लामी विज्ञान के ईरानी शोधकर्ता सय्यद हुसैन मुदर्रेसी तबाताबाई ने अपनी पुस्तक मकतब दर फ़रआयंदे तकामुल (स्कूल इन द प्रोसेस ऑफ इवोल्यूशन) में इस्मत के विचार का मूल स्रोत हिशाम इब्न हकम को माना है।[८५]
शियो के प्रति अपने विरोध और हठ के बावजूद नासिर अल-क़फ़्फ़ारी वहाबी ने अब्दुल्ला बिन सबा को इस्मत के विचार का श्रेय ऐतिहासिक रूप से गलत माना और कहा कि मुझे अनुसंधान मे उनसे ऐसा कोई शब्द नहीं मिला।[८६] इस्मते आइम्मा और इस्मत शब्द यह हिशाम इब्न हकम के नवाचारों में से भी नहीं है, क्योंकि पैगंबर (स) और इमामो के कई कथनों में इमामों की इस्मत को निर्दिष्ट किया गया है।[८७] उदाहरण के लिए, एक रिवायत में इमाम अली (अ) ने,[८८] इमाम सज्जाद (अ) ने अपने पिता इमाम हुसैन (अ) से एक रिवायत में कहा कि पैगंबर (स) इमामों (अ) को निर्दोष (मासूम) घोषित किया।[८९] सुन्नी स्रोतों में भी अब्दुल्लाह बिन अब्बास ने पैगंबर (स) से वर्णन किया है कि मैं, अली, हसन और हुसैन और हुसैन के नौ बच्चे पवित्र और मासूम।[९०]
इस्मते आइम्मा और गुलुव्व
सऊदी अरब के वहाबी विद्वान नासिर अल-कफ़्फारी और कुछ अन्य लोगों[९१] ने अहले-बैत (अ) को मासूम मानते हुए गुलुव्व किया।[९२] शियो का मानना है कि अहले ग़ुलुव्व वह व्यक्ति है जो अहले-बैत (अ) के गुणों का वर्णन करने में संयम से परे जाता है, उन्हें दासता (उबूदीयत और बंदगी) की स्थिति से ऊपर उठाता है और उन्हें भगवान के विशेष गुणों का श्रेय देता है। लेकिन शिया अहले-बैत (अ) के बारे में ऐसी कोई मान्यता नहीं रखते है।[९३] शियो का मानना है कि इस्मत, अन्य संपूर्ण गुणों की तरह है; परन्तु परमेश्वर ने अपने सेवकों के एक समूह की सहायता की है जो मार्गदर्शक हैं। इसलिए, ईश्वर को इस्मत प्रदान करते समय, सेवकों के समूह के लिए भी यह गुण रखने में कोई बाधा नहीं है; चूँकि सभी मुसलमान पैगंबर (स) को मासूम मानते हैं।[९४]
इस्मते आइम्मा, करनी और कथनी
शिया इमामों के कुछ शब्दों को उनकी अचूकता (इस्मत) के साथ असंगत माना गया है। इमाम अली (अ) के इन शब्दों में से जिन्होंने अपने साथियों को संबोधित किया:
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शाफई संप्रदाय के फ़कीह और टिप्पणीकार शहाबुद्दीन आलूसी, अहमद अमीन मिस्री, भारत के सलफ़ी विद्वान अब्दुल अज़ीज़ देहलवी और नासिर अल-क़फ़्फ़ारी जैसे कुछ विद्वानो ने इस कथन को इमाम अली (अ) और इमामो की अचूकता (इस्मत) के साथ असंगत मानते हुए अचूकता को नकारने का एक कारण माना है।[९६]
अल्लामा मजलिसी[९७] और मुल्ला सालेह माजदंदरानी[९८] ने इमाम की अभिव्यक्ति की व्याख्या अपने साथियों को सच्चाई को स्वीकार करने में लचीला होने और यह स्वीकार करने के लिए प्रोत्साहित करने की उनकी विनम्रता के रूप में की है कि अचूकता ईश्वर की कृपाओं में से एक है। उन्होंने इमाम के शब्दों को पैगंबर यूसुफ (अ) के शब्दों:
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के समान माना है।[९९]
नासिर मकारिम शिराज़ी के अनुसार, वाक्य "فَإِنِّی لَسْتُ فِی نَفْسِـی بِفَوْقِ مَا أَنْ أُخْطِئَ फ़इन्नी लस्तो फ़ी नफसी बेफ़ौक़े मा अन उख़तेया", जो कि इस्मत के विरोधियों का तर्क है, إِلَّا أَنْ یَکْفِیَ اللهُ مِنْ نَفْسِی इल्ला अन यकफ़ेयल्लाहो मिन नफ़सी की व्याख्या इस वाक्यांश के साथ की जाती है। इमाम पहले वाक्य में कहते हैं कि मैं, एक इंसान के रूप में, गलतियों से सुरक्षित नहीं हूं; लेकिन दूसरे वाक्य से, वह समझ जाता है कि वह ईश्वर द्वारा संरक्षित और सुरक्षित है और कोई साधारण इंसान नहीं है। इसके अलावा, इमाम अपने साथियों को शिक्षित करने की स्थिति में होते है और उन्हें सिखाते है कि किसी भी क्षण त्रुटि की संभावना है, और वह विनम्रता से खुद को उनके बीच रखते है।[१००]
पाप की स्वीकारोक्ति और इमामो का इस्तिगफ़ार
इस्मत के विरोधियों ने शियो के इमामों द्वारा पाप की स्वीकारोक्ति और इस्तिग़फ़ार को उनकी अचूकता के साथ असंगत माना है।[१०१] अन्य बातों के अलावा, पैगंबर (स) की रिवायतो के अनुसार, उन्होंने दिन में सत्तर बार माफ़ी मांगते थे।सन्दर्भ त्रुटि: <ref>
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मुहम्मद तक़ी मजलिसी[१०२] के अनुसार, इमाम (अ) ने कथावाचकों और लोगों को सिखाने के उद्देश्य से माफ़ी मांगी, न कि पाप करने के लिए, जैसा कि कुछ सुन्नियों[१०३] ने पैगंबर (स) को मांगने के लिए सही ठहराते हुए कहा है कि कुछ लोग इमामो के क्षमा मांगने को "हसानात उल-अबरार सय्यआत उल-मुक़र्रेबीन" के अध्याय से मानते हुए कहते है कि अपने वरिष्ठों के कारण, जब भी वे लोगों की भलाई के लिए उन पदों से हट जाते हैं और सांसारिक कार्यों में लग जाते हैं तो उन्होंने खुद को पापी माना और माफी मांगी।[१०४] पैगंबर (स) से उद्धृत एक वाक्य, " इन्नहू लयुग़ानो अला क़ल्बी व इन्नी लअस्तगफ़ेरुल्लाहा कुल्ला यौमिन सब्ईना मर्रा (अनुवाद कभी-कभी मेरे दिल में जंग लग जाती है और मैं दिन में सत्तर बार माफ़ी मांगता हूं)" मे भी इसी बात का जिक्र किया है।[१०५] कुछ शोधकर्ताओं ने पश्चाताप और माफ़ी मांगना पैगंबर (स) और इमामों का इस दुनिया मे जीवन की खातिर ईश्वर के अलावा अन्य पर ध्यान देने को सबसे महत्वपूर्ण कारण माना है।[१०६] अल्लामा मजलिसी के अनुसार, चूंकि मासूमीन का ज्ञान उच्चतम स्तर पर है और वे दिव्य प्रकृति में डूबे हुए हैं, जब वे उनके कार्यों को देखते है तो वे उन्हें भगवान की महानता के सामने बहुत छोटा और पापपूर्ण मानते हैं। वे अल्लाह से पश्चाताप करते हैं और क्षमा मांगते हैं।[१०७] साथ ही, इमामों के माफ़ी मांगने को सही ठहराते हुए कहा जाता है कि उनकी माफ़ी में पाप को रोकने का पहलू होता है। सामान्य लोगों की क्षमा का अर्थ उनके द्वारा किए गए पापों और गलतियों के लिए क्षमा करना है; लेकिन इमामों की माफ़ी पाप के डर और उसे होने से रोकने के लिए है।[१०८]
मोनोग्राफ़ी
इमाम की इस्मत और इस्मते आइम्मा के बारे में कई किताबें और लेख प्रकाशित हुए हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं:
- जाफ़र सुब्हानी द्वारा लिखित पुज़ूहिशी दर शनाख्त व इस्मत इमाम, अस्तान कुद्स रिज़वी इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन, पहला संस्करण, 1389 शम्सी।
- मुहम्मद हुसैन फ़ारयाब द्वारा लिखित इस्मते इमाम दर तारीख तफक्क़ुर इमामीया ता पायाने कर्ने पंचुम हिजरी, इमाम खुमैनी शैक्षिक और अनुसंधान संस्थान (मोअस्सेसा आमूज़िशी व पुज़ूहिशी इमाम ख़ुमैनी), पहला संस्करण 1390 शम्सी।
- इब्राहीम सफर जादा द्वारा लिखित इस्मते इमामान अज़ दीदगाह अक़्ल व वही, क़ुम जाएर आस्ताने मुक़द्देसा, पहला संस्करण,1392 शम्सी।
- हुज्जत मगनेची द्वारा लिखित दालइल इस्मते इमाम अज़ दीदगाह अक़ल व नक़ल, तेहरान, नशर मश्अर, पहला संस्करण, 1391 शम्सी।
- रज़ा कारदान द्वारा लिखित इमामत व इस्मते इमामान दर क़ुरआन, मजमा जहानी अहले-बैत (अ) (अहले बैत वर्ल्ड असेंबली) , पहला संस्करण, 1385 शम्सी।
- अली रज़ा अज़ीमी फ़र द्वारा लिखित क़ुरआन व इस्मत अहले-बैत (अ), क़ुम, महर अमीर अल मोमिनीन (अ) पहला संस्करण, 1389 शम्सी।
फ़ुटनोट
- ↑ सुब्हानी, मंशूर जावेद, 1383 शम्सी, भाग 4, पेज 239
- ↑ देखेः तूसी, अल इक़्तेसाद फ़ीमा यताअल्लको बिल ऐतेक़ाद, 1496 हिजरी, पेज 305; अल्लामा हिल्ली, कश्फ अल मुराद, 1382 शम्सी, पेज 184; फय्याज़ लाहीजी, सरमाया ईमान, 1372 शम्सी, पेज 114; सुब्हानी, अल इलाहीयात, 1412 हिजरी, भाग 4, पेज 116
- ↑ मजलिसी, बिहार अल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 25, पजे 209, 350-351
- ↑ अल्लामा हिल्ली, कश्फ अल मुराद, 1382 शम्सी, पेज 184; जुरजानी, शरह अल मुआफ़िक़, 1325 हिजरी, भाग 8, पेज 351
- ↑ क़ाज़ी अब्दुल जब्बार, अल मुगनी, 1962-1965 ईस्वी, भाग 15, पेज 251,255, 256 भाग 20, पहला खंड, पेज 26, 84, 95, 95, 215 और 323; जुरजानी, शरह अल मुआफ़िक़, 1325 हिजरी, भाग 8, पेज 351; तफ़ताज़ानी, शरह अल मक़ासिद, 1409 हिजरी, भाग 5, पेज 249
- ↑ जुरजानी, शरह अल मुआफ़िक़, 1325 हिजरी, भाग 8, पेज 351; तफ़ताज़ानी, शरह अल मक़ासिद, 1409 हिजरी, भाग 5, पेज 249
- ↑ क़ाज़ी अब्दुल जब्बार, अल मुगनी, 1962-1965 ईस्वी, भाग 20 पहला खंड, पेज 201; जुरजानी, शरह अल मुआफ़िक़, 1325 हिजरी, भाग 8, पेज 350; तफ़ताज़ानी, शरह अल मक़ासिद, 1409 हिजरी, भाग 5, पेज 243-246
- ↑ सिब्त इब्न जौज़ी, तज़केरातुल ख्वास, भाग 2, पेज 519
- ↑ देखेः इब्ने तैमीया, मिनहाज अल सुन्ना अल नबावीया, 1406 हिजरी, भाग 2, पेज 429 भाग 3, पेज 381; इब्ने अब्दुल वहाब, रेसाला फ़ी अल रद्द अलल राफ़ेज़ा, रियाज़, पेज 28; क़फ़्फारी, उसूल मजहब अल शिया अल इमामीया, 1431 हिजरी, भाग 2, पेज 775
- ↑ इब्ने अबिल हदीद, शरह नहज अल बलागा, 1404 हिजरी, भाग 6, पेज 376-377
- ↑ सुब्हानी, मंशूर जावेद, 1383 शम्सी, भाग 4, पेज 244-245; देखेः बाज़ली, इलाही बूदने मंसबे इमामत, पेज 9-45
- ↑ मंशूर जावेद, 1383 शम्सी, भाग 4, पेज 239
- ↑ मंशूर जावेद, 1383 शम्सी, भाग 4, पेज 239-242
- ↑ मुबल्लग़ी, मबानी कलामी उसूल व बहरागीरी अज़ आन दर निगाह व रौशन इमाम ख़ुमैनी, पेज 149
- ↑ ज़ियाई फ़र, तासीर दीदगाह हाए कलामी बर उसूल फ़िक़्ह, पेज 323
- ↑ देखेः तूसी, अल तिबयान, दार अल एहया अल तुरास अल अरबी, भाग 3, पेज 236; तबरसी, मजमा अल बयान, 1372 शम्सी, भाग 3, पेज 100; बहरानी, मिनार अल हुदा, 1405 हिजरी, पेज 113-114; तबातबाई, अल मीज़ान, 1417 हिजरी, भाग 4, पजे 391
- ↑ सय्यद मुर्तज़ा, अल शाफी फ़िल इमामा, 1410 हिजरी, भाग 3, पेज 134; बहरानी, मिनार अल हुदा, 1405 हिजरी, पेज 646; सुब्हानी, इलाहीयात, 1412 हिजरी, भाग 4, पेज 125
- ↑ देखेः सय्यद मुर्तज़ा, अल शाफ़ी फ़िल इमामा, 1410 हिजरी, भाग 3, पेज 139; तूसी, अल तिबयान, दार एहया अल तुरास अल अरबी, भाग 1, पेज 449; फ़ाज़िल मिक़दाद, अल लवामेअ अल इलाहीया, 1422 हिजरी, पेज 332-333; मुज़फ्फर, दलाइल अल सिद्क़, 1422 हिजरी, भाग 4, पेज 220
- ↑ देखेः सदूक़, मआनी अल अखबार, 1403 हिजरी, पेज 132-133; ख़ज़ाज़ कुमी, किफायतुल असर, 1401 हिजरी, पेज 16, 19, 36, 38, 45, 76, 99 और 100-104; इब्ने उक़्दा कूफी, फ़ज़ाइल अमीर अल मोमीनीन (अ), 1424 हिजरी, पेज 154-155; बहरानी, मिनार अल हुदा, 1405 हिजरी, पेज 665-675
- ↑ देखेः सुब्हानी, मंशूरे जावैद, 1383 शम्सी, भाग 4, पेज 249
- ↑ रब्बानी गुलपाएगानी, इमामत दर बीनिश इस्लामी, 1387 शम्सी, पेज 214
- ↑ मुफ़ीद, तसहीह ऐतेक़ादात अल इमामीया, 1414 हिजरी, पेज 128; सय्यद मुर्तज़ा, रसाइल अल शरीफ़ अल मुर्तज़ा, 1405 हिजरी, भाग 3, पेज 326; अल्लामा हिल्ली, बाब आहदी अशर, 1365 शम्सी, पेज 9
- ↑ क़ाज़ी अब्दुल जबाबर, शरह अल उसूल अल ख़म्सा, 1422 हिजरी, पेज 529; तफ़ताज़ानी, शरह अल मकासिद, 1409 हिजरी, भाग 4, पेज 312-313
- ↑ फ़ाज़िल मिक़्दाद, अल लवामे अल इलाहीया, 1422 हिजरी, पेज 242; रब्बानी गुलपाएगानी, इमामत दर बीनिश इस्लामी, 1387 शम्सी, पेज 215
- ↑ सयय्द मुरर्ज़ा, रसाइल अल शरीफ अल मुर्तज़ा, 1405 हिजरी, भाग 3, पेज 326; अल्लामा हिल्ली, बाब आहदी अशर, 1365 शम्सी, पेज 9; फ़ाज़िल मिकदाद, अल लवामे अल इलाहीया, 1422 हिजरी, पेज 243
- ↑ जुरजानी, शरह अल मवाफ़िक़, 1325 हिजरी, भाग 8, पेज 280; तफ़ताज़ानी, शरह अल मकासिद, 1409 हिजरी, भाग 4, पेज 312-313
- ↑ तूसी, तलख़ीस अल मोहस्सिल, 1405 हिजरी, पेज 369; जुरजानी, शरह अल मुआफ़िक़, 1325 हिजरी, भाग 8, पेज 281; तबातबाई, अल मीज़ान, 1417 हिजरी, भाग 11, पेज 162 जवादी आमोली, वही व नबूवलत दर क़ुरआन, 1385 हिजरी, पेज 197; मिस्बहा यज़्दी, राह व राहनुमा शनासी, 1395 शम्सी, पेज 285-286
- ↑ रब्बानी गुलपाएगानी, इमामत दर बीनिश इस्लामी, 1387 शम्सी, पेज 216
- ↑ मुस्तफ़वी, अल तहक़ीक़ फ़ी कलमात अल क़ुरआन, 1402 हिजरी, भाग 8, पेज 154
- ↑ देखेः इब्ने फ़ारस, मोजम मकाईस अल लुग़ा, मकतब अल आलाम अल इस्लामी, भाग 4, पेज 331; राग़िब इस्फ़हानी, मुफरेदात अल फ़ाज़ अल क़ुरआन, दार कलम, पेज 569; जोहरी, अल सेहाह, 1407 हिजरी, भाग 5, पेज 1986; इब्ने मंज़ूर, लेसान अल अरब, दार सादिर, भाग 12, पेज 403-404
- ↑ सुब्हानी, मंशूर जावेद, 1383 शम्सी, भाग 4, पेज 3
- ↑ देखेः मुफ़ीद, तस्हीह ऐतेक़ादात अल इमामीया, 1414 हिजरी, पेज 129; अल्लामा हिल्ली, नहज अल हक़ व कश्फ़ अल सिद्क़, 1982 ईस्वी, पेज 164; फ़य्याज़ लाहीजी, सरमाया ईमान, 1372 शम्सी, पेज 115; मजलिसी, बिहार अल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 25, पेज 209,350-351
- ↑ अल्लामा हिल्ली, नहज अल हक व कश्फ अल सिद्क़, 1982 ईस्वी, पेज 164; अल्लामा मजलिसी, बिहार अल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 25, पेज 209, 350-351
- ↑ फय्याज़ लाहिजी, गौहर मुराद, 1383 शम्सी, पेज 468-469; फ़य्याज़ लाहिजी, सरमाया ईमान, 1372 शम्सी, पेज 115
- ↑ मुफ़ीद, तसहीह ऐतेक़ाद अल इमामीया, 1414 हिजरी, पेज 129 और 199
- ↑ जवादी आमोली, वही व नबूवत दर क़ुरआन, 1385 शम्सी, पेज 198-199
- ↑ जवादी आमोली, वही व नबूवत दर क़ुरआन, 1385 शम्सी, पेज 200
- ↑ रबाबनी गुलपाएगानी, इमामत दर बीनिश इस्लामी, 1387 शम्सी, पेज 220
- ↑ रबाबनी गुलपाएगानी, इमामत दर बीनिश इस्लामी, 1387 शम्सी, पेज 220
- ↑ अल्लामा हिल्ली, कश्फ अल मुराद, 1382 शम्सी, पेज 184; शेरानी, शरह फ़ारसी तजरीद अल ऐतेक़ाद, 1376 शम्सी, पेज 510
- ↑ अल्लामा हिल्ली, कश्फ अल मुराद, 1382 शम्सी, पेज 185
- ↑ अल्लामा हिल्ली, कश्फ अल मुराद, 1382 शम्सी, पेज 185
- ↑ अल्लामा हिल्ली, कश्फ अल मुराद, 1382 शम्सी, पेज 185; शेरानी, शरह फ़ारसी तजरीद अल ऐतेक़ाद, 1376 शम्सी, पेज 511
- ↑ सुब्हानी, मंशूर जावेद, 1383 शम्सी, भाग 4, पेज 251
- ↑ देखेः अल्लामा हिल्ली, कश्फ अल मुराद, 1382 शम्सी, पेज 196; शेरानी, शरह फ़ारसी तजरीद अल ऐतेक़ाद, 1376 शम्सी, पेज 274-280
- ↑ बहरानी, मिनार अल हुदा, 1405 हिजरी, पेज 664-665
- ↑ रब्बानी गुलपाएगानी, अफ़ज़लियत व इस्मत अहले-बैत(अ) दर आयत व रिवायात सलवात, पेज 9-26
- ↑ सूर ए बक़रा, आयत न 124
- ↑ मुज़फ़्फ़र, दलाइल अल सिद्क, 1422 हिजरी, भाग 4, पेज 220
- ↑ फ़ाज़िल मिक़दाद, अल लवामेअ अल इलाहीया, 1422 हिजरी, पेज 332
- ↑ देखेः सय्यद मुर्तज़ा, अल शाफ़ी फ़ी अल इमामा, 1410 हिजरी, भाग 3, पेज 139; तूसी, अल तिबयान फ़ी तफसीर अल क़ुरआन, दार एहया अल तुरास अल अरबी, भाग 1, पेज 449; फ़ाज़िल मिक़दाद, अल लवामेअ अल इलाहीया, 1422 हिजरी, पेज 332; मुज़फ़्फ़र, दलाइल अल सिद्क़, 1422 हिजरी, भाग 4, पेज 220
- ↑ सूर ए नेसा, आयत न 59
- ↑ देखेः तूसी, अल तिबयान फ़ी तफसीर अल क़ुरआन, दार एहया अल तुरास अल अरबी, भाग 3, पेज 236; तबरसी, मजमा अल बयान, 1372 शम्सी, भाग 3, पेज 100; बहरानी, मिनार अल हुदा, 1405 हिजरी, पेज 113-114; मुज़फ़्फ़र, दलाइल अल सिद्क़, 1422 हिजरी, भाग 4, पेज 221
- ↑ देखेः कुलैनी, काफ़ी, 1407 हिजरी, भाग 1, पेज 276, हदीस 1; सदूक़, कमालुद्दीन व तमामुन नेअमा, 1395 हिजरी, भाग 1, पेज 253; ख़ज़ाज़ क़ुमी, किफायतुल असर, 1401 हिजरी, पेज 53-54; बहरानी, गायतुल मराम, 1422 हिजरी, भाग 3, पेज 109-115
- ↑ देखेः तूसी, अल तिबयान फ़ी तफसीर अल क़ुरआन, दार एहया अल तुरास अल अरबी, भाग 3, पेज 236; तबरसी, मजमा अल बयान, 1372 शम्सी, भाग 3, पेज 100; बहरानी, गायतुल मराम, 1422 हिजरी, भाग 3, पेज 109
- ↑ सूर ए अहज़ाब, आयत न 33
- ↑ सय्यद मुर्तज़ा, अल शाफ़ी फ़ी अल इमामत, 1410 हिजरी, भाग 3, पेज 134-135; बहरानी, मिनार अल हुदा, 1405 हिजरी, पेज 464-467; सुब्हानी, अल इलाहीयात, 1412 हिजरी, भाग 4, पेज 125; हम्मूद, अल फ़वाइद अल बहइया, 1421 हिजरी, भाग 2, पेज 92-93
- ↑ फ़ारयाब, इस्मत इमाम दर तारीख तफ़क्कुर इमामीया, 1390 शम्सी, पेज 335-336
- ↑ देखेः बहरानी, गायतुल मराम, 1422 हिजरी, भाग 3, पेज 193-211 इस स्रोत मे 34 रिवायते शिया नकल हुई है।
- ↑ देखेः मुस्लिम नेशाबूरी, सहीह मुस्लिम, दार एहया अल तुरास अल अरबी, भाग 4, पेज 1883 हदीस 61; तिरमिज़ी, सुनन तिरमिज़ी, 1395 हिजरी, भाग 5, पेज 351, हदीस 3205 पेज 352, हदीस 3206 पेज 663, हदीस 3784; सय्यद हाशिम बहरानी ने गायतुल मराम किताब मे 41 रिवायते अहले सुन्नत से इस संबंध मे नकल की है। बहरानी, ग़ायतुल मराम, 1422 हिजरी, भाग 3, पेज 173-192
- ↑ बहरानी, ग़ायतुल मराम, 1422 हिजरी, भाग 3, पेज 193; तबातबाई, अल मीज़ान, 1417 हिजरी, भाग 16, पेज 311-312; सुब्हानी, मंशूरे जावैद, 1383 हिजरी, भाग 4, पेज 387-392
- ↑ देखेः ख़ज़ाज़ क़ुमी, किफायतुल असर, 1401 हिजरी, पेज 16-19, 29, 36-38, 45, 76, 99 और 100-104; इब्ने उक़्दा कूफ़ी, फ़जाइल अमीर अल मोमिनीन (अ), 1424 हिजरी, पेज 154-155; बहरानी, मिनार अल हुदा, 1423 हिजरी, भाग 1, पेज 665-673
- ↑ देखेः मुफ़ीद, मसाइल अल जारूदीया, 1413 हिजरी, पेज 42; इब्ने अतीया, अबहल इमदाद, 1423 हिजरी, भाग 1, पेज 131; बहरानी, मिनार अल हुदा, 1405 हिजरी, पेज 671; हम्मूद, अल फवाइद अल बहईया, 1421 हिजरी, भाग 2, पेज 95
- ↑ इब्ने अतीया, अबही अल मदाद, 1423 हिजरी, भाग 1, पेज 131; बहरानी, मिनार अल हुदा, 1405 हिजरी, पेज 671; हम्मूद, अल फ़वाइद अल बहईया, 1421 हिजरी, भाग 2, पेज 95
- ↑ हल्बी, अल काफ़ी फ़िल फ़िक़्ह, 1403 हिजरी, पेज 97
- ↑ देखेः ख़ज़ाज़ कुमी, किफायतुल असर, 1401 हिजरी, पेज 87, 92, 129, 137; सदूक़, ओयून अखबार अल रेज़ा, 1378 हिजरी, भाग 1, पेज 57
- ↑ मनावी, फ़ैज़ अल कदीर, 1356 हिजरी, भाग 3, पेज 14
- ↑ इब्ने हजर मीसमी, अल सवाइक़ अल मोहर्रेक़ा, 1417 हिजरी, भाग 2, पेज 442-443
- ↑ इब्ने अतीया, इबहा अल मदाद, 1423 हिजरी, भाग 1, पेज 130; बहरानी, मिनार अल हुदा, 1405 हिजरी, पेज 670
- ↑ बहरानी, अल हदाइक अल नाज़ेरा, दफ्तर नशर इस्लामी, भाग 9, पेज 360; माजंदरानी, शरह अल काफ़ी, 1382 हिजरी, भाग 6, पेज 124
- ↑ देखेः अल तफसीर मनसब एला अल इमाम अल हसन अल असकरी, 1409 हिजरी, पेज 546; सदूक़, ओयून अखबार अल रेजा (अ), 1378 हिजरी, भाग 2, पेज 27; तूसी, अल आमाली, 1414 हिजरी, पेज 259-279
- ↑ देखेः इब्ने हंबल, फ़ज़ाइल अल सहाबा, 1403 हिजरी, भाग 2, पेज 671; हाकिम नेशाबूरी, अल मुस्तदरक अला अल सहीहैन, 1411 हिजरी, भाग 2, पेज 486 भाग 3, पेज 517; तिबरानी, अल मोजम अल कबीर, नशर मकतब इब्ने तैमीया, भाग 7, पेज 22; इब्ने असाकिर, तारीख दमिश्क, 1415 हिजरी, भाग 40, पेज 20
- ↑ देखेः रब्बानी गुलपाएगानी वा फ़ातेमी निज़ाद, हदीस अमान व इमामत अहले-बैत (अ), पेज 31
- ↑ ख़ज़ाज़ कुमी, किफायतुल असर, 1401 हिजरी, पेज 29
- ↑ हाकिम नेशाबूरी, अल मुसतदरक अला अल सहीहैन, 1411 हिजरी, भाग 2, पेज 486
- ↑ देखेः सदूक़, ओयून अखबार अल रेज़ा (अ), 1378 हिजरी, भाग 2, पेज 27; सफ़्फ़ार, बसाइर अल दरजात, पेज 297; ख़ज़ाज़ कुमी, किफायतुल असर, 1401 हिजरी, पेज 34; तूसी, अल अमाली, 1414 हिजरी, पेज 60, 249, 259, 482, 513 और 733; बहरानी, गायतुल मराम, 1422 हिजरी, भाग 3, पेज 13-24
- ↑ देखेः इब्ने हंबल, फ़ज़ाइल अल सहाबा, 1403 हिजरी, भाग 2, पेज 785; हाकिम नेशाबूरी, अल मुस्तदरक अला अल सहीहैन, 1411 हिजरी, भाग 2, पेज 373 भाग 3, पेज 163; तिबरानी, अल मोजम अल कबीर, नशर मकतब इब्ने तैमीया, भाग 3, पेज 45; मनावी, फ़ैज़ अल क़दीर, 1356 हिजरी, भाग 2, पेज 519 भाग 5, पेज 517
- ↑ मूसवी शफ़ती, अल इमामा, 1411 हिजरी, पेज 209
- ↑ हाकिम नेशाबूरी, अल मुस्तदरक अला अल सहीहैन, 1411 हिजरी, भाग 3, पेज 163
- ↑ मीर हामिद हुसैन, अबक़ात अल अनवार, भाग 23, पेज 655-656
- ↑ ख़ज़ाज़ कुमी, किफायतुल असर, 1401 हिजरी, पेज 34, 210, 211 हल्बी, अल काफ़ी फिल फ़िक़्ह, 1403 हिजरी, पेज 97
- ↑ मनावी, फ़ैज़ अल क़दीर, 1356 हिजरी, भाग 2, पेज 519
- ↑ इब्ने तैमीया, मिनहाज अल सुन्ना अल नबावीया, 1406 हिजरी, भाग 7, पेज 220
- ↑ कफ़ारी, उसूल मजहब अल शिया अल इमामीया, 1431 हिजरी, भाग 2, पेज 777-779
- ↑ मुदर्रिस तबातबाई, मकतब दर फरआयंद तकामुल, पेज 39, बे नकल अज़ः क़ुरबानी मुबीन व मुहम्मद रेज़ाई, पुजूहिशी दर इस्मत इमामान, पेज 153
- ↑ कफ़ारी, उसूल मजहब अल शिया अल इमामीया, 1431 हिजरी, भाग 2, पेज 777
- ↑ क़ुरबानी मुबीन व मुहम्मद रेज़ाई, पुजूहिशी दर इस्मत इमामान, पेज 158
- ↑ देखेः सदूक़, अल खिसाल, 1362 शम्सी, पेज 154 ख़ज़ाज़ कुमी, किफायतुल असर, 1401 हिजरी, पेज 302-303
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- ↑ देखेः हमूई, फ़राइद अल सिमतैन, मोअस्सेसा अल महमूदी, भाग 2, पेज 133 और 313
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- ↑ देखेः आलूसी, रूह अल मआनी, 1415 हिजरी, भाग 11, पेज 198 अमीन, जुहा अल इस्लाम, मोअस्सेसा अल हिंदावी, भाग 3, पेज 861 देहलवी, तोहफा इस्ना अश्रीया, मकतब अल हकीकीया, पेज 373 और 463 कफ़ारी, उसूल मज़हब अल शिया अल इमामीया, 1431 हिजरी, भाग 2, पेज 793
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- ↑ बर रसी दलील इस्तिगफ़ार मासूमीन (अ) अज़ निगाह इमाम ख़ुमैनी दर परतो दुआ ए अरफ़ा इमाम हुसैन (अ) वेबगाह परताल इमाम ख़ुमैनी
स्रोत
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