अक़ील बिन अबी तालिब
पूरा नाम | अक़ील बिन अबी तालिब |
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उपनाम | अबू यज़ीद |
वंश | क़ुरैश |
प्रसिद्ध रिश्तेदार | अबू तालिब (पिता), इमाम अली (अ) (भाई), मुस्लिम (पुत्र) |
जन्म तिथि | आमुल फ़ील के दस वर्ष बाद |
जन्म का शहर | मक्का |
निवास स्थान | मक्का, मदीना |
मृत्यु का शहर | मुआविया के शासनकाल के दौरान, मदीना |
समाधि | बक़ीअ |
अक़ील बिन अबी तालिब, पैग़म्बर (स) के साथियों में से एक और इमाम अली (अ) के भाई थे। वह पैग़म्बर (स) के दफ़्न और हज़रत फ़ातिमा (स) की शव यात्रा और अंतिम संस्कार जैसी महत्वपूर्ण घटनाओं में इमाम अली (अ) के साथ थे।
इमाम अली (अ.स.) के शासनकाल के दौरान, अक़ील ने उनसे बैतुल माल से अपना क़र्ज़ चुकाने के लिए कहा, लेकिन उन्हें इमाम के विरोध का सामना करना पड़ा। इस घटना को अल-हदीदा अल-मुहमात के नाम से जाना जाता है।
अक़ील बद्र की लड़ाई में बहुदेववादी सेना में थे और मुसलमानों द्वारा बंदी बना लिये गये थे। कुछ लोगों का मानना है कि वह उससे पहले इस्लाम को स्वीकार कर चुके थे और उन्हे बद्र की लड़ाई में भाग लेने के लिए मजबूर किया गया था। इसी तरह से उन्होंने मोतह की लड़ाई में भी भाग लिया था, लेकिन बीमारी के कारण वह पैग़म्बर के अन्य अभियानों में उपस्थित नहीं थे।
अक़ील ने उमर बिन ख़त्ताब के शासनकाल के दौरान बैत अल-माल के विभाजन में भाग लिया। उनकी मुआविया से भी मुलाक़ात हुई, लेकिन उन्होंने हमेशा इमाम अली (अ) के प्रति अपनी वफ़ादारी बरक़रार रखी। अक़ील के कुछ बच्चे, जिनमें मुस्लिम भी शामिल थे, जिन्हे कूफ़ा में इमाम हुसैन (अ.स.) ने अपनी दूत बना कर भेजा था, कर्बला की घटना में शहीद हुए। उनका बक़ीअ में एक घर था, जहां चार शिया इमामों को दफ्न किया गया था। बक़ीअ पर वहाबियों के हमले में यह घर नष्ट हो गया है।
जीवनी
अक़ील हज़रत अबू तालिब और फ़ातेमा पुत्री असद के बेटे हैं।[१] कुछ रिपोर्टों के अनुसार, वह अपने भाई हज़रत अली[२] से बीस साल बड़े थे, इसके अनुसार उसका जन्म आम अल-फ़ील के दस साल बाद हुआ था।[३]
अक़ील का संबंध क़ुरैश जनजाति से था और वह वंशावली विशेषज्ञ और अरब इतिहास के जानकार थे।[४] साथ ही, उन्हें एक हाज़िर जवाब व्यक्ति के रूप में परिचित किया गया है।[५] सहाबा के बारे में लेखन के स्रोतों में, अक़ील का स्वर्गवास मुआविया बिन अबी सुफ़ियान के काल में[६] या यज़ीद की खिलाफ़त की शुरुआत (हर्रा घटना से पहले)[७] में उल्लेख किया गया है।[८]
इस्लाम अपनाना और युद्धों में भाग लेना
बद्र की लड़ाई के बाद अक़ील ने इस्लाम धर्म अपना लिया। तबक़ात अल-कुबरा में इब्न साद के अनुसार, अक़ील को बद्र की लड़ाई में बहुदेववादी सेना में भाग लेने के लिए मजबूर किया गया था और इस जंग में मुसलमानों ने उन्हे बंदी बना लिया गया था। चूँकि उसके पास पैसे नहीं थे, उसके चाचा अब्बास ने उनकी फिरौती का भुगतान किया और उन्हे रिहा कर दिया गया। इब्न क़ुतैबा के अनुसार, क़ैद से रिहा होने के तुरंत बाद अक़ील ने इस्लाम धर्म अपना लिया।[९] एक शिया इतिहासकार मोहम्मद सादिक़ नज्मी ने लिखा है कि अक़ील ने पहले ही मक्का में इस्लाम स्वीकार कर लिया था, लेकिन उन्होने अपने ईमान को छुपाया हुआ था और बद्र के युद्ध के बाद उन्होने इसे ज़ाहिर कर दिया।[१०] बद्र की लड़ाई से पहले, पैग़म्बर (स) ने भी मुसलमानों से कहा था कि अगर वे अब्बास, अक़ील, नौफ़ल बिन हारिस या बख्तरी को देखें तो उन्हें क़त्ल न करें। क्योंकि वे युद्ध में बलपूर्वक लाये गये हैं।[११]
कुछ सहाबा के बारे में लिखने वाले लेखकों ने लिखा है कि अक़ील हुदैबिया की शांति (हिजरी का 6वां वर्ष) के बाद मुसलमान बन गये थे।[१२] सहाबा के बारे में लिखने वाले सुन्नी लेखक इब्न हजर असक़लानी का भी मानना है कि अक़ील मक्का की विजय के दौरान (हिजरी का 8वां वर्ष) मुसलमान बने थे और उसके बाद उन्होने मदीने की ओर हिजरत की थी।[१३] इब्न शहर आशोब ने किताब मनाक़िब में यह भी उल्लेख किया गया है कि इमाम अली (अ.स.) की शादी के अवसर पर अक़ील, जो बद्र की लड़ाई के कुछ महीने बाद मदीना में हुई थी, मौजूद थे।[१४]
पैग़म्बर (स) ने अक़ील को संबोधित करते हुए कहा: मैं तुमसे दो तरह से प्यार करता हूँ; एक रिश्तेदार होने के कारण तुम प्रिय हो और दूसरे मेरे चाचा अबू तालिब के मन में तुम्हारे प्रति जो प्रेम था, उसके कारण प्रिय हो।[१५]
इब्न हजर असक़लानी के अनुसार, अक़ील ने मोता की लड़ाई में भाग लिया था, लेकिन मक्का की विजय, ताइफ़ की विजय, ख़ैबर की लड़ाई और हुनैन की लड़ाई में उनकी उपस्थिति की कोई रिपोर्ट नहीं है, और वह संभवतः बीमारी के कारण इन युद्धों में अनुपस्थित रहे थे।[१६] हालाँकि, ज़ुबैर बिन बकार द्वारा उल्लेख की गई एक हदीस के अनुसार वह उन लोगों में से एक थे जो हुनैन की लड़ाई में सेना के कुछ लोगों के फ़रार होने का बाद भी डटे रहे थे।[१७] पैग़म्बर (स) ने ख़ैबर की फ़सल का एक हिस्सा अकील के लिए आवंटित किया। ऐसा कहा जाता है कि चूंकि वह शारीरिक स्थिति के कारण युद्धों में भाग लेने में असमर्थ थे, इसलिए इस योगदान को उनके जीवन-यापन के खर्चों को पूरा करने के लिए दिया जाता था।[१८]
उनके माध्यम से पैग़म्बर (स) से कई हदीसों का उल्लेख किया गया हैं।[१९] अक़ील को उमर बिन ख़त्ताब के दौर में बैत अल-माल के विभाजन में सहयोग करने के लिए बुलाया गया था।[२०]
अक़ील इमाम अली (अ) के साथ
अक़ील पैग़म्बर (स) को इमाम अली (अ) द्वारा ग़ु्स्ल देते समय और उनके दफ़्न के दौरान मौजूद थे।[२१] इसी तरह से उन्होंने हज़रत फ़ातेमा (स) के अंतिम संस्कार और दफ़्न में भी भाग लिया था।[२२] जब उस्मान ने अबूज़र को रबज़ा की ओर निर्वासित कर दिया और लोगों को उनके साथ जाने से मना कर दिया, तो अक़ील इमाम अली (अ.स.), इमाम हसन (अ.स.), इमाम हुसैन (अ.स.) और अम्मार बिन यासिर के साथ मिलकर अबूज़र को छोड़ने के लिये गये।[२३]
ज़हाक के हमलों को रोकने में कूफ़ियों की विफलता के बाद इमाम अली (अ) को अक़ील का पत्र: उस जीवन और समय पर लानत हो जब ज़हाक ने तुम पर हमला किया, और यह ज़हाक एक दयनीय मनहूस व्यक्ति है। और जब मुझे इन चीज़ों के बारे में पता चला [ज़हाक के हमला और कूफियों की बेवफाई], तो मैंने सोचा कि आपके शियों और आपके सहयोगियों ने आपको छोड़ दिया है। हे मेरी माँ के बेटे! मुझे अपनी राय लिखो, [कि] यदि तुम मृत्यु चाहते हो, तो मैं तुम्हारे भतीजों और तुम्हारे पिता के बच्चों को तुम्हारे पास ले आऊंगा, क्योंकि जब तक तुम जीवित रहोगे हम तुम्हारे साथ जीवित रहेंगे, और जब तुम मरोगे तो हम भी तुम्हारे साथ मरेंगे। मैं भगवान की क़सम खाता हूँ! कि मैं तुम्हारे बाद एक पल भी दुनिया में नहीं रहना चाहता हूँ; और सर्वशक्तिमान ईश्वर की सौगंध! कि आपके बाद हमारा जीवन दुर्भाग्यपूर्ण, अप्रिय और नागवार है, और भगवान की शांति और दया और आशीर्वाद आप पर बने रहें। (नहज अल-सआदा, महमूदी, खंड 5, पृ. 209-300)
इस्लामी राजधानी के कूफ़ा में स्थानांतरित होने के बाद, अक़ील मदीना में रहे और इमाम अली (अ.स.) के किसी भी युद्ध में भाग नहीं लिया।[२४] मोहम्मद सादिक़ नज्मी के अनुसार, युद्धों में अक़ील की अनुपस्थिति का कारण मोते युद्ध के बाद उनमें पैदा हो जाने वाला अंधापन था।[२५]
हकमियत की घटना के बाद, मुआविया ने ज़हाक बिन क़ैस की कमान के तहत एक सेना इराक़ की ओर भेजी।[२६] हज़रत अली (अ.स.) ने हुज्र बिन अदी की कमान के तहत एक सेना को सुसज्जित किया और उसने ज़हाक की सेना को हरा दिया।[२७] अक़ील के पास जब इसकी ख़बर पहुँचे तो उन्होंने इमाम को एक पत्र लिखकर उनसे अपने कर्तव्य के बारे में पूछा।[२८] जवाब में, इमाम ने अक़ील को सूचित किया कि ज़हाक के विद्रोह को खारिज कर दिया गया है और उन्हे चिंता से मुक्त कर दिया।[२९]
इमाम अली की ख़िलाफ़त के अंत में लिखे गए एक पत्र में, अक़ील ने उनके प्रति अपनी भक्ति व्यक्त की और अब्दुल्लाह बिन अबी सरह के मुआविया के साथ जुड़ने को ईश्वर और पैग़म्बर से दुश्मनी माना और दिव्य प्रकाश को बुझाने का प्रयास माना। अक़ील के जवाब में, इमाम अली (अ.स.) ने मुआविया और धर्म के दुश्मनों के खिलाफ़ जिहाद जारी रखने पर ज़ोर दिया, और साथ ही उन्हें और उनके बच्चों को युद्ध के मोर्चों पर रहने से छूट दी।[३०]
बैतुल माल से ऋण भुगतान के लिए अनुरोध
- मुख्य लेख: हदीदा मोहमात की घटना
जब अली (अ.स.) कूफ़ा में खिलाफ़त के प्रभारी थे, तो अक़ील उनके पास आये और उनसे बैत अल-माल से अपना क़र्ज चुकाने के लिए कहा।[३१] इमाम अली (अ.स.) ने जलता हुआ लोहा अक़ील की ओर बढ़ाया और जब अक़ील ने ग़लती से इसे अपने हाथों में ले लिया तो उन्होने इसके गर्म होने के बारे में शिकायत की, तो इमाम ने उनसे कहा: यदि वह इस आग को सहन नहीं कर सकते, तो उन्हें लोगों के अधिकारों की उपेक्षा कैसे करनी चाहिए।[३२] यह घटना अल-हदीदा अल-मोहमा के नाम से जानी जाती है।[३३]
अक़ील की मुआविया से मुलाकात
अब्दुल हुसैन ज़रिंकूब: "भले ही मुआविया ने उन्हे (अक़ील) को बहुत सारा माल और पैसा दिया, फिर भी अक़ील ने कभी उससे अली (अ) के बारे में शिकायत नहीं की, न ही वह अली के विरोध में उससे सहमत हुए।"[३४]
रिपोर्टों के अनुसार, अक़ील ने मुआविया के साथ एक बैठक की थी।[३५] कुछ सुन्नी स्रोतों ने इस बैठक को अक़ील के क़र्ज चुकाने के अनुरोध के कारण[३६] या दोनों के बीच रिश्तेदारी के कारण बताया है।[३७] इस मुलाकात में मुआविया ने कहा कि अगर अक़ील को यह नहीं पता होता कि मैं उसके लिए उसके भाई से बेहतर हूं तो वह हमारे पास नहीं आता और उसे नही छोड़ कर आता। अक़ील ने उत्तर दिया कि उनका भाई धर्म में उनके लिए बेहतर है और मुआविया दुनिया के लिये बेहतर है। इसके अलावा, इमाम अली (अ) के बारे में मुआविया के सवाल के जवाब में अक़ील ने मुआविया की तुलना अबू सुफियान से की।
इब्न अबी अल-हदीद के अनुसार, सभी सिक़ह (मोतबर) वर्णनकर्ताओं का मानना है कि अक़ील इमाम अली (अ.स.) की शहादत के बाद सीरिया गए थे।[३८] इसके अलावा, मोहम्मद सादिक़ नज्मी, इमाम हसन (अ.स.), इब्न ज़ुबैर और मरवान जैसी शख्सियतों के बारे में अक़ील से मुआविया के सवालों का ज़िक्र करते हुए मानते हैं कि यह मुलाक़ात इमाम अली (अ.स.) की शहादत के बाद हुई थी।[३९] नज्मी के अनुसार, अक़ील की मुआविया से मुलाक़ात का मक़सद रिश्तेदारी या क़र्ज का अदा करना नहीं था, बल्कि इमाम अली (अ.स.) के प्रति वफादारी से संबंधित था।[४०]
अक़ील की औलाद
अक़ील ने मुआविया को उत्तर दिया जिसने उनसे अली (अ) के बारे में पूछा था: "ऐसा है जैसे कि वह पैग़म्बर हों और उनके सहाबी, सिवाय इसके कि पैग़म्बर उनमें न हों, और तुम अबू सुफियान और उसके साथियों की तरह हो, सिवाय इसके कि अबू सुफियान तुम्हारे बीच नहीं है।"[४१]
तीसरी शताब्दी के इतिहासकार इब्न साद ने मुस्लिम, यज़ीद, सईद, जाफ़र अकबर, अबू सईद अहवल, अब्दुल्लाह, अब्द अल-रहमान, अब्दुल्लाह असग़र, अली, जाफ़र असग़र, हमज़ा, उस्मान, उम्म कासिम, ज़ैनब और उम्म नोमान का उल्लेख उनके बच्चों के रूप में किया है।[४२] अन्य स्रोतों में उबैदुल्लाह, उम्म अब्दुल्लाह, मुहम्मद, फ़ातिमा, उम्म हानी, अस्मा, रमला और ज़ैनब का भी उल्लेख किया गया है।[४३]
कर्बला की घटना में उनके अनेक बच्चों की शहादत

उनके बेटों में जाफ़र, मुस्लिम, अब्दुल्लाह और अब्द अल-रहमान कर्बला की घटना में शहीद हो गए। बेशक, कुछ लोगों ने कहा है कि कर्बला की घटना में उनके छह बच्चे शहीद हुए है।[४४] शेख़ मुफ़ीद ने उम्म लुक़मान नाम की एक बेटी का भी ज़िक्र किया है, जो अपनी अन्य बहनों के साथ इमाम हुसैन (अ) की शहादत की ख़बर सुनकर रो रही थी और विलाप कर रही थी।[४५]
अक़ील के घर में बनी हाशिम बुजुर्गों का दफ़नाना
मुख्य लेख: अक़ील बिन अबी तालिब का घर
अक़ील के पास बक़ीअ में एक बड़ा घर था।[४६] समय के साथ साथ यह घर बनी हाशिम के लोगों के लिए एक दफ़्न स्थान बन गया[४७] और बाद में इसे बक़ीअ क़ब्रिस्तान में शामिल कर दिया गया। बक़ीअ में दफ़्न चार इमाम (इमाम हसन, इमाम सज्जाद, इमाम बाक़िर व इमाम सादिक़), अक़ील की मां फ़ातिमा बिन्ते असद और अब्बास बिन अब्द अल-मुत्तलिब[४८] उन लोगों में से हैं जिन्हें इस घर में दफ़्न किया गया था। उनकी क़ब्रों पर एक मक़बरा बनाया गया था; बक़ीअ पर वहाबी हमले में यह मक़बरा नष्ट हो गया।[४९]
फ़ुटनोट
- ↑ इब्न साद, तबक़ात अल-कुबरा, 1410 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 31।
- ↑ इब्न अब्द अल-बर्र, अल-इस्तिआब, 1412 एएच, खंड 3, पृष्ठ 1078।
- ↑ इब्न साद, तबक़ात अल-कुबरा, 1410 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 31।
- ↑ इब्न अब्द अल-बर्र, अल-इस्तिआब, 1412 एएच, खंड 3, पृष्ठ 1078।
- ↑ बालाज़री, अंसब अल-अशरफ, 1394 एएच, खंड 2, पृष्ठ 69।
- ↑ इब्न साद, तबक़ात अल-कुबरा, 1410 एएच, खंड 4, पृष्ठ 33; इब्न अब्द अल-बर्र, अल-एस्तियाब, 1412 एएच, खंड 3, पृष्ठ 1078।
- ↑ इब्न हजर, अल-इसाबा, 1415 एएच, खंड 4, पृष्ठ 439।
- ↑ समहुदी, वफ़ा अल-वफ़ा, 1419 एएच, खंड 3, पृष्ठ 82।
- ↑ इब्न कुतैबा, अल-मआरिफ़, 1960, पृ. 156
- ↑ नजमी, अकील बिन अबी तालिब दर मीज़ाने तारीख़े सहीह, 1375 शम्सी, पृष्ठ 49।
- ↑ बलअमी, तारीख़ नामा तबरी, 1373, खंड 3, पृष्ठ 128
- ↑ इब्न हजर, अल-इसाबा, 1415 एएच, खंड 4, पृष्ठ 438 देखें।
- ↑ इब्न हजर, अल-इसाबा, 1415 एएच, खंड 4, पृष्ठ 438।
- ↑ इब्न शहर आशोब, मनाकिब आले अबी तालिब (अ), 1379 एएच, खंड 3, पृष्ठ 354
- ↑ इब्न अब्द अल-बर्र, अल-इस्तिआब 1412 एएच, खंड 3, पृष्ठ 1078
- ↑ इब्न हजर, अल-इसाबा, 1415 एएच, खंड 4, पृष्ठ 438।
- ↑ इब्न हजर, अल-इसाबा, 1415 एएच, खंड 4, पृष्ठ 438।
- ↑ नजमी, "सीरिया की यात्रा करने और मुआविया से उपहार स्वीकार करने के लिए अकील की प्रेरणा", पृष्ठ 76।
- ↑ इब्न हजर असक्लानी, तहज़ीब अल-तहज़ीब, खंड 7, पृष्ठ 2542।
- ↑ याकूबी, तारिख़ याकूबी, 1378, खंड 2, पृष्ठ 40।
- ↑ अल-हिलाली, किताब सुलैम, 1405 एएच, पृष्ठ 665।
- ↑ मजलिसी, बिहार अल-अनवार, 1404 एएच, खंड 43, पृष्ठ 183।
- ↑ कुलैनी, अल-काफी, 1365, खंड 8, पृष्ठ 20।
- ↑ इब्न अबी अल-हदीद, नहज अल-बलाग़ा पर टिप्पणी, 1404 एएच, खंड 10, पृष्ठ 250।
- ↑ नजमी, "सीरिया की यात्रा करने और मुआविया से उपहार स्वीकार करने के लिए अकील की प्रेरणा", पृष्ठ 76।
- ↑ मकारिम शिराज़ी, पयामे इमाम अमीर अल-मोमिनीन (अ), 1386 शम्सी, खंड 10, पृष्ठ 55-56।
- ↑ मकारिम शिराज़ी, पयामे इमाम अमीर अल-मोमिनीन (अ), 1386 शम्सी, खंड 56।
- ↑ मकारिम शिराज़ी, पयामे इमाम अमीर अल-मोमिनीन (अ), 1386 शम्सी, खंड 56।
- ↑ मकारिम शिराज़ी, पयामे इमाम अमीर अल-मोमिनीन (अ), 1386 शम्सी, खंड 56।
- ↑ इब्न अबी अल-हदीद, नहज अल-बलाग़ा पर टिप्पणी, 1404 एएच, खंड 10, पृष्ठ 250; मदनी शिराज़ी, अल-दरजात अल-रफ़ीया, 1397 एएच, पृष्ठ 155।
- ↑ इब्न शहर आशोब, मनाक़िब, 1379 एएच, खंड 2, पृष्ठ 109।
- ↑ इब्न अबी अल-हदीद, नहज अल-बलाग़ा पर टिप्पणी, 1404 एएच, खंड 11, पृष्ठ 245; दैलमी, इरशाद अल-क़ुलूब, 1412 एएच, खंड 2, पृष्ठ 216।
- ↑ कोमी, सफ़ीना अल-बेहार, खंड 2, पृष्ठ 125।
- ↑ ज़र्रीनकूब, बामदाद इस्लाम, 1369, पृ. 135
- ↑ इब्न अब्द अल-बर्र, अल-एस्तियआब, 1412 एएच, खंड 3, पृष्ठ 1078 को देखें।
- ↑ इब्न हजर, अल-इसाबा, 1415 एएच, खंड 4, पृष्ठ 439।
- ↑ इब्न असीर, उस्द अल-ग़ाबा, 1409 एएच, खंड 3, पृ. 561-560।
- ↑ इब्न अबी अल-हदीद, नहज अल-बलाग़ा पर टिप्पणी, 1404 एएच, खंड 10, पृष्ठ 250।
- ↑ नजमी, अकील बिन अबी तालिब मिज़ाने तारिख़ सहीह, 1375 शम्सी, पृष्ठ 51।
- ↑ नजमी, "सीरिया की यात्रा करने और मुआविया से उपहार स्वीकार करने के लिए अकील की प्रेरणा", पीपी. 71-72।
- ↑ इब्न असीर, उस्द अल-ग़ाबा, 1409 एएच, खंड 3, पृ. 562-560।
- ↑ इब्न साद, तबक़ात अल-कुबरा, 1410 एएच, खंड 4, पृष्ठ 31-32।
- ↑ बलाज़री, अंसाब अल-अशराफ़, 1394, पृ. 69-70.
- ↑ बलाज़री, अंसाब अल-अशराफ़, 1394 एएच, खंड 2, पृ. 69-70।
- ↑ अल-मोफिद, अल-इरशाद, 1413 एएच, खंड 2, पृष्ठ 124।
- ↑ इब्न साद, तबक़ात अल-कुबरा, 1410 एएच, खंड 4, पृष्ठ 33।
- ↑ सम्हूदी, वफ़ा अल-वफ़ा, खंड 3, पृष्ठ 195।
- ↑ इब्न शबह, तारिख़ अल-मदीना अल-मुनव्वरा, दार अल-फ़िक्र की पांडुलिपियाँ, खंड 1, पृष्ठ 127।
- ↑ नज्मी, "बक़ीअ के इमामों के तीर्थ का इतिहास", पृष्ठ 175।
स्रोत
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- नज्मी, मोहम्मद सादिक़, "सही इतिहास की मात्रा में अक़ील बिन अबी तालिब", मिक़ात हज पत्रिका, संख्या 15, वसंत 1375, संख्या 15।
- नज्मी, मोहम्मद सादिक़, "सीरिया की यात्रा करने और मुआविया से उपहार स्वीकार करने के लिए अकील की प्रेरणा", मिक़ात हज, संख्या 16, ग्रीष्म 1375।
- याकूबी, अहमद बिन इसहाक़, तारिख़ याकूबी, मोहम्मद इब्राहिम आयती द्वारा अनुवादित, तेहरान, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक, 1378 शम्सी।