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बक़ीअ का विनाश एक ऐसी घटना को संदर्भित करता है जो 1344 हिजरी में मदीना की घेराबंदी के बाद हुई थी, और बक़ी के कब्रिस्तान और उसकी क़ब्रों को मदीना के मुफ्तियों के फ़तवे और सऊदी न्यायाधीश शेख़ अब्दुल्लाह अल-बलीहद द्वारा नष्ट कर दिया गया था; जिनमें चार शिया इमामों: इमाम हसन (अ), इमाम सज्जाद (अ), इमाम बाक़िर (अ) और इमाम सादिक़ (अ) की क़ब्रें भी शामिल थीं। वहाबियों ने दो बार, पहली बार 1220 हिजरी में और दूसरी बार 1344 हिजरी में, मदीना के 15 मुफ्तियों के फ़तवे पर भरोसा करते हुए, क़ब्रों पर निर्माण के सर्वसम्मत निषेध और उन्हें नष्ट करने की आवश्यकता के आधार पर, बक़ीअ के मज़ारों और स्मारकों को नष्ट कर दिया। बक़ी के विनाश पर ईरान, इराक़, पाकिस्तान, पूर्व सोवियत संघ आदि में बहुत से लोगों और विद्वानों ने प्रतिक्रिया व्यक्त की। मुस्लिम पवित्र स्थानों के विनाश के जवाब में, उस समय की ईरानी सरकार ने एक दिन के सार्वजनिक शोक की घोषणा की, और परिणामस्वरूप, नए स्थापित देश सऊदी अरब को मान्यता देने के काम को तीन साल तक स्थगित कर दिया गया।
विनाश के बाद, बक़ी कब्रिस्तान एक समतल भूमि में बदल गया, लेकिन चार शिया इमामों की क़ब्रों को पत्थरों से चिह्नित किया गया है। शिया विद्वानों और ईरानी सरकार द्वारा बक़ी में दफ़्न इमामों की क़ब्रों पर छतरी बनाने और इसी तरह से क़ब्रों के चारों ओर एक दीवार बनाने के प्रयास सऊदी अरब सरकार के प्रारंभिक समझौते (सहमति) के बावजूद भी, कभी सफल नहीं हुए।
शिया विद्वानों ने बक़ी के विनाश का विरोध करने के अलावा, वहाबीवाद के सिद्धांतों और पवित्र स्थानों के विनाश की आलोचना करते हुए रचनाएँ लिखी हैं; जिनमें सय्यद मोहसिन अमीन द्वारा लिखी गई किताब कश्फ़ अल-इरतीयाब और मुहम्मद जवाद बलाग़ी द्वारा लिखित दावा अल-हुदा शामिल हैं। कहा जाता है कि वहाबी पहला समूह था जिसने अपने धार्मिक विचारों के आधार पर धार्मिक स्थलों को नष्ट किया।
अन्य विशेष रुप से प्रदर्शित लेख: अल लोहूफ़ अला कत्लत तोफ़ूफ़ (किताब) – क़ासित बिन ज़ुहैर तग़लेबी – अलैहिस-सलाम
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- अम्बिया «वे लोग होते हैं जिनके द्वारा परमेश्वर मनुष्य को अपनी ओर आमंत्रित करता है।»
- हज़रत फ़ातिमा (स) के घर पर हमले की घटना «से तात्पर्य, उमर बिन ख़त्ताब और उसके साथियों की पैग़म्बर (स) की बेटी फ़ातिमा ज़हरा (स) के घर के सामने उपस्थिति से है»
- इमाम मूसा काज़िम अलैहिस सलाम «इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) के बाद शिया इसना अशरी के सातवें इमाम हैं।»
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- सक़ीफ़ा बनी साएदा की घटना « वर्ष 11 हिजरी में पैग़म्बरे इस्लाम (स) के स्वर्गवास के बाद पहली घटना थी, जिसमें अबू बक्र बिन अबी क़ुहाफ़ा को मुसलमानों के ख़लीफ़ा के रूप में चुना गया।»
- तक़य्या
- मदरसा जवादिया (भारत)
- मदरसा इमानिया (भारत)
- अज्जिल फ़रजहुम
- हबलुल्लाह
- शबे क़द्र की सौ रकअत नमाज़
- रोज़ा ए वेसाल
- सूर ए नाज़ेआत
- सूर ए ग़ाशिया
- नवरोज़
- सूर ए ज़िलज़ाल
- जनाबत का ग़ुस्ल
- रमज़ान की शबे इक्कीस
- कलीमुल्लाह (उपनाम)
- ख़लीलुल्लाह (उपनाम)
- बुक़्आ ए मुबारेका
- रजाअ बिन अबी ज़ह्हाक
- सूर ए हुमज़ा
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