मिर्ज़ा सलामत अली दबीर
भारतीय शिया कवि | |
पूरा नाम | मिर्ज़ा सलामत अली |
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उपनाम | दबीर |
जन्म तिथि | 1803 ईस्वी, |
जन्म स्थान | दिल्ली, भारत |
मृत्यु तिथि | 10 मार्च, 1875 ईस्वी, (29 मुहर्रम 1292 हिजरी) |
मृत्यु का शहर | लखनऊ |
समाधि स्थल | लखनऊ |
गुरू | मीर मुज़फ़्फ़र ज़मीर |
शिक्षा स्थान | भारत |
मिर्ज़ा सलामत अली दबीर, (1803-1875 ईस्वी) जो दबीर के नाम से प्रसिद्ध हैं भारत के एक प्रसिद्ध और जाने माने शिया कवि, मरसिया निगार और मरसिया ख़्वान थे, जिन्होंने अहले बैत (अ), विशेष रूप से इमाम हुसैन (अ) के बारे में उर्दू और फ़ारसी में मरिसये पढ़े हैं। आपने मरसिया के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आपने 11 वर्ष की उम्र में शेअर कहना शुरू कर दिया था। दबीर ने 3000 से अधिक मरसिये लिखे हैं। दबीर के अशआर में सुन्दर कल्पनाएँ थीं। वह रूपक (इस्तेआरा), उपमा (तश्बीह) और तम्सील में बहुत कुशल थे और बलीग़ शब्दों में काव्य (शेअर) कहते थे। दबीर भावनाओं को व्यक्त करने में माहिर थे और वे घटना का कठोर और हृदय विदारक शब्दों में वर्णन करते थे। शायरी में हदीस का उपयोग उनकी ख़ासियत थी। अधिकतर वह वुज़ू करने के बाद जानमाज़ पर बैठ जाते थे और मरसिया लिखते थे। उनकी शायरी से युक्त अनेक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।
दबीर की मृत्यु वर्ष 1875 ईस्वी में लखनऊ में हुई। और उन्हें वहीं दफ़नाया गया।
जीवनी
मिर्ज़ा सलामत अली दबीर, दबीर के नाम से प्रसिद्ध का जन्म 11 जमादी अल अव्वल वर्ष 1218 हिजरी तदनुसार 29 अगस्त वर्ष 1803 ईस्वी को भारत के दिल्ली के बल्ली मारान मोहल्ले में हुआ था।[१] दबीर के पिता का नाम मिर्ज़ा ग़ुलाम हुसैन था जिन्हें कागज़ फ़रोश भी लिखा गया है।[२] ऐसा कहा जाता है कि "दबीर" उपनाम उन्हें उनके शिक्षक मीर ज़मीर ने दिया था।[३] दबीर बचपन में ही अपने पिता के साथ दिल्ली से लखनऊ आए और इसी शहर में अपनी शिक्षा शुरू की।[४]
दिल्ली से लखनऊ प्रवास के बाद, वहाँ के माहौल ने मरसिया लिखने पर अधिक ध्यान दिलाया।[५] उन्होंने अरबी साहित्य, तर्क (मंतिक़), न्यायशास्त्र (फ़िक़्ह), व्याख्या (तफ़सीर), हिकमत और हदीस सीखी।[६] मौलाना ग़ुलाम ज़ामिन, मौलवी मिर्ज़ा काज़िम अली (ग़ुफ़रान मआब के विघार्थी), मुल्ला महदी माज़ंदरानी (कई रचनाओं के लेखक और महान मुज्तहिद) और मौलवी फ़िदा अली अख़्बारी उनके शिक्षक थे।[७] शायरी में उनके शिक्षक मीर मुज़फ़्फ़र ज़मीर थे।[८]
कुछ शोधकर्ताओं का कहना है कि दबीर ने 12 साल की उम्र में मरसिया पढ़ना शुरू कर दिया था।[९] दबीर को अच्छे व्यवहार वाला और मेहमाननवाज़ माना जाता है।[१०] वह अरबी और फ़ारसी में भी पारंगत थे और उन्होंने फ़ारसी में भी शेअर (कविता) कहे हैं।[स्रोत की आवश्यकता]
दबीर प्रसिद्ध मरसिया निगार मीर अनीस के समकालीन थे और अनीस की मृत्यु के तीन महीने और एक दिन बाद इनकी भी मृत्यु हो गई।[११] मिर्ज़ा दबीर की मृत्यु 72 वर्ष की आयु में 29 मुहर्रम 1292 हिजरी, 10 मार्च 1875 ईस्वी को लखनऊ में हुई और उन्हें उनके घर ही में दफ़नाया गया।[१२]
शायरी और मरसिया निगारी
दबीर का उपमहाद्वीप के शायरों में एक बड़ा स्थान प्राप्त था।[१३] उन्हें बचपन से ही शायरी का शौक था।[१४] उन्होंने लखनऊ के प्रसिद्ध शायर "मीर मुज़फ्फ़र ज़मीर" से शायरी सीखी।[१५] ऐसा कहा जाता है कि दबीर के पिता जब उन्हें एक शिष्य के रूप में मिर्ज़ा ज़मीर के पास ले गए, तो ज़मीर ने उनसे कुछ सुनाने के लिए कहा, दबीर ने यह क़ता सुनाया:
दबीर का क़ता:
किसी की उम्र का लबरेज़ जाम होता है
अजब सरा है ये दुनिया कि जिसमें शाम व सहर
किसा का कूच, किसी का मक़ाम होता है।
ज़मीर, दबीर की शिष्यता पर गर्व करते हुए कहते हैं:
अब कहते हैं उस्तादे दबीर आया है
कर दी मेरी पीरी ने मगर क़द्र सवा
अब क़ौल यही है कि सबका पीर आया है।[१६]दबीर ने विभिन्न विषयों पर कविताएँ (अशआर) लिखीं हैं, लेकिन उनकी प्रसिद्धि उनके शोकगीतों (मरसियों) में निहित है क्योंकि उनकी अधिकांश कविताओं (अशआरों) में कर्बला की घटना के शोकगीत शामिल हैं।[१७] सैकड़ों मरसियों के अलावा, उन्होंने ग़ज़ल रोबाई, क़ता, मसनवी, हम्द, नात, शेअर, नौहा, मन्क़बत, सलाम और ख़मसे भी कहे हैं लेकिन प्रसिद्धि मरसिया निगारी में है क्योंकि अधिकांश मरसियों में कर्बला की घटना का उल्लेख है।[१८] दबीर की विभिन्न विषयों पर 1333 से अधिक रोबाइयों को एकत्रित किया गया है।[१९]
उनकी 3316 मसनवी कविताएँ चौदह मासूमीन (अ) के प्रशंसा में दर्ज की गई हैं।[२०] आपके अशआर में एक क़ता बिना नुक़्ते के भी है जो "हम तालेअ हमा मुराद हम रसा हुवा" से शुरू होता है।[२१]
उन्होंने "अबवाब अल मसाएब" नामक एक पुस्तक लिखी जिसमें क़ुरआन के अनुसार हज़रत यूसुफ़ की कहानी का उल्लेख किया गया और उनके दर्द की तुलना इमाम हुसैन (अ) के कष्टों से की गई है।[२२] ऐसा कहा जाता है कि दबीर की कविताओं के तीन दीवान छपने से पहले ही आग में नष्ट हो गए थे।[२३] दबीर के मरसियों की संख्या 670 बताई गई है।[२४]
दबीर की कल्पनाशक्ति को असाधारण कहा गया है।[२५] वह रूपकों और उपमाओं में बहुत कुशल थे।[२६] और वह महान भावों और शब्दों के साथ कविता लिखते थे।[२७] इसी प्रकार दबीर को भावनाओं को व्यक्त करने में बहुत कुशल माना गया है।[२८] और घटना का वर्णन कठोर और हृदयविदारक शब्दों में करते थे।[२९] दबीर की कविताओं की एक और विशेषता कविता (अशआर) में हदीसों का उपयोग है।[३०] दबीर अधिकतर वुज़ू करने के बाद जानमाज़ पर बैठ जाते थे और मरसिया लिखते थे।[३१] उनकी ग़ज़लों की शैली मिर्ज़ा ग़ालिब के समान थी।[उद्धरण वांछित]
दबीर के कुछ प्रसिद्ध मरसिये निम्नलिखित हैं;
- किस शेर की आमद है कि रन कांप रहा है-
- दस्ते ख़ुदा का क़ुव्वते बाज़ू हुसैन है-
- जब चले यस्रब से सिब्ते मुस्तफ़ा सूए इराक़-
- बिल्क़ीस पासबान है, ये किस की जनाब है-
- पैदा शोआ ए मेहर की मिक़्राज़ जब हुई-
रचनाएं
- नादेराते मिर्ज़ा दबीर
- दफ़्तरे मातम 20 खंड[३२]
- दीवाने दबीर
- मिर्ज़ा दबीर का मरसिया
- मुस्हफ़े फ़ारसी, मजमूआ कलामे फ़ारसी
- मरसिया मिर्ज़ा दबीर, दो खंड
- रोबाइयाते दबीर, सय्यद सरफ़राज़ हुसैन
- अब्वाब अल मसाएब; यह दबीर द्वारा लिखित एक गद्य (नसरी) संकलन है।
- सब्ए मसानी
- सलके सलामे दबीर, सय्यद तक़ी आबेदी द्वारा संकलित कविताओं का संग्रह है।
दबीर और अनीस
- मुख्य लेख: मीर अनीस
दबीर और मीर अनीस समकालीन थे और दोनों शोकगीत (मरसिया) लिखने के लिए प्रसिद्ध थे, इसीलिए उर्दू साहित्य के इतिहास में दोनों की तुलना की गई है।[३३] इन दोनों का मरसिया लिखने का अंदाज़ और तरीक़ा एक दूसरे से बहुत अलग था, जिसके कारण उनके समर्थक भी अलग अलग थे और इस काल में लखनऊ दो भागों में विभाजित हो गया, जिन्हें दबीरी और अनीसी कहा जाता था।[३४] ऐसा कहा जाता है कि दबीर ने अनीस से पहले मरसिया लिखना शुरू कर दिया था, क्योंकि दबीर का नाम वर्ष 1240 हिजरी में प्रकाशित फ़साना ए अजाएब पुस्तक में उल्लिखित मरसिया लिखने वालों में आता है, जबकि मीर अनीस उस समय फ़ैज़ाबाद में रह रहे थे। अनीस से वर्णित है कि जब उन्होंने शहर लखनऊ में मरसिया पढ़ना शुरू किया तो दो लोग शोकगीत (मरसिया) के लिए प्रसिद्ध थे, एक मीर मेदारी साहब जो पार में रहते थे और दूसरे थे मिर्ज़ा सलामत अली दबीर।[३५] अनीस और दबीर की कविताओं में मुख्य अंतर शब्दों की रचना, शब्द की स्थिति का अंतर है।[३६] दबीर की तुलना में अनीस की कविताएं सहज और सरल मानी गई हैं।[३७] दबीर की कविताओं में फ़साहत और बलाग़त पाई जाती है।[३८] दबीर की कविताओं की संख्या अनीस की कविताओं की संख्या की तुलना में अधिक हैं।[३९] दबीर की कविताओं में, अनीस की तुलना में भारी और कठिन शब्दों का उपयोग थोड़ा अधिक किया गया है।[४०] हालाँकि, विश्वास (तअक़ीद), उपमा और रूपक दबीर की कविताओं की विशेषताओं में से हैं।[४१]
वैश्विक सेमिनार
"उर्दू साहित्य में अनीस और दबीर का स्थान" शीर्षक के तहत अनीस और दबीर अकादमी लंदन ने इन दोनों महान कवियों की जयंती पर एक वैश्विक सेमिनार का आयोजन किया, जिसमें पाकिस्तान और भारत सहित विभिन्न देशों के लेखकों और विद्वानों ने भाग लिया। 27 अक्टूबर 2009 ईस्वी को कराची में एक सेमिनार आयोजित किया गया जिसमें यह संक्षिप्त हुआ कि मीर अनीस और मिर्ज़ा दबीर ने दुनिया के किसी भी अन्य उर्दू शायर की तुलना में उर्दू शायरी में अधिक शब्दों का उपयोग किया है। कहा गया है कि नज़ीर अकबराबादी ने 8500 शब्दों का उपयोग किया, मिर्ज़ा दबीर ने 120,000 शब्दों का उपयोग किया जबकि मीर अनीस ने 86000 शब्दों का उपयोग किया है।
मोनोग्राफ़ी
- मवाज़ेना अनीस व दबीर (मौलाना शिबली नोमानी)
- अनीस और दबीर (डॉ. गोपीचंद नारंग)
- मुज्तहिदे नज़्म मिर्ज़ा दबीर (डॉ. सय्यद तक़ी आब्दी)
- मिर्ज़ा सलामत अली दबीर (एल्डर ए मेनू) (अंग्रेजी में)
- शम्स अल ज़ोहा (मौलवी सफ़दर हुसैन)
- शायरे आज़म मिर्ज़ा सलामत अली दबीर (अकबर हैदरी कश्मीरी)
- मिर्ज़ा सलामत अली, हयात और करानामे (मिर्ज़ा मुहम्मद ज़मान आज़ुर्दे)
- अनीस व दबीर हयात व ख़िदमात (सिद्दीक़ अल रहमान क़दवाई)
- हयाते दबीर दो खंड (सय्यद अफ़ज़ल हुसैन साबित)
- मुज्तहिदे नज़्म मिर्ज़ा दबीर (सय्यद तक़ी आब्दी)
फ़ुटनोट
- ↑ अकबर हैदरी, शायरे आज़म मिर्ज़ा सलामत अली दबीर, पृष्ठ 16।
- ↑ अकबर हैदरी, शायरे आज़म मिर्ज़ा सलामत अली दबीर, पृष्ठ 15।
- ↑ डॉ. क़मर अब्बास, मरसिया और अनीस व दबीर, अख़्बार जंग।
- ↑ मिर्ज़ा सलामत अली दबीर हयात और कारनामे, मिर्ज़ा मुहम्मद ज़मान आज़ुर्दे, पृष्ठ 54।
- ↑ मिर्ज़ा सलामत अली दबीर हयात और कारनामे, मिर्ज़ा मुहम्मद ज़मान आज़ुर्दे, पृष्ठ 17।
- ↑ अकबर हैदरी, शायरे आज़म मिर्ज़ा सलामत अली दबीर, पृष्ठ 16।
- ↑ अकबर हैदरी, शायरे आज़म मिर्ज़ा सलामत अली दबीर, पृष्ठ 16-17।
- ↑ अकबर हैदरी, शायरे आज़म मिर्ज़ा सलामत अली दबीर, पृष्ठ 16।
- ↑ मिर्ज़ा सलामत अली दबीर हयात और कारनामे, मिर्ज़ा मुहम्मद ज़मान आज़ुर्दे, पृष्ठ 17।
- ↑ सय्यद अफ़ज़ल हुसैन साबित रिज़वी लखनवी, हयाते दबीर, 1915 ईस्वी, पृष्ठ 58।
- ↑ अकबर हैदरी, शायरे आज़म मिर्ज़ा सलामत अली दबीर, पृष्ठ 22।
- ↑ अकबर हैदरी, शायरे आज़म मिर्ज़ा सलामत अली दबीर, पृष्ठ 22।
- ↑ बयात, "बर्रसी व तहलील इब्तेकाराते मरसिया सरायाने उर्दू", पृष्ठ 8।
- ↑ अकबर हैदरी, शायरे आज़म मिर्ज़ा सलामत अली दबीर, पृष्ठ 16।
- ↑ डॉ. क़मर अब्बास, मरसिया और अनीस व दबीर, अख़्बार जंग।
- ↑ मिर्ज़ा सलामत अली दबीर हयात और कारनामे, मिर्ज़ा मुहम्मद ज़मान आज़ुर्दे, पृष्ठ 211।
- ↑ प्रोफेसर शफ़क़त रिज़वी, दबीर का नअतिया कलाम, नअते कायनात वेबसाइट।
- ↑ प्रोफेसर शफ़क़त रिज़वी, दबीर का नअतिया कलाम, नअते कायनात वेबसाइट।
- ↑ प्रोफेसर शफ़क़त रिज़वी, दबीर का नअतिया कलाम, नअते कायनात वेबसाइट।
- ↑ प्रोफेसर शफ़क़त रिज़वी, दबीर का नअतिया कलाम, नअते कायनात वेबसाइट।
- ↑ प्रोफेसर शफ़क़त रिज़वी, दबीर का नअतिया कलाम, नअते कायनात वेबसाइट।
- ↑ प्रोफेसर शफ़क़त रिज़वी, दबीर का नअतिया कलाम, नअते कायनात वेबसाइट।
- ↑ अकबर हैदरी, शायरे आज़म मिर्ज़ा सलामत अली दबीर, पृष्ठ 19।
- ↑ प्रोफेसर शफ़क़त रिज़वी, दबीर का नअतिया कलाम, नअते कायनात वेबसाइट।
- ↑ मसीह अल ज़मान, उर्दू मरसिये का इर्तेक़ा, पृष्ठ 301-302।
- ↑ बयात, "बर्रसी व तहलील इब्तेकाराते मरसिया सरायाने उर्दू", पृष्ठ 8।
- ↑ मसीह अल ज़मान, उर्दू मरसिये का इर्तेक़ा, पृष्ठ 360।
- ↑ मिर्ज़ा सलामत अली दबीर हयात और कारनामे, मिर्ज़ा मुहम्मद ज़मान आज़ुर्दे, पृष्ठ 246।
- ↑ मौलवी चौधरी सय्यद नज़ीर उल हसन फ़ौक़ महाबनी, अल मीज़ान, फ़ैज़ आम अलीगढ़ द्वारा प्रकाशित 1914 ईस्वी, पृष्ठ 271।
- ↑ मसीह अल ज़मान, उर्दू मरसिये का इर्तेक़ा, पृष्ठ 360।
- ↑ बयात, "बर्रसी व तहलील इब्तेकाराते मरसिया सरायाने उर्दू", पृष्ठ 8।
- ↑ अकबर हैदरी, शायरे आज़म मिर्ज़ा सलामत अली दबीर, पृष्ठ 10।
- ↑ अकबर हैदरी, शायरे आज़म मिर्ज़ा सलामत अली दबीर, 1976 ईस्वी।
- ↑ अकबर हैदरी, शायरे आज़म मिर्ज़ा सलामत अली दबीर, उर्दू प्रकाशक नज़ीराबाद लखनऊ 1976 ईस्वी।
- ↑ शिब्ली नोमानी, मीर अनीस और मिर्ज़ा दबीर का मवाज़ना, अनीस और दबीर की किताब मवाज़ना से लिया गया।
- ↑ शिब्ली नोमानी, मीर अनीस और मिर्ज़ा दबीर का मवाज़ना, अनीस और दबीर की किताब मवाज़ना से लिया गया।
- ↑ शिब्ली नोमानी, मीर अनीस और मिर्ज़ा दबीर का मवाज़ना, अनीस और दबीर की किताब मवाज़ना से लिया गया।
- ↑ शिब्ली नोमानी, मीर अनीस और मिर्ज़ा दबीर का मवाज़ना, अनीस और दबीर की किताब मवाज़ना से लिया गया।
- ↑ शिब्ली नोमानी, मीर अनीस और मिर्ज़ा दबीर का मवाज़ना, अनीस और दबीर की किताब मवाज़ना से लिया गया।
- ↑ शिब्ली नोमानी, मीर अनीस और मिर्ज़ा दबीर का मवाज़ना, अनीस और दबीर की किताब मवाज़ना से लिया गया।
- ↑ शिब्ली नोमानी, मीर अनीस और मिर्ज़ा दबीर का मवाज़ना, अनीस और दबीर की किताब मवाज़ना से लिया गया।
स्रोत
- बयात, अली, "बर्रसी व तहलील इब्तेकाराते मरसिया सरायाने उर्दू", इंतेक़ादी शोध पत्रिका, वर्ष 12, संख्या 1, वसंत और ग्रीष्म 2011 ईस्वी।
- हैदरी कश्मीरी, अकबर, शायरे आज़म मिर्ज़ा सलामत अली दबीर, उर्दू प्रकाशक नज़ीराबाद, लखनऊ, 1976 ईस्वी।
- सय्यद अफ़ज़ल हुसैन साबित रिज़वी लखनवी, हयाते दबीर, जॉर्ज स्टीम प्रेस, लाहौर, 1915 ईस्वी।
- शिब्ली नोमानी, मवाज़ना अनीस व दबीर, अनवार अल मताबेअ, लखनऊ।
- प्रोफेसर शिफ़क़त रिज़वी, दबीर का नअतिया कलाम, नअते काएनात वेबसाइट।
- आब्दी, सय्यद तक़ी, मुसहफ़े फ़ारसी मिर्ज़ा दबीर, शाहिद प्रकाशन, नई दिल्ली, 2005 ईस्वी।
- मसीह अल ज़मान, उर्दू मरसिया का इर्तेक़ा।
- मिर्ज़ा मुहम्मद ज़मान आज़ुर्दे, मिर्ज़ा सलामत अली दबीर हयात और कारनामे, मिर्ज़ा प्रकाशन, कश्मीर, 1985 ईस्वी।
- मौलवी चौधरी सय्यद नज़ीर अल हसन फ़ौक महाबनी, अल मीज़ान, प्रकाशक फ़ैज़े आम अलीगढ़ 1914 ईस्वी।
- डॉ. क़मर अब्बास, मरसिया और अनीस व दबीर, जंग अख्बार, लेख प्रविष्टि की तारीख: सितंबर 2018, देखे जाने की तारीख: 18 जनवरी, 2023 ईस्वी।