मस्जिद जमकरान
- यह लेख जमकरान मस्जिद के बारे में है। जमकरान गांव के बारे में जानकारी के लिए जमकरान (गांव) वाला लेख देखें।
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स्थापना | चौथी चंद्र शताब्दी (मिर्ज़ा हुसैन नूरी के अनुसार) |
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उपयोगकर्ता | मस्जिद |
स्थान | क़ुम |
अन्य नाम | मस्जिद साहेब अल-ज़मान • मस्जिद क़दमगाह |
स्थिति | सक्रिय |
शैली | ईरानी इस्लामी |
पुनर्निर्माण | अलग-अलग अवधियों में |
मस्जिद जमकरान (अरबी: مسجد جمكران) क़ुम शहर के बाहरी इलाके में शियों के बारहवें इमाम, इमाम महदी (अ) से मंसूब एक मस्जिद है, जिसके बारे में कहा गया है कि इसे इमाम (अ) के आदेश पर चौथी शताब्दी हिजरी में बनाया गया था। शिया विद्वान मिर्ज़ा हुसैन नूरी के अनुसार, जमकरान मस्जिद का निर्माण इमाम महदी (अ) के आदेश और क़ुम के विद्वानों में से एक अबुल हसन नामक व्यक्ति द्वारा किया गया था। मुहद्दिस नूरी ने हसन बिन मुसला जमकारानी और हज़रत महदी (अ) की मुलाक़ात के बारे में बताया है और इस मुलाक़ात में इमाम ने मस्जिद जमकरान के निर्माण का आदेश दिया था।
मिर्ज़ा हुसैन नूरी ने इस घटना का वर्ष, 373 या 393 हिजरी माना है और उल्लिखित हदीस को शेख़ सदूक़ की किताब मोनिस अल हज़ीन से वर्णित किया है। हालाँकि, कुछ शोधकर्ताओं ने इस मस्जिद को इमाम महदी (अ) से मंसूब करने पर संदेह किया है और कुछ कारणों का उल्लेख किया है; उनमें से कुछ इस प्रकार है: उल्लिखित पुस्तक का उल्लेख शिया रेजाली पुस्तकों में नहीं हुआ है, और शेख़ सदूक़ का अन्य पुस्तकों में इस कहानी का उल्लेख नहीं करना। इस मस्जिद में, कुछ धार्मिक समारोह आयोजित किए जाते हैं, जैसे शाबान के मध्य का जश्न, दुआ ए नुदबा और दुआ ए तवस्सुल, और ईरान के विभिन्न क्षेत्रों और दुनिया के अन्य हिस्सों से लोग विशेष रूप से मंगलवार की रात जमकरान मस्जिद में शामिल होते हैं। कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि मंगलवार की रात को जमकरान मस्जिद की ज़ियारत करना इमाम महदी (अ) के हसन बिन मुसला जमकरानी को दिए गए आदेश के अनुसार है। और जमकरान मस्जिद में मंगलवार की रात मुहम्मद तक़ी बाफ़क़ी जैसे विद्वानों की उपस्थिति को इस परंपरा की समृद्धि का कारण माना गया है। जमकरान मस्जिद की विभिन्न अवधियों में मरम्मत और नवीनीकरण किया गया है; सबसे पुराना मौजूदा शिलालेख वर्ष 1167 हिजरी में इसकी मरम्मत का उल्लेख करता है। वर्ष 1357 शम्सी (1978) ईरान की इस्लामी क्रांति से पहले तक मस्जिद की इमारत छोटी थी, लेकिन उसके बाद इसका काफ़ी विकास हुआ है। जमकरान मस्जिद के परिसर में बाहरी क्षेत्र, मुख्य आंगन (सेहन), हॉल, मस्जिद का मक़ाम और प्रशासनिक भवन शामिल हैं। जमकरान मस्जिद के लिए, विशेष आमाल का उल्लेख किया गया है; जिसमें दो रकअत नमाज़े तहियते मस्जिद और दो रकअत नमाज़े इमाम ज़माना (अ) शामिल हैं। मुहद्दिस नूरी ने इन आमाल की निस्बत इमाम ज़माना (स) की ओर दी है और शेख़ अब्बास कुमी ने इन आमाल को मफ़ातीहुल जिनान में उद्धृत किया है।
स्थान एवं नामकरण
जमकरान मस्जिद क़ुम शहर के बाहरी इलाक़े में स्थित एक मस्जिद है और हज़रत मासूमा (स) के रौज़े से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है,[१] और यह मस्जिद हज़रत महदी (अ) से मंसूब है,[२] और जमकरान गांव के निकट होने के कारण इसे इस नाम से जाना जाता है।[३] अतीत में, संगमरमर से बनी इस मस्जिद को शियों के बारहवें इमाम के क़दमगाह[४] के रूप में जाना जाता था[५] इमाम ज़माना (अ) से मंसूब होने के कारण[६] इस मस्जिद को "मस्जिद ए साहिब अल ज़मान" भी कहा गया है।[७]
इमाम महदी (अ) से मंसूब
शिया मोहद्दिसों में से एक, मिर्ज़ा हुसैन नूरी (मृत्यु: 1320 हिजरी) के वर्णन के अनुसार, जमकरान मस्जिद का निर्माण चौथी शताब्दी हिजरी में इमाम महदी (अ) के आदेश और क़ुम के विद्वानों में से एक सय्यद अबुल हसन नामक व्यक्ति द्वारा किया गया था।[८] मोहद्दिस नूरी, हसन बिन मुसला जमकरानी द्वारा वर्णित करते हैं कि वर्ष 393 हिजरी में 17 रमज़ान मंगलवार की रात को, उस स्थान पर जहां बाद में जमकरान मस्जिद बनाई गई इमाम ज़माना (अ) से मुलाक़ात की और इमाम ने उन्हें कुछ निर्देश दिए: एक यह है कि हसन बिन मुस्लिम से कहा जाए कि वह इस जगह पर खेती न करें, जो एक महान भूमि है और उन्होंने इसे अपनी भूमि में शामिल कर लिया है। दूसरा यह कि सय्यद अबुल हसन (क़ुम के विद्वानों में से एक) से कहें कि हसन बिन मुस्लिम ने उस भूमि पर कई वर्षों तक खेती करके जो राशि अर्जित की है, उसे प्राप्त करके वहां एक मस्जिद का निर्माण करें।[९]
इसके आधार पर, इस घटना के बाद, सय्यद अबुल हसन ने इस जगह पर लकड़ी की छत के साथ एक मस्जिद का निर्माण किया, जिसकी सीमा इमाम ज़माना (अ) द्वारा निर्धारित की गई थी।[१०]
कहानी का उल्लेख करने वाले स्रोत
जमकरान मस्जिद के निर्माण की कहानी मोहद्दिस नूरी की किताबों जैसे कलमा ए तय्यबा,[११] नज्म अल साक़िब,[१२] मुस्तद्रक अल वसाएल[१३] और जन्नत अल मावा[१४] में वर्णित है। मोहद्दिस नूरी ने कहानी की निस्बत, किताबे तारीख़े क़ुम की ओर दी है और लिखा है कि तारीख़े क़ुम ने इस कहानी को शेख़ सदूक़ की पुस्तक मोनिस अल हज़ीन फ़ी मारेफ़त अल हक़ व अल यक़ीन से उद्धृत किया है।[१५] मोहद्दिस नूरी ने मुस्तद्रक अल वसाएल में यह भी कहा है कि उन्होंने इस कहानी को मुहम्मद अली बेहबहानी (मृत्यु: 1216 हिजरी) द्वारा लिखित पुस्तक नक़्द अल रेजाल के हाशिये में देखा है और उन्होंने इसकी निस्बत, मोनिस अल हज़ीन पुस्तक की ओर दी है।[१६]
संदेह
मोहद्दिस नूरी (मृत्यु: 1320 हिजरी) ने, अपकी कुछ रचनाओँ में, जमकरान मस्जिद का निर्माण वर्ष 393 हिजरी[१७] में और अन्य ने वर्ष 373 हिजरी में माना है।[१८] तारीख़े क़ुम पुस्तक के लेखक नासिर अल-शरिया ने सुझाव दिया है कि उल्लिखित घटना सौ साल पहले घटित हुई थी और यह वर्ष 293 हिजरी में घटित हुई थी।[१९] मोहद्दिस नूरी ने किताब नक़द अल रेजाल के हाशिये में भी इसी तारीख़ का उल्लेख किया है।[२०]
कुछ शोधकर्ताओं ने जमकरान मस्जिद की निस्बत इमाम ज़माना (अ) की ओर दिए जाने की प्रामाणिकता पर संदेह किया है; अली दवानी ने इस संदर्भ में कुछ आपत्ति व्यक्त की हैं जिनमें, रेजाल की किताबों में शेख़ सदूक़ की किताब मोनिस अल हज़ीन का उल्लेख न होना, किताब तारीख़े क़ुम के मौजूदा पाँच अध्यायों के अनुवाद में इस कहानी की अनुपस्थिति, और उल्लेख न होना, और शेख़ सदूक़ की अन्य रचनाओं में इस कहानी का उल्लेख न होना, शामिल हैं।[२१]
जमकरान मस्जिद के आमाल
- मुख्य लेख: इमाम ज़माना की नमाज़
जमकरान मस्जिद के लिए, कुछ विशेष आमाल का उल्लेख किया गया है; नमाज़े तहियते मस्जिद, और नमाज़े इमाम ज़माना (अ);[२२]
- दो रकअत नमाज़, नमाज़े इमाम ज़माना की नीयत से, इस नमाज़ की प्रत्येक रकअत में आयत ایاک نعبد و ایاک نستعی (ईयाका नाबोदो व ईयाका नसतईन)[२३] को सौ बार दोहराया जाता है, और उसके बाद सूर ए हम्द की अन्य आयतें फिर सूर ए तौहीद पढ़ी जाती है। फिर रुकूअ में سُبحانَ رَبّی العَظیمِ و بِحَمدِهِ (सुब्हाना रब्बी अल अज़ीमे व बेहम्देही) को सात बार पढ़ा जाता है और सजदे में سُبحانَ رَبّی الاَعلی و بِحَمدِهِ (सुब्हाना रब्बी अल आला व बेहम्देही) को सात बार पढ़ा जाता है। नमाज़ के सलाम के बाद एक बार لا اله الا الله (ला इलाहा इलल्लाह) पढ़ा जाता है, और फिर हज़रत ज़हरा की तस्बीह पढ़ी जाती है, और नमाज़ समाप्त होने के बाद सजदे में सौ बार सलवात भेज जाती है।[२४]
- दो रकअत नमाज़, तहीयते मस्जिद की नीयत से, प्रत्येक रकअत में, सूर ए हम्द को एक बार पढ़ा जाता है और सूर ए तौहीद को सात बार पढ़ा जाता है, और रुकूअ और सजदे के ज़िक्र को सात बार पढ़ा जाता है।[२५]
मोहद्दिस नूरी ने जमकरान मस्जिद के आमाल की निस्बत इमाम ज़माना (अ) की ओर दी है और उनसे उद्धृत किया है कि "लोग इस जगह की ओर आकर्षित होंगे और इस स्थान से प्रेम करेंगे"। जैसा कि उन्होंने लिखा है, जो व्यक्ति जमकरान मस्जिद में इन चार रकअत नमाज़ को पढ़ता है, वह काबा में नमाज़ पढ़ने वाले व्यक्ति के समान है।[२६] शेख़ अब्बास क़ुमी ने मफ़ातीहुल जिनान में अपने गुरु मोहद्दिस नूरी से इन आमाल को उद्धृत किया है।[२७] अली दवानी, एक इतिहासकार और शोधकर्ता, ने जमकरान मस्जिद की निस्बत इमाम महदी (अ) को देने पर संदेह किया है और इन आमाल की निस्बत उन्हें देने पर भी संदेह किया है।[२८]
मंगलवार की रात को मस्जिद की ज़ियारत करना
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वर्ष 1350 शम्सी (1971) में तारीख़े जामेअ क़ुम के लेखक अली असग़र फ़क़ीही,[२९] जमकरान मस्जिद को उस समय ईरान की सबसे खूबसूरत मस्जिदों में से एक मानते थे, क्योंकि विभिन्न शहरों के लोग मंगलवार की रात को इस मस्जिद में आते थे।[३०]
कुछ शोधकर्ताओं ने हसन बिन मुसला जमकरानी की रिवायत के अनुसार[३१] मंगलवार की रात को जमकरान मस्जिद की ज़ियारत पर ज़ोर देने पर विचार किया है;[३२] क्योंकि इमाम ज़माना (अ) से उनकी मुलाक़ात मंगलवार की रात को मस्जिद के स्थान पर हुई थी और उन्होंने उन्हें आदेश दिया था कि कल रात (मंगलवार की रात) एक झुंड से एक बकरा लेकर आओ और उसे वहीं ज़िब्ह करो और बुधवार को उसका मांस बीमारों को दान करो।[३३]
तारीख़े जामेअ क़ुम के लेखक ने जमकरान मस्जिद के फलने-फूलने (रौनक़) का श्रेय आयतुल्लाह मुहम्मद तक़ी यज़्दी बाफ़क़ी को दिया है, जो छात्रों (तुल्लाब) के एक समूह के साथ मंगलवार शाम को पैदल जमकरान मस्जिद जाते थे और वहां मग़रिब और ईशा की नमाज़ पढ़ते थे और रात से लेकर सुबह तक वहां इबादत करते थे।[३४] नासिर अल शरिया के अनुसार, क़ुम के लोग पहले बृहस्पतिवार (जुमेरात) की रात को इस मस्जिद में इबादत करते थे।[३५]
जमकरान मस्जिद कुछ धार्मिक समारोहों जैसे 15 शाबान के जश्न का स्थान है।[३६] इसके अलावा, बृहस्पतिवार (जुमेरात) की रात को और शुक्रवार को, दुआ ए कुमैल और दुआ ए नुदबा और मंगलवार की रात को, दुआ ए तवस्सुल इस मस्जिद में आयोजित की जाती है।[३७] और विभिन्न क्षेत्रों से लोग, विशेष रूप से वे उल्लिखित दिनों में मस्जिद में आते हैं।[३८] ऐसा कहा गया है कि तीर्थयात्रियों की संख्या हर साल 1.5 मिलियन लोगों तक पहुंचती है।[३९]
इतिहास और विकास
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मिर्ज़ा हुसैन नूरी द्वारा वर्णित कहानी के आधार पर, जमकरान मस्जिद का निर्माण चौथी शताब्दी हिजरी में हुआ था।[४०] सय्यद हुसैन मुदर्रेसी तबातबाई ने सुझाव दिया कि जमकरान मस्जिद वही ख़त्ताब असदी मस्जिद है, जो तारीख़े क़ुम के अनुसार, दूसरी शताब्दी हिजरी के शुरुआत में जमकरान गांव में बनाई गई थी।[४१] कुछ अन्य शोधकर्ता जमकरान मस्जिद को उल्लिखित मस्जिद (ख़त्ताब असदी) से अलग मानते हैं और मोहद्दिस नूरी के वर्णन के आधार पर, उनका मानना है कि इसका निर्माण चौथी शताब्दी हिजरी में किया गया था।[४२]
हालाँकि, ऐतिहासिक स्रोतों में जमकरान मस्जिद के बारे में कोई जानकारी नहीं है। केवल ख़ुलासा अल तवारीख़ पुस्तक में वर्ष 986 हिजरी की घटनाओं का वर्णन करते हुए मीर ग़ियासुद्दीन मुहम्मद मीर मीरान की जीवनी में उल्लेख किया गया है कि जब वह क़ुम के लनजरुदे गांव में रुके थे तो कभी-कभी वह जमकरान में उस समय के मक़ामे इमाम ज़मान कहे जाने वाले स्थान पर एतेकाफ़ करते थे।[४३] एक समकालीन इतिहासकार अली असग़र फ़क़ीही के अनुसार, उस स्थान से उनका तात्पर्य जमकरान मस्जिद से था।[४४]
मस्जिद की मरम्मत
जमकरान मस्जिद की विभिन्न अवधियों में मरम्मत और नवीनीकरण किया गया है; वर्ष 1167 हिजरी के एक शिलालेख के अनुसार, मिर्ज़ा अली अकबर जमकरानी ने वर्ष 1167 हिजरी में मस्जिद की मरम्मत की थी। इसके अलावा, उल्लेखित शिलालेख के अनुसार, उस समय इमारत में 17 x 13 मीटर के आंगन के दक्षिण में 17 x 5 मीटर के आयाम वाली एक मस्जिद शामिल थी।[४५] बाद में, अली क़ुली जमकरानी ने मस्जिद के आंगन के एक तरफ़ का निर्माण शुरू किया, लेकिन मुज़फ्फ़रुद्दीन शाह क़ाचार (1285-1232 शम्सी) के शासनकाल की शुरुआत में अली असग़र खान अताबेक द्वारा इसकी मरम्मत कराने तक आंगन आधा-अधूरा ही रहा।[४६] पहलवी काल के दौरान क़ुम के विद्वानों में से एक, मुहम्मद तक़ी बाफ़क़ी (मृत्यु 1325 शम्सी) ने मस्जिद में मरम्मत की।[४७] इसके अलावा, वर्ष 1332 शम्सी (1953) में सय्यद मुहम्मद आगा ज़ादेह नाम के एक व्यक्ति ने मस्जिद के कुछ हिस्सों की मरम्मत की और इसके आंगन के दक्षिण में एक हॉल बनाया।[४८]
मस्जिद के दक्षिणपूर्वी हिस्से में 17 मीटर ऊंची ईंटों की एक मीनार थी, जिसे एक शिलालेख के आधार पर वर्ष 1318 शम्सी (1939) में बनाया गया था।[४९]
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इस्लामी गणतंत्र में इमारत में विकास
वर्ष 1357 शम्सी (1978) में ईरान में इस्लामी क्रांति के बाद, क़ुम हौज़ ए इल्मिया की प्रबंधन परिषद ने जमकरान मस्जिद के न्यासी बोर्ड की शुरुआत की और एदारे औकाफ़ व उमूरे ख़ैरीया ने इसके मामलों की देखरेख की ज़िम्मेदारी संभाली।[५०] और मस्जिद के विकास में तेज़ी आई। उसके बाद, 40 हेक्टेयर ज़मीन जमकरान मस्जिद को दी गई, जिसमें से 5.5 हेक्टेयर ज़मीन और मुख्य आंगन (सेहन) के लिए विशिष्ट किया गया।[५१] इसके अलावा, 1382 शम्सी (2003) में, एक योजना को मंजूरी दी गई थी जिसमें जमकरान मस्जिद के लिए लगभग 250 हेक्टेयर ज़मीन पर विचार किया गया था। और इसका लगभग 30,000 वर्ग मीटर मक़ामे मस्जिद और हॉल से विशिष्ट था, और अन्य आंगन और इमारत और सेवा भवनों से संबंधित था। इस योजना में, मक़ामे मस्जिद को छोड़कर मस्जिद की इमारतों का नवीनीकरण किया गया।[५२]
जमकरान मस्जिद का प्रबंधन विभिन्न दफ़्तरों जैसे समारोह और प्रचार के दफ़्तर, जनसंपर्क, पुस्तकालय, प्रकाशन, करामात और प्रसाद और उपहारों के दफ़्तरों द्वारा किया जाता है। सय्यद अली अकबर उजाक़ निजाद मस्जिद के प्रभारी हैं।[५३] उनसे पहले, मुहम्मद हुसैन रहीमयान और अबुल क़ासिम वाफ़ी जमकरान मस्जिद के प्रभारी थे।[५४]
वास्तुकला एवं भवन
जमकरान मस्जिद परिसर में विभिन्न भाग जैसे मक़ामे मस्जिद, हॉल, मुख्य आंगन और संगठन की इमारतें शामिल हैं।
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मक़ामे मस्जिद
जमकरान मस्जिद की मुख्य इमारत के हॉल को मक़ामे मस्जिद कहा जाता है और इसका क्षेत्रफल लगभग 1100 वर्ग मीटर है। मस्जिद का प्रवेश द्वार तीन प्रवेश द्वारों के माध्यम से हॉल की ओर जाता है, और बरामदे के चारों ओर 60 मीटर की ऊंचाई वाली दो मीनारें हैं। हॉल में आठ स्तंभ हैं, जिन पर मस्जिद का गुंबद एक धातु संरचना द्वारा समर्थित है। गुंबद के नीचे 23 खिड़कियाँ हैं जिसके माध्यम से हॉल में रौशनी आती है। गुंबद की बाहरी सतह पर भी फ़िरोज़ी टाइलें लगी हुई हैं जिसे "या महदी अदरिकनी" शिलालेखों द्वारा सजाया गया है। गुंबद की अंदरुनी सतह को ईंटों के साथ संयुक्त मोज़ेक टाइलों से सजाया गया है। इसके अलावा, स्तंभ, मेहराब और हॉल के प्रवेश द्वार बरामदे और इसके चारों ओर की दो मीनारों को मोज़ेक टाइलों और मोकरान के काम से सजाया गया है।[५५]
मुख्य आंगन
जमकरान मस्जिद में छह प्रवेश द्वार हैं, उत्तर-पूर्वी प्रवेश द्वार सीधे मस्जिद के मुख्य हॉल की ओर जाता है।[५६] जमकरान मस्जिद के अधिकारियों के अनुसार, आंगन के चारों ओर मीनारें बनाई गई हैं, उनकी संख्या 14 तक पहुंच जाएगी।[५७]
हॉल
पश्चिमी और पूर्वी हॉल: मक़ामे मस्जिद के दोनों किनारों पर दो हॉल हैं, जिनमें से प्रत्येक 4,000 वर्ग मीटर के बुनियादी ढांचे के साथ दो मंजिलों पर बनाया गया है। इन हॉल के भीतरी भाग दर्पणयुक्त (शीशे के कार्य हुए हैं) हैं और प्रत्येक में दो समान गुंबद हैं।[५८]
अरीज़े का कुआँ
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- मुख्य लेख: अरीज़े का कुआँ
मस्जिद के बाहरी क्षेत्र में, और मक़ामे मस्जिद की इमारत के पीछे, एक कुआँ है जिसे अरीज़ा कुँए के नाम से जाना जाता है।[५९] कुछ शिया, इस कुएँ की पवित्रता (तक़द्दुस) में विश्वास (एतेक़ाद) करते हुए, इमाम ज़माना के लिए अपना अरीज़ा और पत्र डालते हैं।[६०] कुछ शोधकर्ताओं के अनुसार, कुएं के लिए कोई दस्तावेज़ नहीं मिला है, और मराजे ए तक़लीद में से कोई भी इसे पवित्र (तक़द्दुस) नहीं मानता है।[६१] मराजे ए तक़लीद में से ईरान के इस्लामी गणराज्य के नेता आयतुल्लाह ख़ामेनेई[६२] और आयतुल्लाह मकारिम शिराज़ी[६३] ने पत्र (अरीज़ा) लिखकर उक्त कुएं में डालने पर आपत्ति जताई है। यह भी कहा गया है कि मस्जिद की मेहराब के बीच में एक छोटा सा कुआँ है, जहाँ से कुछ तीर्थयात्री आशीर्वाद के लिए मिट्टी ले जाते थे। मस्जिद के मेहराब में पत्थर का एक टुकड़ा भी था जिसमें एक बड़ा क़दम (पैर) का निशान खुदा हुआ था, जिसे वर्ष 1350 हिजरी में आयतुल्लाह फैज़ क़ुमी (मृत्यु 1370 हिजरी) के आदेश से विधर्म (बिदअत) का संकेत मानते हुए नष्ट कर दिया गया था।[६४]
कुछ समाचार साइटों के अनुसार, यह कुआँ नवंबर 2020 में बंद कर दिया गया था।[६५]
अधिक पढ़ें
किताब मस्जिद ए मुक़द्दस जमकरान: साहिब अल ज़मान का प्रकटीकरण (तजलीलगाह), जाफ़र मीर अज़ीमी ने सबसे पहले इस पुस्तक में जमकरान मस्जिद के इतिहास पर चर्चा की है[६६] फिर, उन्होंने इसके बारे में कुछ विद्वानों और मराजे ए तक़लीद के कथनों का उल्लेख किया है।[६७] निम्नलिखित में, उन्होंने इस मस्जिद में हुए कुछ करामात के साथ-साथ मस्जिद के सम्मान में कविताएँ भी एकत्र की हैं।[६८] जमकरान मस्जिद प्रकाशन ने इस पुस्तक को कई बार प्रकाशित किया है।
सम्बंधित लेख
फ़ुटनोट
- ↑ ख़ान मुहम्मदी, “चाहे अरीज़ा जमकरान; अज़ ख़ोराफ़े ता वाक़ेईयत", पृष्ठ 162।
- ↑ नूरी, जन्नत अल मावा, 1427 हिजरी, पृष्ठ 54-58; नूरी, नज्म अल साकिब, 1384 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 454-458; नूरी, कलमा ए तय्यबा, 1380 शम्सी, पृष्ठ 682-686।
- ↑ अरब, जमकरान मस्जिद प्रविष्टि, पृष्ठ 747।
- ↑ नासिर अल-शरिया, तारीख़े क़ुम, 1383 शम्सी, पृष्ठ 233।
- ↑ फ़ैज़ क़ुमी, गंजीन ए आसारे क़ुम, 1349 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 667, दानिशनामे जहाने इस्लाम से उद्धृत, जमकरान मस्जिद प्रविष्टि, पृष्ठ 747।
- ↑ अरब, जमकरन मस्जिद प्रवेश द्वार, पृष्ठ 747।
- ↑ मुदर्रेसी तबातबाई, तुर्बते पाकान, 1335 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 164।
- ↑ नूरी, जन्नत अल मावा, 1427 हिजरी, पृष्ठ 54-58।
- ↑ नूरी, जन्नत अल मावा, 1427 हिजरी, पृष्ठ 54-58।
- ↑ नूरी, जन्नत अल मावा, 1427 हिजरी, पृष्ठ 54-58; नूरी, नज्म अल साकिब, 1384 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 454-458; नूरी, कलमा ए तय्यबा, 1380 शम्सी, पृष्ठ 682-686।
- ↑ नूरी, कलमा ए तय्यबा, 1380 शम्सी, पृष्ठ 682-686।
- ↑ नूरी, नज्म अल साकिब, 1384 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 454-458।
- ↑ नूरी, मुस्तद्रक अल वसाएल, 148 एएच, खंड 3, पृष्ठ 447।
- ↑ नूरी, जन्नत अल मावा, 1427 हिजरी, पृष्ठ 54-58।
- ↑ नूरी, जन्नत अल मावा, 1427 हिजरी, पृष्ठ 54।
- ↑ नूरी, मुस्तद्रक अल वसाएल, 148 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 432 और 447।
- ↑ नूरी, जन्नत अल मावा, 1427 हिजरी, पृष्ठ 54-58, पृष्ठ 383-388; नूरी, कलमा ए तय्यबा, 2013, पृष्ठ 682-686।
- ↑ नूरी, मुस्तद्रक अल वसाएल, 148 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 447; नूरी, नज्म अल साकिब, 1384 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 458।
- ↑ नासिर अल-शरिया, तारीख़े क़ुम, 1383 शम्सी, पृष्ठ 239।
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