अली बिन जाफ़र सादिक़ (अ)

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अली बिन जाफ़र सादिक़ (अ)
अली बिन जाफ़र सादिक़ (अ) का मज़ार, क़ुम
उपाधिअबुल हसन
मृत्युवर्ष 210 हिजरी या 220 हिजरी या 250 हिजरी
दफ़्न स्थानक़ुम, मदीना, या समनान
निवास स्थानमदीना
उपनामओरैज़ी
पिताइमाम जाफ़र सादिक़ (अ)
बच्चे13 बेटे और 7 बेटीयां
दफन निर्देशांक34°37′53″N 50°53′51″E / 34.631324°N 50.897615°E / 34.631324; 50.897615

अली बिन जाफ़र अल-सादिक़ (अरबी: علي بن جعفر الصادق) जिन्हे अली ओरैज़ी के नाम से जाना जाता है, इमाम जाफ़र सादिक़ (अ.स.) के सबसे छोटे बेटे हैं। उन्होंने अपने भाई, इमाम मूसा बिन जाफ़र (अ) और इमाम अली रज़ा (अ) से हदीसें बयान की है। आपने अपने पीछे मसायलो अली बिन जाफ़र नामक एक किताब छोड़ी हैं जिसमें उन्होंने अपने प्रश्न और इमाम मूसा काज़िम (अ) के उत्तर बयान किए हैं। दक्षिण पूर्व एशिया में रहने वाले हुसैनी सादात का वंश अली बिन जाफ़र तक पहुचता हैं। ओरैज़ (मदीना), क़ुम और सेमनान (ईरान) में मकबरों को उनसे संबंधित बताया जाता है।

जन्म

अली बिन जाफ़र, इमाम सादिक़ (अ) के बेटों में से एक हैं। उनकी मां उम्मे वलद थीं।[१] कहा जाता है कि वह दो साल के थे जब इमाम सादिक़ (अ) (शहादत 148 हिजरी) शहीद हुए थे।[२] किताब तन्कीह अल-मक़ाल के अनुसार, उन्होंने अपने पिता से एक हदीस बयान की है।[३] किताब अनवारे पराकंदे में, जो ईरान में दफ़्न किए गए इमाम ज़ादों के बारे में लिखी गई थी, उनके पिता की हदीस के आधार पर, यह अनुमान लगाया गया है कि उनका जन्म 134 या 135 हिजरी में हुआ था।[४]

उनका उपनाम (कुन्नियत) अबुल हसन है।[५] वह ओरैज़ [नोट 1][६] के निवासी थे और इस कारण से उन्हें ओरैज़ी[७] और उनके बच्चों और पोते को ओरैज़ियून [८] कहा जाता था।

पत्नी और बच्चे

शेख़ अब्बास क़ुम्मी ने मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह बाहिर की बेटी फ़ातेमा को उनकी पत्नी के रूप में दर्ज किया है।[९] अली बिन जाफ़र के लिए तेरह बेटे और सात बेटियाँ दर्ज की गई हैं:[१०]

उनके पुत्रों के नाम मुहम्मद, हसन, अहमद शारानी, ​​जाफ़र असग़र, हुसैन, जाफ़र अकबर, ईसा, क़ासिम, अली, अब्दुल्लाह, मुहम्मद असग़र, अहमद असग़र और मोहसिन थे।[११] कुलसूम, अलिया, मलीका, ख़दीजा, हमदूना, ज़ैनब और फ़ातिमा उनकी बेटियाँ थीं।[१२]

दक्षिण पूर्व एशिया के हुसैनी सादात के वंशज

ऐसा कहा जाता है कि सादात हुसैनी, जो इंडोनेशिया, मलेशिया, सिंगापुर और दक्षिणी थाईलैंड के देशों में दक्षिण पूर्व एशिया में बिखरे हुए हैं, वह आपके पड़पोते अहमद बिन ईसा बिन मुहम्मद के वंशज हैं।[१३] उन्होंने उन क्षेत्रों में इस्लाम के प्रसार में भूमिका निभाई है।[१४] उनके वंशजों के इस क्षेत्र में प्रवास करने का लक्ष्य इस्लाम और व्यापार को बढ़ावा देना, ज़िक्र हुआ है।[१५] मुहद्दिस क़ोमी ने मुहम्मद, अहमद शारानी, ​​हसन और जाफ़र नाम के उनके चार बेटों से उनका वंश आगे बढने की बात कही है।[१६]

इमामों के साथ

मृत्यु के समय अली बिन जाफ़र का कथन:

मेरे पिता (इमाम सादिक़ (अ)) ने अपनी शहादत से एक साल पहले, जब उनके अहले बैत उनके साथ इकट्ठे थे, आपने कहा: "सर्वशक्तिमान ईश्वर ने अपने बंदों को इमामत के स्वीकार करने जितना किसी भी चीज़ पर ज़ोर नहीं दिया; परन्तु बंदों ने किसी भी चीज़े के बारे में इतना इन्कार और झुठलाने का प्रयत्न नही किया।"

मसायलो अली बिन जाफ़र व मुसतदरकातोहा, पेज 319

शेख़ तूसी ने इमाम मूसा बिन जाफ़र (अ)[१७] और इमाम रज़ा (अ)[१८] के सहाबियों में अली बिन जाफ़र का उल्लेख किया है। उनसे बयान हुआ है कि वह इमाम काज़िम (अ) के साथ चार बार उमरा करने गये है।[१९]

हसन बिन फ़ज़्ज़ाल ने एक हदीस सुनाई है जिसमें इमाम काज़िम (अ) ने इमाम रज़ा (अ) के इमामत को अली बिन जाफ़र के लिये बयान किया और उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया।[२०] इसी तरह से, उस हदीस में जिसे ज़करिया बिन यहया द्वारा सुनाया गया है, अली बिन जाफ़र ने इमाम सज्जाद (अ) के नाती हसन बिन हुसैन बिन अली बिन हुसैन से बातचीत में इमाम रज़ा (अ) की इमामत की ओर इशारा किया है।[२१] किताब अल-काफ़ी में उल्लेख की गई हदीस के अनुसार, वह इमाम मुहम्मद तक़ी (अ) का बचपन में बहुत सम्मान किया करते थे, और जब उनके साथियों ने उनसे इसका कारण पूछा, तो उन्होंने जवाब में उनकी इमामत की ओर इशारा किया।[२२]

अली बिन जाफर ने इमाम अली नक़ी (अ) को भी देखा है और उन ही के जीवन काल में उनकी वफ़ात भी हुई है।[२३]

रेजाल शास्त्र में स्थान

इब्न दाऊद ने अपनी पुस्तक अल रेजाल में उनका उल्लेख प्रशंसनीय लोगों में किया है।[२४] शेख़ मुफ़ीद ने भी कहा है कि उन्होंने इमाम काज़िम (अ) से बहुत सी हदीसें सुनाईं हैं और उनके पास (हदीस बयान करने का) एक दृढ़ तरीक़ा था और वह बड़े ज्ञानी और महान धर्मपरायणता थे।[२५] शेख़ तूसी ने भी उन्हें भरोसेमंद (सिक़ह) बताया है।[२६]

अली बिन जाफ़र ने अपने पिता[२७] इमाम काज़िम (अ) [२८] और इमाम रज़ा (अ)[२९] से हदीसें बयान की हैं। इसके अलावा, उन्होंने ज़ैद बिन अली के पुत्र हुसैन ज़ुल-दमआ, सुफियान बिन उयैना, मुहम्मद बिन मुस्लिम, अब्दुल मलिक बिन क़ुदामा और इमाम सादिक़ (अ) के ग़ुलाम मुतअब से भी हदीसें बयान की हैं।[३०]

हदीसों के रावी

किताब मसायलो अली बिन जाफ़र के शोध संस्करण में, उनसे हदीस बयान करने वाले 43 हदीसकारों के नामों का उल्लेख किया गया है, जिनमें अहमद बिन अबी नस्र बज़ंती, अब्दुल अज़ीम हसनी, हुसैन बिन मूसा बिन जाफ़र (अ) और यूनुस बिन अब्दुल रहमान शामिल हैं।[३१]

रचनाएं

सेमनान में अली बिन जाफ़र का मक़बरा
मदीने के अरीज़ गांव में अली बिन जाफ़र (अ) की मस्जिद और समाधि

अहमद बिन अली नज्जाशी ने हलाल और हराम मुद्दों के विषय पर अली बिन जाफ़र की एक किताब उल्लेख की है।[३२] इसके अलावा, शेख़ तूसी ने उन्हें "अल-मनासिक" और "मसाएलु लेअख़ीयेह मुसा अल-काज़िम" नामों से दो पुस्तकों का श्रेय दिया है। [३३] उन्होने अपनी किताब मसायल में उनके सवालों और इमाम काज़िम (अ) के जवाबों को बयान किया है।[३४] मोअस्सेसए अहले-बैत ने इन सवालों और अली इब्न जाफ़र की अन्य हदीसों को "मसायलो अली बिन जाफ़र व मोस्तद्रकतोहा" किताब में एकत्रित किया है।[३५]

वफ़ात

अली बिन जाफ़र की मृत्यु तिथि के बारे में विभिन्न तिथियों का उल्लेख किया गया है। शम्स अल-दीन ज़हबी[३६] और अब्दुल्लाह याफ़ई [३७], 8 वीं चंद्र शताब्दी में सुन्नी इतिहासकारों में से, 210 हिजरी की घटनाओं में उनकी मृत्यु का उल्लेख किया है; हालांकि, अनवारे पराकंदा किताब में, इमाम जवाद (अ) (शहादत 220 हिजरी) से उनके हदीस बयान करने पर भरोसा करते हुए, यह ज्ञात है कि उनकी मृत्यु 220 हिजरी में और 85 वर्ष की आयु में हुई थी।[३८]

संबंद्धित मक़बरे

ओरैज़, क़ुम और सेमनान में अली बिन जाफ़र (अ.स.) के लिए तीन क़ब्रों का उल्लेख किया गया है:

  • ओरैज़: मुहद्दिस नूरी (1254-1320 हिजरी) ने किताब मुस्तदरक अल-वसायल के ख़ातेमा में मदीना के पास ओरैज़ में अली बिन जाफर की क़ब्र को माना है और कहा है कि इसमें एक मक़बरा भी बना हुआ है। [३९] 2001 में, सऊदी सरकार ने इस मक़बरे को नष्ट कर दिया।[४०] आयान अल-शिया पुस्तक के लेखक सय्यद मोहसिन अमीन आमेली, और इसी तरह से अल्लामा हसनज़ादे आमोली[४१] ने भी उनकी क़ब्र को मदीना के इलाक़े ओरैज़ में माना है।
  • क़ुम: मुहम्मद तक़ी मजलिसी (1070-1003 हिजरी), शिया विद्वानों में से एक, ने उन्हें क़ुम में बाग़े बहिश्त में दफ़्न माना है। उनके अनुसार, अली बिन जाफ़र क़ुम के लोगों के निमंत्रण पर इस शहर में चले गए थे।[४२] मुहद्दिसे क़ुम्मी लिखते हैं: अली बिन जाफ़र की कब्र क़ुम या ओरैज़ (मदीने के पास) में होने का संदेह है, यह संभव है कि जो क़ब्र क़ुम में है, वह अली बिन जाफ़र के पोते की हो, जिनका नाम जाफ़र है और जो उनके सबसे छोटे बेटे के बेटे हैं।[४३] मुद्रासी तबताबाई ने भी उन्हें क़ुम में दफ़्न माना है।[४४] मुहद्दिसे नूरी ने सुझाव दिया है कि क़ुम में उनसे संबंधित क़ब्र उनके किसी पोते या जाफ़र कज़्ज़ाब के वंशजों में से किसी की क़ब्र हो सकती है।[४५]
  • ईरान के सेमनान शहर में भी अली बिन जाफ़र के नाम पर एक मक़बरा और रौज़ा मौजूद है।[४६]

फ़ुटनोट

  1. इब्ने तबातबा, मुंनतकेला अल-तलिबियाह द्वारा वर्णित, 2008, पेज 224।
  2. क़ोमी, तारीख़े क़ुम, 1361, पृष्ठ 224।
  3. ममक़ानी, तनक़ीह अल-मक़ाल, अहल-अल-बैत संस्थान, परिचय 2, पृष्ठ 638।
  4. फ़कीह बहरुल उलूम, अनवार पराकंदा, 1376, खंड 1, पृष्ठ 238।
  5. नज्जाशी, रेजाल अल-नज्जाशी, अल-नशर अल-इस्लामी पब्लिशिंग हाउस, पृष्ठ 251।
  6. नज्जाशी, रेजाल अल-नज्जाशी, अल-नशर अल-इस्लामी पब्लिशिंग हाउस, पृष्ठ 251।
  7. क़ोमी, तारीख़े क़ुम, 1361, पृष्ठ 224।
  8. इब्न अंबा, उमदा अल तालिब, 1380 हिजरी, पृष्ठ 242।
  9. क़ुम्मी, मुंतहल-अमाल, खंड 2, पृष्ठ 59।
  10. रजाई, अल-मोअक़्क़ेबून, 2005, खंड 2, पेज 409-410।
  11. रजाई, अल-मोअक़्क़ेबून, 2005, खंड 2, पेज 409-410।
  12. रजाई, अल-मोअक़्क़ेबून, 2005, खंड 2, पृष्ठ 410।
  13. बारानी, "दक्षिणपूर्व एशिया में इस्लाम के प्रवेश और प्रसार में शिया धर्म की भूमिका की जांच", पृष्ठ 254।
  14. बारानी, "दक्षिणपूर्व एशिया में इस्लाम के प्रवेश और प्रसार में शिया धर्म की भूमिका की जांच", पृष्ठ 254।
  15. बारानी, "दक्षिण पूर्व एशिया में इस्लाम के प्रवेश और प्रसार में शिया धर्म की भूमिका की जांच", पृष्ठ 257।
  16. क़ुम्मी, मुंतहल-आमाल, इस्लामिक इस्लामिक बुक स्टोर, 1331, खंड 2, पृष्ठ 110।
  17. क़ुम्मी, मुंतहल-अमाल, 1331, खंड 2, पृष्ठ 110।
  18. तूसी, रेजाल अल-तूसी, 1373, पृष्ठ 339।
  19. तूसी, रेजाल अल-तूसी, 1373, पृष्ठ 339
  20. हिमयरी, क़ुर्ब अल-असनाद, अहल-अल-बैत फाउंडेशन, पृष्ठ 486।
  21. शेख़ तूसी, किताब अल-ग़ैबा, 1411 हिजरी, पृष्ठ 42।
  22. मोफिद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 275।
  23. कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 322।
  24. इब्न अंबा, उमदा अल तालिब, 1380, पृष्ठ 241।
  25. इब्न दाऊद, किताब अल-रेजाल, 1392 हिजरी, पृष्ठ 136।
  26. शेख मोफिद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 214।
  27. तूसी, अल फ़हरिस्त, 1417 हिजरी, पृष्ठ 151।
  28. बरखी, रेजाल, तेहरान विश्वविद्यालय, पृष्ठ 25; तूसी, रेजाल अल-तूसी, 1373, पृष्ठ 339।
  29. तूसी, रेजाल अल-तूसी, 1373, पृष्ठ 339।
  30. अली बिन जाफर, हौज़ा सूचना आधार।
  31. अली बिन जाफ़र, अली बिन जाफ़र की समस्याएं और उनकी व्याख्या, इमाम अल-रज़ा (अ.स.) का अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन, पेज 55-57।
  32. नज्जाशी, रेजाल अल-नज्जाशी, अल-नशर अल-इस्लामी पब्लिशिंग हाउस, पेज 252.
  33. तूसी, अल फ़हरिस्त, 1417 हिजरी, पृष्ठ 151।
  34. तूसी, रेजाल अल-तूसी, 1373, पृष्ठ 339।
  35. "अली बिन जाफ़र (अ.स.) मसायल व मुसतदरकात", हदीस नेट।
  36. ज़हबी, अल-एबर फी ख़बर, दार अल-किताब अल-इल्मिया, खंड 1, पृष्ठ 282।
  37. याफ़ई, मरया अल-जेनान, 1417 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 37।
  38. फ़कीह बहरुल उलूम, अनवार पराकंदा, 1376, खंड 1, पेज 238-239।
  39. मुहद्दिथ नूरी, ख़ातेमा मुस्तद्रक अल-वसाइल, अहल-अल-बैत लहिया अल-तरथ फाउंडेशन, खंड 4, पृष्ठ 487।
  40. "ओरैज़ नुज़हत गाहे इमामाम (अ) व मक़बरा ए अली बिन जाफ़र (अ), पृष्ठ 131।
  41. https://library.tebyan.net/fa/Viewer/Text/68405/6
  42. मजलिसी, रौज़तुल-मुत्तक़ीन, 1406 हिजरी, खंड 14, पृष्ठ 191।
  43. क़ुम्मी, मुंतहल-आमाल, इस्लामिक इस्लामिक बुक स्टोर, 1331, खंड 2, पृष्ठ 110।
  44. मुद्रासी तबताबाई, तोरबते पाकान, 1335, पृष्ठ 44।
  45. मुहद्दिस नूरी, खातेमा मुस्तद्रक अल-वसाइल, अहल-अल-बैत लहिया अल-तुरास फाउंडेशन, खंड 4, पृष्ठ 487
  46. मुहद्दिस नूरी, खातेमा मुस्तद्रक अल-वसाइल, अहल-अल-बैत लहिया अल-तुरास फाउंडेशन, खंड 4, पृष्ठ 487।

स्रोत

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