नफ़्से ज़किय्या की हत्या

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नफ़्से ज़किय्या की हत्या (अरबी: قتل النفس الزكية) इमाम महदी (अ) के ज़हूर के संकेतों में से एक है, जो काबा के बगल में इमाम महदी (अ) के सहाबियों में से एक की हत्या को संदर्भित करता है। हदीसों के अनुसार, नफ़्से ज़किय्या इमाम हुसैन (अ) के वंशज हैं और इमाम ज़माना (अ) के आंदोलन से पहले मस्जिदुल-हराम में उनकी हत्या की जायेगी।

कुछ हदीसों में, नफ़्से ज़किय्या की हत्या को ज़हूर के निश्चित संकेतों में से एक के रूप में वर्णित किया गया है। मुल्ला सालेह माज़ंदरानी ने शरह अल-काफ़ी में संभावना व्यक्त की है कि सय्यद हसनी और नफ़्से ज़किय्या एक ही हैं।

चरित्र

"नफ़्से ज़किय्या" (शुद्ध व्यक्ति) एक ऐसे व्यक्ति है जिन्हे हदीसो में एक नेक और पवित्र इंसान के रूप में पेश किया गया है [१] और उनकी हत्या को इमाम महदी (अ) के ज़हूर का संकेतों में से माना गया है। [२] हदीसों के अनुसार, वह इमाम हुसैन (अ) [३] के वंशज और उनका नाम मुहम्मद बिन हसन है। [४]

नफ़्से ज़किय्या, इमाम महदी (अ) के साथियों में से एक हैं जिन्हे इमाम मक्का के लोगों का मार्गदर्शन करने के लिए भेजते हैं। इमाम महदी अपने साथियों को संबोधित करते हुए कहते हैं: मक्का के लोग मुझे नहीं चाहते हैं, लेकिन मैं उनके पास किसी को भेजूंगा ताकि उन पर हुज्जत तमाम हो जाए। (उनके पास कोई बहाना ना रहे) जब नफ़्से ज़किय्या हज़रत महदी (अ) के प्रतिनिधि के रूप में अपना परिचय देते हैं, तो लोग उन पर झपट पड़ते हैं और रुक्न और मक़ाम के बीच उनका सिर काट देते हैं। [५]

ज़हूर के निश्चित संकेत

इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) की हदीस के अनुसार, नफ़्से ज़किय्या की हत्या, आसमानी आवाज़, सुफ़यानी की बग़ावत, यमानी का आंदोलन और ख़सफ़े बैदा (जहां सुफ़यानी की सेना तबाह होगी) के साथ पुनरुत्थान (ज़हूर) के निश्चित संकेतों में से एक है। [६]

क़बला क़यामिल क़ायम ख़मसो अलामातिन महतूमातिल यमानियो वस सुफ़ियानियो वस सैहतो व क़त्लुन नफ़्सिज़ ज़कियते वल ख़स्फ़ो बिल बैदाए; (अनुवाद: क़ायम के आंदोलन से पहले, पाँच निशानियाँ होंगी और यह सारी निशानियाँ पुनरुत्थान (ज़हूर) के निश्चित संकेतों में से हैं: यमानी का आंदोलन,सुफ़ियानी की बग़ावत, आसमानी आवाज़, नफ़्से ज़किय्या की हत्या, ख़सफ़े बैदा

सदूक़, कमालुद्दीन, 1395 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 650, हदीस 7

पुस्तक कमाल अल-दीन में, इमाम सादिक़ (अ) से यह वर्णन किया गया है कि क़ायमे आले मुहम्मद के उदय (ज़हूर) और नफ़्से ज़किय्या की हत्या के बीच पंद्रह रातों का फ़ासला होंगा। [७] इमाम बाक़िर (अ) की एक हदीस में, उनकी हत्या का स्थान मस्जिदुल-हराम में रुक्न और इब्राहीम के स्थान के बीच होगा। [८]

किताब अल काफ़ी के टीकाकार मुल्ला सालेह माज़ंदरानी ने ज़हूर के संकेतों के बारे में एक हदीस की व्याख्या में संभावना व्यक्त की है कि नफ़्से ज़किय्या वही सय्यद हसनी हैं, जिन्हे ज़हूर के संकेतों में से एक माना जाता है। [९] इस कथन का कारण मक्का के लोगों द्वारा सय्यद हसनी की हत्या का हदीस में वर्णन और इमाम महदी (अ) के ज़हूर से पूर्व उनके सिर को सूफ़यानी के लिए भेजना है। [१०]

ऐतिहासिक अनुकूलन

ऐतिहासिक स्रोतों के अनुसार, मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह महज़ (145 हिजरी में मृत्यु) के कुछ समर्थकों का मानना ​​था कि वह नफ़्से ज़किय्या थे। [११] यहया बिन ज़ैद की शहादत के बाद, उन्हे नफ़्से ज़किय्या का उपनाम दिया गया और महदी के नाम से उनके प्रति निष्ठा की प्रतिज्ञा की गई। [१२] उन्होने 145 हिजरी में मंसूर अब्बासी के खिलाफ़ विद्रोह किया और मदीना के पास अहजार अल-ज़ैत इलाक़े में क़त्ल हुए। [१३]

कुछ हदीसों में, दो नफ़्से ज़किय्या की हत्या के बारे में उल्लेख किया गया है, एक मक्के में और दूसरे कूफ़े (नजफ़) के पीछे सत्तर लोगों के साथ। [१४] असर अल-ज़हूर पुस्तक में कूरानी ने संभावना व्यक्त की है कि सय्यद मुहम्मद बाक़िर सद्र (शहादत 1359 शम्सी)) वही नफ़्स ज़किय्या हैं, हदीसों के अनुसार, जिन्हे कूफ़ा के पीछे शहीद किया जायेगा। [१५]

संबंधित लेख

फ़ुटनोट

  1. मुहम्मदी-रय शहरी, दानिश नामा इमाम महदी, 1393, खंड 7, पृष्ठ 438।
  2. नोअमानी, अल-ग़ैबह, 1397 हिजरी, पृष्ठ 264।
  3. अयाशी, तफ़सीर अल-अयाशी, 1380 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 65।
  4. शेख़ सदूक़, कमालुद्दीन, 1395 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 331, हदीस 16।
  5. अल्लामा मजलिसी, बिहार अल-अनवार, 1403 हिजरी, खंड 52, पृष्ठ 307।
  6. नोमानी, अल-ग़ैबा, 1397 हिजरी, पृष्ठ 264, हदीस। 26; शेख़ सदूक़, कमालुद्दीन, 1395 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 649, हदीस 1।
  7. शेख़ सदूक़, कमालुद्दीन, 1395 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 649, हदीस 2।
  8. शेख़ सदूक़, कमालुद्दीन, 1395 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 331, हदीस 16।
  9. माज़ंदरानी, ​​शर्ह अल-काफी, 1380 हिजरी, खंड 12, पृष्ठ 414।
  10. सलिमियान देखें, महदावित एनसाइक्लोपीडिया, 2008, पृष्ठ 208।
  11. अबुल फ़रज एसफ़हानी, मक़ातिल अल-तालेबीईन, दार अल-मारेफ़ा, पेज 207.
  12. अबुल फरज एसफहानी, मकातिल अल-तालेबीईन, दार अल-मारेफा, पेज 207.
  13. अबुल फरज एसफहानी, मकातिल अल-ताल्बेयिन, दार अल-माराेफ़ा, पेज 207.
  14. अल्लामा मजलिसी, बिहार अल-अनवार, 1403 हिजरी, खंड 52, पृष्ठ 273 देखें।
  15. कूरानी, ​​असर अल-ज़ुहूर, 1408 हिजरी, पृष्ठ 126।

स्रोत

  • अबुल फ़रज एसफहानी, अली बिन हुसैन, मक़ातिल अल-ताल्बेयिन। सय्यद अहमद सक़र द्वारा शोध, बेरूत, दार अल-मारेफ़ा, बी ता।
  • सालिमियान, खुदा मुराद, फरहंग नामा महदवियत, क़ुम, हज़रत महदी मौऊद कल्चरल फाउंडेशन, दूसरा संस्करण, 2008।
  • शेख़ सदूक़, मुहम्मद बिन अली, कमाल अल-दीन और तमाम अल-नेअमह, अली अकबर गफ़्फ़ारी, तेहरान, इस्लामिया, दूसरा संस्करण, 1395 हिजरी द्वारा सुधारा गया।
  • अल्लामा मजलिसी, मुहम्मद बाक़िर, बिहार अल-अनवार, दार अहया अल-तुरास अल-अरबी, बेरूत, दूसरा संस्करण, 1403 हिजरी।
  • अयाशी, मुहम्मद बिन मसऊद, तफ़सीर अल-अयाशी, तसहीह रसूली महाल्लाती, तेहरान, अल-मतबा अल-इलमिया-इस्लामिया, 1390 हिजरी।
  • कूरानी, ​​अली, असर अल-जहूर, मकतब नश्र अल-आलाम अल-इस्लामी, पहला संस्करण, 1408 हिजरी।
  • माज़ंदरानी, ​​मुल्ला मोहम्मद सालेह बिन अहमद, शर्ह अल-काफ़ी - अल-उसूल वल-रौज़ह, तसहीह अबुल हसन शीरानी, ​​तेहरान, अल-मकतबा अल-इस्लामी, 1382 हिजरी द्वारा सुधारा गया।
  • मुहम्मदी रयशहरी, मोहम्मद, दानिश नामा इमाम महदी (अज), कुम, दार अल हदीस, 2013।
  • नोअमानी, मुहम्मद बिन इब्राहिम, अल-ग़ैबह, अली अकबर गफ़्फ़ारी द्वारा संपादित, तेहरान, सदूक़ प्रकाशन, 1397 हिजरी।