गुमनाम सदस्य
"शियो के इमाम": अवतरणों में अंतर
→इमाम हुसैन (अ.स.)
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'''विस्तृत लेखः इमाम हुसैन (अ) और सारल्लाह''' | '''विस्तृत लेखः इमाम हुसैन (अ) और सारल्लाह''' | ||
इमाम हुसैन ([[अबा अब्दिल्लाह]], सय्यद उश-शोहदा) अली (अ) के दूसरे बेटे हैं जिनकी माता [[हज़रत फ़ातिमा बिन्ते रसूल (स)]] हैं। आपका जन्म मदीना में वर्ष 4 हिजरी में हुआ था। अपने भाई इमाम हसन (अ) की शहादत के बाद, आल्लाह के हुक्म और आपकी वसीयत के अनुसार आपने इमामत का पद ग्रहण किया आप [[शियो का अक़ाइद|शियो]] के तीसरे इमाम है।<ref>तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 207</ref> | इमाम हुसैन ([[अबा अब्दिल्लाह]], सय्यद उश-शोहदा) अली (अ) के दूसरे बेटे हैं जिनकी माता [[हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाहे अलैहा|हज़रत फ़ातिमा बिन्ते रसूल (स)]] हैं। आपका जन्म मदीना में वर्ष 4 हिजरी में हुआ था। अपने भाई इमाम हसन (अ) की शहादत के बाद, आल्लाह के हुक्म और आपकी वसीयत के अनुसार आपने इमामत का पद ग्रहण किया आप [[शियो का अक़ाइद|शियो]] के तीसरे इमाम है।<ref>तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 207</ref> | ||
अंतिम छह महीनो को छोड़कर इमाम हुसैन की खिलाफत के अधिकांश दस साल [[मुआविया]] के शासन काल में बीता- आपने इस अवधि को बहुत कठिन और अप्रिय और दम घुटने वाली परिस्थितियों में बीताया- क्योंकि एक तरफ धार्मिक कानून अविश्वसनीय हो चुके थे और सरकार की इच्छाओं ने अल्लाह और पैगंबर की आज्ञाओं को बदल दिया था; तो दूसरी ओर मुआविया और उसके एजेंट अहले-बैत और शियाओं को नुकसान पहुँचाने और अली और अली के परिवार का नाम मिटाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। दूसरी ओर मुआविया ने अपने पुत्र यज़ीद की खिलाफ़त की बुनयादो को मजबूत करने के प्रयास का आरम्भ कर दिया था और मुसलमानो की एक मंडली यजीद की बदसलूकी के कारण मुआविया के इन प्रयासों से खुश नहीं थी। मुआविया ने इन विरोधों को दबाने और नए विरोधों के सर न उठनाने के लिए और अधिक हिंसक तरीकों का सहारा लिया।<ref>तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 207-208</ref> | अंतिम छह महीनो को छोड़कर इमाम हुसैन की खिलाफत के अधिकांश दस साल [[मुआविया]] के शासन काल में बीता- आपने इस अवधि को बहुत कठिन और अप्रिय और दम घुटने वाली परिस्थितियों में बीताया- क्योंकि एक तरफ धार्मिक कानून अविश्वसनीय हो चुके थे और सरकार की इच्छाओं ने अल्लाह और पैगंबर की आज्ञाओं को बदल दिया था; तो दूसरी ओर मुआविया और उसके एजेंट अहले-बैत और शियाओं को नुकसान पहुँचाने और अली और अली के परिवार का नाम मिटाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। दूसरी ओर मुआविया ने अपने पुत्र यज़ीद की खिलाफ़त की बुनयादो को मजबूत करने के प्रयास का आरम्भ कर दिया था और मुसलमानो की एक मंडली यजीद की बदसलूकी के कारण मुआविया के इन प्रयासों से खुश नहीं थी। मुआविया ने इन विरोधों को दबाने और नए विरोधों के सर न उठनाने के लिए और अधिक हिंसक तरीकों का सहारा लिया।<ref>तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 207-208</ref> | ||
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यदि कोई इमाम हुसैन (अ) के जीवन के इतिहास और [[यज़ीद]] की स्थिति पर ध्यान से विचार करें, तो इस तथ्य में संदेह की कोई जगह नहीं है कि इमाम हुसैन (अ) के पास उस दिन मारे जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। और यज़ीद के प्रति निष्ठा - जो इस्लाम की पायमाली के समान थी - आपके लिए संभव नहीं थी; क्योंकि एक तरफ यज़ीद [[इस्लाम धर्म के पूर्ण होने की आयत|इस्लाम धर्म]] और उसके नियमों की किसी भी पवित्रता और सम्मान के प्रति आश्वस्त नहीं था और किसी भी नैतिक और धार्मिक नियमों और कानूनों से बंधा नहीं था, दूसरी ओर वह खुले तौर पर इस्लाम की पवित्रता और कानूनों का मजाक उड़ाता था। उन्हें लापरवाही से रौंदता था। जबकि इसके पूर्वज धर्म की आड़ में धार्मिक कानूनों का विरोध करते थे, और धर्म के बाहरी रूप का सम्मान करते थे और उन धार्मिक संबंधों पर गर्व करते थे जिनका मुसलमानों द्वारा सम्मान किया जाता था; जैसे: अल्लाह के रसूल का सहाबी होना आदि।<ref>तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 205</ref> | यदि कोई इमाम हुसैन (अ) के जीवन के इतिहास और [[यज़ीद]] की स्थिति पर ध्यान से विचार करें, तो इस तथ्य में संदेह की कोई जगह नहीं है कि इमाम हुसैन (अ) के पास उस दिन मारे जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। और यज़ीद के प्रति निष्ठा - जो इस्लाम की पायमाली के समान थी - आपके लिए संभव नहीं थी; क्योंकि एक तरफ यज़ीद [[इस्लाम धर्म के पूर्ण होने की आयत|इस्लाम धर्म]] और उसके नियमों की किसी भी पवित्रता और सम्मान के प्रति आश्वस्त नहीं था और किसी भी नैतिक और धार्मिक नियमों और कानूनों से बंधा नहीं था, दूसरी ओर वह खुले तौर पर इस्लाम की पवित्रता और कानूनों का मजाक उड़ाता था। उन्हें लापरवाही से रौंदता था। जबकि इसके पूर्वज धर्म की आड़ में धार्मिक कानूनों का विरोध करते थे, और धर्म के बाहरी रूप का सम्मान करते थे और उन धार्मिक संबंधों पर गर्व करते थे जिनका मुसलमानों द्वारा सम्मान किया जाता था; जैसे: अल्लाह के रसूल का सहाबी होना आदि।<ref>तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 205</ref> | ||
और इससे यह ज्ञात होता है कि कुछ टीकाकारों ने कहा है कि इन दो पेशवाओं (इमाम हसन और इमाम हुसैन) के मानदंड अलग-अलग थे - और इमाम हसन (अ.) शांति प्रिय थे जबकि इमाम हुसैन (अ.) युद्ध को प्राथमिकता देते थे; यहां तक कि बड़े भाई ने 40,000 की सेना होने के बावजूद मुआविया के साथ सुलह कर ली और छोटा भाई 40 आदमियों के साथ यज़ीद के खिलाफ कुरूक्षेत्र में उतरे - एक निराधार दावा; क्योंकि हम देखते हैं कि इमाम हुसैन (अ.) एक दिन के लिए भी यज़ीद की निष्ठा की छाया में जाने को तैयार नहीं हुए, मुआविया के शासन में अपने भाई इमाम हसन (अ.) की तरह 10 साल तक रहे (इमाम हसन भी 10 साल तक मुआविया के शासन मे रहे) और इस तरह से कभी विरोध नहीं किया, और इसमें कोई संदेह नहीं है कि अगर इमाम हसन (अ.) और इमा हुसैन (अ) मुआविया के विरूद्ध करूक्षेत्र का मार्ग च्यन करते तो निश्चित रूप से क़त्ल कर दिया जाते और उनकी हत्या से [[इस्लाम धर्म के पूर्ण होने की आयत|इस्लाम]] के लिए ज़रा भी फ़ायदा नहीं होता। और उनकी शहादत मुआविया के जाहिर रूप से ह़क पर होने जो सहाबी, [[कातिब ए वही]] और ख़ालुल मोमेनीन (मोमिनो का मामा) कहलवाता था और हर प्रकार षडयंत्र रचा करता था, अप्रभावित होती। इसके अलावा, वह उन्हें अपने एजेंटों के माध्यम से मार सकता था और खुद जाकर शोक और अज़ादारी के लिए बैठ सकता था और उनके खून का दावा कर सकता था; वही काम जो उसने तीसरे खलीफ़ा के साथ किय था।<ref>तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 205</ref> | और इससे यह ज्ञात होता है कि कुछ टीकाकारों ने कहा है कि इन दो पेशवाओं (इमाम हसन और इमाम हुसैन) के मानदंड अलग-अलग थे - और इमाम हसन (अ.) शांति प्रिय थे जबकि इमाम हुसैन (अ.) युद्ध को प्राथमिकता देते थे; यहां तक कि बड़े भाई ने 40,000 की सेना होने के बावजूद मुआविया के साथ सुलह कर ली और छोटा भाई 40 आदमियों के साथ यज़ीद के खिलाफ कुरूक्षेत्र में उतरे - एक निराधार दावा; क्योंकि हम देखते हैं कि इमाम हुसैन (अ.) एक दिन के लिए भी यज़ीद की निष्ठा की छाया में जाने को तैयार नहीं हुए, मुआविया के शासन में अपने भाई इमाम हसन (अ.) की तरह 10 साल तक रहे (इमाम हसन भी 10 साल तक मुआविया के शासन मे रहे) और इस तरह से कभी विरोध नहीं किया, और इसमें कोई संदेह नहीं है कि अगर इमाम हसन (अ.) और इमा हुसैन (अ) मुआविया के विरूद्ध करूक्षेत्र का मार्ग च्यन करते तो निश्चित रूप से क़त्ल कर दिया जाते और उनकी हत्या से [[इस्लाम धर्म के पूर्ण होने की आयत|इस्लाम]] के लिए ज़रा भी फ़ायदा नहीं होता। और उनकी शहादत मुआविया के जाहिर रूप से ह़क पर होने जो सहाबी, [[कातिब ए वही]] और ख़ालुल मोमेनीन (मोमिनो का मामा) कहलवाता था और हर प्रकार षडयंत्र रचा करता था, अप्रभावित होती। इसके अलावा, वह उन्हें अपने एजेंटों के माध्यम से मार सकता था और खुद जाकर शोक और अज़ादारी के लिए बैठ सकता था और उनके खून का दावा कर सकता था; वही काम जो उसने तीसरे खलीफ़ा के साथ किय था।<ref>तबातबाई, शिया दर इस्लाम, पेज 205</ref> | ||
===इमाम सज्जाद (अ.स.)=== | ===इमाम सज्जाद (अ.स.)=== |