संदिग्ध धन
यह लेख एक न्यायशास्त्रीय अवधारणा से संबंधित एक वर्णनात्मक लेख है और धार्मिक आमाल के लिए मानदंड नहीं हो सकता। धार्मिक आमाल के लिए अन्य स्रोतों को देखें। |
कुछ अमली व फ़िक़ही अहकाम |
फ़ुरू ए दीन |
---|
संदिग्ध धन (अरबीः مال الشبهة) वह धन है जिसका हलाल या हराम होना ज्ञात नहीं है। संदिग्ध धन, मिश्रित हराम धन (मख़लूत बे माले हराम) से अलग है; क्योंकि हराम के साथ मिश्रित धन में, संदिग्ध धन के विपरीत, एक व्यक्ति जानता है कि उसके धन में हराम मौजूद है।
न्यायविदों ने संदिग्ध धन को हलाल माना है। इस संपत्ति पर खुम्स नहीं होता और हज के लिए इनका इस्तेमाल किया जा सकता है।
कुछ हदीसों में संदिग्ध धन में सावधानी (एहतियात) बरतने का आदेश दिया गया है। इन्हीं हदीसो के आधार पर मुहम्मद तक़ी मजलिसी ने संदिग्ध धन का उपयोग न करना ही अच्छा समझा है। दूसरी ओर, इमाम खुमैनी के विपरीत इन हदीसों को मार्गदर्शन के रूप में व्याख्या की और संदिग्ध धन का उपयोग करने की कानूनी घृणा (फ़िक़्ही कराहत) को स्वीकार नहीं किया है।
परिभाषा
न्यायविदी (फ़िक्ही)[१] और हदीसी[२] स्रोतो में संदिग्ध धन उस धन को कहा जाता है जिसका हलाल या हराम होना ज्ञात नहीं है।[३] हदीसों में संदिग्ध संपत्ति की व्याख्या "संदेह" या "संदिग्ध" के रूप में भी की जाती है।[४] पैगंबर (स) के एक कथन के अनुसार “حَلَالٌ بَيِّنٌ وَ حَرَامٌ بَيِّنٌ وَ شُبُهَاتٌ بَيْنَ ذَلِكَ ... हलालुन बय्येनु वा हरामुन बय्येनुन वा शुब्हातुन बैना ज़ालेका ... हलाल और हराम स्पष्ट है, और उनके बीच संदिग्ध (अज्ञात) चीजें हैं”।[५] कुछ लोगों ने संदिग्ध भोजन और निवाले को भी संदिग्ध संपत्ति माना है।[६]
शब्दकोष में संदिग्ध उस चीज़ को कहा जाता है जिसके हलाल और हराम होने के बारे मे संदेह होता है।[७] इमाम अली (अ) के एक कथन में यह उल्लेख किया गया है कि संदेह को इसलिए संदेह कहा जाता है क्योकि वह सत्य के समान होता है।[८]
मिश्रित हराम धन के साथ अंतर
संदिग्ध संपत्ति हराम के साथ मिश्रित धन से अलग है; क्योंकि एक व्यक्ति को हराम के साथ मिश्रित संपत्ति में हराम की मौजूदगी का ज्ञान है; लेकिन संदिग्ध संपत्ति के बारे में संदेह है कि यह हराम है या नहीं।[९]
न्यायविदी नियम
संदिग्ध संपत्ति के लिए कुछ न्यायशास्त्रीय नियमो का वर्णन किया गया है:
- हिल्लियत (हलाल होना): संदिग्ध संपत्ति हलाल है।[१०] इस हुक्म का प्रमाण यह रिवायत है जिसमे कहा गया है " کُلُ شَیْءٍ هُوَ لَکَ حَلَالٌ حَتَّی تَعْلَمَ أَنَّهُ حَرَامٌ بِعَیْنِهِ ... कुल्लो शैइन होवा लका हलालुन हत्ता ताअलमा अन्नहू हरामुन बेऐयनेही... आपके लिए हर चीज़ हलाल है जब तक आप यह न जान लें कि वास्तव में यह हराम है।"[११] है[१२] इस रिवायत के मज़मून मे असालत अल-इबाहा कहा गया है।[१३]
- खुम्स का न होना: संदिग्ध संपत्ति में संपत्ति के संदिग्ध होने के कारण उसमे खुम्स नहीं होता;[१४] हराम के साथ मिश्रित संपत्ति के विपरीत, जिसमें हराम के साथ मिश्रित होने के कारण खुम्स होता है।[१५]
- संदिग्ध धन से हज: न्यायविदों के अनुसार, संदिग्ध धन से हज करने में कोई समस्या नहीं है।[१६] बेशक, आयतुल्लाह मकारिम शिराज़ी के फतवे के अनुसार, इस शर्त के साथ यह हलाल माध्यम से प्राप्त किया गया हो।[१७]
संदिग्ध मामलों में सतर्कता
हदीस की किताबों में ऐसी रिवायतो का वर्णित किया गया है, जिसकी सामग्री संदिग्ध मामलों में रोकना और सतर्क रहना है, जैसे:
- دَعْ مَا یُرِیبُکَ إِلَی مَا لَا یُرِیبُکَ؛ दआ मा योरीबोका एला मा ला योरीबोका; जो संदिग्ध है उसे छोड़ दो और जो संदिग्ध नही उसे ले लो।"[१८]
- فَمَنْ تَرَکَ الشُّبُهَاتِ نَجَا مِنَ الْمُحَرَّمَاتِ وَ مَنْ أَخَذَ بِالشُّبُهَاتِ ارْتَکَبَ الْمُحَرَّمَات फ़मन तरका अल-शुबहाते नजा मिनल मोहर्रेमाते वमन अख़ाज़ा बिश शोबुहाते इरतकब अल-मोहर्रेमात ...जो कोई भी शंकास्पद मामलो को छोड़ता है वह वर्जनाओं (मोहर्रेमात) से बच जाता है और जो उन्हे अंजाम देता है वह मोहर्रेमात मे लिप्त हो जाता है।"[१९]
- الْوُقُوفُ عِنْدَ الشُّبْهَةِ خَیْرٌ مِنَ الِاقْتِحَامِ فِی الْهَلَکَةِ؛ अल-वुक़ूफ़ो इन्दा अल-शुब्हते ख़ैरुम मिनल इक़्तेहामे फ़िल हलाकते; संदेह के समय रुकना विनाश मे पड़ने से बेहतर है।"[२०]
इमाम खुमैनी ने इन रिवायतो को वर्जनाओं (मोहर्रेमात) से दूर रहने के लिए मार्गदर्शन रूप में लिया और संदिग्ध संपत्ति के उपयोग की कराहत को स्वीकार नहीं किया।[२१] ग्यारहवीं शताब्दी में शिया विद्वान मुहम्मद तक़ी मजलिसी के अनुसार संदिग्ध संपत्ति हलाल होने के तथ्य के बावजूद हदीसों के आधार पर, उनसे दूर रहना बेहतर है मुहर्रेमात मे न पड़े।[२२] कुछ लोगों ने उपरोक्त परंपराओं पर विचार करते हुए कहा है कि संदिग्ध संपत्ति से सामना होने पर उनका उपयोग नहीं करना चाहिए। जब तक यह निश्चित न हो जाए कि वे हलाल हैं।[२३]
संदेहास्पद धन और भोजन का त्याग करना धर्मपरायणता (तक़वा और वरअ) का एक स्तर है जिसे धर्मी लोगों की पवित्रता के रूप में जाना जाता है।[२४] कुछ विद्वानों का कहना है कि उन्होंने संदिग्ध भोजन का सामना करने पर सतर्कता से काम लिया और यदि उन्होंने संदिग्ध भोजन किया और फिर इसकी संदिग्धता को महसूस किया। यदि संभव हुआ तो वे इसे वापस कर देते थे।[२५]
फ़ुटनोट
- ↑ देखेः शहीद सानी, मसालिक अल-इफ़हाम, 1413 हिजरी, भाग 4, पेज 334; बहरानी, अल-हदाइक़ अल-नाज़ेरा, 1405 हिजरी, भाग 21, पेज 197; नराक़ी, अवाइद अल-अय्याम, 1417 हिजरी, पेज 144; नजफ़ी, जवाहिर अल-कलाम, दार एहयाइत तुरास अल-अरबी, भाग 26, पेज 328
- ↑ देखेः तूसी, अल-आमाली, 1414 हिजरी, पेज 381; वर्राम, मज्मूआ वर्राम, 1410 हिजरी, भाग 1, पेज 6 व भाग 2, पेज 267
- ↑ इमाम ख़ुमैनी, अल-मकासिब अल मोहर्रेमा, 1415 हिजरी, भाग 2, पेज 343; माज़ंदरानी, शरह अल-काफ़ी, 1382 हिजरी, भाग 2, पेज 415; अल्लामा मजलिसी, मिरात अल-उक़ूल, 1404 हिजरी, भाग 1, पेज 225
- ↑ देखेः कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, भाग 1, पेज 68; हुर्रे आमोली, वसाइल अल-शिया, 1409 हिजरी, भाग 27, पेज 157-158
- ↑ कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, भाग 1, पेज 68
- ↑ मलिक अहमदी, दरसनामे रिज़्क़े हलाल, 1392 शम्सी, पेज 178
- ↑ दहखुदा, लुग़तनामा, 1377 शम्सी, भाग 9, शुब्हनाक शब्द के अंतर्गत
- ↑ नहजुल बलाग़ा, तस्हीह सुब्ही सालेह, खुत्बा 38, पेज 81
- ↑ देखेः मुंतज़री, मबानी फ़िक़्ही हुकूमते इस्लामी, 1409 हिजरी, भाग 6, पेज 184
- ↑ शेख़ अंसारी, फ़राइद अल-उसूल, 1419 हिजरी, भाग 2, पेज 201; नराक़ी, अवाइद अल-अय्याम, पेज 144; मजलिसी, रौज़ा अल-मुत्ताक़ीन, 1406 हिजरी, भाग 6, पेज 489
- ↑ कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, भाग 5, पेज 313
- ↑ शेख़ अंसारी, फ़राइद अल-उसूल, 1419 हिजरी, भाग 2, पेज 200-201; मजलिसी, रौज़ा अल-मुत्ताक़ीन, 1406 हिजरी, भाग 6, पेज 489
- ↑ देखेः शेख़ अंसारी, फ़राइद अल-उसूल, 1419 हिजरी, भाग 2, पेज 219
- ↑ मुंतज़री, मबानी फ़िक़्ही हुकूमते इस्लामी, 1409 हिजरी, भाग 6, पेज 180-184
- ↑ तबातबाई यज़्दी, उरवातुल वुस्क़ा, 1419 हिजरी, भाग 4, पेज 256-257
- ↑ महमूदी, मनासिके हज (मोहश्शी), 1429 हिजरी, पेज 36
- ↑ मकारिम शिराज़ी, मनासिके जामे हज, 1426 हिजरी, पेज 395
- ↑ हुर्रे आमोली, वसाइल अल-शिया, 1409 हिजरी, भाग 27, पेज 167
- ↑ कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, भाग 1, पेज 68; हुर्रे आमोली, वसाइल अल-शिया, 1409 हिजरी, भाग 27, पेज 157
- ↑ कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, भाग 1, पेज 50; हुर्रे आमोली, वसाइल अल-शिया, 1409 हिजरी, भाग 27, पेज 157-158
- ↑ इमाम ख़ुमैनी, अल-मकासिब अल-मोहर्रेमा, 1415 हिजरी, भाग 2, पेज 343-344
- ↑ मजलिसी, रौज़ा अल-मुत्तक़ीन, 1406 हिजरी, भाग 6, पेज 489
- ↑ मलिक अहमदी, दरसनामा रिज़्क़े हलाल, 1392 शम्सी, पेज 179
- ↑ अल्लामा मजलिसी, बिहार उल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 67, पेज 100
- ↑ मलिक अहमदी, दरसनामा रिज़्क़े हलाल, 1392 शम्सी, पेज 179-180
स्रोत
- इमाम ख़ुमैनी, सय्यद रूहुल्लाह, अल-मकासिब अल-मोहर्रेमा, क़ुम, मोअस्सेसा तंज़ीम वा नश्र आसारे इमाम ख़ुमैनी, पहला संस्करण, 1415 हिजरी
- बहरानी, युसूफ बिन अहमद, अल-हदाइक़ अन नाज़ेरा फ़ी अहकाम अल-इतरतित ताहेरा, क़ुम, दफ्तरे तबलीगाते इस्लामी, पहला संस्करण, 1405 हिजरी
- हुर्रे आमोली, मुहम्मद बिन हसन, वसाइल अल-शिया, क़ुम, मोअस्सेसा आले अल-बैत (अ), पहला संस्करण, 1409 हिजरी
- दहख़ुदा, अली अकबर, लुगत नामा, तेहरान, दानिशगाह तेहारन, दूसरा संस्करण, 1377 शम्सी
- शहीद सानी, ज़ैनुद्दीन बिन अली, मसालिक अल-इफ़हाम एला तंक़ीह शरा ए अल-इस्लाम, क़ुम, मोअस्सेसा अल-मआरिफ़ अल-इस्लामीया, पहला संस्करण, 1413 हिजरी
- तूसी, मुहम्मद बिन हसन, अल-आमाली, क़ुम, दार अल-सक़ाफ़ा, पहला संस्करण, 1414 हिजरी
- अल्लामा मजलिसी, मुहम्मद बाक़िर, बिहरा उल अनवार, बैरूत, दार एहया अल-तुरास अल-अरबी, दूसरा संस्करण, 1403 हिजरी
- अल्लामा मजिलसी, मुहम्मद बाक़िर, मिरात अल-उक़ूल फ़ी शरह अख़बार आले रसूल (अ), शोधः सय्यद हाशिम रसूली महल्लाती, तेहरान, दार अल-कुतुब अल-इस्लामीया, दूसरा संस्करण 1404 हिजरी
- कुलैनी, मुहम्मद बिन याक़ूब, अल-काफ़ी, तहक़ीक़ अली अकबर ग़फ़्फ़ारी वा मुहम्मद आख़ूंदी, तेहरान, दार अल-कुतुब अल-इस्लामीया, चौथा संस्करण, 1407 हिजरी
- माज़ंदरानी, मुहम्मद सालेह बिन अहमद, शरह अल-काफ़ी (अल-उसूल वल रौज़ा), तहक़ीक व तस्हीह अबुल हसन शेरानी, तेहरान, दार अल-कुतुब अल-इस्लामीया, पहला संस्करण 1382 हिजरी
- मजलिसी, मुहम्मद तक़ी, रौज़ा अल-मुत्तक़ीन फ़ी शरह मन ला याहज़ोरोह अल-फ़क़ीह, शोध व संशोधन हुसैन मूसवी किरमानी वा अली पनाह इश्तेहारदी, क़ुम, मोअस्सेसा फ़रहंगी इस्लामी कूशानपूर, दूसरा संस्करण, 1406 हिजरी
- महमूदी, मुहम्मद रज़ा, मनासिक हज (महश्शी), तेहरान, नश्र मशअर, 1429 (विराइशे जदीद)
- मकारिम शिराज़ी, नासिर, मनासिके जामे हज, क़ुम, मदरसा इमाम अली इब्ने अबी तालीब, पहला संस्करण, 1426 हिजरी
- मुंतज़री, हुसैन अली, मबानीए फ़िक़्ही हुकूमते इस्लामी, तरजुमाः महमूद सलवाती, वा अबुल फ़ज़्ल शकूरी, क़ुम, मोअस्सेसा केहान, पहला संस्करण, 1409 हिजरी
- नजफ़ी, मुहम्मद हसन, जावहिर अल-कलाम फ़ी शरह शरा ए अल-इस्लाम, बैरूत, दार एहया अल-तुरास अल-अरबी, सातवां संस्करण
- नराक़ी, अहमद बिन मुहम्मद महदी, अवाइद अल-अय्याम फ़ी बयान क़वाइद अल-अहकाम, क़ुम, मोअस्सेसा अल-मआरिफ अल-इस्लामीया, पहला संस्करण, 1417 हिजरी
- वर्राम, वर्राम बिन अबी फ़रास, मज्मूआ वर्राम (तंबीह अल-खवातिर व नुज़हतिन नवाज़िर), क़ुम, मकतब फ़िक़्हीया, पहला संस्करण, 1410 हिजरी
- शेख़ अंसारी, शेख़ मुर्तज़ा, फ़राइद अल-उसूल, क़ुम, मज्मा अल-फ़िक्र अल-इस्लामी, पहला संस्करण, 1419 हिजरी
- तबातबाई यज़्दी, सय्यद मुहम्मद काज़िम, उरवातुल वुस्क़ा फ़ीमा तअम्मम बेहिल बलवा (महश्शी), शोध व संशोधन अहमद मोहसिनी सब्ज़ावारी, क़ुम, दफ़्तरे इंतेशारात इस्लामी, पहला संस्करण, 1419 हिजरी
- मलिक अहमदी, अली असगर, दरसनामा रिज़्क़े हलाल, मशहद, मोअस्सेसा मुतालेआत राहबुरदी उलूम व मआरिफ़ इस्लाम, पहला संस्करण 1392 शम्सी
- नहजुल बलाग़ा, शोध सुब्ही सालेह, क़ुम, हिजरत, पहला संस्करण, 1414 हिजरी