काले झंडे
काले झंडे (अरबी: الرايات السود) एक मुहावरा है जो रिवायतो में वर्णित है और मध्य पूर्व में काले झंडे वाले एक समूह के विद्रोह को संदर्भित करता है। काले झंडे से जुड़ी कई हदीसों में अबू मुस्लिम ख़ोरासानी के आंदोलन और अब्बासी ख़िलाफ़त की स्थापना का जिक्र है। उनमें से कुछ मे आख़रुज ज़मान में उद्धारकर्ता (मुंजी ए आलम इंसानीयत) के ज़हूर के संकेत के रूप में काले झंडों का भी उल्लेख किया गया है।
शिया हदीस के विद्वानों के अनुसार, ये हदीसें ज्यादातर सुन्नी स्रोतों में पाई जाती हैं, और जिन हदीसों के रावी सभी शिया थे, उन्होंने काले झंडे को उमय्या खिलाफ़त के खिलाफ अबू मुस्लिम खोरासानी के आंदोलन से जोड़ा है। बेशक दूसरी ओर, कुछ लोगों का मानना है कि काले झंडे इमाम महदी (अ) के ज़हूर की निशानी हैं।
परिभाषा
काला झंडा एक मुहावरा है एक मुहावरा है जो रिवायतो में वर्णित है और मध्य पूर्व में काले झंडे वाले एक समूह के विद्रोह को संदर्भित करता है।[१] इन रिवायतो मे खोरासन, प्राचीन खोरासान को कहा गया है, जिसमें ईरान, अफ़गानिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान के कई हिस्से सम्मिलित है।[२]
हदीसी स्रोतो मे काले झंडो का वर्णन
दानिश नामा इमाम महदी (अ) के लेखकों के अनुसार, काले झंडों का अधिकांश वर्णन सुन्नी पुस्तकों से हैं। शियों के मुख्य स्रोतों में काले झंडों के बारे में कम हदीसें इमामों से आई हैं और इस संदर्भ में सुनाई गई अधिकांश हदीसें सुन्नी रावीयो से सुनाई गई हैं।[३]
हदीसो का कंटेंट
कुछ शिया हदीसों में काले झंडों को फ़रज का प्रतीक माना गया है। उदाहरम स्वरूप इमाम अली (अ) की एक हदीस मे रमज़ान के महीने में शामियों, काले झंडों और चीख-पुकार के बीच फ़र्क़ को आजादी की निशानियां माना है। लेकिन अन्य रिवायतो में, काले झंडे उमय्या सरकार के पतन और अबू मुस्लिम खोरासानी के आंदोलन से संबंधित हैं। उदाहरण के लिए, इमाम बाक़िर (अ) की एक हदीस में, उमय्या और बनू अब्बास सरकारों के पतन का उल्लेख किया गया है और काले झंडों के साथियों का उल्लेख किया गया है[४] इसके अलावा एक हदीस में अबू मुस्लिम ख़ोरासानी को स्पष्ट रूप से काले झंडो का मालिक कहा जाता है।[५]
सुन्नी हदीसों में उल्लेखित सामग्री इस प्रकार है:
- काले झंडों के प्रकट होने के बाद बनी उमय्या का पतन।[६]
- काले झंडों के विद्रोह के बाद सत्ता में आने वालों की निंदा[७]
- काले झंडे का अंतर[८]
- सूफ़यानी का ख़ुरुज[९]
- शोएब बिन सालेह की कमान[१०]
- काले झंडे के बाद मक्का में इमाम महदी (अ) का ज़हूर[११]
क्या काले झंडे ज़हूर का संकेत हैं?
कुछ शिया विद्वान और शोधकर्ता काले झंडों को अबू मुस्लिम खोरासानी का आंदोलन मानते हैं, जो उमय्या शासन के खिलाफ हुआ और बनी अब्बास की खिलाफत की स्थापना का कारण बना।[१२] उनके अनुसार, "शिया ख़ालिस रिवायतें ( अर्थात जिन रिवायतो के रावी सभी शिया हैं) झंडों की रिवायत हैं। काले रंग को ज़हूर के संकेत के रूप में वर्णित नहीं किया गया है। जिन शिया सूत्रों ने भी काले झंडे को ज़हूर का संकेत माना है, उन्होंने सुन्नी रिवायतो का हवाला दिया है।[१३] सय्यद मुहम्मद सद्र ने लिखा है कि अब्बासी सरकार के बारे में कई रिवायतें हैं, जिनमें से कई मनगढ़त हैं।[१४]
हालांकि, कुछ का मानना है कि काले झंडे इमाम महदी (अ) के ज़हूर का संकेत हैं और एक आंदोलन की ओर इशारा करते हैं जो उनके जह़ूर के पश्चात होगा।[१५] अस्रे ज़हूर किताब के लेखक ने काले रंग के झंडतो के मालिक की पहचान सय्यद खोरासानी के रूप में की है जोकि उनकी सेना के कमांडर थे, शोएब बिन सालेह के नेतृत्व में है और उनकी सेना तथा सुफ़ीयान की सेना के बीच एक लड़ाई होती है और सूफ़ीयानी हार जाते हैं[१६] और इमाम महदी (अ.त.) के प्रति निष्ठा की प्रतिज्ञा करते हैं।[१७] किताब अस्रे ज़हूर मे इस बात को सिद्द् खरने के लिए इबने हम्माद की किताब अल-फ़ितन लेख हदीसों पर आधारित है इब्न हम्माद की हदीसी किताब अल-फ़तन का हवाला दिया गया है।[१८]
आईएसआईएस और काले झंडो की रिवायतें
आईएसआईएस समूह के कुछ समर्थकों ने काले झंडे का उपयोग करने वाले आईएसआईएस समूह को काले झंडे से संबंधित आख्यानों की व्याख्या की है।[१९] इतिहास के शोधकर्ता रसूल जाफ़रियान ने काले झंडे के आख्यानों को नकली बताते हुए बताया है कि कुछ सुन्नी विद्वानों ने भी ऐसा किया था। हदीसों को सही नहीं मानते, और अगर वे सही होती तो उन्होंने उन्हें आईएसआईएस पर लागू करना ग़लत माना।[२०]
फ़ुटनोट
- ↑ सुलैमीयान, फ़रहंग नामा महदवीयत, 1388 शम्सी, पेज 136
- ↑ सुलैमीयान, फ़रहंग नामा महदवीयत, 1388 शम्सी, पेज 136
- ↑ मुहम्मदी रैय शहरी वा दिगरान, दानिश नामा इमाम महदी, 1393 हिजरी, भाग 1, पेज 528
- ↑ नौमानी, अल-गैयबा, 1397 शम्सी, पेज 256, हदीस 13
- ↑ तबरी, दलाइल अल-इमामा, 1413 हिजरी, पेज 294 तबरसी, आलाम अल-वरआ, 1417 हिजरी, भाग 1, पेज 528
- ↑ इब्ने हम्माद, अल-फ़ितन, 1414 हिजरी, भाग 1, पेज 207, हदीस 566
- ↑ इब्ने हम्माद, अल-फ़ितन, 1414 हिजरी, भाग 1, पेज 210, हदीस 573
- ↑ इब्ने हम्माद, अल-फ़ितन, 1414 हिजरी, भाग 1, पेज 216, हदीस 595 वा पेज 288, हदीस 841
- ↑ इब्ने हम्माद, अल-फ़ितन, 1414 हिजरी, भाग 1, पेज 288, हदीस 841, पेज 289, हदीस 845
- ↑ इब्ने हम्माद, अल-फ़ितन, 1414 हिजरी, भाग 1, पेज 314, हदीस 907 व पेज 316, हदीस 912 व पेज 321, हदीस 914, व पेज 344, हदीस 996
- ↑ इब्ने हम्माद, अल-फ़ितन, 1414 हिजरी, भाग 1, पेज 322, हदीस 453
- ↑ देखेः मुहम्मदी रैय शहरी वा दिगरान, दानिश नामा इमाम महदी, 1393 शम्सी, भाग 6, पेज 64-65; सद्र, तारीख़ अल-ग़ैयबा अल-कुबरा, 1412 हिजरी, पेज 453
- ↑ मुहम्मदी रैय शहरी वा दिगरान, दानिश नामा इमाम महदी, 1393 शम्सी, भाग 6, पेज 63
- ↑ सद्र, तारीख अल-ग़ैयबा अल-कुबरा, 1412 हिजरी, भाग 453
- ↑ सुलैमानीयान, फ़रहंग नामा महदवीयत, 1388 शम्सी, पेज 137; देखेः कूरानी, अस्र अल-ज़हूर, 1408 हिजरी, पेज 242 -243
- ↑ कूरानी, अस्र ज़हूर, 1408 हिजरी, पेज 242
- ↑ कूरानी, अस्र ज़हूर, 1408 हिजरी, पेज 137
- ↑ मुहम्मदी रैय शहरी वा दिगरान, दानिश नामा इमाम महदी, भाग 7, पेज 1393 श्सी, पेज 448
- ↑ जाफ़रियान, मौजे जदीद इस्तेफ़ादा अज़ गुफ्तेमान महदवी दर बर आमदने दाइश, वेबगाह किताब खाना तख़स्सुसी तारीख इस्लाम वा ईरान
- ↑ जाफ़रयानन, मौजे जदीद इस्तेफ़ादा अज़ गुफ्तेमान महदवी दर बर आमदने दाइश, वेबगाह किताब खाना तख़स्सुसी तारीख इस्लाम वा ईरान
स्रोत
- इब्ने हम्माद, नईम, अल-फ़ितन, बैरूत, दार अल-फ़िक्र, 1414 हिजरी
- जाफ़रयानन, रसूल, मौजे जदीद इस्तेफ़ादा अज़ गुफ्तेमान महदवी दर बर आमदने दाइश, वेबगाह किताब खाना तख़स्सुसी तारीख इस्लाम वा ईरान
- सुलैमानीयान, खुदा मुराद, फ़रहंग नामा महदवीयत, तेहरान, बुनयाद फ़रहंगी हज़रत मोऊद, 1388 शम्सी
- सद्र, सय्यद मुहम्मद, तारीख अल-ग़ैयबा अल-कुबरा, बैरूत, दार अल-तआऱुफ़ लिलमतबूआत, बैरूत, 1412 हिजरी
- तबरसी, फ़ज़्ल बिन हसन, एलाम अल-वरा बेएलाम अल-हुदा, क़ुम, मोअस्सेसा आले अल-बैत, 1417 हिजरी
- तबरसी, मुहम्मद बिन जुरैर, दलाइल अल-इमामा, तहक़ीक़ मोअस्सेसा अल-बेसत, तेहरान, 1413 हिजरी
- कूरानी, अली, अस्रे अल-ज़हूर, मरकज़ अल-नशर मकतब अल-आलाम अल-इस्लामी, अल-तबअतुल ऊला, 1408 हिजरी
- मुहम्मदी रैय शहरी, मुहम्मद व दिगरान, दानिश नामा इमाम महदी बर पाय ए क़ुरआन, हदीस व तारीख़, क़ुम, दार अल-हदीस, पहला संस्करण, 1393 शम्सी
- नौमानी, मुहम्मद बिन इब्राहीम, अल-ग़ैयबा, तहक़ीक़ व तस्हीह अली अकबर ग़फ़्फ़ारी, तेहरान, नशर सदूक़, 1397 शम्सी