उमर बिन साद की सेना

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(उमर बिन साद के सैनिकों से अनुप्रेषित)

उमर बिन साद की सेना (अरबी: جيش عمر بن سعد) एक ऐसी सेना थी जिसे उमर बिन साद ने उबैदुल्लाह बिन ज़ियाद के आदेश पर इकट्ठा किया था और आशूरा के दिन कर्बला में इमाम हुसैन (अ) और उनके साथियों से युद्ध किया और उन्हें शहीद कर दिया; फिर उसने इमाम हुसैन (अ) के अहले बैत को बंदी बना लिया।

अधिकांश स्रोतों ने उमर बिन साद की सेना की संख्या 20,000 से अधिक मानी है। उमर बिन साद की सेना कूफ़ा के लोगों के विभिन्न समूहों से बनी थी जो विभिन्न प्रेरणाओं से कर्बला आए थे। उनमें से अधिकांश को उस्मानी धर्म का माना गया है (वे लोग जो मानते थे कि उस्मान के अधिकारों और स्थिति (मक़ाम) का सम्मान नहीं किया गया है)। उनमें कुछ ख़वारिज भी मौजूद थे, और इब्ने साद के सैनिकों का एक समूह अहले बैत (अ) के साथ दुश्मनी के मक़सद से कर्बला आया था, और कुछ अन्य इब्ने ज़ियाद की धमकी और प्रलोभन के कारण कर्बला आए थे।

नाम और संख्या

आशूरा के दिन इमाम हुसैन (अ) का सामना करने वाली सेना की कमान उमर बिन साद बिन अबी वक्कास के ज़िम्मे थी और इसी कारण यह उमर बिन साद की सेना के नाम से भी प्रसिद्ध है। अधिकांश स्रोतों के अनुसार, शुरुआत में इस सेना में लोगों की संख्या लगभग 4,000 थी[१] और अन्य सेनाओं के जुड़ने के साथ, यह 20,000 से अधिक तक पहुंच गई;[२] और संख्या जैसे 6 हज़ार,[३] 14 हज़ार,[४] 17 हज़ार,[५] 22 हज़ार, 28 हज़ार,[६] 30 हज़ार,[७] 32 हज़ार[८] का भी कुछ स्रोतों में उल्लेख मिलता है। आशूरा के दिन, इमाम हुसैन (अ) ने अपनी कविताओं (अशआर) में दुश्मन की सेना की व्याख्या बड़ी बारिश की बूंदों के रूप में की है।[९] लमआत अल-हुसैन के लेखक ने इस व्याख्या का अर्थ इस प्रकार किया है कि इब्ने साद भारी बारिश की बूंदों की तरह एक बड़ी सेना के साथ कर्बला में मौजूद था।[१०]

गठन

कर्बला की घटना से पहले उमर बिन साद ने रय जाकर दिलमयान से युद्ध करने के इरादे से कूफ़ा शहर के बाहर हम्माम आयुन नामक स्थान पर डेरा डाला था। लेकिन रय की ओर बढ़ने से पहले इमाम हुसैन (अ) का कारवां कर्बला में रुक गया। बसरा और कूफ़ा के शासक उबैदुल्लाह बिन ज़ियाद ने उमर बिन साद को रय जाने से पहले इमाम हुसैन (अ) से लड़ने के लिए कर्बला जाने के लिए कहा। उमर बिन साद ने पहले तो इसे स्वीकार नहीं किया, लेकिन उबैदुल्ला ने कर्बला में उनकी उपस्थिति पर रय के गवर्नर पद की शर्त लगा दी। परिणामस्वरूप, उमर बिन साद अपनी सेना के साथ कर्बला गया।[११] कुछ स्रोतों में कहा गया है कि इब्ने साद ने सुबह तक सोचा कि ऐसा करना है या नहीं। इस विचार के साथ कि वह अपनी मृत्यु से पहले पश्चाताप करेगा, उसने इमाम हुसैन (अ) के साथ लड़ने की अपनी तैयारी की घोषणा की।[१२]

इब्ने ज़ियाद द्वारा सेना का सुदृढीकरण

कुछ रिपोर्टों के अनुसार, उमर साद के कर्बला की ओर बढ़ने के बाद, इब्ने ज़ियाद के प्रलोभन या धमकी के कारण कई कूफ़ा के लोग उसकी सेना में शामिल हो गए। इब्ने ज़ियाद ने कूफ़ा की मस्जिद में लोगों को इकट्ठा किया और उनके बुजुर्गों को उपहार देकर खुश किया, फिर उसने इमाम हुसैन (अ) के साथ युद्ध में उमर बिन साद का साथ देने के लिए बुलाया।[१३]

इब्ने ज़ियाद ने कूफ़ा में अपने स्थान पर अम्र बिन हरीस को नियुक्त किया, और नख़िला में डेरा डाल कर, कूफ़ियों को वहाँ आने के लिए मजबूर किया।[१४] उसने सभी कूफ़ियों के लिए इब्ने साद की सेना में शामिल होना अनिवार्य (वाजिब) कर दिया, और सुवैद बिन अब्दुर्रहमान मिनकरी को कूफ़ा भेजा और आदेश दिया कि वह कूफ़ा में खोज करे और जो भी इमाम हुसैन (अ) के साथ लड़ाई में जाने से इंकार करे उसे उसके पास लाए।[१५]

उबैदुल्लाह बिन ज़ियाद, हसीन बिन तमीम और उनकी कमान के तहत चार हजार सैनिकों को क़ादसिया से नख़िला बुलाया गया।[१६] इसके अलावा, उसके आदेश से, 4,000 लोगों के साथ शिम्र बिन ज़िल जौशन, 2,000 लोगों के साथ यज़ीद बिन रकाब कलबी, 4,000 लोगों के साथ हुसैन बिन नुमैर, 3000 लोगों के साथ मुज़ायर बिन रहीना माज़ेनी और 2000 लोगों के साथ नस्र बिन हरबा[१७] साथ ही शबस बिन रबई, हज्जार बिन अबजर,[१८] मुहम्मद बिन अश्अस[१९] और यज़ीद बिन हारिस प्रत्येक एक हजार घुड़सवारों के साथ कर्बला में उमर बिन साद की सेना में शामिल हो गए।[२०]

इब्ने ज़ियाद ने भी हर दिन कूफ़ा से कर्बला में 20 से 100 लोगों के समूह भेजा।[२१] अंततः मुहर्रम की 6 तारीख़ को इब्ने साद की सेना की संख्या लगभग 22,000 तक पहुंच गई थी।[२२]

समूह और प्रेरणाएँ

उमर बिन साद की सेना के अधिकांश लोग अलग-अलग उद्देश्यों वाले कूफ़ा[२३] के लोगों और समूहों से बने थे।[२४] इन समूहों को ऐतिहासिक स्रोतों ने विचारधारा के संदर्भ में उस्मानी धर्म का माना है[२५] और इन जैसे लोगों को: अबू बरदा बिन औफ अज़दी,[२६] शिबान बिन मख़्ज़ूम,[२७] कसीर बिन शहाब,[२८] काब बिन जाबिर, उमर बिन साद, बिश्र बिन सूत और अम्मारा बिन उक़बा अबी मुईत, ऐसे ही एक वैचारिक चरित्र के साथ उनका नामकरण किया गया है।[२९]

उमर बिन साद के कई सैनिक बनी उमय्या के समर्थक और इमाम अली (अ) के विरोधी और उनके शियों के दुश्मन थे। शिबान बिन मख्ज़ूम,[३०] शबस बिन रबीई,[३१] कसीर बिन अब्दुल्ला शाअबी,[३२] शिम्र बिन ज़िल जौशन, उमर बिन साद, ज़हर बिन क़ैस, उज़रा बिन क़ैस और अम्र बिन हज्जाज ज़ुबैदी को इस श्रेणी में गिना जाता है।[३३]

सेना के कई सदस्य कूफ़ा के रईसों में से भी थे, जिन्होंने इमाम हुसैन (अ) को एक पत्र लिखा था और उन्हें अपने शहर में आमंत्रित किया था, लेकिन इब्ने ज़ियाद द्वारा धमकी या प्रलोभन दिए जाने के बाद वे उनके साथ शामिल हो गए। उर्वा बिन क़ैस, शबस बिन रबीई, हज्जार बिन अबजर, क़ैस बिन अश्अस, यज़ीद बिन हारिस, अम्र बिन हज्जाज और मुहम्मद बिन उमैर तमीमी इस समूह से थे।[३४]

इब्ने ज़ियाद की धमकी और दबाव के तहत कूफ़ा और शाम के कुछ लोगों ने उमर बिन साद की सेना में भाग लिया।[३५] कुछ लोग जमल, सिफ़्फ़ीन और या नहरवान की लड़ाई में इमाम अली (अ) की सेना का भी हिस्सा थे, लेकिन कर्बला की घटना में, वे उमर बिन साद की सेना में मौजूद थे। शिम्र बिन ज़िल जौशन,[३६] मुहम्मद बिन उमैर तमीमी[३७] और ज़हर बिन क़ैस जअफ़ी[३८] इनमें से हैं।[३९]

कमांडर

उमर बिन साद की सेना के कमांडर यह लोग थे:

सेना का झंडा भी ज़ैद, इब्ने साद के ग़ुलाम के हाथ में था।[४०] उमर बिन साद ने हुर बिन यज़ीद रेयाही को बनी तमीम और बनी हमदान का कमांडर चुना। लेकिन हुर अपनी सेना से अलग हो गए और इमाम हुसैन (अ) और उनके साथियों से जुड़ गया।[४१]

अलग होने वाले लोग

आशूरा के दिन उमर बिन साद की सेना से कुछ लोग अलग होकर इमाम हुसैन (अ) की सेना में शामिल हो गये। कुछ स्रोतों में इन लोगों की संख्या लगभग 30 बताई गई है।[४२] हुर बिन यज़ीद रेयाही,[४३] अबुल हुतूफ़ और साद बिन हर्स अंसारी,[४४] नोमान और हल्लास बिन अम्र अज़दी रासेबी,[४५] बक्र बिन हय्य तीमी,[४६] क़ासिम बिन हबीब,[४७] जुवैन बिन मलिक,[४८] अबुल शाअसा कंदी[४९] और अम्र बिन ज़बीआ[५०] शामिल हैं। हांलाकि, कुछ लेखकों का मानना है कि इनमें से कुछ लोग इमाम हुसैन (अ) से लड़ने के इरादे से इब्ने साद की सेना में नहीं आए थे; बल्कि, चूँकि इब्ने ज़ियाद ने कूफ़ा के निकास द्वार बंद कर दिए थे, इसलिए उन्होंने ख़ुद को इब्ने ज़ियाद की सेना के माध्यम से इमाम हुसैन (अ) तक पहुँचाया।[स्रोत की आवश्यकता]

कर्बला में कार्रवाई

उमर बिन साद की सेना ने कर्बला में जो कार्रवाई की, उनमें से कुछ इस प्रकार हैं:

इमाम हुसैन और उनके साथियों पर पानी बंद कर देना

इब्ने ज़ियाद का पत्र उमर बिन साद के पास पहुंचने के बाद, जिसमें उसने इमाम हुसैन (अ) और पानी को अलग करने के लिए कहा, इब्ने साद के आदेश पर, मुहर्रम की 7 तारीख़ को अम्र बिन हज्जाज पांच सौ घुड़सवारों के साथ फ़ोरात नदी के पास गया ताकि इमाम हुसैन (अ) और उनके साथियों को पानी तक पहुँचने से रोके।[५१]

इमाम हुसैन और साथियों की शहादत

आशूरा के दिन उमर साद की फ़ौज ने जंग शुरू की पहला तीर खुद उमर बिन साद ने चलाया।[५२] उन्होंने इमाम हुसैन और उनके साथियों को शहीद कर दिया। फिर उन्होंने हज़रत ने जो पहना हुआ था वह छीन लिया। क़ैस बिन अश्अथ और बहर बिन काब ने कपड़े,[५३] असवद बिन ख़ालिद औदी ने जूते, जमीअ बिन ख़लक़ औदी ने तलवार, अख़नस बिन मरसद ने अम्मामा, बजदल बिन सलीम ने अंगूठी, और उमर बिन साद ने कवच चुराए।[५४]

ख़ैमे जलाना और लूटना

इमाम हुसैन (अ) और उनके साथियों की शहादत के बाद, उमर बिन साद की सेना ने ख़ैमों पर हमला किया, उनमें मौजूद संपत्ति लूट ली और[५५] फिर ख़ैमों में आग लगा दी।[५६]

इमाम हुसैन के शव पर घोड़े दौड़ना

उमर बिन साद के आदेश पर और इब्ने ज़ियाद के आदेश का पालन करते हुए, उसके दस सैनिकों ने अपने घोड़ों से इमाम हुसैन (अ) के शरीर पर लात मारी और उनकी छाती और पीठ की हड्डियाँ तोड़ दीं।[५७] इस्हाक़ बिन हैवा, अख़नस बिन मरसद[५८] हकीम बिन तुफ़ैल, अम्र बिन सबीह, रजा बिन मनक़ज़ अब्दी, सालिम बिन ख़ैसमा जाअफ़ी, वाहिज़ बिन नाएम, सालेह बिन वहब जाअफ़ी, हानी बिन शबस ख़ज़रमी और उसैद बिन मलिक[५९] इमाम हुसैन के शव पर घोड़े दौड़ाए।

शहीदों के सिर कूफ़ा भेजना

उमर बिन साद के फ़ौजियों ने कर्बला के शहीदों के सिर काट डाले, और भालों पर रख दिये और कूफ़ा ले गये। ख़ूली बिन यज़ीद असबही और हमीद बिन मुस्लिम अज़दी ने हुसैन बिन अली (अ) का सिर और शिम्र बिन ज़िल जौशन, क़ैस बिन अश्अस, अम्र बिन हज्जाज और उज़रा बिन क़ैस ने अन्य शहीदों के सिरों को कूफ़ा में उबैदुल्लाह बिन ज़ियाद के सामने पेश किया।[६०]

इमाम (अ) के अहले बैत को बंदी बनाना

उमर बिन साद के आदेश पर, उसके सैनिकों ने अपनी सेना के शवों को दफ़ना दिया[६१] फिर इमाम हुसैन (अ) के कारवां के बचे लोगों को पकड़ लिया और उन्हें इब्ने ज़ियाद के पास कूफ़ा और फिर सीरिया और यज़ीद के दरबार में भेज दिया।[६२]

मृत

उमर बिन साद की सेना के हताहत होने के बारे में कोई सटीक आंकड़े नहीं हैं। कुछ शिया स्रोतों ने बताया है कि इमाम हुसैन (अ) के साथियों ने 225 या 226 लोगों को मार डाला था[६३] और कुछ ने यह संख्या लगभग 900 होने का अनुमान लगाया है।[६४] मनाक़िबे इब्ने शहर आशोब की रिवायत के अनुसार, इमाम हुसैन (अ) ने खुद आशूरा के दिन उमर बिन साद की सेना के 1950 लोगों को मार डाला और उनमें से कई को घायल कर दिया था।[६५] साथ ही, इस्बातुल वसीया में उल्लेख हुआ है कि इमाम हुसैन (अ) ने उमर बिन साद की सेना के 1800 लोगों का मारा था।[६६]

फ़ुटनोट

  1. तबरी, तारीख़े अल उम्म व अल मुलूक, 1387 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 409; दीनवरी, अल-अख़बार अल-तेवाल, 1368 शम्सी, पृष्ठ 253।
  2. इब्ने आसम कूफ़ी, अल-फ़ुतूह, खंड 5, पृष्ठ 89-90; इब्ने ताऊस; अल लोहूफ़, 1348 शम्सी, पृष्ठ 85।
  3. इब्ने जौज़ी, तज़किरा अल-ख्वास, 1418 हिजरी, पृष्ठ 226।
  4. तबरी, दलाएल अल इमामा, 1413 हिजरी, पृष्ठ 178।
  5. काशेफ़ी, रौज़ा अल-शोहदा, 1382 शम्सी, पृष्ठ 346।
  6. मसऊदी, इस्बात अल वसीया, 1426 हिजरी, पृष्ठ 166।
  7. इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब आले अबी तालिब, खंड 4, पृष्ठ 86; शेख़ सदूक़, अल-अमाली, 1376 शम्सी, मजलिस 70, पृष्ठ 461, हदीस 10।
  8. काशेफ़ी, रौज़ा अल-शोहदा, 1382 शम्सी, पृष्ठ 346।
  9. मुक़र्म, मक़तल अल-हुसैन, बसीरती, 1394 शम्सी, पृष्ठ 345।
  10. हुसैनी तेहरानी, लमआत अल-हुसैन, बाक़िरुल उलूम प्रकाशन, पृष्ठ 33।
  11. तबरी, तारीख़े अल उम्म व अल मुलूक, 1387 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 409; ; दीनवरी, अल-अख़बार अल-तेवाल, 1368 शम्सी, पृष्ठ 253।
  12. शारानी, दमअ अल-सजूम, 1374 हिजरी, पृष्ठ 110।
  13. बलाज़री, अंसाब अल-अशराफ़, 1397 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 178; इब्ने आसम कूफ़ी, अल-फुतूह, 1411 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 89।
  14. बलाज़री, अंसाब अल-अशराफ़, 1397 हिजरी,खंड 3, पृष्ठ 178।
  15. दीनवरी, अल-अख़बार अल-तेवाल, 1368, पृष्ठ 254-255; बलाज़री, अंसाब अल-अशराफ़, 1397 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 179।
  16. बलाज़री, अंसाब अल-अशराफ़, 1397 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 178।
  17. इब्ने आसम कूफी, अल-फुतूह, 1411 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 89।
  18. बलाज़री, अंसाब अल-अशराफ़, 1397 हिजरी,, खंड 3, पृष्ठ 178; इब्ने आसम कूफ़ी, अल-फ़ुतूह, 1411 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 89-90।
  19. शेख़ सदूक़, अल-अमाली, पृष्ठ 155।
  20. बलाज़री, अंसाब अल-अशराफ़, 1397 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 179।
  21. बलाज़री, अंसाब अल-अशराफ़, 1397 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 179।
  22. इब्ने आसम कूफी, अल-फुतूह, खंड 5, 1411 हिजरी, पृष्ठ 90।
  23. इब्ने जौज़ी, तज़किरा अल-ख्वास, 1418 हिजरी, पृष्ठ 226।
  24. देखें: हेदायत पनाह, बाज़ ताब तफ़क्कुरे उस्मानी दर वाकेआ ए कर्बला, 1389 शम्सी, पृष्ठ 166।
  25. देखें: हेदायत पनाह, बाज़ ताब तफ़क्कुरे उस्मानी दर वाकेआ ए कर्बला, 1389 शम्सी, पृष्ठ 166।
  26. मनक़री, वकआ अल-सफ़्फीन, 1404 हिजरी, पृष्ठ 5।
  27. इब्ने असाकर, तारीख़े मदीना दमिश्क, 1415 हिजरी, खंड 14, पृष्ठ 221।
  28. बलाज़री, फुतूह अल-बुल्दान, 1988 ई, पृष्ठ 301।
  29. हेदायत पनाह, बाज़ ताब तफ़क्कुरे उस्मानी दर वाकेआ ए कर्बला, 1389 शम्सी, पृष्ठ 87-95।
  30. इब्ने असाकर, तारीखे मदीना दमिश्क, खंड 14, पृष्ठ 221।
  31. सदूक़, एलल उश शराया के कारण, 1385 शम्सी, खंड 1, पृष्ठ 221-220।
  32. बलाज़री, फुतूह अल-बुल्दान, 1988 ई, पृष्ठ 301।
  33. बलाज़री, अंसाब अल-अशराफ़, 1400 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 255; अल-तबरी, तारीख अल-उम्म व अल-मुलूक, 1387 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 269-270।
  34. देखें: तबरी, तारीख़ अल-उम्म व अल-मुलूक, 1387 हिजरी, खंड 5, पृ. 353-354।
  35. इब्ने आसम कूफ़ी, अल-फुतूह, 1411 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 89।
  36. तबरी, तारीख़े अल उम्म व अल मुलूक, 1387 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 28; मनक़री, वकआ सफ़्फीन, 1404 हिजरी, पृष्ठ 198-195।
  37. इब्ने असीर, अल कामिल, 1385 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 144।
  38. इब्ने आसम क़ूफी, अल-फुतूह, 1411 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 207।
  39. मनकरी, वक़आ सफ़्फीन, 1404 हिजरी, पृष्ठ 198-195।
  40. तबरी, तारीखे अल उम्म व अल मुलूक, 1387 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 422, 436; दीनवरी, अख़बार अल-तेवाल, 1368 शम्सी, पृष्ठ 256।
  41. तबरी, तारीखे अल उम्म व अल मुलूक, 1387 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 427; मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1399 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 99।
  42. इब्ने कसीर, अल-बेदाया वा अल-नेहाया, 1407 हिजरी, खंड 8, पृष्ठ 180।
  43. तबरी, तारीखे अल उम्म व अल मुलूक, 1387 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 427; मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1399 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 99।
  44. समावी, अबसार अल-ऐन, 1419 हिजरी, पृष्ठ 159।
  45. समावी, अबसार अल-ऐन, 1419 हिजरी, पृष्ठ 187।
  46. समावी, अबसार अल-ऐन, 1419 हिजरी, पृष्ठ 194।
  47. समावी, अबसार अल-ऐन, 1419 हिजरी, पृष्ठ 186।
  48. समावी, अबसार अल-ऐन, 1419 हिजरी, पृष्ठ 194।
  49. अल-तबारी, तारीख़ अल-उम्म व अल-मुलूक, 1387 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 445।
  50. समावी, अबसार अल-ऐन, 1419 हिजरी, पृष्ठ 194।
  51. दीनवरी, अख़बार अल-तेवाल, 1368 शम्सी, पृष्ठ 255; तबरी, तारीखे अल उम्म व अल मुलूक, 1387 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 412; मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1399 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 86।
  52. इब्ने ताऊस, अल लोहूफ़, 1348 शम्सी, पृष्ठ 110।
  53. तबरी, तारीख अल-उम्म व अल-मुलूक, 1387 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 543।
  54. इब्ने ताऊस, अल लोहूफ़, 1348 शम्सी, पृष्ठ 130।
  55. क़ुमी, नफ्स अल-महमूम, 1379 शम्सी, पृष्ठ 479।
  56. इब्ने आसम कूफी, अल-फुतूह, 1411 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 138; सय्यद ताऊस, अल लोहूफ़, 1348 शम्सी, पृष्ठ 180।
  57. अल-इरशाद, अल-मुफ़ीद, खंड 2, पृष्ठ 113, बलाज़री, अंसाब अल-अशराफ़, 1397 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 204; अल-तबरी, तारीख़ अल-उम्म व अल-मुलूक, 1387 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 455।
  58. अल-तबारी, तारीख़ अल-उम्म व अल-मुलूक, 1387 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 455।
  59. इब्ने ताऊस, अल लोहूफ़, 1348 शम्सी, पृष्ठ 135।
  60. बलाज़री, अंसाब अल-अशराफ़, 1397 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 411; अल-तबारी, तारीख़ अल-उम्म व अल-मुलूक, 1387 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 456।
  61. बलाज़री, अंसाब अल-अशराफ़, 1397 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 411।
  62. तबरी, तारीख़ अल-उम्म व अल-मुलूक, 1387 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 456।
  63. शेख़ सदूक़, अल-अमाली, 1376 शम्सी, पृ. 226-223; फ़त्ताल निशापूरी, रौज़ा अल-वाएज़ीन, 1375 शम्सी, पृष्ठ 188-186।
  64. इब्ने शहर आशोब, मनाकिब, 1379 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 109-114।
  65. इब्ने शहर आशोब, मनाकिब, 1379 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 110।
  66. मसऊदी, इस्बातुल वसीयत, 1426 हिजरी, पृष्ठ 168।


स्रोत

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