बारिश की नमाज़
कुछ अमली व फ़िक़ही अहकाम |
फ़ुरू ए दीन |
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इस्तिस्क़ा (अरबीः صلاۃ الاستسقاء) एक धार्मिक परंपरा है जिसमें अल्लाह से वर्षा की मांग की जाती है। हदीसों में अकाल के दौरान इस्तिस्क़ा के लिए नमाज़ और दुआ करने की सिफ़ारिश की गई है। रिवायतो मे पैगंबर (स) और आइम्मा (अ) द्वारा इस्तिस्क़ा के बारे में वर्णन मिलता है।
धार्मिक ग्रंथों में वर्षा की मांग के नियम (अहकाम) और रीति-रिवाज का वर्णन हुआ हैं। जैसा कि अकाल के दौरान नमाज़े इस्तिस्क़ा पढ़ना मुस्तहब है। इस नमाज़ को पढ़ने से पहले तीन दिन रोज़ा रखा जाए और तीसरे दिन शहर के लोग रेगिस्तान में जाकर जमाअत के साथ नमाज़े इस्तिका पढ़ने के बाद रो रो कर अल्लाह से वर्षा की माँग करते है।
प्रसिद्ध इस्तिस्क़ा में से एक इमाम रज़ा (अ) द्वारा पढ़ी जाने वाली नमाज़े इस्तिस्क़ा है, जिसका वर्णन उयून अख़बार अल-रज़ा किताब मे करते हुए शेख़ सदूक़ ने लिखा कि इस्तिस्क़ा के बाद वर्षा हुई। इसके अलावा 1323 शम्सी अर्थात 1944 ई के अकाल के दौरान क़ुम की जनता के अनुरोध पर क़ुम के मरजा ए तक़लीद सय्यद मुहम्मद तक़ी ख़ुनसारी ने नमाज़े इस्तिस्क़ा पढ़ी जिसके बाद भारी वर्षा हुई।
न्यायविदिक परिभाषा और पृष्ठभूमि
शब्दकोष मे ”इस्तिस्क़ा” पानी मांगने को कहा जाता है। न्यायशास्त्र (फ़िक़्ह) मे सूखे और अकाल के समय में अल्लाह से बारिश तलब करने को ”इस्तिस्क़ा” कहा जाता है।[१] हदीस[२] और न्यायशास्त्र की किताबों में[३] "नमाज़े इस्तिस्क़ा", "सलात अल-इस्तिस्क़ा" नामक अध्याय मौजूद है। जिसमें इस्तिस्क़ा की शर्तों का वर्णन किया गया है।
इस्तिस्क़ा की पृष्ठभूमि
अल्लाह से वर्षा की मांग करना का इस्लाम से पहले का इतिहास है। उदाहरण स्वरूप, इब्ने शहर आशोब के अनुसार एक बार सूखे और अकाल के समय हज़रत अबू तालिब, हज़रत अब्दुल मुत्तलिब के परिवार के कुछ युवाओ के साथ इस्तिस्क़ा के लिए मस्जिद अल-हराम गए। कहा जाता है कि उन्होंने इस्तिस्क़ा के बाद होने वाली वर्षा के मौके पर लामिया का क़सीदा पढ़ा।[४]
वर्षा की मांग से संबंधित हदीसें
हदीस स्रोतों मे पैगंबर (स) और आइम्मा (अ) द्वारा सूखे और अकाल के समय मे अल्लाह से वर्षा की मांग अर्थात नमाज़े इस्तिस्क़ा पढ़ने, वर्षा के समय दुआ और दूसरी शर्तो की सिफारिश की गई है। उदाहरण स्वरूप यह बताया गया है कि एक समूह पैगंबर (स) के पास आया और निर्जलीकरण (पानी न होने) के बारे में शिकायत की।[५] पैगंबर (स) मिंबर पर गए और अल्लाह से बारिश की मांग की।[६] और इसी प्रकार हदीसो मे पैगंबर (स),[७] इमाम अली (अ)[८] और इमाम रज़ा (अ) द्वारा अल्लाह से वर्षा की मांग का वर्णन मिलता है।[९]
इस्तिस्क़ा के दौरान पैगंबर (स) और आइम्मा (अ) से दुआए नक़ल हुई है।[१०] सहीफ़ा ए सज्जादीया की उन्नीसवीं दुआ वर्षा की मांग से संबंधित है।[११]
नमाज़े इस्तिसक़ा पढ़ने का तरीक़ा
इस्तिस्क़ा समारोह में नमाज़े इस्तिस्क़ा पढ़ी जाती है। न्यायविदों के फ़तवे के अनुसार, इस नमाज़ को निर्जलित (पानी ना) होने पर[१२] पढ़ने की सलाह दी जाती है और इसे जमात में पढ़ा जाता है।[१३] इस्तिस्क़ा की नमाज़ दो रकअत है और इसकी तकबीर और क़ुनूत ईद की नमाज़ के समान हैं। केवल क़ुनूत में इन दो नमाज़ो के स्थान पर ईश्वर से दया और वर्षा की प्रार्थना की जाती है।[१४]
नमाज़ के बाद इमाम अपनी रेदा को उलटा कर कंधो पर डाल कर मिंबर पर जाने के बाद क़िबला की तरफ़ मुँह करके ज़ोर ज़ोर से 100 बार तक़बीर कहता हैं। फिर अपनी दाहिनी ओर लोगों के सामने सौ बार सुब्हान अल्लाह, फ़िर अपनी बाईं ओर लोगों के सामने सौ बार ला हौला वला क़ूव्वता इल्ला बिल्लाह कहने के बाद लोगों की तरफ मुहं करके सौ बार अल्हमदो लिल्लाह कहता है। उसके बाद अपने हाथों को ऊपर उठा कर अल्लाह से बारिश की मांग करता है, और लोग उसके साथ दुआ करते हैं। अंत मे ख़ुत्बा दिया जाता है और अत्यधिक रोया जाता है।[१५]
अन्य नियम
इस नमाज़ के कुछ अन्य मुस्तहब और दूसरे मुस्तहब शिष्टाचार इस प्रकार हैं:
- लोग तीन दिन रोज़ा रखते हैं, और तीसरे दिन अपने घरों से निकल कर नमाज़ के लिए रेगिस्तान (बयाबान) जाते हैं।[१६]
- तीसरा दिन सोमवार होना बेहतर है, और यदि नहीं हो तो शुक्रवार हो।[१७]
- मस्जिदों में इस नमाज़ का ना पढ़ना बेहतर है।[१८]
- इस नमाज़ में, अज़ान और अक़ामत के स्थान पर "अस-सलात अस-सलात" कहा जाए।[१९]
- बुजुर्गों और बच्चों को भी अपने साथ ले जाने की सलाह दी जाती है[२०] और बच्चों और उनकी माताओं को अलग किया जाए।[२१] जवाहिर अल-कलाम के लेखक के अनुसार, यह (बच्चो और उनकी माताओ के बीच जुदाई) रोने और विलाप का माहौल बनाने और भगवान की दया की तलाश के इरादे से की जाती है।[२२]
प्रसिद्ध इस्तिस्क़ा
एक हदीस में शेख़ सदूक़ ने इमाम रज़ा (अ) की दास्तान का विस्तार से वर्णन किया है। जोकि निर्जली और सूखे के समय अब्बासी खलीफ़ा मामून के अनुरोध पर किया गया था, और इमाम रज़ा (अ) के इस्तिस्क़ा के बाद भारी वर्षा हुई।[२३]
तंज़ानीया के ज़ंगबार टापू में 1900 ई के सूखे के समय वहाँ रहने वाले शिया मौलवियों में से एक सय्यद अब्दुल हुसैन मरअशी (मृत्यु 1905) ने शियो से सुबह की नमाज़ के बाद नमाज़े इस्तिस्क़ा पढ़ने का अनुरोध किया। नमाज़े इस्तिस्क़ा समारोह समाप्त होने के बाद वर्षा होने लगी।[२४]
क़ुम के मरजा ए तक़लीद सय्यद मुहम्मद तक़ी ख़ुनसारी का इस्तक़ा भी प्रसिद्ध है। ऐसा कहा जाता है कि 1323 शम्सी अर्थात 1944 ई. में क़ुम में बारिश नहीं हुई थी और यह शहर सूखे और अकाल की चपेट में आ गया था। वह लगातार दो दिनों तक क़ुम से बाहर गए और नमाज़े इस्तिस्क़ा अदा की। दूसरे दिन भारी वर्षा हुई।[२५]
फ़ुटनोट
- ↑ अब्दुर रहमान, मोजम अलमुस्तलेहात व अलफ़ाज़ अल-फ़िक्हीया, दार अल-फ़ज़ीला, भाग 2, पेज 378; सईदी, अल-क़ामूस अल-फ़िक्ही, 1408 हिजरी, पेज 175
- ↑ देखेः कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, भाग 3, पेज 462-463; शेख तूसी, तहज़ीब अल-अलकाम, 1407 हिजरी, भाग 3, पेज 147-154; हुर्रे आमोली, वसाइल अल-शिया, 1409 हिजरी, भाग 8, पेज 5-16
- ↑ देखेः मोहक़्क़िक़ हिल्ली, शराए अल-इस्लाम, 1408 हिजरी, भाग 1, पेज 98-99; शेख सदूक़, अल-मुक़्नेआ, 1415 हिजरी, पेज 151-152; अल्लामा हिल्ली, तहरीर अहकाम अल-शरीया, 1420 हिजरी, भाग 1, पेज 291-292; नजफी, जवाहिर अल-कलाम, 1404 हिजरी, भाग 12, पेज 127-155
- ↑ इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब, 1379 हिजरी, भाग 1, पेज 137
- ↑ हुर्रे आमोली, वसाइल अल-शिया, 1409 हिजरी, भाग 8, पेज 7
- ↑ हुर्रे आमोली, वसाइल अल-शिया, 1409 हिजरी, भाग 8, पेज 7, 8, 9
- ↑ हुर्रे आमोली, वसाइल अल-शिया, 1409 हिजरी, भाग 8, पेज 7
- ↑ शेख तूसी, तहज़ीब अल-अहकाम, 1407 हिजरी, भाग 8, पेज 151
- ↑ हुर्रे आमोली, वसाइल अल-शिया, 1409 हिजरी, भाग 8, पेज 8-9
- ↑ देखेः मजलिसी, बिहार उल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 88, पेज 331-334
- ↑ सहीफ़ा ए सज्जादीया, दुआ ए नूज़दहुम
- ↑ मोहक़्क़िक़ हिल्ली, शरा ए अल-इस्लाम, 1408 हिजरी, भाग 1, पेज 98; नजफी, जवाहिर अल-कलाम, 1404 हिजरी, भाग 12, पेज 127
- ↑ अल्लामा हिल्ली, तहरीर अहकाम अल-शरीया, 1420 हिजरी, भाग 1, पेज 291; मोहक़्क़िक़ हिल्ली, शरा ए अल-इस्लाम, 1408 हिजरी, भाग 1, पेज 98; नजफ़ी, जवाहिर अल-कलाम, 1404 हिजरी, भाग 12, पेज 144
- ↑ नजफ़ी, जवाहिर अल-कलाम, 1404 हिजरी, भाग 12, पेज 137; मोहक़्क़िक़ हिल्ली, शरा ए अल-इस्लाम, 1408 हिजरी, भाग 1, पेज 98
- ↑ नजफ़ी, जवाहिर अल-कलाम, 1404 हिजरी, भाग 12, पेज 144-148
- ↑ नजफ़ी, जवाहिर अल-कलाम, 1404 हिजरी, भाग 12,पेज 137; मोहक़्क़िक़ हिल्ली, शरा ए अल-इस्लाम, 1408 हिजरी, भाग 1, पेज 98-99
- ↑ नजफ़ी, जवाहिर अल-कलाम, 1404 हिजरी, भाग 12, पेज 140; मोहक़्क़िक़ हिल्ली, शरा ए अल-इस्लाम, 1408 हिजरी, भाग 1, पेज 98-99
- ↑ नजफ़ी, जवाहिर अल-कलाम, 1404 हिजरी, भाग 12, पेज 141; मोहक़्क़िक़ हिल्ली, शरा ए अल-इस्लाम, 1408 हिजरी, भाग 1, पेज 99
- ↑ नजफ़ी, जवाहिर अल-कलाम, 1404 हिजरी, भाग 12, पेज 152
- ↑ नजफ़ी, जवाहिर अल-कलाम, 1404 हिजरी, भाग 12, पेज 142; मोहक़्क़िक़ हिल्ली, शरा ए अल-इस्लाम, 1408 हिजरी, भाग 1, पेज 99
- ↑ नजफ़ी, जवाहिर अल-कलाम, 1404 हिजरी, भाग 12, पेज 144; मोहक़्क़िक़ हिल्ली, शरा ए अल-इस्लाम, 1408 हिजरी, भाग 1, पेज 99
- ↑ नजफ़ी, जवाहिर अल-कलाम, 1404 हिजरी, भाग 12, पेज 144
- ↑ शेख सदूक़, ओयून अख़बार अल-रेज़ा, 1378 हिजरी, भाग 2, पेज 168-169
- ↑ रोग़नी, शीआयान ख़ूजे दर आई ए तारीख़, 1387 शम्सी, पेज 81
- ↑ शरीफ़ राज़ी, गंजीना ए दानिशमंदान, 1352 शम्सी, भाग 1, पेज 324
स्रोत
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- मोहक़्क़िक़ हिल्ली, जाफ़र बिन हसन, शरा ए अल-इस्लाम फ़ी मसाइल अल-हलाले वल हराम, शोध व संशोधनः अब्दुल हुसैन मुहम्मद अली बक़्क़ाल, क़ुम, इस्माईलीयान, दूसरा संस्करण 1408 हिजरी
- मजलिसी, मुहम्मद बाक़िर, बिहार उल अनवार अल-जामेअते ले दुरारिल अखबार अल-आइम्मातिल अत्हार, बैरूत, दार ए एहयाइत तुरास अल-अरबी, दूसरा संस्करण, 1403 हिजरी
- नजफ़ी, मुहम्मद हसन, जवाहिर अल-कलाम फ़ी शरह शरा ए अल-इस्लाम, बैरूत, दार एहयाइत तुरास अल-अरबी, सातवां संस्करण, 1404 हिजरी