शेख़ मुफ़ीद
मुहद्दिस, मुतकल्लिम, इमामिया फ़क़ीह | |
![]() हरम ए काज़मैन में शेख़ मुफ़ीद की क़ब्र | |
पूरा नाम | मुहम्मद बिन मुहम्मद बिन नोमान |
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उपनाम | इब्नुल मोअल्लिम, शेख़ मुफ़ीद |
जन्म तिथि | 11 ज़िल क़ादा वर्ष 336 हिजरी या 338 हिजरी |
जन्म स्थान | उकबरी बग़दाद के क़रीब |
मृत्यु तिथि | शुक्रवार, 3 रज़मान 413 हिजरी |
मृत्यु का शहर | बग़दाद |
समाधि स्थल | काज़मैन के हरम में |
प्रसिद्ध रिश्तेदार | अबू याअली जाफ़री (दामाद) |
गुरू | शेख़ सदूक़, इब्ने जुनैद इस्कानी, इब्ने क़ुलूवैह क़ुम्मी |
शिष्य | शेख़ तूसी, सय्यद मुर्तज़ा, सय्यद रज़ी, अहमद बिन अली नज्जाशी |
शिक्षा स्थान | बग़दाद |
संकलन | अल मुक़नआ, अवाएलुल मक़ालात, अल इरशाद फ़ी मारेफ़त हुजजुल्लाह अलल एबाद, व अन्य...... |
मुहम्मद बिन मुहम्मद बिन नोमान (336 या 338 - 413 हिजरी) जिन्हें शेख़ मुफ़ीद (अरबी: شیخ مفید) के नाम से जाना जाता है, चौथी और पांचवी शताब्दी हिजरी के एक शिया इमामी धर्मशास्त्री और फ़क़ीह हैं। यह वर्णन किया गया है कि शेख़ मुफ़ीद ने इल्मे उसूल उल-फ़िक़्ह के संपादन के साथ फ़िक़्ही इज्तिहाद के लिए एक आधुनिक दृष्टिकोण पेश किया, जो तर्कसंगत मूल्यांकन के बिना अत्यधिक तर्कवाद (इफ़्राती अक़्लगिराई) और रिवायतों को अक़्ली पैमाने पर जांचे बिना स्वीकृति के खिलाफ़ एक मध्यम मार्ग पर आधारित था। शेख़ सदूक़, इब्ने जुनैद इस्काफ़ी और इब्ने क़ूलुवैह उनके सबसे प्रमुख शिक्षक, शेख़ तूसी, सय्यद मुर्तज़ा, सय्यद रज़ी और नज्जाशी उनके सबसे प्रसिद्ध छात्र और न्यायशास्त्र (फ़िक़्ह) में किताबे अल-मुक़्नेआ, इल्मे कलाम मे अवाएल उल-मक़ालात और शिया इमामों की सीरत पर किताब अल-इरशाद सबसे प्रसिद्ध संकलनों में से है।
वंशावली, उपनाम और जन्म
मुहम्मद बिन मुहम्मद नोअमान[१] का जन्म 11 ज़िल-क़ादा 336 हिजरी[२] या 338 हिजरी[३] को बग़दाद के पास उकबरी नामक स्थान पर हुआ था।[४]
आपके पिता के अध्यापक होने की वजह से आप इब्नुल मोअल्लिम के नाम से प्रसिद्ध थे। ऊकबरी और बग़दादी उनकी दो अन्य उपनाम हैं।[५] शेख़ मुफ़ीद नामक उपनाम के बारे मे मिलता है कि मोतज़ली विद्वान अली बिन ईसा रुम्मानी से हुई एक बहस मे जब आपने उसकी सभी दलीलो को काटने मे सफलता पाई तो उसके बाद से आपको मुफ़ीद कह कर संबोधित करने लगे।[६]
ऐतिहासिक स्रोतों में उनकी दो संतान का उल्लेख है: अबूल-क़ासिम अली नाम का एक बेटा और दूसरी बेटी जिसका नाम का उल्लेख नहीं हुआ है, वह अबू यअला जाफ़री की पत्नी है।[७]
शेख मुफ़ीद का निधन रमज़ान के दूसरे या तीसरे दिन 413 हिजरी में हुआ।[८] शेख तूसी ने बताया है कि उनकी मृत्यु पर सभी मज़हबों के लोगों की इतनी भीड़ नमाज़ पढ़ने और मातम मनाने के लिए जमा हुई कि ऐसा पहले कभी नहीं देखा गया।[९] कुछ साल तक उन्हें उनके घर में ही दफ़नाया गया था, बाद में उनके जिस्म को क़ुरैश क़ब्रिस्तान में तब्दील कर दिया गया, जो इमाम जवाद (अ) की क़ब्र के पास काज़मैन के पवित्र स्थल में स्थित है।[१०]
नैतिक विशेषताएं
यह वर्णन किया गया है कि शेख़ मुफ़ीद अक्सर दान (सदक़ा) देते थे, विनम्र स्वभाव वाले थे, अधिकतर रोज़ा रखते थे और अधिकांश समय नमाज़ में वयस्त रहते थे। मोटे कपड़े पहनते थे यहा तक कि उसे शेख़ मशाइख अल-सूफीया के नाम से जाना जाने लगा।[११] उनके दामाद अबू यअला जाफ़री के अनुसार, वो रात में कम सोते थे और अपना अधिकांश समय पढ़ाई, नमाज़, कुरआन की तिलावत करने और शिक्षा देने मे बिताते थे।[१२] इमाम ज़माना (अ) ने शेख़ मुफ़ीद को लिखे एक पत्र में उन्हें कई सम्मानजनक उपनाम से नवाज़ा है, जैसे:"अल अख़ो अल सदीद" (मज़बूत और सच्चे भाई), "वली-ए-रशीद" (अल्लाह के दीन में ख़ालिस दोस्त), "वासिल बे दर्जा-ए-यक़ीन बे मक़ाम-ए-अहलेबैत" (अहलेबैत के मक़ाम पर यक़ीन की उच्च मंज़िल तक पहुँचने वाला)।[१३]
शिक्षा
उन्होंने कुरान और प्रारंभिक ज्ञान की शिक्षा अपने पिता से प्राप्त की। उसके बाद अपने पिता के साथ बग़दाद चले गए, जहां उन्हें प्रमुख शिया और सुन्नी मोहद्देसीन, धर्मशास्त्रियों और फ़ुक़्हा से लाभ हुआ।[१४]
शेख़ सदूक़ (मृत्यु 381 हिजरी), इब्ने जुनैद इसकाफी (मृत्यु 381 हिजरी), इब्ने क़ूलुवैह (मृत्यु 369 हिजरी), अबू ग़ालिब ज़रारी (मृत्यु 368 हिजरी) और अबू बक्र मुहम्मद बिन उमर जआबी (मृत्यु 355 हिजरी) उनके प्रसिद्ध शिया शिक्षको मे से हैं।[१५]
शेख़ मुफ़ीद ने जोअल नाम से प्रसिद्ध वरिष्ठ मोतज़ली शिक्षक हुसैन बिन अली बसरी और प्रसिद्ध मुतकल्लिम अबूल-जैश मुज़फ़्फ़र बिन मुहम्मद ख़ुरासानी बल्खी के शिष्य अबू यासिर से धर्मशास्त्र का ज्ञान प्राप्त किया। इस प्रकार उनके अनुरोध पर उन्होंने तत्कालीन प्रसिद्ध मोतज़ेली विद्वान अली बिन ईसा ज़मानी के शिक्षण में भी भाग लिया।[१६]
लगभग 40 वर्ष की आयु से शियों का न्यायशास्त्र, धर्मशास्त्र और हदीस का नेतृत्व उनकी ज़िम्मेदारी थी उन्होंने शिया अक़ाएद की रक्षा के लिए अन्य धर्मों के विद्वानों के साथ बहस की।[१७]
विद्वानिक स्थान
शेख़ मुफ़ीद इमामिया (शिया) विद्वानों की श्रृंखला में केवल एक उत्कृष्ट एवं शीर्षस्थ मुतकल्लिम (धर्मशास्त्री) और फ़क़ीह (न्यायशास्त्री) नहीं हैं, बल्कि इससे भी आगे, वह एक ऐसी वैज्ञानिक प्रगतिशील धारा के संस्थापक और प्रमुख हैं जो कलाम (धर्मशास्त्र) और फ़िक़ह (इस्लामी न्यायशास्त्र) के क्षेत्र में आज तक शिया धार्मिक शिक्षा केन्द्रों में जारी है। हालाँकि यह धारा ऐतिहासिक, भौगोलिक और मतगत प्रभावों से अछूती नहीं रही, लेकिन इसकी मुख्य विशेषताएँ और राजनीतिक रेखाएँ आज भी कायम हैं। शेख मुफ़ीद ने अहले बैत (अ.स.) के मत की स्वतंत्र पहचान को स्थापित करने, शिया फ़िक़ह को एक सही वैज्ञानिक रूप देने, तथा नक़्ल (परंपरा) और अक़्ल (तर्क) के बीच तार्किक सामंजस्य स्थापित करने की विधि विकसित करने में निर्णायक भूमिका निभाई।"
शेख़ तूसी ने अपनी पुस्तक अल-फ़ेहरिस्त में शेख़ मुफ़ीद को त्वरित समझ, हाज़िर जवाब, धर्मशास्त्र और न्यायशास्त्र के ज्ञान में एक नेता के रूप में उल्लेख किया है।[१८] इब्ने नदीम ने उन्हें रईस उल-मुतकल्लेमीन की उपाधि से याद किया है। इल्मे कलाम में उन्हें दूसरों पर प्राथमिकता देते हुए उन्हे अद्वितीय बताया है।[१९] अहले सुन्नत के मोहद्दिस और इतिहासकार ज़हबी (मृत्यु: 748 हिजरी) के अनुसार, शेख मुफ़ीद शिया मत के विरोधियों की सभी किताबों को याद (कंठस्थ) कर चुके थे।[२०]
शेख़ मुफ़ीद को बग़दाद के कलामी मकतब का प्रतिनिधि और इसकी सबसे प्रमुख शख्सियत माना गया है जिन्होंने कुम के थियोलॉजिकल स्कूल के विचारों की आलोचना की है।[२१] ऐसा कहा जाता है कि शेख़ मुफ़ीद के समय मे बग़दाद स्कूल की विचारधारा अपने चरम पर पहुंच गई थी।[२२] शेख़ मुफ़ीद ने बहुत से छात्रों को प्रशिक्षित किया, उनमें से कुछ बड़े शिया विद्वान बने। उनमें से कुछ इस प्रकार हैं:[२३]
- सय्यद मुर्तज़ा (मृत्यु 436 हिजरी)
- सय्यद रज़ी (मृत्यु 406 हिजरी)
- शेख़ तूसी (मृत्यु 460 हिजरी)
- नज्जाशी (मृत्यु 450 हिजरी)
- सल्लार देलमी (म़त्यु 463 हिजरी)
- अबूल-फ़त्ह कराजकी (मृत्यु 449 हिजरी)
- अबू यअला मुहम्मद बिन हसन जाफ़री (मृत्यु 463 हिजरी)[२४]
रचनाएं
- मुख़्य लेखः शेख़ मुफ़ीद की रचनाओ की सूची
शेख़ मुफ़ीद की बहुत सारी रचनाएं हैं नज्जाशी की फ़ेहरिस्त के अनुसार शेख़ मुफ़ीद की पुस्तकों और पत्रिकाओं की संख्या 175 है।[२५] कहा गया है कि उनकी आधी रचनाएं केवल इमामत के बारे में है।[२६] उनकी सबसे प्रसिद्ध पुस्तकों में न्यायशास्त्र में अल-मुक़्नेआ, इस्ले कलाम मे अवाएल उल-मक़ालात और शिया इमामों की सीरत पर किताब अल-इरशाद है।[२७]
शेख़ मुफ़ीद की कृतियों का संग्रह 14 खंडों में तसनीफ़ाते शेख़ मुफ़ीद के नाम से प्रकाशित हुआ है। यह संग्रह 1371 शम्सी में शेख़ मुफ़ीद वर्ल्ड कांफ्रेंस के अवसर पर सामने आया है।[२८]
न्यायशास्त्र के आधुनिक तरीके
शेख़ मुफीद ने शिया न्यायशास्त्र में पिछले युग से एक अलग दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। आयतुल्लाह जाफ़र सुबहानी और अबुल क़ासिम गुर्जी के अनुसार, शेख से पहले दो न्यायशास्त्रीय दृष्टिकोण प्रचलित थे: पहला दृष्टिकोण हदीसों पर इफ़्राती सूरत के अमल पर आधारित था, जिसमें हदीसों के संचरण (सनद) और पाठ (मत्न) पर कोई विशेष ध्यान नहीं दी जाती थी।[२९] दूसरे दृष्टिकोण में, हदीसों पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया गया था और तर्कसंगत नियमों पर बहुत अधिक जोर दिया गया था चाहे वो क़यास के जैसे धार्मिक ग्रंथों (नुसूसे दीनी) के साथ ताआरुज ही क्यो ना रखते हों।[३०] शेख ने बीच का रास्ता अपनाते हुए एक आधुनिक पद्धति की आधारशिला रखी जिसमें बुद्धि की सहायता से इस्तिम्बात और अहकाम की प्राप्ति के लिए सिद्धांत और नियम होते थे और फिर इन सिद्धांत द्वारा धार्मिक ग्रंथों (दीनी मुतून) से अहकाम निकाले जाते थे।[३१] इस कारण इन्हें न्यायशास्त्र के सिद्धांतों का संहिताकार माना जाता है।[३२]
शेख़ मुफ़ीद के बाद उनके शिष्य सय्यद मुर्तज़ा ने अपने किताब अल-ज़रिया इला उसूल उश-शरिया और शेख़ तूसी ने अपनी किताब अल-उद्दा फ़िल-उसुल के माध्यम से इस मार्ग को जारी रखा।[३३]

विद्वानों के वाद-विवाद में भागीदारी
शेख़ मुफ़ीद के समय में बगदाद में विभिन्न इस्लामी धर्मों के वरिष्ठ विद्वानों के बीच वाद-विवाद (इल्मी मुनाज़ेरात) पर चर्चा हुआ करती थी। इनमें से कई वाद-विवाद अब्बासी खलीफाओं की उपस्थिति में हुए। शेख़ इन वाद-विवाद में शामिल होते थे और शिया संप्रदाय पर जताई जाने वाली आपत्तियों का जवाब देते थे।[३४]
शेख मुफ़ीद के घर में भी चर्चाओं के लिए बैठकें आयोजित होती थी जिनमें मोतज़ली, ज़ैदी, इस्माइली जैसे विभिन्न इस्लामी संप्रदायो के विद्वान भाग लिया करते थे।[३५]
फ़तवे में गलती सुधारने की घटना
शेख़ मुफ़ीद के एक फ़तवे में गलती और इमाम महदी (अ) द्वारा उसे सुधारने की घटना के बारे में एक रिपोर्ट है।[३६] कहा जाता है कि इसका सबसे पुराना स्रोत 150 साल पहले का है।[३७] इस रिपोर्ट की सच्चाई पर संदेह है क्योंकि इसका स्रोत कमज़ोर है, यह फ़तवा हदीसों और प्रसिद्ध फ़तवों के विपरीत है, और इससे शेख़ मुफ़ीद पर अज्ञानता या जल्दबाजी का आरोप लगता है।[३८] इसके अलावा, शेख़ मुफ़ीद ने अपनी किताब "अल-मुक़नआ" में इस मामले में प्रसिद्ध फ़तवा दिया है, जिससे उनसे ऐसी गलती होने की कहानी को काल्पनिक लगता है।[३९]
कहानी के अनुसार, एक गाँव वाला शेख़ मुफ़ीद के पास आया और पूछा कि अगर एक गर्भवती महिला की मृत्यु हो जाए और उसके पेट में बच्चा जीवित हो, तो क्या महिला को बच्चे के साथ दफ़न कर देना चाहिए या बच्चे को निकाल लेना चाहिए? शेख़ मुफ़ीद ने कहा कि महिला को बच्चे के साथ दफ़न कर दो। लेकिन जब वह गाँव वाले वापस जा रहे थे, तो एक घुड़सवार ने उन्हें रोका और कहा कि शेख़ ने फ़तवा बदल दिया है पेट को काटकर बच्चे को निकालो और फिर महिला को दफ़न करो। बाद में जब गाँव वाले ने यह बात शेख़ मुफ़ीद को बताई, तो वह हैरान रह गए और समझ गए कि वह घुड़सवार इमाम महदी (अ) थे। इसके बाद शेख़ मुफ़ीद ने फ़तवा देना बंद कर दिया, लेकिन इमाम महदी (अ) के एक संदेश में उन्हें फिर से फ़तवा देने के लिए कहा गया और कहा कि वे गलतियों को सुधार देंगे।[४०]
शेख़ मुफ़ीद के बारे में रचनाएँ
शेख़ मुफ़ीद पर कई किताबें और लेख लिखे और प्रकाशित किए गए हैं, जिनमें शामिल हैं:

- शेख़ मुफ़ीद: परचमदारे आज़ादी ए अंदीशे, सय्यद जाफ़र मुर्तज़ा आमेली
- अंदीशेहा ए कलामी ए शेख़ मुफ़ीद, मार्टिन मैकडरमॉट (अंग्रेज़ी: Mcdermott, Martin)
- शेख़ मुफ़ीद, अली अकबर वलायती
- मुदाफ़ेअ हरीमे तशय्यो (मुरूरी बर ज़िदगी व आसारे शेख़ मुफ़ीद), कास़िम अली कूचनानी
- शेख़ मुफ़ीद: मोअल्लिमे उम्मत, अहमद लोक़मानी।[४१]
24-26 शव्वाल 1413 हिजरी क़मरी में, क़ुम में शेख़ मुफ़ीद की हजारवीं वर्षगांठ पर एक वैश्विक सम्मेलन आयोजित किया गया। इस सम्मेलन में 23 देशों के 250 से अधिक विद्वानों ने भाग लिया और शेख़ मुफ़ीद के कलामी, फ़िक़ही, ऐतिहासिक और हदीस संबंधी विचारों तथा उनके युग की विशेषताओं पर शोधपत्र प्रस्तुत किए। इन शोधपत्रों को कई पुस्तकों के रूप में प्रकाशित किया गया।[४२]
इसके अलावा, सन् 1373 हिजरी शम्सी में, शेख मुफ़ीद के जीवन पर एक टीवी धारावाहिक "ख़ुर्शीदे शब" बनाया गया, जिसकी पटकथा महमूद हसनी ने लिखी और सिरूस मुक़द्दम ने निर्देशन किया। यह धारावाहिक सन् 1374 में ईरान के टेलीविज़न के दूसरे चैनल पर प्रसारित किया गया।[४३]
फ़ुटनोट
- ↑ नज्जाशी, रिजाल, 1407 हिजरी, पेज 399
- ↑ नज्जाशी, रिजाल, 1407 हिजरी, पेज 402
- ↑ इब्ने नदीम, अल-फ़हरिस्त, 1350 शम्सी, पेज 197; तूसी, अल-फ़हरिस्त, 1417 हिजरी, पेज 239
- ↑ शुबैरी, गुज़री बर हयाते शेख़ मुफ़ीद, 1413 हिजरी, पेज 7-8
- ↑ शुबैरी, गुज़री बर हयाते शेख़ मुफ़ीद, 1413 हिजरी, पेज 7-8
- ↑ शुबैरी, गुज़री बर हयाते शेख़ मुफ़ीद, 1413 हिजरी, पेज 8-9
- ↑ शुबैरी, गुज़री बर हयाते शेख़ मुफ़ीद, 1413 हिजरी, पेज 37; शुबैरी, नागुफ़्ते हाए अज़ हयाते शेख मुफ़ीद, 1413 हिजरी, पेज 118
- ↑ शोबैरी, गुज़री बर हयाते शेख़ मुफ़ीद, पृष्ठ 39।
- ↑ तूसी, अल फ़ेहरिस्त, 1417 हिजरी, पृष्ठ 239।
- ↑ नज्जाशी, रेजाल, 1407 हिजरी, पृष्ठ 402 और 403।
- ↑ शुबैरी, गुज़री बर हयाते शेख़ मुफ़ीद, 1413 हिजरी, पेज 26
- ↑ शुबैरी, गुज़री बर हयाते शेख़ मुफ़ीद, 1413 हिजरी, पेज 26-27
- ↑ तबरसी, अल एहतेजाज, 1386 शम्सी, भाग 2, पेज 322।
- ↑ गुर्जी, तारीख़े फ़िक़्ह वा फ़ुक़्हा, 1385 शम्सी, पेज 143
- ↑ गुर्जी, तारीख़े फ़िक़्ह वा फ़ुक़्हा, 1385 शम्सी, पेज 143
- ↑ शुबैरी, गुज़री बर हयाते शेख़ मुफ़ीद, 1413 हिजरी, पेज 8-9
- ↑ शुबैरी, गुज़री बर हयाते शेख़ मुफ़ीद, 1413 हिजरी, पेज 23-24
- ↑ तूसी, अल-फ़हरिस्त, 1417 हिजरी, पेज 238
- ↑ इब्ने नदीम, अल-फ़हरिस्त, 1350 शम्सी, पेज 226 और 247
- ↑ ज़हबी, सैर आलाम अल नबला, भाग 13, पेज 96।
- ↑ जाफ़री, मुक़ाएसा ई मियाने दो मकतबे फ़िक्री ए शिया दर क़ुम वा बग़दाद दर क़र्ने चहारुम हिजरी, पेज 14-15
- ↑ जाफ़री, मुक़ाएसा ई मियाने दो मकतबे फ़िक्री ए शिया दर क़ुम वा बग़दाद दर क़र्ने चहारुम हिजरी, पेज 15
- ↑ गुर्जी, तारीख़े फ़िक़्ह वा फ़ुक़्हा, 1385 शम्सी, पेज 143
- ↑ गुर्जी, तारीख़े फ़िक़्ह वा फ़ुक़्हा, 1385 शम्सी, पेज 143-144
- ↑ नज्जाशी, रिजाले नज्जाशी, 1407 हिजरी, पेज 399-402
- ↑ फ़रमानियान और सादिक़ काशानी, निगाही बे तारीख़े तफ़क्कुरे इमामिया, 1394 शम्सी, पेज 54।
- ↑ गुर्जी, तारीख़े फ़िक़्ह वा फ़ुक़्हा, 1385 शम्सी, पेज 143-144
- ↑ गुर्जी, तारीख़े फ़िक़्ह वा फ़ुक़्हा, 1385 शम्सी, पेज 143-144
- ↑ सुबहानी, मोअस्सेसा अत-तबआत फ़ुक़्हा, 1418 हिजरी, पेज 245-246; गुर्जी, तारीख़े फ़िक़्ह वा फ़ुक़्हा, 1385 शम्सी, पेज 145
- ↑ सुबहानी, मोअस्सेसा तबक़ात उल-फ़ुक़्हा, 1418 हिजरी, पेज 246; गुर्जी, तारीख़े फ़िक़्ह वा फ़ुक़्हा, 1385 शम्सी, पेज 145
- ↑ सुबहानी, मोअस्सेसा अत-तबआत फ़ुक़्हा, 1418 हिजरी, पेज 245; गुर्जी, तारीख़े फ़िक़्ह वा फ़ुक़्हा, 1385 शम्सी, पेज 145
- ↑ गुर्जी, तारीख़े फ़िक़्ह वा फ़ुक़्हा, 1385 शम्सी, पेज 146
- ↑ सुबहानी, मोअस्सेसा अत-तबआत फ़ुक़्हा, 1418 हिजरी, पेज 245; गुर्जी, तारीख़े फ़िक़्ह वा फ़ुक़्हा, 1385 शम्सी, पेज 145
- ↑ गुर्जी, तारीख़े फ़िक़्ह वा फ़ुक़्हा, 1385 शम्सी, पेज 146
- ↑ मुंतज़िम, भाग 8, पेज 11, बेनक़्ल शुबैरी, गुज़री बर हयाते शेख़ मुफ़ीद, पेज 23-24
- ↑ करीमयान, वाकावी फ़तवाई मंसूब बे शेख़ मुफ़ीद, पेज 30।
- ↑ करीमयान, वाकावी फ़तवाई मंसूब बे शेख़ मुफ़ीद, पेज 30।
- ↑ करीमयान, वाकावी फ़तवाई मंसूब बे शेख़ मुफ़ीद, पेज 33 से 37।
- ↑ करीमयान, वाकावी फ़तवाई मंसूब बे शेख़ मुफ़ीद, पेज 39।
- ↑ करीमयान, वाकावी फ़तवाई मंसूब बे शेख़ मुफ़ीद, पेज 31 से 32।
- ↑ देखें, ۵۷57 उनवाने किताब सहमे अंदक, शेख़ मुफ़ीद, अज़ आसारे मोअल्लेफ़ाने पस अज़ इन्क़ेलाब वर्ष 1392 रीकोद्दार तौलीदे आसार दर दहये अख़ीर, ख़बरगुज़ारी किताबे ईरान।
- ↑ शेख मुफ़ीद की विश्व हज़ारा कांग्रेस की एक रिपोर्ट, पृ. 98-99.
- ↑ "खुर्शीदे शब दर आई फ़िल्म", सिनेमा जगत की एक समाचार वेबसाइट।
स्रोत
- इब्ने नदीम, मुहम्मद बिन अबि याक़ूब इस्हाक़, अल-फ़हरिस्त, शोधः रज़ा तजद्दुद, तेहरान, 1350 शम्सी
- जाफ़री, याक़ूब, “मुक़ाएसा ई मियाने दो मकतबे फ़िक्री ए शिया दर क़ुम वा बग़दाद दर क़र्ने चहारुम हिजरी” दर मक़ालाते फ़ारसी, (मजमूआ ए मक़ालाते कुंगरे शेख़ मुफ़ीद, भाग 69), क़ुम, कुंगरे जहानी ए हज़ारे शेख़ मुफ़ीद, पहला प्रकाशन, 1413 हिजरी
- खुर्शीदे शब दर आई फ़ील्म, तार नुमाए ख़बरी दुनिया ए सीनिमा, तारीखे विज़िट 7 मुर्दाद 1398 शम्सी, तारीखे दर्ज 29 मेहर 1397 शम्सी
- सुबहानी, जाफ़र, मोअस्सेसा तबक़ात उल-फ़ुक़्हा, मुकद्दमा (अल-किस्म उस-सानी), मोअस्सेसा इमाम सादिक़ (अ), क़ुम, 1418 हिजरी
- शुबैरी, सय्यद मुहम्मद जवाद, गुज़री बर हयाते शेख़ मुफ़ीद, दर मक़ालाते फ़ारसी कुंगरे जहानी ए हज़ारे शेख़ मुफ़ीद, क्रमांक 55 1372 शम्सी
- शुबैरी, सय्यद मुहम्मद जवाद, नागुफ़्ते हाए अज़ हयाते शेख मुफ़ीद, दर मक़ालाते फ़ारसी कुंगरे जहानी ए हज़ारे शेख़ मुफ़ीद, 1372 शम्सी
- तूसी, मुहम्मद बिन अल-हसन, अल-फ़हरिस्त, शोधः जवाद उल-क़य्यूमी, मोअस्सेसा ए नश्र अल-फ़ुकाहा, 1417 हिजरी
- गुर्जी, अबुल क़ासिम, तारीखे फ़िक़्ह वा फ़ुक्हा, तेहरान, सम्त, 1385 शम्सी
- नज्जाशी, अहमद बिन अली, रिजाले नज्जाशी, संशोधनः सय्यद मूसा शुबैरी ज़ंजानी, क़ुम, दफ़्तरे इंतेशारात इस्लामी, 1407 हिजरी