भटकाने वाली किताबें
यह लेख एक न्यायशास्त्रीय अवधारणा से संबंधित एक वर्णनात्मक लेख है और धार्मिक आमाल के लिए मानदंड नहीं हो सकता। धार्मिक आमाल के लिए अन्य स्रोतों को देखें। |
कुछ अमली व फ़िक़ही अहकाम |
फ़ुरू ए दीन |
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भटकाने वाली किताबे अर्थात कुतुब ज़ाल्ला अथवा कुतुब ज़लाल (अरबीः كتب الضلال) वह रचनाएँ हैं जो पाठकों के भटकने का कारण बनती हैं। कुछ न्यायविद् इन लेखो को भटकाने वाली किताब मानते है जो उल्लेखित गुण रखने के साथ उन्हे इसी उद्देश्य के लिए लिखा गया हो। भटकाने वाली किताबें केवल भटकाने वाली किताबे नही है बल्कि लेख, पत्र, समाचार पत्र और पत्रिकाएँ भी शामिल हैं। इसी प्रकार भटकने का अर्थ सिर्फ विचारों में भटक जाना नहीं है; इसमें शरिया नियम भी शामिल हैं।
शेख़ मुफ़ीद ने भटकाने वाली किताबों के मुद्दे को शिया न्यायशास्त्र में पेश किया। उनके बाद, इसे अन्य न्यायविदों की पुस्तकों में शामिल किया गया और इसके न्यायशास्त्रीय नियमो की जांच की गई। शिया न्यायविदों के फ़तवो के अनुसार, भटकाने वाली किताबो को रखना, ख़रीदना और बेचना, प्रतिलिपि बनाना और प्रकाशित करना, अध्ययन करना और पढ़ाना हराम है जबकि इनको नष्ट करना वाजिब है, सिवाय उन मामलों के जहां उनकी सामग्री का उपयोग हक़ को साबित करने और बातिल का खंडन करने के लिए किया जाता है।
न्यायशास्त्रीय परिभाषा
भटकाने वाली किताबे अर्थात कुतुब ज़ाल्ला अथवा कुतुब ज़लाल, अपने सामान्य अर्थ में, उन लेखों को संदर्भित करती हैं जो पाठकों के भटकाने का कारण होती हैं;[१] लेकिन न्यायशास्त्रीय पुस्तकों में, इसकी अलग-अलग परिभाषाएँ प्रस्तावित की गई हैं: कुछ न्यायविदों ने इसके लिए एक ही सामान्य अर्थ चुना है।[२] कुछ लोगों ने कहा है कि ऐसी किताबें भी हैं जो भटकाने के उद्देश्य से लिखी जाती हैं[३] और कुछ दूसरों के अनुसार, भटकाने वाली किताबें ऐसी किताबें हैं जो गुमराह होने और गुमराह करने के मकसद से लिखी जाती हैं।[४]
भटकाने वाली किताबो की व्याख्या में "किताबें" शब्द में कोई भी लेखन शामिल है; चाहे वह अपने सामान्य अर्थ में एक किताब हो, एक लेख हो या एक पत्र हो।[५]
इतिहास और स्थान
कुछ शोधकर्ताओं के अनुसार, "भटकाने वाली किताबें" शब्द पहली बार शेख़ मुफ़ीद द्वारा किताब अल-मुक़्नेआ[६] में "अविश्वास की किताबें अर्थात कुतुब कुफ्र" और "भटकाने वाली किताबें अर्थात कुतुब ज़लाल" दो शीर्षकों के साथ प्रस्तावित किया गया था।[७] उनके बाद शेख़ तूसी,[८] इब्न बर्राज,[९] इब्न इद्रीस[१०] और अल्लामा हिल्ली[११] सहित अन्य न्यायविदों ने इन दो शीर्षको का इस्तेमाल किया।
"कुतुब ज़लाल" और "कुतुब ज़ाल्ला" दो शीर्षक हैं, जो अपने व्यापक उपयोग के कारण,[१२] धीरे-धीरे न्यायशास्त्रीय कार्यों, विशेष रूप से समकालीन न्यायशास्त्रीय कार्यों में प्रवेश कर चुके हैं।[१३]
न्यायशास्त्र की पुस्तकों में भटकाने वाली किताबो और उससे संबंधित नियमो (अहकाम) के बारे में कोई स्वतंत्र चर्चा नहीं की गई है; बल्कि इसका उल्लेख व्यापार, वक़्फ़, किराया, वसीयत और ऋण (आरया) के अध्यायों में चर्चा के बीच किया गया है। शेख अंसारी ने अपनी पुस्तक अल-मकासिब में, "ऐसी चीजें जिनके साथ उनके हराम होने के कारण उनसे कमाई करना हराम है" शीर्षक के तहत, "भटकाने वाली किताबो का रखना" शीर्षक से एक खंड मे चर्चा की है।[१४]
भटकना किस क्षेत्र मे और किसके लिए?
न्यायविदों के फ़तवे के अनुसार, भटकने मे धर्म के पांच सिद्धांत और शरीया नियम दोनों शामिल हैं; यानी, कोई भी किताब जो धार्मिक सिद्धांतों या शरीयत नियमों के क्षेत्र में गुमराह करती है, उसे भटकाने वाली किताब माना जाता है।[१५] इसके अलावा, आयतुल्लाह मुंतज़री ने लिखा है कि गुमराह करने का मतलब अधिकाशं रूप से पाठकों का गुमराह होना है; यानी ऐसा नहीं है कि अगर कोई किताब पढ़कर कोई इंसान भटक जाता है तो वह किताब भटकाने वाली किताब हो जाती है; क्योंकि सभी किताबें, यहां तक कि क़ुरआन और हदीस की किताबें भी, एक आम व्यक्ति या अज्ञानी लोगों के लिए भटकाने वाली हो सकती हैं।[१६]
भटके हुए होने के उदाहरण न्यायशास्त्र संबंधी लेखों मे भटकाने वाली किताबो के उदाहरण का उल्लेख किया गया हैं; परन्तु इस क्षेत्र में न्यायशास्त्रियों में मतभेद है। उदाहरण के लिए, अल्लामा हिल्ली (648-726 हिजरी), मोहक़्क़िक करकी (मृत्यु 940 हिजरी) ने तौरैत और इंजील (बाइबिल) को भटकाने वाली किताबें माना; इस कारण से कि ये किताबें विकृत हैं;[१७] लेकिन शेख अंसारी के अनुसार, यह स्पष्ट है कि ये किताबें मुसलमानों के बीच अप्रचलित हैं। इसलिए ये भटकाने का कारण नही हो सकती है।[१८]
इसके अलावा, शिया अख़बारी विद्वान यूसुफ बहरानी (1186-1107 हिजरी) ने न्यायशास्त्र के सिद्धांतों पर सुन्नियों के लेखन पर, साथ ही न्यायशास्त्र के सिद्धांतों पर शिया विद्वानों के कुछ कार्यों पर भी विचार किया, जो सुन्नियों का अनुसरण करते थे उन्हे भटकाने वाली किताबो का उदाहरण मानते है; लेकिन मिफ़्ताह अल-करामा पुस्तक के लेखक सय्यद जवाद आमेली (1160-1226 हिजरी) ने स्वयं यूसुफ़ बहरानी की इस बात को भटकाने का उदाहरण माना है।[१९]
शेख अंसारी ने यह भी लिखा है कि भटकाने वाली किताबों को सुरक्षित रखने के हराम होने के प्रमाण में केवल वे किताबें शामिल हैं जो गुमराह करती हैं, और शिया विरोधियों की बहुत सी किताबें भटकाने वाली नहीं हैं।[२०] और उन्होंने सुन्नियों की केवल कुछ पुस्तकों को, जिनमें पूर्वनियति (जब्र) सिद्ध करने और ख़लीफ़ाओं की सर्वोच्चता सिद्ध करने जैसी मान्यताएँ हैं, गुमराह करने वाली पुस्तकों का उदाहरण माना।[२१] कुछ न्यायविदों ने यह भी कहा है कि वे दार्शनिक हैं और रहस्यमय किताबें जो गुमराह करती हैं, गुमराह किताबों के उदाहरण हैं; चाहे उनका कंटेंट हक़ ही क्यो ना हो।[२२]
समकालीन मराजे तकलीद के एक समूह, आयतुल्लाह मकारिम शिराज़ी और आयतुल्लाह साफ़ी गुलपाएगानी ने उन समाचार पत्रों और पत्रिकाओं को सूचीबद्ध किया है जिनमें अश्लीलता और ईशनिंदा होती है और समाज में भ्रष्टाचार और गुमराही का कारण बनती है।[२३]
अहकाम
न्यायशास्त्रियों के अनुसार भ्रामिक पुस्तकों को नष्ट करना वाजिब है।[२४] भ्रामिक पुस्तकों के संबंध में निम्नलिखित बातें भी हराम हैं:
- गुमराह करने वाली किताबो का रखना और उससे पैसे कमाना[२५]
- प्रतिलिपि बनाना और प्रकाशित करना[२६]
- ख़रीदना और बेचना[२७]
- अध्ययन करना, सीखना और सिखाना[२८]
- गुमराह करने वाली पुस्तकों के प्रकाशन और प्रचार के लिए सम्पत्ति वक़्फ़ करना[२९]
- इस काम के लिए पैसे खर्च करने की वसीयत करना[३०]
- इन पुस्तकों के कवर और बाइंडिंग के लिए मजदूरी लेना।[३१]
न्यायशास्त्रियों के फ़तवे के अनुसार, ऐसा व्यक्तो को अलग रखा गया है जिसमे इन किताबो के माध्यम से हक को साबित और बातिल का खंडन करने की योग्यता रखता हो।[३२] इसी प्रकार हुसैन वहीद ख़ुरासानी के फ़तवे के अनुसार, भ्रामक किताबो का खरीदना और बेचना उस समय हराम है जब गुमराही की संभवना पाई जाती हो।[३३]
एक असाधारण फ़तवा
आयतुल्लाह मुंतज़री का मानना है कि आज, मुद्रण और प्रकाशन उपकरणों के विकास के कारण, किसी पुस्तक को नष्ट करने से न केवल वह गायब हो जाती है, बल्कि इसके प्रति लोगों की रुचि और इच्छा भी बढ़ती है। इसके अलावा, भ्रामक पुस्तकों को इस तथ्य के कारण संरक्षित और प्रकाशित करना कि उनमें अंधविश्वास और भ्रम हैं, इन पुस्तकों की सामग्री को अमान्य कर दिया जाएगा। इसलिए, उन्हें संरक्षित करना हराम नहीं है और उन्हें नष्ट करना वाजिब नहीं है।[३४]
न्यायशास्त्रीय तर्क
न्यायविदों ने भटकाने वाली पुस्तकों से संबंधित अहकाम प्राप्त करने के लिए चार साक्ष्य (अदिल्ला अरबा): क़ुरआन की आयतो, जिनमें सूर ए लुकमान[३५] की आयत 6 और सूर ए हज की आयत 30 शामिल हैं,[३६] रिवायतो जैसे कि इमाम सादिक (अ) की तोहफ़ अल-उक़ूल में,[३७][३८] एक हदीस, इज्माअ[३९] और भ्रष्टाचार की जड़ को काटना[४०] और संभावित नुकसान को रोकने जैसे बौद्धिक तर्क[४१] पर भरोसा किया है।
न्यायविद यूसुफ बिन अहमद बहरानी (1186-1107 हिजरी) ने भटकाने वाली किताबो की संरक्षण के हराम होने और उनका नष्ट करना वाजिब होने पर शक किया है। उनका मानना है कि इन नियमो (अहकाम) के साबित होने के लिए हमारे पास कोई शरई प्रमाण नही है।[४२]
ईरान के कानून में भटकाने वाली किताबें
1906 ईस्वी में ईरान के कानूनों में पहली बार संवैधानिक कानून के संशोधन में, "भटकाने वाली किताबें" शब्द का उपयोग किया गया था।[४३] इस कानून के 20वें अनुच्छेद मे प्रेस और प्रकाशन की स्वंतत्रता के संबंध मे "भ्रामक पुसतक़े और इस्लाम धर्म को हानि पहुचाने वाली सामाग्री के अलावा सभी प्रकाशन स्वतंत्रत है और उनको ऑडिट करने से मना किया गया है।"[४४] ईरान के इस्लामी गणराज्य के संविधान के चौबीसवें अनुच्छेद में, "भ्रामक पुस्तकों" के शीर्षक का उल्लेख किए बिना, यह कहा गया है कि "सामग्री में प्रकाशन और प्रेस स्वतंत्र है जब तक कि यह इस्लाम के सिद्धांतों या सार्वजनिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं करता है।[४५]
भटकाने वाली किताबें और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
"भटकाने वाली किताबो" से संबंधित कुछ न्यायशास्त्र अहकाम को अभिव्यक्ति, विचार और अनुसंधान की स्वतंत्रता के विपरीत माना गया है।[४६] उन्होंने इन समस्याओं का उत्तर इस प्रकार दिया है कि इस्लाम धर्म लोगों को ज्ञान का पता लगाने और प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करता है, न कि विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का विरोध करता है; लेकिन उन्होंने समाज के बौद्धिक और धार्मिक स्वास्थ्य पर भी ध्यान दिया है और समाज में धार्मिक और नैतिक विचलन को रोकने के लिए उन्होंने विचार और अभिव्यक्ति के क्षेत्र में स्वतंत्रता के दायरे को परिभाषित किया है।[४७]
फ़ुटनोट
- ↑ गुरजी, कुतुब ज़लाल, दीदगाह हाए फ़िक्ही व हुक़ूक़ी, पेज 45-46
- ↑ गुरजी, कुतुब ज़लाल, दीदगाह हाए फ़िक्ही व हुक़ूक़ी, पेज 46; देखेः मुन्तज़री, देरासात फ़ी अल मकासिब अल मोहर्रेमा, 1415 हिजरी, भाग 3, पेज 99; सुब्हानी, अल मुवाहिब, 1416 हिजरी, भाग 1, पेज 343
- ↑ रूहानी, मिनहाज अल फ़ुकाहा, 1429 हिजरी, भाग 1, पेज 343
- ↑ ख़ूई, मिस्बाह अल फ़ुकाहा, 1417 हिजरी, भाग 1, पेज 401
- ↑ गुरजी, कुतुब ज़लाल, दीदगाह हाए फ़िक्ही व हुक़ूक़ी, पेज 46
- ↑ शेख मुफ़ीद, अल मुक़्नेआ, 1410 हिजरी, पेज 588-589
- ↑ सानेई, हुर्रिया अल आलाम अल फ़िक्र व अल सक़ाफ़ी, मुतालेआ फ़िक्हीया फ़ी अल मौक़िफ़ मिन कुतुब अल ज़ेलाल, पेज 59
- ↑ शेख तूसी, अल निहाया, 1400 हिजरी, पेज 367
- ↑ इब्न बर्राज, अल मज़हब, 1406 हिजरी, भाग 1, पेज 314 और 345
- ↑ इब्न इद्रीस, अल सराइर, 1410 हिजरी, भाग 2, पेज 225
- ↑ अल्लामा हिल्ली, तज़केरातुल फ़ुक़्हा, 1414 हिजरी, भाग 9, पेज 127 भाग 12, पेज 143; अल्लामा हिल्ली, मुनतहा अल मतलब, 1316 हिजरी, भाग 2, पेज 1020
- ↑ सानेई, हुर्रिया अल आलाम अल फ़िक्र व अल सक़ाफ़ी, मुतालेआ फ़िक्हीया फ़ी अल मौक़िफ़ मिन कुतुब अल ज़ेलाल, पेज 59
- ↑ देखेः ख़ूई, इस्तिफ़तिआत, मोअस्सेसा अल ख़ूई अल इस्लामीया, भाग 1, पेज 260; सीस्तानी, मिनहाज अल सालेहीन, 1414 हिजरी, भाग 2, पेज 14; फ़य्याज़, मिन्हाज अल सालेहीन, मकतब समाहत आयतुल्लाह हाज शेख़ मुहम्मद इसहाक़ फ़य्याज़, भाग 2, पेज 113; फ़ाज़िल लंकरानी, जामे अल मसाइल, 1383 शम्सी, भाग 1, पेज 592 तबातबाई, क़ुमी, मबानी, मिन्हाज अल सालेहीन, 1426 हिजरी, भाग 7, पेज 288
- ↑ देखेः शेख अंसारी, अल मकासिब, 1415 हिजरी, भाग 1, पेज 233
- ↑ मुंतज़री, दरासात फ़ि अल मकासिब अल मोहर्रेमा, 1415 हिजरी, भाग 3, पेज 99-100; ख़ूई, मिस्बाह अल फ़ुक़ाहा, 1417 हिजरी, भाग 1, पेज 401
- ↑ मुंतज़री, दरासात फ़ि अल मकासिब अल मोहर्रेमा, 1415 हिजरी, भाग 3, पेज 99
- ↑ मुहक़्क़िक़ करकी, जामे आल मक़ासिद, 1414 हिजरी, भाग 4, पेज 26
- ↑ शेख अंसारी, अल मकासिब, 1415 हिजरी, भाग 1, पेज 235-236
- ↑ हुसैनी, आमोली, मिफ़्ताह अल करामा, 1426 हिजरी, भाग 12, पेज 209
- ↑ शेख अंसारी, अल मकासिब, 1415 हिजरी, भाग 1, पेज 236-237
- ↑ शेख अंसारी, अल मकासिब, 1415 हिजरी, भाग 1, पेज 237
- ↑ रूहानी, मिनहाज अल फ़ुक़ाहा, 1429 हिजरी, भाग 1, पेज 343
- ↑ मकारिम शिराज़ी, इस्तिफ़तिआत, 1427 हिजरी, भाग 2, पेज 265; साफ़ी गुलपाएगानी, हिदायतुल ऐबाद, भाग 1, पेज 293
- ↑ शहीद सानी, मसालिक अल इफ़्हाम, 1413 हिजरी, भाग 3, पेज 127
- ↑ शेख मुफ़ीद, अल मुक़नेआ, 1410 हिजरी, पेज 589 अल्लामा हिल्ली, तज़केरातुल फ़ुक़्हा, 1414 हिजरी, भाग 12, पेज 143; नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1362 शम्सी, भाग 22, पेज 56 शेख अंसारी, अल मकासिब, 1415 हिजरी, भाग 1, पेज 232
- ↑ शेख तूसी, अल नेहाया, 1400 हिजरी, हुसैनी आमोली, मिफ्ताह अल करामा, 1419 हिजरी, भाग 12, पेज 204; मुहक़्क़िक़ अर्दबेली, मजमा अल फ़ाएदा व अल बयान, 1403 हिजरी, भाग 8, पेज 75; तबरेज़ी, सेरात अल नेजात फ़ी अजवबतिल इस्तिफ़्तेआत, 1416 हिजरी, भाग 1, पेज 139
- ↑ ख़ूई, मिनहाज अल सालेहीन, मोअस्सेसा अल ख़ूई अल इस्लामीया, भाग 2, पेज 10; शेख अंसारी, अल मकासिब, 1415 हिजरी, भाग 1, पेज 236
- ↑ शहीद सानी, अल रौज़ा अल बाहीया, 1410 हिजरी, भाग 3, पेज 214; तबातबाई, रियाज अल मसाइल, 1412 हिजरी, भाग 1, पेज 503
- ↑ ख़ूई, मिनहाज अल सालेहीन, मोअस्सेसा आसार इमाम अल ख़ूई, भाग 2, पेज 240
- ↑ ख़ूई, मिनहाज अल सालेहीन, मोअस्सेसा आसार इमाम अल ख़ूई, भाग 2, पेज 217
- ↑ शेख मुफ़ीद, अल मुक़्नेआ, 1410 हिजरी, पेज 588
- ↑ शहीद सानी, अल रौज़ा अल बाहीया, 1410 हिजरी, भाग 3, पेज 214; तबातबाई, रियाज अल मसाइल, 1412 हिजरी, भाग 1, पेज 503
- ↑ वहीद ख़ुरासानी, मिनहाज अल सालेहीन, मदरसा अल इमाम बाक़िर उल उलूम, भाग 3, पेज 104
- ↑ मुंतज़री, दरासात फ़ी मकासिब अल मोहर्रेमा, 1415 हिजरी, भाग 3, पेज 104
- ↑ शेख अंसारी, अल मकासिब, 1415 हिजरी, भाग 1, पेज 233
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- ↑ बहरानी, हदाइक अल नाज़ेरा, मोअस्सेसा अल नशर अल इस्लामी, भाग 8, पेज 141
- ↑ आबरेशमी राद, शरह मबसूत क़ानून असासी, 1394 शम्सी, पेज 6
- ↑ आबरेशमी राद, शरह मबसूत क़ानून असासी, 1394 शम्सी, पेज 6
- ↑ क़ानून असासी जमहूरी इस्लामी ईरान, साइट मरकज़ पुज़ूहिश हाए मजलिस शूरा ए इस्लामी
- ↑ मकारिम शिराज़ी, पासूख बे पुरसिशहाए मज़हबी, 1377 शम्सी, पेज 337
- ↑ मिस्बाह यज़्दी, पासुख उस्ताद बे जवानान पुरसिशगर, 1394 शम्सी, पेज 58
स्रोत
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- शेख तूसी, मुहम्मद बिन हसन, अल नेहाया, बैरूत, दार अल किताब अल अरबी, 1400 हिजरी
- सानेई, यूसुफ़, हुर्रयातुल आलाम अल फ़िक्र व अल सक़ाफ़ीः मुतालेआ फ़िक़्ही फ़ी अल मौक़िफ मिन कुतुब अल जलाल, दर मजल्ले अल इज्तेहाद वल अल तजदीद, क्रमांक 9, 10 1429 हिजरी
- साफ़ी गुलपाएगानी, लुत्फ़ुल्लाह, हिदाया अल ऐबादत क़ुम, दार अल क़ुरआन अल करीम, 1416 हिजरी
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- तबातबाई, क़ुमी, सय्यद तक़ी, मबानी मिनहाज अल सालेहीन, क़ुम, कलम अल शरक़, 1426 हिजरी
- अल्लामा हिल्ली, हसन बिन युसुफ़, तज़केरातुल फ़ुक़्हा, क़ुम, मोअस्सेसा आले अल-बैत (अ), 1414 हिजरी
- अल्लामा हिल्ली, हसन बिन युसुफ़, मुनतहा अल मतालिब, मशहद, मजमा अल बोहूस अल इस्लामीया, 1316 हिजरी
- फ़ाज़िल लंकरानी, मुहम्मद, जामे अल मसाइल, क़ुम, इंतेशारात अमीर, ग्यारहवां संस्करण, 1383 शम्सी
- फ़य्याज़, मुहम्मद इस्हाक़, मिनहाज अल सालेहीन, क़ुम, मकतब समाहा आयतुल्लाहिल उज़्मा अल हाज अल शेख मुहम्मद इस्हाक़ अल फ़य्याज़
- क़ानून असासी जमहूरे इस्लामी ईरान, साइट मरकज़ पुज़ूहिश हाए मजलिस शूरा इस्लामी, वीजीत की तारीख 10 इस्फंद 1399 शम्सी
- गुरजी, अबुल क़ासिम, मीज गिर्द कुतुब ज़ल्लाल, दीदगाह हाए फ़िक्ही व हुक़ूक़ी, किताब माह, क्रमांक 5, उरदीबहिश्त 1382 शम्सी
- मुतम्मिम क़ानून असासी मशरूतेह, मुसव्वब 1258 शम्सी, खंड 20
- मुहक़्क़िक़ अर्दबेली, अहमद बिन मुहम्मद, मजमा अल फ़ाएदा व अल बयान, क़ुम, मोअस्सेसा अल नशर अल इस्लामी, 1403 हिजरी
- मिस्बाह यज़्दी, मुहम्मद तक़ी, पासुख उस्ताद बे जवानान पुरसिशगर, क़ुम, इंतेशारात मोअस्सेसा आमूज़िशी व पुज़ूहिशी इमाम ख़ुमैनी (अ), नवां संस्करण, 1394 शम्सी
- मुहक़्क़िक़ करकी, शेख नूरुद्दीन अली बिन हुसैन, जामे अल मक़ासिद, क़ुम, मोअस्सेसा आले अल-बैत (अ), दूसरा संस्करण, 1414 हिजरी
- मकारिम शिराज़ी, नासिर, इस्तिफ़्तिआत जदीद, क़ुम, मदरसा इमाम अली बिन अबि तालिब (अ), दूसरा संस्करण, 1427 हिजरी
- मकारिम शिराज़ी, नासिर, पासुख बे पुरसिशहाए मजहबी, क़ुम, मदरसा इमाम अली बिन अबि तालिब (अ), पहाल संस्करण, 1377 शम्सी
- मुंतज़री, हुसैन अली, दरासात फ़ी अल मकासिब अल मोहर्रेमा, क़ुम, इंतेशारात तफक्कुर, 1415 हिजरी
- नजफ़ी, मुहम्मद हसन, जवाहिर अल कलाम, बैरूत, दार एहया अल तुरास अल अरबी, सातवां संस्करण, 1362 शम्सी
- वहीद ख़ुरासानी, हुसैन, मिनहाज अल सालेहीन, क़ुम, मदरसा अल इमाम बाक़िर अल उलूम