हक़्क़ुन्नास
हक़्क़ुन्नास या हुक़ूक़-एबाद (अरबी: حق الناس) का अर्थ मानव अधिकारो का दायित्व मुनष्यो से है। हक़्क़ुन्नास (मानव अधिकार) हक़्क़ुल्लाह के मुकाबिल मे है, जो बंदो पर अल्लाह के अधिकारों से संबंधित है। हक़्क़ुन्नास वित्तीय अधिकारों तक सीमित नहीं है और इसमें लोगों का जीवन और माल भी शामिल है। मानव अधिकारों को महज़ और ग़ैर महज़ दो प्रकारों में विभाजित किया गया है, महज़ जैसे कि लोगों का जीवन और संपत्ति, और गैर महज़, जैसे कि चोरी और क़ज़्फ़।
इमाम सज्जाद (अ) ने रिसालतुल हुक़ूक़ मे पचास से अधिक अधिकारों और कर्तव्यों का उल्लेख किया है जो मनुष्य की जिम्मेदारी हैं। हदीसों में मानव अधिकार जोकि मनुष्य का उत्तरदायित्व है, को दुआ के क़बूल न देने का कारण माना गया है।
तौबा करने से और अल्लाह के मार्ग मे शहीद होने अर्थात शहादत से हक़्क़ुन्नास माफ़ नहीं होता बल्कि उसकी भरपाई की जाए या साहेबे हक़ उसे माफ़ कर दे। इस्लामी न्यायिक फैसलों में, हक़्क़ुन्नास और हक़्क़ुल्लाह के बीच अंतर हैं; उदाहरण के लिए, अल्लाह के अधिकार को लागू करने के लिए किसी का मुतालबा करना ज़रूरी नही है मानव अधिकार के विपरीत, हकदार की ओर से मुतालबा करना ज़रूरी है। हक़्क़ुल्लाह मे छूट और नरमी से काम लिया जाता है जबकि हक़्क़ुन्नास मे सावधानी और गंभीरता से काम लिया जाता है।
परिभाषा
इस्लाम धर्म में, अधिकारों को हक़्क़ुन्नस (मानव अधिकारो) और हक़्क़ुल्लाह (अल्लाह के अधिकारो) में विभाजित किया गया है।[१] हक़्क़ुन्नस का अर्थ मनुष्यों की दायित्व के अंतर्गत मानव अधिकार हैं, जिन्हें हक़्क़ुल्लाह (अल्लाह के अधिकारों) मनुष्य पर अल्लाह के अधिकार (दायित्व) [नोट १] के सामने रखा गया है।[२] हक़्क़ुन्नास को हक़्क़ुल्लह की एक प्रकार के अधिकार माना जाता है।[३] लेकिन जब इस शब्द का प्रयोग हक़्क़ुल्लाह के विरुद्ध किया जाता है, तो इसका अर्थ केवल एक समूह होता है जो मनुष्यों पर लोगों के अधिकारों को संदर्भित करता है।[४]
हदीस और न्यायशास्त्रीय स्रोतों में मानव अधिकार से हक़ूक़ एबाद[५] मनुष्य के अधिकार[६] मनुष्यों के अधिकार,[७] और मुसलमानों के अधिकार[८] जैसे शीर्षकों का उल्लेख किया गया है।
मसादीक़
कुछ फ़ुक़्हा ने मानवाधिकारों को महज़ और ग़ैर महज़ दो प्रकार का माना है: महज़ जैसे कि लोगों के जीवन और संपत्ति की सुरक्षा, और गैर-महज़ यानी ऐसे अधिकार जिनमें अल्लाह के अधिकारों और मानव अधिकारों के दोनों पहलू हैं; जैसे चोरी,[९] ताज़ीर[१०] और क़ज़्फ़ इत्यादि।[११]
मानव अधिकार वित्तीय अधिकारों तक सीमित नहीं है और इसमें मानव जीवन और संपत्ति भी शामिल है।[१२] इसलिए ग़ीबत (पीठ पीछे बुराई) करना,[१३] तोहमत लगाना, चुग़्ली करना और लोगों को अनावश्यक परेशानी देना भी मानव अधिकारो मे माना गया है।[१४] इमाम सज्जाद (अ) ने रिसालतुल हुक़ूक़ मे पचास से अधिक अधिकारों और दूसरों के प्रति कर्तव्यों का वर्णन किया है।[१५]
इस्लामी हदीसों में महत्व
हदीसों में हक़्क़ुन्नास को दुआ के मुस्तजाब अर्थात दुआ के अनुत्तरित होने के कारणों में से एक माना जाता है।[१६] इमाम सादिक़ (अ) ने किसी भी इबादत को मोमिन (आस्तिक) के अधिकार की पूर्ति से श्रेष्ठ नहीं माना।[१७] पैगंबर (स) की हदीसे मनाही मे कहा गया है कि अगर किसी की गर्दन पर किसी का कोई हक़ है और वो उसको अदा करने की क्षमता रखता है लेकिन उसको अदा करने मे टाल मटोल करता है तो उसके नामा ए आमाल मे हर दिन उश्शार के बराबर पाप दर्ज होगें।[१८] उश्शार उस व्यक्तित को कहा गया है जो अत्याचारी शासक के आदेश से लोगो की संपत्ति का दसवां भाग जबरदस्ती वसूला था।[१९]
न्यायशास्त्र और कानून में स्थान
न्यायशास्त्रीय स्रोतों में मानव अधिकारो के संबंध मे कज़ाई अहकाम वाले भाग मे अधिक चर्चा होती है।[२०] कुछ इस्लामी देशो के क़ानून मे इस ओर ध्यान दिया गया है[२१] उदाहरण स्वरूप दियत, क़ेसास (प्रतिशोध) और कुछ दंडनीय अपराध जैसे अपमान को मानव अधिकार के कारण अपराध माना गया है।[२२]
मानव अधिकार और अल्लाह के अधिकार मे अंतर
मानव अधिकार और अल्लाह के अधिकार के बीच कुछ अंतर का उल्लेख किया गया है जोकि निम्नलिखित हैः
- न्यायधीश के सामने मानव अधिकार को साबित करना अल्लाह के अधिकार की तुलना मे सरल है; क्योकि हक़्क़ुल्लाह एक पुरूष और दो महिलाओ की गवाही या एक पुरूष और एक क़सम (सौगंध) या मात्र महिलाओ की गवाही से साबित नही होती लेकिन कुछ मानव अधिकार इनके माध्यम से साबित हो जाते है।[२३]
- मानव अधिकार को लागू करना हक़दार की ओर से मुतालबे के अधीन है जबकि हक़्क़ुल्लाह को लागू करना किसी मुतालबे के अधीन नही है।[२४] ईरान की दंड संहिता के अनुच्छेद 159 में, मानवाधिकार के मामले में अपराधी का अभियोजन और दंड तब तक निलंबित रहता है जब तक कि हक़दार या उसका कानूनी प्रतिनिधि अपने अधिकार की मांग नहीं करता।[२५]
- हक़्क़ुन्नास मे न्यायधीश हक़्क़ुल्लाह के विपरीत अपराधी को इक़रार करने ने नही रोक सकता है।[२६]
- हक़्क़ुन्नास के कुछ मामले माफ़ और परिवर्तित किए जा सकते है, लेकिन हक़्क़ुल्लाह मे जिस व्यक्ति पर जुर्म साबित हुआ है उसके राज़ी होने से सज़ा माफ़ नही होती।[२७]
- हक़्क़ुन्नास तौबा करने से माफ़ नही होते, परंतु कुछ हक़्क़ुल्लाह तौबा करने से साक़ित (समाप्त) हो जाते है।[२८]
- हक़्क़ुन्नास मे सावधानी और गंभीरता से काम लिया जाता है जबकि हक़्क़ुल्लाह मे छूट और नरमी से काम लिया जाता है।[२९] कहा जाता है कि कुछ ने न्यायिक फ़ैसलो मे हक़्क़ुल्लाह और हक़्क़ुन्नास मे अंतर का कारण इसी को बताया है।[३०]
- परमेश्वर के मार्ग में शहीद होने से मानव अधिकार बख्शे नही जाते; हालाँकि शहादत से हक़क़ुल्लाह माफ़ हो जाता है।[३१] इसलिए कहा जाता है कि आशूरा की रात इमाम हुसैन (अ) ने अपने सहाबीयो से कहा कि जिनकी गर्दन पर किसी का हक़ बाकी है वो उनकी सेना में न रहें।[३२]
भरपाई
मानव अधिकार मे तौबा (पश्चयताप) के अलावा मानवाधिकारों की भरपाई की जाए या हक़दार उन्हे माफ़ करे।[३३] कुछ फ़ुक्हा के अनुसार, इस मुद्दे में वे अधिकार भी शामिल हैं जो एक व्यक्ति ने बालिग़ होने से पहले खो दिए थे।[३४]
पैग़ंबर (स) की एक रिवायत के आधार पर क़यामत के दिन जिस व्यक्ति की गर्दन पर दूसरो के अधिकार होंगे उसके अच्छे कर्म उन्हे दिए जाएँगे और अगर उसके अच्छे कर्म कम पड़ जाएँ तो हक़दार के पाप उसके कर्मो मे लिखें जाएंगे। फिर उसे आग में डाल दिया जाएगा।[३५] लयाली उल अख़बार किताब मे इमाम सादिक़ (अ) की एक अन्य रिवायत के अनुसार, क़यामत के दिन व्यक्ति की सबसे बुरी स्थिति तब होगी जब जकात और खुम्स के हक़दार लोग उसका रास्ता रोकेंगे। और अल्लाह तआला उस व्यक्ति के अच्छे कर्मों को ज़कात और ख़ुम्स के बदले उन्हे देगा।[३६]
मोनोग्राफ़ी
- निगाही बे हक़्क़ुन्नास, महमूद अकबरी द्वारा लिखित आयतुल्लाह मकारिम शिराज़ी के मुकद्देमा के साथ। पुस्तक के अध्याय इस प्रकार हैं: अहमयते हक़्क़ुन्नास (मानवाधिकारों का महत्व), हक़्क़ुन्नास व दरआमदहाए हराम (मानव अधिकार और हराम आय), हक़क़ुन्नास वा मसाइल ए माली वा इक़तेसादी (मानवाधिकार और वित्तीय एंवम कानूनी मुद्दे), हक़्क़ुन्नास वा मसाइले इर्ज़ी वा आबरूई ( मानवाधिकार और लौकिक और प्रतिष्ठित मुद्दे)।[३७]
- हक़्क़ुन्नास: अब्बास रहीमी द्वारा फारसी में लिखी गई किताब। पुस्तक में छह अध्याय हैं, जिनमे आबरूई मुसलमान वा हक़्क़ुन्नास दर क़यामत उसका एक अध्याय है।[३८]
संबंधित लेख
नोट
- ↑ ज़िम्मा का अर्थ है कुछ करने या कोई कार्य करने का दायित्व। बहजत, मुहम्मद तक़ी, तौज़ीहुल मसाइल, क़ुम: शफ़क़, 1380 शम्सी, तुरैही, मज्मा उल बहरैन, भाग 6, पेज 66
फ़ुटनोट
- ↑ देखेः इब्ने शैयबा, तोहफुल उक़ूल, 1404 हिजरी, पेज 255
- ↑ देखेः आमोली, अल-इस्तेलाहातुल फ़िक्हीया, 1413 हिजरी, पेज 71
- ↑ देखेः शहीद अव्वल, अल-क़वाइद वल फ़वाइद, 1400 हिजरी, भाग 2, पेज 43; मूसवी अरदबेली, फ़िक़्हुल क़ज़ा, 1423 हिजरी, भाग 2, पेज 188
- ↑ शहीद अव्वल, अल-क़वाइद वल फ़वाइद, 1400 हिजरी, भाग 2, पेज 43; मूसवी अरदबेली, फ़िक़्हुल क़ज़ा, 1423 हिजरी, भाग 2, पेज 188
- ↑ शहीद अव्वल, अल-क़वाइद वल फ़वाइद, 1400 हिजरी, भाग 1, पेज 195
- ↑ शेख तूसी, अल-मब्सूत, 1387 हिजरी, भाग 2, पेज 370
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- ↑ शेख तूसी, अल-मब्सूत, 1387 हिजरी, भाग 8, पेज 163
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- ↑ मोहक़्क़िक़ दामाद, क़वाइदे फ़िक्ह, 1406 हिजरी, भाग 3, पेज 160
- ↑ देखेः अल्लामा मजलिसी, बिहार उल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 74, पेज 160
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- ↑ अल्लामा मजलिसी, बिहार उल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 72, पेज 150
- ↑ इब्ने शैयबा, तोहफुल उक़ूल, 1404 हिजरी, पेज 255-256
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- ↑ देखेः शहीद अव्वल, अल-क़वाइद वल फ़वाइद, 1400 हिजरी, भाग 2, पेज 43-44
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- ↑ शेख तूसी, अल-मब्सूत, 1387 हिजरी, भाग 8, पेज 163
- ↑ मरक़ाई, हक़्क़ुल्लाह वा हक़्क़ुन्नास, भाग 13
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- ↑ शूस्तरी, अहक़ाकुल हक़, 1409 हिजरी, भाग 19, पेज 430
- ↑ देखेः कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, भाग 5, पेज 94
- ↑ देखेः मुराग़ी, अल-अनावीनुल फ़िक़्हीया, 1417 हिजरी, भाग 2, पेज 660
- ↑ अल्लामा मजलिसी, बिहार उल अनवार, भाग 69, पेज 6
- ↑ तूईसरकानी, लयाली उल अख़बार, अल्लामा, भाग 3, पेज 214
- ↑ नूर लैब, शनासनामा किताब निगाही बे हक़्क़ुन्नास
- ↑ शब्के जामे किताब गैसूम
स्रोत
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- अल्लामा मजलिसी, मुहम्मद बाक़िर, बिहार उल अनवार, बैरूत, दार एहयाइत तुरास अल-अरबी, 1403 हिजरी
- तुरैही, फ़ख्रूद्दीन, मज्मा उल बहरैन, संशोधन सय्यद अहमद हुसैनी, तेहरान, किताब फ़रोशी, मुर्तजवी, 1416 हिजरी
- कुलैनी, मुहम्मद बिन याक़ूब, अल-काफ़ी, संशोधन अली अकबर गफ़्फ़ारी वा मुहम्मद आखूंदी, तेहरान, दार उल कुतुब उल इस्लामीया, 1407 हिजरी
- मज्मूआ ए जराइम वा मजाज़ातहा, तेहरान, मुआवेनत पुज़ूहिश तदवीन व तनक़ीह क़वानीन व मुकर्रेरात मज्मा तशखीसे मसलहते निज़ाम, 1385 हिजरी
- मोहक़्क़िक़ दामाद, सय्यद मुस्तफ़ा, क़वाइद फ़िक्ह, तेहरान, मरकज़ नश्र उलूम इस्लामी, 1406 हिजरी
- मुराग़ी, सय्यद मीर अब्दुल फ़त्ताह, अल-अनावीन अल-फिक़्हीया, क़ुम, दफ्तर इंतेशारात इस्लामी वा बस्ता बे जामे मुदर्रेसीन हौज़ा ए इल्मीया क़ुम, 1417 हिजरी
- मरक़ाई, सय्यद ताहा, हक़्क़ुल्लाह वा हक़्क़ुन्नास, दर दानिश नामा जहान इस्लाम
- मुंतज़री, हुसैन अली, दिरासात फ़ी विलायतिल फ़क़ीह वा फ़िक्हुद दुवालुल इस्लामीया, क़ुम, तफक्कुर, 1409 हिजरी
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- नूर लैब, शनासामा किताब निगाही बे हक़्क़ुन्नास