चोरी

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यह लेख चोरी के बारे में है। चोरी की हद्द (सज़ा) के बारे में जानने के लिए, चोरी की हद्द की प्रविष्टि देखें।

चोरी (अरबी: سرقة) चोरी करना दूसरे लोगों की चल संपत्ति को गुप्त रूप से चुराना है।[१] चोरी करना हराम है और बड़े पापों (गुनाहे कबीरा) में से एक है।[२] हदीसों में, आर्थिक सुरक्षा की हानि, लड़ाई, हत्या और व्यापार के प्रति अनिच्छा को इसका परिणाम माना गया है।[३] न्यायविदों के अनुसार, चोरी ज़मानतदार है[४] और चोर को स्वयं संपत्ति या उसके बराबर संपत्ति उसके मालिक को लौटानी होगी,[५] और संपत्ति के मालिक की मृत्यु की स्थिति में, संपत्ति उसके वारिसों सौंप दी जाएगी, और अगर कोई वारिस न हो तो इसे इमाम (अ) को सौंप दिया जाएगा।[६]

«وَالسَّارِقُ وَالسَّارِقَةُ فَاقْطَعُوا أَیدِیهُمَا...» (वस्सारेक़ो वस्सारेक़तो फ़क़्तऊ ऐयदेयहोमा) का हवाला देते हुए[७] न्यायविदों का मानना है कि चोरी की हद्द (सज़ा) चोर के हाथ की उंगलियां काटना है।[८] हालांकि, वे चोरी की हद्द जारी करने के लिए कुछ शर्तों को आवश्यक मानते हैं।[९] और अगर वह शर्तें न पाई जाती होंगी तो हद्द लागू नहीं होगी और चोर को तअज़ीर (दंडित) किया जाएगा।[१०] उन शर्तों मे से एक मालिक की नज़रों[११] से दूर सुरक्षा (हिर्ज़) तोड़ना और उसके अंदर से संपत्ति चुरा लेना[१२] है। न्यायविद् के अनुसार हिर्ज़ ऐसी चीज़ है जो प्रथा (उर्फ़) के अनुसार, संपत्ति की रक्षा करने की क्षमता रखता है।[१३] शेख़ तबरसी की राय के अनुसार, हिर्ज़ एक ऐसी जगह है जहां कोई भी मालिक की अनुमति के बिना प्रवेश नहीं कर सकता है और उस पर क़ब्जा नहीं कर सकता है।[१४]

न्यायशास्त्रियों के अनुसार, चोरी की हद्द (सज़ा) धन चुराने वाले व्यक्ति[१५] और गबन करने वाले[१६] जो खुले तौर पर और हिर्ज़ (सुरक्षा) को तोड़े बिना धन चुराते हैं[१७] पर लागू नहीं होती है और उन्हें केवल दंडित किया जाता है।[१८] जेबकतरे या पॉकेटमार के लिए चोरी की हद्द (सज़ा) लागू करने के संबंध में उनके अनुसार, यदि चोरी कपड़ों की भीतरी जेब से की गई है, तो यह हिर्ज़ (सुरक्षा) तोड़ने के समान है और ऐसी स्थिति में उसकी सज़ा उंगलियां काटना है;[१९] लेकिन यदि वह (चोर) किसी व्यक्ति के सामने के जेब से चोरी करता है, जो दिखाई देता है, तो उसे दंडित (तअज़ीर) किया जाएगा क्योंकि सामने वाले (दिखने वाला) जेब हिर्ज़ के हुक्म में नहीं है।[२०] इमाम खुमैनी का मानना है कि यदि लोग (उर्फ़) सामने के जेब से चोरी को हिर्ज़ (सुरक्षा) से होनी वाली चोरी मानते हैं, तो उस पर चोरी की हद्द (सज़ा) लागू होगी।[२१]

साइबर चोरी की सज़ा के संबंध में न्यायविदों का मानना है कि यदि साइबर चोरी में हद्द की शर्तें पाई जाती हों, जैसे हिर्ज़ (सुरक्षा) को तोड़ कर चोरी करना (स्मार्ट कार्ड को डिक्रिप्ट करना और उनसे पैसे निकालना), तो हुक्म चोर की उंगलियों को काटने का है, और अन्यथा, चोर को दंडित (तअज़ीर) किया जाएगा।[२२]

फ़ुटनोट

  1. इब्ने इदरीस, अल सराएर, 1410 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 483; फ़ाज़िल जवाद, मसालिक अल-अफ़हाम, 1365 शम्सी, खंड 4, पृष्ठ 203; फ़ैज़ काशानी, अल-साफ़ी फ़ी तफ़सीर अल-कुरआन, 1356 शम्सी, खंड 1, पृष्ठ 441।
  2. नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1362 शम्सी, खंड 13, पृष्ठ 310।
  3. हुर्रे आमोली, वासएल अल शिया, 1424 हिजरी, खंड 18, पृष्ठ 482।
  4. शहीद सानी, अल-रौज़ा अल बहिया, 1410 हिजरी, खंड 9, पृष्ठ 305; नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1362 शम्सी, खंड 41, पृष्ठ 544।
  5. शहीद सानी, अल-रौज़ा अल बहिया, 1410 हिजरी, खंड 9, पृष्ठ 305।
  6. मोहक़्क़िक़ हिल्ली, शराए अल इस्लाम, 1408 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 178; नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1362 शम्सी, खंड 41, पृष्ठ 544।
  7. सूर ए माएदा, आयत 84।
  8. सय्यद मुर्तज़ा, अल-इंतिसार, 1415 हिजरी, पृष्ठ 528-529; तूसी, अल-मबसूत, 1387 हिजरी, पृष्ठ 19; तूसी, अल-खिलाफ़, 1407 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 452; अल्लामा हिल्ली, मुख़्तलिफ़ अल शिया, 1374 शम्सी, खंड 9, पृष्ठ 249; मर्शी, अहकाम अल सिरक़त अला ज़ौए अल क़ुरआन व अल सुन्नत, 1382 शम्सी, पृष्ठ 316।
  9. उदाहरण के लिए, देखें मोहक़्क़िक़ हिल्ली, शराए अल इस्लाम, 1408 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 159; मर्शी, अहकाम अल सिरक़त अला ज़ौए अल क़ुरआन व अल सुन्नत, 1382 शम्सी, पृष्ठ 467-472; तबरेज़ी, अस्सास अल हुदूद व अल तअज़ीरात, 1376 शम्सी, पृष्ठ 309।
  10. उदाहरण के लिए, देखें: अलम अल होदा, अल-इंतिसार, 1415 हिजरी, पृष्ठ 528-529; शेख तूसी, अल-मबसूत, 1387 हिजरी, खंड 8, पृष्ठ 19; शेख़ तूसी, अल-खिलाफ़, 1407 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 452; अल्लामा हिल्ली, मुख़्तलिफ़ अल-शिया, 1374 शम्सी, खंड 9, पृष्ठ 249।
  11. शहीद सानी, अल-रौज़ा अल बहिया, 1410 हिजरी, खंड 9, पृष्ठ 231; फ़ाज़िल हिंदी, कशफ अल लेसाम, 1416 हिजरी, खंड 10, पृष्ठ 568।
  12. इमाम ख़ुमैनी, तहरीर अल-वसीला, 1392 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 458।
  13. फ़ाज़िल हिंदी, कशफ़ अल लेसाम, खंड 10, पृष्ठ 599; शहीद सानी, अल-रौज़ा अल बहिया, 1410 हिजरी, खंड 9, पृष्ठ 245; फ़ैज़ काशानी, मफ़ातीह अल शरिया, 1395 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 92।
  14. तबरसी, मजमा अल बयान, 1408 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 297।
  15. शहीद सानी, मसालिक अल अफ़हाम, 1413 हिजरी, खंड 15, पृष्ठ 20; नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1362 शम्सी, खंड 41, पृष्ठ 596; शहीद सानी, अल-रौज़ा अल बहिया, 1410 हिजरी, खंड 9, पृष्ठ 304; तबातबाई, रेयाज़ अल मसाएल, 1422 हिजरी, खंड 13, पृष्ठ 628।
  16. शहीद सानी, अल-रौज़ा अल बहिया, 1410 हिजरी, खंड 9, पृष्ठ 306; मुक़द्दस अर्दाबेली, मजमा अल-फ़ाएदा, 1403 हिजरी, खंड 13, पृष्ठ 291
  17. गुलपायेगानी, अल दुर्र अल मंज़ूद, 1417 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 309।
  18. गुलपायेगानी, अल दुर्र अल मंज़ूद, 1417 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 309।
  19. मोहक़्क़िक़ हिल्ली, शराए अल इस्लाम, 1408 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 162।
  20. शेख़ तूसी, अल-ख़िलाफ़, 1407 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 451।
  21. इमाम खुमैनी, तहरीर अल-वसीला, 1390 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 486।
  22. मरकज़े तहक़ीक़ात फ़िकही क़ुव्व ए क़ज़ाईया, मजमूआ ए आरा ए फ़िक़ही, 1381 शम्सी, खंड 1, पृष्ठ 57।


स्रोत

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  • तबरेज़ी, जावद, अस्सस अल हुदूद व अल तअज़ीर, क़ुम, बी ना, 1376 शम्सी।
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  • मर्शी नजफ़ी, सय्यद शहाबुद्दीन, अहकाम अल सिरक़त अला ज़ौए अल क़ुरआन व अल सुन्नत, क़ुम, आयतुल्लाह मर्शी नजफ़ी, 1382 शम्सी।
  • मरकज़े तहक़ीक़ाते फ़िक़ही क़ुव्व ए क़ज़ाईया, मजमूआ ए आरा ए फ़िक़ही- क़ज़ाई दर उमूरे कैफ़री, तेहरान, नशरे मुआवेनते आमोज़िश व तहक़ीक़ाते क़ुव्व ए क़ज़ाईया, 1381 शम्सी।
  • मुक़द्दस अर्दाबेली, अहमद, मजमा अल-फ़ाएदा वा अल-बुरहान फ़ी शरहे इरशाद अल-अज़हान, क़ुम, मोअस्सास ए अल नशर अल इस्लामी, 1403 हिजरी।
  • नजफ़ी, मुहम्मद हसन, जवाहिर अल कलाम फ़ी शरहे शरा'ए अल-इस्लाम, शोध: मुहम्मद कुचानी, बेरूत, दार अह्या अल-तोरास अल-अरबी, 7वां संस्करण, 1362 शम्सी।
  • वलीदी, मुहम्मद सालेह, हुक़ूके जज़ाए इख़्तेसासी (जराएम अलैहे अमवाल व मालेकीयत), तेहरान, अमीर कबीर, पांचवां संस्करण, 1380 शम्सी।