"अमीरुल मोमिनीन (उपनाम)": अवतरणों में अंतर
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१६:०६, १९ अक्टूबर २०२२ का अवतरण
- यह लेख अमीरुल मोमिनीन के लक़ब के बारे में है। शियों के पहले इमाम के लिए, इमाम अली अलैहिस सलाम देखें।
अमीरुल मोमिनीन ( अरबी: اَمیرُالمؤمِنین ) एक उपाधि है जिसे शिया मानते हैं कि यह हज़रत अली अलैहिस सलाम के लिए विशेष व मख़सूस है और शिया अन्य मासूम इमामों के लिए इसका इस्तेमाल नहीं करते हैं। शियों के अनुसार, इस उपाधि का उपयोग पहली बार पैगंबर मुहम्मद (स.अ.व) के समय अली बिन अबी तालिब के लिए किया गया था और यह उनके लिए अद्वितीय है।
जैसा कि चंद्र कैलेंडर की पांचवीं शताब्दी में महान शिया विद्वानों में से एक, शेख़ मुफ़ीद ने कहा, ग़दीर की घटना के दौरान, पैगंबर ने अली इब्न अबी तालिब को अपने उत्तराधिकारी और सभी मुसलमानों के मौला के रूप में पेश किया और सभी को अली (अ.स.) को अमीरुल मोमिनीन कह कर अभिवादन (सलाम) करने के लिए कहा। इस संदर्भ में, उम्मे सलमा और अनस बिन मलिक के कथनों को पैगंबर (स) के जीवनकाल के दौरान भी अमीरुल मोमिनीन के उपयोग को दिखाने के लिए उद्धृत किया गया है।
सुन्नी इतिहासकारों में से एक, इब्ने ख़लदून के अनुसार, सहाबा ने दूसरे ख़लीफा के बारे में "ख़लीफ़ा खलीफ़ा रसूलुल्लाह" के इस्तेमाल से छुटकारा पाने के लिए उसके बारे में इस शीर्षक का इस्तेमाल किया।
अर्थ
अमीरुल मोमिनीन का अर्थ है मार्गदर्शक, मुसलमानों का कमांडर और रहबर।[१] शियों का मानना है कि इस उपनाम का उपयोग केवल इमाम अली (अ.स.) के लिए किया जाना चाहिए और यहां तक कि हदीसों के अनुसार, वे इसे मासूम इमामों पर भी लागू करने से इनकार करते हैं।[२]
मफ़ातिह अल-जिनान में जो कहा गया है, उसके अनुसार, शियों को ईदे ग़दीर के दिन एक विशेष ज़िक्र (अल हम्दु लिल्लाहिल लज़ी जअलना मिनल मुतमस्सेकीना बेविलायते अमीरिल मोमिनीन) कहने की सलाह दी जाती है, जब वे एक-दूसरे से मिलते हैं, जिसमें अमीरुल-मोमिनीन की विलायत के पालन पर ज़ोर दिया जाता है।[३]
सबसे पहला प्रयोग
शियों के अनुसार, अमीरुल-मोमिनीन उपाधि का मूल और पहला उपयोग पैगंबर (स.अ.व) ने किया था आप (स) ने अली बिन अबी तालिब को अमीरुल मोमिनीन कह कर संबोधित किया। हालांकि, इस तथ्य के कारण कि इमाम अली (अ.स.) खिलाफ़त से दूर रहे, इस शब्द का व्यापक रूप से दूसरे और तीसरे खलीफ़़ा, यानी उमर और उस्मान के लिए इस्तेमाल होने लगा।[४]
इस संबंध में, शिया हदीसों का उल्लेख करते हैं जिन्हें शियों और सुन्नियों के माध्यम से वर्णित किया गया है। उम्मे सलमा[५] और अनस इब्ने मलिक के एक कथन के अनुसार, पैगंबर ने अपनी दो पत्नियों के साथ बातचीत में अली इब्ने अबी तालिब का अमीरुल मोमिनीन के रूप में उल्लेख किया।[६] और सुन्नी विद्वानों के बीच इब्ने मर्दवैह इस्फ़हानी ने अपनी पुस्तक मनाक़िब में दी गई कई हदीसों के अनुसार, पैगंबर (स.अ.व) ने इमाम अली (अ.स.) को कई बार अमीरुल मोमिनीन की उपाधि से वर्णित किया है। इनमें से एक हदीस में, यह कहा गया है कि जिबरईल (अ.स.) ने ईश्वर के दूत (स.अ.व) की उपस्थिति में अली (अ.स.) को अमीरुल मोमिनीन कह कर बुलाया।[७]
शिया हदीसों में यह भी कहा गया है कि ग़दीर की घटना के दौरान, इस्लाम के पैगंबर (स) ने अली (अ.स.) को अपने उत्तराधिकारी और सभी मुसलमानों के रहबर के रूप में पेश किया और सभी को अली (अ) को "अमीरुल-मोमिनीन" की उपाधि से बधाई देने के लिए कहा। इस आधार पर, पैगंबर के अनुरोध के बाद, मुसलमानों ने समूहों में अली के तम्बू में प्रवेश किया और उन्हें उसी तरह से बधाई दी जैसे पैगंबर ने आदेश दिया था।[८] एक दूसरी हदीस के अनुसार पैग़ंबर ने सात लोगों से जिन में अबू बक्र, उमर, तल्हा और ज़ुबैर सम्मिलित थे अली (अ) को अमीरुल मोमिनीन कह कर सलाम करने के लिये कहा और उन्होने पैगंबर के अनुरोध को पूरा किया।[९]
इमाम अली (अ.स.) के लिए अमीरुल मोमिनीन की उपाधि को साबित करने में, शियों ने उमर इब्ने ख़त्ताब के एक वाक्य का भी हवाला दिया है, जिसके अनुसार, ग़दीर के दिन, उन्होंने अली को सभी ईमान वाले पुरुषों और महिलाओं का मौला (स्वामी) कहा।[१०] कुछ लोगों के अनुसार, इस संबोधन में मोमिन शब्द के प्रयोग का अर्थ इमाम अली (अ.स.) के लिए अमीरुल मोमिनीन की उपाधि को स्वीकार करना है।[११]
राजनीतिक उपयोग
सुन्नी इतिहासकार इब्ने ख़लदून ने दूसरे ख़लीफा के समय में अमीरुल मोमिनीन उपाधि की वुजूद में आने और उमर बिन ख़त्ताब के लिए इसके प्रयोग के बारे में कहा है: सहाबा ने अबू बक्र को ईश्वर के दूत का ख़लीफा कहा, उसके बाद, उमर बिन ख़त्ताब को ईश्वर के दूत के ख़लीफा का ख़लीफा कहा जाता था, लेकिन क्योंकि यह शब्द भारी था, और विडंबना यह है कि सहाबा में से एक, जिनका नाम अब्दुल्ला बिन जहश, या अम्र आस, या मुग़ीरा बिन शोअबा या अबू मूसा अशअरी माना जाता है, ने उमर को अमीरल-मोमिनीन कह कर संबोधित किया, सहाबा ने इसे पसंद किया और उसे मंजूरी दे दी।[१२] तीसरी शताब्दी के इतिहासकार याक़ूबी के अनुसार, यह घटना वर्ष 18 हिजरी से संबंधित है[१३] इब्ने ख़लदून के अनुसार, उस समय सेना के कमांडरों को अमीर कहा जाता था, सहाबा और साद बिन अबी वक्क़ास, जो क़ासेदिया की जंग (14 हिजरी) में मुस्लिम सेना के कमांडर थे उन्हें अमीरुल मोमिनीन कहते थे।[१४] कुछ रिपोर्टों के अनुसार, दूसरे ख़लीफा ने इस नामकरण में भूमिका निभाई।[१५] पवित्र पैगंबर (स.अ.व.) के बाद मुस्लिम सरकारों के इतिहास के दौरान अमीरुल-मोमिनीन शीर्षक राजनीतिक और धार्मिक रूप से इस्तेमाल किया जाने लगा और हमेशा, अबू बक्र को छोड़कर यह ख़ुलाफ़ा ए राशेदीन, बनी उमय्या और बनी अब्बास के ख़ुलाफ़ा को संदर्भित करने के लिये प्रयोग होता था।[१६]
मोनोग्राफ़ी
सय्यद इब्ने ताऊस, सातवीं शताब्दी में शिया मुहद्दीस ने, अल-यक़ीन बे इख़्तेसासे मौलाना अली बे इमरतिल मोमिनीन नामक पुस्तक में, सुन्नी स्रोतों से 220 हदीसों के हवाले से साबित किया है कि अमीरुल मोमिनीन की उपाधि इमाम अली अलैहिस सलाम के लिये विशेष है।[१७] और सय्यद बिन ताऊस का मानना है कि अमीरुल मोमिनीन ऐसा लक़ब है जिसे पैग़बर (स.अ.व) ने अली (अ.स) के लिए मख़सूस किया है।[१८]
फ़ुटनोट
स्रोत
- आमदी, अब्दुल वाहिद बिन मुहम्मद, ग़ुरर अल-हेकम और दुरर अल-कलिम, क़ुम, दार अल-किताब अल-इस्लामी, 1410 एएच/1990 ई.
- इब्ने खलदून, अब्दुर रहमान इब्न मुहम्मद, दीवान अल-मुबतदा वल-ख़बर फ़ी तारिख़ अल-अरब वा अल-बर और मन आसरहुम मिन ज़ी शान अल-अकबर, खलील शहादाह, बेरूत, दार अल-फ़िक्र द्वारा शोधित, 1408 एएच/ 1988 ई.
- इब्ने असाकर, तारीख़े मदीन ए दमिश्क़, अली शिरी, बेरूत, दार अल-फ़िक्र, 1425 एएच द्वारा शोध किया गया।
- इब्ने उक़दा कूफी, फ़ज़ाएले अमीर अल-मोमेनिन, अब्दुल रज्जाक़ मोहम्मद हुसैन हर्ज़ुद्दीन, क़ुम, दलिल प्रकाशन, 1379 द्वारा संकलित।
- इब्न मर्दविह, अहमद बिन मूसा, मनाक़िब अली बिन अबी तालिब, क़ुम, दार अल-हदीस, 1382।
- अबू नईम इस्फ़हानी, अहमद बिन अब्दुल्लाह, हिलयतुल-अवलिया और तबक़ात अल-असफ़िया, बेरूत, दार अल-किताब अल-अरबी, 1407 एएच।
- अब्दुस, मोहम्मद तकी, और मोहम्मद मोहम्मदी एशतेहारदी, बीसते पंज अस्ल अज़ उसूले अख़लाक़ी इमामान, क़ुम, इस्लामी प्रचार कार्यालय प्रकाशन केंद्र, 1377।
- हुर्रे आमेली, मुहम्मद बिन हसन, वसायलुश शिया, मुहम्मद रज़ा हुसैनी जलाली, क़ुम, अल-अल-बैत ले एहया अल-तुरास इंस्टीट्यूट, 1416 एएच द्वारा शोध किया गया।
- तक़द्दुमी मासूमी, अमीर, नूर अल-अमीर (अ.स) फ़ी तसबीत ख़ुतबतिल ग़दीर: मुअय्येदात हदीसिया मिन कुतुबे अहलिस सुन्ना लेख़ुतबतिन नबी अल-आज़म अल-ग़दिरिया, क़ुम, 1379.
- दायरतुल मआरिफ़ तशय्यो, अहमद सदर हज सैयद जावदी, कामरान फानी और बहाउद्दीन खोर्रम शाही, खंड 2, तेहरान, हिकमत पब्लिशिंग हाउस, 1368 की देखरेख में।
- शेख़ मुफ़ीद, मुहम्मद बिन मुहम्मद, अल-इरशाद फ़ी मारेफ़ते हुज्जुल्ला अलल-इबाद, आलुल-बैत ले एहया अल-तुरास संस्थान, क़ुम का शोध, शेख़ मोफ़ीद मिलेनियम अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन, 1413 एएच।
- तबरी, मुहम्मद बिन जरीर, तारिख़ अल-उमम वल-मुलूक (तारीख़े तबरी), मुहम्मद अबुल फज़ल इब्राहिम, बेरूत, रुए अल-तुरास अल-अरबी, बीता।
- क़ुम्मी, शेख़ अब्बास, मफ़ातिह अल-जिनान, मूसवी दमग़ानी द्वारा अनुवादित, मशहद, आस्तान कुद्स रज़वी पब्लिशिंग हाउस, 11वां संस्करण।
- मजलेसी, मोहम्मद बाकिर, बिहार अल-अनवार, बेरूत, अल-वफा संस्थान, 1403 एएच।
- मुनतज़ेरी मोक़्ददम, हमीद, "बररसी कारबुर्द हाए लक़बे अमीरुल मोमिनीन दर बिसतरे तारीख़े इस्लाम", दर मजल्लए तारीख़े इस्लाम दर आईन ए पजोहिश, क़ुम, इमाम खुमैनी इंस्टीट्यूट, स्प्रिंग 2018 में।
- याकूबी, अहमद बिन वाज़ेह, तारिख़ अल याक़ूबी, बेरूत, दार सदर, बीता।
- ↑ दायरतुल मआरिफ़े तशय्यो, 1368, खंड 2, पृ.522।
- ↑ मजलिसी, बिहार अल-अनवार, 1403 एएच, खंड 37, पृष्ठ 334; हुर्रे आमेली, वसायल अल-शिया, 1416 एएच, खंड 14, पृष्ठ 600।
- ↑ اَلحمدُ لِلهِ الّذی جَعَلَنا مِنَ المُتَمَسِّکینَ بِولایةِ اَمیرِالمؤمنینَ و الائمةِ المَعصومینَ علیهم السلام ईश्वर की विशेष प्रशंसा की जाती है, जिसने हमें उन लोगों में से बनाया जो अमीरुल मोमिनीन और मासूम इमामों के शासन का पालन करते हैं, (क़ुम्मी, मफ़ातिह अल-जिनान, ज़िल-हिज्जाह के 18 वें कर्मों के तहत)।
- ↑ शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 एएच, खंड 1, पृ.48; इब्ने उक़बा कूफी, फज़ाएले अमीरुल मोमिनिन, 1379, पृष्ठ 13; यह भी देखें: इब्ने असाकर, तारीख़े मदीन ए दमिश्क़, 1425 एएच, खंड 42, पीपी 303 और 386; अबू नईम इस्फ़हानी, हिलयतुल-औवलिया, 1407 एएच, खंड 1, पृ.63।
- ↑ शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 एएच, खंड 1, पृ.48।
- ↑ इब्ने असाकर, तारीख़े मदीन ए दमिश्क़, 1425 एएच, खंड 42, पीपी 303 और 386; शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 एएच, खंड 1, पृ.48; अबू नईम इस्फ़हानी, हिलयतुल-औवलिया, 1407 एएच, खंड 1, पृ.63।
- ↑ इब्ने मर्दुवैह, मनाक़िब, 2013, पीपी. 62-64।
- ↑ शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 एएच, खंड 1, पृ.176।
- ↑ शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 एएच, खंड 1, पृ.48।
- ↑ بَخٍّ بخٍّ لک یابن ابیطالب أصبَحتَ و أمسَیتَ مولای و مولی کلِّ مؤمنٍ و مؤمنَهٍ; या अली आपको मुबारक हो! आप मेरे स्वामी और सभी विश्वास करने वाली महिलाओं और पुरुषों के स्वामी बन गए हैं (शेख़ मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 एएच, खंड 1, पृष्ठ 177)।
- ↑ मुनतज़ेरी मोक़द्दम, "बररसी कारबुर्दहाए लक़बे अमीरुल मोमिनीन दर बिस्तरे तारीख़े इस्लाम", पृष्ठ 136।
- ↑ इब्ने ख़लदून, दीवान अल-मुबतदा वल-ख़बर, 1408 एएच, खंड 1, पृष्ठ 283।
- ↑ याक़ूबी, तारिख़े याकौबी, दार सादिर, खंड 2, पृष्ठ 150।
- ↑ इब्ने ख़लदून, इब्ने ख़लदून, दीवान अल-मुबतदा वाल-ख़बर, 1408 एएच, खंड 1, पृ.283।
- ↑ तबरी, तारिख़ अल-उमम और वल-मुलूक, बेरूत, खंड 4, पृष्ठ 208।
- ↑ इब्ने ख़लदून, दीवान अल-मुबतदा वल-ख़बर, 1408 एएच, खंड 1, पृष्ठ 283।
- ↑ तक़द्दुमी मासूमी, नूर अल-अमीर फ़ा तसबीत ख़ुतबा अल-ग़दीर, 1379, पृष्ठ 97।
- ↑ "अलयक़ीन बेइख़्तेसास मौलाना अली बेअमरिहि अलमोमिनीन", हदीस नेट साइट।