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"हज़रत अब्बास अलैहिस सलाम": अवतरणों में अंतर

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== अनुष्ठान और अन्य रीति-रिवाज==  
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* '''अलम निकालना''': इमाम हुसैन (अ) की अज़ादारी मे हज़रत अब्बास (अ) की याद मे अलम निकाला जाता है।<ref>रब्बानी ख़लख़ाली, चेहरा ए दरखशान क़मरे बनी हाशिम, 1378 शम्सी, भाग 2, पेज 326 </ref>
* '''अलम निकालना''': इमाम हुसैन (अ) की अज़ादारी मे हज़रत अब्बास (अ) की याद मे अलम निकाला जाता है।<ref>रब्बानी ख़लख़ाली, चेहरा ए दरखशान क़मरे बनी हाशिम, 1378 शम्सी, भाग 2, पेज 326 </ref>
* '''सक़्क़ाई''': यह मनक़्बत पढ़ने की रस्मों में से एक है [[अज़ादारी]] के दिनों में आयोजित की जाती है, विशेष रूप से ईरान में [[तासूआ]] (9 मुहर्रम) और अशूरा को आयोजन होता है। यह अनुष्ठान कभी-कभी नौहा पढ़ने के रूप में और कभी-कभी अज़ादारी के रास्ते में और धार्मिक प्रतिनिधिमंडलों में प्यास बुझाने के रूप में आयोजित की जाती है; पहले मामले में, विशेष अश्आर और नौहे होते हैं, और दूसरे मामले में सक़्क़ा विशेष कपड़े पहनते हैं और मातम मनाने वालों को मशक या सुराही से पानी पिलाते हैं।<ref>मज़ाहेरी, फ़रहंगे सोगे शीई, 1395 शम्सी, पेज 354-356; रब्बानी ख़लख़ाली, चेहरा ए दरखशान क़मरे बनी हाशिम, 1378 शम्सी, भाग 3, पेज 182-213</ref>
* '''सक़्क़ाई''': यह मनक़बत पढ़ने की रस्मों में से एक है [[अज़ादारी]] के दिनों में आयोजित की जाती है, विशेष रूप से ईरान में [[तासूआ]] (9 मुहर्रम) और अशूरा को आयोजन होता है। यह अनुष्ठान कभी-कभी नौहा पढ़ने के रूप में और कभी-कभी अज़ादारी के रास्ते में और धार्मिक प्रतिनिधिमंडलों में प्यास बुझाने के रूप में आयोजित की जाती है; पहले मामले में, विशेष अश्आर और नौहे होते हैं, और दूसरे मामले में सक़्क़ा विशेष कपड़े पहनते हैं और मातम मनाने वालों को मशक या सुराही से पानी पिलाते हैं।<ref>मज़ाहेरी, फ़रहंगे सोगे शीई, 1395 शम्सी, पेज 354-356; रब्बानी ख़लख़ाली, चेहरा ए दरखशान क़मरे बनी हाशिम, 1378 शम्सी, भाग 3, पेज 182-213</ref>


इराक़ और ईरान के कई शिया शहरों में सक्काई संस्कृति आम है<ref>रब्बानी ख़लख़ाली, चेहरा ए दरखशान क़मरे बनी हाशिम, 1378 शम्सी, भाग 3, पेज 182-213 </ref> और सक्काई संस्कृति का प्रभाव हज़रत अब्बास के नाम पर बने प्याऊ स्थानो पर देखा जा सकता है।<ref>कलबासी, खसाएसुल अब्बासीया, 1387 शम्सी, पेज 213-214</ref>
इराक़ और ईरान के कई शिया शहरों में सक्काई संस्कृति आम है<ref>रब्बानी ख़लख़ाली, चेहरा ए दरखशान क़मरे बनी हाशिम, 1378 शम्सी, भाग 3, पेज 182-213 </ref> और सक्काई संस्कृति का प्रभाव हज़रत अब्बास के नाम पर बने प्याऊ स्थानो पर देखा जा सकता है।<ref>कलबासी, खसाएसुल अब्बासीया, 1387 शम्सी, पेज 213-214</ref>
* हज़रत अब्बास (अ) की क़सम खाना: हज़रत अब्बास की क़सम खाना [[इमामिया|शियों]] और यहां तक कि सुन्नियों के बीच भी एक आम बात है, इसलिए कुछ लोगो का कहना है कि शिया हज़रत अब्बास की क़सम खाकर अपने झगड़े खत्म कर लेते हैं। और कुछ लोग अब्बास के नाम की [[क़सम]] को ही एकमात्र सच्ची क़सम मानते हैं।<ref>चाल्सकी, अब्बास जवान मर्द दिलैर, पेज 375</ref> कुछ शिया कबीले हज़रत अब्बास (अ) की कसम खाकर अपने अनुबंधों, समझौतों, सौदों और अनुबंधों की पुष्टि करते हैं और उन्हें मजबूत करती हैं।<ref>बगदादी, अल-अब्बास, 1433 हिजरी, पेज 20</ref> हज़रत अब्बास (अ) की क़सम पर विशेष ध्यान देने का कारण उनकी हिम्मत, वफ़ादारी, जोश, शिष्टता और शौर्य है।<ref>मीरदरेकवंदी, दरयाए तशना, तशना दरिया, 1382 शम्सी, पेज 111-113</ref> हज़रत अब्बास की क़सम पर भरोसा करने के बारे में सुन्नियों, खासकर इराकियों के कुछ उद्धरण हैं। इराक के पूर्व रक्षा मंत्री, हरदान तिकरिती ने कहा है कि अहमद हसन अल-बक्र (इराक के पूर्व राष्ट्रपतियों में से एक) और सद्दाम और कई अन्य लोगों के साथ मिलकर, वे एक समझौता करना चाहते थे और अपने समझौते को मजबूत करना चाहते थे और एक दूसरे के साथ विश्वासघात न करने के लिए, उन्होंने क़सम खाने का फैसला किया हालांकि कुछ लोगों ने क़सम खाने के लिए अबू हनीफा की कब्रगाह का सुझाव दिया, लेकिन उन्होंने अंततः हज़रत अब्बास (अ) के रोज़े पर जाने और वहां क़सम खाने का फैसला किया।<refतिकरीती, मुजाकेरात ए हरदान अल-तिकरीती, 1971 ई, पेज 5></ref>
* हज़रत अब्बास (अ) की क़सम खाना: हज़रत अब्बास की क़सम खाना [[इमामिया|शियों]] और यहां तक कि सुन्नियों के बीच भी एक आम बात है, इसलिए कुछ लोगो का कहना है कि शिया हज़रत अब्बास की क़सम खाकर अपने झगड़े खत्म कर लेते हैं। और कुछ लोग अब्बास के नाम की [[क़सम]] को ही एकमात्र सच्ची क़सम मानते हैं।<ref>चाल्सकी, अब्बास जवान मर्द दिलैर, पेज 375</ref> कुछ शिया कबीले हज़रत अब्बास (अ) की कसम खाकर अपने अनुबंधों, समझौतों, सौदों और अनुबंधों की पुष्टि करते हैं और उन्हें मजबूत करती हैं।<ref>बगदादी, अल-अब्बास, 1433 हिजरी, पेज 20</ref> हज़रत अब्बास (अ) की क़सम पर विशेष ध्यान देने का कारण उनकी हिम्मत, वफ़ादारी, जोश, शिष्टता और शौर्य है।<ref>मीरदरेकवंदी, दरयाए तशना, तशना दरिया, 1382 शम्सी, पेज 111-113</ref> हज़रत अब्बास की क़सम पर भरोसा करने के बारे में सुन्नियों, खासकर इराकियों के कुछ उद्धरण हैं। इराक के पूर्व रक्षा मंत्री, हरदान तिकरिती ने कहा है कि अहमद हसन अल-बक्र (इराक़ के पूर्व राष्ट्रपतियों में से एक) और सद्दाम और कई अन्य लोगों के साथ मिलकर, वे एक समझौता करना चाहते थे और अपने समझौते को मजबूत करना चाहते थे और एक दूसरे के साथ विश्वासघात न करने के लिए, उन्होंने क़सम खाने का फैसला किया हालांकि कुछ लोगों ने क़सम खाने के लिए [[अबू हनीफा]] की क़ब्रगाह का सुझाव दिया, लेकिन उन्होंने अंततः हज़रत अब्बास (अ) के रौज़े पर जाने और वहां क़सम खाने का फैसला किया।<refतिकरीती, मुजाकेरात ए हरदान अल-तिकरीती, 1971 ई, पेज 5></ref>
* हज़रत अब्बास (अ) की नज़्र: हज़रत अब्बास (अ) की नज़्र एक विशेष नज़्र है जिसमे कुछ देशो मे यह महिला गेदरिंग होती है।<ref>चालस्की, अब्बास जवान मर्द दिलैर, पेज 374</ref> हज़रत अब्बास (अ) की नज़्र विशेष अनुष्ठान और [[दुआ]] पढ़कर आयोजित की जाती है। सबसे महत्वपूर्ण और सामान्य नज़्रो में से एक "अबुलफजल" की नज़्र है।<ref>मजाहेरी, फरहंगे सोग शीई, 1395 शम्सी, पेज 274-275</ref>
* हज़रत अब्बास (अ) की नज़्र: हज़रत अब्बास (अ) की नज़्र एक विशेष नज़्र है जिसमे कुछ देशो मे यह महिला गैदरिंग होती है।<ref>चालस्की, अब्बास जवान मर्द दिलैर, पेज 374</ref> हज़रत अब्बास (अ) की नज़्र विशेष अनुष्ठान और [[दुआ]] पढ़कर आयोजित की जाती है। सबसे महत्वपूर्ण और सामान्य नज़्रो में से एक "अबुलफजल" की नज़्र है।<ref>मजाहेरी, फरहंगे सोग शीई, 1395 शम्सी, पेज 274-275</ref>
* अब्बासीया या बैतुल-अब्बास: यह उन जगहों को कहा जाता है जो हज़रत अब्बास (अ) के नाम पर और मातम मनाने के लिए बनाई जाती हैं। कुछ लोगों ने कहा है कि इन जगहों पर कई अन्य कार्यक्रम भी किए जाते हैं और उनका कार्य [[इमाम बारगाह|इमामबारगाहो]] के समान है।<ref>रब्बानी खलख़ाली, चेहरा ए दरखशान कमर ए बनी हाशिम, 1386 शम्सी, भाग 2, पजे 243-258</ref>
* अब्बासीया या बैतुल-अब्बास: यह उन जगहों को कहा जाता है जो हज़रत अब्बास (अ) के नाम पर और मातम मनाने के लिए बनाई जाती हैं। कुछ लोगों ने कहा है कि इन जगहों पर कई अन्य कार्यक्रम भी किए जाते हैं और उनका कार्य [[इमाम बारगाह|इमाम बारगाहो]] के समान है।<ref>रब्बानी खलख़ाली, चेहरा ए दरखशान कमर ए बनी हाशिम, 1386 शम्सी, भाग 2, पजे 243-258</ref>
* जानबाज़ दिवस (पूर्व सैनिक दिवस): इस्लामिक गणराज्य ईरान के आधिकारिक कैलेंडर में, हज़रत अब्बास (अ) के जन्म दिवस [[4 शाबान]] जानबाज़ दिवस के रूप में नामित किया गया है।<ref>नामगुज़ारी ए रोजहा वा हफ्तेहाए खास</ref>
* जानबाज़ दिवस (पूर्व सैनिक दिवस): इस्लामिक गणराज्य ईरान के आधिकारिक कैलेंडर में, हज़रत अब्बास (अ) के जन्म दिवस [[4 शाबान]] जानबाज़ दिवस के रूप में नामित किया गया है।<ref>नामगुज़ारी ए रोजहा वा हफ्तेहाए खास</ref>
* पंजा या पंज चिन्ह, कुछ शिया क्षेत्रों में पंजे को अलम के ऊपर स्थापित किया जाता है जोकि हजरत अब्बास (अ) के कटे हुए हाथों का प्रतीक है। क्योकि पंजे मे पांच उंगलिया है इसको आधार मानते हुए कुछ शिया इसे पंजेतन का प्रतीक मानते हैं।<ref>बुलूकबाशी, मफाहीम वा निमादगारहा दर तरीक़ते क़ादरी, पेज 100</ref>
* पंजा या पंज चिन्ह, कुछ शिया क्षेत्रों में पंजे को अलम के ऊपर स्थापित किया जाता है जोकि हजरत अब्बास (अ) के कटे हुए हाथों का प्रतीक है। क्योकि पंजे मे पांच उंगलिया है इसको आधार मानते हुए कुछ शिया इसे पंजेतन का प्रतीक मानते हैं।<ref>बुलूकबाशी, मफाहीम वा निमादगारहा दर तरीक़ते क़ादरी, पेज 100</ref>
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